अ्रविन्ध-सम्पीदक : श्रीचन्द रामवुरिया, बी° कमण, बी° एक° संकल : आदशं साहित्य संव चूरू ( राजस्थान } आर्थिक-पहायक : श्री रामलाल हंसराज गोलछा विराटनगर ( नेपाल } दिसम्बर, १६६७ प्रति-संख्या १००५ पुष्छकं ‡ ६२२ भूक : स्यु रोशन प्रिष्टिग वक्यं ३१/१, लोषर चितपूर रोड करकत्ता-१ भूत्य : ₹० १३) 4 4.20 ॥६.।।। 4 % ^ २- [ प ^^ 41406. ^ रा? वप, ^(^^70^-(0ा-^ ] ५2612 एप 8 4८.4८4 (¶7ा.+अ 22411९0 1111 0ा्ए्‌ च्ल, सवाभ ८ढता६5, ^10020611681 ऋतकः ग फएणापड, 40661668, €, 710 विपि पविभी ( पाव 8३0९ } १/1 7/ | गुप्त ऊषाः (लदवा भावञ्च (हवा -ऽप्राप8 एाथत्दोक्षा इद्ध) 3, एणपाष्टग6586 (पणयो ऽद्य ^^ -1 (प्रणा) सिं हण 19671 { 2९८ : 25. 13 वाद 249 अणल्ट्छात्राते एभापृपा8, 8. (0 , 2, 1. {वा 56 7 (०रद्व 67 ^ ववार उप क> ऽक्षा (पाण (22502) (वालव 455754व1८८ : [ितणाध प्रु गक ए1721015887 (िरिचछएभ) (01९5 ~ 1000 2९5 , 632 2 77९" ~ वल २0508 एतिद शणा§ 31/1, 1.0 ल्प 09. +® -१।५१ १२. 11 ष्टा § प८ञलार्ल्त्‌ समर्पण पवाहिया नेणं सुयस्स धारा, गणे समत्थे ममं माणसे वि जो हैउभरमो स्स पवायणस्स, कालुस्स तस्स प्पणिहाण पूव्वं ॥ जिसने श्रुत की धार वहाई, सकल संघमे मेरे मन मे। हेतुभूत॒श्रुत-सम्पादन मे, कालुगणी को विमल भाव से ॥ विनयावनतः आचाय तुलसी अन्तस्तोष अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है, उस मारी का जो अपने हाथो से उप भौर सिचित द्रुप-निकररेज को पल्लवित, पुष्पित ओर फरिति हआ देखता है भौर उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नो से प्राणवान्‌ बना देखतता &ै। चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जँन-आगमो का शोपू्ं सम्पादन हो ओौर मेरे जीवन के वहुरमी क्षण उसमें लगे । संकल्प फलवान्‌ वना ओर वैसा ही हुभा । मु केन्र मान मेरा घमे-परिवार उस कायं मे संकुन हो गया । अतः मेरे इस अन्तस्तोष मे मे उन सवको समभागी बनाना चाहतारहँः जो इष प्रवृति मे सविभागी रहे है । संप मे वह संविभाग इस प्रकार है :- सम्पादकं ‡ मुनि नथमल ( निकाय-सचिव } सहयोगी : मुनि दुलहराज पाठ-सञोघन "“ मुनि सुदशन मुनि मधुकर ५ मुनि हीरा शब्दसूची » मुनि श्रीचन्द्र ” ` मुनि हनुमानमल (सरदारशहर) सविभाग हमारा धमं है । जिन-जिन ने इस गुरुतर प्रवृत्ति मे उन्मुक्त भान से अपना सविभाग समर्पित क्रिया है, उन सनको म आशीर्वाद देता हँ गौर कामना करत हूँ कर उनका भनिप्य इ महान्‌ करयं का भविष्य कने । -आचायं तुलसी भन्थानुकम समपेण अन्तस्तोष प्रकाशकीय सम्पादकीय भूमिका विषयानुक्रम आयारो : विसय-सुची आयार-चूला : विसय-सुची संकेत-निर्दरिका आयारो प° १-१०८ आयारःचूला प° १०९-३५८ परिशिष्ट ` १ आयारो : संक्षि पाठ, पूर्तं स्थल ओर आधार-स्थल निर्देश २. आयार-चूखा : सक्षि पाठ, पूतं स्थल भौर आधार-स्थल निर्देश ३. वाचान्तर तया आलोच्य पाठ शुद्धिपत्रम्‌ १-आयारो मूर-पाठ २-आयार्‌-चूखा मूल-पाठ इ३-आयारो पाठान्तर ४-आयार-चूला पाठान्तर भ-परिरिष्ट-२ आयारो शब्द-सुची आयार-चूा शब्द-मूची शुद्धि गौर आपूरक-उत् १-भायारो शब्द-सूची २-भायार-चूना शब्द-सुची पकारकोय आगम-सुत्त ग्र्थमाला का यह दवितीय ग्न्य पाठको के सम्मुख रखते हए अत्यन्त हप हो रहा है। इस भ्रन्यमाखा का प्रथम ग्रन्य "दसवेभआयियं तद्‌ उत्तरज्छयणाणिः भ्रकारित हो चुका दै, जिसमें द्शवेकालिक भौर उत्तराच्ययन---ये दोनो आगम एक साथहि। प्रस्तुत ग्रन्थ भें प्रम भञ्ध चारांग के दो श्रुतस्कंध क्रमश आयारो' भौर 'आायार-चूखा के नाम से प्रकारित हो रहे हे} पाठ सोधन भौर निधीरण मे जो परिश्रम किया गया है, वह्‌ ग्रस्य के प्रत्येक पृष्ठ से सहन ही समभा जा सकता है ! (जाव' भौर अन्य पूर्तं स्थरो कौ बड़ी खोज कै साय पूर्ति कर दी गई है! इस तरह मूल-पाठ पाठको के टिएु सरक, सुवाच्य भौर वोघगम्य वन गया है 1 “जाव भौर संक्षिप्त पाठ-पूति का कायं अद्यावधि प्रकारित्त संस्करणो मे उपेक्षित र्हा ओर वह अति कटिनि कार्यं इस प्रकाशन में मत्यन्त अन्वीक्षा भौर बनुस्धान पूर्वक सम्पन्न हु है 1 पाद-सिप्पणि्यों मेँ पाठान्तर का वोव करा दिया गया है । अन्त मे तीन परिशिष्ट शौर 'लायारो' तथा "आयार-चूला' दोनो की सम्पूणं शन्द-सुचो दे दौ गई है, जो जन्वेपक विद्रानो के छिए अनेक रष्टियो से अत्यन्त महत्वपूर्णं है । शन्द-मुची आज तक के प्रकाशित क्रिस संस्करण मे नही है ओर इसी प्रकाशन में सवं प्रथम उपरन्घ होती है । आरम्भ मे सम्पादकीय के वाद आचाय श्रौ तुलसी हारा किचत पाण्डितयपूरणं भूमिका है, जो अनेक विषयों पर नया प्रका डाल्ती है । भूमिकाङी विषय-सुची से उसमें चचितं किरेष पहु का जाभास पाठको को हो सकेगा । इस तरह दौ शरुतस्कन्व व्यास खारा आचारांग॒आधुतिकतम प्रणाटी से सम्पादित हो कर्‌ अभिनव रूप में सामने माया है] भगम-सुत् परनाला का मूल उदेश्य है विदानो के सम्मूख लेन-आगमो कै सुन्दर ओर प्रामाणिकं संस्करण उपष्थित करना, निससे भादी शोध-षोन का मागं प्रशस्त हो। इसी दृष्ट से उक्त भ्न्थमालछा फा यह्‌ द्वितीय श्रन्थ अद्य ही विद्रानो का मादर प्राप्ठ करेगा । (घ) भायारौ तह भयार-चूलो इस ग्रन्थ के सम्पादन मै जिन-जिन विद्रानो एवं प्रकारन संस्थायो के ग्रन्थ तथा प्रकाक्चनो का उपयोग हुभा है, उन सवके प्रति हम हाप्कि कतक्चता ज्ञापनं करते है 1 पाण्डुकिपि की प्रतिलिपि वाचां श्री कै तत्त्वानधान मे सन्तो द्वारा प्रस्तुत पाण्डुलिपि को नियमानुसार अवधार कर उस प्रतिङिपरि करने का कार्ये आदरं साहित्य संघ, चुर दवारा सम्पन्न हुभा है, जिसके छिए हम संघ के संचाखको के प्रति कृतज्ञ हे । अर्थव्यवस्था इस ग्न्य के प्रकाशन का व्यय विराटनगर ( नेपाल }) निवासी श्री रामलारजी हंसराजनी गोलच्ला दवारा श्री हंसराजजी हखासचन्दनी गोल्खछा कौ स्वर्गीया माता श्रौ घापीदेवी ( घर्म-पत्नी श्रौ रामलाल्जी गोरचा } की स्मृति मेँ प्रदत्त निषि से हमा है 1 एतदर्थं इस अनुकरणीय अनुदान के लि गोलद्का-परिवार हार्विकि च्यवादक्रा पात्नहै। र प्रकाशन समिति की भोर से उक्त निधि से होने वले प्रकाशन कायं करी देल-रेल के लिए निम्न सज्जनो कौ एकं उपसमिति गिति कौ गई है : (१) श्रीमान्‌ हृकासचन्दजी गोला (२) ” मोहनलारजी वाँस्ा (३) ” श्रीचन्दजी रामपुरिया (४) *“ गोपीचम्दजी चोपड़ा (५) ” केवलचम्दजी नाह सर्व श्री श्रीचन्द रामपुरिया एवं केवलचन्दजी नाहटा उक्त उपसमिति के संयोजक चुने शये है । आगम-साहित्य प्रकारन-कायं महाभा के अन्तत॒ यठ्ति आगम-साहित्य प्रकाशन समिति का प्रकाशन-कायं ज्यो-ज्यो भागे बढ र्हा है, सयो-त्यौ हदय मे आनन्द का पारावार नही । मै तो भपने जीवन क़ एक साघ ही पूरी हेति देल र्हा हूं । इस थवस्र पर मै अपने नत्य बन्ु भौर साथी सरव श्रौ गोनिन्दरामजी सराव, मोहवलालजी बोँठिषा एवं खेमचन्दजौ सस्य को उनकी मुक्त सेवाभो के किए हादिक घन्यवाद देता हूं । प्रकाशकीय श) आभार आचार्यं श्री की चुदीर्घ-टष्टि अलयन्त भेदिनी है 1 जहां एक भोर जन-मानमस की बाघ्यात्मिक भौर नैतिक चेतना कौ जाग्रति कै व्यापक नैतिक घान्दोलनो में उतक्े अमूल्य जीषनक्षग ल्ग रहे दै, वह दूरी ओर आगम-साहित्य जत जेन-सं्कृति के मूल- सन्देश को जन-व्यापी वाने का उनका उपक्रम मी अनन्य बौर स्तुत्य है जेन भागमों को अभिलषितं सपमे भारतीय एवं विदेशी वानो के सम्मुबलादेनेकी भाकाक्षा मे वाचना प्रम के हूय मे जो अथक परिश्रम भाचायं श्री तुलसी ने भपने को पर च्याहै उसके लिए जेनीही नही भपितु सारी भारतीय जनता उनके प्रति कृतज्ञ रहेगी । निकाय सचिव मुनिं श्रौ नयमलजी का सम्पादन-कायं एवं तेरापत्य संघ के अन्य विदन्‌ मृनिदृष्दं के सक्रिय-सहयोग भी वस्तुत" भभिनन्दनीय है 1 हम माचा श्री भौर उनके प्रवार कै प्रति दस जनहितकारी पवित प्रवृति के लिए नतमस्तक है । जन श्वेताम्बर तेरापन्थी महासभा श्नीच्र्व्ड रास्नप्टुरिय्या ३, पोर्चगीज चच स्टीट, कलकत्ता-१ संघोजक १ दिसम्बर, १६६७ आगम-ताहित्य प्रकाश्नन समिति सम्पादकीय नाम-परिचेय प्रस्तुत ग्रन्थ आगम-प्रन्थ-माला का द्वितीय ग्रन्थ है । इस माला के प्रथम ग्रन्थ में [| ब्दियो € दौ गरल सूत्र सम्पादित इए थे । इसमे पहला अंग सम्पादित दै । शता एवे जो स्थान आचारांग का था, वह स्थान वर्तमान मे मुलसु्नाँ का है । इसलिए मलसूत्र ओर आचारांग निकट सम्बन्धी है । आचाराग के दौ श्रुतस्कन्ध है । प्रथम शरुतस्कन्ध मे मूल यआचाराग बौर दूसरे श्रुतस्कन्ध मे आचार्राग की चार ॒चूलिकाथों का समविश है । प्रथम श्रुतस्कन्ध का नाम ायारो' गौर दूसरे शरुतस्कन्धं का नाम आयार-चूललाः है । इसीलिए प्रस्त ग्रन्थ का नाम आयारौ तह थायार-चूला' रखा गया है । गन्थ-बोध रसवत ग्रन्थ मेँ पाठान्तर सहित मूलपाठ है । प्रारम्भ मेँ भूमिक्रा भौर घत मे पाँच परिशिष्ट है- (१) आयारो संक्षप् पर्ति-स्थल ओर उसका निदे श । (२) आयार-चूला संक्षि एरति-स्थल शौर उसका निर्देश । (३) आयारो शब्द-यची । (४) आयार-चूला शब्द-सूची ओर (५) शुद्धि-पतरम्‌ । नामारुक्रम्‌ आयार-चूला ओर निशीथ मे प्रुत विशेष नाम प्रायः सदृश है, इसलिए आयार- चूला के विशेष नामो का अनुक्रम निशीथ के नामालुक्रम के साथ ही किया जाएगा । पाठ-सम्पादन मेँ हमने अनेक संकेत-चिन्दौ का प्रयोग किया है, उनका स्यष्टीकरण श्तकेत-निदेशिका' मे किया गवा है । सतुत पाठ ओर पाट-सम्पादन की पद्धति आचाराग का जौ पाठ हमने स्वीकार किया है, उसका आधार कौर एक दशं नहो है । हमने पाठ का स्वीकार प्रयुक्त अदश, चिं गौर वृत्ति के संदभं मे समीक्षा- पूवक किया है । यारो" के प्रथम अध्ययन के दूसरे देशक कै त्रीन सूत्र (२७-२६) २ आयारो तह आयार-चूला शेष पच उदेशको मे मी प्रा होते है । पाठ-पंशोधन भें प्रयुक्त दशो तथा आचाररांग ठृत्ति मे यह प्रा नहौ दै ! आचारांग चूं मै (लज्नमाणा पृदोपास' (आयारो, सूत्र १६, पर ४ } सूत्र से लेकर श्भप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद वए (आयारौ, सूत्र २६ प° ६) तक धर. वकण्डिका (एक समान पाठ) मानी गर है 14 चूरणि में प्राप संकेतके आधार पर हमने द्वितीय देशक प्रष्ठ तीन सूत्र (२७-२६) शेष पांच उदेशको मेँ स्वीकृत किए है । अआठबे अध्ययन के दरूसरे उदेशक (सृ० २९) की चूर्णि* मै कुभारायतणंसि वा" कै स्थान पर अनेक शब्द उपलन्ध होते है, जेसे~-“उवदणगिहे वा, गामदेडलिए वा, कम्मगारसालाए वा, तुवायगसालाए चा, सोहगारसालाए वा # चूणिकारने अगे लिखा है--'जवियाओ साला सन्वाथो भागियन्वाथौ 13 . . यही प्रतीत होता है कि कृभारायतणंस्ि वा' शब्द अन्य अनेक शालाया गहवाची शब्दौ से युक्त था, कन्ठ लिपि-दोष के कारण कालक्रम से शेष शब्द ष्ट गए । चूर्णिं के आधार पर पाठ-पद्धति का निश्चय करना संभव नहो, इसलिए उते मूलपाठ मे स्वीकृत नही किया गया । हमने संकष्ठ पाठकीपूर्तिमीकौदहै। पाठ सकषेपकी परम्परा भरत को कंठाग्र करने की पद्धति ओौर लिपि की सुविधा कै कारण प्रचलित हई । प० वेचरदास दौशी ने ८-१२-६६ को आचायर तुलसी के पास एक लेख भेजा था । उसमे इस विषय पर प्रकाश डालते हृए उन्होने क्िखा है--“्राचीन जेन-भरमण लिखने-लिखाने की प्रवृत्ति को बारंभ-रूप समञ्चते थे, फिर मी शास्त्र की रक्षा कै लिए उन्हौने लिखने लिखाने के आरम्भ-रूप मार्ग को भी अपवाद समश्च कर स्वीकार क्रिया । पर जितना कम लिखना पडे उतना अच्छा, एेसा समञ्च कर उन्होने शास्त्रे कौ रक्षाके लिए ही, हो सके वो तक कम आरंभ करना पडे, एेसा रास्ता शोधने का जरूर प्रयास किया । इस रास्ते की शोध से वण्णो" ओर "जाव दो नए शब्द उनको भिले। इनदो शब्दो की सहायवा से हनारो श्लोक वां सेकडो वाक्य केम लिखने से उनका आस्म कम हो गवा ओर शस्त्रके आशयमे भी किसी प्रकार की न्यूनता नही हई 1 १. देखे-आयारो, पृ० ८ पादटि्पण सष्याक २; पृण ११ पादरिप्पण सख्याक २; पृ० ४ पादटिप्पण सच्याक १ , प° १६ पादटिप्पण सख्याक २, पु० १६ पादटिप्पण सख्याक ४। २ आचारांग चूर्ण, प° २६०-२६१ 1 ३ वही, पृ० २६१। सम्दकायं ` रुवं को कण्टस्थ करने कौ पद्धति, लिपि की सुविधा योर कम लिखने की मनोदृत्ति-पराठ-सकषेप के ये तीनो कारण संभाव्य दै । इनसे मले ही आशय कौ न्वूनता न हृई ह, किन्तु ग्रन्ध-सौन्दयं अवश्य न्यून हया है । पारक कौ कठिनाद्र्यौ मी व है । जिन सुनि्यो के समग्र आगम-साहितय कण्ठस्य था, वे जवि या चण्णगं द्रिं संकैतित पाठ का अचुरंधान कर पूवापर की सम्बन्ध-योजना कर मकते है । किन्तु प्रतिलिपियो के आधार पर पर्ने बाला भुनि-बगं ठेसा नही कर सकता । उसके लिए जावे" था बण्णगः द्वारा सकैतित्त पाठ वहत लामदावौ सिद्ध नही हृथा है । इसका हम प्रत्यक्ष अनुभव कर रहे है । इसी कठिनाई तथा म्रन्थ-सौन्वर्य की दृष्टि से हमारे वाचना प्रयुख आचार्यश्री तुलसी ने चाहा की सक्षपीङत पाठकी पनः पततिकौं जाए । हमने अधिकाश स्थलौ मे संक्षि पाठ की पूरतिं की है 1 उसकी सूचना के लिषए विन्दु-रुकेव दिवा गया है । आयारो तथा चावार-चूला के पृरति-स्थलो के निरंश की सूचना प्रथम शौर द्वितीय परिशिष्ट मे दी गई है । ॥ प० वेचरदास दोशो के अतुसार पाठ का सक्षेपीकरण देवद्धिगणि क्षमाध्रमण तै करिया था। उन्होने लिखा है-“देवद्धिगपि क्षमाश्रमण ने थागमो को ग्रन्ध-बद्ध करते समय कुठ महत््वपूणे वाते ध्यान मे रखी । जहो नहो शास्मो मे ममन एर आए वहा उनकी पुनरावृत्ति न करते हृए उनके किए एक विरेप ग्न्ध्र अथवा स्थान का निदेश कर दिया 1 जैसे--(जहा उववाइए' जहा पष्यवणाण" इत्यादि । एक ही ग्रन्थमे बही वात वारबार चाने पर उते पनुः न लिग्बते इए जवः शष्ट का प्रयोग करते हए उसका अन्तिम शब्द लिख द्या । उँसे--पणाग कुमारा जवि विहरति”, हिणं कालेणं जाव परिसा पिमाया इत्यादि ॥" ए इस परम्परा का प्रारम्भ भले ही देवरद्धिगणि ने किया हो, किन्त इसका विकाम उनके उत्तरवर्ती-काल मे भी होता रहा है । वर्तमान मे उपलब्ध आदर्श मे मक्षेपी- हृत पाठ कौ एकत्प्रता नही दै । एक आदश मँ को$ नृवर क्षिप्र है तौ दमे मे बह समग्र रूप से लिखित है । टीकाकारो ने स्थान-स्थान प्र इसका इल्लेख भौ क्रिया ह । उदाहरण के लिए थौपपाततक सूत्र म “अयपायाणि बा जाव अण्णयराडं बा तथा चयवधणाणि बा जाव यण्णयरा वाये दौ एाडाश मिलते हे । इृत्तिकार े सामने जो युरूय थादशं थे, उनमे पे दोनो संक्षि स्प मे थे, किन्त दमे चादौ मेवेसमग्रसरूप मेमी प्राप्रये। वृत्तिकारने इसका उत्लेख किया ६ ।° लिपिकर्ता 2 १. जैन साहित्य का वृहह इतिहास, पु०८१1 २ ओपपातिकं वृत्ति, पव १७७ पुस्तकान्तरे ममग्रमिद सूव्रदयमस््येवेति 1 ४ आयारो तहं भायारःचूखा अनेक स्थलो मेँ अपनी सुबिधानुसार पूरवांगठ पाठ को दूसरी वार नही लिखते भौर उनत्तरवती आदर्शो मँ उनका अनुसरण होता चला नाता ! उदाहरण स्वरूप- रायपसेणडय सूत्र मेँ श्वन्विढीय अकालपरिदीणा' (स्वीकृत पार-हीणं) एेसा पाठ मिलता ई ।* इस पाठ मे अपूरण॑ता सूचक संकेत भौ नही है । (्सन्बिडदीए' ओर अकालपरिदीणं' के मध्यवती पाठ की पति करने प्रर समग्र पाठ इस प्रकार वनता है--'सन्षिडदीए सन्त्रशुत्तीए सन्ववलेणं सन्वसयुदएणं सन्वादरेणं सन्वविभुखाए सम्व- विभुडए सन्वेसंभमेणं सन्वष्फ-वत्थ-गंध-मटलालंकरेणं सव्वदिन्वेतुडियसदसन्निनाएणं महया इबदीए महया शुडए महया वलेणं महया सञुदएणं महया वरन्डियजमगसमय- पड्प्पवादइयरवेणं संख-पणव-पडह-मेरि-मल्लरि-खरसुहि -हृदुक्क-सुरय-सुदग-ददुभि- निरधोस-नाइयखेणं णियग परिवाल सदधि संपरिषुडा साद साद जाणविमाणादं रूढा समाणा यकालपरिहीणं ॥ आचचार-चूला ५।९४ मे (महद्धणमौत्लाई' तथा १५।५६ मेँ "महन्वए' के अगे भी पूर्णता सूचक सकैत नही है 1 प्रमादवश कही-की अपूता सू्रक "जानः का विपर्यय भी हुभा है, यथा-- फासुयं ''““““““ - "लामे सुते जाव पडिगादैज्जा । (१।१०१) वहूकंदगं ". * ""“"" "लाम सते जाव णोः" """ । (१।१३५) समपंण-घत् संक्षि पद्धति के अनुघ्ार आचारांग मेँ सम्पण के अनेके रुप मिलते है-- जाव-- अकिरियं जाव अभूतोवघादइयं (४११) पडेव-- अक्कोघंति बा तदेव तेल्लादि सिणाणादि सीथौद्ग वियडादि णिगिणाद च (७।१६-२०) अतिरिच्छरच्छिन्नं तदेव तिरिच्छच्छन्नं तदेव (७।२४ ३५) एवं-- एवं णायन्वं जहा सदपडियाए सम्ना बाइत्तवज्ना स्वपड्याए नि (१२।२-१७) जहा-- पाणां जहा पिंडेसणाए (५।५) संख्या-- धु्णंसि वा (४) (७1११) असणं ता (४) (२।१२) से भिक्डूवा २। १. देच--प० बेचरदास दोशी द्वारा संपादित रायपसेणदर्य पु० ७३। २. पु्ि-स्थल के लिए देखें--वही, पृण ६९ विवरण ओौर पादरिप्पण । सम्पादकीय रू तं चेव-- तं चेव भाणियन्वं णवरं चउत्थाए णाणत्तं (१।९४९-१५४) सेसं तं चेव एवं ससरक्खे (१1६५) ेष्टिमो-- एवं डेदिमौ गमो पायादि माणियव्वौ (१३।४०-७५) अवचारांगं फा बाचना-मेद समवायाग म आचाराग कौ अनेक वाचनाय का उल्लेख मिलता है 1१ वाचना का अर्थं है--अध्यापन या सूत्र ओर अर्थं का प्रदान । संक्षिप्र वाचना-मेद अनेक मिलते है, किन्तु वतमान मे सुर्य दो वाचनार प्रा है--एक प्र्हत-वाचना ओर दूसरी नागाजुनीय-वाचना । वूरणि ओर टीका मे नागालूनीय वाचना-सम्मत पाठो का उल्लेख किया गया है । देखं--'आयारोः प्रष्ठ २० परादचिप्यण संख्याक ४ ओर ७, पृष्ठ ४१ पादरिप्पण संख्याक्र २, प्रष्ठ ४३ पादिप्पण संख्यांके ३, पृष्ठ ४८ पाद- दिप्यण संख्याक &, पृष्ठ ५४ पादटिप्यण संख्यांक्र ५४ पण्ड ५५ प!दटिप्यण संख्याक १, प्रष्ठ ६८ पादरिप्पण संरूपाक २, पृष्ड ७१ पादटिप्पण संख्याक ६ ओर ७, पृष्ठ ७४ परादटिप्पण संख्याक ७, पष्ठ ७५ पादरिप्यण संख्याक ८, पष्ठ ६४ परादटिप्यण संख्याक्र ९, प्रष्ठ ९९ पराददि्पण संख्याक्र १, प्रष्ठ ९०१ पादटिप्पण सं्यांक ११। आचारांग के उद्धत पाट उत्तरवतीं अनेक ग्रन्थो मे थाचाराग के पाठ उद्धृत किए गए है । अपराजित- सूरि ने मूलाराधना कौ ठीका मेँ आाचाराग के ङु पाठ उद्धृत किए है ।२ 9 = शोध करने पर एेसा ज्ञात हृभा है कि कई पाठ आचारांग में नही है, कईं पाठ शब्द-भेद से ओर कई पाठ आशिक रूप मे मिलते है । तुलनात्मक अध्ययन की इष्टि से दोनो पाठ नीचे दिए जा रहै है- मुलाराधना चारांग तथा चौक्तमाचाराङ्ग :-- सुदं मे आदस्सन्तो मगवदा एव मक्वादं । 1 4 इह खलु संयमाभियुखा दुविहा इत्थ परिसा जादा मंवि ¦ ठंजहा--षन्व समण्णा गदे णो सन्व समागदे चेव । तत्थ जे सव्व १ समवायाग समवाय १३६. परित्ता वायणा । २ मूलाराधना ४।४२१ टीका पत्र ६१२। द समण्णागदे चितंग; हस्य पाणि -पदि सन्बिदिय स्मण्णागदे तस्स णं णो कप्पदि एगमवि वत्थं धारिउ-एवं परिखं एवं थण्णस्थ एगेण पडिलेहगेण । अह पुण एवं जाणिन्जा--उपातिकेते हेम॑ते गिम्हे सुपडिवप्णे से 'अथं पडिलुण्ण सुवर्धि पदियूटतेज्न 1 ४८ -“ --४ ५२९ दीका; पत्र ६११ प्डिलेदणं; प1दपुणै, उग्गहं कंडासणं चण्णदरं उवरि चातरेज्न 1 --४। ४२१ टीका, पन्च ६११ वेथाव्थेसणाए्--वुक्तं तत्थ एसे दहिरिमणे सेगं वर्थं वा धारेज्ज पडिलिहणगं विदियं, तत्थ एसे शुर्गिदे देसे दुवे वत्थाणि धारिज्ज पडिलेहणमं तदियं । तस्थ एते परिसाद्रं अणधि- हाघस्स तयो वस्थाणि धारेल्ज पडिलेहणं वचरस्थ 1 ५४२१ टीका, पत्रे ६१९१ तथा पाएसणाए कथितं-- हिरिमणे'वा शुगरिदे चाविअण्णगे वा तस्सण कप्यटि त्रत्थादिकं पनश्चोक्तं ततरैव--पराद चरित्तए्‌ । 7 अलाबु पत्तं वा टास्ग पत्तं वा मद्िगपत्त वा, अप्पाणं .यप्यवीज अप्यरि तथा अप्पक्रारं पत्रि लमे सति पडिगहिस्सामि । --४।४२१ टीका, पत्र ६११ भावनायां चोक्त-- चरिमं चीवरधायी वेण प्रम चेलके तु जिणे -४।५२२ रीका पच ६९९ ` आयारो तहं भायार-चूा यह पुण एव जागेन्ना--उवाद- क्कंते खलु दैमंते, गिम्दे पडिवण्णे अहापरिजुन्नाद्रं वत्यादं परिदठ- वेज्जा । --२।८, सू०५०.६९०९२ वस्थं पडिगगहं कंतरलं, पायपृद्णं उग्गहं च कडासणं एतेसु चेव जाणेन्जा । --१।२ पु । ११२ जे णिस्थे तरुणे ज्गवं वलवं अप्पायुके धिरसंघयणे से एग त्थं धारेज्ना णौ वित्तिय , -२।५सृ०र से भिक्खु वा भिक्छुणीवा अभिकखेच्जा पायं एसित्तए, तंजहा--अलार पायं वा दार पायं वा, मद्या पायं वा तहप्यगार पायं । --२।६ सू° १ फामुयं एसणिनच्जं ति मण्णमाणे लम संते पडिगदज्जा । --२।६ चू १२ > सम्पादकीय शब्दान्तरं ओर स्पान्तर व्याकरण ओर आर्प-परयोग-सिद्ध शच्डान्तर एवं स्परान्तर भापा-शास्त्रीय अध्ययन की दृष्टि से महत्वपूरण, है । इसलिए उन्हे पाठान्तर से पृथ रखा दै । आयारो अध्ययन १ सूत्र 2) १ 9 ७ „५0 „७ ५ «छ ८ छ छ -८ छ -छ ८ ~ ~ ~ „© > => => => = 9 +> ० १३ २४ ५६ ६७ ७३ ६४ ६५ ११५ १२२ १३० ४१ छः ८६ १०६ १३३ १३४ १६० १६१ १७१ १७५ सन्ना सण्णा (चष) । दुस्संवोहे दस्छवौपे (कःच.घ) । णियाग० णियाय० (क.ख.च,घ) । पवय प्रवद० (ख.चःग)। ०्मेगे्ि भमेक्रेति (क, घ) 1 पतेयं पैदितं (क) , परवेतिय (घ) । सया सता (क, च) 1 पवेदितता पवेदिदा (क) 1 तणौ तन्नो (क, घ) । पारणं पाचीणं (घ) ; पादीणं (घ) । आवि यावि (ख,घ,); संसेतया (क); चसेदवा (च) । संसेवया संसेयमा (ख,), ससेतया (क); संसेदया(च) । °णिन्बाणं ऽगेव्वाणं (क) । °पडिघाय °पडिग्घाय (क.ख.गघ) 1 विभूस्ाए विहूखाए (क) । मित्त मीत (क) । श्रावया °साता (कच) । खेवन्ने खेतन्ने (षाद) 1 ०पाउ्डा णवारडा (क) । अदिस्समाणे आदिस्समाणे (का) । मावात्तए मावादए (च)। वहुमाई = बहुमादी (चच) । सहते सई (ग,घ.च) 1 अदहियानमाणे अधिवास्माणे (काच) । इ इध (क) 1 अणादियमाणे बरपाततियमाणे + ० न ० न्ड च्ल च्ल ४ «४ 4 4 9+† त क कछ ली 4 जल < +< +< ^ +< +ल ~< +< ^< 1 ॥, ये 1 १ [, १७ ४२ ११ २०५ २१५ ४८ 9: १० १७ २६ + ६ ॥ खेयन्ने पुरदत्तए तहा सया विरियं असायं परास परलिर्िदिय जयाणं परिजाणतो सेवए पलिखच्छन्ने विपरिणाम सयुप्पेह० ‡ णियाय शपे अण्णहा ०वेयण० काहिए परिव्वय॑ति कामेहि लाय मायाए जाइस्छामि वेयावेियं ०माइयंति निसामिया अहा कहं के वौसज्न यारो तहं आयार-चूखा खेदन्ने (च) 1 पूरतित्तए (क) । तघा० (कग) । सता (क,्म्चू) । त्िरिवं (क) । आसायं (ख); अस्सायं (चू) । पासहा (च) । परिदिदिय (क) । जदाणं (द) } परिनाणयो (कग); परियाणयो (ध) ; परियाणतो (चद) 1 सेवे (घ,चू); सेवते (च) । पलियच्छन्ने (घ) । विष्परिणाम० (क,घचे) । सयुवेह० (क,खःग) । निदाय (क.चन्चू) । ण्पपरे (च) } अन्नषा (चाद) । शवेतण० (ह) । काधिते (कः च, छ) । - परिव्वतंति (च) । कामेषु (च) । लोत (क) । माताए (च) । जातिस्सामि (खग,च,कु) । वेयापडियं (ग) 1 ०मादितंति (खबमग);०मातिकठंति (ड) । निसामित्ता (क), निसामेत्ता (ह) । आहा (खघ); भाधा (चश) । केधं के (कगःघ,) 1 वौसिज्ज (खग) सम्पादकीय ६ अध्ययन ९।१ सूर॒ १६ पर-पाए पर-बदे (च) । „ €४ , £ अविसाहिए अविसाधिते (क,ख,ग) „+ €४ + ६ आयत्त आत्तय० (कड) । आयार-चूला १ , २ आयाव अआताए (भ);भायात (क,घ); आदाय (च)। ५ १ 9 २ अणुदए अप्योदण (कव) । भ १ »„ १२ अणिसग्‌ढं अणिसिट्‌ढं (क,व)। र १ + १५ पुरिसतरकेडं पुरिरुवरगडं (हु) । ष १ #„ २६ अणिसिदृढं अगणिसय्टं (अष्चव) । 9 १ „+ ३१ अआसित्ता असित्ता (अ,कचद) | ४ १ ,› ५२ निशं वगं (अशक) । © १ ,, 53 विल विडं (घ) । २ १ >+ ८६ पिहुणेण पेहुणेण (अःक,.घ) । # १ , ८६ अफासुयं अप्फासुयं (घ) | १ + १०१ दि्जा दञ्ना (अच) | ४) १ „ १०४ दाडिम दालिम० (अ.ब.घ)। 91 १ » १०५ हीर अधो० (कवच) 1 ५ १ „ ११८ तिद तंग (चश) । ५» १ , १४६ प्राविर पाद० (छव) 1 ४ २ ५ £ परिसंतरकडे पुरिसंतरगडे (छव) । ॐ 3 „ ३६ भ्वडियाए ०पडिवाए (कचु) । % ३ „ ३६ विसेज्जा वितोसेव्जा (ब)। 3, २ „ र पौक्खरणीथो पुकरिगीथो (अ) ; पएक्वरिणीथो (व) । श ४ ,, २५ पमे पमेतिले (अ) , पमेदिलि (क.च.घ) । ॐ ७ १ परव्त्तभोद परदत्तमोगी (अश्च), परटत्तभोति (व) , परदचभौतौ (व) । ”" १३ „ ६ उत्लोलेज्ज उल्लोडे्न (क.वभचचुव)। ०» १० , १६ गिद्रेपियुड० गद्धपदूठ० (षाव) । * १३ „ ६ उल्लोलेऽ्ज उल्लोटेन्ज (क.वच.द,व) । » १५ ,+ २६ सावेषञ्जं सावए्जं (चर); साबतेज्जं (व) । » १५ » ५८ जाई जाती (अण्व) । ५ १५ ,; ६ स्मो भोनी (क) , °भोदी (द) | १९ आयारो तहं भायार^चूरा प्रतिं परिचेय (अ) (क) (ख) ग) धि) आाचारांगं (दोनो शरुतस्कन्ध)-- यह प्रति जेन-भवनः, कलाकार स्ट्रीट, कलकत्ता-७ की श्री श्रीचन्दजी रामपुरिवा द्वारा प्रा्ठ है । इसके पत्र १८५ है । प्रसयेक पतर १०॥॥ इच लम्बा तथा ४! इंच चौडा है । प्रत्येक पत्र मे १-१७ तक प्रक्तियौ है! म्रस्येक पंक्ति मे ४०-४१ तक अक्षर है । पचर के चारौ भोर वृत्ति लिखी इई है । मरति सुन्दर व कलारमक है । सम्वत्‌ वगेरह नही है । दोनो श्वुतस्कन्ध मुलपाठ-- यह प्रति गधेया पुस्तकालय, सर्दारशहर से श्री मदनचन्दजी गोटी द्वारा प्राप्न है । इसकै पत्र ६७ है । प्रत्येक प्रत्र १० इच लम्बा तथा ४ इश्व न्चौडा है । पक्तियों १३ है। प्रत्येक पक्ति में ५०-५२ तक अक्षर है । प्रतिके अत मे लिखा है- सम्बत्‌ १६७६ पे आषाढ सुदि द्वितीय ४ भौम) श्री मालान्वये राक्याण गौत्रे स० जटमल पत्र सं° वेणीदास पुस्तक प्रदत्तं श्रीमद्‌ नागघुरीय तपागच्छ सं० श्रौ मान कीरिं सूरि शिष्य माधव ज्योत्तिविद्‌=। अंत के अक्षर किसी अन्य व्यक्ति के माद्ुम होते है । प्रति के वीमे बावडी तथा तीन वडे-वडे लाल टीके है 1 आचारांग खन्बा (भयम भरुतरकन्ध)-- यह प्रति गधैया पुस्तकालय से गोढीजी द्वारा प्राप है । इसके ४६ पतर है । पंक्तियं पाठ कौ ७ तथा टव्वे की १४ है । प्रत्येक पत्र ९० इच लम्बा तथा ५ दरच चौडा है। प्रत्येक पंक्तिमे ४२ से ४५ तक पाठके अक्षर दै। अंत्तिम प्रशस्ति निम्नोक्त ईै-- सम्वत्‌ १७३२ वपरे श्रावण मासे कृष्ण पक्षे पचमी तिथौ शुरं वासरे । कििंखितं पृञ्य ऋषि श्री ५ अमराजी तत्‌ शिष्येण लिपि छृतं युनि विका ॥ आत्माथौ शुभं भवठु कल्याण मस्तु । सेहुरीया ग्रामे सपू्णं सस्ति ॥ आचा० (प्रथम श्रुतस्कन्ध) पच पाठो (वा्तावबोध)-- यह परति गधेया पुस्तकालय से श्री गोीजी द्वारा मरा है ¡ इसके ९० पत्र है । प्रथम ३ तथा छठा पत्र नही है। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४ इंच चौडा है । मूलपाठ की पंक्ति ५से १० तक दहै। अक्षर ३० से ३२ वक है । अंतिम प्रशस्ति नही दै 1 दोनों शरुत्कन्ध, (जी्ण)-- यह प्रति भारतीय संस्कृति विद्या-मंदिर, अहमदावाद से श्री गोठीजी द्वारा प्राप है। इसके ३७ पतर है । प्रत्येक प्र १३॥ इच लम्त्रा, ५ इश्व पम्पादकोयं ११ (च) (व) चोडा है। प्क्तियौः १७ तथा प्रसेक पंक्ति में ६० से ६५ तक क्षर ह । अत्तिम प्रशस्ति निम्नोक्त ै-- शुभं भवेव । कल्याण मस्तु ॥ छं । संवत्‌ १५७३ वपं १० संगलवाग समत्तं 1््‌। ॥ क्रं ॥ भ्री॥ ह ॥ ग्रति के दीमकं लगने से यनेक स्थानो पर चर हो गष है) दोनों भ्‌ तस्कन्धः मुलपाठ-- यह प्रति भारतीय संस्कृति विन्ामंदिर, अहमदावाद के लालभाई दलपत- भाई ज्ञान भण्डार से मदनचन्दजी गोटी द्वारा प्राप हई है! इसक्रे ७८ पत्र है । प्रत्येक पत्र मे १३ एक्तियोँ तथा प्रत्येक पंक्ति मे ४० से ४७ तके क्षर हे । रत्येकं परत्र १० इच लम्बा तथा ४॥ ईच चौडा है । वीच म वावडी है । दोनों श्रू तस्फन्ध, वृत्ति सहित (त्रिपाटी)-- यह प्रति गधैया पुस्तकालय सरदारशहर पे गोटीजी द्वारा याघ्र है । इसके २९० पत्र है । प्रत्येक पत्र १२१ इच लम्बा तथा ५1 इच चौड़ा है । मूलपाठ की पर॑क्तियौँ ९ से १७ तथा ४५ से ४७ तक अक्षर हे । अंतिम प्रशस्ति निम्नोक्त है-- संवत्‌ १५९९ वं श्रावण शुक्ल पक्षे सप्रभ्या तिथौ श्री विक्रमपुर मध्ये लिपिं ॥ श्रीरस्तु कल्याणमस्ठ । शुभं भूयादिति ॥ (दवितीय भर तस्कन्ध) व्वा (पेचपाठी)-- यह प्रति गधेया पुस्तकालय सरदारशहर से मदनचन्दजी गोटी दारा प्रप्र हई है ! इसके ८४ पत्र है । प्रसेक प्रत्र १०! इच लम्बा तथा ४॥। इच चौडा है । मृलपाठ की प्क्तियोँ ४ से १३ है । प्रत्येक पक्तिमेरम से ३३ तकं अक्षर है । वीच-वीच मे वावडियँ है । अंतिम प्रशस्ति निमोक्त दै- सम्वत्‌ ९७४२ वपे माद्रपद मासे प्रदभ्या तिथौ ओरस गच्छे भदृटारक श्री कक्चसूरि तयद वतमान भटूटारक देवगुषसूरिभिर हीता नागौरी तपागच्छीय प० श्च दयालदास पावा परच्चत्ररिशत्‌ ४५ वर्मोतरात्‌ महतोद्यमेन । @ो, (इषा) युद्रितः प्रकाशिका--भ्री सिद्धच्र साहित्य भ्रचारक खमिति विक्रम सम्बत्‌ १९६१ । चू), (रूपा) सुद्रित--धी ऋषभदेनजी कैशरीमलजी, रतलाम, वि० १६६० । सहयोगाचुभूति = ५ ३ [> क „ अन-परन्परा मे बाचना का इतिहास बहुत याचन है । चाज से १५०० वं पे तक आगम की चार वाचन हौ चुकी है ! देवदधिगणी ॐ वाट कोर सुमियौजित अगम-वाचना नहौ इई । उनके वाचना-काल मे जो थागम लिखे गएथे, वै इस ९२ आयाे तह भायार-चा लम्बी अवधि मेँ वृत ही अव्यवस्थित हो गद्‌ है । उनकी पुनन्वैवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी) चाचार्यं धी बलस ने सुनियौजित सामृहिकं वाचना क लिए प्यल्न भी किया था, परन्तु वह परणं नही हो सका । अन्ततः हम इसी निष्कं पर पहुचे कि हमारी वाचना अनुसन्धान पूरण, गवेषणा पुणः तटस्थ दृष्टि-समन्वित तथा सपरिश्रम होगी तौ वह यपने थाप सामूहिक हो जाएगी । इसी निय के आधार पर हमारा यह आगम-वाचना का कारय प्रारम्भ हृथा 1 हमारी इस वाचना कै प्सु आचाय ्ी लसी है । वाचना का अथं अध्यापन है} हमारी इस प्रवृत्ति मेँ अध्यापन-क्मं के अनेक अंग है--पाठ का तुधान, भाषा- न्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन, तुलनात्मकर ध्ववन आदि-थादि। इन समी प्दृत्तियौ मे आचाय श्री का हमें सक्रिय योग, माम-दशंन ओर प्रोत्साहन प्रा्ठ है । वही हमार दस गुरुतर कायं में परदृत्त होने का शक्ति-वीज दै । मे आचाय शरी के प्रति कृतक्षता ज्ञापन कर भार-युक्त होरे, उसकी अपेक्षा अच्छा है किअग्रिम कायं के लिए उनक्रे आशीर्वाद का शक्ति-खंवल पा ओर अधिक भारी बन । स्तत ग्रन्थ के सम्पादन में सुनि दुलहराजजी का अविकल योग रहा दै । पाठ- सम्पादन के कायं मँ युनि सुदर्शनजी, खनि सश्ुकरजी चौर नि हीराला्तनी ने भरम ओर निष्ठापूरवंक योग दिया है । शब्दाुक्रम आदि कायं मे सुनि श्रीचन्द्रजी कमलः अत्यन्त दत्तचित्तता से लगे रहे है 1 सुनि हटुमानमक्तजी (सरदारशहर) का भी र्मे सहयोग रहा है 1 दरसका शुद्धि-पत्र तैयार करने मे सुनि सागरमलजी श्रमणः का सहयोग रहा है । इसका ग्रन्थ-परिमाण युनि मौहनलालजी (आमेट) ने तेयार करवा है 1 कार्यं -निष्त्ति मे इनके यौग का मूल्यांकन करते हए मे इनके प्रति आभार व्यक्त केरतादहर। यागम के प्रवन्ध-सम्पादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया, आदशं साहि संघ के सचालक्र त व्यवस्थापक श्री हनूतमलजी सुराना ओर भी जयचन्दलालजी दष्वरी का मी अविरल योग रहा है बादरं साहित्य संघ की सयुक्त सामग्री ने इस दिशा मेँ महत््वपूणं कायं किया है । एकं लय के लिए समान गति से चलने बालो की खमप्रदत्ति मै यौग-दान की परम्यरा का उल्लेख व्यवहार तिं मात्र है । वास्तव मे वह हम सवका पवित्र क्न्य ह यौर उसी का हम सवने पालन क्रिया है । सागर-तदन, राहा, अहमद्‌ासाद-४ २६ अगस्त, १६६७ ` सुनि चथ्स्नकछ भूमिका विषय-सूचौो १. आगमो का वर्गीकरण क ३. अङ्गपरविष्ट ओर अङ्ग-वाह्य *" ५. अङ्ग १ < --नवाङ्ग - द्वादशाह ५. प्रथम्‌ अङ्ग ८ र = ६. श्रूतस्कध ष ७, सुख्य-विभाग ”““ ५ ८, आयार-चूला = "*“ ४ ६ अवान्तर-विभाग ४ १०. प्रद-परिभाण ओर वतमान आकार #) ११ विपय-वस्तु ००५ ०७५ --दाशेनिक-तथ्य --भरद्धा ओौर स्वतत्र ष्टि --कषोपलं --समसामयिक विचार १२. रचनाकार ओर रचना-काल "~" ५ १३. आचाराग का महत्व कः १४. स्चनाशेली =< १५ व्वाख्या-ग्रन्थ 9 ५. ९६. उपसहार २६ न 2 न € ^ १० ११ १९ १२१ # ; १६॥ ११ 1 41 १६९ ६ १-आगमों का वर्गीकरण चेन-साहित्य का प्राचीनतम भाग आगम है । समवायवांग मेँ जगमकेदो त्प याप हते है-(९) दादशाग गणिपिटक, यर (२) चदु श पुवं ` । नन्दी मँ शरुत-जान (आगम) के दौ विभाग मिलते है-() अद्गनपविष्ट ओर (२) अङ्ग-बाह्य ° थगम- सादित्य मेँ साधु-साध्चियो के _ भष्ववन्‌ वि क. ‡जतने उल्लेख प्राप्ठहोते ह, वे मव भङ्गो ओर षा पुरुषो तथा स्त्रियौ कै लिए र -- « थ, जिनकी प्रतिमा रवर नही होती श प कते थे । थागम-विचछेदन {1ई यदहिञ्जई ( थन्तगड, प्रथम वग ) ¡ वह -- ०<ध्"सगवान्‌ अरिष्टनेमि के शिष्य गौतम के विषव मेँ प्राप है। 9 सामाइयमाइयादं एकारसथंगाडं अहिज्जई ( अन्तगड, पचम वग, प्रथम ˆ: "ययन ) ! वह उल्लेख भगवानु अरिष्टनेमि कौ शिष्या पद्मावती के विषय में प्राएदै। सामादवमादया इं एकारसथंगाइं अदिज्जड ( अन्तगड, अष्टम वर्गं, प्रथम अध्ययन । यह उल्लेख भगवानु महावीर की शिष्या काली कै विययभें प्रा्ठदै। सामाद्यमाईइयादह एक।रसगाइं अहिन्जडइ ( अन्तगड, पष्ठ वमः, १५ बो अध्ययन } । यह उल्लेख भगवानु महावीर के शिष्य अतिुक्तङुमार के विषय मेँ प्राएठ है) (२) वारह शङ्खो को पटने बाले- वारसगी ( अन्तगड, चतुथ वर॑ प्रथम अध्ययन } । वह उल्नेव भगवान्‌ अरिष्टनेमि के शिष्य जालीक्ुसार के विपच मेँ प्राष्ठ ह, (३) चौरह पवां को पठने वाले-- चोदसवुन्बाद्‌ अहिव्जइ (अतगड, वतीय वर्ग, नवम अध्ययन) । यह उल्लेख भगवान्‌ अरिष्टनेमि के शिष्य सुदुखक्मार के विपव मे प्राप है । सामाहवमाद्यादइं चौदतपुन्वाइ धदिज्जइ ( अंतगड, तृतीय वर्ग, प्रथन अध्ययन } । वह उर्लेख भगवानु अरिष्टनेमि के शिष्य अणीयमकृमार कै वरिपव मै प्रा्ठहै। १ समवायाग, प्रकोर्णक समवाय ू० ८ । २ वही, समवाय १४, सु° २। ३. नन्दी, सु° ४३ । २ यारो तहं भायार-चूला भगवानु पाश्वं के साढे तीन सौ चुद॑श-पर्वी शुनि थे ।° भगवानु महावीर के तीन सौ चत्द॑श-पवीं युनि थे ।२ समवायाग यर अनुयोगद्वार मे शङ्ग-्रविष्ट थौर अङ्ग-बाह्य का विभाग नही है) सवे प्रथम यह विभाग नन्दी मेँ मिलता है । यङ्ग-बाह्य की रचना अर्वाचीन स्थविरौ नेकौहै। नन्दी की रचना से पूवे अनेक अङ्ग-वाह्य यन्ध रचे जा चुके ये ओर वे चतुद श-पुवीं या दश-गुवीं स्थविरो द्वारा रचे गए थे । इसलिए उन्हे थागम की कौटि मँ रखा गया 1 उसके फलस्वस्प {ˆ = - "~ ~ नविष्णग-न्स्----{१) अङ्ग-प्रविष्ट ओर (२) ङ्ग-वाह्य । यह विभाग ३ >} तक नही इमा था । यह खवसे पहले नन्दी (वीर. नन्दी की स्चना तक सागमके तीन वर्गीकरण हौ जाते र--{३) >. ~ प्रविष्ट ओौर (३) अङ्ग-बाह्य । आज शङ्ग-पविष्ट' ओर अद्ग-बाह्यः उपलब्ध होते है, विन्द॒ पूवं उपलम्ध नहीं दै । उनकी अनुपलब्धि एतिहासिक दृष्टि से विमशंनीय है 1 रधं जेन-परग्परा के असार शरूत-जान (शाब्द-हान) का अक्षयकोष धूर्व दै । इसके अथं ओौर रचना ॐ विषय मेँ सव॒ एकमत नही है । प्राचीन आचार्यो के मतानुसार धूर्व द्वादशांमी से पहले रचे गए थे, इसलिए इनका नाम धवे रखा गया 1 आधुनिक चिद्रानो का अभिमत वह है कि धूवे' भगवान्‌ पाश्वं कौ परम्परा की त- राशि दै। यह भगवान्‌ महावीर से पूरवैवतीं दै, इसलिए. इसे धूर्व" कहा गया है 1* दोनों अभिमतौ र्मे सेकिसीको भी मान्य किया जाए, चिन्ठु इस फलित में कोर अन्तर नही आदा कि पूरवो कौ स्वना द्वाद्शांगी से पहले हई थी या दादशागी पवो को उत्तरकालीन रचना है । वतमान मे जो द्वादशांगी का रप प्रा है, उसमें शवं" समाए हृए है । वारव अङ्ग १. समवायाय, प्रकीर्णके समवाय, सू १४। २. वही, भर° १२॥ 3. समवायांग वृत्ति, पतर १०१ भ्थमं पूर्वं तस्यं सवप्रवचनात्‌ पूवं क्रियमाणत्वात्‌ । 8. नन्दी, मलयगिरि वृत्ति, पत्र २४० अन्ये तु व्याचक्षते पूर्वं पूरवंगतसूतार्थं महन्‌ भाषते, गणधरा अपि पूर्व पूर्वगतिशूत् विरचयन्ति, पश्चादाचारादिकम्‌ । भूमिका ३ दृष्टिवाद है ) उसका एक विभाग दै पूव॑गत । चौदह पूवं इसी धवं" के अन्तर्गत किए गए है 1 भगवान्‌ महाबीर ने प्रारम्भ मे पूवैगत का अथं श्रत्तिपादित' किया था ओर गौतम आदि गणधरो ने मी प्रारम्भ मेँ पूर्वेगत-शरुत की रचना की थी । इस अभिमते से यह फलित होता है कि चौदह एवं ओर वारहवौं अङ्ग-ये दोनो मिन्न नही ह । पवेगत-शरुत बहुत गहन था । सवं साधारण के क्लिए वह षुलम नहौ था । अङ्गौ कौ रचना अल्यमेषा व्यक्तियौ के लिए की गई ¡ जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण ने वताया है करि श्टष्टिवाद मे समस्त शब्द्‌ज्ञान का अवतार हो जाता है । फिर मी ग्वारह अङ्गौ कौ र्चना बल्पमेधा परुषो तथा स्त्रियो के लिए की गई ।, म्वारहअ्ङ्गौकौवेहीताधु पद्ते थे, जिनकी प्रतिभा प्रवर नही होती थी । प्रतिभा सम्पन्न मुनि पवो का अध्ययन करते थे । आगम-विनच्छद के क्रम से भी यही फलित होता है कि भ्यारह अङ्ग दृष्टिवाद या पूर्वो से सरल या भिन्न-करम मे रहे है 1 दिगम्बर-परम्परा के अचुस्ार वीर-निर्वाग कै वासठ वर्ष वाठ केवली नह रहे । उसके वाद सौ वपं तक श्रुत-केवली (चतु श-पवी) रदे ! उसके पश्चात्‌ एक सौ तिरासी वर्प तक दशगर रदे । इनके पश्चात्‌ दो सौ वीस वपं तकर ग्यारह अद्गधर रै 1२ उक्त चर्चा से यह स्पष्ट है कि जव तक आचार चदि अङ्गौ की रचना नही हुई थी, तव तक महावीर की श्रूत-राशि चौदह पूवं" या प्टिवाद" के नाम से अमिषठितं होती थी भौर जव आचार भादि ग्यारह अङ्गो कौ रचना हो गई! तव टष्टिवाद को वारहवे अङ्ग के रूप मेँ स्थापित किया गया । यद्यपि वारह अङ्गो को पदन वाले ओौर चौदह पर्वों को पटने वाले--ये भिन्न-मिन्न उल्लेख मिलते है, फिर भी यह नही कहा जा सकता कि चौदह पूरव के बध्येता वारह अङ्गो के अध्येता नही थे घोर वारह अङ्गो के अध्येता चतुद श-पुवीं नहीं थे । गौतम स्वामी कौ द्वादशांगवित्‌” कहा गया है ।* वे चतुर श-पू्वी गौर अद्गधर दोनो थे । ह कहने का प्रकारमेद रदा है कि श्रुत-केवली कौ कदी ्वादशागवित्‌" ओर कही चतुद शप कहा गया । प्वारह अङ्ग पुव से उद्धृत या संकलित हँ । इसलिए जो चतुरं श-पवीं हठा र, १. विशेषावश्यक भाष्य, गाथा पष : जवि य भूतावाए, सन्वस्स वओगयस्स ओयारो । निञ्जहणा तहावि हुः दुम्मेहे प्प इत्थी य ॥ २. जयधवसा, प्रस्तावना प° ४६1 २. देविए--मूुमिका का प्रारम्भिक भाग 1 £. उत्तराध्ययन, २३।७। ५ आयासे तहं आयार-चृखा वृह स्वामानिक सूपरसे ही दवादशांगवित्‌ होता है । बारहवे अङ्ग मेँ चौदह प्रवं समा्िष्ट है । इसलिए जौ दवादशांगवित्‌ होता है, वह स्वमावतः ही चतुद श-परवी हौता है1 अत्तः हम इस निष्कं पर पहुवेते है कि यागम के प्राचीन वर्गीकरण दी ही है-- (९) चौदह प्रं ओर (२) प्वारह द्ग ¡ द्ादशांगी का स्वतंत्र स्थान नही है । वह पवो ौर यङ्ग का संयुक्त नाम है । कुक आधुनिक बिद्वानो ने पूर्वो कौ भगवान्‌ प्ा्व॑-कालीन घौर अङ्गो को भगवान्‌ महावीर-कालीन माना है, पर यह अभिमत संगत नही है । पवौ थौर जङ्ग की परम्परा भगवान्‌ अरिष्टनेमि भौर भगवानु पर्वं के युग मेँमी रही दै। अङ्ग अल्यमेधा व्यक्तियौ के लिए रचे गण्‌, यह पहले वाया जा चुका हे । भगवानु परश्वंकेयुगमे सव युमियौ का प्रतिभा-स्तर समान था, यट के माना जा सकता है प्रत्मिका तारतम्थ अपने-अपने घुग प सदा रहा है । मनोवेज्ञानिक घौर व्यावहारिक-इष्टि से विचार करने परमो हम इसी चिन्दुपर परहुचतेटै कि अद्गो की अपेक्षा भगवानु पाश्वं के शासन मेँ भी रही है । इसलिए. इत अभिमत की पृष्ट मेँ कोई सा प्राच नही है कि मगवानु पाश्वं के युग मे केवल पू्रेही ये, ङ्ग नही । समन्य-जनिसे यही तथ्य निणन्न होवा है कि भगवान्‌ महावीर के शासन मे पुत्रो भौर णङ्गौका युग की भाव, भाषा, रली यौर अपेक्षा के थरुसार नवीनीकरण हुथा । धूर" पाशवं की परम्प से लिए गए अर अद्ध महावीर की परम्परा मँ रचे गए, इस अभिमत्त कै समर्थन मेँ संभवतः कल्पना ही प्रधान रही है! ३-अङ्ग-पविष्ट ओर अङ्-बाद्य , भगवान्‌ महावीर के अस्तिस्व-काल मेँ गौतम आदि गणधरो ने पूरा ओर भङ्गो की रचना की, यह सवं -विशरुत है । क्वा अन्य सुनियौ ने धागम-गरन्थो की रचना नही की--यह प्रश्न सहज ही उएता है ¡ मगतान महावीर कै चौदह हजार शिष्य थे )* उनम सत्त सो केवली थे, चार सौ वादी थे । उन्हौने यन्थौ की रचना नही कौ, एेसा सम्भव नही ज्षगता। नन्दी मे वतावा गवा है कि भगवास्‌ महावीरके शिष्यो ने ्नौदह हार प्रकीणंक वनाए थे ।* ये पवां ओौर ङ्गौ से अतिरिक्त थे उस समय अङ्गनप्रविष्ट ओर अङ्ग-वाह्य एेसा वगीकरण हृथा, यह प्रमाणित करने के लिए कोई सातत्य माप नयी है भगवानु महावीर के निर्वाण के पश्चात्‌ अर्वाचीन चायो ने १. समवायाग, समवाय १४, सु० ४। २. नन्दी, सू० ७८ . चोदृसपद्नगसहस्साणि भगवओ बद्धमाणस्स 1 भूमिका न्थ रचे, तव संभव ह उन्दे आगम कौ कौटि मेँ रखने या न रखने की च्चा चली चौर उनके पमाण्व ओर अप्रमाण्व का परद्नं भी उठा ! चचा के वाद्‌ चद श भूव! गौर दस-पवी स्थविरो इारा रचित ग्रन्थौ कौ आगम की कोटि में रखने का निणेव हज किन्तु छन्दं स्वतः प्रमाण नही माना गया 1 उनका प्रमाण्य परतः था 1 वे द्वादरशागी सै अविरुद्र है, इस कसौरी से कसकर उन्हे आगम की संहा दी गई । उनका परतः परमाण्व था, इसीलिए उन्हे अङ्गपरनिष्ट की कोटि से भिन्न रखने की थावश्वकेता प्रतीत इई । इस स्थिति के संव मे आगम कौ अङ्ग-वाह्य कोटि का उद्भवे हा । लिनभद्रगगि क्षमाश्रमण ने अद्ग-परविष्ट घौर उङ्ग-वाह्य के भेद-नित्पण मे तीन देतु ्रस्त॒त किए है- (१) जो गणघर-कृत हौवा है 1 (२) जो गणधर द्वारा प्रश्न किए जाने प्रर तीयंडर द्वारा प्रतिपादित हेता दै। (3) जो ध व--शाङ्वत सयो से सम्बन्धित होता है, सुीर्थकाकीन होता है- वही श्रुत अद्ग-अविष्ट होता है ।१ इसके विपरीत (१) जो स्थविर-ृत होता है, (२) नो प्रश्न एदे विना तीर्थङ्कर दवारा प्रतिपादित होता है, (३) जो चल हीता है-ताक्रालिक या सामयिक हौता दै--उस श्रुत का नाम अङ्ग-वाह्य है । यङ्ग-परविष्ट घौर धद्ग-वाह्य मे मेद करने का यख्य हदु वक्ता का मेद दै ।* जिम आगम के वक्ता भगवानू महावीर है ओर जिसके संकल्तयिता गणधर है, वह श्रुतपुर्य के मल शङ्गोके रूप मेँ स्वीकृत होता ई, इसलिए उसे अद्ग-प्रविष्ट कहा गवा दै 1 सर्वाथसिद्धि के धमार वक्ता तीन प्रकार के हति है-(2) तीर्थदकर, (२) शूर-केवली (चतुद श-पूर्वी) चौर (३) आारातीव 13 आरातीय आचायो के द्वारा रचित आगम ही अङ्ग-वाह्य माने गए है । आचाय अकलंक के शब्दौ म ारातीव आचाय कृत आगम अद्व-प्रतिपादित अर्थं से प्रतिविम्बित होते है इसीलिए वे अद्ग-वाह्य कहलाते है ।* उद्ग-वाह्य भागम श्रुत-पुस्प के प्रत्यंग वा उपाय स्थानीय है । १. विरोपावश्यकभाप्य, गाथा ५५२ - गणहर-ेरकवं वा, आएमा मृक्क-वागरणजो वा । ुव-चल विसो वा, अमाणगेसु नाणत्तं ॥ २. तच्वाधं भाप्य, १।२० - वक्तु-विशेषार्‌ दैविष्यम्‌ ३- सर्वार्थिसिदि, १।२० : त्रयो वक्तार -र्वनसतीर्कर, इतरो वा श्रुतकेवली आरातीयम्चेति 1 ४. तत््वाथ-रागवात्तिक, १२० : भारात्रीयाचायंृताङ्गर्थपरत्यासन्नरूपमद्धवाह्यम्‌ 1 भायारो तह भायार-चूलां ४-अङ्ग द्वादशांगी मेँ संग्मित बारह आगमौ कौ अदन कहा गया है । अद्ध शण्ड संस्कृत ओर प्राङ्त दोनी भाषायो के साहित्य मे पराप हता है। वैदिक साहित्य मँ वेदा- ध्ययन कै सहायक-ग्रन्थौं को अङ कहा गवा है । उनकी सख्या ह है-- (£) शिक्षा- (२) कल्य-- (३) व्वाकरण-- (४) निर्क-- (५) छन्द-- (&) ज्योतिप- शब्दो के उच्चारण-विधान का प्रतिपादक ग्रन्थ । वेद-विहित कर्मो का क्रमपूवैके व्यवस्थित प्रतिपादन करने वाला शास्र । पद-स्वरूप ओर पटार्थ॑-निश्वव का निमित्त-शास्त्र । पदो की च्यु्त्ति का निरूपण करने वाल्ला शास्त्र । संत्रोच्चारण के लिए स्वरःत्रिज्ञान का प्रतिपादक शास्त्र यज्ञ-याग आदि कार्यौ के लिए समय-शयुद्धि का प्रतिपादक शास्त्र । सैदिक साहित्य मे वेढ-पुखष की कल्यना की गई है 1 उसके अनुषार शिक्षा वेद की नासिका है, कल्य हाथ, व्याकरण सुख, निदक्त शत्र, न्द पैर ओर ज्वौततिष नेत्र है । इसीलिए ये मेद-शरीर के यङ्ग कहलाते है 1 पालि-साहित्व मेँ भी अङ्ग" शब्द का उपयोग किया गवा दै ! एक स्थान में बुद्ध- वचनो को नर्वांग थर दूसरे स्थान में दादश्ांग कषा गया है । नवाग-- (२) इत्त-- (२) गेव्व-- (३) वेव्याकरण-- (५) गाथा- (५) उदान-- (६) इतिदत्तक-- (७) जात्क-- (=) यच्छुतधम्म-- (£) वेदल्ल-- भगवान्‌ बुद्ध के गव्यमय उपदेश 1 गच्र-पद् मिध्रित यंश} ग्याख्यापरक ग्रन्थ 1 पद्य मेँ रचित ग्रन्थ । बुद्ध के सुख से निकले हुए मावमय प्रीति-उद्गार । छोरे-कोरे व्याख्यान जिनका प्रारम्भ वृद्ध ने रसे कहा से होता है। बुद्ध की पूरव-जन्म-ठम्बन्धौ कथे 1 अदत वस्तुओ वा योगज-निभुतियो का निरूपण करने वाले म्रन्थ । वे उपदेश जो प्रश्नोत्तर की शैली मे लिखे गए दै ।> १. पाणिनीय शिक्ता, ८१०१२ 1 २. सद्धर्भपडरीकं सूत्र, पु० ३४। भूमिका ् दादशांग- (९) चर, (२) गेव, (३) व्याकरण, (४) गाथा, (५) उदान, (६) अवदान, (७) इतिङृतक, (८) निदान, (६) षल्य, (१०) जातक (११) उप्देश-धमं ओर (१२) अदूसुत-धमं ।* जैनागम वारह अगो मे विभक्त ै--(१) आचार, (२) सूत्रकृत, (३) स्थानः (४) समवाय, (५) भगवती, (६) शाता धर्मकथा, (७) उपासकदशा, (८) अन्त; (९) अलुत्तरोपपातिक, (१०) प्रश्नन्याकरण, (११) विपाक ओर (१३) दष्टिवाद । "अङ्ग" शब्द का प्रयोग भारतीय दशेन की तीनौ प्रञव धारायौ मेँ प्रयुक्त इया है । बैदिक ओौर वौद्ध साहित्य मेँ सख्य न्थ वेद ओर पिरक ह । उनके साथ ङ्गः शब्द का कोई योग नहो है । जैन साहित्य मे यख्य ग्रन्थो का वर्गीकरण गणिपिटक ह। उसके साथ शङ्गः शब्द का योग हया है । गणिपिटक कै वारह अङ्ग है ुबाल्संगे गणिपिडगे 1* जेन-परम्परा मे श्रुत-पुरप की कल्पना भी प्राप होती है । आचार आदि वारह आगम श्रुत-पुरष के बङ्गस्थानीय है । संभवतः इसीलिए उन्हे वारह अङ्ग कहा गया ।> इस प्रकार द्वादशांग गणिपिटक भौर शरृत-पुरुष दोनो का विशेषण वनता है । -पथम अङ्क दादशागी मे आचारंग का पहला स्था है !* इस विषय मँ दो विचारधारा प्रा होती है । एकं धारा के अनु्ठार आचाराग पहला अद्ध स्थापनक्रम की दृष्टि से है, स्चना-क्रम कौ दृष्टि से वह वारहवों अङ्ग है । दूसरी धारा के अनुसार रचना-क्रम १ बौद्ध सस्छृत ग्रन्थ अमिसमयालंकार' की टीका, प° ३५ . सूत्रं गेय व्याकरणं, गाथोदानावदानकम्‌ । इतिवृत्तक निदान, वैपुल्यं च सजातकम्‌ 1 उपदेशादमुतौ धर्मो, द्ादशांगमिदं वच ॥ २. समवायाग, प्रकीर्णकं समवाय, सूत्र ८८] ३" मूलाराधना ४।५९६ विजयोदया : श्रुत पुरुष मुखचरणादयद्धस्थानीयत्वादगणशब्देनोच्यते 1 ४. समवायाग, प्रकीर्णक समवाय, सूत्र ८६: से णं अद्टुयाए पठमे 1 (क) नदी, मलयगिरि वृत्ति, पत्र २११: स्थापनामधहृत्य प्रथममद्धम्‌ 1 (ख) वही, मलयगिरि वृत्ति, पत्र २४० : (ग) तणघराः पुनः सूत्रस्वना विदधत आचारादिक्रमेण विदधतिस्थापयन्ति वा (च ?) ! ( आयासे तह आथार-चूला ओर स्थापना-करम दोनो द््टियो से थाचारांग पहला अङ्ग है! आचार्यं मलयगिरि" तथा अभयदेवसूरि^ दोनो ने ही उक्त दोनों विचारधारायौ का उव्लेख करिया है 1 ये धाराएटं उनसे पहले ही प्रचलित थी । अङ्ग पूवो से नियृढ है, इस अभिमत के आलौक मेँ देखा जाए तो यही धारा संगत लगती है कि चाचारांग स्थाप्ना-करम की हृष्टि से पहला अङ्ग है, किन्तु रचना-क्म की च्ष्टि से नदी ! नियुक्तिकार ने आचार को प्रथम अङ्ग माना है! उनके थच्ुसार तीथकर सर्वप्रथम आचार का ओौर फिर करमशः शेष अङ्गो का प्रतिपादन करते है 1° गणधर मी उसी क्रमसे बङ्धोकी रचना करते है 13 नियुक्तकिर ने आचारांग की प्रथमता का कारण भौ प्रस्ठत किया है उन्होने लिखा है--आचारांग मेँ मोक्ष के उपाय (चरण-करण या आचार } का प्रति- फादन किया गया है ओर यही प्रवचन का सार है इसलिए द्वादर्शागी मे भाचाराग का प्रथम स्थान दहै 1 इसे प्रतीत होता दै कि नियुक्तिकार इस धारा के समर्थक रदे है कि सचना की द्डि से आचारंग का पथम स्थान है । किन्त ग्यारह अङ्गो को पूर्वो से नियृढ माना जाए, उस स्थिति मे नियुक्ति-सम्मत धारा की संगति नही वैरी । संभव है, नियुक्तिकार ने अङ्गो के नियहण की भरक्रिया का यह क्रम मान्य क्रियाहोकिसवं प्रथम चारांग का नियुंहण ओर स्थापन होता है तथा तसश्चात्‌ सूत्छत आदि अङ्गो का। इस सम्भावना को स्वीकार कर लेने पर दोनों धाराओ की बाह्य दूरी रहने परर भी आन्तरिक दरी समाघ्र हौ जाती है । १. (क) समवायांग वृत्ति, पव १०१ : प्रथममङ्घ॒स्थापनामधिकृत्य, रचनपिक्षमा तु द्वादशमङ्खम्‌ । (ख) वही, पत्र १२१: गणधरा- पुन. श्रूतरचनां विदधाना आचादिकरमेण रचयन्ति स्थापयन्ति च 1 २ भांचाराग नि्क्ति, गाथा ण सव्वेसि अयारो, तित्थस्स पवत्तणे पढमय.ए ! सेसादं अंगाइ, एक्षारस जाणुपुच्चीर्‌ 1 ३. वही, गाधा = वृत्ति : गगधरा अप्यनयेवानुपू्व्या सू्रततया अरन्थन्ति 1 ४. वही, गाथा ६; आयारो अद्खाणं, पठम अद्ध दुवालसण्हपि ! इत्थ य मोक्खो वामो, एस य सारो पवयणस्स ॥ भूमिका ६-श्रुतस्कध समवायांग मेँ आचाराग के दो श्वतस्कन्ध वतलाए गए ह 1* इससे यह प्रमाणितं होता दहै कि समवा्यांग्मे प्राप्र द्वादशागी का चिवरण भी धावार-चृलला कौ रचना का उत्तरवती दै । प्रारम्भ मे आचार्याग के दौ स्कन्ध नही थे। आचाय भद्रबाहु ने आयार-चूला कौ स्चना की, उसके पश्चात्‌ दो स्कन्धो की व्यवस्था की गई । मूलभूत प्रथम अंगका नाम आचाराग अथवा श्रह्चर्याध्ययनः है। समवायाग मे इमके अध्ययनो को नव ब्रह्य" कहा गवा है !> आचारांग नियुक्ति मेँ इसे नव हचर्या- ध्ययनात्मकः कहा गया है।३ द्वितीय श्ुतस्कन्ध के ठो नाम है-भायारग्ग (आचाराग्र) चौर आयारःचूल्ला (आचार-चूला) । ४, (म निवृक्तिकार ने आचाराग के दस पर्यायवाची नाम वतलाए है-- (९) आयार-- (२) आचाल्ल- (२) अआगाल-- (४) अगर-- (५) आसास-- (&) आयरित- (७) अङ्न-- =) आईण्ण-- यह आचरणीय का प्रतिपादक है, इसलिए आचार है । यह निविड वधन कौ आचालित करता है, इमलिए आचाल् दै। यह चेतना कों सम धरातल म अनस्थित करता दहै, इसलिए आगत है। यह आस्मिक-गुद्धि के रत्नो का उत्पादकं है, इसलिए आगर है । यह स्रस्त चेतना को आश्वासन देने मे क्षम दै, इसलिए आश्वास है । इसमे इति कत्तन्यता" देखी जा सकती है, इसलिए यह आद्शं है । यह अन्तस्तल मे स्थित अहिमा आटि को व्यक्त करता है, इमलिए अङ्ग है । इसमे आचीणे-धमं का भी प्रतिपादन ह, इसलिए यष्ट आचीणं है । १ समवायाग, प्रकीर्णक समवाय, सूत्र = दो सुयक्खधा- 1 २. वही, समवाय ६, सूत्र 3 णव वभचेर्‌ पण्णत्ता ३ जचाराग निवृक्ति, गाथा ११. णव वंभचेर मदमो । म्‌ १० आयारो तह बायार-चूला (९) चालाद-- इससे ज्ञान धादि आचारो की प्रसूत्ति होती है, इमलिए अजाति दै। (१०) चामोक्व *-- वह वेधन-सुक्ति का साधन ह, इसलिए अमोघ है । ७-सुख्य-विभाग आचारांग के नौ चध्ययन हैँ । समवावांगर ओर घआाचारांग नियुक्तिः मे इन अध्ययनौ के जो नाम भरा हते है, उनमें थोडा मेद है-- समवार्यांग माचारांय नियुक्ति सस्थयरिण्णा सत्थपरिण्णा लीगविजय लोगविजव सीयीस्रणिज्ज सीथोसणिज्ज मम्मत्त सम्मत्त वती लोगसार धूत धुय चिमोहायण महापरिण्णा उवेहाणसुव विमोक्ख महपरिण्णा उबहाणसुव इनमे नाम-मेद जौर क्रम-मेद टोनो है । प्रचित अध्ययन क्रा सूल नाम लोगप्तारः हीदै। अती नाम आटि-पद कै कारण हमा है। अनुवोगद्वार में यह उदाहरण रपर मे उल्लिखित है ।* नियुक्तिकरार ने भो आवंतो को थाटान-प़ट नाम चौर छीक्खार कौ गौण नाम माना है !५ १. आचाराग निर्युक्ति, गाथा ७: आयारो माचालो, आगमालो आगरो व आसो ] अयरि्नो अगति य, आरईण्णाऽजाई आमोक्ा ॥ २. समवायाग, समवाय €» भू० ३1 ३, आचाराग निर्वक्ति, गाथा २१-३२ 1 ४. अनुयोगद्रार, सु १३० : (वृत्ति पत्र १३०) : भे क्रि तै जायाण परएणं ? (धम्मो मंगलं, च्रूलिया) आवंती" ! तत्र आवततीत्याचारस्य पचमाघ्ययनं, नत्र ह्यादावैव--'ावन्ती केयाचन्तीत्यालापको चिचित्र इत्यादानेपदे- नैतन्नाम । ष, अ(चारांम निर्क्ति, गाथा २३०८ - आायाणपएणावंति, गोष्णनामेण लोगसारत्ति ! भूमिका ११ <-आधारचूखा आचांग के साथ पच वूलर्ण जडी हई है ।* उनमे से प्रथम चार चूलाओौ की द्वितीव शरतस्करन्धके रूप में स्थापना कौ गई है ) पचवौ चूला निशीधाध्ययन' की स्थापना स्वत्रस्पसे कौ गई है । द्वितीय श्रुतस्कध के प्रथम सात थध्ययन--यह प्रथम चूला है! मात सप्तेकक--द्वितीय चूला है। भावना-चृतीय चूला है । विषुक्ति--चतुथं चना है ।* इस प्रकार चार चृलाथौ के सोलह अध्ययन है । उनके नाम इम प्रकार है-- समवाधांगः माचारांग निधुक्ति“ (१) पिण्डेषणा पिण्डेसणा (२) शिञ्जा सेञ्जा (३) इरिया इरया (४) भासर्फयण भासाजात (५) बव्येसणा वस्येसणा (६) परायेसणा पायेसणा (७) ओग्गहपडिमा योरगहपडिमा स्तिक्कसत्तय सत्तिक्कंग सत्त (८) ण सत्तिक्कग (€) निसीहिया सत्तिक्कग (१०) उच्चारपासवण सत्तिक्कग (११) स्ट सत्तिक्कग (१२) स्त सच्तिक्कग (१३) परकिरिया सन्तिक्कग (९४) अन्नमन्नकिरिया सत्तिक्कग १, आचाराग निर्युक्ति, गाथा ११ : हवई य सपचच्रलो 1 २ वही, गाथा २६७ ˆ जावोग्गहपडिमाभो, पढम सत्तिक्षगा विद चूला । भावेण विमृकत्ति आयारपकप्पा तिन्नि इअ पंच ॥ ३ स्षमवा्यांग समवाय २५, सूत्र ५। 8. आचाराग निरुक्तिः गाथा २८०-२९० 1 १२९ आयारो तह अयारःचुली (१५) भावणा भावणा (१६) विुत्ती विसुत्ती दोनो शरुतस्कन्धो के अध्ययनो की संयुक्त संख्या पच्चीस हती है १ &-अवास्तर-विभाग समवार्यांग मेँ आचाराग के ८५ उदेशन-काल वतलाए गए दै 1२ एक अध्ययन का उटेशन-काल एक होता दै, वसे ही एक देशक का भी उदेशन-काल एक ही होता है । उदेशक अध्यवन का अवान्तर-बिभाग होता है। आचार ओर आचार- चूला दोनो के उदेशको की संख्या इस प्रकार है- अध्ययन उटेशक अध्ययन उदेशक १ ७ ९ 6 २ ६ १० १ ड ॥ ११ ३ ४ ४ १२ ३ ५ ६ १३ र्‌ ६ शु २४ ४ ७ ७ २१५ म्‌ ५ प्न १६ य्‌ अंतिम नौ अध्ययनो मै उदेशक नही दै) इस प्रकार पच्चीस मे से सोलह अध्ययनो कै ७६ उदेशक होते है । १०-पद-परिमाण अौर वर्तन्रान आकार आचचार्याग नियुक्ति के अनुसार आचाराग की पद-खंर्था अ्टारह हजार है । समवायांग तथा नन्दी मे आचाराग के दो श्रुतस्कन्ध वत्तला कर फिर अहरह हजार पदौ कौ संख्या वतलाई गई है । किन्त यह पद-संख्या नव व्रह्चयं अध्ययनों की है 1 नियु्तिकार ने इस्तका स्पष्ट उर्लेख किया है 13 १. समवायाग, समवाय २५० सू० ५ : आयारस्स णं भगवभो सनरूलिजायस्स पणवी जञ्फयणा पण्णत्ता 1 २. वही, प्रकीर्णक समवाय, सू० ८६ 1 ३. आचाराग निवृक्ति' माथा ११ . णववभवेरमडओ, अद्ुारसपयसहस्सिभो वेमो । भूमिका १३ अभयदेव सूरि ने समवार्याग के संशिलिष्ट पाठ का बिश्लेषण किवा है । उन्होने लिखा है--“2ौ शरुतस्कन्ध है, वह थाचार-चूला सहित आचार का प्रव्पाढन है उसके अद्ारह हजार पद्‌ है । यह पट परिमाण केवल नव त्र चर्वाध्ययनातमक आचार का है !“* सम्प्रति उपलन्ध आचाराग मे थट्ारह हजार पद प्राघ्र नही है ¡ परम्पय से एेसा माना जाता है कि रचना-काल मे आचाराग का पएट-परिमाण इतना था, किन्तु काल-करम से उसके ग्रन्थभाग का विच्छेद हो गया, इसलिए वर्तमान मे पठ- परिमाण भी कम हो गवा है। दिगम्बर-परम्परा के अचु्ार नक्ष्राचा्थं, जयपाल, पाण्डस्वामी, प्रुवसेन ओर कंसाचार्य ये पच आचारं एकादशागधर चौर चीर पूवो के एक देश के धारक हए है । सुभद्र, यशोभद्रः वशोवाहू ओर लोहावं-ये चार आचाय आचाराग के धारक तथा शेष अंगो ओौर पूर्वोके एक देश के धारक हुए हे ।२ इनके पञ्चात्‌ अर्थात्‌ वीर-निर्वाण ६८३ के पर्चात्‌ आचारांगधर का विच्छद हो गया । फलतः आचाराग का विच्छ हो गपा । आचाराग का विच्छद मान लेने प्र भ इम तथ्य की स्वी्ति की गई है करि उत्तपवर्ती थआाचायं समौ गो ओर पतरौ के एक देश (अवशिष्ट-भाग) कै धारक हृए्‌ है 13 श्वेताम्बर-परम्परा मे मो विष्णु सुनिके ठेहावनानके माथ अआचाराग का विच्छेद माना गवा है ।* त्िव्थोगालली मे मी आगम-विच्छेट की चर्च प्रा ह । उसके अपुसार आचाराग का विच्छद वीर-निर्वाण २२०० (६० १७७३) मे बताया गया ६ । इन परम्पराओं से इतना ही साराश प्रा करिवाजा नक्ता टै क्रि आचासाग निर्माण- काल मे जितना था, उतना आज नही है तथा वह सर्वधा विच्छिन्न भी नही । उसका ङु विच्छेद आचारागधर आचाययो के अमावमे हूभा है वथा कुं ॒विच्छेद विस्मृतिवश व प्रतिय के प्रामाणिक सस्करणोके नष्ट होनेसेभी हषा है। इतना सुनिद्चि है कि शीलाक सूरि (अस्तिख-काल ६० < वौ शती) को अचारागक्रानौ अश प्रा था, उसका चिच्छेद नही हआ है ! अत. त्तित्थोगाली का विवरण प्रामाणिक नही लगता । १ समवायाग वृत्ति, पतर १०१ यह्‌ दवौ श्रुतस्कन्धावित्यादि तदाचारस्य प्रमाण भणितं, यत्‌ पुनरप्टादश्र पदसहघ्राणि तन्नवत्रह्चर्याव्ययनात्मकस्य प्रथमशूतस्कन्घस्य भ्रमाणम्‌ 1 २ धवला (षट्‌ खण्डागम) माग १, पु० ६६ ३ वही, भाग १, पु० ६७: तरो सध्ये मग पुञ्बाण मेग-देम आइसिय-परपराए आगच्छमाणो धरमेणादइरियं सपत्तो । ४. अभिधाने राजेन्दर, भाग २ पृ० ३४६। ५, भआयारौ तह आयार-वरा आचारग का भमहापरिन!* अध्ययन विच्छिन्न हो चुका दै--यह श्वेताम्बर आचायां का अभिमत है । उस अध्ययन का विच्छेद बेञ्रस्वामौ (वि पहली शवान्दी) के पश्चात्‌ तथा शीलांक सूरि (वि० आरवी शताब्दी) से पं हुधा है । बन्रस्वामी ने महापरिज्ञा अध्ययन से गगनगामिनी-विया उद्धत की थी ।+ इससे स्पष्ट है कि उनके समय में वह अध्ययन प्ा्ठ था । शीलाक सूरि ने उसके चिच्छेद होने का उलेख किया है 1" निगुक्तिकार ने महापरिक्ता अध्ययन के विषय का उल्लेख किया है तथा उसकी नियुक्ति मी की है ४ इससे लगता है कि चववित अध्वयन उनके सामने था । चूर्णिकार के सामने भो महापरिज्ञा अध्ययन रहा है । उन्हौने इृचिकार शीलकि सूरि की तरह इसके विच्छेद होने का उत्लेख नही किया है ! घन्होने चित अध्ययन के असमतुनात होने का उल्लेख करिया दै 1५ यह अध्ययन असमाचुनात क्यो ओर कव हा, इसकी चूर्णिकार ने कोई च्चा नह कीहै। एक असुश्रुति यह है क्रि महापरिलाः अध्ययन मे अनेक मंत्र ओर चिद्या का वणन था । काल-लन्धि के संदभं मे उसे धाने का परिणाम अच्छा नही लगा । इसलिए ताककालिक आचार्यो ने उसे असमनुक्ञात ठहरा दिया--उसका पदूना-पदाना निषिद्ध कर टिया । किन्तु नियूक्तकार के संदमं मे हम दस विषय पर विचार करते है तौ उक्त अनुश्रुति का उससे समर्थन नही होता । निय॒क्तिकार के अनुसार आचार-चूला के सात अध्ययन (सप्तेकक) महापरिन्चा के सात उदेशको से १ (क) आवश्यकनि्ुक्ति, गाथा ७६९, मलयभिरि वृत्ति, पत्र ३९० : जेणुदरिया विज्जा, आगासगमा महापरिन्नाओ । वदामि अज्जवदुरं, अपच्छिमो जो सुयधराण ॥ (ख) प्रमावक चरित, वजप्रबन्ध, श्लोक १४८ - महापरिनाघ्ययनाई्‌, आचारागान्तरस्थितात्‌ 1 श्री वज णोदधृता विदा, तदा गगनगामिनी ॥1 २. आचारांग वृत्ति, पत्र २३५ : अधुना सप्रमाध्ययनस्य महापरिज्ञा्यस्यावसर , तच्च ग्यवच्छिन्नमितिहृत्वाडति- लच्घचाष्टमस्य सम्बन्धो वाच्यः । ३. वही, निर्युक्ति, भाथा ३४। ४. वही, नियुक्ति, गाथा ए५२-२५० : देखिए-अ।चाराग वृत्ति, द्वितीय भ्रुतस्कन्धे का अतिम पत्र । ५. वही, चूण, पु° २४४: महापरिण्णा ण पदिज्जड असमणुण्णाया । भूमिका ९५ निथुद किए गण है ।१ दस उदलेख के याधार प्र सहज ही अुमान किया जा सकता है कि जो विषय महापरिज्ञा से उद्धुत सात अध्ययनो (सप्तेकको) मँ है, वही विपयं महापरिन्ना अध्ययन मेँ रहा है । एसी संभावना मी की जा सकती है कि महापरिजा से उद्धत सात ध्ययनो के ग्रचलन के वाद उसकी आवश्यकता न रह हो, फलतः बह असमतुज्ञात हौ गया हो ओर क्रमशः विच्छिन्न हो गया हौ । घमी तक हरमे अतुश्रुति थर अचुमान क अतिरिक्त प्रस्तुन अध्ययन कै चिच्छेद का पष्ट प्रमाण प्राप नही ईै। ११-विषय-वस्तु समवा्यांग भौर नन्दी मेँ आचाराग का विवरण प्रस्तुन किया गया है । उमकै अनुसार रस्तु सूत्र आचार, गोचर, विनय, वैनयिकं (विनय-फल), स्थान (उस्थितासन, निषण्णासन भौर शयितासन), गमन, चंक्रमण, भोजन दि की माचा, स्वाध्याय आदिमे यौग-नियूजन, माषा, समिति, गुठि, शय्या, उपधि, मक्त-पान, उद्गम-उत्थान, एषणा आदि कौ विशुद्धि; शुद्धाशुद्ध-ग्रहण का विवेक, वेत, नियम, तप, उपधान आदि का प्रतिपादके है ।> आचायं उमास्वाति ने आचारांग के प्रस्येक अध्ययन का विषय संक्षेपे प्रतिपादित किया है । वह क्रमशः इस प्रकार -- (२) षडजीचकाय यत्तना (२) लौकिक संतान का गौरव-स्याग (३) शीत-ऊप्ण आदि पररीपहौ पर विजय (४) अग्रकम्पनीय-सम्यक्त्व ५) संसार से उदृेग (&) क्रमो को क्षीण करने का उपाय (७) वैया का उद्रौग (८) तपस्या की बिधि (£) स्त्री-संगत्याग (१०) विधि-पूषेक भिक्षा का ग्रहण (१९) स्त्री, प्शु, क्लीव आटि से रहित शच्या १, आचाराग नियृक्ति, गाथा २९० . सत्तक्षगाणि सत्तवि, निज्जुढाईं महापरिन्नामो । २" क) समृवायाग, प्रकीर्णक समवाय, सू० ८९ । ख) नदी, सू० ८०। ॐ प्रशमरति प्रकरण, ११४-११७। १६ आयारो तह भयार-चू (१२) गति-शुद्धि (१३) भाषा-शुद्धि (२४) वस्त्र की एपणा-पद्धति (१४५) परान्न की एपणा-पद्धत्ति (२६) अवग्रह-थुद्धि (१७) स्थान-शुद्धि (१८) निपय्या-ुद्धि (१९) ब्मुतसगं-शुद्धि (२०) शृब्दासक्ति-परिव्याग (२९१) उयासक्ति-परिस्याग (२२) परक्रिया-वजन (२३) अन्योन्यक्रिया-वर्जन (२४) प॑च महाव्रतौ की हृता (२५) सव॑सगौ से विसुक्तवा € ९ स्‌ नियु क्तिकार ने नव व्रहचयं अध्ययन के विषय इस प्रकार वचलाए है-- (९) सत्थ परिण्णा-- नीच संयम्‌ । (२) लोग विजव-- वंध ओौर सुक्ति का प्रबोध) (३) सीघोसगिन्ज-- सुख-दुःख-तितिक्षा 1 ४) सम्मत्त-- सम्यक्‌-टष्टिकोण । (५) लोगस्ार-- असारका परित्याग भौर लोक मे सारभूत रल्नत्रयी की आराधना । (६) श्ुय-- अनाघक्ति । (७) महापरिण्णा-- मोह से उत्पन्न परीपहो ओर पपक्षगौ का सम्यक्‌ सहन । (क) विमोक्व-- निर्याण (अंतक्रिया) कौ सम्यक्‌-अराधना 1 (६) उबहाणसुय-- भगवान महावीर द्वारा चरित्र आन्ारका ग्र्तिपदिन 19 १. आचाराग नियूक्ति गाथा ३३-३४ : जिभक्तंजमो अ लोगो जह वज्छड जह य तं पनहियव्वं 1 युददुक्खतितिक्लाविय सम्मत्त लोगसारो य ॥ निस्संगया य छं मोहसमूत्था परीसहुवसम्गा 1 निज्जाणं उद्रमए नवमे य जिणेण एवति ॥ ~ ८ भिका -१७ >) आचाय अकल के अनुसार आचारय का समग्र विपव चर्या-विधान१ तथा अपराजित सूरि के अनुसार रलत्रयी के आचरण का प्रतिपादन है 17 लेन-परम्परा मे चआाचार' शब्द व्वापक अथं मे व्यवहत होता है । भाचाराग की व्याल्या के प्रसंग मेँ आचार के पोच प्रकार वतक्लाए गए हे-(९) क्ञानाचार, (२) दशंनाचार, (३) चरित्राचार, (४) तपाचार ओर (५) वीचार ।? प्रम्वृत सूत्र मे इन पचो आचारो का निरूप्ण है । दार्शनिक-तथ्य तव-द्शन की दष्ट से आचारांग एक मह्वपृणं आगम है । आचार्यं मिद्धमेन ९, [ह ऽ [> ने जेन-दर्शन के मलभृत छह सत्य गिनाए है-- (2) आत्मा है 1 (४) भोक्ता दै । (२) वह अभिनाशी है । (५) निर्वाण है । (३) कर्ता दै । (६) निर्वाण के उपाय है ।* इनका आचारांग मेँ पूणं विस्तार मिलता है । "भस्मा है--यह पहला सत्य ६। आचारांग का प्रारम्भ इसी सत्य की व्याख्या से हा है 1“ इसी व्याख्या के साथ घात्मा के अविनाशिख का उल्लेख हृभा है ।९ धृरष तू ही तेरा मित्र है, चह रस्यतू ने ही किया ई'८--पै वाक्य थासा के क्तत के घद्वोधक है । धतुसेदन' का प्रयोग हया है 1* यह क्रिया की प्रतिक्रिया (भौक्तृल) का चक तचत्ार्थं राजवा्तिक, १।२० : आचारे चर्याविधानं जुद्धचप्टकपचसमितित्रिगुष्ठिविकेल्प कथ्यते । * मूलाराधना, आश्वास २, शलोक १३० विंजयोदया ; रलत्रयाचरणनिरूपणपरतया प्रथमभगमाचार शब्देनोच्यते 1 समवायाग, प्रकीर्णक समवाय, सूत्र ८९ से समासओ पचविहे प० तं० णाणायारे दसणायारे चरित्तायारे तवायारे विरियायारे । सम्मति प्रकरण, ३।५८्‌ अत्थि अविणास-धम्मी, करेड वैएइ अत्थि निव्वाणं 1 अत्थि य॒मोक्खोवामो, छ सम्मत्तस्स उणा ॥ आचाराग, १।२। वही, १४1 " वही, ३।६२ पुरिसा । तुममेव तुम मित्त । ५ वही, २।८७ सुम चेव त सहमाहट्‌ट्‌ । ` ई ९ ब्ही,५१८६३। ` ३ 4४ ९ न्न ‰ ~ल ७ 0 १८ ञायारो तह आयार-चूखा है। अआचासंग में निर्वाण को अनन्य-परमः कहा गया है । बहम सव उपाधि्यो पमाष्ठ हो जात है, इसलिए उससे अन्य कोई परम नही दै । निर्वाण के उपायभूत सम्यग्‌ -दरशन, सम्यग्‌-ज्ान ओर सम्थगु-चारित्र का स्थान-स्थान षर प्रहिपादन हृशा दै। इन द्प्टयो से आचाराग को जेन-दशेन का धाधारधृत ग्रन्थ कहाजा सकत्ता है ; श्रद्धा ओर स्वतत्र-दष्टि आचाराग श्रद्धा का सुद्र है। "सिटी भाणाए मेहावी"१, आणाएु सामगं धम्मं आदि वाक्यो मेँ अपने चाराध्य के प्रति आत्मापरंण की भावना प्रस्फुरित दोची ६ै। अचाराग की शद्धा मेँ स्वतंतन-टष्टिकोण का स्थान असुरक्षित नही ६ै। सत्यं की उपलग्प्ि के तीन साधन वतलाए गए है-- --सहसम्मति, 2 --प्रव्वाकरण ओर २---भुतासुश्रुतः । इन तीन साधनौ मे पहला साधनं है-अपनी दद्धि के दारा सस्य का अवबोधे करना । "ममं पास'*--दस शब्द का प्रयोग भी दृष्टि की स्वतंत्रता को अवकाश देता है। वृत्तिकार ने इसका अथं क्रिया है न केवलं अहमेवे कथयामि त्वमेष पश्य“-केवल मै ही नहौ करता ह दरू स्वयं मी देख । इस प्रकार आचाराग मेँ द्रा ओर स्वतत्र-टष्टि का सन्दर ठंगमं हृथा है । केवल शरद्धा भौर केवल स्वतेन-टष्टि-ये दोनो अतियो है । इनसे थच्छ परिणाम की उपलब्धि नही हौ सकती । शद्धा भौर स्र्तन-दष्टि का समन्वय ही सत्व-सधान का सञ्ुचित मागं है 1 कमषोयल आन्वारांग सवते प्राचीन सूत्र है, इसलिए यह एउत्तरवतीं सूत्नो के लिए कषोपल' के समान दै । इमे वर्णित अचार मूलभूत है । ३ भगवानु महावीर के मौलिक थाचार के सर्वाधिकं निकट है । उत्तरवतीं सूञ्ो मे वर्णित भचार उसका परिवधंन या विकास है। आचाराग-वूला मेँ भी अचार का परिवधेन या विकास इभा है । जो तथ्य मृत आचारय मेँ नही है, वे थाचार-चूला मेँ राप हीति है, तवं सहज ही प्रश्नं खड़ा १. अच्ारांगः, ३१८० 1 २, वही, ६४५। १. वही, १३ : सह-सम्महयाए, पर-वागरणेण, अण्णेसि वा अंतिए सोच्वा ४ वही, ३।१२1 भूमिका १६ होता है कि उनका आधार भ्या है १ दौ शताब्दी से-पर्ववती साह्य में जो तथ्य नही है, वे दो शताण्दी वाद लिखे गए साहित्य मेँ कर ठे आए १ इका समाधान देने के लिए हमारे एाम पर्थाप्र साधन सामग्री नही है, फिर भी इत विषय मे इतना कहा जा सकेता है कि सामयिक परिस्थितियौ कौ ध्यान मेँ रख कर वर्त॑मान आचाय ने उत्सगं थौर अपवाद के मिद्धान्त की स्थापना भौर उत्के आघार पर विंधि-विंधानो का निमाण किया था । आआचार-चूला उसी शला की प्रथम कंडी है । जेन-बाचार की समीक्षा करते समय इत तथ्य की विस्मृति नहीं होनी चाहिए कि धाचारागमे वमित आचार मौलिक है ओौर महावीर-कालीन है तथा जो घाचार आचारांगमे वर्णित नही है, वह उत्तरवतीं है वथा उसको प्रारम्भ-तिथि अन्तेपणीय ई । - समस्ामयिक विचार याचारांग में वेदिक, ओौपनिपदिकि थौर बोद्ध विचारधारा के संदर्भ मे अनेक तथ्यौ का प्रतिपादन हा है। वैदिक-साधना को हम अरण्व-साधना कह सकते है । वैदिक-धारणा के अनुसार धमे को साधना कै लिए मदुष्यको अरण्व मे रहना आवश्वक है । वेदिक ऋपि तत्वचिन्ता कै क्लिए भी अरण्व मे रहते थे । आरण्वक- साहि उसी अरण्यवासर की निष्पत्ति है। भगवान्‌ महावीर ने अरण्ववाम क्री अनिबायेता मान्य नही की । उन्होने कहा--“साधना गोव मे भी हो सकती है यौर अरण्य भँ भी हो सक्ती है 1" “धमं का उपदेश जेसे वडे लोगो को दिवां जा सकता, वेदे ही छंटे लोगोको दिवा जा सकता है २ उच्च-वगं कोही धर्मं सुनने का अधिकार, श्र कौ धर्म सुनने का अधिकार नहौ है, इस सिद्धान्त कै प्रतिवाद मे ही भगवान्‌ महाचीर ने उक्त व्रिचारकाग्रतिपादनकिवाथा। न्न को व्यक्ति टीनडहै यौरन कोई व्यक्ति उश्च ६२--उम विचारका प्रतिपादन जातवा के विसद्ध किया गया था। इस प्रकार उपनिषद्‌, गीता ओर यौद्ध-साहित्य के वभ मे धआाचारगका बलनाप्मकर अध्ययन करने पर विचारघारा के अनेक मौलिक सोत हमे पराप् हौ सकते ३ । १. आचाराग, ८१४ गामे वा अटवा रण्णे, "धम्ममायाणह्‌- पवेदित माहणेण मरईमया । २ वही, २।१७५८ जहा पुण्णस्न कत्थ, तहा तुच्छस्स कत्थद्‌ 1 जहा तुच्छरम कत्थः" नहा पृष्णस्न कत्थ ॥ ३. वही, २।४६ ` णो हणे, णो अदरितते 1 ९० आयारो तह आयार" १२-र्वनाक्ार ओर रचना-काड प्रेम्यरा से रह जाना जता है कि आचारंग की र्व॑ना गणधर सुवर्मा स्वामी ने की थौर ती्थ॑-प्व्तन के समवं मेही की। एेतिहामिक्र तथा भाषाशास्नीय दृष्टि से विचार करने प्र भी एेसा प्रतीत होता है कि थाचार्याग उपलब्ध आगमी मँ सवै ग्राचीन है। इसकी रचना-शली अन्व गमो से भिन्न है। डँ० हर्मन जेकोवी ने उसकी वरलना व्राह्मण सूत्र की शंलीसे की है। उनके अनुष्ार व्राह्मण सूनो के घाक्य परस्पर सम्बन्यित हं, किन्तु धाचाराग के वाक्यं प्ररस्पर सम्बन्धित नही है । उन्होने लिखा है--श्वाचार्याग कै वाक्व उस समय के प्रसिद्ध धार्मिक-ग्रन्थौ से उद्धृत किए गए है, ठेसा लगता है । मेरा वह अचुमान गच के मध्य थाने वलेप्ीया प्रदो के संदर्म में पणं सत्य है । व्वोक्रि उन पदयो या प्रदो की सूत्रछृर्ताग, उत्तराध्ययन तथा दश्रैकाल्िक कै पदो से तुलना होती है 1" कौवी का अभिमत निराधार नही है। द्वादशागी पूर्वो से नियृढदहैतथा दशवरेकालिक्र का नियृहण भी पूर्वो से किया गया है । इसलिए वहत संभव है करि इन मनक्रे समान पदो का नियृहण-स्थल एक है । आचारय के वाक्व परस्पर सम्बन्धित नदी है, इस अभिमत मेँ आंशिक सच्चाई मी है थौर चह इमलिए है कि वतमान मे आाचार्रांग का खण्डित स्प प्रा है । अखण्ड स्म मे जौ सम्बन्ध-शृद्धला प्राप हयो सक्ती हे, वह खण्डित क्प मेँ नही हयो सक्ती । इसका तीसरा कारण न्याख्या-पद्धति का मेदभीहै। धागम-साहित्य के व्याख्यान की दौ पद्तिर्वौ है-- (९) छिन्नच्छेदनयिक थोर (२) अच्िन्नच्छेदनयिक । प्रथम पद्धति के असार प्रत्येक चाक्म तथा श्लोकं धने आपे परिपुणं होता है। पूर्वया भग्रिम वाक्य तथा श्लोक से उनकी मम्बन्ध-यीजना नही कौ जाती । १ 11८ 50८८व 0०/८5 र ९ 481, ०7. +, 11170 4/८7001, 248९ ‰8: द १० 0० 1684 [८८ ६ 10६८० ताऽला$ञना, एप [1८८ > $दलाणा पआदवह ए ४ व्०थामाऽ पठा) 5006 कला फलााठय 546६५ 0०1६5. 7 9६ धा€ 73816065 07 श6ा565 वात 0016 *€565 फलो € एलभाप प्ल ुल्ऽत्‌ 7 ६८ 1086 {5 0 शि 10 170४८ पह (णटत्ा€5§ 9 पाश (नारध््ा€ , णि 10140 9 6८ कदश्व प्रालपछात 26 शला पाक्ष ॥0 ¶द7565 0८ 22085 07 %6४565 0८्व्पपाषट {06 अ्पधववा28, तद्दत्त्वा 20 ए0द४दप्यात्यात 35. भूमिका २१ दवितीय पद्धति के अलुसार प्रसेकं वाक्य दथा कलक कौ पूवं या अग्रिम वाक्व तथा श्लोके के साथ सम्बन्ध-योजना की जाती ६ । आचाराग की व्यास्वां दिन्नच्ेदनविक-पद्ति से करने पर वाक्यौ कौ विसम्बद्धता प्रतीत होती दै। वदि अच्िननच्छेदनविक-पद्रति से उमकरी व्याख्या की जाए तो उसमे सवैर विसम्बदवता प्रतीत नही हीगी । धाचार-चूला की स्वना-शैली धाचाराग छे सवथा मिनन है । उमक्रौ रचना मौ आचाराग क उत्तरकाल मे हुई है ! निथुक्तिकार ने घाचार-चूला को स्थविर-कतूक साना है। चू्िकारने स्थत्िरका अर्थं "गणधर भौर वृत्तिकार ने "चतुरश ववत्‌ किया है । इन सये मै स्थविर का नाम उद्लिखित नही है । अन्यत्र उपलब्य मायो के धाधार पर वों स्थिरः श्ट चतुद शपुवी भदरवाह के किए प्रयुक्तं हया जान पटहा ह । इसकी चरा दगरेकालिकं ; णक मीकषातमक अध्ययन (पष्ठ ५३-५७) मकीजाचुकीहै। आचाराग का गहु धथ आचारय (आचार-चूना) मे स्पष्ट हौ जाए, इस दृष्टि ये भ्रा स्वामी ने आचाराग का अर्थं आचाराम्र मँ प्रविभक्त किया । निरक्तिकार ने पचो चूलाय फे निवहण-स्थल का निर्देश किवा है 1८ ० १ आचाराग निरुक्ति, गाथा २८७ येरेहिःफुगहरा, सीसहिअ होड पागडत्थं च । आगाराभओ अत्थो. आयारेमुं पिभत्तो ॥ २ आचारा चूणि, पृ° ३२९ येरा गणधर । आच"राग वृक्ति, पत्र २९० स्थविरं ' भुतवुदत्वतर्दपूर्व वदूमि । 8 ञचाराग निरुक्ति, गाथा रे८०-२९१ ` बिहृभस्य य पंचमए उदटुमगस्प विमि उमे \ भणिओ पिडो यिज्जा, बत्य पारम चेव ॥ पचमगस्प चरत्थे इरिया, वण्णिज्जई समासेण ! म य॒पचमए. मासज्जावर वियाणाहि ॥ मतिक्कगाणि सृत्तवि, निज्जुदाड महापरनामो 1 सत्थपरिन्ना भावण, निन्दरामो भुयविमुतती ॥ आवासक्पो पृण, पद्क्वाणस्व त्यवत्युभो । भावालामधिज्जा, वौमऽमा पाहुडच्छेया ॥ २१ आआयारो तह आयार-चूला निूहण-स्थल : भचारांग निर्वूढ-भध्ययन : अवार-चूला अध्ययन उदेशक अध्ययन २ ५ १, २,५. ६, ७ स ४: १, २३५; ६ ७ ५, ॥. ३ ६ ५ र ७ १-७ ८-१४ १ १५ ६ ए-४ १६ अत्यार्यान पूवं के तृतीय वस्ठु का धाचारप्रकल्य--निशीथ आचार नामकं वीस पाभ निभूक्तिकार ने केवल नियूहणः-स्थले के चध्यवनों भर उदेशको का निर्देश किवा है । चूर्णिकार यौर इ्तिक्रार ने कहौ-कही उनके सूत्री का भी निदेश किया है 1 चूर्ण के अनुसार आचार-चूज्ञाके १, २, ५, ६ धर ७ अध्ययनो के निगृहण- सूत्र वे है-- ₹-जमिणं विरूरूवेहिं स्थेहि लोगस्प कम्मश्रमारभा कण्जंति तजहा-अप्पणौ से पत्ताणं धूया्ण'"" "“" (अध्ययन २, उ० ५, सू° १०४ पृ ६३) । सव्वामगंधं वा परिष्णाय (अ० २, उ० ५, सू° १०८, ए° ३६) । बरस्थं पडिग्गहं कवलं पायपृद्धणं उगहं च कडामणं (अ० २, उ० ५, स.° ११२, प्र० ३३) । त भिक्छुं उवसंकमिततु गाहावईं ब्रया--अ्रावेतो ! समणा अहं खलु तव अद्टाए असणं वा (४) वत्थं वा पडिग्गहं वा कवलं वा पावयुक्कणं वा पाणाईं भुवां जीवाद सत्ताइ समारन्भ समुद्धिस् कीयं पाभिन्चं अच्छन्जं अणिसय्‌ढं अमिहडं आयुट चेतेमि आवसं वा सयुस्सिणोमि (अ० ८, उ० २, सू २१२ प्र० ८०-८९) । वृत्तिकार के अमुसार-- सन्बरामगधं परिण्णाय णिरामगंधौ परिव्बए अदिस्समाणे कय-विक्कएसु (अ० २, ० ५ स° १०८ प्र० ३३) । भूमिका २३ भिक्लु परक्कमेऽना चििय्ठेन्न वा निसौएल्व वा वुवच्टिन्ज वा पुमाणं पत वा'““" (याद्‌ यहिया विहरिज्ना)* तं भिक्लु उवसंकमित्त्‌ गाहानती व्रुवा-- आसतो समभा | अहं खलु ततव अयुराए असणं वा पाणं बा खाद्म वा सादं घा षत्थं वा पडिगगहं घा कवलं वा पायृष्ठणं व्रा पाणाइं भयां जीवां मत्ता समारव्ण चयुदिस्स कीय पामिच्चं-- (अ०८,२०२,स्‌०२९,१०८०-८१) । वत्थं पडिगहं केवलं पायपुं्णं उगगहं च कंडामणं (अ०२९०५.य्‌०११२,१०३३) 1 चू के अञुखार आयार-चृला के तीसरे चध्ययन कँ निुहण-सू् मे है - २ गामाणुगासं दूदज्न माणस्छ-- (अ ०५३० ४, ०६२, पृ०५६) । तदियूसीए ०९ (अ०८३०५्‌९६८प०६०) । “""पलीवाहरे पासिय पाणे गन्छेन्ना-- (अ०५,३०४स्‌०६९४०६०) । से अमिक्क्रममाणे"'"'"" (अ० +उ०४स्‌ ०७०००६०) 1 वृत्तिकार के अतुसार-- गामाणुगामं दुदज्जमाणस्स इज्नातं इष्यरक्केत- (अ०५.उ०५सृप्त६२;१०५६) । चूर्णि कै जनुघार आयारः-चूला के चौथे अध्ययन के नियृहण-मृत् वह 2ै-- उ--पार्णं पडीणं दाहिणं उदीणं जाडक्ये विभ किच्दे-- (अ०६०उ०५.यृत्र१ ० २,१०७५) । इत्ति के अमुसार- 'आदइक्खे निम्‌ क्रिद्‌टे वेयवौ°-- (अ०द,उ ०५५०१ ०२९,१०७५) । नियुक्ति, चिं बर इतिमे प्राह निदेशो क अध्ययन से हम इष निम्ठं पर चते हं कि भावारचृला आचार्तंग से उदु मही ६, किन्त आचारा के संक्ि् १ यह ृत्तिगत भाठ हे तथा यगन पृ्ियो मे मी वृततिगत पाट कु मिनन हे । २ ति मे ठ एम प्रकार है-आदक्लः बिदृयड विषह ध्मकानी ¦ . आयारो तहं आयार पाट का विस्तार है। नियुकतिकार ने इस थर सकत भी किया है ।' घाचाराग्र (आाचार-चूला) मे जौ “अद्र शब्द है, बह वहो छषकाराग्रः के अथं म प्रकृतहै। चू्णिकारने उपकाराग्रका अथं क्वा है पूर्वोक्त का निस्तार थौर अदुक्त का प्रतिपादन करने षालाः । चाचाराग्र आचारय मेंग्रतिपादित थथं का विस्तार भोर यपरतिपादित अथं का प्रतिपादन करता है, इसीलिए उते आचार का धग्र-स्थान दिया गया । आचार-चल्ला मे उक्त का प्रतिपादन भौर अनुक्त का निस्तार--ये दोनो मिक्षते हे । इसके प्रथम सात अध्ययनो मे उक्त का विशदीकरणै। पन्द्रह अध्ययनमें भगवानु महावीर का जीवन-वृत्त है, वह अनुक्त का प्रतिपादन है । प्रस्तुत अध्ययन आचार के यथम अध्ययन (शस्त्-परिक्षा) से निद दै । उस्म महावीर का जीवरन-टृत नही दै । महाव्रतौ की भावना प्रथम अध्ययन कौ पूरक है। मियृहण कै विषय मै यह अलमान भी क्रया जा सकता है कि आचारागमे पिण्ड, शय्या आदि से सम्बन्धित स्रो का अर्थागम विस्तृत था । भद्रवाहूस्वामीने उस धर्थागम कों सूागम का रूप देकर उसकी चलाके रूप मे स्थापित कर दिया । आचारकस्प (निशीथ) आचार से नियुढ नही है, किन्त पुवेगत भाचार-वस्तु से नियढ है। दोनो मे नाम साम्य है, इसीलिए अाचाराग्र कौ आयारसे निवृढ कहा गया है । प्रथम दो चृज्ञाओ मे सात-तात अध्ययन रखे गए, तीसरी ओर चौथी चूला मेँ एक-एक अध्ययन रखा गया । इस व्यवस्था के पीछे क्या रहस्य है, सहज ही यह जिज्ञासा उभरती १ आचारप्रकल्य के वीस उदेशं है ओर उसे एक (पंचव) चला माना गया, यह उपयुक्त दै ¡ क्योकि वे सब एक विषयं से सम्बन्धित है । दसरी चूज्ञा के सात अध्ययन भी धाचार के एक अध्ययन से नियृद दै तथा पन्द्रहवों ओर सोलह भी एक-एक अध्ययन से नियं है, इसलिए इन्हे एक-एक ूना मानना उचित है । प्रथम सात अध्ययनो म प्च अध्ययनो का नियहण-स्थल समान है प्रवे घौर चे का नियंहण-स्थल भिन्न-मिन्न है। फिर भी उन्हे एक चला मे रखा गया, उत्का कारण बिषय-साम्य प्रतीत होता है । प्रथम चूला के सातो अध्ययन या, भाषा जौर एषणा मभिनि मे सम्बन्धित है, इसीलिए इन्दे एक यक्ररण -मेँ वर्गा किया गया । 4 १. अचि राग निर्युक्ति, गाथा २८६ उवयारेण उ पग, अयारस्मेव उवरिमाई्‌ तु 1 रक्स्त म धव्वयस्स य, जहं अगा तहेयाट़ ॥ २. आचाराग चूणि, पृ° २५६ - उपक राग्रं तु यत्‌ पूर्वोक्तस्य त्रिसतरतोऽनुचस च प्रतिपीदेनःदुपकारे वेतत तद्‌ यशा दभावैकालिकस्य चु, अयमेव वा श्रुतस्कन्ध अत्वारसयेत्यतोऽकरोपकासापरेणाधिकार्‌ । भूमिक +. ९५ पचो चूर्ण ए ही व्यक्त द्वारा कृत है या भिन्न-मिन्न व्यक्तियो द्वारा, यह प्रशन भी उपस्थित होता है । नियुक्तिकार नै 'स्थविर' शब्दे का प्रयोग वहुवचने किया है 1१ उसके आधार प्र आयार-चूला के अनेक-कवृं ख होने की कल्पना की जा सकती है । यदि स्थिर शब्दं का वहुवचन सम्मान-सुत्रक हौ, तौ अनेक-कतृ ल की कल्पना आधारहीन हौ जाती दै । स्थविर शन्द का वहुलचन मेँ प्रयोग अनेक ग्यक्तियीं कैः लिए है थथवा सम्मान-सू्न के लिए इसका निर्णय करना वड़ा कठिन है। भाचारांग के विशेष उपयोगी स्थलो का विस्तार किसी एक ही व्यक्ति ने विशेष प्रयोजन की पतिं कै लिए किया, एसा प्रतीत होता है 1 धाचायंग भँ पिष्डेषणा आदि के नियम विषरे हृए थे तथा अर्थागम के द्वार प्रतिपादित थे ! उनका सुत्नागम के रूप मेँ एकत्र संकलन करने की कट्यना आचायं के मन में हुई जौर उन्होनि वैसा किया । आचार-चूला एक विषय के विरे हृए अर्थौ का संकलन ई, इसकी सूचना चिकार ने भौ दी दै 1* आचार-चूज्ञा मेँ जिन विषयों का निषेध किया गया ह, उन्हीं कौ प्रायरिचत्त-विषि निशीथ मेँ निर्दिष्ट है। धाचार सम्बन्धी नियमों का संकलन भौर उनके अतिक्रमण का प्रायरिच्त-इन दीनो कौ व्यवस्थित सूप देने कौ कस्पना किसी एक ही मस्तिष्क की ई भौर वहं येदपत्र के कर्ता चहु शपुषीं भद्रबाहु की ही होनी चाहिए । श्वेताम्बर-साहित्य मे निशीथ को "कालिक सू्र' मापा ‰ । वष्ट अनंग-प्रविष्ट की कोटि मँ आता है 13 चार वूला्थौँ को आचारांग कै द्वितीय शरुतस्केषकेस्पर्म मान्यता दी गद दै ।* वे अंग-प्विष्ट की कोटि में मान्यहै। दिगम्बर-साहित्य मेँ निशीथ की गणना आरातीय आचाय कृत चौदह अग- वाह्यसूतनोंमेँ की दै! समवायांग तथा नंदी मेँ आचारग कै पच्चीस अध्ययन वतलाए गए ह ।६ यह संख्या आचारांगके नौ अध्ययनो के साथ चार आचार- चूलाजी के सोल अध्ययनों का योग करने से निष्पन्न हौ जाती है । १. आचाराग निभूक्ति, गाथा २८३। २. आचाराग तूणि, प° ३२६ पिडोकृतो पृथक्‌-पृथक्‌, पिडस्म पिडेसणासु कतो, सेज्जत्थ वेज्जासु, एवं सेसाणवि । ३. नदी. सूत्र ७७) ४, वही, सूत्र ८० । ५. गोम्मटसार, ३६६-३६७। ६- (क) समवायांग, समवाय २५, सूत्र प आयारस्स ण भगवञ स बूलियायस्म पणवीस अज्छयणा पण्त्ता 1 (ड) नेद, सूर ८० पणवोसं अर्मययणा । 1 भायारो तह थायार-चूख क्त साह्य कै आषा पर देख निष्कं पर पवा जा खकता है कि निशीथ की स्चना एक स्वतंत्र ग्रन्थ के स्पमेकी गर तथा नदी सूत्र की रचना (आगम संकलना -काल) तक उसका स्थान स्वरतत्र रहा फिर उसे आचारम की एकं चूला के स्प भें मान्य किया गया । यह मान्यता नियुक्ति की सचना घे पर स्थिर हो चुको थी । इसीलिष्ट निगुक्तिकार ने पद-परिमाण की दृष्टि से आचारांग को बहु थौर वहुवर माना है १ शीलांक सूरि के अनुसार चार चूला का योग करने प्र आचारांग कौ पद्-परिमाण दहः होता है भौर निशीथ नामक पचनी चूला का योग॒ करने प्र एसका पद-परिमाण "वहृतर' हो नाता है ।* वतमान मे निशीथ का समावेश छेद- चनो के वणं मे किया जाता दै, यह भी नंदी की रचना के उत्तरकाल मेँ हुमा १। उपयोगिता की दृष्टि से भले उसे स्वेव्॑र ग्रन्थ माना जाए या छेद-सूत्नो के वरय मं समाविष्ट किया जाए, किन्तु एसकी रचना के पछि जो परिकल्पना दै, वह शेष चार चूलाथों कौ परिकल्पना से भिन्न नही है । अतः पच चूला को अनेक- कनकं मानने की अपेक्षा एक ककूंक मानने मेँ अधिक संगति है! समवार्याग चूत मँ चूलिका वजित आचार्राग, सूज्छृर्ताग ओौर स्थार्नाग के सत्तावन अध्ययन वतललाए गए है । इनमें चून्रकृतांग कै तैई॑स अध्ययन ओौर स्थानाम के दस मध्ययन (स्थान) है । भाचार्राग के £ अध्ययन, आचार-चूला के १५ अध्ययन (वीथी चूला--र द्वे अध्ययन को छीड कर शेष तीन चरूलाधो के पन्द्रह जध्ययन) इस प्रकार सत्तावन अध्ययन होते है । | वृत्तिकार अभवदेव सूरि" ने विथुक्ति (चौथी चूला) क वजन किस याधार पर किया, यह शात नदी दै धौर सूत्रकार ने केवल सत्तावन की रुंख्या परी करने के लिए वियुक्कि अध्ययन का वजन क्रिया या इसके पचे कोई दूसरा दृष्टिकोण था, इसका निश्चित उत्तर नही दिया जा सकता । १ आचाराग निर्य्ति, गाथा ११: हवई य सपवच्रूलो बहुवहुतरभ परयग्गेण । . २ आचाराग वृत्ति, पत्र ६ : ॥ ` तत्र चेतुश्तूलिकरसकदवितीवभूतस्कन्धम्षपादवहुः, निरीथाख्यपन्चमचरूलिकापर्ेपद्‌- बहुतरः । ध समवायाग, समवाय ५७, सूत्र १. ४ तिण्ह्‌ गणिपिडगाणे आयारचुलियावज्जाण सत्तावन्न अच्छयणा पण्णत्ता, तज्हा-- आयारे, सूयगडे, ठाणे । 8. वही; कृत्ति, पव ६६ : ¢ व आचारस्य श्रुतस्कन्धद्रयरूपस्य प्रथमा ङ्गस्य शूलिकाः विमुक्त्यभि- धानमाचारणूलिका त वर्जानामू" । --- ५ भूमिका, । २४ आचारा से सीधा सभ्वन्ध प्रथमं तीन चलिकराजो (६५ अध्ययन) क्रा है। प्रथम दौ चल्िकाथो का सम्बन्ध आचार से है तथा तीषरी चूलिका (पनहवे शध्ववन) कां सम्बन्ध नोवे अध्ययन में वर्णित महावीर की साधना से है। प्वरिभुक्ति' काथर से सीधा सम्बन्ध नही ३ । इसी तथ्यं की सूचना इस गणना मेँ दी है-ेसी कलना कीजासकतीदहै। आवश्यकं चूर्णं मे एक नई चर्चा प्रा्ठ होती दै । उमके अदुषार स्यृलिश्द्र कौ बहन यक्षा महाविदेह क्षत्र भे गद थी) जव वेह कापमथारही थीः तवर सीमधर भगवान्‌ ने उसे दो अध्ययन दिए-(१) भावना ओर (२) विरक्ति ।१ आचःयं हेमचन्द्र ने परिशिष्ट पव मे इस घटना मेँ दो अध्वयनो कौ सम्बधन किया है । उनके धरुखार साध्वी यक्षा ने भगवान्‌. सीमंधर से चार अध्ययन प्राष्ठ किए ये-(९) भावना, (२) विसुक्ति, (३) रतिवाक्या (रततिकल्य) ओर (४) विविक्त-चर्या । संघ ने प्रथम दौ अध्ययन आचाराग की तीसरी घौर चौथी चूलिकायो के स्म मे थौर अंतिम दो अध्ययन दशतैकालिके की चलिकाथो के रूप मेँ स्थापित क्रिये 1२ भाचारंग नियुक्ति भौर दशेकालिकं नियुक्ति मे उक्त घटना का उल्लेख नही है। आवश्यक चर्ण मँ इस घटना का समावेश कैसे हा भौर आचाय हेमचन्द्र ने छसे सम्बधन कंसे किया, इसका प्रामाण्यं प्रा किए विना इस बारे मेँ कु कहना कठिन है । जाचाराग नियुक्ति के आधार प्र इतना ही कहा जा सकता है किये चूलिका स्थविर कत है । १३-आचाराग का महच आचार्राग आचार का प्रतिपादक सूत्र है, इसलिए वह ठव अंगो का सार माना गया है। भियृक्तिकारने नियुक्ति गाथा १६ भे स्वयं निनासा कौ--्ंगाणं किं सासे अगोकासार क्या है १ इसके उत्तर की माघा में उन्होने लिखा है आयारो' अर्थात्‌ अगौ का सार आन्वार हई 1 आचाररांग मे मोक्ष का उपाय वत्ताया गया है, इसलिए ब्रह समूचे प्रवचन का सार दै ।3 १ आवश्यकं णि. प° १८८ सिरिओ पव्बदतो अव्मत्तदूठेणं कालगतो महाविदेहे य पुच्छिका गता अज्जादो वि अन्भर्यणाणि भावणा विमोत्ती य आणिताणि। २. परिशिष्ट पर्व, ६।६।५३-१००। २ आचारग निर्यक्ति, भाथा ६। ४ जायारो तहे आयारचूरा आचाराग के अध्ययन से ्रमण-धमं छाति होता है, इसलिए आचारधर पटला गणिस्थान (आचायं हौने का प्रथम कारण) कहलाता दै ।* आचारराग शुनि-जीवन का आधारभूत भागम दै, इसलिए इसका अध्ययन सवं प्रथम किया जात्ता था । नौ ब्रह्चयं अध्ययनं का वाचन किए विना उत्तम या ऊपर के थागमों का वाचन करने पर चादुर्मासिक प्रायस्तत का विधान किया गया है ° आचारांग प्दृने के बाद ही धर्मातुयोग, गणितायुयौग शौर द्रन्यातुयोग पदे जाते ये ।3 नव दीक्षित सुनि की उपस्थापना आचारांग के शस्त्रपरिक्षा अध्ययन दवारा की जाती थी 1 वह पिण्डकत्पी (मिक्षा लने योग्य) भौ भाचासंय के अध्ययनसे होता था।* आचार्राग का यध्ययन किए विना सूत्रृत आदि अङ्गौ का अध्ययन विहित नहीं था!“ उक्त उद्धर्णो से अाचारांग का महत्व-ख्यापन होना है भौर साथ- साथ उसके प्रतिपाद्य विषय-भाचार का मी मदस्र-ह्ापन होता है । १४-स्चना-दौली सू््ृताग चूर्णं मँ सू्र-रचना की चार शेलि्यो का निदेश मिलता ईै-(१) गद्य, (२) पच, (३) केथ्य ओर (४) गेय ।६ १. आवचारांग नियक्ति, गाथा १०: आयारम्मि अदीए, ज नामो होई समणधम्मो उ । तम्हा आयारधरो, भण्णद पढम गणिटाणे ॥ २. निशीथ, १९१ : जे भिक्खु णव बंभचेराई अवाएत्ता उत्तम सुय वाएद, वाए त वा सातिज्जति । ३. निशीथ चूण (निशीथ सूत्र, चतुथ विभाग), पृ० २५३; अहूवा--बमनेरादी आयार अवाएत्ता धम्माणुओ ` इसिभासियादि वाएति, भहवा-- सूरपण्णत्तियादगणियाणुभोगं वाएति, अहवा~-दिदटिवातं दवियाणुओग॑वाएति, अह्वा--जदा चरणाणुखोयो वातित्तो तदाः धम्माणुयोगं अवाएत्ता गणियाणुयोग वाएति, एव उक्कमो चारणियाए सन्वो वि भासियन्वो । ४, व्यवहारभाप्य, २।१७४-१७५॥। ४. निशीथ चूणि (निशोथ सूत्र, चतुर्थं विभाग), पृण २५२; अंग जहा आयारो तं अवाएत्ता सुयगडगं वाएति । ६" सूत्कृताग वभि, प० ७: तं चरउन्विध, तजहा--गद्य' प कथ्यं गेवं ¦ ग्~-चूणिग्रन्धः ब्रह्मचर्यादि, पच्च गाथासोलसगादि, कथनीयं कथय जहा उत्तरज्छयणाणि इततिभासिताणि णायाणि य, गेयं णाम सरसंनारेण जधा काविलिज्जे अध्रवे असासयमि संसारमि दुक्छपडराए ॥' (९) गच~- चिं गन्ध, जैसे-त्रहचयं अध्ययन । (२) प्रय जसे-गाधाषोडशक ( सृत्रङृतांग के प्रथम ्रुतस्कंव का क्वौ अध्ययन } (३) कथ्य-- कथनीय, जेसे--उत्तराध्ययन, ऋषिभापित, हाता । (४) गेय-- स्वरयुक्त, जेसे--कापिलीय (उत्तराध्ययन का त्वाँ अध्ययन)! दशवैकालिक नियक्ति मे ग्रथित ओर प्रकीणक--इन दौ शंलियौ की चर्चा मिलती ३1१ ग्रथित शैलो का अथं है र्चनारेली" शौर प्रकीर्णक का यथं है कथा- शैली"। ग्रथित शैली कै चार प्रकार वतलाए गए है--() गच्, (२) प्र, (३) गेव रौर (४) दीर्णं 13 दशतैकालिक निय॒क्ति्मेजो प्रकोर्णक दै, बहो सूत्कृतांग चूर्णि में कथ्यदै। सूत्रकृतांग चि मे तरहचर्याध्ययन (प्रथम आचाराग) कौ गयकी कोटिमेंरखादहै ओर उसे वर्णं ग्रन्थ माना ह । किन्दु दशवेकालिक चरि में ब्रहनचर्याध्ययन को चौणं द्‌ माना दहै ।* हरिमद्र का भी यही अभिमत दै 1“ आचारांग की रचना गच्य-शंली की नदी है, इसलिए दशवे कालिक चृरणिं का अभिमत संगत लगता है । नियुक्तिकार ने चौर्ण-पद की न्यारा इम प्रकार की है--“जो अर्थ बहुल, महाथ हृ, निपात भौर उपसग से गंभीर, वहूपाद, अन्यवच्छिन्न (विराम रहित), गम ओर नयसे विशुद्ध होता है, वह चौणपद दै ।”६ चौणे कौ परिभाषा म बाया हृभा वहुषाद १. दशवैकालिक नियुक्ति, गाथा १६६ : नोमाउगपि दुविह्‌, गहियं च पड्नयं च बोद्धन्वं । गहिये चरउप्पयार, पडन्नग॒होद णेगविहं 1 २. दशवैकालिक हारिमद्रीय वृत्ति, पत्र ७ ग्रथित रचित ॒बद्धमित्यनर्थान्तरम्‌, अतोऽन्यलरकीर्णक-प्रकीरणंककथोपयोगिज्लान- पदमित्यर्थ. । „~ दशनेकालिक निर्युक्ति, गाथा १७० गज्ज पज्ज गेयं, चुण्ण च चउव्विह्‌ तु गहियपय । तिस्मृदराण सव्वं, इड वेति सलक्खणा कड्णो ॥ ४. दशवेकालिक चू्णि, पु० ७८ इदाणि चृण्णपद भण्णद्‌, जहा बमचेराणि । ५" दशवेकालिके हारिभद्रीय टीका, प्र चीर्णं पदं ब्रह्य उर्याध्ययनपदवत्‌ । * दशवैकालिक निर्युक्ति, गाथा १७४; अत्थबहुलं महत्य, हेउनिवामोवसम्गगं मीर 1 बहूषायमवोच्छिन्नं, गमणययुदधं च चण्णपयं ॥ न न्क ८ भायारो तह आयार-चूं शब्दं यहा वहत महस्तेपुण है । जिस रचना में कोई पाद नही होता, वह गच्च थौर जिसमें ग्य भाग के साथ-साथ वहुतपाद (चरण) होते है, बह चौरं है । स्प मे मच को अपाद ओौर चौणं कौ धहूपाद' कहा जा सक्रता है ! आचारांग मेँ सैकडो पाद ह, इसलिए बह चीणशेली की रचना दै । यह आश्चयं कौ वातत है कि समवावांग' तंथा नन्दी मे आचाराग क संस्थे वे्टको धौर संख्येय श्लोको का उल्लेख है तथा चूणिं थौर वृत्ति सातय मे इसे चोणंपद की कोटिमेस्वागवादै, फिरमी इसके प्रकी पादौ की भौर सैन विद्धानो ने ध्यान नहौ दिया । बाचा्यंग मेँ ग्य माग के साथ-साथ विपुल मात्रा मे प भाग है--इस रहस्य के उद्घाटन का रेव डँ० शरत्रिग को ह ¡ उन्होने स्व- संपादित या्ाराग मेँ पद माय का प्रथक्‌ अंकन किया है। चाचारगके षवे अध्ययन के ७ वैँ उदेशक तक की रचना चैर्णशैलीमें ह ओर ८ वँ उद्ेशक तथा ३ वो अध्ययन पातक दै ! थाचार-चूला के १५ धध्ययन युख्यवया गद्यालसक है, कही-कही पठ या सग्रह-गाथार्पै प्राप है । १६ वाँ अध्ययन पद्मात्मक दै । १ ~4-ठ्याख्या-यन्थ आराग कै उपलन्ध व्वारया ग्रन्थो मेँ सर्वाधिक प्राचीन नियुक्ति है । इक क्त द्वितीय भद्रवाह (वि° पँ चवी दधी शताब्दी ) हं । दूसरा स्थान चिं का है नियुक्ति प्रयमय है ओर वभि गद्यमव । परम्परा से इसक्रे कर्ता जिनदासर महत्तर माने जाति ह । कन्द एतिहासिक शोध के आधार पर इसकी पुष्टि नही हुई ६1 अंग शब्द का निक्षेप करते हुए चूर्थिकार ने द्रन्य-अंग की व्याख्या क श्िए चउरंगिञ्ज (उत्तराध्ययनं का तृतीय अध्ययन) की भोति--पेसा उल्लेख किया दै 12 इस वाक्याश से उत्तराध्वयन चौर आचारांग की चिं के एक कर्त्ता होने की कल्यना की जा सकती है । यदि आचाराग ओर ऽत्तराध्ययन के चर्मकार एक हँ त्तो उनका परिचय उत्तराध्ययन चूणिं के अनुसार गोपालिक महत्तर शिष्यःके रूपं में मिलता है। १. समवायांग, मरकीर्णक समवाय, सूत्र ८९। २. नंदी, सव्र ८०: संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा । ३ आचारम चरुणि, पु० ४ खव्वंगं जहा चउरगिज्जे ४. उत्तराघ्ययन चूर्णिः प° २०३ । भुमिक्षा । ३१ आचाशंग का तीसरा व्यास्या-अन्थ "टीका" है । दं ओर दृत्ति-ये दोनो नियुक्त के आधार प्र चलते दै । नियुक्ति का शब्द-शरीर सक्षि है, किन्तु दिशा-सूत्न ब एतिहासिक हृष्टि से वह सर्वाधिक महत्वपुणं ई । वर्णं का शन्द-शरी टीका की अपेक्षा संक्षि्ठ है, किन्तु अर्थाभिन्यक्ति व एतिहासिक दष्ट से वहुत मृल्यवानु है । टीका का शन्द्-शरीर उपलब्ध ग्याख्या-ग्रन्थो मे रवसे वडा है! इसके कर्ता शीला चरि है 4 उन्होने अपना दूखरा नाम 'तच्वादिर्य' व्तलाया है ।* आचाराग की पुष्पिका के अनुसार उन्हीने आचाराग (प्रथम शतस्कन्ध) की टीका गु सम्वत्‌ ७७२, मार शुक्ा-प॑चमी के दिन शम्भुता' (उत्तर गुजरात मे पाटण का पाश्वंबर्ती भूः नामक गौव) मेँ पुणं की धी ।2 शीला सूरि का अस्तित्ल-काल ई० ८ बी शती माना जाता है 13 दीपिका : रचयिता--अंचल गच्छ के मेस्तंग सूरि के शिष्य माणिक्यशेखर सूरि 7 दीपिका : रचयिता--खरतर गच्छं के जिनसयुद्र सूरि के पटर जिनहंस सूरि। अवनूरि : रचयिता--हषकरलोल के शिष्य लद्षमीकल्लोल । रचना 8° सं १६०६ (£) 1 वाज्ञाववोध : स्चयिता-- पाश्वं चन्द्रं सूरि । प्याुवाद ओौर वातिक : इन दोनो के कर्ता शरीमर्जयाचायं (विक्रम की २० वौ शती ) है । प्ानुनाद-जाचाराग के प्रथम श्रुतस्कन्ध की राजस्थानी मँ पद्यातमक व्याख्या दै । वार्तिक आचार-चूला परर लिखा गवा है । उसके चर्चास्पद विपयो के स्पष्टीकरण के लिए प्रस्तृत वार्तिके वहत महस्वपणं है । उपर कौ पंक्तियो मेँ हमने व्याख्या-प्रन्थो कौ चर्चा की है । प्रस्तृत शीषके मे अनुपलब्ध व्यारुया-गरन्थो पर दृष्टि डाल लेना आवश्यक है ! आयं गन्धहस्ती ने १ आचाराग वृत्ति, पत्र २८७: ¢ ब्रह्मचर्याख्यशरुतस्कन्धस्य नित्रूति कुलीनशीलाचार्येण नरवादित्यापरनाम्ना बाहरिसाधुसहायेन कृता टीका परिसमाघ्रा 1 २ वही, पत्र २८७: द्वासप्तत्यधिकेषु हि शतेषु, सध्रसु गतेषु गु्ठानाम्‌ । संवत्सरेषु मासि च, भाद्रपदे शुक्लपञ्चम्याम्‌ ॥ शोलाचाय णकृता, गम्भूतायां स्थितेन टीकषा । सम्यगुपयुज्य शोध्य , मात्सर्य विनाक्तैरायं : 1 जौतकल्पमूव्र, प्रस्तावना, पु० ११-१५ : पुप्यिकागत रचना-सवत्‌ भिन्न-भिन्न आदर्शो मे मिन्न-भिनन प्रकार का मिलता है । देषिए-जैन आगम साहित्य मां गुजरात, पुण १७६ 1 ९ ३९ भआयारौ तह भावार-चूखा याचार्यग के प्रथम अध्ययन श्शस्त्र-परिराः की टीका मेँठसी का संक्षिप्न सार खंकलन किया है ! आचारांग टीका मेँ उन्दने लिखा है-- शस्त्रपरिज्ञा विवरणमतिबहुगहनं च गन्धहस्ति़तम्‌ । तस्मात्‌ सुखबोधाथे गृह्ाम्यहपज्जसा सारम्‌ ॥२॥ (आचारयाग वृत्ति, प्रत्र १} शस्त्रपरिज्ताविवरणमतिगहनमितीव किल तं पुज्येः । श्रीगन्धहस्तिमितरर्िवृणोमि ततोऽहमवशिषटम्‌ ॥२॥ (भाचायंग वृत्ति, पर्न ७४} हिमवत थेरबली के अनुसार आयं गन्धहस्ती ने वारह अङ्गो पर विवरण लिखा था) आचारांग सूत्र का विवरण विक्रम सम्बत्‌ केदो सौ वपं वाद लिखा गया 1! ऊपर उद्धृतं भाचारांग दृत्ति के श्लोकों से इस अभिमत की पुष्टि नही होती कि धायं गन्धहस्ती ने समग्र आचारंग पर विवरण लिखा था । १६-उपसंहार पस्तु भूमिका मँ आचार ओर आचार-चून्ञा का संक्षि प्र्यालोचन किया गया १1 भाषाशास्त्रीय अध्ययन, ठुलनात्मक अध्ययन, छन्द-विमशं, व्याक्ररण-विमशं आदि-आदि विषयौ की विशद समीक्षा अपेक्षित दै । इसकी सम्पूर्तिं "आचारांग एक समीक्षास्मक् अध्ययन' में की जाएगी । ५ च सागर-सदन आचाय स्नुकछस्नो भहषवावाद १५ अगस्त, १९६९७ १. प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ १६८ । भूमिका मे प्रयुक्त मन्थ-सूची नुयोगृ्वार जभिघानरजेनद कोष ग्रभियसमयालंकार की टीका (बौद संस्कृत-ग्रन्य) माचारांग ('भायारो तह भायार चूला में मुद्रित) भचारा चू्ि भाचारांग नियुक्ति माचारांग वृत्ति भावद्यक चरि आवर्यक निर्य्ति उत्तराध्ययन ('दसवेभाल्ियं तह उत्तरञ्छयणाणि' मे मृद्रित) उत्तराध्ययन चू गोम्मटसार जयधवला जित्तकत्पसूत्र तत्त्वां भाष्य तित्योगाली तत्वार्थ राजवािक दशवेकालिक चूर्ण दशवेकालिक निर्युक्ति दशवेकालिक, हारिभद्रीय टीका घा (षट्खण्डागम) निशीथ निशीयं चूर्णि नंदी नंदी, मलयगिरि वृत्ति परिशिष्ट पर्वं पाणिनीय शिक्षा प्रभावक चरित प्रशमरति प्रकरण प्राकृत साहित्य का इतिहास मूलाराधना विशेपाविश्यक भाष्य व्यवहार भाष्य सदमवुण्डरीकर सत्र (डं नलिनाक्ष दत्तका देवनायरी संतरण, रायल एरियाटिक सोपायटी, कलकत्ता, सन्‌ १६५३) सम्मति तकं भ्रक्ररण समनग (संशोधित प्रति) समवायाग वृत्ति सवीर्थसिदधि सग्र्ृतांग चू सेक्रेड वुक्स भोफ़ दी ईस्ट, दी खं० २२,४५ हिमवत थेरावली जआथारो तह आथार-चृषा १, सत्थ-परिष्णा पद्मो उहेसो वीभो उषसो तइभो उदेसो - चउत्थो उदेसो पंचमो उहेसो चरो उदसो सत्तमो उटेसो २. रोग-विजभो पढमो उहेसो बीओ उहैषो तइओ उदेषो चउत्थो उदेसो पंचमो उटेषो तभो उदेमो चउत्थो उहेसो ४, सम्पत्ं प्ढमो उदहेसो बीमो उहेषो तओ उदेषो चत्थो उहेसो यारो : विसय-सूची जीवसंयस्‌-निसूबणे प° १-२२ जीवाणं अत्थित्थ-पदं १ पुढवीकाय-परूबणा-पद ३ आउकाय-पर्वणा-पं तेउकाय-परूवणा-एवं १० वेणस्तइकाय-प्रूवणा-पदं १३ तसकाय-परूवणा-प्दं १६ चाउकाय-परूवेणा-पद १६ सदादि वि्षयरोग-बिजय-निरुवणं २३-२० सयणासत्ति-निसेघ-पदं २३ संजमदठत्त-पदं २६ माणवनज्जण-अत्थनिस्सारता-पद रेप भोग-भोगी-अवाय-पदं ३१ लोगनिस्ता-पदं ३३ खोगं पड अममादूय-पदं ३६ उह-दुक्छ-तितिक्सा-निरुवणं २९४६ युत्त-जागरण-पदं ३६ सुत्ताणं दुक्लाणुभव-पदं भन दुक्छसहणमित्तेण समणो होड" त्ति निरूवण-पदं ४३ कसाय-पाव-विरई-संजम-मोक्ख-पदं ४५ सम्मत्त-निरूबणं ४७-५३ सम्मावायन्पदं-सम्मदंसण-प्दं ४७ भम्मप्पवादय-परिक्ा-पदं-सम्मनाण-पदं ४८ वारतवेण मोक्ख-निसेष-पद--सम्मतव.पदं ५१ - समासवयणेण नियमण-परं-सम्मचरित्त-पदं ५२ ९ भायारो : विसय-ुची ५. रोग-सरो खोग-सार-ततत-निरूबणं ५४-६५ पढमो उसो हिसग-विसयारंभण-एगचर-पदं ५४ बीभो उहेसो विरयाविरय-प्दं ` ५६ तद्रधो उदहेषो अप्रि्गह-निव्विण्णकामभोग-पदं ५७ ` चउत्यो उषो अन्वेतत-एगचर-पच्चवाय-पदं ५६ पंचमो उरसो हरउवमा-तवसंजमगुत्ति-निस्संगया-पदं ६१ चद उदेसो उम्मग्ग-रागदोसवन्जणा-पं ६३ ६. धुयं निस्संगया-निरूबणं ६६-७७ पटठमो उदहेसो सयण-विघृगण-पदं ६६ वीओ उदहेसो कम्म-विधृणण-पदं ६६ तमो उदेसो उवगरण-सरीर-विधूणण-पदं ७१ चउत्थो उषो गारवतिग-विचृणण-पदं ७२ पंचमो उहेसो उवसग्ण-सस्माण-विधूणण-पदं ७५ 9, > 1१ ८. बिमोक्खो निञ्जाण-निरवणं ७८-९७ पढमी उदेसो असषमणुन्न-विमोक्ल-पदं ७८ लीभ उदहृसो अकप्पिय-विमोक्छ-पिसेहण- सन्भावकहण-पदं ८० तओ उदेसो अंगचेट्ठं पड संक्रियस्स संकानिवारण-पदं ८३ चउत्यो उहेमो वेहाणस-गद्धपिदट-मरण-पदं स्‌ पंचमो उदहेसो गेकण्ण-मत्तपरिण्णा-पदं द चरो उदेषो एगत्त-इमिणि-मरण-पदं ८९. सत्तमो उदेमो भिक्ुगडिमा-पाओवगमण-पदं ६१ अटुमो उसो अणुपुन्वं विहारिणं सकेहण-अणसण-पदं ९४ ६. उवहाण-सुयं महावीराइण्णसाहणा-निसूबणं ९८-१०६ पढमो उदो भगवभो चरिभा-पदं श्छ बीमो उदेषो भगवभो सेज्जापदं १०१ तदमो देषो भगवो परीसह-उवसगग-पदं १०३ चउत्थो उहेसो भगवभो अतिगिच्छा-पदं १०४ आयार-चूला : विसय-सूची १. पिडेसणा ूत्रक्रमाक ए०१११-१६९ पटमो उदैसो १११-११७ सचित्त-संसत्त-असणादि-पदं १-२ १११ ओस्हि-आदि-प्दं ४-७ ११२ अष्णडत्यिय-गारल्थिय-सद्धि-पद ८-११ १९१६ अस्सिपदिवाए-पदं १२-१५ ११४ समण-माहणाइ-समृरिस्स-पदं १६-१८ ११६ कुल-पदं ` १६.२० ११७ बीभ उसो ११७-१२२ अदटूमी-भादि प्व-पदं २१-२२ ११७ कुल-पदं २३ ११ महामह-पदं २४-२५ ११६ संखडि-पदं २६.३० १२० तद्रओ उदैसो १२२-१२६ संखडि-पद ३१.३५ १२२ विचिगिर्डा-समावेष्ण-पदं ३६ १२५ सन्वभडगमायाए-पदं २७.४० १२५ कुर-पदं ४१ १२६ चउलथो उसो १२६-१३० संखडि.-पदं ४२-४२३ १२६ खीरिणीगावी-पद 1 १२८ मादृदूाण-पदं ४६४८ १ २६ ¢ आयार-चूखा : विसय-मूची पंचमो उदेसो १३०-१६५ मादटाण-पदं ४६ १२० विसमट्राण-परक्कम-पदं ५०.५१ १३१ वियाल-परक्कम-प्दं ५२ १३२ विसमट्ाण-परक्कम-पदं ५३ १३२ केटक-बोदिया-प्दं ५४ १३३ अणावायमसंलोय-चिद्ुण-पदं ५५५६ १३३ परिभायण-संभूजण-पदं ५७ १३४ पुन्वपविट्समणादि-उवाद्व्कमण-पदं ५०-६० १३५ चो उदेसो १२३५-१४२ मत्तट्ठ-समुदितपाणाणं उञ्जुगमण-पदं ६१ १३५ गाहावदकुल-पविट्स्स अकरणिज्ज-पदं ६९ १३६ पुरेकम्म-आदि-पदं ६३-८१ १३७ पिहुय-भादि-कोटुण-पदं ८२ १४० छोण-पदं ८ १४१ अगणि-णिक्छित्त-पदं त४-८६ १४१ सत्तमो उहेसो १४२-१४८ मारोहृड-पदं ८७-८६ १४२ मट्भलिन्तपदं ६०-६१ १४३ पुढविकाय-पदट्व्य-पदं ४: १४४ आउकाय-पट््य-पदं ६३ १४४ अगणिकाय-पडदट्व्यि-पदं €४-६५ १४४ अच्चुसिण-वीयण-पदं ६६ १४५ वणस्सद्काय-पदटिष्य-पदं ६७ १४६ तसकाय-पदटि्य-पदं = १४६ पाणग-जाय-पदं ९९-१०३ १४६ भयारचूछा - विसय-सूचौ ५ अद्रमो उषसो १४८-१५५ पाणग-जाय-पदं १०४ ९४८ गंघभाषायण.पदं १०५ १४६ सालुय-भादि-पदं १०६ ९५० पिणलि-आदि-पदं १०७ ९५० परंव-जाय-पदं १०० १५९ पवार-जाय-पदं १०६ १५१ सरडुय-जाय.पदं ११० १५१ मंधु-जाय-पदं १११ १५१ आमडाग-आदि-पदं ११२ १५२ उच्छु-मेरग-भादि-पं ११३ १५९ उष्पल-आदि-पदं १९४ १५२ अगवीय-आदि-पदं ११५ १५२ उच्छु-पदं ११६ १५३ रमुण-पदं ११७ १५४ अत्थिय-आदि-पद ११० १५४ कण-आदि-पदं ११६-१२० १५४ नवमो उदेसो १५५-१५९ पच्छाकेम्म-पद १२१ १५५ पुरापच्छासंधुय-करुल-पदं १२२१२९३ १५६ नेन्तत्थ-गिलाणाए-पदं १९४ १५७ मादृाण-पदं १९५-१२७ १५५ वहिानीहड-पृद १२८-१९६ १५६ दसमो उदैसो १६०-१६४ ादुट्ठाण-पदं १२००१३२ १६०५ वहु-उभ्मिय-धघम्मिय-पदं १३३-१३५ १६१ अजाणया छोणनदाणन्पदं १३६ १६३ ६ आथार-चूला : विसय एगारसंमो उरसो ` “ “ १६४-१६९ मादृटुाण-पदं | न मणुण्ण-भोयण-जाय-पदं १३९ ~`“ " " १९५ पिञ्णा-पाणेस्णा-पदं १८०-१५१५ -' ˆ १६५. २. सज्जा | ^ १७०-१६९ पमो उहेसो , १७०-१७९ उवक्सयए्सणा-पदं १२ . " १ अस्सिपडियाए-उवस्सय-पदं ३-६ " १७ ` समण.माहणाई समुदिस्स-उवस्सय.पदं ७६ ' ` १७२ परिकम्मिय-उवस्सय-पदं १०१ ` ` १७६ बिया निस्सारिय-उवस्सय-पदं १४.१७ ` १७४ अंतरिबख-जाय-उवस्सय-पदं १८१९ ` १७५. सागारिय-उवस्सय-पदं , २०-२६ १७६ नीभो उदहेसौ ॥ ॥. ८०.१० सागारिय-उवस्सय-दं २७३० १८० तण-पलालाच्छादय-उवस्सय-पद ३१-२२ शतम्‌ वभ्नियव्व-उवस्सय-पदं ३३-३४ १८२ उवटाभ-किरिया-पदं ३५ १८३ अभिक्कत-किरिया-पद ३६ १०८३ अणभिन्कंत-किरिया-पदं ३७ = श कञ्ज-किरिया-पदं .. ३८ , ष -महावस्ज-किरिया-पं ३९ ;-". शद्‌ -, ` सावम्न-किरिया-पदं , ;.- ५ ~ ५८६८ महासावड्ज-किरिया-पदं ;.; ; ४१ - , , ध्व अप्पस्ावन्ज-किरिया-पदं ४२-४.- ,} श््नत- आयारो : विषय-सूची ~ तदथ उदहेषो ' उवस्सथ-छरणा-पदं उस्सय-जयण-पदं , उवृस्सय-जायणा-पदं सेञ्जायर-णाम-गोय-पदं ` उवस्सय-विसुद्धि-पदं संयारगपदं “` सेंथारग-पडिमा-पदं संथारग-पञ्चप्पण-पदं उच्चार-पासवण-भमि-पदं सवण-विहिपदं ` । ३. इरिया - -पढमो उदेसो वासावास-पदं गामाणुगोम-विहार-प्दं नविा-विहार-पदं बीभो उद्ेसो नावा-विहार-पदं जधांतारिम-उदग-पदं “ ^ " दविसमटाण-परवकरम-पदं अभिणिचारिय-प्दं ˆ पाड्पिहिय-पदं तओ उरसो अगचेद्टाुववं मिऽ्फाण-पदं आयरिय-उवसफाय-सद्धिःविहार-पदं आहारातिभि्वा्-विहार-पदं ४५-४६ ४ ६९-५६ ५७-६९१ ` ६२-६७ ६०-६६ ७०-७१ ७२-७७ १-३ ५-१३। १४.२३ - २४-३६ २४-४० ४१-४३ ४१-४६ ` ४७.४६ ` ५०५१ ५२-१३ "७ १८८-१९९ १८८ १८६ १६० १६१ १६१ १६३ १६४ १६६ १६७ १६७ २००-२२० २००-२०द २०० २०९१ २०५्‌ २०८-२१३ र्ठ ई" २१० ५९९.९ २१२ २१३ २१४-२२० २९२ २१५ २१६ प भायार-चूला ; विसय पाडिपहिय-पदं ५४.४५८ २१६ वियाख-पदं ५६ २१९ आमोसग-पदं ६०-६२ २१६ ४. भासजातं २२१.२३३ पठमो उदेसो २२१-२२६ वह-अायार-प्दं १-२ २९१ सोडस-बयण-पदं ३-४ २२१ अणुवीड-णिट्ढाभासि-पदं ५ ररर भासाजात-पदं ६-६ २२३ सावज्ज-असावज्ज-पदं १०-११ २२३ आमतणीभासा-पदं १२-१५ २२४ विधि-निसिद्ध भासा-पदं १६१ २२५ बीमो उसो २२६२२३३ ककस-भासा-पदं १६ २९६ अकंकस-भाता-पदं २० २९७ सार्वेञज-असावज्जमापा-पदं २१.३७ २२८ अण्वीद-णिद्रा-भासि-पदं ३८-३६ २३३ ५. वत्थेषणा २३४-२५१ पढमो उदेसो २३४-२४६ वस्थजाय.पदं “ १-३ २३४ अद्धनोयण-मेरा-पदं , २३४ अरस्सिपडियाए-पदं द २३४ समण-माहणाड-समुरिस्स-वट्थ-पदं ६.११ २३६ भिक्सु-पडियाए-कीयमाद-पदं १२-१३ २२७ वत्थ-पदं १६.१५ २३७ आयार-चूला : विसय-सूवी ४ वत्थ-पडिमा-पदं १६-२१ २३८ संगार-वयण-पदं रर ४९ वत्थ-आघसण-पदं २३ २४१ वत्थ-उच्छोलग-पदं २४ २४२ वत्थ-विसोहण-पदं २५ २४२ वत्थ-पडलिहण-पदं २६.२७ २४३ सथंडाद-वत्थ-पदं एण २६३ अष्पंडाद््‌-वत्थ-पदं २६.३० रध्य वत्थ-पिम्म-पदं ३१.३४ २४४ वत्थ-आयावंण-पदं ३५-४० २६५ बीओ उदहेसो २४६-२५१ णो धोए्जा-रएञ्जा-पदं ४१ २४६ सव्वचीवरमायाए पदं ४२-द५्‌ २४६ पाडिहारिय-वत्थ-पदं ४६-४७ २४७ वल्थ-विककिया-पदं ४ २४६ आमोसंग-पदं ४९-५१ २४६ ६. पापएसणा २५२-२६९ पठढमो उसो २५२-२६४ पायजायद १ २५२ एरपाय-पद र्‌ २५२ अद्धजोयण-मेरा-पद ३ २५२ अस्सिपडियाए-पदं ४-७ २५२ समण-माहणाई-समुदिस्स-पाय-पदं ८-१० २५४ भिक्खु-पडियाए-कीयमाई-पदं ११-१२ २५५ पाय-पदं १३ ४९९६ पाय-वघण-१द्‌ १४ २५६ पाय-पडिमानपद १५.२० २५६ १०७ संगार-वयण-पदं पाय-अन्मंगण-पदं पाय-भधंसण-प्दं पाय-उच्छोलण्‌-प्दं पाय-विमसोहण-पदं सपाण-मोयण-पडिग्ह-पदं पडिगगृह-पडिकेहण-पदं सभंडाई-पाय-पदं अप्पंडाद-पाय-पदं पाय-परकिम्म-पदं पाय-आयावण-पदं नीमो उद्ेसो पडिगगह-पेहा-पदं सीभोदग-पदं उदरद्घ-पदं सपड्ग्गह-मायाए-पदं पडिहारिय-पडिगगह-पदं पायविककिया-पदं आमोसग-पदं ७. ओग्गह-पडिमा पमो उदेसो अदिन्नादाण-प्दं ओग्गह्‌-पदं नीओ उदेसो ओग्गहु-पदं अब-पदं आयार-चूला : विसय-च्ची २१ २२९ २३ ४41 २५ २६ २७.२८ २९ ३०-३१ ३२.२७ ३८.४३ ४४०४५ ४६ ४७.४९ ०-५३ ५४-२५ ५६ ५७-५६ २३.२४ २५-३१ [५ एश २५६ २९६ २६० २६० २६१ २६१ २६२ २६२ २६३ २६४-२६९ २६४ २६५ २६५ २६५ २६६ २६७ रदत २७०-२०८३ २७०-२७१५ २५७० २७० २७५-२यद्‌ २७्‌ २७६ आयार-चूला : विषये-मूची १६ उनच्छुःपदं ` ३२.३८ [ ससुण-पद देश ` ` ` ` एह मोमह-पदं ४६७ = २८० ओगगह-पडिमा-दं ४८५९ ` _ २८१ पचविह्‌-बोग्गह-पदं भ्य = २८३ ८. ठाण-सत्तिक्कयं _ __ २८४-२९२ उण-एस्षणा-पदं १९ , शद अस्मिपब्ियाएु-टाण-पदं ३६ _ , प समण-पाहणाद-समुदिस्स-खाण-पदं ७.६ , २८६ परकिम्मिय-लाण-पदं १०.१३ ` २८७ `` वहियानिस्सारिय-छोण-पद १४-१५ ˆ -रण् ठण-पडिमा-पदं १६.२१ ` सयारग-प्र्चप्पणपदं २९२२३ `` २८६ उच्वार-पासवण-पि-गदं २४२५ ` ` 7 २६० ठाण-विहि-पदं २६-३१ ` २६० ९. णिसीहिया-सत्तिक्भयं २९३-२९७ णिसीहिया-एसणा-पदं १-२ २६३ अस्सिपडियाए्‌ णिसीहिथा-पदं ३-६ २६३ समण-माहणा$-समुदिस्स-णिसीहिया-प्दं ५.६ २९५ परिकम्मिय-णिसीहिया-दं १०-१३ २६६ वहियानिस्सारिय-णिसीहिया-पटं १४-१७ २६७ १०. उच्चार-पासबण-सत्तिक्कयं २९८६३०४ पाय-पुरछग्‌-पदं १ २६८ थंडिल-पदं २.२६ २६४ ११. सद्‌-सत्षिक्कयं ३०५-३१० वितत-सदहकण्णसाय-पडिया-पदं १ ३०५ ९२ तत-सटह-कण्णसोय-पडिया-पदं ताल-सदहू-कण्णसोय-पडिया-पदं भुसिर-सदह-कण्णसोय-पडिया-पदं विविह-सह-कण्णसोय-पडिया-पदं सदरसत्ति-पदं १२. सूव-पत्तिक्कयं विविह-रूक-चर्वलुदंसण-पडिया-पदं रूवासत्ति-पदं १३. परकिरिया-सत्तिक्कयं ` १४, अन्युन्नकिरिय-पक्तिक्कयं किरिया-पदं पाद-परिकेम्म-पदं काय-परिकिम्म-पदं वण-परिकिम्म-पदं गंड-परिकम्म-पदं मछ-णीहुरण-पदं वाल-रोम-पदं चिक्ल-जूया-पदं पाद-पिम्म-पदं काय-परिकेम्म-पदं वण-परिकम्म-पदं गंड-परिकम्म-पदं मर-णीहरण-पदं वाल-रोप-पदं चिक्ख-जूया-पदं आभरेण-आविधण-पदं पाद-परिकिम्म-पदं तिगिच्छा-पदं भयारःचृका : विस्षय-पुचौ र्‌ ३० ३ ३०५ 1 ३५६ ५-१८ ३०६ १९.२० ३०६ २३११-३११५ १-१५ ३११ १६-१७ ३१४ २३१६-२२८ १ ३१६ २-१९१ ३१६ १२-१८ ३१७ १६.२७ ३१८ २८२४ २१६ ३५-३६ २३२१ ३७ ३२१ देण ३५९१ ३६४८ २३९१ ४६५५ ३२३ ५६-६४ ३२४ ६५-७१ देर्‌ ७२-७६ २३९६ ७४ ३९२७ ॥ + ३२९७ ७६ २३२७ ७७७ ३२८ ७६-८९ दशन आयारःचूला : विसय-ुची १३ १५. भावणा ३२९-३४ भगवभो-चवणादि-णकछत्त-पद १-२ ३२६ मन्म-पदं ३ ३२६ चवण-पदं ४ ३३० गन्भ-साहरण-पदं ५-७ ३२३० जम्म-पदं ८-११ ३३१ नासकरण-पएदं १२-१३ ३३२ वाल-पद १४ ३३३ विवाह-पदं १५ ३३३ नामपदं १६ ३२३ परिवारपदं १७-२४ ३३४ मार-पिरउ-कार-पदं २४ ३२५ अभिणिवखपणाभिप्पाय-पद २६ ३३६ देवागमण-पद २७ ३२७ अलकरण-सिपियाकरण-पदं 5 ३३७ अभिणिवेखमण-पद २६ ३४० छोय-पद २०-३१ ३४९१ संपादय-हण-पद्‌ ३२९ २४१ मणपञ्जवनाण-लद्धि-पद ३३ २३४२ अभिगहु-पद ३४ ३४२ विहार-पद ३५-३७ ३४३ केवलनाण-लद्धि-पद ३८-३९ ३४३ देवागपण-पदं ४०- ३४४ धम्मोवदेस-पदं ४१-४२ ३४५ सभावण-महव्वेय-पदं ४३-७० ३४५ १६. विषत्ती २५६-३५८ अणिच्च-पदं १ ३५६ पन्वय-दिद्ंत-दं २-३ ३५६ रुपप-दिट्ठत-पदं ४.८ ३५६ मुजेगतय-दिद्त-पदं ६ ३५७ समुद्‌-दिष्टंत-पदं १०-१२ ३९८ ॥ @ 2 संकेत-निदेदिका ये दोनो विन्दु पाठ-पतति के चोतक है पाठ-पू्ति के प्रारम्भ मँ भरे विन्दु (*) भौर उसके समापन में रिक्त बिन्दु (०) का संकेत करिया गया है। कोष्ठकवर्ती प्र्न-चिन्ह आर्यो मे अप्राक्च किन्तु पूर्वं पद्तिके अनुसार आवश्यक पाठ के अस्तित्व का सूचक दै ! देख, पृष्ठ १७४, सूत्र १४ क-पूवं पद्धति के अनुसार आदर्शो मे प्रासं किन्तु प्रस्तुत प्रकरण मे अनावदयक पाठको कोष्ठमे रखा गया है। देख, पृष्ठ १७१, , स्र ५। (जाव २।३६) (जाव) © ४ वृपा° ४५. अघ्षण व्‌ ४ ख-संग्रह गाधा भी कोष्ठके के अन्तर्गत रखी गर्‌ है । देखे, पृष्ठ १४१ सूत्र ए ग~--तेरहवे ओर चौदहवे अध्ययन मे भेद करने बे शब्द कोष्ठक मेरखेगएहै। कोष्ठकवरती संख्याक पूर्ति-आधारस्यल के अध्ययन ओर सूर्वाक के सुचक्र है । देखे, पृष्ठ १६९, सूत्र ५१ कोष्ठकरमे जावके अगेजो सूत्राक है, वे पूर्ति-आधार-स्थकके अध्ययन ओर सूत्रांक के सूचक है । देखे, पृ.ठ १८४, पूत्र ३७ एक ही सूत्र मे समान पाठ-पृ्धति के सूचक जावं शब्दो में सेएक की पूति की गई द तथा पुनराग्त जाव शब्द करै लिए कोष्ठक की प्रयोग किया गया हे । देखे, पृऽ १६७, सूत्र १४४। यहुदोया उससे अधिक शब्दो के स्यान पर पाठन्तरदहोनेका सूचक है । देखे, पृष्ठ १; सू २८। गहरे अक्षर पय-भाग के सूचक है । देखे, पृष्ठ ७, सूत्र ३५ पाठ के संङूगनन दिया गया एक बिन्दु अपणं पाठ का घोतक है । क्रास्र पाठ नही होने का चयोतक है। वृत्ति सम्मत पाठान्तर । चूण सम्मत पाठान्तर 1 ४ , । ¢ असणं वा पाणंवा खादमवा सामना अतण वा (४) | जआयारो पढमं अन्पयणं सत्थ-परिण्णा पढमो उदेसो १-ुयं मे आउसं 1 तेणं भगवया एवमक्ायं*-- इहमेगेसिं नो सन्ना भवद्‌, तंजहा- पुरत्थिमाभो वा दिसाभो अगो अहमंसि, दाहिणाओ वा दिसाभो आगो अहमंसि, परच्रत्थिमाओ वा दिसाओ आगगो अहमंसि, उत्तरामो बा दिसाओ अगभो अहमंसि, उड्ढामो वा दिसाभौ आगमो अहम॑सि, "अहे वा दिसागो"आगओ अर्हमसि, अष्णयरीजओ वा दिसाओ आगो अहमंसि, अणुदिसामो वा आगो अहरमसि । २-एवमेगेसि णो णातं भवति*- अस्थि मे आयां उववाइए,* णस्थि मे आया उववादइए, के अहु आसी ? के वा इभो चओ इह पेचा भविस्सामि ? १--० मखाय (ख) । रहे दिसाओ वा ( क, ख, ग, घ, च ), अहो दिसामो वा (छ) 1 3--अष्णयरोभो वा दिसाओ वा अणुदिसराओ ( क, ग, छ ) ; अन्नयरीमओो दिसाओ वा गणुदिस्ामो वा (घ) ; जन्तत्तराए दिसाओ वा अणुदिसाओ वा { च ) 1 ४-भूवति, त जहा (च ) 1 ५--भोववापिते ( कं ) ; उववादिए ( च ) । ६-पते (घ )। आयायै २-सेज्जं पणं जणेज्जा- सहु-सस्मदयाए,, ` पर-वागरणेणं, अण्णेसि वा अंतिए सोच्चा, तंजहा-- पुरत्थिमागो* वा दिसाओ आग अहमंसि, * दर्विखणाौ वा दिसाभो आगमो अहुमंसि, पच्चस्थिमाओ वा दिसाभो आगओ अहमंसि, उत्तराओ - वा दिसाओ आग अहमंसि, उड्ढामओ - वा दिसाभो आग अहमंसि, अहे वा दिसाओ आगो अहुमंसि, * अण्णयरीओ वा दिक्षाओ आगओ अहमस्सि, अणुदिसाओ वा आगो अहमंसि । ४-एवमेगेसि जं णातं* भवदइ-अस्थि मे आया उववाइए । जो इमाओौ "दिसाओ अणुदिसाओ वा'* अणुसंचरद्‌, ' सव्वाओ दिसाभो सब्वाभो अणुदिस्राओो जो अओ अणुसंचरद्र' -सोह्‌ं । ५-से आयावाई, खोगावाई, कस्मावाई, किरियावाई । ६-अकरिस्सं च'ऽह्‌, कारवेसुं* च'ऽह , करओ यावि समणुन्ने भविस्सामि । १-सम्मुतियाए ( च ) , समदियाएु ( क ), सहसमुदयाओ ( घ ); सहस्सषमृदए ( च ) 1 २--पुरित्थि ° . (षे, च ) । इ--णाण( छ), णाय (ध) । ४--दिमान्नौ वा अणृदिसाओ ( शख, छ ) , दिश्षाओ वा गणुदिस्नामो य (चुः वृ )। ५-अशुससरड , अणुसमरति ( चपा ) ; अणसतमरड ( वृपा ) । > (कःख,ग,चे)। -काराविस्स (क, ख, ग, ) , कारावेस्न ( च ) ; कारावेस्सं (ध) ` ॥ पढमं अज्फयणं ( वीभ्रो उदेसो ) ३ ७-एयावंति सब्वावंति छोगंसि कस्म-समारंभा परिजोगिंयव्वा भवंति । ८-अप्रिष्णाय-कम्मे" खलु अयं पुरिसे, जो इमाओ दिसामो वा अणुदिसाओ वा अणुसंचरडई, सध्वाओ दिसाओ सव्वाओ अणुदिस्राभो सहेति । अणेगरूवाओ जोणीमो संधेद,° विरूवरूवे फासे य* पडिसंवेदेइ" । ९-तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेहया । १ ०-दइमस्स चेव जीवियस्स-- परिवदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए)* दुक्ख-पडिषायहेड । ११-एयावंति सव्वावंति रोगंसि कम्प-समारभा पंरिजाणियव्वा भवंति । १२-जस्से ते छोगंसि कम्म-समारंभौ परिण्णाया भवंति, से ह मुणी परिण्णाय-कम्मे । -- त्ति नेमि । बीओ उदेसो १३-अटरं खोए परिजण्णे, दुस्संबोहे अविजाणए । १--० केम्मा (क, ध ) | २ संधावति (चू), सवेड ( चूपा } , सरावह ( वृषा ) 1 ॥ उ->(कः,श,म,घ,च)। ४--0 सचेतेड ( क ) ; ” सवेयड ( ध, च ) । - ५--० भोयणीए ( वृषा ) । भयारौ १४-अस्सिं छोए पत्वहिषए्‌^, तस्थ तत्थ पुटो पास, आतुराः परित्चेति | १५-संति पाणा एटोसिया । १६-रुज्जमाणा पुटो षास | १७-अणगारा सोत्ति एमे पवयमाणा । १८-जमिणं विरूवलूवेहि सत्थेहि पृढवि-कम्म-समारंभेणं पुढवि- सत्थं समारभेमाणे* अण्णे वणेगरूवै" पाणे विहिसति । १९-तत्थ खल भगवया पररिण्णा पतेया । २०-दमस्स चेव जीवियस्स-- परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणारए, दुक्ख-पडिधायहेडं 1 २१-से सयमेव पुढवि-सत्थं समारभ, अण्णहिं वा ॒पुढवि-सत्थं समारंभावेद, अण्णे वा पुटढवि-सत्थं समारभते समणुजाणदं । २२-तं से अहियाए, तं से अबोहीए । २३-से तं संबुडफमाभे, आयाणीयं सथुाए । २४-सोच्वा खलु भगव अणगाराणं वा अंतिएु इहमेगेसि णतं भवति- एस खलु गंथे, १--पच्चविए (च )। २- ° पत्सि (के, ध )। ३--आतुरा अस्सि ( वृ )। ४--समारटममाणा ( ख, ग, छ } 1 ध--अणेम ° (घ, च) } ६--समारभमाणे (घ) 1 ७-> (ध ) । पढमं अज्फयगं ( बीभ उदेसो ) ५ एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए* । २५-इच्चत्थं गदिए लोए । २६-जमिणं "विखूवरूवे्हि सत्येहि' पुढवि-कम्म-समारंभेणं पुढवि- सत्थं संमारंभमाणे* अण्णे व'णेगरूवे पाणे विहिसई । २७-से बेमि- अप्येगे अंधमन्मेः, अप्पेगे अंधमच्छे" । २८-अप्पेगो पायमन्भे, अप्पेो पायसच्छे, अप्पेगे शप्फमन्भे अप्पेगे गुप्फमच्छे, अप्पेगे जंघमन्भे, अप्मेगे जंघसच्छे, अप्पेगे जाणुमन्भे' अप्येगे जाणुमच्छे, अप्येगे ऊरुमन्मे, अप्पेगे ऊरमच्छे, अप्येगे कडिमन्भे, अप्पेगे कडिमच्छे, अप्पेगे णाभिमन्भे, अप्पेगे णाभिमच्छे, अप्पेगे उयरमन्भे, अप्येगे उयरमच्छे, अप्पेगे पासमन्भे, अप्येगे पासमच्छे, अप्पेगे पिद्रमन्भे", अप्पेगे पिट्रमच्छे, अप्पेगे उरमम्भे, अप्येगे उरमनच्छे, १-निरए ( केखःधः च) 1 २- ° ख्वेसु सत्येसु ( कः च, छ ) ३--समारभेमाणे (घ ) । ४-अत्त० (च)। प~~ ° मच्चे (घ )। ६-पूप्फमन्मे जप्येगे एवं जंघापुप्फगमन्मे अप्पेगे जाणुमन्मे ( च ) 1 छ-पुष्ि ° (क); पिहि° (ख,य,च); पह्ि° (ध) अप्पेगे हिययमन्भे, अप्पेगे थणमन्भे, अप्पेगे खेधमव्मे, अप्पेगे बाहुमन्भे, अप्येगे रहत्थमन्भे, अप्पेगे अगरुलिमन्भे, अप्पेगे णहमन्मे, अप्पेगे गीवमन्भे, अप्पेगे हणुयमन्मे', अप्पेगे होट्रमन्भे", अप्पेगे दंतमन्भे, अप्पेगे जिन्भमन्भे, अप्पेगे तालुमन्मे, अप्येगे गलमन्मे, अप्पेगे गंडसन्मे, अष्पेगे कण्णमन्भे, अप्पेगे णासमन्भे*, अप्पेगे अच्छिमन्भे, अप्पेगे भमूहुमन्मे, अप्पेगी गिडालमन्भे, अप्पेगे सीसमन्भेः, २९-अप्पेगे संपमारए, १--हणु ? (क, घ, च, छ )। २--उद्८ ° {घ)। दनक ° (घः च)। ४--सिर० (च)) अप्पेगे हिययमच्छे, अप्पेगे यणमच्छे, अप्पेगे खंधमच्छे, अप्पेगे बाहुमच्छे, अप्पेगे हत्थमच्छे, अप्पेगे अंगुलिमच्छे, अप्पेगे णहुमच्छे, अप्पेगे गीवमच्छे, अप्पेगे हणुयमच्छे, अप्पेगे दोट्रमच्छे, अप्पेगे दतमच्छे, अप्पेगे जिन्भमच्छे, अप्पेगे ताटुमच्छे, अप्पेगे गलमच्छे, अप्पेगे गंडमच्छे, अप्पेगे कण्णमच्छे, अप्पेगे णासमच्छे, अप्पेगे अच्छिमच्छे, अप्पेगे भमुहमच्छे, अप्पेगे णिडालमच्छे, अप्पेगे सीसमच्छे । . अप्पेगे उदहवषए । आयार पटम्‌ अज्य { तद्म उदसौ ) र ३०-एत्य सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्यात्ता भवंति । ॐ ३१-एत्य सत्य असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाता भवंति । ३२-तं परिण्णाय मेहषा-- नेव सयं पुष्टवि-सत्थ समारंसेजा, णेवण्णेहि पुढवि-सत्थं समारभावेज्ञा, णेवण्णे पुढवि-सत्थं समारभते समणुजाणेजा । ३३-जस्ते ते पूढवि-कम्म-समारभाः परिष्णाता भवति.सेहु मुणी परिण्णात-कम्मे । --त्ति वेमि। तदो उदेसो ३४-से वेमि- सेः जहावि अणगारे उल्जुकेडे, णियागृपडिवण्णेः, अमायं कूव्वमाणे वियाहिए । ३५-जाए सद्धाए णिक्डन्तो । - तमेवअणुपाङ्या" । "विजित विसोत्तियं'* । ३६-पणया वीरा महावीहि । १-- ° काय ° (च) २->< (क, छ ) । दे- निकाय ° ( च्‌ वृप{ } । ४-- तामेव ° (घ, च ), ° अणुपालेन्जा ( वृ ) । ५--तिन्नोहुऽसि विसोप्तिव { चू ) ; विजहितता व्व सोय ( वृषा ) ; विजहित्ता ` (ख,ग, घ्‌, च) । अआयारो ३७-छोगं च आणाए अभिसमेच्ा" अकुतोभयं । ३८-से बेमि- णेव सयं रोगं अन्भाद्क्खे्ा, णेव अत्ताणं अन्भाद्क्खेज्ा । जे छोयं अन्भादइक्लदइ, से अत्ताणं अन्भादक्खद । जे जत्ताणं अन्भादक्खद्‌, से रोयं अन्भादक्सं । ३६-रज्जमाणाः पुटो पास । ४०-अणमारा मो'त्ति एगे पवयमाणा 1 ४१-जमिणं विरूवस्वेहि सत्थेहि उदय-कम्म-समारभेणं उदय- सत्थं-समारंभमाणे अण्ण व'णेगरूवे° पाणे विहिसति । ४२-तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिता । ४२-दइमस्स चेव जीवियस्स-- परिंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्ख-पडिघायहेडं । ४४-से सयमेव उदय-सत्थं समारभति, अण्णेहि वा उदयस्थं समारंभावेति, अन्ने वा" उदय-सत्थं समारभते समणुजाणति । ४५-तं से अहियाए, तं से अबोहीए । ४६--से तं संबुञ्ममाणे, आयाणीयं सञु्ठाए । १- ° समिच्वा (ख, घ ) २-एस आढत्त पुढविक्राइय उदटेसयगमेण श्रुवगडिया सत्तत्थतो भाणियन्वा, अप्पेे अधमस्मे ( च )। इ३-अणेग ° {गः घ)। ४->९ ( ख, स ) । पदं मन्फयणं ( तदम उदेसो , ४ ५७-सोच्चा खलु भगवो अणगाराणं वा* अंतिए इहमेगेसि णायं भवति-- एस खलु गथे, एस द मेह एस खल मर, एस खलु णरए । ४८-ङ्च्वतथं गदिए रोष । ४९-जमिण 'विखूवस्वेहि सल्थेहि‡ उदय-कम्म-समारभेणं उदय- सत्थं समारभमाणे अण्णे बणेगख्वे* पाणे विहसति । ५०-से बेमि- अष्येगे संधमन्मे, अप्येगे अंधमच्छे 1 ५१--अप्पेगे पायमन्भे, अप्पेगे पायमच्छे । ( १।२८ } ४२-अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उह्वए 1 ५३-से बेमि-- संति पाणा उदय-निस्सिया जीवा अणेगा । ५४-इहं' च खट भो ! अणगाराणं उदय-जीवा वियाहिया । ५५--सत्थं चेत्थ अणुवौद्‌ पास" । ५६-शुढो सत्थं“ पवेहयं । ५७-अदुबा अदिन्ादाणं । १८ (घ, च), २ (कःखे,ग)) ३-- ° रूवेसु सत्यु ( च ) । ४-अ्णेग ° (घ, च)] ५--इह्‌ (छ) । ६--येत्व (के, ख, छ )। ७--पास (धःच)। म-युढोऽपास ( वपा ) । १९ आयासे ` ‰ठ-कप्पड्‌ णे," कप्पद्‌ णे पाठ, अदुवा विभरसाए । ५९-युढो सत्थेहि विख्टरति । ६०-एत्थऽवि तेसि णो णिकरणापए । ६१-एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरभा अपरिण्णाया भवंति ६२-एत्थ सत्थं असमारभमाणस्स इच्चेते आरभा परिण्णाया भवंति। ६३-तं परिण्णाय मेहाची र णेव सय उदय-सत्थं समारंमेज्ना, णेवन्नेहि उदय-सत्थं समारंभावेज्ा, उदय-सव्थं समारभंतेऽवि अण्णे ण समणुजाणेजना । ६४-जस्ते ते उदय-सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति, से ह मुणो परिण्णात-कम्मे । -्ति वेमि । चउत्थो उदेसो ६५- से बेमि- णेव सयं लोगं अन्भाङक्खेज्जा, णेव अत्ताण अन्भाद्क्खेज्जा । जे लोगं अन्भादक्खई, से अत्ताणं अन्भाद्क्खद्‌, जे अत्ताण अन्भादक्खद्‌, से लोग अन्भाइक्खडइ । ६६-जे दीहलोग-सत्थस्स खेयन्ने, से असत्थस्स खेयन्ते । जे असत्थस्स खेयन्ते, से दीहलोग-सत्थस्स खेयन्ने । ६७-चीरेषिं एयं अभिभूय दिटटं । संजतेहि, सया जतेहि, सया अप्पमत्तेहि । १-णो (घ)। २-सेय मिण (च)। पटम्‌ अज्फयण ( चउत्यो उहेसो ) १९ ६८-जे पमत्तं गुणद्िए,* से ह दंडे पचति । ६&-तं परिण्णाय मेहावी-- इयाणि णो जमहं पुव्वमकासी पमाएणं । ७०-रुज्जमाणा पुटो पासं । ७१-अणगारा मो'त्ति एगे पवयमाणा । ७२-जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहि अगणि-कम्म-समारभेणं अगणि- सत्थं समारंभमाणे, अण्णे व'णेगरूवे पाणे विहिसति 1 ७३-तत्थ खेल * भगवया परिण्णा पवेदतता । ७४-इमस्स चेव जीवियस्स-- परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्ख-पडिघायहेख । ७४-से सयमेवे जगणि-सत्थ समारभई्‌, अण्णेहि वा अगणि-सत्थं समारभवेड, अण्णे वा अगणि-सत्थं समारभमाणे समणुजाणड । ७६-तं से अहियाए, तं से अबोहीए । ७७-से तं संबुज्फमाणे, आयाणीयं सथुदाए । ७०८-सोच्चा खलु भगवमो अणगाराणं वा अंतिएु इहमेगेहि णायं भवति-- एस खदु गथे, एस खु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए । ` णक) रर (बना 7 २--घुवगडिव भणिङण जाव से वेमि ( चू ) । ३--> (च ) ¦ १९ आयारौ ७९-इचत्थं गदिषए लोए । ८ ०-जमिणं विरूवरूबेहि सत्थेहि अगणि-कस्म-समारंभेणं अगणि-सत्यं समारंभमाणे अण्णे व"णेगरूवे पाणे विहसति । <१-से बेमि-- अप्पेगे अंधमन्भे, अप्पेरे अंधमच्छे ¦ ८ २-अप्पेगे पायमन्मे, अप्पेगे पायमच्छे । (११२८) = ३-अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उह्वए । ८४-से बेमि- संति पाणा पुढवि-णिस्सिया, तण-गिस्सिया, पत्त-णिस्सिया, केट-गिस्सिया, गोमय-णिस्सिया, कयवर-णिस्सिया संति संपातिमा पाणा, आच संपयंति य' । अगणि च ख पुष्टा, एगे संधायमावज्जंति ॥ = ‰-जे तत्थ संधायमावज्जंति, ते तत्थ परियावज्जंतिः । जे तत्थ परियावज्जंति, ते तत्थ उदायेति। ८६-एत्थ सत्थं समारभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भर्वति । ८७--एत्थ सत्थं असमारंममाणस्स इच्चेते आरंमा परिण्णाया भवंति । <८-तं परिण्णाय मेहवी-- नेव सयं अगणि-सत्थं समारंभेजा, नेवन्ने हि अगणि-सत्थं समारंभावेज्जा अगणि-सत्थं समारंभमाणे अन्ते न समणु जाणेज्जा । १ (कःखःग, च }1 २-- ° विज्जति (क, ख, छ )} 1 पढमं अञ्मयणं ( पंचमो उदेसो ) ९३ ८९-जस्से ते अगणि-कम्म-समारेभा परिण्णाया भवंति, से हु सुणी परिण्णाय-कम्मे 1 -- त्ति बेमि। पंचमो उदेसो ९०-तं णो" करिस्सामि सथडाए । ९१-मंता मह्मं अभयं विदित्ता | ९२-त जे णो करए, एसोवरणए, एत्थोवरणए, एस-- अणगारे त्ति पवद । ९३-जे गुणे से आब्र, जे आवहं से गुणे । ९४--उड्ढं अहः तिरियं पारणं" पासमाणे स्वादं पासति'", “सुणमाणे सदां सुणेति'* । ९५-उडढ़ं अहं तिरियं पारणं मुच्छमाणे स्वसु मृच्छति, सदेसु आवि । ६६-एस रोए चियाहिए । ९७--एत्थ अगृत्ते अणाणाए £८-पणो-पुणो गुणासाए, वंकसमायारे, पमत्त मारमावसे । १-ठेणो(च)। भ्मत्ता (क, घ, च }। ३-अव (व); अहेय (ख) 1 ४ पा्षियाइं दरिसेति (चू) ; पस्समाणो ख्वाद' पास ( सूषा ) 1 ५--सुणिमाणि सुणेति (च), सुणमाणो सदां सुणेति। एवं गंधरसफासेहि माणियव्व (चपा } । ् न अ: ४ आयारो -8९-ङुञ्जमाणा पुटो पास । १० ०-अणगारा मो"त्ति एमे पवयमाणा । १०१-जमिणं विरूवसरूवेहिं सत्थेहि वणस्सद-कम्म-समारंमेणं वणस्सइ-सत्थं समारभमाणे अण्णे व'णेगरूवेः पाणे विहसति । १० २-तत्थ खल भगवया परिण्णा पवेदिता । १० ३--इमस्स चेव जीवियस्स-- परिवंदण-माणण-पुयणापु, जाती-मरण-मोयणाए, दुक्ख-पडिधायहेउं । १०४--से सयमेव वणस्सइ-सत्थं समारभड, अण्णेहि वा वणस्सद- सत्थं समारंभावेद्‌, अण्णे वा वणस्सद-सत्थं समारंभमाणे समणुजाणडई । १०५-तं से अहियाए, तं से अबोहीए । १०६-से तं संबुज्फमाणे, आगाणीयं सषदराए्‌ । १०७--सोच्वा भगवओ, अणगाराण वा अंतिए इहमेगेसि णायं भवति-- एस खलु ग॑थे, एस खलु महि, एस खलु मारे, एस सलु णिर्‌ ! र " {-ुव गव्या (चू )। ` २-अणेम ° (खः, च)। ) उदो १५ १०८-इच्चस्थं गदिए लोए । । ०९-जमिणं- विरूवह्वेहि सत्थेहि वणस्सद-कम्म-समारभंण वणस्सद-सत्थं समारभेमाणे अण्णो व्णेगरूवे पाणे विहिसति' । ११०-से वेमि-- अप्येगे अधमन्भे, अप्पेगे अधमच्छे 1 १११-अप्पेगे पायमन्भे, अप्पेगे पायमच्छ । ( १।२८ } ११२-अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उदवए । ११३२-से वेमि -- इमपि जाद््-धस्मय, एयपि जाइ-धम्मय । मपि वुडिढ-धम्मय, एयंपि वुडिढ-धम्मयं । इमंपि चित्तमतय, एयंपि चित्तमतयं । इमपि छिन्न मिलात्ि, एयंपि छिन्न मिलाति। इमपि आहार, एयपि आहारगं । इम॑पि अणिच्चयं, एयंपि अणिच्वयं । इर्मपि असासय, एयंपि असासयं । इमपि चयावचदयं एयंपि चयावचदयं इमंपि त्रिपरिणामधम्मयं एयंपि विपरिणामधम्मयं । ११४-एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरमा अपरिण्णाता भवंति ] ११२५-एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति ?--विहमति (ख, य } । अशथ प्रतिमाति । र चेभाचचदय (तू, क, घ्‌, च. छ) , चयाक्चेय { खे, ग }। ॥ १६ अयाये ११६-तं परिष्णाय मेहाबी-- णेव सयं वणस्सद-सत्थं समारभेज्जा, णेवण्णेर्हिं वणस्सद-सत्थं समारभवेज्ना, णेवणे वणस्सद-सत्थं समारभते समणुजाणेला । ११७-जस्सेते वणस्सद-सत्थ-समारभा परिण्णाया भवंति, से ह॒ सुणी परिण्णाय-कम्मे । -- त्ति बेमि। छट्टो उदैसो ११८-से बेमि-संति.मे तसा पाणा, तंजहा--अंडया, पोयया, जराउया, रसया, संसेयया, संमूच्छिमा, उन्भिया, उववाइया । ११९-एस-संसारेत्ति' पवुचति । १२०-मंदस्स अवियाणभो । १२१-णिज्फादत्ता पडिकेहित्ता पत्तेयं परिणिन्वाणं । १२२-सव्वेसि पाणाणं, सव्वेसि भूयाणं, सव्वेसिं जीवाणं, सन्वेसिं सत्ताणं, अस्सायं* अपरिणिव्वाणं महन्भयं दुक्वं-ति नेमि । १२३-तसंति पाणा पदिसोदिसासु य । १२४-तत्थ तत्थ पुटो पास, आरा पएरितवंतिः । १--ससारित्ती (क, ख )। स-असायं ( क्वचित्‌ ) 1 ३-मट्ा ते जाव परितावेतिः धुवगडिया (च ) । पदम अन्भयण ( छो उदेसो ) १७ १२५-संति पाणा पुटोसिया । १२६-रज्जमाणा पुटो पास । १२७-अणगारा सोत्ति एगे पवयमाणा । १२८-जमिणं विरूवरूवेहि सत्थेहि तसकाय-समारंभेणं तसकाय-सत्यं समारंभमाणे अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिसति । १२९-तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेडया । १३०-इमस्स चेव जीवियस्स- परिवंदण-माणण-पूयणाए, -मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघाग्रहेडं 1 १३९-से सयमेव तसकाय-सत्थं समारंभति, अण्णेहिं वा तसकाय- । सत्थं समारभावेदइ, अण्णे वा तसकाय-सत्थं समारभमाणे समणुजाणडई्‌ ! १ र-तं से अदहियाए, तं से अबोरहीए्‌ । ९३-से तं संबुज्फमाणे, आयाणीयं सथुहाए । ३४-सोच्चा भगवओ, अणगाराणं वा अंतिए"* इहुमेगेसि णायं भवद्‌-- एस खलु गये, एस खलु मोहे, एस खदु मारे, एस खलु णरए । । १३५-इचत्थं गदिए रोए | = १-वि (घ) ।- ` -- ----~. २->८ (क ) । सर्वच नास्ति । १८ आयारो १३६-जमिणं विशूवसरूवेहिं सत्थेहि तसकाय-समारंभेणं तस्षकाय- सत्थं समारभमाणे अण्णे व'णेगर्वे पाणे विहिसति । १२७-से बेमि- अप्पेगे अधमम्भे, अप्पेगे अंधसच्छै। १३८-अप्पेगे पायमन्भे, अप्पेगे पायमच्छे । (१।२८) १२९-अप्पेगे संपमारणए, अप्पेगे उद्‌वए । १४०-से बेमि- अप्पेगे अच्चाए वहति, अप्पेगे अजिणाए वहंति,“ अप्येगे मंसाए वहंति, अप्पेगे सौणियाए वहंति, «^ 4 ° अप्पेगे हिययाए वहति, अप्पेगे पित्ताए वहति, ~~ 1 अप्पेगे वसाए वहंति, अप्पेगे पिच्छाए वहंति, अप्पेगे पुच्छाए वहंति, अप्पेगे बालाए वहंति, अप्पेगे सिगाए वहति, अष्पेगे विसाणाए वहंति, अप्पेगे द॑ताए वहंति, अप्पेगे दाढाए वहति, अप्पेगे नहाए वहति, अप्पेगे ण्ारुणीए वहति, अप्पेगे अष्रीए्‌ वहति, अप्पेगे अह्टिमिजाए वहंति, अप्पेये अद्राए वहंति, अप्पेगे अणष्राए ° वहंति, अप्पेणे दहिसिसु मेत्ति वा'` वहति, अप्येगे हिसंति मेत्ति वा वहति, अप्पेगे ईहिसिस्संति मेत्ति वः वहंति । १४१-एत्य सत्थं समारभमाणस्स इच्वेते आरमा अपरिण्णाया | भवंति । 4 | | र द. १--हणति ( च ) , वधति ( कं ) › हिंसति ( घ ) । २--दितयाए (क, च } । † ३--हिरसिसु इ्त्तिवा (ख,ग) एम पढम अज्प्यण ( सत्तमो उदेसो ) (४ १४२-एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति । १४३-तं परिण्णाय मेहावी-- णेवसयं तसकाय-सत्थं समारभेज्जाः णेवण्णेहि तसकाय-सत्थं समारभावेज्जा, णेवण्णे तसकाय-सत्थं समारभते समणुजाणेज्जा । १४४--जस्मसे ते तसकाय-सत्थ-षमारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुणी परिष्णाय-कम्मे । ---्ति बेमि । सत्तमो देषो १४१५- पटू एजस्छ'" दुगछ्णाए । १४६-भायंक-दंसी 'अरियं"ति नच्चा । १४७-जे अज्पत्थं जाणइ, से बिया जाणइ । जे बिया जाणइ, से अज्छत्यं जाणइ । १४८-एयं तुरमन्नेसिं | १४९-इह' संति-गया दविया, णावकंखस्ति जीबिरं३ । १५०-रऽ्जनाणा" पुटो पास । १५१-अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा । १५२-जमिणं विूवस्वेहिं सत्येहि वाउकम्म-समारभेणं वाउ-सत्थं समारभमाणे अण्णे वणेगूवे पाणे विहिसति । १ पह य एगस्स ( वृ ) › पमं एयस्स (क ) 1 इति (चपा)! द-जोविव (क,छ)! ४-अ्भा परिजुण्णा आकपिता जाव आतुरा परिताविता व गडिया ( चू )। २० आयारो १५३-तत्थ खलु भगवया परिण्णा पेद्या । १५४-इमस्स चेव जीवियस्स- परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्ख-पडिघायहेठं । १५५-से सयमेव वाउ-सत्थं समारंभति, अन्नेहि वा वाउ-सत्थं समारंभावेति, अन्ने वा वाउ-सत्थं समारभते समणुजाणई । १५६-तं से अहियाए, तं से अबोहीए । १५७-घे तं संबुरफमाणे, आयाणीयं सखडाए । १५व-सोच्वा भगवओ, अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसि णायं भवइ-- एस खलु गये, एस सलु मोहे, एस खलु मारे, एस खदु णिरए । १५९-छ्च्चत्थं गदिए सोए । १६०-जमिणं विरूवरूवेहि सस्थेहि वाउकम्म-समारंभेणं वाउ-सत्थं समारंभमाणे अण्णे व'णेगशूवे पाणे विहिंसति । १६१-से बेमि- अप्पेगे अंधमन्भे, अप्पेगे अंधमच्छे । १६२-अप्पेगे पायमन्भे, अप्पेगे पायमच्छे । (१।२८) १६३-अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उदहुवए । १६४-से बेमि- संति संपाइमा पाणा, आह्व संपयंति य । फरिसं च खड पुटा, एभे संघायमावन्जंति । पढमं अन्मयणं ( सत्तमो उदेसो ) ९१ १६५-जे तत्थ संवायमावन्जंति, ते तत्थ परियावज्ज॑ति, जे तत्थ परियावन्जंति, ते तत्थ उदायंति । १६६-एत्य सत्थं समारंभमाणस्स॒इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति 1 १६७-एत्थ सत्थ असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति । १६८-तं प्रिष्णाय मेहावी-- णेव सयं वाउ-सत्थं समारंभेज्जा, णेवण्णेहि वाउ-सत्थं समा- रंभावेज्जा, णेवन्ने वाउ-सत्थं समारभते समणुजाणेज्जा । १६९-जस्से ते वाउ-सत्य-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हू भुणी परिण्णाय-कम्मे । --त्ति बेमि । १७०-एत्थं पि जाणे उवादीयमाणा । १७१-जे आयारे न रमंति। १७२-आरंभमाणा विणयं वयंति । १७३-छंदोचणीया अञ्फोचवण्णा । १७४-आरभसत्ता पकरेति संगं! । १७५-से वसुम सव्व-समन्तागय-पन्नाणेणं अप्पाणेणं अकरणिज्जं पावं कम्मं । १७६-तं* णो अन्नेसि । १--'सआर भसत्ता पकरे ति सग, अस्य पारस्यानन्तर चूर्णयां निम्न. पाठ उपलम्यते- एत्थ वि जाण अणुवाइयमाणा, जे आयरे रमति, अणार ममाणा विणयं वदति, पसत्थ छदोवणीता, तत्येव अज्फोववण्णा आर भे असत्ता णो पगरेति सगः! २-> (ख,ग्‌,छ)) २२ आयार १७७-तं परिष्णाय मेहावी-- णेव सयं छज्जीव-णिकाय-सत्थं समारभेज्जा, णेवन्नेरहि छज्जीव-णिकाय-सत्थं समारंभावेज्जा, णेवन्ते छन्जीव- णिकाय-सत्थं समारभते समणुजाणेज्जा । १७८-जस्से ते छज्जीव-णिकाय-सत्थ-समारभा परिष्णाया भवंति, से ह सूणी परिण्णाय-कस्मे । --त्ति नेमि । बीं अच्भयष खोगविजओ पटमो उदृसो १-जे गुणे से मूलद्णे, जे मूट्राणे स गुणे 1 २-इति से गृणद्री महता परियावेणं पणो पुणो" क्से पमत्ते- मायामे, पियामे, भाया मे, भद्णी मे, भनज्जा मे, पुत्ता मे, धूथा मे, शुण्डा मे", सहि-सुयण-संगथ-संथुया मे, “विवि(चि?)त्तोवगरण-परियटण-भोयण-अच्छायणं" मे, इच्चत्थं ` गदिए रोए--चसे पत्ते । ३-अहो य* राओ य परितषप्पमाणे, कालाकार-सयुखखाई, संजागयटी अटडालोभी, आलुपे सहसक्कारे”, विणिचिरटचित्त ', एत्थ स्थे ' ° पुणो पुणो । १->(क.ख,म,घ,च)। र्--पमक्ति, त-जहा ( क,ख,ग,च.च } । ३- सुण्हा मे, सहाया मे ( घ )। ४--विचित्तो ° ( खश्च) | प--च्छायण (क्‌ ) , अच्छादयण ( चू) ६ -ईइच्चत्थ से (क) , इच्चटय इत्य से ( ग ) , इच्चत्य एत्थ से ( च } । ७--> ( क,ख.ग,च ) । म--सहसाकारे ( कखग"छ ) , सहृस्सकारे ( च ) 1 °च (चू,वृ'च)। १०--सत्ते ( च, वृषा ) । 31 आयासे ४--अप्पं च खलु आं इहमेगेसि' माणवाणं, तंजहा- सौय-परिण्णाणेर्हिः परिहायमाणेहि, चक्खु-परिण्णाणेहि परिहायमाणेरहि, घाण-परिष्णाणेहिं परिहायमाणेहि, रस-परिण्णाणेहि परिहायमाणेरहि, फास-परिण्णाणेहिं परिहायमाणेहि । ५-अभिक्कत* च खलु वयं स पेहाए* । ६-तओ से एगया मुह-भावं जणयंति" । ७-जेहि वा सदधि संवसति, ति वा ण“ एगया णियगा तं पुव्विं परिवयंति, सो वा ते णियगे पच्छा परिवएन्ना । =-नाङं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा । तुमं पि तेसि नारं ताणाए वा, सरणाए वा । ९-से ण हृस्साए, ण किंड़ाए, ण सतीए, ण विभूसाएु । १०-दच्चेवं समृदटिए 'अहोविहा राए' । ११--अंत्तरं च खलु इमं सपेहाए*- “धीरे मृहूत्तमवि णो पमायए । १२-वयो ° अच्चेदइ जोव्वणं व । १ ३-जीविए इह जे पमत्ता । १- इधस्मेकेसि चि ( च )) २-- ° पण्णाणेण ( चू, क ) । ३--अहिक्कत ( कं ) › अहिकत ( घ ) , अतिकतं ( च ) । ४--“संपेहाए' ( ख, ग, च ) अशुधमिदम्‌ 1 भ--जणयति ( वु ) , जणवति ( वृषा) 1 ६--सवसति (घ, छ ) 1 छ--ते वण (कः,छ) ; तेतिण (ध); तएवण(वु)। -हासाए (क, ख, ग, छ ) 1 &--सपेहाए (ग, घ, छ ) २०--बमो (क, ख, ग })। बी अज्मयणं ( पढमो उसो ) २५ १४-से हंता, छन्ता, भेत्ता, रुंपित्ता, विलुप्ता, उद्वित्ता, उत्तासदइत्ता 1 १५-अकडं करिस्सामि"त्ति सण्णमाणे । १६-जेहि वा सदधि संवसति ते वाण", एगया णियगा त पुच्विं पोसेति, सो वा ते नियगे पच्छा पोसेज्जा । १७-नारं ते तव ताणाए का, सरणाए वा 1 तुमंपि तेसि नाकं ताणाए वा, सरणाए वा । १८-उवाइय-सेसेण> वा सन्तिहि-सननिचजो कज्जद.* इहमेगेसि असंजयाणं* भोयणाए । १९-तओ से एगया रोग-समूप्पाया समुप्पज्जंति । २०-जेहि वा सदधि संवसति ते वाण एगया णियगा तं* पुव्वि परिहरति, सो वा ते णियगे पच्छा परिह्रेज्जा 1 २१-नाङं ते त ताणाए वा, सरणाए वा । तुमंपि तेसि नालं ताणाए वा, सरणाए वा २२-जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं* सायं 1 २३-अणभिक्कतं“ च खलु बयं स पेहाए"“ । २४-खणं जाणाहि पंडिए ! तएव वाण(वृ),तेवण(ख)। २्-उवादीत ० (कःच)। -सेसतेण (क,खःघ, च, छ)। ४~किञ्जड ( ख, ग, छ ) 1 भ--माणवाण (च) 1 €> (क, ख, ग, घ ) 1 ७-पत्तेय (क, ख, ग, घ, च ) । -अणतिक्कतं { कं ) ! &--सपेहाए ( छ ) । १३२ सूत्र वृत्तौ स प्रेध्य' अत्र च सम्रेट्यः कथमिदम ? "न ॥ २६ + यारो २५-जाव सरौय-पण्णाणा अपर्हीणाः, ° जावे णेत्त-पण्णाणा अपरिहीणा, जाव घाण-पण्णाणा अपरिहीणा, जाव जीहु-पण्णाणा अपरिहीणा, जाव फास-पष्णाणा अपरिहीणा । २६-्च्चेतेहि विरूवरूवेहिं पन्नाणेहि अपरिहीणेहि ` आयदटं सम्मं समणुवासिज्जासि । --त्तिबेमि। वीथो उदेषो २७-अरदं आद्रे से मेहावी 1 २८-सणंसि मूक्के 1 २९-अणाणाए 'ुद्धा वि" * एगे* णियटंति । ३०-मंदा मोहेण पाउडा । २१-“अपरिगहा भविस्सामो" सथुट्राए, रुद्धे कामे ऽदहिगाहंति" । ३२-अणाणाए मुणिणो पडिकेहंति ! ३३-एत्थं मोहे पूणो पूणो सन्ता 1 ३४-णो हव्वाए णो पाराए्‌ | १--परिण्णाणेहि अपरिहायमाणेहि { क, ख, ग, घ, छ ) सर्वच । २--अपरिहीयम,णेहि (क, ख, ग, घ, छः वु ) । ३-पृष्रा ( चु )। ४->< {चु )। ५--अभिगाहति ( क ; ; अभिग्गहति ( ख, छ ) , अभिमाति { ग ) । वीञ अञ्मयण ( वीओ उहेसो ) २७ ३१५-विषुक्छाः इ ते जणा, जे जणा पारगामिणो ] ३६-रोभं अलोभेण दुगंछमाणे, द्धे कामे नाभिगाद्' । ३२७-ब्रिणाविः रों निक्छम्प, “एस अकम्मे'" जाणति पासति । ३८-पडिलेहाए णावकंखति । ३६ -एस--अणगारे त्ति पशरुच्चति । ४०-अहो य' राओ य परितप्यमाणे, कालाकाटसयुदाई, संजोगदरी जदालोभी, आलुपे सहसक्कारे, विणिविद्टचितते, एत्थ सस्थे पुणो पणो । ४१-से आय-बले, से णादइ-बले"", से मित्त-बले, से पेच्च-बले, से देव-बे, से राय-बले, से चोर.वकले, से अतिहि-बके, से क्रिवण-बले,ˆ से समण-बले 1 ४२-इच्चेतेहिं विरूवरूवेहिं कञ्जेहिं 'दंड-समायाणं. । ४३-सपेहाए भया कज्जति,१० 1 ४४-पाव-मोक्छो' त्ति मण्णमाणे । ४५--अद्‌ वा आसंस्राए | १--विमृत्ता (क, ख, ग, घ, छ } । स-णोभिगाहई्‌ (क, च ) । ३--विणदत्त्‌, ( कं, घ, च, वृपा ) | ४--एसऽकम्मे (घ, छ ) । ५--> (क,ख) ६--सहसराकारे (क, ख, ग ) | ७--से णाई-वले, से सयण-वले ( के, ख, ग, घ्‌, च ) 1 --किविण-० (क, ख, ग )। £दड समारमति (चू )। १०--दंड-समायाण कञ्ज ( चूपा )। ८५. आयारो ४६--तं परिण्णाय मेहावी- णेव सयं एएहि कज्जेहि दंडं समारभेन्जा, णेव ण्ण" एएहि कज्जेहिं दंडं समारंभावेज्जा, "णेव'ण्णं एएहि कज्जेहि दंड समारंभतं समण॒जाणेज्ा'* । ४७-एस सग्गे-भरिएदि- पषेदृए । ४८-जहेत्य कुसके णोवक्िपिज्जासि । --त्ति वेमि | तओ उरसो ४९-से असइं उच्चा-गोए. असइं णीया-गोए ! णो हीणे, णो अइरित्ते'*, णो पीहृए" । ५०--इतिः संखाय के गोया-वादी ? के माणा-वादी ? कसि वा एमे गिज्छ्धे ? ५१-तस्हा पंडिए णो हरिस, णो कुज्ज । ५२-मृए्हि* जाण पडिकिह सातं । ९--णेव अन्नेहि (छ ) 1 २-ाहि कज्जेहि दडं समारभते वि ऊण्णे ण समणुजाणिज्जा (क, ख, म. ध, च ) 1 3--अयरिएहिं (कः खः थं )। ४--नागार्जुनीया --एगमेगे खलु जीवे अ्दधाए जसं उच्चा-गोए्‌ जसं णीया-गोए कंडगटूणषए णो हीणे नो अडस्ति {चू वृ ) 1 ५-पीहेह (खः ग ) । ६--एव (बु ) 1 ---नायारजुनीया --पुरिसेणे खलु दुक्खविवागगवेमएणे । पुच्वि नाव जीवाभिगमे कायव्व, जाडं च इच्छिताणिच्छे- तं साता-सातं विवाणिया हिसोवरती कायव्वा तू) 1 नागानूनीया :-पुरििणं खलु दुक्छुव्वये सृहेसए छु) 1 बीज अन्फयण { तभो उदसौ ) २९ ५३-समिते एयाणुपस्सी । ५४-तंजहा--अंधत्तं, बहिरत्तं, मूयत्तं, काणत्तं, कुटन्तं, खुज्जत्त, कंडमत्तं, सासत्त, सबलत्तं । ५५-सहपमाएणं अणेग-रूवाओ जोणीमो संधाति", विरूवरूवे फासे पडिसंबेदेद्‌ः । ५६-से अबृज्छमाणे हतोवहते जाइ-मरणं अणुपरियदटूमाणे'- । ५७-जीवियं पुटो पियं इहमेगेसि माणवाणं, देत्त-ब्थु ममायमाणाणं । ५८-आरततं विरचं मणिकडलं सह दिरण्णेण इत्थियाओ, परिगिञ्फ तत्थेवं रत्ता । ति ५९-ण एस्थ तवो वा, दमो वा, णियसो चा दिस्सति । ६०-संपुण्णं बाजे जीविड-कमि, लालप्पमाणे सट विप्प्रियासु'वेद्‌*। ६१-इणमेवं णाबकंखंति, जे जणा धव-चारिणो । जाती-परणं प्रिन्नाय, चरे संकमणे ददे ॥ £ र-णस्थि कालस्स णागमो । ६२-सब्बे पाणा पियाउया", सुह-पाया दुक्ख-पदिङ्का, अपिय- वहा, पिय-जीविणो जीविउ-कामा । ६४-सतव्वेसिं जीबरियं पियं | ६५-तं परिगिज्फ दुपयं चरउप्पयं अभिजुंजियाणं, ससिचनियाणं, तिवि्ेणं जा वि से तत्थ मत्ता भवई्‌--अप्पा वा बहुगा वा । १-सधाएति (ख, ग, च ) । र-परि° (घव) --हतोवहते विभिविदूढचित्त एत्थ सतते पुणो-युणो ( च ) 1 ४--विप्परियासमुवेद्‌ ( ख, ग, घ, छ ) ! ५--पियायया ( वृषा ) 1 ५ आयासे ६६-से तत्थ गडिए चिद भोयणाए । ६७-तथओ से एंगया विपरिसिष्टं' संभूयं महोवगरणं भवद्‌ । ९८-तं पि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो* वा से अवहरति, रायाणो वा से विद्ुपंति, णस्सति वा से, विणस्सति वा से, अगार-दाहेण वा से उज्फड्‌ । ६९--इति से परस्स अह्ाए कुरादं कम्मादं बाले पकुन्वमाणे, तेण दुक्वेणं मूढे" विप्परियासु वेद^ । ७०-मूणिणा हु एयं पवेदयं । ७१-अणोहंतरा एते, नो य ओह तरित्तए । अततीरंगमा एते, नो यं तीरं भभित्तए । अपारंगमा एते, नो य पारं गसित्तए ॥ ७२-आयाणिज्जं च आयाय, तस्मि ठाणे ण चिद्‌ढ्ह्‌ । वितहं पप्वऽखेयन्ने, तम्पि उाणभ्बि चिह्र ॥ ७३-उदहेसो पासगस्स णत्थि । ७४-बके पण णिहि काम-समणुन्ने असमिय-दुक्खे दुक्ली दुक्छाणमेव आवरं अणुपरियटुइ । -- त्ति बेमि। १--विविहं परिसिट्‌ठं ( क, ख, ग, घ, च ) । २--मदत्ताहारा (ख, ग ) । ३--अवहर ति (ख, ग ) 1 ४--समूदे (कःघ)) ५--विप्परियासमुवेति { ख, ग, घं, च, छ ) 1 दीञं अङण्यण ( चउत्यो उसो ) ३१ चरत्थो उरसो ७१-तओ से एगया रोय-समूप्पाया समुप्पज्जंति 1 ७९६-जेहिं वा सद्धिं सवसति ते का णं एगया णियया पूववि परिवयंति, सो वा ते णियगे पच्छा परिवएन्जा 1 ७७-नालं ते तव ताभाए वा, सरणाए वा । तुमंपि तेसि नारं ताणाए वा, सरणाए वा । ७८-जाणित्‌, दुक्खं पत्तं सायं । ७९-भोगामेव अणुसोयंति ८०-इहुभेगेसि माणवाणं \ ८१-तिविदेण जावि से तत्थं मत्ता भवडू-अप्पा वा बहुगा वा । ८ र-से तत्थ गदिएु चिति, मोयणापए्‌ । ८३-ततो से एगया विपरिसिंह संभूयं महोवगरणं भवति । म४-तं पि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से अवहरति, रायाणो वा से विदुपेति, णस्सद्‌ वा से, विणस्सइ वा से, अगार-डाहेण वा इञ्फद्‌ । ८४-इति से बाले परस्स अट्वाए कूराई कम्माद्‌ं पकुव्वमाणे, तेण दुक्खेण मूढे" विप्परियायुषेड । अ हरति {कछ )1 २-समूढे (क, घ, च | ३९ आयारो ८६-जसं च छदं च विगिच' धीरे । ८७-तुमं चैव तं सल्छमाहट्टु । ८८-जेण सिया तेण णो सिया । ८६ -इणमेष णावघ्ुरफंति, जे जणा मोह-पाउडा । ९०-थीभि लोए प्रहि । ९१-ते भो वयंति “'एयादं आयतणाद"' । ९२-से दुक्वाए, मोहाए, माराए, णरगाए, णरग-तिख्खाएः ! ९३-सततं मूढे धम्मं णाभिजाणदः । ९४-उदाहु वीरे-अप्पमादो महा-मोहे । ९५-अकू कुसरस्स पमाएणं । ९६-संति मरणं स्पेहाए,* भेउर-धम्मं स्पेहाए । ९७-णारु पास" । ९८-अल ते एएहि । ९९-एयं पास मुणी [ महन्मयं । १००-णाइवाएज्ञ कृचणं । १०१-एस वीरे पसंसिए"- जे ण णिविज्जति आदाणाए्‌ । १०२-'"ण मे देत्ति” ण कूषिजञा, थोबं र्भ न खिसष । पडिसेहिभोः परिणमिज्जा । १०३-एयं मोणं समणुवासेज्जासि । --त्ति बेमि। १--विविच्द ( क ) 1 २-- ° तिरियाए {घ ) 1 ३ ण जानाति (वु )। ४--सपेहाए (क, च) 1 प-नमसिते (चपा) । ६-पडिनगभिभरो (वपा) ; पडिलाभितो परिणमे, ण वो वास चेव कुज्जा (चपा) । । 1 बीं अज्मपण्‌ ( पचमो उदेसो ) ९९ पंचमो उसो १०४-जमिणं विरूवस्वेहि सत्येर्हि लोगस्स कस्म-समारमा केञ्जंति, तंजहा--अप्यणो से पृत्ताणं, धूयाणं, मष्हाण, णातीणे, धातीणं, रार्ईणं, दासाणं, दासीणं, कम्म-कराणं, कम्म-करीणं, आपएसाणए, पुढो पहेणाए, सामासाए, पायरासाए । १०५-सन्तिहि-सन्तिचभो कज्जई, दृहमेगेसि माणवाणं भोयणाए । १०६-समृष्टिए अणगारे आरिए भआरिय-पण्णे आरिय-दंसो अयं संधी'ति अदक्ु* । १०७-से णाद, णाइआवषए्‌, ण समणुजाणद्‌ । १०८-सुन्वामगंधं° परिष्णाय, णिरामभन्धो 'परिचए | १०९-अदिस्समाणे एय-विक्कएसु । सेण किण करिणा, िंणंतं ण समणुज्ाणड । ११० से भिक्खु कारण्णे, बरु्णे,, मायण्े, देयने, लणयने", विणयन्न, समयन्नेः, भावण्ण, परिह अममायमाणे, कक्ेणुक्षई, अपडिने । १११-दुहो छेत्ता नियाई्‌ । । ११ वल्य पडा कवरं पाय-पं्णं, उम्गहं च फेडासणं, एतेषु च जाणेन्जा | स्वहिविलत्नन्म तज विूवरूवाणं अटूलाए { चूषा )। क 1 ४--वालण्णे (क, घ्‌, च, वु)। प-खेणण्णो { च्‌ } | ६-समयण्णे परमृयण्णे (घ, च) , स॒ स॒मयण्णे परसमयण्णे (छ ) { ४ ४ मायासे ११३-लद्धे आहारे अणगारे मायं जाणेज्जा, से जेह'यं भसवया पवेदयं । ११४-लाभो"ति न भन्जेन्ना | ११४-भाङभोत्ति ण सोयए? | ११६- बहुं पि द्धं ग णिह । ११७-परिगहागो अप्पाणं अवसक्केज्जा । ११०-'जण्महा णं पासए परिहुरेज्जा"ः 1 ११९-एस मग्गे-ारिषहिं एवेह । १२०-जदे'त्थ कुसले णोवकिपिज्जासि-- त्ति वेमि । १२१-शासा दुरक्तिकिमा । १२२-जीवियं दुप्यडिनृहणं ° । १२३-काम-कामी खलु अयं पुरिसे । १२४-से सोयत्ति, जूरति, स्िप्पति", पिडति", परितप्यति । १२५-आायतचक्खु लोय-बिपस्सी-- लोगस्स अहो-भागं जाणइ, उडङ्ढं भागं जाणइ, तिरियं भागं जाणद्‌ 1 १२६-गदिए* अणुपरियटूमाणे । १२७- सं धिदिचः इहं मच्चिएहिं ! १२८-एस वीरे पसंसिर, जे बटे पडिमोयष । १२६-जहा अन्तो तहा वाहि, जहा वाहि तहा अन्तो 1 १-सोष्ज्जा {ख,ग चःछ)। २--मण्णनरेण पाक्ताएण परिहरिज्जा ( चूषा )। उइ-- ° वहग (च इं) ४-तप्पति (चु) 1 पष्ट (क,खःस) ;>( च, )1 €--गदिए लोए ( खं, ग, ) बी अन्म्यण ( पचमो उदैसो ) प १३०-अन्तो अन्तो पूति-देहं तराणि, पासति पुढोवि सवंताईं । १३१-९६डिए पडदेहाए । १२२-पे हमं परिण्णाय, मा य हु रार पच्चासी । १३३-मा तेसु तिरिच्छमप्पाणमावातए । १३४- कासं कसे" खलु अयं पुरिसे, बहु-माई, केण सूट पुणो तं करेह-रोभं । १३५ बेरं बडडेति अप्पणो । १३६-जमिणं परिकषिज्जद्‌, इमस्स चेव पडिवूहणयाएः । १३७-अमरायदः पहा-षडदी । १२८-जड्भेतं पेहाए* । १३९-अपरिन्नाए केंदति । १४०-“से तं जाणह्‌ जमहं बेमि”* । १४१-तिइच्छं पडते": पवयमाणे । १४२-से* हंता, छित्ता, भेत्ता'^, 'टंपडत्ता, विुपदइत्ता'°, उदवइत्ता । १४३-अकडं करिस्सामि"त्ति मण्णमाणे । १४४-जस्स वि य णं रई | १४५-अङं बालस्स संगेणं । १४६-मे वा से कारेई बले । १४७-'ण एवं” अणगारस्स जायति । --त्ति बेमि। काम कामे (बू); कार कसे य (घ) \ २-पडवृहणद्ञए ( चृ, छ ) । >--अमराइ (ध, च )। ४-- उपेहाए ( च्‌ ) › अहूमेत्त ` (क, घ, च, छ } ! ५ सएव मायागह ज वेमि ( चू ) , से एव मायाणह्‌ जम वेमि ( क, ग्‌ })। ९--तेडच्छ पठितो { च्‌ )। क ७-> ( च } । €-लुपित्ता, विलपित्ता (ख, ग, च, छ) । ०-भेत्ता, छतत, ( ख, श, घ्‌, च, छ ) 1 १९-ण हु एव (चु )1 ३६ भयारो छो उदैसो १४८-से तं संबुज्भामाणे, आयाणीयं सथुटराए । १४९ तम्हा पावं कम्मं, णेव ऊर्जा न कारे । १५०-सिया तत्थ' एगयरं विप्परामूसद्‌*, छसु अण्णयरंसि कप्पति। १५१-सुहट्टी छारुप्पमाणे सएण दुक्खेण मूढेविप्परियासमूवेति । १४२-्षएण विप्यमाएण, एुढो वयं पडव्वति । १५२३-जंसि"मे पाणा पव्वहिया । पडेहाए-णो णिकरणाएः । १५४-एस परिण्णा पृच्छ । १५५--कम्मोवसंती । १५६-जे ममाइय-मति जहाति, से जहाति" ममाहं । १५७-से इ दिद्ध-पहे* गुणी, जस्स णस्थि ममाहयं । १५८-तं परिण्णाय भेहावी । १५९--विदित्ता रोगं, वता लोग-सण्णं, सि मतिमं'* परक्मेजासि“ --्ति वेमि । १६०-णार्ि“ सहते बीरे, बीरे णो सहते रति। जम्हा अचिमणे बीरे, तस्दा वीरे ण रज्जति ॥ १६१- सदे य^ फासे अहियास्माणे। १६२-णिविद णंदिं इह जीवियस्स । १-से (च )। २--विपरामुसति (क ) । ३--णिकरणयाए (ख, ग ) | ४ चयई (क, ख, ग, च } } ५--दिट्‌ठ-भये (घ, च, चपा, वपा ) । ६--स मदमे ( ख ), स इति मुनि (वृ ) 1 ७-परक्रमेज्जा (क,ख, गः घ, चछ) 1 प--णो रई (क, च )। &~->< { खं, गरे, ) { वीम जन्फयणं ( चरो उदेसो } ३७ १६३- यमी सोणं समादाय, धुणे' कम्प-सरीरगं । १६४-पतं लहं सेवति, वीरा सम्पत्त-दंसिणो । १६५-एस ओधंतरे शरणी, तिन्ने यतते विरते वियाहिषे--त्ति नेमि । १६६-दुचसु यणी अणाणाए । १६७-तुच्छए भिकाद्‌ वत्तए । १६८-एसं बीरे पसंसिए । १६९-अच्चेह सोय-संजोयं । १७०-एस णाए पुनरच्चह्‌" | १७१-जं दुक्खं पवेदितं इह माणवाण, तस्स दुक्छस्स कुसला परिण्णसूदाहरति* । १७२-इति कम्म परिण्णाय सन्वसो । १७२-जे अणण्ण-दंसी, से अणण्णारामे, जे अणण्णारामे, से अणण्ण-दसी । १७४-जहा पण्णस्छ कत्थ्‌, तहा तुच्छस्स कत्थद्‌ । नहा तच्छस्स कत्थई्‌, तहा पण्णस्स कत्थ्‌ ॥ १७५-अवि यं हणे अणादियमाणेः । १७६-एत्थंपि जाण, सेयंति णत्थि । १७७-करे यं पुरिसे कं च णए ? १७८-एस वीरे पसंसिए, जे बद्धं पडिमोयषए । १७९ -उड' अदं तिरियं दिसासु, से सन्तो सव्ब-परिण्ण-चारी । १-घृण (च )। त वच्वड {घ} 1 ३--प्रतिण्ण ° ( छ ) | ४ (चू) 1 ३ आयारो १८०-ण रिष्यद छण-पएण वीरे ! १८१-से मेहावी, अणुग्घायणस्स खेयन्ते, जे य-अंधप्मोक्खमन्नेसी । १८२-कुसले. पुण णो बद्धे, णो मुक्के । १८३-सेजंच आरभेजं च णारमे। अणारद्ं च णारमे । १८४-छणं-छणं परिष्णाय, लोग-सन्नं च सव्वसो । १८५-उहेसो पासगस्स णत्थि । १८६-बाले पूण णिहे काम-समणुन्ते असमिय-दुक्ले दुक्ली दुक्खाणमेव अवटं अणुपरियटुई । --त्ति नेमि। तदय अञ्फय्ण सीओसणिज्जं पटमो उदा १-सुत्ता अघ्ुणी सया, युणिणो सयाः जागर ति २-लोयंसि जाण अदहियाय दुक । ३-्मयं रोगस्स जाणित्ता, एत्य सत्थोवरए । ४-जस्सिमे सदायस्वा य गधा य रसा य फासा य॒ अभिसमननागया भवंति, से आयवं नाणवं वेयवं धस्मवं बेभवं'* । ४-पन्नाणेहिं परियाणईइ्‌ लोयं, भुणी'ति वच्चे", धस्मविड"त्ति अल्‌ 1 ६-आवदटु-सोए संगमभिजाणति । ७-सीउसिणचाइ से निर्गंथे अरइ-रइ-सहे फरुसियः णो वेदेति। ८-जागर-वेरोवरए वीरे* । ९-एवं द्क्खा पमोक्खसि< । १०-जरा-मच्चु-वसौवणीए णरे, सययं मूटे धम्मं णाभिजाणत्ि 1 १५८ ( च्‌, च ) 1 २्-सततमनवरतम्‌ ( वृ ) । ई-आतवि, वेवि, चम्मवि, वमति { च } , आतव .-( चण ) : आयव, णाणवी, वेदवी, धम्मो, वमवो (वपा)! ` ४-मुणी वच्चे (वु, छ ) । प-उज्‌ ( क, च, छ ) । ६फरूसव { चू ) ७-धीरे (छ5)1 म-पमृच्मि (कखगध,छ)। ६. आयारो ११-पासिय आउर" पाणे, अप्यमत्तो पर्व । १२- मंता एयं महमं ! पास । १३-आरंभनं दुक्छमिणं तिं णच्चा । १४-माईं पमाई* पणरेद्‌ गम्भं । १५-उवेहमाणो सद -स्वेषु अजू, मारामिसंकौ* मरणा पचति । १६--अप्पमत्तो कामेर्हि, उवरतो पाव-कम्मेहि, वीरे आय-गृत्ते जे खेयन्ते 1 १७-जे पज्जवजाय-सत्थस्स खेयन्ते, से असत्थस्स खेयन्ते, जे असत्थस्स लेयन्े, से पज्जवनाय-सत्धस्स खेयन्ते 1 १८--अकंम्स्स ववहारो न विज्जद । १ ९-कम्मृणा* उवाही" जायद्‌ । २०- कम्मं च पडिलेदाए । २१-कम्म-मूलं च'* जं छणं । २२-पडिलेहिय सवं समायाय । २३-दोहिं अति अदिस्माणे । २४-तं परिष्णाय मेहाबी । २५--चिदित्ता लोगं, वंता रोगसन्नं, से सदम ' परक्कमेञ्जासि । --त्ति बेमि। {-भतुरे मा (च्‌ )। २्-पमाया (घ )। उ-म,रावसङ्की ( चूपा ) । -कम्मणा (क, ख. ग) 1 ५-उवही ( च्‌ ) 1 ६कम्ममाहूय ( दूषा, वृषा ) । -मेहावी ( ख, ग, च ) 1 तदयं अन्फयण ( वीओ उदहेसो ) ४१ चीभो उदसौ २६-जातिं च बुडि च इदज्ज पासे । २७-मृतेरहि जाणे पडिेह सातं । २८-तम्हाऽति चिज्जो परमंतिं णचा, सम्मत्त-दंसी ण करेति पावं । २९-उम्भंच पासं इह मचिएदिं ३०-आरंभ-जीवी उभयाणुपस्सी । ३१-कामेसु गिद्धा णिचयं क्रंति, संसिच्चमाणा प्ुणरंति गब्भं । २३२--अवि से हासमासज, हंता णंदीति मन्नति। अलं बारस्स संगेणं, वेरं बुति" अप्पणो ॥ ३३-तम्हाऽति विजो परमंति णचा, आयंकदंसी ण करेति पाव । ३४--अग्गं च मूं च विगिच धीरे!" । ३५-परलिच्छिन्दियाणं णिकम्म-दंसी | २३६-एस मरणा पच्‌ । २७-से हु दिड-भए यणी । ३८-रोयंसी परम-दंसी विवित्त-जीवी उवसंते, समिते* सहिते सयाजए कारकंखी परि्वए । ३९- बहुं च खलु पाव-कम्म पगडं । ४०-सच्चंसि धिति इव्बह । १-वड्ढेति (घ ) । र वीरे >{ क, ग, च, च ) › मूल च अग्ग च विहतु. वीरो ( चूषा ) ! नागार्जुनीया-- मूल च जग्गा च विएत्‌, बोरे, कम्मासव चड विमोक्छण च ( च्‌ ) | र दिदूरुपहे, अहवा दिटूठ-मए ( च्‌ ) । ४-समिते जप्पमाई(ती) ( घ, छ ) । ४ अष्यारो ६&०-णातीतमटटं' णय आगभिस्सं, अटडं नियच्छति तदहागया उ । विधूत-कष्पे एयाणुपस्सी, गिज्छोसइत्ता खव महेसी! ॥ ६१-का अरं १ क आणेदे १ एत्थंपि अग्गहे चरे स्यं हासं परिचज्ज, आीण-गुत्तो परिव्वए ॥ ६ २-पुरिसा ! ““तुममेव तुमं मित्त, फिं यहिया मित्तमिच्छसि १ ६३-जं जणिज्जा उच्चार्यं, तं जाणेज्जा द्रारुहयं । जं जाणेज्जा द्रादयं, तं जाणेज्जा उच्राठहयं ॥ ६४-पुरिसा ! “अत्ताणमेव अभिणिगिज्फ, एवं दुक्ला पमोक्छसि५ । ६५-पुरिसा ] सच्चमेव समभिजाणाहि* । ६६-सच्चस्स आणाए उवह्टिए से" मेहावी मारं तरति । ६७-सषहिए धम्ममादाय, सेयं समणुपस्सति । ६८-दुहुओो जीवियस्स परिवंदण-माणण-पूयणाए, जसि एमे पमादेति । ६९- सिए दुक्खमत्ताए* पूष्टो णो कफाए । ७०-पासिमं दविए^ लोयालोय-पवचामो मुच्चद्‌ । --त्ति बेमि। १- ° मद्ध (च)। २->६ (क, घ, च )। न व्याख्यातं ( च, व ) । ३-- ° जाणहि ( क ) ; ° जाणेहि ( च ) 1 ४--से उवदिषएु से ( क, ख, ग ); से समुदिठए ( घ ) ; से उवदिछए्‌ ( च ) } ५- सहिते धम्ममादाय ( च ) ; सहिते दुक्खमत्ताते ( चपा ) ; * ° मेत्तते (क ); ~ ° माताते ( च )1 दविर लोए (छ ) । तदयं अज्छयण ८ चउत्थो उहेसो ) + 4 चरत्थो उदेसो ७१-से वंता कोहं च, माणं च, मायं च, लोभं च । ७२-एयं पासगस्स दंसणं, 'उवरय-सत्थस्स पलियंतकरस्स' 1 ७२३-आयाणं ( णिसिद्धा* ? ) सगडन्भि" । ७४-जे एग जाणड, से सव्वं जाणइ । जे सव्वं जाणई, से एगं जाणड्‌ ॥ ७५-सन्वतो पमत्तस्स भयं, सव्वतो अण्पमत्तस्स नत्थि भयं । ७६-जे एगं ने, से वहं नमे, जे बहूं नामे, से एगं नमे। ७७-दुक्टं रोयस्स जाणित्ता । ७८-वंता लोगस्स संजोगं, जंति वीरा" महाजाणं । परेण परं जंति, नावकंखंति जीनियं ॥ ७९-एगं विगिचमाणे पुढो विगिचड । पुटो विगिचमाणे एगं विगिचड्‌ । <८०-सड़ी आणाए मेहावी । ८१- लोगं च आणाए अभिसमेच्चा अकृतो मयं । ८२--अति सत्थ परेण परं, णलि असत्यं परेण परं । ९-- ° कडस्स (क } । २-दरष्टव्यम्‌ सू० ८६ ( पु० ४६) । ३-->८ { च्‌ )1 ४--धीरा (क )। ४६ मायारो ८३-जे कोह-दंसी से माण-दसी जे माण-द॑सी से माय-दंसी ञे मादी से रोभ-दंसी जे रोमनद्सी से पेज-दषी जे पेज-दसी से दोशषदसी जे दोस्-दषी रे सोह-दसी जे मरोद-दंसी से मन्म-दंसी जे ग्भ-दसी से जस्म-दसी जे जम्प-दंसी से मारदसी जे मार-द॑सी से निस्व-ददी जे भिर्यदंसी सषि हिरिय-्दसी जे तिरिय-दंसी से दुक्छ-दंसी । =४-से मेहावी अभिनिवदटुज्जा"-- कोहं च, माणं च, मायं च, लोहं च, पेज्जं च, दोसं च, मोहं च, गन्भें च, जम्मं च, मारः च, नरगं च, तिरियं च, दुक्खं च । स भ्-एयं पासमगस्स दंसणं उवरय-सत्थस्स पलियतकरस्स । < ६-अयाणं "णिसिद्धा सगडिन्मि | <७-किंमस्थि उवाही * पासगस्स॒ ण विज्जड्‌ ?"“ णत्थि । --त्तिवेमि। १-- ° निन्वट्‌ठेज्जा ( क, घ, छ ) } २-मरण (ख,ग) ३--उवही (घी) ( क, घ, छ ) 1 ४->८ (च )। चउत्यं अज्जयणं सस्पत्त पटमो उषसो १-से वेमि-जे' अर्या, जे य पडप्पन्ना, जे य आगमेस्सा अरहुताः भगवन्तो° ते सव्वे एवमादक्वंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेति, एवं पल्वेति : सब्बे पाणा, सच्वे भूता, सब्वे जीवा, सब्वे सत्ता, ण हतव्वा, ण अलवेयव्वा, ण परिघेतव्वा, ण परितावेयन्वा, ण उह्वेयव्वा । २-एस धम्मे सुद्धे“, णिदए, सासए, समिच्र ठोय-- सेयन्तेर्हि" पवेदए 1 ३-तजहा--उटिष्पसु वा, अणुट््एयु वा उबद्धिएसु वा, अणुवद्िएसु वा उवरय-दंडेसु वा, अणुवेरय-दंडेसु वा सोवहिएसु वा, अणोवहिएसु वा संजोग-रएसु वा, असंजोग-रएसु वा । ४-तच्चं चेयं तहा चेयं, अस्सि चेयं पवुचच्‌ । श-जेय (ख,ग; घ, छ) २--भरिहूता (खः घ ) | रे-भगवता (घः च )। ४--सुदधे घुवे (घ ) 1 ५--खेत्तन्नेहि ( च ) । ठ आयारौ ५-तं आइततु" ण णिहे ण णिक्खिवे, जाणितत धम्मं जहाः तहा ६&-दिद्र्हि णिन्वेयं गच्छेज्ञा | ७-णो रोगस्सेसणं चरे । जस्स णस्थि इमा णाई, अन्ना तस्स कथः सिया ? ९-दिङ्क' सयं मयं विन्नायं, जमे्थ॑* परिकषिजई । १०-समेमाणा प्लेमाणा", पणो-पुणो जाति पकप्पेति । ११--अहो य राओ यः (जयमाणे, वीर" < सया आगय-पन्नाणे । पमत्ते बहिया पास, अप्यमत्ते सया परक्षमेजासि । --ति वेमि बरीओ उदसो १२-जे आसवा, ते परिस्सवा, जे परिस्सवा, ते आसवा, जे अणासवा, ते अपरिस्सवा, जे अपरिस्सवा, ते अणासवा - एए पए संबुज्फमाणे, छोयं च आणाषए्‌ अभिसमेचा पुटो पवेदयं । १२-भाघाह' णाणी इह माणवा, संसार-पडिवन्नाणं संबुज्छमाणाणं विन्नाणं-पत्ताणं ₹--आद्ततु ( खमन्चछम्ृ ) 1 २--अहा (घ ) । ३ कुतो ( च ) । ४-जलोए (चरू)। ५--पलेमाणा ( क, न ), चलेमाणा ( ग्रु ) 1 ६--> ( खग ) 1 ७--धीरे ( खःगण्श्वु ) 1 =--जताहि एव वीरे ( च ) । ६--अक्वाई (घ ); नगार्जूनोया -मा राई धम्म खनु से जीवाण, तजहा--संसारपडिण वन्ताण मणुस्सवभत्थाण जारंभविणर्दण दुक्ुन्वेजसुहेसगाणं धम्म-सवणगनेसगा - निकिषत्त-सत्थाणं दुरसूसमाणाण पडिपुच्छमाणाण विन्ताणपत्ताणं ( च, व ) ! चउत्थं अञ्म्यणं ( वीथो उहेसो ) ४६ १४-अद्रा विं सन्ता अदुवा पमत्ता | १५-अहासच्चमिणं ति वेमि । १६-नाणागमो मच्चु-यहस्सर अस्थि, इच्छापणीया वंका-णिकेया । कार-रगदीञ णिच गिव्िद्रा, 'ुा-पुटो जां पक्प्पयंति'' | १७-'इहुमेगेसि तत्थ-तत्थ संथवो भवति । अदोववाइए फासे पडिसंवेदयंति । १८-चिटटं शरेहि कम्मेरहि, चिदं परिचिहतिः। अचिरं करेहि कम्मेरहि, णो चिरं परिचिद्रति° १९-एगे वय॑त्ति अदुवा वि णाणी, णाणी वयति अदुवा वि एणे । २०-आवंती केआवंती छोयंसि समणा य माहणा य पुढो विवादं वद॑ंति-- से दिटचणे, सुयचणे, मयं च णे, विष्णायं च णे- १ पो पुढो जाड पकरेति ( चू), एत्थ मोहे पुणो पुणो, पुटो पुढो जाई पगष्येति ( चूषा ) ; ˆ पकप्पेति (क) ; पकप्पन्ति (ख, ग, च) ; ` पकरुप्पंति (च, छ) शुढो पुटो जाड पकप्पयन्ति पंवतिस्थाने शत्िग सपादिते पुस्तके एतादृशं पाठन्तरम्‌-- एत्थ मोहे पुणो पुणो, इहमेगेसि तत्थ तत्थ संथवो भवड, अहोववाडए फासे पडिसवेययन्ति ; ्ि चित्त करेहि कर्मेहि, चित्त परिविचिदड्‌ › अचित्त करेहि कम्मेहि, नो चित्त परिविचिद्ुड । र्-परिविचिद्रई (क, चू )। ३--परिविचिद्रई ( कं ) ४--()। ७ (९1 आयार उडढं अहं" तिरियं दिासु, स्वतो सुपडिलेहियं च णे-- सव्वे पाणा, सत्वे भ्या, स्वे जीवा'* सव्वे सत्ता, हतव्वा अज्जावेयन्वा परिषेतव्वा परियवियन्वा * उहूवेयन्वा । एत्थ“ बि जाणह णस्थित्य दोसो । २१-अणारिय-वयणमेयं । २९-तत्य जे ते आरिया, वे एवं वयासी- से दुद च भे, दुस्सुयं च भे, दुम्मयं च भे, दुष्वित्नायं च भे, उड अहं तिरियं दिसासु, सव्वतो दुप्पडिकेहियं च भे, जन्तं तुन्भे एवमाइक्ह, एवं भासह, एवं "परूवेह, एवं पन्तवेह'“-- सव्वे पाणा, सव्वे भूया, सत्वे जीवा, स्वे सत्ता, हृतव्वा अञ्जावेयव्वा परिघेतव्वा परियवियन्वा उद््वेयन्वा । एत्थ वि जाणह “गत्थिस्थ दोसो" । २३-वयं पुण एवमादइक्लामो, एवं भासामो, एवं परूबेमो, एवं पन्नवेमो- सव्वे पाणा, सब्वे भया, सव्वे जीवा, सव्वे सत्ता, ण हंतव्वा ण अज्जावेयव्वा, ण परिषेतव्वा, ण परियावेयव्वा, ण उद्वेयव्वा ! एत्थ वि जाह णस्थिस्थ दोसो । २४-आरिय-वयणमेयं । १-अहे य (के )। र-सव्वे जीवा स्वे भूया (वृ, क, घ, छ ) ३--परियावेयन्वा किलामेयव्वा (क, ख, ग ) 1 9-एत्थंपि (ख,ग, घ)) धृ-पन्नवेह, एवं परूवेह (चू, क ) । ६-नस्थित्थ दोसो । अणारिय वयणमेय (क, ख, ग, घः च, छ) चउत्वं अज्भयण ( तडमो उदरेसो } ५१ २५--पुच्वं निकाय समयं पत्तेय" पुच्छिस्सामो-- हं भो पावादुया" ! किं भे सायं दुक्खं उदाहु असायं ? २६-समिया पडिवन्ने यावि एवं वूया- सव्वेसि पाणाणं, सव्वेसि भूयाणं, सव्वेसिं जीवाणं, सन्वेसि सत्ताणे, असायं मपरिणिव्वाणं महुव्भयं दुक्लं । -- त्ति वेमि। तइयो रदेसो २७-उवेहः एणं परह्िया य लोयं, से सव्य-लोगंसि ञे केड निन्त्‌ । अणुबीद्‌" पास णिकिखित्त-दंडा, जे केड सत्ता पछियं चयंति*॥ २८-नरे' ग्ुयच्चा धम्मविदु त्ति अचु । २९-आरंभजं दुक्खभिणंत्ति णच्चा, एवमाह सम्पत्त-दंसिणो । ३०-ते सत्वे प्रावाद्य दुक्खस्स कसला परिन्नमुदाहुरंति । ३१-इति कम्म परिन्नाय सन्वसो । ३२-इह्‌ आणाकंखी पंडिए अणे "एगमप्पाणं सपेहाए! । धणे सरीर", कसेहि” अप्पाणं, जरेहिं अप्पाणं । ३३-जहा न्नादं कटाह , हव्ववाहो * पमस्थति, एवं अत्त-समाष्िए अणिहे । २३४-पि्मिच कोहं अविक्रपमाणे, इमं णिरुद्धाउयं संपेहाए 1 १--पत्तेय-पत्तेय ( ख, ग, च, छ ) । २-पवादिया ( छ ) , समणा माहणा ( च ) । े-उवेहण ( क, घ ) , उवेहेण ( ख, ग ) ; उव्वेहैण ( च, छ ) । ४--अणुवित्तिय ( क, च ) ; { छ ) अणुचित्तिय 1 ५--जहति ( च्‌, छ ) । ६-नरा (छ ) | ७--सरोरग (व )। =--किसेहि ( च ) . कम्मेहिं जरेहि ( ख ) । ६--हन्ववाहू ( घ, च, छ ) । १२ आयारो ३५-दुक्खं च जाण अदु" वागमेस्सं । ३६-पटो फासाद च फसे' । ३७-रोयं च पास विष्फदमाणं । ३८-जे णिव्ुडा पावें कम्मर्हि, अणिदाणा ते वियाहिया । ३९-तम्हाऽतिविज्जो णो पडिसंजलिज्जासि 1 --त्ति बेमि। चरत्थो उदेसो ४०-आवीकरए पवीलए निप्पीकए, जहिता पुन्ब-संजोगं, टिज्वा उवसमं । ४१-तम्हा अवरिमणे बीरे, सारण समिए सिते षया जण । ४२--दुरणुचरो मग्गो वीराणं, अणियद्-गामीणं । ४३--विगिच मंस-सोणियं । ४४-एस पुरिसे दबीए वीरे, आयाणिज्जे बिया । जे धृणाई सथुस्सयं, वसित्ता बंभचेरंसि ॥ ४५-णेततेहि परिक्िन्नेहि, आयाण-सोय-गदिषए बे । अन्वोच्छिन्न-बंधणे, अणमिक्कत-संजोए तम॑सि, अबिजाणभो, आणाए कुंभो णत्वि--त्ि वेमि । ४६-जस्स नस्थि पुरा पच्छा, मज्फे तस्स कओ" सिया १ ४७-से हु पन्ताणमंते बुद्धं आरंभोवरए 1 १--बहु ( क 21 २--फासए ( कः छ )। ३--निप्फीलए ( क, घ ) । ४--अरधस्स तमस्स ( चू ); तमसि ( चूषा )। ५--कुभ (क, च, छ )। चरत्यं अज्भयणं ( चउत्थो उदहेसो ) ५३ ४८-सम्मयेयंति पासह । ४९-जेण यत्थं वहं घोरं, परितावं च दारुणं । ५०-प्रिक्िदिय वादिरगं च सोयं, णिक्कम्म-दंसी इह मच्चिएिं । ५१-कम्युणा सफटं'' दय्‌, तभो णिज्जाई वेयवी । ५२-जेखलुमो वीरा समिता सहिता सदा जया संघड- दंसिणोः आतोवरया, जहा-तहा-ः लोग युवेहमाणा, पारईणं पडीणं दाहीणं उदीणं इति सच्चंसि परिचिद्धिसु*, साहिस्सामो" णाण वीराणं समिताण सहिताणं सदा जयाणं संघड-दंसिणं आतोवरयाणं अहा-तहा लोगमूवेहमाणाणं । ५ ३-किमत्थि उवाधी ‹ पासगस्स ? "ण विज्जति ?"“ णत्थि । --त्ति वेमि १-कम्माण सफलत्त ( वु ) 1 २-सत्थड ° ( च), संथड ° (च्‌ )। ३-अहातह्‌ ( क ) । ४-परिविचिर्िसु ( क, ख, ग, च, छ )2 विपरिविद्िसु ( च्‌ ) । ५-अग्घातिस्सामो ( च ) । ६--उवही ( कः घः च, छ ) । ७--अह्‌ णत्थि ? ण विज्जति त्ति बेमि ( चू ); णत्थि वा ण विज्जतित्ति नेमि (छ), पचम अञ्फयणं खोग-सारो पटमो उदेसो १-अववंती केञ्वती लोयंसि विप्परामसंति, अद्राए ` अणद्राए वा", एएसु चेव विप्परासुसंति ! र-गुरू से कामा । ३-तओ से मारस्स अतो, जौ से मारस्स भतो, तमो से दूरे । ४-णेव से अतो, णेव से दूरे । ४५-से पासति एुसियमिव, इुसम्गे पणुन्नं णिवतितं वातेरितं । एवं बालस्स॒ जीवियं, मंदस्स अविजाणओ ॥ &-कूराणि कम्माणि बारे पकूव्वमाणे, तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासूवेद* । ७-मोहेण गवुभं 'मरणाति एति!" । <-एत्थ मोहे एणो-पुणो । 8 -संसयं परिजाणतो, संसारे परिण्णाते भवति, संसयं अपरिजाणतो, संसारे अपरिण्णाते भवति । श-नागार्जुनीया :--जावति केड लोए छक्काय-वह समारभति अद्राए्‌ भणदूखाए वा । > { ख,ग, धच ) 1 इ-बरहि (च्‌)! ४--विप्परियासमुवेति ( क, ख, ग, छ ) ; ° समेति (च, च )। ५-मरणा दुदेति ( चया ) । पचम अञ्छयण ( पद्मो उच्सो } ५१५ १०-जे चेए से सागारियं ण सवए \ ११- कट एवं अविजाणथो, वितिया मंदस्स वाक्या । १२-रद्धा हरत्था पडिलेहाए आगसित्ता आणविज्जा अणासेवणयाए-- त्ति वेमि । १२-पासह एगे श्वेसु गिद्धे परिणिजमाणे । १४-एस्थ फास पुणो-पुणो 1 १५-आवंती केआवंती लोयंसि आरभजीवी, एएसु चेव आरंभजीवी । १६-एत्थ वि वाले परिपच्चमाणे रमति पावेहि कम्मेहि, असरणे सरणं"ति मण्णमाणे 1 १७-एह्‌ मेगेसि एगचरिया भवति-- से वहु-कोहे बहु-माणे बहु-माए बहु-लोहे बहु-रए बहु-नडे बहु-सटे बहु-षंकप्प, आसवसक्की पकिच्छन्ने, उदटिञ्यवायं पवयमाणे “मा मे केद्‌ अदक्ु" अण्णाण-पमाय-दोसेण, सयय मूढे धम्मं णाभिजाणड्‌ । १८-अयृटा षया माणव † कम्म-कोबिया, जे-अणुवरया, अचिज्जाए पलिमोक्लमाहु, आवद * अणुपरियटुंति । --्ति नेमि, १--नागार्जुनीया -जे खलु, विसए सेवई सेवित्ता वा णालोएड्‌, परेण वा पुदट्ूढो निण्ुवड्‌ अहवा तं पर सएण वा दोसेण उवलिपिज्जत्ति । तमेवा वियाणतो ˆ( चू)! २ एत्थ मोहे ( चुः वृपा )› तत्थ फास ( चपा ) 1 ३--परिवच्चमाणे ( च ) परितेप्पमाणे ( छः चु" वृ ). परिच्वमाणे ( चपा, वृपा } 1 ४--आवदटरमेव (च, ग, च } । भद आयाये वीओ उदेसो १९-आवंती केआवंती लोयंसि अणारंभ-जीवी एतेसु" चेव समणारभ-जीवी' । २०--एत्थोवरए तं फोसमाणे अयं संधी ति अदक्खु । २१-जे इमस्स विग्गहस्स अयं खणे'त्ति मन्नेसीः । २२-एस मग्गे-आरिषएदिं पेदिते । २३-उदट्‌टिषए णो पमायषए २४-जाणिततु दुक्खं धत्तेयं सारय“ । २५-पटो-छंदा इह माणवा, पटो इक्खं पवेदितं । २६-से अविहिसमाणे अणवयमाणे, पुद्धो* फासे विप्पणौल्छए । २७-एस समिया-परियाएु वियाहिते । २८-जे असत्ता पावेहि कम्मे, उदाहू ते आयंका फसंति । इति उदाहू वीरे ति फासे पुटढो हियासए । २९-से पुव्वं पेयं पच्छा पेयं भेउर-धम्मं, विद्धंसण-धम्मं, अधुवं, अणितियं, असासयं, चयावचदयं*, विपरिणाम-धम्मं, पासह एयं “ख्वं । २ ०-संधि'“ समृप्येहमाणस्स एगायतण-रयस्स. इह विप्पमुक्कस्स, णत्थि मग्गे विरयस्स--त्ति वेमि | १ तेसु (व )। २--अणारभ-० ( गभ्च ) । ३--अन्नेसि (ख, ग, च ) 1 ~ पसेय-साय ( कं, च, छ ) । भ-पुढो ( ख, ग, घ ) ( अचम्‌ } 1 इ-धीरे (क,ख, ग, छ) । छ--चयो० (क,ग,घ,च,छ) ~ रूव-सधि (कःचःछ ) 1 ई--एगायण ° ( घ ) 1 पंचमं अज्मयणं { इमो उदेसो ) ५७ ३१-आवंती केआवंती छोगंसि परिरगहावंती-- से जप्पंवा, बहुं" वा, अणुं वा, थूरं वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमतं वा, एतेसु चेव परिगगहावंती । ३ २-एतदेवेगेसि" महब्भयं भवति, लोगवित्तं च णं उवेहाए । २२-एए संगे अविजाणतो । ३४-से “सुपडिनुद्धं सूवणीयं"ति णच्चा'*, पुरिसा ! परमचक्लु ! विपरक्कमा* । २५--एतेसु चेव बंभचेरं- ति बेमि। ३६-से सूयं च मे, अज्फत्थियं* च मे--“बंध-पमोक्खो तुज्फ अञ््ञत्थेव'" । ३७-एत्थ पिरते अणगारे, दीहरायं तितिक्खए । पमत्ते बहिया पास, अप्पमत्तो परिव्वए' ॥ ३-एयं मोणं सम्मं अणुवासिज्जासि । --त्ति वेमि। तभो उदेसो ३९-आवंती केआवंती लोयंसि अपरिग्गहावंती, एएसु चेव अपरिगहावंती । १--बहुय (कः चः च, छ ) 1 --एयमेगेसि ( ख, ग ) , एयमेवेगेसि ( घ ) 1 ३--लोग वित्त ( ख, ग, छ } । ४-- सुपडिबहध ({ क, ध, छ, वु ) › सुत अणुविवितेति णच्चाः (चपा) । ५-विपरक्कम (ख, ग, च } । ६-अञ्फत्य, ( क, ख, ग, च, च ) : अज्फत्थव ( क्वचित्‌ ) ७-->‹ (ख, र, घः छ) । स--अप्पमाय सुसिक्खेज्जा ( चू ) ! भ्ठ ४०-सोच्चा वदै मेहावी, पंडियाणं गिसामिया । समियाएः धम्मे, आरिपएदिं प्वेदिते ॥ ४१-जरेत्य मए संधी ज्ञोसिए, एवमण्णत्थ संधी दुज्ज्ञोसिए भवति । तम्हा वेमि णो णिहेल्जः बवीरियं । ४२-जे पूव्द्टाई, णो पच्छा-णिवाई । जे पुष्वृट्ाई, पच्छा-णिवाई जे णो पुव्वृद्वाई, णो पच्छा-णिवाई । ४३-सेऽवि तारिसए सिया", जे परिण्णाय रोग मणुस्सिओ"। ४४-एयं णियाय जुणिणा पवेदितं-इह आणाकंखी पंडिए अणि, पुव्वावररायं जयमाणे, सया-षीलं संपेहाए, सुणिया भवे अकामे अमे । ४५-इमेणं चेव जुज्जदि, कि ते जुल््ेण चज्मओ ? ४६-जुद्धारिदहं खट दब्लहं'* । ४७-जहेत्थ कुसले परिन्ना-विवेगे भासिए । ४८-चुए हु बारे गन्भादसु र्न" । ४९--अस्तिं चेयं पच्ुच्चति, स्व॑सि वा छणंसि वा । ५०-से हं एगे संविद्धपहे“ मणी, अण्णहा रोगमूवेहमाणे । आयारो १--वति (कः ख, ग्‌, ) ; वात्त ( छ )। र्समया (घ,च)। ३-णिहिणिज्ज, ( ख, ग ) निण्ट्वेज्ज { चु ) 1 ४-चेव (चु) प--मण्णेसति ( चू, क ); मण्णुसिया (ख, ग, @); मण्णेसिति ( च ); मणुस्सिते (चपा) ६--जुद्धारिय च दुल्लह ( वपा ) । छ--गल्माद रज्जड्‌ ( चपा ); गन्भादसु रिज्जडइ ( वृ )। »--संविट्घमए { चू" वृषा ); सविदध पहे ( चूषा ) &० आयासे ६३-वयसा वि एगे बुदया कप्पंति माणवा । ६४-उन्नयमाणे य णरे, महता मोहेण युज्फति । ६५-संबाहा बहवे भुज्जो-भज्जो दुरतिक्कमा अजाणतो अपासतो। ६९६-एयं ते मा होड । ६७-एयं कसरुस्छ दंसणं । द८-तदिटृ्टीए तम्मोत्तीए” तप्पुरकारे, तस्सन्नी तन्निवैसणे । ६९-जयं-बिदारी चित्तणिबाती" पंथ-णिल्फाती पलीवाहरे, ° पासिय पाणे गच्छेज्जा | ७ ०-से अभिक्कममाणे पडिक्कममाणे संकूचेमाणे* पसारेमाणे विणियदट्‌्टमाणे संपलिमज्जमाणे" । ७१-एगया गुण-समियस्स रीयतो काय-संफास मणुचिन्ना एगतिया पाणा उदायंति । ७२- इहखोग-वेयण-वेज्जावडियं । ७३-जं आडद्टि-कयं कम्मं'*, तं परिन्नाय विवेगमेति । ७४--एवं से अप्पमाएणं, विवेगं किति वेयवी । ७५-से पभूय-दंसी पभरय-परिन्नाणे उवसंते समिए सहिते सयाजए दट्टं विप्पडिवेदेति अप्पाणं ७६--किमेस जणो करिस्सति ? ७७-'एस से परमारामो*, जाओ रोगंमि इत्थीयो । १-तम्मुत्तिए्‌ (कं, च ) 1 २--चित्तणिधायी ( चूषा ) । 3--पृलिवहिरे (क ग) ; पलिवाहरे ( च ) ; वलि-वाहिरे ( जु) ; पलिवाहिरे (ख, घ, छ वृ ) 1 ४--संकूच० ( चे ) 1 ध--संपलिज्ज० (चू, ख ) । -आद्टीकम्म ( क, च ) : अवदूटीकम्मं ( घ ) 1 ७--एसेक्षो) परमारामो (क, ध, च } । पंचमं अज्यणं ( पंचमो उदेसो ) ६१ ७८-मुणिणा हु एतं पवेदितं, उव्बाहिज्जमणे गाम-षम्मेहि-- ७९-अवि णिब्बलासए । ८०--अवि ओमोयसियं इन्जा । ८१--अवि उड्ढं ठाणं ठाद्रज्ना । ८ २-अवि गामाणुगामं दुडज्जेज्ना । ८ द३-अवि आहारं वोच्छिदेजा । ८४--अवि चए इत्थीसु मणं 1 ८५-पून्वं' दंडा पच्छा फासा, पुव्वं फासा पच्छा दंडा । ८ ६--इच्चेते कखहा संगकरा भवंति । पडिकेहाए आगमेत्ता आणवेज्ञा अणासेवणाए-- त्ति बेमि । =७-से णो काहिए णो पासणिए णो संपसारए णो ममाएः णो कय-किरिए वद्-गुत्ते अज्फप्प-संवुडे परिवज्ए सदा पावं । =८-एतं मोणं स्मणुवासिजासि । त्ति बेमि। पंचमो उरेसो ८९-से बेमि-तंजहा अवि हरण पडिपुन्ने, “चिट॒ढ्द समसि भोगे! । उवसंतरए सारक्खमाणे, से चिटृठति सोयमजञ्फगए ॥ ९ ०-से पास सव्यतो गुत्ते, पास खोए मरेसिणो, जे य पन्नाणमंता पवुद्धा आरंभोवरया । १-पल्वि (घ )। र-ममायए { छ) ; मामए ( शयु ) 1 ३--ममति मोमे चिदूढइ ( च ) 1 ६२ आयार ९१-सम्मरमेयंति पासह' । ९२-कारस्स कखाएं परिव्वयंति--त्ति बेमि । ९३-वितिगिच्छ'-समावन्नेणं अपपणिणं णो लभति समाधि । ९४-सिया वेगे अणुगच्छंति, असिया वेगे अणुगच्छंति, अणुगच्छमाणेदहिं अणणुगच्छमाणे कह ण णिच्विज्जे ? । ९५-तमेव सच्चं णीसंकं, जं जिणेरिं पवेहयं । ९६-सडढस्स णं समणुन्नस्स संपव्वयमाणस्स-- समियंति मण्णमाणस्स एगया समिया होड समियंति मण्णमाणस्स एगया असमिया होइ असमयंति मण्णमाणस्स एगया समिया हो असमयंति मण्णमाणस्स एगया असमिया हौड समियंति मण्णमाणस्स समिया वा, असमिया वा, समिया होई उवेहाए । असमयंति मण्णमाणस्स समिया वा, असमिया वा, असमिया होई उवेहाए । ९७--उवेहमाणो अणुवेहमाणं बृथा-उवेहाहि समियाए, ९८--इच्चेवं तत्थ संधी फोसिंतो भवति । ९९--उष्टियस्स व्यस्स गति समणुपासह । १००--एत्थवि बाल-भावे अप्पाणं णो उवद॑सेल्ञा । १०१-तुमंसि नाम सच्चेव ˆ, जं हंतव्वं' ति मन्नसि, तुमंसि नाम सच्चेव, जं अल्नावेयव्वं' ति मन्नसि तुमंसि नाम सनच्चेव, जं परितावेयव्वं' ति मनसि १--पासहा ( क, च, छ ) 1 २--वितिगिछ (छ ) $ विगिछ ० (च्यु) ३- तं चेव (क, घ, च ) 1 ध , 1 धच अमवण ( चौ उतो ) ° तुमंसि नाम सच्ेव. जं 'परिषेतवव' ° ` ति म॒न्नसि. तुमंसि नाम॒ सच्चेव, जं "उद्वेयव्वं ति मन्नसि 1 १०२-्ज्‌ चेय पञनद्ध-जीवी", तण्हा ण हंता ण विवाय | १०३-थणुसंगरेयणमप्याणणं. चं (तवं नि* णामिषत्थष्‌ः १०४-ने भाया से विन्नाया, जे विन्नाया से खय जेण वि्ाणति से भाया, तं पड्च्च पडिमंसा- . १०५ प्रतत आया-वादौ समियाए-पस्यिग्‌ चिवाह्धिे ' द्रा उचा १०६-जणाणाणं एने सोवद्रणा, आमाए ~ <=----~ ?०७--गण्लतेमा हार) । १०८-पयं कुमलस्प दंनणं | १०९-तद्द्धीए्‌ तम्धृचीए, तगु तन्न न ११०-अभिमूय गकु, यणमिन्नै न १११-जे महं" अबहिमणे! ` । ११ २-पवाएणं पवायं जापेन्लः ११२-सह्‌-सम्मडइयाए. पन न ~ ~ ११४-गिरेस णात्ििग्ेन्दा => | र्द. = {एव ज प्रिवेनच्व नि जन्य ज उटेयतव' नि मनम (न न्रे ८.५. २-चेव(क),च,म्‌. य.) त (1 ३-पडिवुर्म० सं च) ४ ४ (कगषच ष); ५-अह्‌ (त्रे) द मम्ृह(तिपा {न्द्ध ध} आयारो ११५-सुपडिलेहिय' न्वतो सन्वयाए" सम्ममेव ` समभिजाणियाः। ११६-दहारामं परिष्णाय, अस्छीण-गुत्तो परिच्रए | णिचिद्यद्‌ढी बीरे, आगमेण सदा परक्कमेज्जासि-त्ति नेमि । ११७-उडदं सोता अहे सोता, तियं सोता षियाहिया, एते सोया बियक्खाया, जेहि संगंति पासहा ॥ ११८-आवदटं त॒ उवेहाए", "एत्थ विरमेज्ज वेयवी* । ११६९-विणणएत्तु सोयं णिक्लम्म< , एसमहं अकम्मा जाणति पासति । १२०-पडिरेहाए णावकंखति, इह आगति परिण्णाय १२१-अग्चेद जाद-मरणस्स वटुमग्गं ` वक्खाय-रए" १। १२२--सल्वे सरा णियद् ति । १२२- तक्रा जत्थ ण विज्जह । १२४ म तस्थ ण गाहिया । १२५-ओए अप्पतिद्राणस्सं खेयन्ने । १२६-से ण दीह, ण हस्ते! ', णवर, ण तंसे, ण चररसे, ण परिमण्डङे । १-- ° लेहिय ( चू) २-सन्वत्ताए ( चू ) . सवत्मिना (वृ ) 1 ३-- ° मेत (चू) ४--न्स्जा{ घ) ५-जावदटमेय तु येहाए ( ख, ग, घ ) › अटूटमेय उवेहाए {चर ) । ६--विषेग किष््टद येदवी ( चू, वुपा ) ; एत्थ विरमेनज्ज वेयवी ( चूषा ) । ७--पिणरएत्ता ( चपा ) । स~-णिककम्म(म्मा) ( घ, छ ) 1 इ--वदुमष्गं (क) ; वद्ुमग्गं (च, यु) । १०-विकषखाय ° (क, ख, ग, घ, च, छ) 1 ११दस्से ( क, घ च ) रहस्से (ख ); हरस्ते ( छ ) । पंचमं अञ्भ्यणं ( टो उदेसो ) ६५ १२७-ण कष्ट, न णीडे, ण छोहिए, ण हालि, ण सुक्षिल्ले । १२८-ण सुव्भिनंये", ण दुरभिमधे 1 १२९-ण तित्ते, ण कड्‌, ण कसाए, ण अंबिले, ण महुरे । १२०-ण कवखडं*, ण मउषए, ण गरुए, ण छहुए, ण सीप, ण उण्हे. ण णिद्धं , ण लुक्खे । १-ण करा । २-ण म्ह । ३ -ण सगे) १३ १३ १३ {३४-ण इत्थी, ण पुरिसे, ण अन्तहा । १३१५-परिष्णे सण्णे ` । १३६-उवमा ण विज्जण । १३७-अरूवी सत्ता । १३८--अपयस्स पयं णलि । १३९-ते णसटे, णस्ते, ण गंधे, ण रसे, ण फासे, इच्चेताव । --त्ति वेमि । १--पुरहि (भि) (क,ख,म)। २--कक्कडे ( घ, छ } । ६ ३ सव्वमो (चू); (ध )। ५ छट्ढं अज्फयणं धुयं पढमौ उरसो १-ओबुज्फमाणे इह माणवेु, आघाईइ' से णरे । २-जस्सिमामो जाईभो सव्वओ सुपडिकेहियाभो भवंति ।, अक्खाई से णाणमणेरिसं । ३-से क्िदट्रति तेस्सि समृष्ठियाणं पिक्छित्त-दंडाणं समादहियाणं पन्नाणमंताणं इह्‌ मुक्ति-मरगं । ४-एवं पेगे महावीरा विप्पर्कमंति । १-पासह एगे ऽवसीयमाणे* अणत्त-पन्ने । ६-से बेभि-से जहा वि कम्मे हरए विगिविह-चित्ते, पच्छन्न- पासे, उम्मग्गं* से णो लहई । ७-भंजगा इव सन्निवेसं णो चयंति, एवं फेगे"-- 'अणेग-स्ेहिं इकेर्हि* जाया, (स्वे सत्ता कटुणं थणंति, णियाणथो ते ण कभंति मोक्खं । १-अक्खाति (क, ख, ग, घ ) ; अग्बाति (चरु )। २--विसीय ० (क, ख, ग, घ, चू) ३--उम्मुग्ग ( क, घ, छ ) 1 ४--वेगे (च )। ५--अणेग गोततेसु कुलेसु ( चू ) } ६-र्वेसु गिद्धा ( चू ) 1 \ छदं भञ्भयण ( पटमो उदेसो } ६७ ८-अह्‌ पास तेहि", कुटेहि' आयत्ताए जाया-- गंडी अवा कोदी*, रायंसी अवमारियं। काणिथं िमियं चेव, णियं खुल्जियं तदा ॥ उद्रि पात मूधः च, घणि च मिकरास्तिणि। वेव" पीढ-पपिपं च, सिरिवियंः महु-महणि ॥ सोरु एते रोगा, अक्खाया अणुपुत्वसो । अह णं फुसंति आय॑का, फासा य असमंज ॥ मरणं तेभि संपेह्ए, उववायं चयणं च णच्चा | परिपागं च संपेहाए, तं सुणेह जहा-तहा॥ ९-संति पाणा अधा तमंसि"° वियाहिया ॥ १०-तामेव सदं असद्‌ अतिअच्च'* उच्चावय-फासे पडिसंवेदेति"* । ११-ुद्धेहि एयं पवेदितं । १२-संति पाणा वासगा, रसगा, उदए उदय-चरया, आगास- गामिणो । १३-पाणा पाणे विरेसंति । १४-पास रोए सहन्भयं । ` तेहितेहि (च्‌) > (चरू)। दकोष (ण, छ )1 ४८-मुड (कषघ, चू)। ५--वेवव ( क, ख, ग, च ) , वेवदयं ( घ ) 1 ६-सिलेवद्‌ं (घ, च ) 1 ७-मधुमेहण (छ ) 1 ८~-सयेहाए (क, घ, च ) ; पेहाए (ख, न ) 1 &--परियाग ( ख, ग, घ ) ( अशुद्ध ) ; पलिपाग ( चू ) 1 १०-त्तमसि (कः, घ ) । ११--अत्तिगच्च ( क ) 1 १५ ° वेदेति (के, ख, घ, च, छ )। ६ आयारो १५-बहु-दुक्खा ह जंतवो । १६-सत्ता कामेर्हि' माणवा | १७-अकेण वहं गच्छंति, सरीरेण पंमुरेण । १८-अद्र से वहु-हक्खे, इति वठे पङ्व्वई्‌ । १९-एते रोगे बहू णच्चा, आरा परितावए । २०-''णाकं पास" । २१-'अकुं तवेए्हि । २२-एयं पास मुणी ! महब्‌भयं 1 २३-णातिवाएज्ज कचणं । २४-जायाण भो ! सस्सूस मो ! श्वूय-वादं पवेददुस्सामि' । २५-इह खलु अत्तत्ताए तेर्हि-तेहि कुलेहि अभिसेएणः अभिसंभूता, अभिसंजाता, अभिगिव्वहूा, अभिसंधा", अभिसंबद्धा अभिणिक्ंता, अणु्वेण महुणी । ९६--तं परक्छमतं परिदेवमाणा, “मा णे चयाहि"” इति ते वदंति । छंदोवणीया अञ्फोकवन्ना, अवकंद-कारी जणगा स्वति ॥ २७-अतारिसे मुणी णोः ओहंतरए, जणगा जे विप्पजढा । २८-सरण तत्थ णो समेति ! किह णाम से तत्थ रमति ? २९-एयं' णाणं सया समणुवास्षिज्जासि । -- त्ति नेमि। १--कामेसु ( च ) २-नागार्जुनीया :-धूयो वाव पवेयइस्सामि- ( च ) ; धूतोवायं पवेवति (वृ )1 ३--८ (घ, च ) 1 ४-->८ ( क, छ) ; ° सवड्ढा ( ख, ग ) ; अभिबुद्धा ( घ )1 ५--जहाहि ( चु ) । &-> (क, घ, चः छ }) | ७--एवं ( च ) ( अद्युं ) । छं अज्भयणं ( वीओ उदेसो ) ६९ वीजो उसो ३०--भातुरं रोय मायाए, चत्ता पुच-संजोगं'' हिच्वा* उवसरमं वसित्ता वंभचेरम्मि, वसु वा अणुवसु वा जाणित्तु धम्मं अहा तहा, “अहेगे तमचाई कुसीला । ३१-वत्यं पडगगहुं कवरं पाय-पुमं विउसिज्जा* ३२-अणुपुव्ेण अणहिथासेमाणा परीसहै दुरहियासए 1 ३३-कामे ममायमाणस्स, इयाणि वा युहुत्ते" वा अपरि-माणाए भेदे । ३४-एवं से अंतरादणहि कामेहि अ केवलिएहिं अवितिण्णाः चेए* । ३५-अहेगे धम्म मादाय अआयाण-प्वभिर सुपगिहिए! * चरे ३६-अपलीग्रमाणे '' ददे । ३७-सव्चं गहि ' ` परिण्णाय, एस पण्‌ महा-षणी । ३८-अदच्च स्तो संगं, "“ण महं अच्यित्ति इति एगोहमंसि १-जहित्ता पुव्यमायतग ( चू )। २--हिच्चा इह ( चू) ३- जहा (ख ) 1 ४--विथ० (@)। प्--महुत्तेण (ख,ग, च, छ, वृ) ६ अवतिन्ना (ग, छ }। ७--एताणि विवज्जतेण पटिज्जति अत्थञ।सावातो--अहेगे त चाई सुसीलाः वत्य पडिगगहूं कंवल पाय-पुछण अविउसिज्जा, अणुपुन्वेण अहियासमाणां परीसहे दुरहियास, कामे अममायभाणस्स दाणि वा मुहृत्ते वा मपरिमाणाए भेदे । एव से अंतरादर्णहि कामेहि आकेवलिएहि वितिन्ना चेए { चू ) 1 >-सहिए धम्ममायाय ( चूपा ) ! &- ° पभितिमु पणि? (क,ख,ग,च, छ, वृ )। १०--उवदेसमेव चर ( चू ) । ११-अप्प० (क्‌, ग, घ, छ )। र-गिहि (ख, घ) ; गघ (थ) (च ) 1 ५० यायो ३९-जयमणे एत्य विरते अणगारे सव्वओ मंडे रीयतेः । ४०-जे अचेरे परिवृसिएः संचिक्वतिः ओमोयरियाए ।. ४१-से अट व* हए वं लूतिए" बा । । ४२-पलियं पथे अहुवा पगंथेः । ४२-अतहेहि सदह-फासेहि, इति संखाए । ४४-एगतरे अन्नयरे अभिन्नाय, तितिक्खमाणे परिष्वरए | ४१-जेयदहिरी, जेय अहिरीमणा"। ४६-चिच्चा सवं विसोत्तियं, "फ़ासे-फासे' समिय-दंसणे | ४७-एते भो ! णगिणा वुत्ता, जे लोगंसि अणागमण-धम्मिणो | ४८--अणाए सामगं धम्मं" । ४९-एस उत्तर-बादे, इद माणवाणं त्रियाहिते । १०--एत्थोवरए तं फोसमाणे ५१-आयाणिऽजं परिण्णाय, परियाएण वि्मिचः्‌ । ५२--दहमेगेसि एग-चरिया होति । ¶ ३-तत्थि'यरा इयरेहि कुलेहि सुद्धेसणाए सव्वेसणाए । ५४-से मेहावी परिष्व । ५५-सुन्भि अदुवा दुम्मि । ५६-अहुवा तत्थ भेरा । १--रीयते (क, घ, च ) । २-- ० जुसिते (छ) ; >+ (चु )) ~ ३-- ° चिदु ° (छ ) 1 ४-चा(ख,च, छ)! प-लुचिए (खः ग, छ, वु } । ६--पकत्थ ( क ) ; पकये ( ख, ग, च ) ; पगत्थ (छ ) । ७-- ° माणे (णा) (ख, घ, च, छ ) | ८-फासे (ख, घ ) ; सफासे फासे ( च )। -छट्ढं अन्भयणं ( तद्ओ उदेसो ) . ७१ ५७-पाणा पाणे किलसंति । ५८-ते फासे पुद्रो धीरो" अहियासेज्जासि । - त्ति बेमि। तद्थो उदेषो ५९-"एयं ख णी" आयाणं सया सुअक्वाय-धम्मे विधूत-कप्य गिज्पोसइता- । ९६०-जे अचेठे परिवुसिए, तस्स णं भिक्खुस्स णो एवं भवदइ-- परिजुण्णे" मे वत्थे वत्थं जाइस्सामि, सत्तं जादस्सामि, मू जाइस्सामि, संधिस्सामि, सीवीस्सामि, उक्कसिस्सामि, . वोक्कसिस्सामि, परिहिस्सामि", पाउणिस्सामि । ६१-अदुवा तत्थ परक्कमंतं भज्जो अचलं तण-फासा फुसंति, सीय-फासा फुसंति, तेउ-फासा पुंसंति, दंस-मसग-फासा पुसति । ६२-एगयरे अन्नयरे विरूव-रूवे फासे अहियासेति अचले । ६२३-'राघवं आगसममाणे'ः | ६४-तवे से अभिसमण्णागए भवति । ६५-जहे'यं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्वा 'सव्वतो सन्वत्ताए'° सम्मत्तमेव समभिजाणिया- । १-वीरो (रे) (क, च ) । र्-एस मणी (च )1 ३ ° सइत्ता (क, ख, ग, छ ) 1 ४~ ° जिष्णे (घ, छ ) ५ (क,षःतु)। ६-नागार्जूनीया --एवं खलु से उवगरण-लावविय तव कम्मक्छयकारण करइ (च, वु ) ७-नागार्जुनीया सव्व सव्दत्ताए । म- ° जाणित्ता (ख, ग, च )। र आयार ६६-एवं तेि महावीराणं चिरराईं पुव्वाहं वासाणि रीयमाणागणं दवियाणं पासं अषियासियं । ६७-आगय-पन्नाणाणं किसा बाहा* भवंति, पयणुए य म॑ंस- सोगणिए } ६८-विस्सेणि कट्टु, परिण्णाए" । ६९-एस तिन्ने रुत्ते विरए वियाहिए--त्ति नेमि । ७०-विरयं भिक्षुं रीयंतं, चिर-रातोसियं, असती तत्थ किं विधारए ? । ७१-संधेमाणेः सषुडटिए" | ७२-जहा से दीपे असरंदीणे, एवं से धम्मे आयरिय-पदे सिए | ७द-ति अणवकष्ठमाणा'‹ मणतिवाएमाणा* दद्याः मेहाविणो पंडिषा । ७४-एवं तेसि भगवो बणुद्राणे जहा से दिया-पौय* 1 ७४-एवं ते सिस्सा दिया य राओ य अणुपुव्वेण वाद्य । -- त्ति वेमि। वाधा (क, च ) ; वाहवो (छ ) 1 २- ° ण्णाय ( खे, ग, छ ) 1 >-संधणाए (चु ) ; घधेमाणे ( चपा) ! ४-ण्टाय(खःग,घ,चःछ)) प-आरिय-ठेसिए्‌ (क, चः चू )। ६ते अवयमाणा भावसोया ( चु); ते जणवकंेमाणा ( चपा ) 1 छ-पाणे अणत्ति ° (ख,ग, छ, वर ); अणतिवरतेमाणा जाव अपरिगिष्डैमाणा ( चू )1 म-चियत्ता (च ) 1 दिय ° (ग }। चन छटठं अन्फयणं ( चउत्यो उदहेसो ) ७३ चउत्थो उदेसो ७६-एवं ते ^सिस्सा दिया य रामो य अणुपुन्वेण वाद्या" तेहि" महावीरेहिं पण्णाणमंतेहिं 1 ७७-तेसितिए* पण्णाण मुवर्व्भः हिन्वा उवसमं "फारंसिय" समादियंति' । ७८--वसित्ता बंभचेरंसि अआणं तं णो' त्ति मण्णमाणा, ७९-अग्धायं* नु सोच्चा णिषम्म॒समणुन्ना जीविस्सामो' एगे णिक्स्म ते-- असंभवंता चिडस्फमाणा, कामेहि गिद्धा अज्मोववण्णा | समाहि साच्याय मफोस्रयंता, सत्थारमेउ फरुसं वदंति ॥ ८०-सीरमंता उवसंता, संखाए रीयमाणा । ““असीला" अणुवयमाणा 1 ८१--वितिया मंदस्स वार्या । | ८र्-णियटुमाणा वेगे भआयार-गोयरमाइक्खंति, णाण-भहा 1 दंसण-लूसिणो । ८३-णममाणा एमे जीवितं विप्परिणामेति । ८४-पुद्धा षेभे णिति, जीवियस्सेव कारणा' । ८५-णिक्खंतं पि तेस दुन्नतिक्खंतं भवति । ८६-बार-बयणिज्जा हु ते नरा, पुणो-पुणो जाति" पकपष्येति । तसि महावीराण ( चू )। २-तेसतिए्‌ ( क, च } , हेमिमतिए (छ ) 1 इ ° पडुलन्म (चु )1 ४-महेगे फारुपिय समारभति ( चपा ) ; जहेगे फायिय समारुहति ( वृषा ) 1 ५-आघावं (क, ख, घ, च ) । ६कारणाए (क, घ्‌, छ } 1 छ-गव्माह्‌ ( च ) | ६ ७४ -आथाये ८७--अहे संमवंता विदहायमाणा । अहमंसी' विडक्कसे ८८--उदासीणेः फ़रुसं वदंति । ८६ परियं पगंथे अदुवा पगथ, अतहेहि । ९०-तं मेहावी जाणिज्जा धम्मं | ९१-अहम्मदह्री तुमंसि णाम बाते, आरंभद्री, अणुवयमाणे, हण- पणि, घायमाणे, हणयोयावि समणुजाणमणे, धोरे धम्मे उदीरिए, उवेहई णं अणाणाए ९२-एस विसण्णे विते वियाहिते- -त्ति नेमि । ९३-क्रिमणेण भो { जणेण करिस्सामि^त्ति मण्णमाणाः "एवं पे वद्त्ता'^, मातरं पितरं दिच्चा, णात्तभो य परिह । ववीरायमाणाः सथुद्टाए, अविर्हिसा सव्या दंता' ॥ ९४-अहेगे पस्स दीणे उप्पइएु पडिवयमाणे* । ९५-वसटरा कायरा जणा लूसगा भवंति । १-° मंसीति (ख, ग, च )। २-उद्यसीमा (छ )1 ई-हयमाणे ( छ } । ४-मण्णमाणे (क,ख, ग, घ, च, छ )। ५-एवमेगे षिदित्ता ( क) ; एव एमे विभत्ता ( चपा ) , ° विदित्ता (छ) । ६-०मणि(क,षःच,छ); छ-~नागार्जुनीया --समणा भविस्मामो अणगारा अकिचणा अयुक्त यपसूया अविहिसगा सुख््रया दता परदत्तमोणो पव कम्म न करिस््ामो समृद्ठाए्‌ (चु, चु 21 ८८ (क,ख,ग,च,छ, वु )। ्~पडियमाणे ( च, छ ) 1 छ्रु अज्फपणं ( पंचमो उदेसो ) ५ ९६-अह्मेगेसि सिरोए * पावए भवद्‌, “से समण-विन्भंते समण-विव्भतं* 1 ९७-पासहेग* समन्नागएहि असमण्णागए*, णममाणेहिं अणममाणे, विरतेहि अविरते, दविएहि अदविए । ९८-अभिसमेच्चा पंडिए मेहावी णिष्चियष्रे वीरे आगमेणं सया परक्षमेज्जासि" । --त्ति बेमि। पंचमो उदेसो ९९-से गिहैसु वा गिहुतरेसु वा, गामेसु वा गामंतरेषु वा, नगरेषु वा नगरतरेसु वा, जणवएसु वा जगवयंतरेषु वा, संतेगदया जणा ठृसखगा भवंति, अदुवा-- फासा फुसंति ते फासे, पुष्टो वीरो" ऽहियासए । १००-ओए समिय-दंसणे । १०१-दयं रोगस जाणित्ता, पाईणं पडीणं दाहिणं उदीणं, आके पिभषए किट वेयवी । श-लोए (च, छ ) 1 ग-समण वित्तते ( क, £, चू ) › समण भवित्ता समण विन्भते (ख,ग). समणे भविना विव्भते विन्धते ( छ )। ३-पास्र एगेः ( कं ) › पासवेगे ( च )। ४-सह असमण्णाग्ए (ख, ग, छ ) 1 ५-स्न्वओ परिव्वएज्जासि ( चू ) । ६-जणवयतरेसु वा जाव रायहाणी सु वा रायह्‌।णी अतरेसु वा गामणयरंतरे वा गाम जणवयतरे कवा णग्रजणवयतरे वा जाव भामरायहाणी अंत्तरेवा उज्जाण्वा उञ्जाणतरे वा॒विहारभुमी गयस्स वा गच्छतस्स वा अद्धाणपडिवन्नस्स च्छतस्स वा जावे काउसम्ग ठाणं वा वियस्स ( चू, व )! छ--धीरो (च ) 1 ८--नागार्जुनीया --जे खलु समणे बहुर्पुए वन्भागमे आहरणहेउकुसले धम्मकहोलदि- संपन्ने खेत्तं काल पुरिख समासज्ज केऽयं पूरसि कं वा दरिसणममिसपन्नो ? एवं गुण जाइए पमू धम्मस्स माचवित्तए' 1 ७६ शरंयारो १०२-से उद्विएमुं वा अणुद्धिएसु' वा सुस्मुसमाणेयु पवेदए- संति, विरति, उवसमं, णिव्वाणं", सोयवियं* अज्जवियं, म्हवियं, लाघवियं, अणदवत्तियं* 1 १०३-सव्वेसि पाणाणं त्वेस भूयाणं सव्वेसिं जीवाणे सन्ेसिं सत्ताणं अणुवीद भिक्खु धम्ममादइक्खेज्जा 1 १०४--अणुवीड भिक्ल्‌ धम्ममाद्क्वमाणे-- णौ अत्ताणं आसाएज्जा, णो परं आसाएन्जा, णो अण्णा पाणा भथा जीवाईइ' सत्ताद' आसाएज्जा । १०५-से अणासादएु अणासादमाणे बनज्फमाणाणं पाणाणं भूयाणं जीवां सत्ताणं, जहा से दवे अ्ंदीणे, एवं से-- भवं सरणं महादुणी । १०६-एवं से उद्टिए रियग्या", अणिहे अचे चके अवदहि-रस्से पर्व । १०७-संखाय पेसलं धम्मं, दिष्चिमं परिणिष्खुडे । १०८-तम्हा संगं तति पास । १०९-गंधेहिं गदियाः णरा, विसण्णा काम्‌-विषिया* । ११०-"तम्हा लृहाजो णो परिवित्तसेज्जा"“ । १--जणुदिखएचरु वा जाव सोवटिठ्एु वा ( चु ) 1 २--णेव्वाण (क, च } 1 उ-सोय (ख,ग )1 ४--अणत्तिवातिय { चरु )1 ५--उदटिउतप्पा ( चुः च )। ६गहिता {८ ) 1 ७--कामक्कता { क, ख, ग, च, छ, ठृ } 1 म--जस्ि इमे चुसिणो णो परिवित्तरति चू) , तम्हा नुहामो णो परिवित्त सिज्जा (रूपा) । चछच्टं अज्पयण्‌ ( चउत्यो उदेसो ) ७७ १११-जस्सि'मे आरंभा सव्वतो सव्वत्ताए सुपरिण्णाया भवंति, जेसि"मे लूसिणो णो परिवित्तसंति", से वंता कों च माणं च मायं च लोभं च। ११२-एस तुटटे* चियाहिते- त्ति वेमि । ११२-कायस्स विओवाएञ, एस संगाम-सीसे वियाहिए । से ह पारंगमे इुणी, अविहम्ममणे" फएलमावयहि, कारोवणीते कंसेज्जकारं, जाव सरीर-भेउ । --त्ति वेमि । १-> (चू); जस्सि "(चछ )। २-तिउट्टे (चू) ३--विवाधाए ( ख, ग ) , विघाए्‌ @), विवायार्‌ ( च }, व्याघात (विवाघाएु) ( वृ } ४-- ° हन्न ° (क )। ५-- ० तदिठ (क, छ ) । अदुभं अज्मयणं विमोक्खो पमो उसो १-से बेमि--समणुन्नस्स वा असमणुन्नस्स' वा असणं वा, पाणं वा, खादइमं वा, सामं वा, वत्थं वा, पडग्गहुं वा, कबलं वा, पाय-पदणं वा, णो पाएज्जा, णो गिमंतेज्जा, णो कूञ्जा वेयावडियं-परं आढायमाणे--्ति वेमि । २-धुवं चेयं जाणेज्जा--असणं वा, पाणं वा, खादइमं वा, सादमं वा, वत्थं वा, पडिगगहं वा, कबर वा, पाय-पुंखणं वा, लभिय णो कुभिय, भुंजिय णो भंजिय, पंथं वित्ता विउकम्म विभक्तं धम्मं फोसेमाणे* समेमाणे पलेमाणे", पाएज्ज वा, णिसतेज्ज वा, कूज्जा वेयावडियं-परं अणाढायमाणे,-- त्ति बेमि । ३-इहमेगेसि आयार-गोयरे णो सुणिंते भवति । ते इह आरंभ अणुवयमाणा हण पागे' घायमाणा, हणती यावि समणुजाणमाणा । ४-अदुचा अदिन्तमाइयंति । श-अमणु< (क,ख, )। २--वियत्ता { क, छ ) ; विवत्ताण { ख, ग ) , विडइयत्ता, ( च ) ; ` विवत्तण ( सू) ( चिन्तनीय )। ३-जोसे ° (च) --मलेमाणा { च ) ; बलेमाणे ( च ) ; चलेमाणे ( छ ) ; मालेमाणा { च्‌ ) । अट अन्भयणं ( पढमो उदेसो ) ७ ५-अदूवा वायाओ विउजति^, तंजहा- अत्थि लोए, णत्थि लोए, भुवे लोए, अधुवे लोए, सादए" लोए, अणाइएः लोए, स-पज्जवसिते लोए, अपज्जवसिते लए, सुकडतति वा दुक्कडेषत्ति वा, कटाणे' त्ति वा पावे'त्ति" वा, साहृ'त्ति वा असाहु"त्ति वा, सिद्धीति वा, असिद्धीति वा, णिरए"त्ति वा, अगिरए्ति वा । £-जमिणं चिप्पडिविण्णा सामगं धम्मं पन्तवेमाणा 1 ७-एत्थवि जाणह्‌" अकस्मात्‌* । -°-'एवं तेसिं णो सुभक्लाए, णो सुपन्नत्ते धम्मे मवति | ९-से जहे'यं भगवथा प्वेदितं आसु-पण्णेण जाणया पातया । १०-अदुवा गृत्ती बओ-गोयरस्स-- त्ति वेमि । १ १-सत्य सम्मयं पावं | १२-तमेव उवादकम्म । १३-एस मह्‌ विवेगे वियाहिते 1 १४-गामे वा अदुवा रण्णे, णेव गामे णेव रण्णे, धगममायाणह-- पवेदितं माहणेण मदैमया । १-विप्पउजत्ति (क, ख, ग, च, छ } । म-साइ (ध) । ३--ठणाई (घ ) 1 ४--पवह (के); पावए {घ, च, छ) 1 ५-जाण (क, च), जणे (घ) ६--अकन्मा (चू) । ७--न एस धम्मे सुयक्छाए मुपन्नत्ते भवह ( चू ) 1 (7 ८9 आयायो १५-जामा तिण्णि उद्या, जेघु इमे जरिया संबृञ्छमाणा सथद्धिया | १६-जे णिष्वुया> पावहि कम्मे, अणियाणा ते बियाहिया । १७-उडढं अहं तिरियं दिसु, सव्वतो सन्वावंति च णं पडियक्के* जीवेहि^ कम्म-समारमे णं | १८-तं परिष्णाय सेहावी--णेव सयं एतेहि काएहि दंडं समारंभेज्जा, णेवण्गेहि एतेष काएहि दंडं समारंभावेज्जा, ने'वन्ने एतेहि काएहि दंडं समारभते वि समणुजाणेज्जा । १९-जेवन्ते एतेहि काएहि दंडं समारंभंति, तेसि पि वयं लज्जामो । २०-तं परिण्णाय मेहावी-तं वा दंडं, अण्णं वा दंडं, णो दंड-भी दंड समारभेज्जासि । -- त्ति बेमि। बीओ उद्सो २१-से भिक्खू परक्कमेज्ज वा, चिद्ेज्ज वा, णिसीएज्ज वा, तुयटृज्ज वा, सुसाणंसि का, सुन्नागारंसि वा, गिरिगहुंसि वा, सक्ल-मूलसि वा, कुभारायाणंसि वा, हुरत्था वा करि चि विहर्माणं तं भिक्लुं उवसंकमित्तु गाहावती द्रया-- आउसंतो ससणा ! अहं खलु तव अद्वाए असणं वा, पाणं वा, खादमं वा, सादमं वा, वत्थं वा, पडिग्गहुं वा, कवक वा, पाय- ` इ--जदाहडा (ष, छ, च) . उदाह्या ( ख, ग )1 ्-आयरिया (घ, छ )। ३--निन्बुडा ( चू ) 1 ४- पाडेक्क (क) ; पाडियनंक (घ, चू ) । ५-- दड समारभते ( चू ) अदुमं अज्भयणं ( बीओ उदेसो ) ८ पुचछणं वा, पाणाद्रं भयाद जीवाद सत्तादं, समारभ समुदिस्स कीयं पामिच्चं अच्छन्नं अगिसहः अभिहडं आहट चेतेमि", आवसं“ वा समृस्सिणोमि । से भुंजहं बसह्‌ 1 २२-अउसंतो समणा भिक्खू तं गाहावति समणसं सवेयसं पडियादक्खे-- आउसंतो गाहावती { णो खु ते बयणं आढामि, णो खलु ते वयणं परिजाणामि, जो तुमं मम अद्ाए असणं वा पाणं वा खादइमं वा साइमं वा, वत्थं वा पडिगगहुं वा कबलं वा पाय-पुद्धणं वा, पाणादं सूथ्रादं जीवाईं सत्ताइं, समाख्म समुदिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसहं अभिहडं आहट्टु चेएसि, आवसं वा समूस्सिणासि । से विरतो आसो गाहावती ! एयस्स अकरणाए । २३-से भिक्ु परव्कमेज्ज वा, ° चिद्ेज्ज वा, णिसीएज्ञ वा, तुयटरेज्ज वा, सुसाणंसि वा, सृन्नागारसि वा, गिरिगुहंसि वा, सक्ख- मूरंसि वा, कुंभारायतणंसि वा ०, हुरत्था वा कर्हिचि विहुरमाणं तं भिक्लुं उवसंकमित्तु गाहावती आयगयाए पेहाए, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कबलं वा पाय-पुंखणं वा, पाणाइं भुयाईं जीवां सत्तादं, समारख्भं॒समृदिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं, १- ° मिद्‌ढ (खः ग, च ) २--भाफुड ( च )। ३--वेतेमि'त्ति केयि भणति करेमि, त तु ण युज्जति (चू ) ४--आवसघं ( ख, ग ) , आवसथ ( छ ) 1 म्‌ आयारो ~ अणिसु अभिहडं आहट्‌टु चेएद, आवसहं वा समुस्सिणाति', तं -भिक्खुं परिघासेडं 1 २४-तं च भिक्खू जणेज्जा--सह-सम्मदयाए*, पर-वागरणेणं, अण्णेसिं वा सोच्चा -अयं खलु गाहावरई मम अद्वाए ` असणं वा पाणं वा खादइमं.वा सामं वा, वत्थं वा पडग्गहुं वा कंबरं वा पायपुधणं वा, पाणादं भयाद्ं जीवाद. सत्तां ° समारभ समृदिस्स कयं पामिच्चं अच्छे अणिसदं अभिहडं आहट्‌ट्‌ ° चेएड, आवसहं वा समुस्सिणाति तं च भिक्ख संपडिलेहाए" आगभेत्ता आणवेल्ना जणासेवणाए । --त्तिनेमि) २५-मिक्लुं च खलु पुषा वाअपुद्चवाजे इमे आच्च गया फुसंति-- ` "से हंता हणह्‌, खणह, चिदह, दहह पचह्‌, मपह, विदुंपह, सहसाकारेह*, विप्परामुसह"--ते फस वीरो पुद्रो"^ अर्हियासए । र २६-अदुवा आयार-गोयरमादइक्से । तक्रिकियाणमणेरिपं । २७-अदुवा वद-गुत्तीए^ गोयरस्स अणुपुव्वेण सम्मं पडिलिहाए आयगुतते । १- ° स्िणोति (क) । " ए्-सम्ु ° (क, घ, च, छ )। ३-अंतिए सोच्चा ( ख } । ४-० स्तिणोति (कं ) 1 ५-प्डिलेहाए (ख, ग, च ) । ६ ° सेवणयाए ( घ ) । ७-सहसक्कारेह ( न-पुटूढो धीरे ( खः+ग,चघ ) पुर्‌ ठे वीये ( ध्‌ ) 1 वीरो पटू (च ) 1 &- ° गुत्तीमो (ख, ग, घ ) । अम अज्मयणं ( तदो उदेसो ) ८३ २८-बुद्धेहि एयं पवेदितं-- । से सम्रणुन्े असमणुन्नस्त असणं वा पाणं वा खादइमं वा साइमं वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कबर वा पाय-पुंणं वा नो पाएज्जा, नो निमंतेज्जा, नो कुलजा वेयावाडियं-परं आढायमाणे *--त्ति वेमि । २९-धम्ममायाणह, पवेदयं माहणेण मतिमया- समणुन्ते संमणुन्नस्स असणं वा पाणं वा खादरमं वा सादइमं वा, वत्थं वा पड़ग्गहं वा कबलं वा पाय-पुक्गं वा, पाएजा, णिमेतेजा, कुल्ला वेयावडियं-परं आढायमाणे" -त्ति नेमि । तदूभो उदेसो ३०-मडिममेणं यसा विः एभे, संबुल्फमाणा सथुदिहता । ३१-'सोच्चा ब मेहावी!", पंडियाणं निसामिया | ३२-समियाष्टः धम्मे, आरिपर्हि" पवेदिते |` ३३-ते अणवकंखमाणा अणतिवाएमाणा अपरिगहमाणा णो 'परिगगहावंती सनव्वावंती' ° च णं छोगंसि । ३४-णिहाय दंडं पाणे, पावं कम्मं अकुव्वमाणे; एस महं अगंथे वियादिए । १-- ° मीणे (क, च ) 1 २- ° मीणे (क, च ) 1 ३-मज्०( ख ) । ४-मिह एमे (च ) 1 ५-सोच्चा मेहावी वयण ( क, ख ग, घ, छ ) › सोच्चा मेहावो ण वयणं { च ) । ९--समयाए (क ) 1 ७-आयरि्एहि ( घ, छ ) 1 ४-- ० वति सव्वावति { चख, सःघमच्रषठ ) ॥ , ४ । आयार , ३४५-ओए जुतिमस्स' खेयन्ने उववायं' चवणं * च च्चा । ` `. ३६-आहारोवचया देहा, परिसह-पभंयुरा । ` ३७-पासहे'गे सच्विंदिएहि परिगिकायमाणेहि । . ३ट-ओए दयं दयद्‌ 1 ३९-जे सन्निहाण"-सत्थस्स खेयन्ते, से भिक्खू कारुण्णे बलण्णे मायण्णे खणण्णे विणयण्णे समयण्णे परिह अममायमाणे काले'णुहाई अपडिन्ते . ४०-दुहभो छेत्ता नियाई 1 ¦ ४१-तं भिक्लुं सीयफास-परिवेवमाण गायं उवसंकसित्तु गाहावई वुया- आउसंतो समणा ] णोः खलु ते गाम-धम्मा उव्वाहंति ? आउसंतो भाहावई ! णो. खलु मम गाम-धम्मा उव्वाहंति । सीयफासं* णो खलु संचाएमि अदियासित्तए । णो खु मे कप्पति-अगगि-कायं उल्नाङेत्तए वा पञ्नकिन्तए्‌ वा, कायं जायवेत्तए वा पयवित्तएवा अण्णेसि वा ~ चयणाभो । ४२-सिया से एवं वद॑तस्स परो अगणि-कायं उजारे्ता पजालेत्ता कायं आयावेज्ज वा पयावेज्जञ वा, तं "च भिक्खू. पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज्जा अणासेवणाए -त्ति नेमि । १--जुदमंतस्प ( ख, ग, च ) ; अहवा जुत्तिम ( चू ) 1 २-भोवाय ( क, घ ) । इ३--चयणं (घ, च ) 1 ४--संनिहाणस्स ( चु )1 प--८ (चू) ६-अप्पं (तरु)। ७-- ° फासं च (क, ख, च)! अद्रमं अज्पयणं ( चउत्थो उदहेसो ) य्‌ भः चउत्थो उदेसो ४३-जे भिक्खु तिहि वत्थे परिवृसिते" पाय-चरच्थे्हि, तस्स णं णो एवं भवति--चउत्थं वत्थं जादस्सामि 1 ४४-से अहेसणिज्जाद्‌ं वस्थाई जाएज्जा । ४१-अहा-परिग्गहियाइं वत्थादं धारेज्जा । ४६-णो धोएज्जाः, णो रणएज्जा, णो धोय-रताईइं वत्थाड धारेज्जा । ४७-अपकिउिचमाणे >, गामंतरेयु । ४८-ओमचेकिए* । ४९-एयं खु वत्थ-धारिस्स सासग्गियं । ५०-अह्‌ पुण एवं जाणेजा-उवाइक्कते खु मंते, गिम्हे पडिवन्ते, अहा-परिजुल्नादं वत्थादं परि्वेज्जा, अहा- परिजुन्नादं वत्थाद्ं परिघ्वेत्ता-- ५१-अदुवा संतरुत्तरे ( अदुवा ओमचेर ? ) । ५२-अदुवा एग-साडे । ५२-अदूवा अचेरे"* । ५४--छाघवियं आगममाणे 1 ५५-तवे से अभिसमन्नागए भवति । ५६-जमेष्यंः भगवया पवेदितं, तमेव अभिसमेच्ा सव्वतो सव्वत्ताए* सम्मत्तमेव समभिजाणिया 1 . १-- ° उसिते (घ, छ )। = र घावेज्जा ( ग ) ; धाएज्जा (च ) 1 ४ ३ ° ओवमाणे ( ख, च, छ } । ई ४-अवम्‌ ° (कखःग]। ५--> (चू) ६-जहेयं ( ध ) । ७--सव्वयाएु ( घ ) ; सव्वताए ( च ) ; आवद (खं, ग ) । ८६ आयाते ५७-जस्स णं भिक्सुरस एवं भवत्ि--शुदटो खलु अहमंसि, नाल- महमंसि भीय-फासं अहियासित्तए, | से वसुमं सन्व-समन्नागय-पन्नाणेणं अप्पाणेणं कैद अकरणाए आद । ५८-त्वस्सिणो हं तं सेयं, जमेगे* विहमाइषए", ५९-तत्थावि तस्स कारु-परियाए, ६०-से वि तत्थ विभंत्ति-कारिए । ६१-दइच्चेतं विमोहायतणं हियं, सुहं, खमं, णिस्सेयसं ४, आणु- गाभियं --त्ति बेमि। पंचमो उदेषो ६२-जे भिक्खू दोह वत्थेहिं परिवुसिते पायतदएि, तस्सणे णो एवं भवति-- तदयं वत्थं जादस्सामि 1 ६२३-से अहेसणिज्जादं वत्थादं जाएज्जा । ~ ° अहा परिगगहियादं वत्थादं धारेज्जा । ६५-णो धोएल्जा, णो रएज्जा, णो धोय-स्तादं वत्थाईं धारेज्जा । ६६-अपकिउंचमाणे गामंतरेसु । ६७-ओमचेकिए ° । द<-एयं खु तस्स भिक्खुस्स सामम्मियं । १--जसेगे ( क, घ, च ) 1 २--वेहसादिषए (छ ) 1 २-निस्सेसं ( ख, ग, घ, च ) निस्तेसिय (च ) 1 अदटमं अन्मुयणं ( पंचमो दंसो ) ५ ६९-अह पुण एवं जाणेज्जा--उवाइक्कंते खलु हेम॑ते, ` गिम्हे पडिवन्ने, अहा परिजुष्णादं वत्थाईं परिद्वेज्जा, अहा परि- जुण्णाद वत्थाद्‌ परिवेत्ता ७०--अदुवा एगसाडे । ७१-अदुवा अचरे ७२-लाघवियं आगममाणे । ७३-तवे से अभिसमण्णागए भवति । ७४-जमे'यं' भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा, सम्वतो सव्वत्ताए सम्मत्तमेव समभिजाणिया । | ७५-जस्स णं भिवखुस्स एवं भवति- पुटौ अबलो अहमंसि, नाल- महमंसि गिहंतरसंकमणं “भिक्वायरिय-गमणाए'* षे एवं वदतस्स परो अभिहड असणं वा पाणं वा खादमं वा सादमं वा आहटटु दलुएज्जो, ह से पुव्वामेवः आखोएजा आउसंतौ ! गाहावती ! णो खलु मे कप्पद्‌ अभिहडे असणेण'* वा पाणेणवा खादमेण वा साइमेण वा भोत्तए^ वा, पायएः वा, अन्ते वा एयप्पगारे "< १-जहेव (घ, छ ) 1 २-भिक्खायरिथ-गमणाए ( क, घ, च, छ ) 1 ३--पुव्व ° (ख, ग, घ) । ४-अमिहडं असण (ख, ग, च) । ५-मोदृत्तए (ख, ग) । द-पायत्तए ( ख ) , पित्त (घ } › पातुए ( छ ) ; पत्तर (च ) । ७--तहप्पगारे {छ )1 =» त भिक्खु कई गाहावई ! उवसकमिततु वूया--आउसतो समणा | अहन्नं तव अद्राए असण वा (४) अमिहड दलामि, से पूव्वामेव जाणेज्जा-माउसंतो-गाहावई ! जन्न तुम मम जदाए असणं (४) मभिहडं चेतेसि, णो य खलु मे क्प एयप्पगारं अतण वा (४) मोत्तएु वा पायए्‌ व! अन्ने वा तहप्पगारे। ‡ (वपा) 1 ५ आयाये ७६-जस्स णं भिक्सुस्स अथं पगप्पे- अह चं खलु पडिण्णत्तौ मपडङ्ष्णत्तेहि, गिकाणो अगिकेर्हि, अभिकख साहम्मिएहि कीरमाणं वेयावडियं सातिज्िस्सामि। अह वा वि सलु अपडिष्णत्तौ पडण्णत्तस्स, अगिलाणो गिक्ाणस्स, अभिकंख साहस्मिअस्स कुजा वेयावडियं करणाए। ७७-आहटूटु पद््णं* आणक्वेस्सामि,° आहडं च सातिलिस्सामि, आहटटु पणणं भआणक्खेस्सामि, आहडं च णो सातिलिस्सामि, आहट्टु॒पदृष्णं णो आणक्सेस्सामि, आहडं च सातिज्िस्सामि, आहट्टु पदण्णं णो आणक्खेस्सामि, आड च णो सातिजिस्सामि। ७८-श्लाघवियं आगममाणे । ७९-तवे से अभिसमण्णागए भवति । ८०--जमेग्यं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेचा, सव्वतो सव्वत्ताए सम्मत्त मेव समभिजाणियाभ# ।* = १-एवं से अहा--किष्टियमेव धम्मं समहिजाणमाणे, संते विरते सुसमादहित-लेसे । ८ २-तत्थावि तस्स कारु-परियाए । ८३-से तत्थ विंति-कारणए 1 ८४-इच्चेतं विमोहायतणं दियं, सुहं, खमं, णिस्सेयसं, आणुगामियं --ततिमेमि। १--करणयाए (क, च )। २--णिवृत्त्यनुसारेण स्वीकृतोऽ पाठ ( सर्वत्र ) । ३--आणिविख ? (ख, ग) ; अभिक्ि ° ( चू )1 ४--चिन्हान्तर्वतीं पाठः चूर्णौ वृत्ती च समस्ति, प्रतीषु नोपृलम्यते । चण नुसारे णाऽवं पाठः स्वीकृतः, वृत्तौ समभिजाणमगे एतत्यश्चात्‌ स्वीकृतोस्ति 1 प्-अणु° (क-खःग, चःछ)। अद्म अज्मयणं ( च्छो उरसो ) 5 १ (> छदडो उदेसो ८५-जे भिक्खू एगेण वत्येण परिवुसिते पायविडएणे, तस्स णो एवं भवद- विद्यं वत्थं जाइस्सामि । ८६-से अहेसणिज्जं त्थं जाएजा । ८७-अहापरिग्गहियं वत्थं धारेजना 1 ८८- ° णो धोएज्ा, णो रएल्ा, णो धोयरत्तं वत्थं धारे्ञा । ८९--अपल्डिचमाणे गासंतरेसु । ९०-ओमचेलिए । ९१-एयं खु तस्स भिक्छुस्स साममिगयं 1 ९२-अह्‌ पुण एवं जाणेजा--उवाइक्कते खलु हमत ° , गिम्हे पडिवण्णे, अहा-परिजुन्तं बल्थं परि्वेज्ना, अहा-परिजुन्तं वल्थं परिष्ेत्ता-- ` ९२३-अदुवा अचले" । ९४-लाघवियं आगममाणे ९५-- ° तवे से अभिसमण्णागए भवति । ९६-जमे'यं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा, सव्वतो सव्वत्ताए ° सम्मत्तमेव समभिजाणिया । ९७-जस्स णं भिवकखुस्स एवं भवइ--एगो अहमंसि, न मे अस्थि कोई, न॒ याऽहुमवि कस्स", एवं से एगागिणमेव * अप्पाणं समभिजाणिजा । ९--लाघवियं आगममाणे । १--अदुवा एगसडे अदुवा अचेले (ख, ग, वः, च, छः यु ) 1 २-क्स्सवि (ध )। उ--एगाणिवं ० ( च, च्‌ }। ७ € भयारौ ९९-तवे से अभिसमन्नागए भवई । १००-जमे'यं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा, सब्वतो सन्वत्ताए सम्मत्तमेव समभिजाणिया । १०१-से भिक्लूवा भिक्ुणी वा असणं वा पाणं वा खादमंवा सामं वा आहारेमाणे णो वामाओ हणुयाओो दादिणं हणुयं संचारेजा' आसाएमाणे, दाहिणाभो वा हणुयाओ वामं हणुयं णो संचारेजा आसाएमाणे, से अणासायमाणे । १०२-लाधवियं आगममाणे, १०३-तवे से अभिसमन्तागए भवडई । १०४-जमे'यं भगवता पवेइयं,\ तमेव अभिसमेच्चा, सन्वतो सव्वत्ताए सस्मत्तमेव समभिजाणिया 1 १०५-जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति-- से "गिकामि च'* खलु अहं इमंसि समए", इमं सरीरगं अणुपुव्बेण परिवदहित्तए, से आणुपुव्वेणं आहारं संवदे, अगणुपुन्वेणं आहारं संवटुत्ता, कसाए पयणुए कच्चा, समाहियच्चे एलगाचयद्री, उटृढाय भिक्खू अभिनिखुडच्चे । १०६-अणुपविसित्ता गामं वा, णगरं वा, खेडं वा, कव्बडं वा, मडनं* वा, पटणं वा, दोण-मुहुं वा, अगगरं वा, आसमं वा, सण्णिवेसं वा, णिगमं वा, रायहाणि वा, १--साहरेज्जा (चर) । स्-आढायमाणे { चपा, वृपा )। ३--गिलाणा मिव ( ख, स ) ; गिलाणमिवे (छ, चू ) 1 ४-समये णो संचाएमि (ख, ग ) ; ने शक्नोमि ( वृ ) 1 प--मडवं (ग ) 1 अमं अज्यणं ( सत्तमो उदेसो ) ६१ 'तणाइं जाएला'', तणादं जाएत्ता, से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा; एगंतमवक्कमेत्ता अप्पंडे अप्प-पाणे अप्प-बीए अप्प-हरिए अप्पोसे अप्पोदए्‌ अप्पुत्तिग-पणग-दग-मद्िय-मकंकडा-संताणए, "पडिलिहिय पडिकलिहिय, पमज्जिय-पमन्िय तणादं संथरेज्जा, तणाडं संथरेत्ता'* एत्थ वि समए इत्तरियं कुज्जा 1 १०७-तं सच्चं सन्चावादी ओए॒तिण्णे चिण्ण-कहुकहे आतीतदे“ अणातीते चेच्चाण मेउरं कायं, संविहूणिय विरूव-रूवे परिसहोवस्गे अस्सि विसंभणयाए भैरव मणुचिण्णे 1 १०८-तस्थावि तस्स काल-परियाए । १०९-से* तत्थ विञंति-कारए्‌ । ११०--इच्चेतं विमोहायतणं हियं, सुहं, खमं, गणिस्सेयसं, आणुगामियं 1 --्ति बेमि। सत्तमो उदेसो १११-जे भिक्खू अचरे परिवुसिते, तस्स णं'* एवं भवति- चाएमि अहं तण-फासं अदहियासित्तए, सीय-फासं अहियासित्तए, तेउ-फासं अहियासित्तए, दंस-मसग-फासं अहियासित्तए, एगतरे अन्ततरे विरूब-रूवे फासे १-५८ (कः ग, घ, च )। २-पडिनहित्ता सथारग सथरेड संथारगं सथरेत्ता ( चू ) । उ-सच्चवादी (ख, ग, च, छ } । ४-अडूमट्‌ठे (क, घ, च ) ! ५-सेवि(ख,ग,स,ठ)) धतस्स णं भिक्चुस्स ( वृ ) 1 श्‌ ९२ बायाय अहियासित्तए, दिरिपडिच्छादणं "चहं" णो संचराएमि अहियासित्तए, एवं से कप्पति केडि-बंधणं धारित्तए । ११२-जदुवा तत्थ प्कमेतं भुनो अचरं तण-फासा फुंसंति, सीय-फास्रा फसंति, तेड-फासा कसति, दंस-मसग-फासा फुसंति, एगयरे अन्नयरे विरूव-र्वे फासे अहियासेति अचेखे । ११३-लाधवियं आगममाणे । १ १४-तवे से अभिसमण्णागएं भवतिं । ११५-जमेणं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा, सन्वतो सव्वत्ताए सस्मत्तमेव समभिजाणिया । ११६-जस्स णं भिक्लुस्स एवं भवति--अहुं च खलु अन्तेसि भिक्खूणं असणं वा पाणं वा सादं वा साद्मं वा आहट्टु दलदस्सामिः, आहडं चे सातिजिस्सामि । ११७-जस्स णं भिन्ुस्स एवं भवति-अहं च खलु अन्नेसि भिक्छूणं असणं वा पाणं वा खादमं वा साद्रमं वा आहट दलडस्सामि, आहडं च णो सातिज्िस्सामि } ११८-जस्स णं भिक्सुस्स एवं मवति-अहं च खनु अन्नेसि भिक्छुणं' * असणं वा पाणं वा खाहमं वा सामं वा आहट नौ दलइस्सामि, आहडं च सातिजिस्सामि । ११९-जस्स णं भिक्छुस्स एवं भवति-अहं खलु अन्नेसि भिक्खृणं असणं वा पाणं वा खादमं वा सादमं वा आहट्टुनो दलङ्स्सामि, आहडं च णो सातिनिस्सामि 1 ` ` (च (ख,ग,च,च)) २--दाहामि (चरू )) ३-->८ (क, ख, ग, घ, च, छ ) 1 अटुमे अज्मयणं ( सत्तमो उदेसो ) ९३ १२०-अहं च खलु तेण अहाइस्तिणं* अहेसणिज्जेणं अहा- परिगहिएणं असणेण वा पाणेण वा खादमेण वा साइमेण वा अभिकख साहम्मियस्स कुजा वेयावडियं करणाए । १२१-अहं वावि तेण अहातिरित्तेणं अहेसणिज्जेणं अहा- परिगहिएणं असणेण वा परणेण वा खाइमेण वा साडमेण वा अभिक्ख साहम्मिएदि कीरमाणं वेयावडियं सातिजिस्सामि । १२२-लाघवियं आगममाणे । १२३-तवे से अभिसमण्णागए *भवति 1 १२४-जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेल्वा, सव्वतो सव्वत्ताए० सम्मत्तमेव समभिजाणिया । १२५-जस्स णं भिक्छुस्स एवं भवति-से गिलामिः च खलु अह्‌ इमम्मि समए, इमं सरीरगं अणुपुव्वेण परिवहित्तए, से आणुपुब्बेणं आहारं संबटरेला, आणुपुब्वेणं आहारं संवषटेत्ता, कस्राए पयणुए कच्चा समादहिअच्चे एलगावयद्री, उद्ाय भिक्खू अभिगिचुडच्चे । १२६-अणुपविसित्ता गामं वा, णगरं वा, वेडं वा, कव्वडं वा, मडबं वा, प्टुणं वा, दोण-मृहं वा, आगरं वा, आसम वा, सण्णिवैसं वा, णिरमं वा, रायहाणि वा, तणाईं जाएजा, तणाईइं जाएत्ता से तमायाए एगंतमवक्कमेजा, एगंतमवक्कमेत्ता अ्यंडे अप्य-पाणे अप्प-बीए अप्प-हुरिए अप्पोसे अप्योदए अप्पुत्तिग-पणग-दग-मद्विय-मक्कडा-संताणएु, पचकलेहिय- १-आहा ° (क, च, छ 4 । ए्-गिलाएमि ( ख, छ ) । ४ भायार पडिकलिहिथं पमज्िय-पमन्िय तणाईं संथरेजा, तणादं संथरे्ता एत्थ वि समए कायं च जोगं च, इरियं च, पच्चक्छाएजा । १२७- तं सच्चं सनच्चावादी ओएु तिण्णे चिन्न-कहुकहे आतीतष्ट अणातीते वेच्चाण भेउरं कायं, संविहणिय विरूव-रूवे परिसहोवसगरे अस्सि विसंभणयाए भेरव मणुचिष्णे | १२८-तत्थादि तस्स कारु-परियाए 1 १२९-से तत्थ विअंति-कारषए्‌ । १३०-इच्चेतं विमोहायतणं दियं, सुहं, खमं, भिस्सेयसं, ञणुगामियंः' । --त्ति नेमि) अटूटमो उदेसो ` १-अणुपुव्वेण विमोहादं, जाद धीरा” समास । वसुमतो मदम॑तो, स्वं णच्वा अणेलिसं ॥ २-दविहं पि विदित्ताणं*, वृद्धा धस्मस्स पारगा) अणुपुव्वीए" संखाए, आरंभाओः तिख्टरति ॥ ३-कसाए पयणुए किच्चा, अप्पाहारो तितिक्ए । अह्‌ भिक्ख्‌ गिलाएजा, आहारस्सेव अंतियं * ॥ १-नागार्जुनीया -कटरुमिव आतट्‌ठे तत्थ सचतित सज्जीकरेत्ता उ परतिण्णे छिन्नकह्‌ कहेज्जा जाव आणुगामिषं ( चु ) । २्‌~वीरा ( के, च ) 1 ॐ-युसिमतो { चु) । ॐ-विगिचित्ता ( चपा ) 1 ५- ° पृत्ीड ( ग ) । ६-कम्मुणाओ ( चपा, दपा ) । ७~कारणा {चू )। अटुपं अज्छयणं ( अटुमो उदेत ) ४-जीवियं णाभिक्वेज्जा, दुहतो वि ण सज्जेजा, ५-मज्छत्थो णिजरा-पेही, अतो बहि विउसिज्ज, ६-जं किचुवक्षमं* जाणे, तस्सेव अंतरद्धाए, ७-गामे वा अदुवा रण्णे, अप्पपाणं तु विन्नाय, ८-अणाहारो तुञट्धेनाः, णातिवें भुंजति मंस-सोगियं, १०-पाणा देहं विर्हिसंति, प-वि उन्ममे (कः खः ग, चःवु )1 ६-अवसरव्वेहि विचिरत्तेहि (चू ) । छ-~तप्प ° ( घ ) 1 उवचरे, ९-संसप्पगा य जे पाणा, मरणं णोवि पत्थए 1 जीविते मरणे तहा ॥ समाहि मणुपाखए्‌ । अज्फत्थं सुद्ध मेसए ॥ आउ-क्खेमस्स अप्पणो । चिप्पं सिक्खेज्ज पंडिए ॥ थंडिलं पडिलेहिया | तणाइं संथरे मणी] पष्ट तत्थ हियासए । माणुस्सेहि विपुष्रमोः ॥ जे य उडढमहेचरा। ण चे न॒ पमज्जए॥ ठाणाभो ण विउन्भमे" ! आसवेहिं विवित्तेहिः*, तिप्पमाणेऽदहियासए* ॥ ११-गंथेहि विवित्तेहि”, आउ-काल्स्स पारए । पर्गहिथितरगं चेयं, दवियस्स॒वियाणतो ° १२-अयं से अवरे धम्मे, णायपूत्तेण साहिए । आयवज्जं पडीयारं, विजहिजा तिहा तिहा ॥ -किचिबुककम (च)। स्-वियाणित्ता ( चू ) 1 इ-णिवज्जेज्जा (वूः वु ) 1 ४~ ° पुदुव (क, च, छ )› ° पुदुएु ( ख, ग ) । =-विचित्तेहि (क, ख, घ, च, छ, चु ) । ६- ० तराग (क); ° तर (चु) १०-पुयाहितो (चू ) 1 ९१५ ६६ १३-हरिएपु ण गिवज्जेजा, विउसिज्जः अणाहारो, १४-इदिरएहि गिकायंते, तहावि से अगरिहेः, १५-अभिक्कमे पडिक्कमे, काय-खाहारणहमए” १६-परिक्किमे परिकिरुते, ठाणेण परिकिर्ते, १७-'आसीणे णेलिसं""मरणं, कोलावासं समासज, १८-जभो वज्जं समूप्पज्जे, ततो उक्कसे* अप्पाणं, १९--अयं चायततरे' सिया, सव्व-गायणिरोधेवि , २०-अयं से उत्तमे धम्मे, अचिरं पडिलेहित्ता, १--मुणि आसए (च, चरू )। २्-वियो० (ख,ग, च,छ)। ३--आहरे (खः ग, ध, च, छव 91 ४--अगरहे (क, ख, य, घ ) 1 थंडिलं मुणिभा सए" । पदर तत्थ हियासए ॥ समियं साहरे* मुणी । अचले जे समाहिए॥ संकूुचए पस्रारए। , एत्थं* वावि अचेयणे ॥ अदुवा चिटे अहायते । णिसिएज्ा य अंतसो ॥ इदियाणि समीरए । वितु पाउरेसए ॥ ण तत्थ अवल्बए। स्वे फासेऽहियासए ॥ जो एवं अणुपारए । छाणातो ण विउन्भमे ॥ पुव्वह्मणस्स पर्गहे । विहरे चह माहणे ॥ ५--साहरण ° (क, ग घ ) ; सधारण ( चू ) , सहारण ( च) । इ--इत्य (घ ) ! ७--आसीण मणेलिस ( क, ध, च ) , उदासीणो भणे लिसो ( चू 3 । ८--उवक्कसे ( ग, धः छ )। ६--चायतरे ( ख ) , चाततरे ( चू, क ) ; आयरे द्रस्गाहतरे धम्मे { चपा ) ; यदि वा०'"आत्ततर्‌. (वु) । आयासै अदुमं अज्भयणं ( अद्रो उदेसो ) २१-अचित्तं तु समासज्ज, वोसिरे सन्वसो कायं, २२-जावज्जीवं परीसहा, संवुडे देह-भेयाए, २३-भेउरेयु न॒ रज्जेज्जा, इच्छा-छोभं" ण सेवेला, २४-सासएहि णिमंतेज्जा, तं पडिवुज्छ माहणे, २५- सन्वह * अमुच्छिएु, तितिक्ं परमं णच्चा, ठउ्विए तत्थ अप्पगं | ण मे देहे परीसहा'* ॥ उवसग्गा य संखाय' । इति पण्णे हियासए ॥ कामेसु वहुतरेसु* वि । सुहुम * वन्तं सपेहिया ॥ 'दिव्वं मायं ण सदह ! सव्वं नूमं विधुणिया ॥ आउ-काल्स्स पारण । विमोहुन्नतरं हितं ॥ ९७ -- त्ति वेमि। १ न मे देह परोसहा, यदि वा-न मे देहे परौमहा ( चः वु )। २--तिति संखत्ति ( क ) › इति सखया (ता) ( ग, घ, छ) - उति त्तंलाय ( च, व )1 ३-ब्हुलेसुं ( चपा, वृपा ) । ४-उच्छ० (क) ५--भुव ( धुव ° ) (क,ख, ग, घ.च छः चूपा वपा) 1 ई--दिव्वमाय (ख, घ, च ) 1 ७--सव्वर््येहि ( चू ) 1 नवमं अन्मयणः उवहाण-सुयं पदमो उदेसो १-अहासुयं वदिस्सामि, जहा से समणे भगवं उद्राय । संखाए तसि दैमते, अहुणा पव्वद्ए रीयत्था* ॥ २-णो चेवि^ेण वत्थेण, पिहिस्सामि तसि दहेम॑ने। से पारए अआवकहाए, एयं खु अणुधभ्मियं* तस्स ॥ ३- चत्तारि साहिए मसि, बहवे पाण-जाद्वया* आगमम । अभिरुज्फकायं * विहरिसु, आरुसियाणं तत्थ ॒हिरसियु ॥ ४-संवच्छरं सादहियं मासं, जं ण रिक्का'सि वत्थगं भगवं । अचेकए ततो वचाई, तं वोसज्ज वत्थमणगारे ॥ ५-अदु पोरिसि तिरियं-भित्ति, चक्खुमासज् अंत्तसो फाद्‌ । अह्‌ चक्सु-भीया' सहया, त “हंता हंता" वहवे कर्दिसु ॥ ६-सयणेहि "विति मिस्सेहि'*, इत्थीओ त्तत्थ से परिण्णाय । सागारियं- ण सेवे, इति से सयं पवेसिया फाति ॥ १-रीहत्था (कः चू ) , रीयित्था (च); रोएत्या (ग )) २--भावकह ( घ ) । ३--आणु < (छ) । ४-- ° जाती (क +] प--आरज्फ ° ( चू )। ६-- ° मीय (ग, च, छ )। ७--विमिस्सेहि (ध । । -साकारिय (घ, छ) नवमं अउमयणं ( प्दमो उहेषो } &€ ७-जे के इमे अगारत्था, मीसी-भावं पहाय से फाति। पदर वि णाभिभासिसु, गच्छति णाइवत्तई अं ॥ ठ-णो सुमर मेत मेगेसि, णाभिमासे अभिवायमाणे। हयपुव्वो तत्थ दंडेहि, टृसियपुव्वो अप्प-पुन्नेहि ॥ ९-फरुसाईं दुत्तितिक्खादं, अतिअच्च मुणी परकममाणे । आघाय-णटूु-गीताईं , वंड-जुद्धादं मूददधि-जुद्धादं ॥ १०-गढिए मिहोः-कहासु*, समयंमि णायसुए^विसोगे अदक्ख्‌ । एतादं सो उरालादं, गच्छं णायपृत्तेः असरणाए ॥ ११--अविसाहिए दुवे वासे, सीतोदं अभोच्चा गणिक्खंते । एगत्त-गए* पिहियच्चे, से अदहिन्नाय-दंसणे संते ॥ १२-पुढवि च आउकायं ^, तेउ-कायं च वाउ-कायं च | पणगादं' बीय-हरियाईं, तस-कायं च सव्वसो णचा ॥ १३-एयादं संति पडले, चित्तम॑तादं से अभिन्नाय। परिवन्निया?* ण विहरित्था, इति संखाए से महावीरे ॥ १४-अदु' * थावरा तसत्ताए, तस-जीवाय थावसत्ताए । अदु सव्व-जोणिया सत्ता, कम्मुणा?* कप्पिया पुढो बाला ॥ १ -नागार्जुनीया पृटठे -पट्ोवनो अपृ व, णो अणुन्नाड पावग मगव । पटूढेव से अपृद्ठे बा ° (चू)। २-मिध्रु ° (च), मिहु (८ )। 3-- ° कासु ( क, घ )। ४--समतोमि ( चू )। ५- ° पत्ते (ख,ग, वृ )। णाइ ° (छ) ७-एगत्ति ° (च )। उ ० कायच (क्‌, ग, च, छ) । €--पणगाय ( ख )। १०- ° वज्जिया (ख, ग} । ११--अदुवा ( ख, ग, च, छ ) ; अद्रव ( क ) । १२-कम्मणा (च )1 १३ 4 आयारो १ ्-भगवं च एवमन्नेसि', सोवहिए ह लुप्पती बले कम्मं च सव्वसो णचा, तं पडियाद्क्से पावगं भगवं ॥ १६-दुविहं समिच मेहावी, किरिय मव्खाय' णेडिसि' णाणी। आ्याण सोय मतिवाय-सौयं, जोगं च सन्वसो णचा ॥ १७-अदनातियं* अगणाउष्टि, जस्सित्थिभओ परिष्णाया, १८-अहाकडंः न से सेवे, जं किचि पावगं भगवं, १९ णौ सेवती य परवत्थं", परिवज्जियाण ओमाणं, २०-मायन्ते असण-पाणस्स, अच्छिपिणो पमन्िया २१-अप्पं तिरियं पेहाए, अप्प वुडएुऽपहिभाणी, २२-सिसिरंसिं अद्ध-पडिवन्ने, प्रसारित वाहं परक्मे, सयमन्नेसि अकरणयाए । सन्वकम्मावहाभो से" अदक्खू ॥ सव्वसो कम्मूणा "य अदक्छू * । तं अकरुव्वं वियडं भुंजित्था ॥ पर-पाए विसे ण भुंजित्था। गच्छति संखडि असरणाए ॥ णाणुगिद्धे रसेसु अपडिष्णे । णोवि य॒ कंड्यये मुणी गायं ॥ अप्यं पिद्रभमो उपेहाए'* । पंथ-पेही चरे जयमणे ॥ तं वोसल्'' वत्थ सणगारे । णो अवटंविया ण कंधंसि* ॥ १-एवमन्नेसि ( क, घ, च, छ, व ) › एवमगिधित्ता ( च ) 1 २्-मणेचितस (ख, ग ) 1 दरे ° वत्तिय (८) । ८-> (क, घ, च, छ )1 ५-जाहा ° (च, छ ) 1 वध अवकु ( क ) ; भदवषु (ल, ग, च ) › य दवस (घ ) । छपर वत्थे (ख. म ) | -अस्रणयाए (घ, च + 1 ई~पमव्जिज्जा (ख) । १०-च पेहाए {घ )1 १९-चोसरिज्ज (घ, चू )। १२-खषेनि (क, च ) 1 नवमं अज्छयणं ( वीज उदेसो ) १०१ २३-एस विही अणुक्कतो, साहणेण महमया । बहुसो ' अप्पडिन्नेण, भगवया एवं रीयंति ॥ । --ति वेमि । बीभो उदेसो म्‌ १-चरिथासणाहइं* सेज्ाभो, एगतियाभो जाभो वृदयाओ । आद्क्ब ताद सयणासणाईं*, जाद सेवित्था से महावीरो ॥ २-आवेसण-सभा-पवायु" , पणिय-साङाययु एगदा वासो । अद्वा पक्य-द्णेसु, पराल-पुजेसु एगदा वासो ॥ ३-भागंतारे आरामगारे, गमेः णगरे वि* एगदा वासो । सुसाणे सुण्ण-गारे* वा, स्क्व-मूले वि एगदा वासो ॥ ४-एतेहि मुणी सयणेहि, समणे आसी ' प-तेरस?” वासे। राद्र दिवं परि जयमाणे, अप्प्रमत्ते समाहिए फाति॥ ५-'णिहं पि णो पगामाए, सेवड^* भगवं उद्राए"*- | जग्गावती'‡ य अप्पाणं, ईसि साई या'' “सी अपडिन्ने || ए-अप्पडन्नेग वीरेण ( चु ) , बहुसो अम्पडिन्नेण ( चूषा ) । २्-अप च नोक चिरतन टीकाकारेण न व्याय्यात ( वृ )। ३-सयगाड ( क, च ) । -आटए्मण ° ( चू )। ५- ° सभेप्पवासु (क, घ, छ ) 1 ६५८ (क, च); तेहय (घ, छ, ब )। ७~-वा (क )। म-मुण्णागारे (छ ) 1 ₹-वासी (छ ) । १०-प-तेलस ( च ) 1 ११-पेवड य ( खे, ग } | १२्-नगार्जुनीया -णिद्धावि ण प्मगामा, आनी तहैव उटाए {चू )। १द्-जगा० (ख,छ)। १४-साद य (क, च, छ) । १०२ ६--संबुज्छमाणे पुणरवि, णिक्लम्म एगया राभ, ७-सयणेहि तस्थुवसमाः, संसप्पमाय जं पाणा, ८-अदु* कचरा उवचरंति, अद गामिया उवसम्गा, ९-दह-लोदयाईपर-लोदयाद, अवि सुन्मि-दुन्मि-गंधादं, १०-~-अहियासए सया समिए, अरदं रदं अभिभूय, ११-स जणेहि तत्थ पृच्छिसु, अव्वाहिए कसादत्था, १२-मय मंतरसि को एत्थ, अय मृत्तमे से धम्मे, १३-जसिप्पेगे पवेयंति, तंसिप्येगे अणरारा, १४--पंघाडिओ पविसिस्सामो, पिहिया वा सक्खामो', १-न धिर जागित्त ईसि साषयाक्ति ( चू)1 २-बहि ( च ) 1 उ-चंकमित्ता (छ )। ४-तत्थु ° (क,ख.य, घः छ ) 1 ५-अदहुवा (क, छ ) 1 आयारो आसियु भगवं उद्राए्‌। बहि चंकमियाः मृहूत्तागं ॥ भीमा आसी अणेग-र्वा य । अदुवा जे पविखिणो उवचरंति ॥ गाम-खखा य सत्ति-हत्था य । इत्थी एगतिया पुरिसा य॥ भीमाइ अणेग-रूवाद्‌ । सहाई अणेग-रूवाई ॥ फासादं विरूव्‌-रूवाद्‌ । रीयई माहणे अबहु-वाई ॥ एग-चरा वि एगदा राो। पेहमाणे समाहि अपडिन्ते ॥ अहमंसि त्ति भिक्खु आहट । तुसिणीए सकसादए भाति॥ सिसिरे मारुए पवाते । हिमवाए णिवाय मेसंति॥ एह य समादहमाणा । अतिदुक्खं हिमग-संफासा॥ ६-सहिए, इति मता भगवे भणगारे ( चपा ) । ७-को एत्थ सामी स्ति (तरु) ०-पहिरिस्सामो ( चू ) 1 &-पस्सामो ( चू )। नवमं अन्भयणं ( तडथो उदेसो ) १०३ १५-तंसि भगवं अपङिण्णे, अहे वियडे अहियासए दबिए। णिक्स्म एगदा राओ, चाएड* भगवं समियाए ॥ १६--एस विही अणुक्कंतो, माहणेण मर्ईमया । वहुसो अपडण्णेण, भगवया एवं रंति ॥ --्ति बेमि। तदभो उदसौ १-तण-फासे सीय-फासे य, तेउ-फासे य दंस-मसगे य। अहियासए सया समिए, फासादं विरूव-ल्वादं ॥ २-'अह्‌ दुचर'-छाढ मचारी, वज-मूमि च सुर्भ(ग्ह?)-भूमि च। पतं सेज्जं सेविसु, आसणगाणि चेव पंतादरं ॥ ३-खठेहि तस्मुवसम्गा, बहवे जाणवया टसिसु । जह्‌ लृहु-देसिए भक्ते, कुक्कुरा तत्थ हिसिसु णिवतिसु ॥ ४--अप्पे जणे गिवारेद, सूसणणए सुणए दसमाणे* । दुदुकारति आहुसु, समणं कुक्कुरा उसंतु"त्ति ॥ ५-एकलिक्खए जणा भुज्जो, बहवे वज्-भूमि फरुसासी । ल्ट गहाय णालोयं", समणा तत्थ एव विहर्सु ॥ ६-एवं पि तत्थ विहरता, पुद्ध-पुन्बा अहेसि सुणएदहि। संटुंचमाणा सुणएहि, दुच्चरगाणि" तत्थ ाढेहि॥ १-च एड ( ग )-अशुदध प्रतिभाति । २-फसि ( कखः गः च) 1 रे-अवि दुच्चर ( चू ) । ४-मसमाणे ( चू ), उसमाणे (च) । प्-नालिवं (ख,ग, च्‌ )] ६-दुच्चराणि (कः च, छ, वु) । १० छ-तिधाय दंडं अहः ९-उवसंकमंत मपजन्नि, पड़णिक्वमित्त॒ टृसिंसु १०-ठ्य-पुव्बो तत्थ दंडेण, अदु लेलुणा कवालेणं, ११-मंसाणि" चि्न-पुन्वाद, परीसहाईं चृचिसु, उच्रारुदय णिहि, वोसद्र-काए पणयासी, द-सूरो संमामसीसे वा, पड्सिवमाणे फरसाड, १८-एसं विदही अणुक्कतो, वहुसो अपडन्तेण, पाणेदहि, गाम~कंटए भगवं, =-णाभो संगाम-सीसे वा, एवं पि तत्थ छदि, ज्जायारो तं कायं वोसज् मणगारे। ते अदहियासषए्‌ अभिसतेन्या ॥ पान्एु तत्थ से महावीरे । अखुद्ध-पुव्बो वि एगया गामो ॥ गामंतियं पि अप्पत्तं । एत्तोः परं पलेहित्ति ॥ अदुवा मुद्िणा अदु कताद्‌-फलेणं' "1 "टता हंता” बहवे कर्दिषु ॥ उट्टुभतिः एगया कायं] अहवा पंयुणा अवकिरियु + अदूुवा जासणाथो खदु । दुक्ख-सहँ भगवं अपडिन्ते ॥ सेवृडे तत्थ से महावीरे । अचले भगवं रीडइत्था ॥ माहेण मरईमया । भपवया एवं रीयंति ॥ --्ति वेमि । चउत्था उदे्षा १-ोमोदरियं चाएति, पद्रैवा से अपुद्रे वा, १-अदु ( घ. छ) स्-चुसिति (चू 2)1 द-एतामो (तो) ( द-कंतेण फेण (घ ) 1 ध-मसूणि (क, चय, घ, च- छ ) 1 अपुद्रे वि भगवं रोगेहि । णे से सातिजति तेदच्छं ॥ छ.ग, छ) इ-उटमिया(क, ख गःच छ, वृ): उटर्भियाएु (घ )। छ-उवरकास्सि (क. ख, ग, घ, च, छ )-त्तिचर््वनुमारेण अयुद्ध परतिमाति 1 नवमं अन्भयणं ( चर्त्यो उदेसो ) २-संसोहणं च वमणं च, सवाहणं "ग से कपये", ३े-विरएः गाम-धम्मेहि, सिसिरमि एगदा भगवं, ४-आयावई य मिम्हाणं, अदु जावद्त्य" लृहणं, ५-एयाणि तन्ति पडिसेवे, अपिदइत्थ“ एगया भगवं, ६-अविसाहिएे दुवे मासे, रायोवरायं अपडिन्ते, ७--द््रेणं एगया भुजे, दुवाकसमेण एगया मुज, ८-णच्वाणं से महावीरे, अन्नेहि वा ण कारित्था, ९-गामं पविसे" णयरं वा, सुविसुद्ध मेखिया भगवं, १- ° मव्भगण (घ )। स्-गसेवित्था (चु) उ~विरएय८(क,घ,च,छ)। ४-नावड ( घ )। प-अपियत्थ (चरु) ६-रोयित्था {चू ) › विहरित्था ( च )। ७-~अहु अदु ° (ख), अदद (ग) ८-णच्वाण (क, ख, ग, घ, चू )। ई-पविस्स (श्रु)। १०-वासमाते ( चू ) 1 श-गवेसित्था (चु )। १०५ गायत्भंगणं* सिणाणं च| दंत-पक्खारणं परिण्णाए ॥ रीयति माहणे अबहूु-बाई । छायाए फाइ आसी य॥ अच्छं उक्कुडुए्‌ अभितावे। ओयण-मंथु-कुम्मासेणं ॥ अदह्र-मासे य॒ जावए भगवं । अद्ध-मासं अदूवा मासं पि। छप्पि मासे अदुवा अपिचित्ता। अन्न-गिकाय मेगया मुजे ॥ अदुवा* अदह्रमेण दसमेणं । पेहमाणे समाहि अपडिन्ने ॥ णो वि य पावगस्यमकासी। कीरं पि णाणुजाणित्था ॥ धासमेसे"* कडं प्रट्वाए । आयत-जोगयाए सेवित्था?१॥ १९ आयारो १०-अदु वायसा दिगित्ता', जे अन्ने रसेसिणौ सत्ता । धासेसणाए चिष्ति, समयं णिवतिते य पेहाए ॥ ११-अदु माहणं व समणं वा, गाम-पिडोल्गं च अतिहि वा । सोवागं मूसियारं वा, कुक्कुरं वा "विविहुं व्यिं पुरतो ॥ १२-वित्ति-च्छेदं वज्जंतो, तेसप्पत्तियं परिहुरतो । मंदं परक्कमे भगवं, अर्हिसमाणो धास मेसित्था॥ १३--अवि सुदयं व“ सुक्कं वा, सीय-पिडं पुराण-कुम्मासं 1 अदु बक्कसं* पुकागं वा, कद्ध पिडे अकृदधए दविएु॥ १४-अवि फाति से महावीरे, आसणत्थे अकुक्कुए फणं 1 उड्ढमहेः तिरियं च, खोए क्ञायइ'"* समाहिमपडिन्ने ॥ १५--अकसाई विगय-गेही , सद्‌-ख्वेसुऽमुच्छिए' फाति । छउमत्थे वि परक्कममाणे, णो " पमायं सदं पि कूव्वित्था ॥ १६-सयमेव अभिसमागम्म, आयत-जोग माय-सोहीए । अभिणिब्वुडे अमादइल्ठे, आवकटहुं मगवं समिसी ॥ १७-एस विही अणुक्कतो, माहणेण मईमया । बहुसो अपडिन्नेण, भगवया एवं रीयंति ॥ --्ति वेमि । १--दिगिच्छता (ल.ग) २- विद्धि ( क, ख ) ; विचिद्धिव ( घ ) ; उवट ( च्‌ ) , विद्वि ( च )1 ३-तेसिमप्पत्तिव ( ख, ग ) ; तेसि पत्तिय ( क, च ) ° ध्रामकुरवेन्‌" (वर ) । ४्-वा(क,चखःग,घ, च, छ)। ५-युक्कप्तं ( ख ) । ६--उड्दं अहे य (य) (ख, ग, घ, छ ) 1 --पेहमाणो (क घ, च, छ ) ; फायड (चरु) । प-गेहीय(क,ख,य,घ, च) 1 इ--अमुच्छिए ( ख, ग, च ) । १०--ण {न )। आथार-चूषा पढमं अज्म्यणं प्डिसिणा पटमो उदेसो सचित्तं-संसत्त-असणादि-पदं १-से भिक्खू वा भिक्लुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्े समाणे, सेज्जं* पुण जाणेजा- असणं वा, पाणं वा, खाद्रमं वा, साइमं वा-पाणेहि वा, पणएहि वा, बीएहि वा, हरिएहि वा-संसत्तं, उस्मिस्सं, सीभोदएण वा ओसित्तः, रसया वा परिवासियंउ, तहूप्पगारं असणं वा, पाणं वा, खादमं वा, साइमं वा- परहत्थंसि वा परपायंसि वा-अफासुयं अणेस्षणिज्जं ति मन्नमाणे रभे वि संते णो पडिम्गाहेज्ा" । एसे य आहच्च पडिगगाहिए* सिया, से त॒ आयाय एगंतमवक्कमेज्ना, एगंतमवक्कमेत्ता- अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा अप्पंडे, अप्प-पाणे, अप्प-बीए, अप्प-हरिए, अप्पौसे, अप्पूदए, अप्पुत्तिग-पणग- दग-मद्विय-मक्कडा-तंताणणए, विर्मिचिय-विगिचिय, उम्मिस्सं* विसोहिय-विसोदहिय, तओ संजयामेव भुजे वा पीएज वा | १-सेज (कः व)। --उस्सित्त ( क ) ; ऊभिनित्त ( चू )। ३-- ० घासिथ (अ,क, घः च, व )। ४--पडिगा० (घःष्ट+व)1 ५- ° गाहे (अ, घः च, छ, व }। ६उम्मीस (कच )। १ ११२ भायार-चृा १ ¦ पटं अज्मयणं ३-जं च णो संचाएल्ना भोत्तए वा पायए वा, से" तमायाय एगंतमवक्कमेजा, एगंतमवक्कमेत्ता- अहे श्चाम-षंडिलंसि वा, अद्विरारसिसि वा, किट" -रािसि वा, तुस-रासिसि वा, गोमय-रासिसि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारसि थंडिकंसिः पडिकेहिय-पडिकेहिय पमन्िय- पमन्जिय, तमो संजयामेव परिषटवेजा । ओसहि-जादि-पटं ४-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा॒गाहावद्रकुं पिडवाय~पडियाए अणुपविटटे समाणे, सेजायोः पुण गोसहीथो जाणेजा- कसिगाओ, सासिआभो, बतरिदल-कडागो, भतिरिच्छ- च्छिन्ना, अव्वोच्छिन्ाो, तरुणियं वा ॒चिार्हि, अणभिक्कताऽमनियं" पेहाए-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मन्नमाणे काभ संते णो पदिगाहेजा । | ५-से भिक्खू वा भिक्ुणी वा शगाहावद्र-कुलं पिडवाय- पडियाए अणुपविदरे समाणे, सेजागोः धूण ओोसहीगौ जाणेजा- अकसिणायो, असासियाभो, विदल-कडाथो, त्िरिच्छः- च्छित्नामो, बोच्छष्णाभो, तरुणियं वा चिवाडि, मभिक्कतं भजियं पेहाए-फासुयं एसणिज्जं ति मन्तमाणे काभे संते पडिगाहेज्ा 1 १-सेत्त ° (अ,च, छ)। २-किटि ° {(@)1 ३--धंडित्ल ( अ, छ ) ४-मे जाब (क, व, छ ) 1 ४. ° क्कत मज्जय ( क, च } ; ० ककरतम सज्जिय (घ )। ६-से जामो ( क, ग, छ, च ) 1 ( म, दुत्त व्मिवंति 9। पिडेतणा ( पमो उदेसो ) ११३ ६-से भिक्ख्‌ वा भिक्खुणी वा “गाहावडई-कुरं पिडवाय- पडिथाए अणुपवि्टे समाणे सेज्जं पुण जणेजा-- पिहुयं वा, बहुरजं वा, भुज्यं" वा, मंथुं वा, चाउरं वा, चाउल-पर्वं वा सदं भजिय--अफासुयं अणेसणिज्जं ति सन्नमाणे छाभे सते णो पडिगाहेजा । ७-से भिक्खू गा भिक्वुणी वा “गाहावदू-कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविद्धे° प्रमाणे, सेज्जं पुण जाणेजा- पिहुयं वा, °वहुरजं वा, भुज्यं वा, मथु वा, चाउरुं वा, चाउल-पकबं वा असद भन्ियं, दुक्खुत्तो वा॒भज्नियं, तिक्खुत्तो वा भजियं-फासुयं एसणिज्जं *ति मन्नमाणे° लाभे संते पडिगाहेल्ला । अण्णउत्थिय-गारत्थिय-सद्ध-पदं ठ-से भिक्स वा भिक्खुणी वा गाहावद्-कुलं *पिडवाय- पडिथाए० पविसितुकामे, णो अन्नउत्थिएण वा, गारत्थिएण वा, परिहारिओः अपरिहारिएण वाः, सद्वि गाहावद्र-कुलं पिडवाय-पडियाए पविसेज्ञ वा णिक्खमेल्ञ वा । ९-से भिक्लु वा भिक्खुणी वा बिया वियार-भूमि वा, विहार-मूमि वा, णिक्खममाणे वा, पविसमाणे वा--णो अष्णउत्थिएण वा, गारत्थिएण का, परिहारिओ अपरिहारिएण वा, सद्धि-बहिया वियार-भूमि वा विहार- ` भूमि वा--णिक्खमेजः वा पविसेज्ञ वा । १--भुजिवं (क, घ, च, छः ब ) › भज्जिव (अ )। २-परिहारिओ वा(म,क),च,व)। ३-->< { अकऽचेछव्‌ )1 ४--न प्रविशेत्‌ नापि ततो निप्करामेत्‌ ( वु )। ११४ आयार-चूला १ : पढमं भज्फयणं १०-से भिक्खू वा भिक्ुणी वा गामाणुगामं दृइन्माणे-णो अण्णरत्थिएण वा, गारत्थिएण वा, परिहारिओ अपरि- हारिएण वा सद्धि-गामाणुगामं दुइज्जेज्ना । ` ११-से भिक्स वा भिक्खुणी वा “गाहावद-कुरं पिंडवाय-पडियाए अणुपविद्े" समाणे-णो अण्णउत्थियस्स वा, गारत्थियस्स वा, परिहारिओ अपरिहारिभस्स वा-अस्णं वा पाणं वा खाद्रमं वा साद्रमं वा देजञा वा अणुपदेज्ञा वा । अस्सिपडियाए-पदं १२-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा "गाहावह-कुर पिडवाय-पडियाप अणुपविटे° समाणे, सेज्जं पुण जाणेला- असणं वा ४ अस्सिपडियाए* 'एगं साहम्मियं समुिस्स, पाणा, भयाद, जीवाद, सत्तां, 'समारम्म समूदिस्स"* कोयं पामिच्चं अच्छेज्जं अभिसरं अभिहडं आहट्‌टु चेएद । तं तहूप्पगारं असणं वा ४ पुरिसंतरकंडं वा अपुरिसंतर- कंडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहृडं° वा, अत्तष्ठियं वा अणत्तष्धियं वा, "परिभूतं वा'* “अपरिभृत्तं वा"^ अभसिवियं वा अणासेवियं वा--अफायुयं "अणेसणिज्जं ति मन्नमणे लाभे संते° णो पडिगाहेजा । १३-*से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावद-कुं पिडवाय-पडियाए अणुपविद्े समाणे, सेज्जं पुण जाणेजा-- असणं वा ४ अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समुरिस्स, १--अस्तं ° (क, च,छ,ब, वृ) २-समारंममुदिस्स (च, ब); समारम ० (अ,घ)। ३--अनहिया जणीहड ( क, च } । $> (च) ५--> (क )। 4 पेडेसणा ( पढमो उदृसो } ११५ पाणां, भूयादं, जीवाइं, सत्ता, समारम्भ समुदिस्स कयं पामिच्चं अच्छैज्जं अणिसहं अभिहडं आहट्‌टु चेएई्‌ । तं तदहप्पगारं असणं वा ४ पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतर- कडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहृडं वा, अत्तघ्धियं वा अणत्तद्धियं वा, परिभृत्तं बा अपरिभृत्तं वा, आसेवियंवा अणासेवियं वा--अफासुयं अणेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते णो पडिगाहेजा । १४-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावडइ-कुकं पिडवाय-पड़याए अणुपविद्े समाणे, सेज्जं पुण जाणेजा- असणं वा ४ अस्सिपडियाए एगं साहम्मि्णि समुदिस्स, पाणाद्र, भयाद, जीवाइ, सत्तां, समारत्भ समुदिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्ं असिहडं आहट्टु चेएई । तं तहप्पगारं असणं वा ४ पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतर- कडं वा, बहिया णीहृडं वा अणीहडं वा, अत्तष्धियं वा अणत्त्ियं वा, परिमृत्तं वा अपरिमृत्तं वा, आसेविय वा अणासेवियं वा--अफासुयं अणेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे सते णो पडिगाहेन्ना 1 १४-से भिक्खू वा भिक्छुणी वा गाहावई-कुखं पिडवाय-पडियाए अणुपविद्धे समाणे, सेजजं पृण जाणेला- असणं वा ४ अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिणीओ समृिस्स, पाणाइ, भुयाईं, जीवाई, सत्ताद्र, समारत्भ समुदिस्स कीयं पामिच्चं, अच्छेज्जं अणिसट्ं अभिहडं आहट चेएड । तं तदहप्पगारं असणं वा ४ पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकंडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तद्धियं वा अणत्तद्धियं ११६ भायार-चूखा १ : पदम अर्पयणं वा, परिभुक्तं वा अपरिभूत्तं वा आसेवियं वा अणासेवियं वा--अफासुयं अणेसणिज्जं ति मन्नमाणे कभेसंतेणो पडिगहज्जा । । समण-माहणाइ-समुदिस्स-पद १६-से भिक्ख्‌ वा भिक्खुणी वा गाहावई-कुरं “पिडवाय-पडियाए अणुपविद्धे" समाणे, सेज्जं पुण जाणेजा- असणं वा ४ बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए पराणिय-पगणिय समुदिस्स, पाणादं वा, भूयां वा, जीवाद वा, सत्तादं वा, समार्म समुदिस्स कीयं पामिच्चं भच्छेज्जं अगिं अभिहडं आहट्टु चेएइ। तं तहप्पगारं असण वा ४ पुरिसंतरकंडं घा अपुरिसंतरकडं वा बहिया भीहडं वा अणीहडं वा, अत्तष्टियं वा अणत्तद्धियं वा, परिभुक्तं वा अपरिभूत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मन्माणे लभे संतेणो पडिगिहिजा । १७-से भिक्लू वा भिक्बुणी वा गाहावद-कुलं %पिडवाय-पडियाए अणुपविद्े° समाणे, सेज्जं पण जाणेजा- असणं वा ४ बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए समुहिस्स, पाणादइं, भयाद, जीवाद, सत्तादईं समारम्भ समुदिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटं अभिहडं माहव चेएद्‌ । तं तंहप्पगारं असणं वा ४ अपूरिसंतरकडं, अबहिया * णीहड, अणत्तद्धियं, अपरिभृत्त, अणासेविते--अफासुयं अणेसणिग्जं *ति मन्नमाणे कामे संते णो पडिगहेजा । ` ` (हिया अणीहडं ( अ )। पिडेषणा ( वीओ उसो ) १९७ १८-अह पृण एवं जाणेला- पुरिसंतरकडं, बहिया णीहड, अत्तघ्चियं, परिभृत्तं, भासेवियं- फासूयं एसणिभ्जं *ति मन्नमाणे छाभे संते° पडिगाहेजा । कुल-पदं १९-से भिक्लू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुरु पिंडवाय-पड़याए पविसितुकामे, सेनां पुण कुलां जाणेजा- इमेसु खलु कुलेयु णितिए* पिंडे दिन्नद्‌, णितिए अगग-पिडे दिन्नद, णितिए भाए दिजई, णितिए अवड्ढभाए दिजद- तहप्पगारादं॑कुकादं णितियादं णितिउमाणाईं, णो भत्ताए वा पाणाए वा पविसेज्ञ वा णिक्छमेज् वा । २०-एयं" खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा साममयं, ज सव्वट्ठेहि समिए सहिए सयाजए । --त्ति वेमि । चीओ उदेसो अदटुषी-आदि-पन्व-पदं २१-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावद्र-कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविद्े समाणे, सेज्जं पुण जाणेजा- असणं वा ४ अहृमि-पोसहिएसु वा, अद्धमासिषएयु वा, मासिएसु वा, दोमासिएसु वा, तिमासिएसु वा, चाउमासिषएसु वा, पचमासिएसु वा, छमासिएसु वा, उउसु वा, उउसंधीसु वा, उउपरियद्रेषु वा, बहवे समण-पाहण- अतिहि-किवण-वणीमगे, एगाभो उक्खाओ परिएसिजमाणे १->* (कःच)1 २~--एव ( घ, च, छ ) । अयुद्ध प्रतिभाति 1 ३-उदुसु ( च ) 1 ११५८ आयार-चूला १ : पद्मं अल्मयण पेहाए, दोहि उक्वाहि परिएसिजमाणे पेहाए "तिहि उक्खाहि परिएसिज्माणे पेहाए* "चरदहि उक्वा्हि परिएसिज्माणे पेहाए'* कूभीमुहाओ वा कलोवादभो" वा सण्णिहि-सण्णिचयाओ वा परिएसिल्नमाणे पेहाए- तहप्पगारं असणं चवा ४ अपुरिसंतरकडं, “अनरहिया णीहड, अणत्तषटियं, अपरिभुत्तं, अणासे वितं--अफासुयं अणेसणिज्जं मति मन्नसाणे लाभे सते णो पडिगाहेजना । २२-अह्‌ पुण एवं जाणेजा-- पुरिसंतरकडं, *बहिया भीहडं, अत्तद्धियं, परिमुक्त", आसेवियं--फासुयं *एसणिज्जं ति मन्नमाणे काभ संते" पडिगहिजा 1 ` वुल -पदं २३-से भिक्खू वा °भिक्खुणी वा गाहानद-कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविद्े समाणे, सेजा्ं॑पूण कुलां जाणेजा, तंजहा-- उग्ग-कुलाणि वा, मोग-कुलाणि वा, राङ्ण्ण-कृलाणि वा, खत्तिय-कूकाणि वा, इक्वाग-कुकाणि वा, हरिवंस-कलाणि वा, एसिय-कुलाणि वा, वेसिय-कलाणि वा, गंडाग-कूलाणि वा, कोटाग-कलाणि वा, गामरक्कुकाणि वा, पोक्कसालिय "कुलि वा--अ्णयरेचु वा ॒तहप्पगारेयु १->< (च )। २--८ (म, क, घ, च, ब ) ३--काल वा ततो ( छ } ; कालो वा तिण्णो (व), +--लणिचयामो वा तमो एवं विहं जावि पिंड समणाद्ेण परिएसिज्जमाण पेहाए (वृ )1 प्-वोक्क ° (अ, छ, बच ) । विडेपणा { बीभ उहेतो ) ११६ कुलेयु अद्गुएनु अगरहिएयु, असणं वा ४ फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे काभ संते पडिगाहेला । महापिह-पदं २४-से भिक्लू वा भिक्ुणी वा गाहावद-कुल पिडवाय-पडियाए अणुपविद्े समाणे, सेज्जं पुण जाणेजा- असणं वा ४ समवाएसु वा, पिड-णियरेयु वा, ईइद-महेसु वा, खंढ-महेसु वा, रट-महेमु वा, मुगुंद-महेसु देसु वा भूय-महेसु वा, जक्व-महेसु वा, णाग-महेयु वा, धूभ-महेसु वा, चेतिय- महेसु वा, त्क्व-महेसु वा, गिरि-महेसु वा, दरि-महिमु वा, अगड-महेसु वा, तडाग ' -महेम वा, दह-महेनु वा, णर्ई-महेसु वा, सर-महेनु वा, सागर-महेयु वा, आगर-महेसु बवा-- अण्णयरेसु वा तहृप्पगारेसु विरूव-र्वेसु महामहेसु वटमाणेसु, वहवे समण-माहूण-अतिदहि-किविण-वणीमए*, एगाभो उक्खाओ परिप्सिजमाणरे पेहाए, दोहि *उक्खाहि परि- एसिल्नमाणे पेहाए्‌, तिहि उक्लाहि परिएसिज्माणे पेहाए, चउदहि उक्लाहि परिएसिजमाणे पेहाए, कूभीमुहाओ वा कलोवाद्म वा सण्णिहि-खण्णिचयाओ वा परिएसिज्माणे पेहाए- तहप्पगारं असण वा ४ अपुरिसंतरकड", “अवहिया णीहड, अणत्तद्धियं, अपरिभत्त, अणासेवितं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मन्नमाणे छाभे सते णो पडिगाहेजा । १~तलाग (घ, च, छ ) 1 २-णर्दमहेसु वा जस्णमरेगु वा (क ) । उ--वणीमएसु ( अ, क, च, छ, व ) गनुद्ध । ॥ ४: ० गय (जःकःच); ८क्य (छ) १२० आयार-चूरा १ पढमं अन्मयर्ण २५-अह पृण एवं जाणेजा-- दिण्णं जं तेसिं दायव्वं । अह तत्थ भुंजमाणे पेहाए-गाहावद-भारियं वा, गाहावद्‌- भगिणि वा, गाहावह-पृत्तं वा, गाहावद-धरूयं वा, सुण्ठं वा, धाद वा, दासं वा, दासि वा, कस्मकरं वा, कम्मकरि वा, से पुन्वामेव! आकोएजाः-जाउसि! त्ति वा, भगिणि] त्तिवा, दाहिसि मे एत्तो अन्नयरं भोयणजायं ? से सेवं वद॑तस्स परो असणं वा ४ आहटूटु दलएजा- तहुप्पगारं असणं वा ४ सयंवाणं जाएज्जा, परोवा से देज्ा-फासुयं "एसणिज्जं ति मन्नमाणे लभे सते° पड़िगाहेला । संखडि-पदं २६-से भिक्खू वा भिक्ुणी वा परं अद्धनोयणभेराए संखडि णचा संखडि-पडियाएं णो अभिसंधारेला गमणाए । २७-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा-- पाईणं संखडि णचा पडीणं गच्छे, अणाढायमणि, पडीणं संखडि णचा पाईणं गच्छे, अणाढायमाणे, दाहिणं संखडि णचा उदीणं गच्छे, अगाढायमागे, उदीणं संखडि णच्वा दाहिणं गच्छे, अणाढायमाणे। २८-जत्थेव सा संखंडी सिया, तं जहा--गामंसि वा, णगरंसि वा, सेडंसि वा, कव्बडंसि वा, मडबेसि* वा, पटणंसि वा, १--पुव्व ° (क,ःच)। २--आलोएज्जा पभू वा पभृद ( चू ) › भम प्रभुतदिष्ट वा ्र.यात्‌ (व) ३--->< ॥ धृक ) 1 ४--मंडवसि { ब )। पिडेखणा ( वीभो उदहेषो ) १२१ अआगरंसि वा, दोणमू्हसि वा'१, णिगमंसि वा, आसमंसि वा सण्णिवेसंसि वा रायहाणिंसि वा"- संखेडि संखडि-पव्याए णो अभिसंधारेज्ञा गमणाए । २९-केवली ब्रया-आयाणमेयं -- संलडि संखडि-पडियाए अभिसधारेमाणे आहाकम्मियं वा, उदेसियं वा, मीसजाथं* वा, कीयगडं वा, पामिच्चं वा, अच्छेज्जं वा, अणिसिदं वा, अभिहडं वा आहटृटु दिजमाण भुजेजा । असंजए” भिक्खु-पडियाए, खुहिय-दुवारियाओ महदियाओ' कुजा, महव्किय-दुवारियाओ खुह्ियामो कुजा, समाओ सिज्ाओ विसमाओ कुज्जा, विसमाभ सिज्जामो समाभो कुज्जा, पवायाओ सिज्जाओो गिवायाभो कुज्जा, णिवायाओ सिज्जाो पवायाजो कुष्जा, अतो वा, वहि वा उवस्सयस्स* हरियाणि दिदिय-चिदिय, दालिय-दालिय, संथारगं संथरेज्जा-'एस खलु भगवया सेज्जाए अक्खाए । १--दोणमूहंति वा आगरमि वा (अ, क्तव, च, ८, व) । १२८।६।१०६सूव्र कम अनुसृतः ( चू )। २-रयहाणिसि वा सण्णिवेसस्सि वा (वृ )। उ-आययण ° ( वपा ) 1 ४-- ° ज्जाय (च.छ, व ) 1 ५--अस्स ° (घ, छ, व ) । द-महाद्रारा (वृ) ७--कुञ्जा उवासयस्स (क, @) › उवस्सयस्प कुञ्जा (घ) › उपाश्रय सद्रर्यात्‌ (वृ) । <--एस विलगयामो सिज्जाए अक्खाए (अः,छ) ; एस खलु गयामो सेज्जाए अक्खाए (क ) › एस चि खलु गयामो सिज्जाए अक्खाए ( च ) ; एस छलं गयामो सिज्जाए ( व ) । ~ ----- ४ १९२ आयारचू्ा १ : पढमं अन्मे तम्हा से संजए गियंटूठे' तहप्पगारं पुरे संखडि" वा, पच्छा-संखंडि वा, संखडि संखडि-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । ३०-एयं खलु तस्स ॒भिक्खुस्स भिक्ुणीए वा सारमगियं, जं सव्वदटहिं समिए सदहिए सया जए । --्तिं ञेमि। तदो उदसौ ३१-से एगदभो अण्णतरं संखडि आसित्ता पिवित्ता छंडडेज्ज वा, वमेज्ज वा, भूत्ते वासे णो सस्मं परिणमेजा, अण्णतरे वा से दुक्ते रोयातंके समूपज्जेज्जा । ३२-केवली बया जायाणमेयं-- इह खलु भिक्खू गाहावद्रहि वा, गाहावदणीहि वा, परिवायएहि वा, परिवाद्रयाहिं वा, एगज्छ सद्धं* सोँडं पाउं भो! वतिमिस्सं* हुरत्था वा, उवस्सयं पडिलेहमाणे णो रुभेजा, तमेव उवस्सयं सम्मिर्सिंभाव“ मावज्जेजा । अण्णमण्णे वा से सत्ते चिप्परियासियभरए इत्थिविग्गहे वा, किलीवे वा, तं भिक्खुं उवसंकमित्तु बरुया-- आसतो समणा ! अहै आरामंसि वा, अहे उवस्सयंसि वा, १-निम्बथे अण्णयरं वा (व )। २-- ( क, घ, च ) | ३सढि (ब ) । ४--विति° (च,छ)। ५--मिश्रीभावम्‌ (व )। पिडेसंगा (तदो उदहेसो ) १२३ रामो वा, वियाके वा, गामधम्म^-णियंतियं कट्‌टु, रहस्सियं मेहुणधम्म-परियारणाए आखटरामो तं वचेगरदेओो सातिज्जेजा ¡ अकरणिज्जं चेयं संखाए ¦ एते आयाणाः संति संचिज्माणा, पच्चावाया भवंति" । तम्हा से संजए णियंडे तहप्पगारं पुरे-संखडिं वा, पच्छा- संखडि वा, संखडि संखडि-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा" गमणाए । ३३-से भिक्खू वा भिक्खुभी वा अन्नयर“ खडि वौ सोच्चा णिसम्म संपरिहावद" उस्सूर्य-भूयेणं अप्पाणेणं । धुवा संखडी । णो संचाएट तत्य इतरेतरेहि ककि सामूदाणियं* एंसियं, वेसियं, पिडवायं पंडिगाहैत्ता आहारं आहारेत्तए 1 माडृट्राणं संफासे, णो एवं करेला । से तत्थ केण अणुपविसित्ता तत्थितरेतरेहि कुेहि सामूदाणियं एसियं, वेसियं, पिडवायं पड़गाहेत्ता आहारं आहारे्ना । ३४-से भिक्ु वा भिक्खुणी वा सेज्जं पण जाणेजा-- गामं वा, *णगरं वा, खेडं वा, कव्वडं वा, मडबं वा, पटणं वा, आगरं वा, दोणमूहुं वा, णिगमं वा, आसमं वा, सण्णिवेसं वा,° रायहाणि वा । ` इ--माम° (बू) , ग्रामासन्ने वा (वृ ) । २--आयतणाणि (घ, व ) 1 ३-->< (अ, क, घ, च, छ ) । ४-- ° धारेज्ज (अ )1 ५--अण्णर्यरं (अ, च } | ६इ-सप्रधावति (व )। ऽ-समु ° (अःक,चःछ)। १२४ आयारः-चूखा १ ; पढमं अञ्भयणं इ्मंसि खु गामंसि वा, "णगरंसि वा, लेडंसि वा, कव्वडंसि वा, मडंबंसि वा, पद्रुणंसि वा, आगरंसि वा, दोणमूहंसि वा, णिगमंसि वा, आसमंसि वा, सण्णिवेसंसि वा०, रायहाणिंसि वा, संखडी सिया ।तंपियमामंवा (जाव) रायहाणिं वा, संखडि-पडियाए" णो अभिसंधारेना गमणाए । ३५-केवटी बया आयाणसेयं-- आदण्णावमाणं* संखडि अणुपविस्समाणस्स-- पाएण वा पाएं अक्कतपुव्वे भवद्‌, हत्थेण वा हत्थे संचालियपुष्वे मवई, पाएण वा पाए आवडियपु्वे भवद्‌, सीसेण वा सीसे संघद्वियपुच्वे भवड, काएण वा काए सखोभियपुन्वे भवडइ, दंडेणवा अद्रीण वा मुद्ीणवा ल्ेलुणावा कवाकेणवा अभिहयपुष्बे भवद्‌, सीओदएण वा ओसित्तपुत्वे भवद्‌, रयसा वा परिधासियपुब्बेः भवद्‌, अणेसणिज्जे" वा परिभूत्तपुन्वे भवद्‌, अण्णेसि वा दिज्जमाणे पडिगादहियपुव्वे भवद्‌ । तम्हा से संजए णिगगंथे तदहृप्पगारं आङइण्णोमाणं संखडि संखडि-पडियाए नो अभिसंधारेज्न गसणाए । १-सखडि संखडि-पडियाए ( ब ) 1 र--आदण्णो ° ( अ, घ, ब ) अयुद्ध । ३-परिज्जासित ° (क ) ; परिथासित्त ° (च, छ)! ४-- ° गिज्जेण ( अः छ ) 1 पिडेसणा ( तडभो उदेसो } १२५ विचिगिच्छा-समावण्ण-पदं ~ ३६-से भिक्लु वा भिक्लुणी वा गाहावडई-कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविद्रे समणि, सेज्जं पृण जाणेजा- असणं वा ४ एसणिज्जे सिया, अणेसणिज्जञे सिया- विचिभिच्छ'-समावण्णेणं अप्पाणेणं असमाहडाएं लेस्साए, तहप्पगारं असणं वा ०४ अफासूयं अणेसणिज्जं ति मन्नमाणे० लाभे संते णो पड़गहे्ञा ! सन्वभंडगमायाए-पदं ३७-से भिक्व॒ वा भिक्खुणी वा गाहावद्-कुलं "पिडवाय- पडियाए० पविसितुकामे सव्वं भंडगमायाएु गाहावई-कलं पिडवाय-पडियाए पविसेज् वा णगिक्मेज वा । ३८-से भिक्लू वा भिक्छुणी वा वहिया विहार-भमि वा वियार- भूमि वा णिक्खममाणे वा, पविसमाणे वा सव्वं भंडग मायाए बहिया विहार-भूमि वा वियार-भूमि वा णिक्खमेज्न वा, पविसेज् वा । ३९-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूदज्जमाणे सव्वं मंडग मायाए गामाणुगामं दूदन्जेज्जा 1 ४०-से भिक्खु वा भिक्युणी वा अहः पुण एवं जाणेस्जा-- तिव्वदेसियं वा वासं वासमाणं पेहाए, तिव्वदेसियं वा महियं सण्णिवयमाणिः पेहाए, महावाएण वा रयं समुदयं पेहाए- । १--वितिगिच्छ ( च ) ; वितिमिछठ ( अ ) ; विचिगिष्छ (छ ) 1 २-अह य (घ, छ )। ३-- ° माणं (अ, घ )। १२९ कुल-पदं आयार-चूखा १ ¦ पढमं अन्छयणं तिरिच्छं' संपाहमा वा तसा-पाणा संथडा सल्तिवयमाणां पेहाए, से एवं णच्चा णो सव्वं भंडग मायाएु गाहावद-कुलं ' पिडवाय-पडिथाए पविसेज्न वा, णिक्डमेज्र वा । बिया विहारःभूमि वा चियार-भूर्मि वा पविसेज वा, णिक्लमेज वा, गामाणुगामं वा" दुदज्जेजा । ४१-से भिक्ख्‌ वा भिक्खुणी वा सेजादं पुण कुरां जाणेज्जा, तं जहा-खत्तियाण वा, रारण वा, कुरारई्म वा, रायपेसियाण वा, रायवंसद्धियाणः वा, अंतो वा बर्हि वा गच्छताण वा, सण्णिविह्ण वा, णिमंतेमाणाण वा, अणिमतेमाणाण वा, असणं वा ४ *अफायुयं अणेसणिज्जं ति मन्नमाणेः छाभे संते णो पडिगाहैल्ना । (एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए्‌ वा सामगिगियं, ज सन्वट्ठेहि समिए सहिए सया जए । --त्ति नेमि 1) चटस्थौ उरेसो संखडि-पदं ४२-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा *गाहावदइ-कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविटे° समाणे, सेज्जं पुण जाणेजा- १--तिरिच्छ (अ, कः, घः, च )। २--६{अ, च्‌, कं, छ, बर ) । ३-- ° वंसुद्धियाण (घ ) 1 ४-- हिय ( अ, छ ) ; बाहियं ( च ) ; बिया (ध ) 1 विडेणा ( चउत्थो उषसौ ) १२७ मंसादियं' वा, मच्छादियंः वा, मंस-ललं वा, मच्छ-ललं° वा, आहेणं* वा, पहेणं वा, हिगोरं वा, समे" वा, हीरमाणं पेहाए, अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहूवीया बहुहरिया बहुमोसा बहुउदया बहुउत्तिग-पणग-दग-मद्विय-मक्कडा-संताणगा, बहवे तत्थ समण-माहण-अतिथि-किवण-वणीमगा उवागता उवागमिस्संति, तस्थादण्णा वित्ती, णो पण्णस्स णिक्छमण-पवेसाए, णो पण्णस्स वायण-पुच्छण- परियटरणाणुपेह्‌ "-धम्माणुओगचितापए, सेवं“ णच्चा तहप्पगारं पुरे-संखडि वा; पच्छा-संखडि वा, संखंडि संखडि-पटियाए णो अभिसंधारेज् गमणाए 1 ४३-से भिक्लू वा भिक्लुणी वा गाहावद-कुं पिंडवाय-पडिवाए अणुपचिदट्े समाणे, सेज्जं पुण जाणेजा- मंसादियं वा, मच्छादियं वा, मंस-वलं वा, मच्छ-खं वा, आष्ेणं वा, पेण वा, दहिगोलं वा, संभेरं वा, हीरमाणं पेहाए, अतरा से मर्गा अप्पंडा *अप्पमाणा अपबीया अप्पहुरिया अप्पोसा अप्पुदय्रा अप्पुत्तिग-पणग-दग-मद्विय-सक्कडा-° सताणगा, १- मन्न ° (घ) । २~मज्जा०(घ,व)। उ-मज्ज ०(घ)। ४--अहेण (घ, ब ) ! ५--समीलं (चः वे ) 1 ध-अन्ताइण्णा ° ( क, च ) अच्चाङण्णा ° ( नु )1 ७ ° पेहाए (क, च, व ) - पेहा ° (व )। प्स एव (केच); सेएव(अ,घ)1 दे १२८ भायार-चूखा १ : पढमं अस्मयणं णो तत्थ बहवे समण-माहण*-अतिथि-किवण-वणीमगा उवागता० उवागमिस्संति, अप्पाद्रण्णावित्ती, पण्णस्स णिक्खमण-पवेसाए, पण्णस्स॒ वायण-पुच्छण- परियटुणाणुपेह '-धम्माणुभगचिताए । सेवं णच्चा तहप्पगारं पुरे-संखडि वा, पच्छा-संखडि वा, संखडि संखडि-पडियाए अभिसंधारेज गसणाए । सखीरिणी-गावी-पदं ४४-से भिक्लू ग भिक्खुणी वा गाहविद्र-कुलं “पिडवाय- पडियाए° पविसिउकामे सेज्जं पण जणेजा--- खीरिणीओोः गावीमो खीरिजमाणीभो पेहाए; असणं वा ४ उवसंखडिनमाणं * पेहाए, पुरा अप्पजुहिए, सेवं णच्चा णो गाहावद्-कुठं पिंडवाय-पडियाए णिक्छमेन वा, पविसेज वा । से त्त मायाए एगंतमवक्कमेजा, एगंतमवक्कमेत्ता अणावायमसंखोए चिट्रेल्ला । ४५-अह्‌ पुण एवं जाणेजना-- खीरिणीओ गावीओ खीरियाभो पेहाए, असणं वा ४ उवक्वेडियं पेहाए, पुरा पलुहिए, से एवं णच्वा तभो संजयामेव गाहावद-कूलं पिडवाय- पडियाए गिक्खमेज्ञ वा, पविसेज वा । १-जत्थ (अ, क, च, छ, न )1 २- ° पेहाए (कः वे ); पेहा (च )। इ-खीरिणियायो (क, घ, च, छ, व ) 1 ४-उकेखदधि (अःष,क,छःनच्रु)। पिडेसणा ( चउत्थो उहेसो ) १२९ मादृटाण-पदं ४६-भिक्वागा णमेगे" एवमाहसु-'समाणे वा, वसमाणे' वा, गासाणुगामं दुदजमाणे-'खुडाएं खलु अयं गामे, संणिरुढधाए, णो महाल्ए, से हंता! भयंतारो! बाहिरगाणि गामाणि भिक्वायरियाए* वयह्‌ 1" संति तत्थेगदयस्स भिरक्ुस्स पुरे-संथुथा वा, पच्छा-संधुया वा परिवसति, तं जहा-गाहावईं वा, गाहावदणीओ वा, गाहावड-पृत्ता वा, गाहावद-धूयाओ वा, गाहावडह-युण्टाओ वा, धामो वा, दासा वा, दासीभो वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीओ वा, तहप्पगाराद्रं कुरादं पुरे-संथुयाणि वा, पच्छा-संथूयाणि वा, पुव्वामेव भिक्खायरियाए अणुपविसिस्सामि अविय इत्थ कभिस्सामि--पिडं वा, लोयं वा, खीरंवा, दर्धिंवा, णवणीयं वा, घय वा, गुं वा, तेल्कं वा, महु वा, मज्जं वा, मंसंवा, संकुकि वा, फाणियं वा, पूयं वा, सिहरिणिं वा, तं पुव्वाभेव भोच्चा पेच्चा, पडिग्गहं सलिहिय संमज्जिय, तओ पच्छा भिक्ूहि सदधि गाहावद-कुकं पिडवाय-पडियाए पविसिस्सामि, णिक्खमिस्सामि वा । माइट्टाणं संफासे, तं णो एवं करेज्ञा । १- ° नाम मेगे (व )। २-समाणा वा वस्ममाणा ( च } 1 ३-- ° पडियाए (ध, व ) 1 ४-सकुलि ( घ, छ ) › सक्कलि ( क्वचित्‌ ) 1 ५--> (घ, छः वृ ) 1 १ भयारचूखा १ : पढमं अज्मथणे ४७-से तत्थ भिक्लृहिं सद्धिं कारेण अणुपविसित्ता, तत्थितरे- तरेहिं' कुलेहि सामसुदाणियं, एसियं, पिंडवायं पडिगाहेत्ता आहारं आहारेना । ४८-एयं खदु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामगिगयं, शजं सब्वटेहं समिए सहिए सया जए। --्ति नेमि ।० पंचमो उदेसो ४९-से भिक्खू वा °भिक्ुणी वा गाहावद-कुरं पिडवाय-पडियाए अणुपविद्वे" समाणे, सेज्जं पण जाणेजा- अग्ग-पिंडं उक्खिप्पमाणं पेहाए, अग-पिंडं णिक्खिप्पमाणं पेहाए, अग्ग-पिड हीरमाणं पेहाए, अग्ग-पिडं परिभाइज्जमाण पेहाए, अग्ग-पिंडं परिभुजमाणं पेहाए, अग्ग-पिंडं परिष्वेज्माणं पेहाए्‌, पुरा असिणादइ* वा, अवहारादइ वा, पुरा जत्थन्ते समण- माहुण-अतिहि-किविण-वणीमगा खद्धं-खद्धं उवसंकमंति, से हंता अहमवि खद्धं उवसंकमामि, माइट्वाणं संफासे, णो एवं करेला । १-पत्थियरादयर्रोटि (ध, ब }। २-असणादइ ( कः व ) ; असिणेऽ (छ )1 इ-खद्धं खद्धं (छने ) 1 विडेसणा ८ पचमो उदे्षो ) १३१ विकषमटाण-परकम-पद ५०-से भिक्खू वा “भिक्खुणी वा गाहावद-कुरं पिडवाय-पडियाए अणुपविदरे समाणे-- अंतरासे वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, पागाराणि' वा, तोरणाणि वा, अगलाणि वा, अग्गल-एासगाणि वा- सइ परक्मे संजयामेव प्कमेला, णो उज्जुयं गच्छेा ! ५१-केवली बृथा आयाणमेयं- से तत्थ परक्कममाणे पये वा, 'पक्खचेल्नं वा*२, पवडेज वा, से तत्थ पयलमाणे वा, पक्खरमाणे वा'‡, पवडमाणे वा, तत्थ से काये उच्चारेण वा, पासवणेण वा, खेलेण वा, स्िघाणेण वा, वतेण वा, पित्तेण वा, पृएण वा, सुक्केण वा, सोणिरण वा, उवकित्ते सिया । तहृप्पगारं कायं णो अणंतरहियाएु पुढवीए, णो ससिणिद्धाए पुढवीए, णो ससर्खाए पुढवीए, णो चित्तम॑ताए सिकाए, णो चित्तमंताए लेलुए, कोलावासंसि वा दारुएु जीवपद्द्टिए, सअडे सपाणेशसनीए सहरिए ससे सउदए सउत्तिग-पणग- दग्ग-मद्विय-मक्कडा°-संताणए, णो आमज्जेज वा, णो पमज्जेज्ज वा, णो संखिषहेज्ज वा, "णो गिच्लिहेज्ज वा" ^ णो" उव्वलेज्ज वा, णो उवट वा, णौ आयावेज्ञ वा, णो पयावेज् वा । १-पोगारणि ( अ ) › पोरगलाणि ( ब ) 1 २~८८अ, कृ, घ, च, व ) । >< (अ, क, घः चः व)! ४->८९ (छ ) । ५-८ (अ, क, घ, च, ब ) सर्वव । १३२ भआयार-ूला १: पढमं अन्मेयणं से पुव्वामेव अप्पससरक्लं तणं वा, पत्तं वा, कटं वा, सक्करं वा, जादजा, जाइत्ता से त माथाए एगंत मवक्कमेला, एेगंत मवक्कमेत्ता अहे फामथंद्िकंसि वा, *अद्ि-रारसिसि वा, किदटु-रासिसि वा, तुस-रासिसि वा, गोमय-रासिसि वार, अण्णयरंसि वा तदहृप्पगारसि थंडिकंसि, पडिकलेहिय- पडिलेहिय, पमज्जिय-पमज्जिय, तओ संजयामेव आमज्जेज वा, पमज्जेज वा; संलिहेज्ज वा, भिष्छिहेज्ज वा, उन्वलेज्न वा, उवद्ेन्ज वा, आयावेज्ञ वा, पयाचेज वा । वियाल-परकम-पद ५२-से भिक्खू वा °भिक्युणी वा गाहाबई-कुर पिडवाय-पडियाप अणुपविदै समाणे, सेज्जं पण जाणेजा- गोणं वियारं पडिपहे' पेहाए, महिसं वियाकं पडिपहे पेहाए, एवं--मणुस्सं, आसं, हत्थि, सीह, वग्धं, विगं, दीवियं, अच्छं, तरच्छं, परिसर, सियाल, विरा, सुणयं, कोल- सूणयं, कोकेतियं, चित्ताचिव्लडयं- वियालं पडिपहे पेहाए, सद्र परक्कमे संजयामेव परक्कमेजा, णो उञ्जुयं गच्छेजा 1 विसमद्भाण-परकम-पदं ५३-से भिक्खू वा *भिक्खुणी वा गाहावद-कुकं पिडवाय-पडियाए अणुपविे° समाणे- अंतरासे ओवाभो वा, खाण्‌ वा, कटए वा, घसी* वा, भिलुभा बा, विसमे वा, विज्लले वा, परियावन्जेज्ञा- ` मपह (मक च) । २-हत्थी (८ अकच, छ } 1 इ~वसा ( ब )। पिडेषणा ( पंचमो उहेसो ) १३३ सति परक्कमे संजयामेव परक्कमेल्ना णो उच्जुयं सच्छेन्ना । कँटक-वोदिया-पदं ५४-से भिक्लु वा भिक्छुणी वा गाहावइ-कुखस्स दुवार-बाहं कटक-बोँदियाए परिपिहियं पेहाए, तेसि पृव्वामेव उग्गहं अणणुन्नविय अपडिकहिय अपमज्जिय णो अवंगुणिज्ज वा, पविसचेज्ज वा, णिक्खमेज्ज वा 1 तेसि पुव्वामेव उग्गहं अणुन्तविय, पडिलिहिय-पडकलिहिय, पमज्जिय-पमनज्िय, तओ संजयामेव अवंगुणिज् वा, पविसेज्न वा, णिक्खमेज्ज वा । अणावायमसलोय-चिटुण-पद ५५-से भिक्खू वा %भिक्खुणी वा गाहावह-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविद्े" समाणे, सेज्जं पुण जाणेज्जा- समणं वा, माहृणं वा, गामपिडोर्गं वा, अति्हि वा पुव्वपविदं पेहाए, णो तेसि संलोए, सपडिदुवारे चिद्ेज्जा । ५६-किवली बूया आयाण मेयं- पुरा पेहाए तस्सद्राए परो असणं वा ४ आहट्टु दक्एज्जा । अह्‌ भिक्खृणं पुव्वोवरष्ट एस पदन्ना, एस हेड, एस कारणं, एस उवएसो, जं णो तेसि संलोए, सपडिदुवारे चिद्धेज्जा'१ 1 से त्त मायाए एगंत मवक्कमेज्जा, एगंत मवक्कमेत्ता अणावायमसंलोए चिद्ेज्जा । १-->^(अःकःछः वु) १३४ आयार-चूला १ : पढमं अज्मयणं परिमायण-संभुंजण-पदं ५७-से से" परो अणावायमसंखेए चिद्ठमाणस्स असणं वा ४ आहट दएज्जा, से यं" वदेज्जा- आउसंतो समणा ¡ इमे भे असणे वा ४ सव्वजणाए निरि तं भुजह वा णं परिभाएह्‌ वा णं । तं चेगइञो पडिगाहेत्ता तुसिणीभो उवेहेञ्जा, अवियाद्रं एवं मम मेव सिया, एवं" माइट्राणं संफासे, णो एवं करेज्जा । से त्त मायाएु तत्थ गच्छेज्जा, तत्थ गच्छेत्ता, से पुव्वामेव ओलोएज्जा-अाउसंतो समणा! इमे भे असणं वाथ सव्बजणाए णिसिद्े, तं भुजह्‌ वा णं, परिभाषएह्‌ वा णं । से णेव“ वदतं परो वणएनज्जा-माउसंतो समणा ! तुमे चेव णं परिभाएहि 1 से तत्थ परिभाएमाणे णो अप्पणो खद्धं-खद्धं डायं-डायं ऊसढं- ऊसटढं रसियं-रसियं मणुन्नं-मणुन्तं णिद्ध-णिद्धं टुक्लं-सुक्लं । से तत्थ असूच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्फोववण्णे वहुसम मेव परिभाएज्जा ! से णं परिभाएमाणं पये वएज्जा-जाउसंतो समणा ! माणं तुमं परिभाएहि, सव्वे वेगतिया भोक्लामो वा, पाहामो चा। से तत्थ भुजमाणे णो अप्पणो खद्धं-खद्धं डाय -ायं ऊसढं-ऊसढं रसियं-रसियं मणुन्तं-मणुन्तं गिद्ध-णिदं लुक्लं-लुक्लं । १->६ (घ) 1 र-एवं (घ )1 इ~व (अ, व )। ४५६ (अ, घ, च ) ध्->€ एवं (च)। पिडिषणा ( चरो उदेसौ ) १३४ से तत्थ अमुच्छिए्‌ अगिद्धे अगदिए अणञ्फोववण्णे बहुसमं मेव भुंजेज्ज वा पीएज्ज वा ! पुव्वपविटूसमणादि-उवाङ्ककमण-पदं ५८-से भिक्ु वा *भिक्लुणी वा गाहावह-कुरं पिंडवाय-पडियाए अणुपविद्े° समाणे, सेउजं पुण जणेज्जा- समणं वा, भाहणं वा, गाम-पिडोरगं वा, अतिर्हि वा पव्वपविहं पेहाए, णो ते उवाद्क्कम्म पविसेज्ज वा, ओभासेज्ज वा । से त मायाए एगंत मवक्कमेज्जा, एगंत॒मवक्कमेत्ता अणावाय मसंलोए चिद्ेज्जा । ५९-अह पृणेवं जाणेज्जा-- पदिरेषिए व" दिन्ने चा, तओ तम्मि णियत्तिए । संजयामेव पविसेज्ज वा, ओभासेज्ज वा॥ ९०--एयं" खलु तस्स भिक्लुस्स वा॒भिक्खुणीए्‌ वा सामभियं, °ज्‌ सव्वटेहि समिए सदए सया जए । --ति बेमि° । ख्डो उदेसो मत्त-समुदितिपाणाण उज्बुगमग-पद ६१-से भिक्खू वा “भिक्खुणी वा गाहावद-कुं पिंडवाय-पडियाए अणुपनिद्े समणे, सज्जं पुण जाणेज्जा-- रसेसिणो बहवे पाणा धासेसणाए संथडे सण्णिवदए पेहाए, १-चा (छ) २्-एवं (सक, छ,वृ)। १३६ आयार-चूखा १ ¦ पमे भञ्मथणं तं जहा--कक्करुड-जादयं वा, सूयर-जादये वा, अग्पिडंसि वा वायसा संथडा सण्णिवदया पेहयए- सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्ा, नो उज्जुयं गच्छेजा 1 गाहावदकुल-पविदु्स अकरणिज्ज-पद ६२-से भिक्खू वा भिक्छुणी वा *गाहावह-कुरुं पिंडवाय~पड्ाए अणुपचव्टट° समणि- नो गाहावद-कुलस्स दवार-साहं! अवरुबिय-मवरनिय .. चिद्धेजा, ` नो गाहावद्-कुरस्स दगच्छहुणमत्ताए चिद्ेज्जा, नो गाहावद्‌-कुरस्स चंदणिउयए चिदे, नो गाहावद-कुकस्स सिणाणस्स वा, वच्चस्स वा, संलोए सपडिदुवारे चिद्धेजा, „. णो गाहावद-करुस्स आलोयं वा, भिग्पलं वा, संधि वा, ‹` ` दग-मवणं वा बाहाओ पगिज्छिय-पगिज्य, अगरखियाए वा _ उदिसिय-उदिसिय, ओणमिय-मोणमिय, उण्णमिय-उण्णमिय : ` णिज्फाएज्जा, णो गाहावद्रं अंगुलियाए उदिसिय-उदिसिय जाएजा, णो गाहावद्ं अंगुलियाए चाल्िय-चालिय जाएज्जा, णो माहावदं अंगुलियाए तज्जिय-तज्जिय जाएन्जा, णो गाहावदं अंगुलियाए उक्दुपिय *-उक्खदटुपिय जाएजा, : ~+ णतो गाहावदं वंदिय-वंदिय जाएज्जा, "णो व णं: फरुसं वएला । -दुवार सामम्गिय (अ ) ; दुवारवाह (क, च, चु ); वाराह {च )। २-चागुलपिय २ (अ) ; उक्ललमिय २ ( क, च ) $ उक्खुलविय २ (घ, ब) इ्-णौ चवण (ग); णो वयणे (चः छ,व)। पिडसणा ( चछर उसो } १३७ पुरकम्म-भादि-प्द ६२३-अह तत्थ कंचि! भुंजमाणं पेहाए, तं जहा-गाहावदं* वा, श्गाहावद-भारियं वा, गाहावदई-भगिणिं वा, गाहावड-पृत्तं वा, गाहावई-धूयं वा, सुष्टु वा, धादं वा, दासं वा, दासि वा, कम्मकरं वा,° कम्मकरि वा, से पुव्वामेव आलोएज्ञा-जाउसो ! त्ति वा, भद्णि ! त्ति वा ठाहिसि मे एत्तो अन्नयरं भोयणजायं ? से सेवं वयतस्स परो हत्थं वा, मत्तं वा, दच्वि वा, भायणं वा, सीओदग-वियडेण वा, उसिंणोदग-वियडेण वा, उच्छोलेज्ज वा, पहोएज्ज वा । से पुव्वामेव आलोएज्ा--आउसो ! त्ति वा, भडणि] त्ति वा, मा एयं तुमं हत्थं वा, मत्तं वा, दव्वि वा, भायणं वा, सीओद्ग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा, उच्छोलेहि वा, पहोएहि वा, अभिकंखसि मे दाऽ? एमेव दल्याहि 1 से सेवं वयंतस्स परो हत्थं वा, मत्तं वा, दच्वि वा, भायणं वा, सीभोदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा, उच्छोलेत्ता पटहोइत्ता आहट्दटु दलएनज्जा- तह्प्पगारेण पुरेकम्मकएण हत्थेण वा, मत्तेण वा, दन्वीए वा, भायणेण वा, असणं वा ४ अफासुयं अणेसणिज्जं “ति मण्णमाणे लाभे संते° णो पड़गाहेज्जा । १-किंचि (क, घ.छ )1 र-गाहावदय (च, छ) १२३८ आयार-चूखा १ ‡ पढमं अज्गयणं ६४--अह्‌ पुण एवं जाणेजा- णो पुरेकम्मकएण, उदउच्छेण । तहप्पगारेण उदउल्केण हत्थेण वा, मत्तेण वा, दव्वीएवा, भायणेण वा, असणं वा४ अफासूयं *“अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लभे सते णो पडिगाहेज्जा । ६५-अह्‌ पुण एवं जाणेज्जा- णो उदरल्छेण, ससिणिद्धेण । °तहुप्पगारेण ससिणिद्धेण हत्थेण वा (१।६४) । ६६-अह्‌ पुण एवं जाणेज्जञा- णो ससिणिद्धेण, ससरक्खेण । तषप्पगारेण ससरक्छेण हत्थेण वा (१।६४) । ६७-अह्‌ पुण एवं जाणेजा- णो ससरक्वेण, मट्टिया-संसद्रेण । तहप्पगारेण मद्विया- संसट्रेण हत्येण वा (१।६४) ! ६८-अह पुण एवं जाणेजा- णो मद्विया-संसट्ठेण, ऊस-संसट्ठेण । तहप्पगारेण ऊस संसट्ठेण हत्थेण वा (१।६४) । ६९-अहे पुण एवं जाणेजा- णो ऊस-संसट्ठेण, हरियाल-संसट्ठेण । तहृप्पगारेण हरियाल-संसट्ठेण हत्थेण वा (१।६४) । ७०-अदह्‌ पुण एवं जाणेज्ना- णो हरियाङ-संसट्ढेण, रिगु्य-संसट्ढेण । तदृप्पमारेण हिगुख्य-संसट्ठेण हत्येण वा (१६४) । । पडेषणा ( द्रो उसो ) १३६ ७१-अह्‌ पुण एवं जाणेज्जा- णो हिगुख्य-संसट्टेण, मणोसिला-संसट्ेण ! तदहप्पगारेण मणोसिला-संसट्ेण हत्थेण वा (१।६४) । ७२-अह्‌ पुण एवं जाणेजा- णो मणोसिला-संसट्ढेण, अंजण-संसट्ठेण । तहप्पगारेण ्जण-संसट्ठेण हत्थेण वा (१६४) । ७३-अह्‌ पुण एवं जाणेजा- णो अंजण-संसट्ढेण, लोण-संसट्ठेण । तहृप्पगारेण लोण- संसट्ठेण हत्थेण वा (१६४) । ७४-अह्‌ पुण एवं जाणेजा- णो लोण-संसट्ठेण, गेर्य-संसट्ढेण । तहप्पगारेण गेरय- संसट्‌ठेण हत्थेण वा (१।६४) 1 ७५--अह्‌ पुण एवं जाणेजा- णो गेस्य-संसट्ठेण, वण्णिया-संसट्ेण ! तहप्पगारेण वण्णिया-संसट्टेण हत्येण वा (१।६४) 1 ७६-अह्‌ पुण एवं जणेज्जा- णौ वण्णिया-संसट्ठेण, सेडिया-संसट्‌्ठेण । तहृप्पगारेण सेडिया^-संसट्‌ठेण हृत्येण वा (१।६४) । ७७-अह्‌ पुण एवं जणेज्जा- णो सेडिया-संसट्ढेण, सोरद्चिया-संसट्ठेण । तहप्पगारेण सोरद्धिया-संसटूठेण हत्येण वा (१६४) 1 ७-अह्‌ पण एवं जाणेज्जा- णो सोरष्ठिया-संसट्ठेण, प्ट्र-संसदेण । तहृप्पगारेण पिद संसद्रेण हत्थेण वा (१।६४) 1 १सेलिय (क) । १४० अयार-चूखा १ : पढमं बज्छयणं ७९--अहं पुण एवं जाणेज्जा- णो पिद्ट-संसटरेण, कुक्कस-संसद्रेण । तहूप्पगारेण कुक्कस- संसद्रेम हत्थेण वा (१।६४) । ८०-अह पुण एवं जणेज्जा- णो कुक्कस-संसटरेण, उक्कुहृ' संसह्ेण । तहप्पगारेण उक्कुट- संसद्रेण हत्थेण वा (१।६४) ।° -८ १-अह्‌ पुण एवं जाणेज्जा- णो असस, संसदट्रे। तहप्पगारेण संसह्ेण हत्थेण वा, सत्तेण वा, दव्वीएु वा, भायणेण वा, असणं वा ४ फासुयं ` गसणिज्जं ति मण्ममाणे लाभे संते° पडिगाहेज्जाः । पहूय-आदि-कोटुण-पदं ८२्‌-से भिक्खू वा °भिक्खुणी वा गाहावद्-करुखं पिडवाय-पडियाणए अणुपविदटधे समाणे,° सेज्जं पुण जाणेज्जा- पिहूुयं वा, वहुरयं वा, भज्जिये वा, मंथुं वा, चाउलं वा,० चाउलपलबं वा, अस्संजए भिक्खु-पडियाए चित्तमंताए सिकाए, *चित्तमंताए सेलुए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपदट्टिए, संडे सपाणे सवीए सहरिए सरसे सउदए सउत्तिग-पणग-दग-मद्िय-° मक्कडा-संताणाए कोट वा, कोर्टिति वा, कोट्टिस्संति वा, उप्प्णिसु* वा, उप्पणिति वा, उप्पणिस्संति वा- ~. शउक्किद् (क )1 २-अहं पूरगेवं जाणेज्जा अतद्‌ तहप्पगारेण संसट्ठेण इत्येण वा अघ्षणं वा ४ फ़ासुयं जाव पडिगहेन्जा (छ) प्रतौ एतत्‌ भूव्रमधिकमस्ति । इ-उप्फ ° (अ क, च )1 पिडिषिणा ( चरो उषेसो } १४१ तहप्पगारं पिहूयं वा [जाव] चाउल्पकंबं वा-अफासुयं “उणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते° णो परिगाहेज्ा 1 छोण-पदं ८३-से भिक्छू वा ^भिक्खुणी वा गाहावद्व-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविहटे समाणे, सेज्जं पुण जाणेज्जा- बिं वा लोणं, उन्भियं वा छोणं, अस्संजए भिक्छु-पडियाए चित्तमंताए सिकाए, °चित्तम॑ताए लेलुए, कोलावासंसि वा दारुए जीवप्इद्टिए, संडे सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउक्तिग-पणग-दग-मद्िय- मक्कडा-° संताणाए भिदु वा, भिदंति वा, भिदिस्संति वा, रुचिसु वा, रुचिति वा, रचिस्संति वा- बिलं वा लोण, उन्भियं वा लोणं-अफासुय *अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे कामे संते णो पडिगाहल्ना । अगणि-णिविलत्त-पदं ठ४-से भिक्खू वा °भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिडवाय-पडियाए अणुषविद्रे समाणे, सेज्जं पूण जणेजा- असणं वा ४ अगणि-णिक्खित्त, तहप्पगारं असण वा ४ अफासुयं “अ गेसणिज्जं ति मण्णमाणे° लाभे संते णो पडिगाहे्ना । ८५-केवली ब्रूया आयाण मेयं अस्संजए" भिक्खु-पडियाए उस्सिचमाणे वा, निस्सिनमाणे वा, आमज्माणे वा, पमज्माणे वा, ओयारेमाणे वा, उव्वत्तमाणेः वा, अगणिजीवे हिसेला 1 १-असजए (छ) २-अयत्तेमाणे (अ, क्‌ ) ; पवत्तेमाणे (8) 1 १४९ आयारचूला १ : पठमं अन्मयणं अहं भिक्लृणं पून्वोवदिद्वा एस पण्णा, एस हेड, एस कारणं, एसुवएसे- तं तहप्पगारं असणं वा ४ अगणि-णिक्सित्तं-जफासुयं अणेसणिज्जं °ति मण्णमाणे° छाभे संते णो पडिगाहेला । ८६-एयं खलु तस्स ॒भिक्छुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सब्बद्ेहि समिए सदहिए सया जए । --ति बेमि। सत्तमो उसो मारोह॒ड-पदं ८७-ते भिक्लू वा °भिक्खुणी वा गाहावदर-करुलं पिडवाय-पड्िाए अणुपविट्‌ढे° समाणे, सेज्जं पुण जाणेजा- असणं वा ४ खधंसि वा, थंभंसि वा, मंचंसि वा, माकंसि वा, पासायंसि वा, हम्मियतरसि वा, अन्नयरंसि वा तहप्पगारसि अंतल्िक्खजायंसि उवणिक्वित्ते सिया- तहप्पगारं मारोहडं असणं वा ४ अफासुय °अणेसणिञ्जं ति सण्णमाणे लाभे संते° णो पडिगाहेला । ८८-केवली ब्रुया आयाण मेयं अस्संजए भिक्खु-पडियाए पीढं वा, फर्गं वा, णिस्सेणि वा, उदं वा, अवहट्टु उस्सविय आरुहेल्ञा* । से तस्थ दुरुहमाणेः पयके्न वा, पवडेज् वा, (दन्न (जब); दिन (ष), दुरुहेन्ना (च) । २-दृहमणे (व ) । पिडेसणा ( सत्तमो उदेसो ) १४३ से तत्थ पयलमाणे वा, पवडमाणे वा, हत्थं वा पायं वा माहु वा, ऊरु वा, उदरं चा, सीसं वा, अण्णयरं वा कायंसि इदिय-जायं ससे वा, पाणाणि वा, -भूयाणि वा जीवाणि वा, सत्ताणि वा, अभिहृणे्न वा, वत्तेज वा लेसे वा, संघसेज वा, संषद्रेज वा, परियावेल्न वा किलामेज वा, ठाणाओ ठाणं संकमेन्न वा- त तहप्पगारं माखोहेड असणं वा४ °अफामसुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे° लाभे संते णो पडिगाहेल्ा । ८९-से भिक्सू वा *भिक्खुणी वा गाहावई-कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविदटे समाणे, सेज्जं पुण जाणेजा-- असणं वार कोष्ियाभो वा, कोलजाजोः वा, अस्संजए भिक्लु-पडियाए उक्कुजिय, अवडज्िय, ओह्रिय, आहट दल्एना-- तहप्पगारं असणं वा मालोहृडंऽ त्ति णच्चा लाभे संते णो पडिगाहेजा । (टभोरिन्त-पद ९०-से भिक्स वा *भिक्खुणी वा गाहावद-कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपचिछटे समाणे, सेज्जं पुण ॒ज्ञाणेजा-असणं वा मद्विगोकिन्तं तहप्पगारं असणं वा४ “अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णभाणे० लाभे संते णो पडिगाहेल्ना । श्-बाहं (अ, क, घ, ब ) 1 २--कोनेज्जाभो (क, च ) ; कोलिज्जाभो ( घ )। ३ माला ० (छ) ४-- ° भओवलित्तं (ध, छ ) | च १४८ आयार-चूला १ : पढमं अन्पयणं ९१-केवली दया आयाण मेयं-- अस्संजए भिक्खु-पडियाए मह्टिमोकित्तं असणं वा उन्भिदमाणे पृढवीकायं समारंभेना, तह तेऊ-वाऊ-वणस्सद-तस कायं समारंभेजा, पुणरवि ओङ्पमाणे पच्छाकम्मं करेज्ना | अह भिक्खृणं पुल्वोवदिद्धा °एस ॒पदण्णा, एस हॐ, एस कारणं, एसुवएसे०, । जं तहप्पगारं मद्िगोलित्तं असणं वा४ “अफायुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे* लाभे संते णो पिगह्ेज्ञा । पुढविकाय-पदद्िय-पदं ९२-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा *गाहावद-कुं पिंडवाय-पदियाए अणु-पविद्रे समाणे, सेज्जं पुण जाणेजा-असणं बा४ पूढविकाय-पडष्ियं तहप्पगारं असणं वाथ “पुढविकाय- पदद्वियं०-अफासुयं “अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते° णो पडिगाहेज्जा । आउकाय-पद्द्िय-पद ९३-*से भिक्लू वा भिक्खुणी वा गाहावद-कुं पिंडवाय-पडियाए अणुपविद्े समाणे, सेज्जं पुण जाणेजा- असणं वा आउकाय-पदष्टियं- तहप्पगारं असणं वा४ आउकाय-पदद्धियं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । अगणिकाय-पदट्टिय-पटं ९४-से भिक्खू वा भिक्छुणी वा गाहावद्-कुखं पिंडवाय- पडियाए अणुपविद्े समाणे, सेज्जं पुण जाणेजा- ससणं वा ४ अगणिकाय-पदद्धियं - पिडेसणा ( सत्तमो उसो ) १४५ तहृप्पगारं असणं वा४ अगणिकाय-पदद्धियं--अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे काभे संते णो पडिगाहैजा ।° ९५- केवली बूया आयाण मेयं-- अस्संजए भिक्खु-पडियाए अगणि ओसक्किय*, णिस्सक्षिय', ओहरिय, आहट्टु दलएजा । अह भिक्खृणं पुव्वोवद्द्न “एस पण्णा, एस हे, एस कारणं, एसुवएसे, जं तदहप्पगारं असणं वा ४ अगणिकाय-पदद्धियं--अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमणे कामे संते° णो पडिगाहेला । अच्चुतिण-चीयण-पदं ९६-से भिक्खू वा भिक्खूणो वा “गाहावद-कुरं पिडवाय- पडियाएु अणुपविद्डे° समाणे, सेज्जं पूण जाणेजा- असणं वा ४ अच्चुसिणं, अस्संजए भिक्लु-पड्याए सूवेण- वा, विहुवणेण* वा, ताकियंटेण वा, पत्तेण वा", सार्हाए वा, साहा-भगेण वा, पिहुणेण वा, पिहुण-हुत्थेण वा, चेकेण वा, चेलकन्नेण वा, हत्थेण वा, मुहेण वा फुमेज वा, वीएज्न वा । से पुन्बामेव आलोएला आउसो! त्ति वा, भगिणि। त्ति वा मा एयं तुमं असणं वा ४ अच्चुसिणं सूवेण वा, विहुबणेण वा, ताकियटेण वा, पत्तेण वा, साहाए वा, साहाभगेण वा, पिहुणेण वा, पिहुण-हत्येण वा, चेकेण वा, चेखकन्ेण वा, १-उस्सक्किय ( क, घ, च ) ; उस्सिविकय ( छ ) ; ओसिक्किय (म ) । ए२--णिस्सिकिकिय (अ, छः व ) 1 ३--सुप्येण (अ, च ) । ४--विहुयणेण (जः कं, घ, च ) । ५->८ (घ, वु )। १४८ आयार-चृा १ : पढमं अञ्फयणं १०२-से भिक्लू वा °भिक्ुणी वा ` गाहावद्-कुरं रिडवाय- पडियाए अणुपविद्टे समाणे, सेज्जं पुण पाणग-जायं" जाणेजा- त अणंतरहियाए पुढवीए *ससिणिद्धाए पुढवीए, ससख्खाए पुढवीए, चित्तमंताए सिलाए,. चित्तमंताए लए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपदइद्धिए, संडे सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउकत्तिग-पणग-दग-मद्िय-मक्कडा-° संताणए ओद्टटु* निक्खित्ते सिया 1 असंजए भिक्खु-पडियाए उदउल्छेण वा, ससिणिद्धेण वा, सकसाएण वा, मत्तेण वा, सीभोदएण वा संभोएत्ता आहट्ट्‌ दलएजा- तदप्पगारं पाणग-जार्य-अफासूयं "अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे" लाभे संते णो पडिगाहेला । १०३-एयं खलु तस्स भिक्ुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, “जं सब्वद्ेहि समिए सहिए सया जए ! -ति नेमि ।° अमो उसो १०४-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा शगाहावद्-कुखं पिडवाय- पडियाएु अणुपविटधि समाणे, सेज्जं पुण पाणग-जाय जागणेजा- १-पाणयं (चरु, र, च ) 1 २-भोहट्ट (कं )1 पडेतणा ( अद्ुमो उदेसो ) १४६ तं जहा-अंब-पाणगं वा, अंबाडग-पाणगं वा, कविद्-पाणगं वा, मातुिगि"-पाणगं वा, मुदहिया-पाणगं वा, दाडिम-पाणगं वा, खज्जुर-पाणगं वा, णाकिएर-पाणगं वा, करीर-पाणगं वा, कोल-पाणगं वा, आमल्ग-पाणगं वा, चिचा-पाणगं वा---अण्णयरं वा तहप्पगारं पाणग-जायं सअद्धियं सकणुयं सवीयगं अस्संजए भिक्चु-पडियाए छ्वेण* वा, दूसेणः वा, वाल्गेण वा, आवीलियाण वा, परिपीलियाण वा, परिस्सावियाण" आहृट्‌टु दरुएजा- तहप्पगारं* पाणग-जायं-अफासुयं °अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे° छाभे संते णो पडिगाहजा । गघ-आघायण-पदं १०५-से भिक्ख्‌ वा भिक्छुणी वा “गाहावद-कुलं पिडवाय- पडिाए अणुपविदटे समाणे, से आगारेषु वा, आरामागारेषु वा, गाहावड-कृलेसु वा, परियावसहेसु वा-अन्त-गंधाणि वा, पाण-गंधाणि वा, सुरभि-गंधाणि वा, अग्घाय*-अग्घाय-से तत्थ आसाय- पडियाए मुच्छिए गिद्ध गदिए अज्छोववन्ने अहोगंधो- अहोगंधो णो गंधं साघाएजा । १--मातुलुग ( अ, घ ) , मातुलेग (क ) , मातुलग ( च )। २-अस्जए्‌ (क, च ) । इ-छ्प्पेण (अ, च ) ; छटूरेण (ष )1 ४--दरयेण (छ )। प~ परिमादइयाण ( कं, 8, ब ) , परिसावियाण ( घ )। ६-आदप्पगारं (घ ) । &~-आाघाय (अक, च )1 १५० आयार चला १ ; पहं अज्छय साल्य-आदि-पदं १०६-से भिक्खू वा °भिक्छुणी वा गाहावदू-कुलं पिंडवाय- पडियाए अणुपविदटे समाणे, सेज्जं पुण जाणेजा-- ` सादुयं वा, विरालियं वा, सासवणालियं वा- अण्णतरं वा॒तहप्पगारं आमगं असत्थ-परिणयं-अफासुयं *अणेसणिज्जं ति मननमाणे° लाभे संते णो पडिगाहेजा । पिषप्पंलि-आति-परं १०७-से भिक्ख॒ वा भिक्खुणी वा "गाहावद-कूकं पिंडवाय- पडियाए अणुपविद्टे समाणे, सेज्जं पुण जाणेला-- पिप्पकि वा, पिप्पलिनचुण्णं वा, मिरियं वा, मिरिय-च्णं वा, सिगबेरं वा, सिगनेर-चुण्णं वा- अण्णतरं वा तहप्पगारं आमगं असत्थ-परिणयं-अफासुयं *अणेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते° णो पडिगाहेजञा । पठ्व-जाय-पदं १०८-से भिक्ल्‌ वा भिक्सुणी वा “गाहावह-कुकं पिडवाय- पडियाए अणुपविदट्े समाणे, सेज्जं पुण ॒पलंब ”-जायं - जाणेजा- तं जहा-अंब-पलबं वा, अंबाडग-पठबं वा, ताल-पलंब वा, भिनज्किरि'-पकबं वा, सुरभि"-पलवं वा, सल्कद-परबं वा- अन्नयरं वा तहप्पगारं पठब-जायं आमगं असत्थ-परिणय- अफासुयं अणेसणिज्जं ति मन्नमाणे° लाभे संतेणौ पडिगाहेला । १--पिप्पिलि ( छ ) 1 २--पलबम्‌ ( ब ) 1 ऽ--किल्लिर (अ), भिञ्मिर (घ, छ) ४--सुरघु (७) । पिडेवणा ( द्रुमो उदेसो ) १५१ पवाल-जाय-पदं १०९-से भिक्खू वा भिक्छुणी वा *गाहावई-कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविह्े" समाणे, सेज्जं पुण पवार-जायं जणेजा- तं जहा--आसोत्थ'-पवाकं वा, णगगोह्‌'-पवालं वा, पिरुखु- पवार वा, णीपूर पवाक वा, सव्लद्‌-पवालं वा- अल्लयरं वा तहप्पगारं पवार-जायं अआमगं असत्थ-परिणयं- अफासुयं अणेसणिज्जं °ति मन्नमाणे करभे सते णो पडिगाहेल्ा । सरडय-जाय-पदं ११०-से भिक्ु वा *भिक्खुणी वा गाहावड-कुकं पिडवाय-पडियाएं अणुपविद्धे" समाणे, सेज्जं पुण सरडुय-जायं जाणेना- तं जहा--अंब-सरडयं वा, अंबाडग-सरड्यं वा, कविद्- सरडयं वा, दाडिम-सरडयं वा, विल्ल-सरडयं वा अण्णयरं वा तदहुप्पगारं सरड़य-जायं आमगं असत्थ-परिणयं- अफासुयं “अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे कऊभे संते णो पडिगाहेला । भधरु-जाय-पदं १११-से भिक्ख्‌ वा भिक्ख॒णी वा “गाहावद-कुं पिडवाय-पडियाए अणुपविद्धेः समाणे, सेज्जं पुण्‌ मंथु-जायं जाणेा-- तं जहा--उंबर-मंथुं वा, णम्गोह-मंथुं वा, पिचु "-मंधुं वा, आसोत्थ-मधुं वा-- १--आसोद ( क, घ ) ; सत्थ (छ ) 1 २-णिग्गोहं ( छ ) । >-णीय्‌र(अ,व,छ, नं )। ४-फिल्ल ( क ) ; पिल्ल ( घ ) । प--वा पिपत्लि ( च ) 1 ६ पिलक्खु (क, च )। १५९ आयारःचूखा १ : पढमं अन्मयणं अण्णयरं वा तहप्पगारं मंथु-जायं आमयं दुरक्कं साणुबोयं- अफासुयं *अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे रभे संते णो पड़गाहेज्जा । आमडाग-आर्दि-पदं ११२-से भिक्खू वा *भिक्खुणी वा गाहावद्‌-कलं पिडवाय-पडियाए अणुपविद्रे समाणे, सेज्जं पूण जाणेजा-- आमडागं वा, पूदपिण्णागं वा, महं वा, भज्जं वा", समि वा, खोल वा पुराणगं एत्थ पाणा अणुप्पसूया, एत्थ पाणा जाया, एत्य पाणा संवुडढा, एत्थ पाणा अवुक्कंताः, एत्थ पाणा अपरिणया, एत्थ पाणा अविद्धत्था---अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे छाभे संते णो पडिमाहेजा । उच्छुमेरग-भादि-पदं ११३-से भिक्खू वा *भिक्छुणी वा गाहावद-कुरुं पिंडवाय-पड्याए अणुपविटे समाणे, सेज्जं पुण जाणेजा-- उच्छु-मेरगं वा, अंक-करेलुयं वा, कसेरुगं वा, सिधाडगं वा, पुति आल्गं वा-- अल्नयरं वा तहप्पगारं आमगं असत्थ-परिणयं-°अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमणे कामे संते° णो पडिगाहेजा । उष्पर-आदि-पदं ११४-से भिक्खू वा *भिक्लुणी वा गाहावदई-कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविद्धे समाणे, सेज्जं पुण जागेना-- १८ (चु) २-वक्कता ( कः छ ) ; ऽवक्कतां ( च ) ; बुक्कता ( न ) | ३--णो विद्धत्था (घः छ) । पिडेसणा ( अटुमो उदेसो ) १५३ उप्मठं बा, उप्पक-नालं वा, भिसं वा, भिस-पुणां वा, पोक्छकं वा, पोक्खल-विभंगं, वा- अण्णतरं वा तहप्पगारं °आसगं असत्थ-परिणयं--अफासूयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे छाभे संते° णो पडिगाहेल्ना । अगवीय-आदि-पदं ११५-से भिक्लू वा *भिक्ुणी वा गाहावइ-कलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविदटे समाणे, सज्जं पुण जाणेला- अग-बीयाणि वा, मूर-बीयाणि वा, खंध-बीयाणि वा, पोर- बीयाणि वा, अग-जायाणि वा, मुल-जायाणि वा, खंध-जायाणि वा, पोर-जायाणि वा, णण्णत्थ तक्कलि-मत्थएण वा, तक्कलि-सीसेण वा, णाङिएरि-मत्यएण वा, खज्ज्रि*-मत्थएण वा, ताल- मत्थएण वा- अन्नयरं वा तहप्पगारं आमं असत्थ-परिणयं--*अफायुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते° णो पडिगाहेल्ना । उच्छु-पदं ११६-से भिक्स वा *भिक्सुणो वा गाहावद-कुरुं पिडवाय-पडियाए अणुपविटे° समाणे, सेज्जं पुण जाणेजा- उच्छु वा काणगं* अंगारिय संमिस्सं विगदरमियं ^, वेत्तरगः वा, कदलीउसुयं * वा- १-- ० -भिभाग (क,च)। २्-णलिए्र (अ, च, ब )। ३ खज्जुर (ब )। ४ काणे(घ,व। ५ वदिं (अ); विगदुससियं ( घ, न ) - वििदुमिय ( छ ) । ६वेत्तग (अ, वित्तज्जग ( घ ) , वेत्तगागं ( छ ) 1 ७-- ° उस्मुग (चु) ; ° ऊसिग ( छ ) ; वर्णौ अन्येपि शब्दा ठश्यन्ते-कलतो सिम्बा- कलो चणगो, मोली गा तरस चेव, एव मुगग मासाणावि । ५5, आयारः-चूला १ : पढमं अज्मयः अण्णयरं वा तहृप्पगारं आमं जसत्थ-परिणयं *-अफायुः अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते° णो पडिगाहेजा । खुण-पद ११७-से भिक्ख्‌ वा °भिक्खुणी वा गाहावड-कुल पिंडवाय-पडियाए अणुपविहे समाणे, सेज्जं पुण जाणेजा- ङसुणं वा, लसुण-पत्तं वा, लसुण-नाङ वा, छसुण-कदं वा, लसुण-चोयगं * वा- अण्णयरं वा तहुप्पगारं आमं असत्थ-परिणयं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पड़गहिजा । अत्थिय-आदि-पदं ११८-से भिक्ल्‌ वा *भिक्खुभी वा गाहावद-कुर पिह्टवाय-पड़याएु अणुपविदट्े समाणे, सेज्जं पुण जाणेजा- अत्थिय' वा, कुंभिपक्कं तिदुगं वा, वेलुयं° वा, कासव- णालियं वा- अण्णतरं वा तहृप्पगारं आमं असत्थ-परिणयं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेल्ना । कण-भादि-पद ११९-से भिक्लु वा °भिक्खुणी वा माहावड-कुटं पिडवाय-पडियाए अणुपविदटे समाणे, सेज्जं पुण जाणेजा- कणं वा, कण-कंडगं वा, कण*-पुयलियं वा, चाउलं वा, चाउल-पिदटं वा, तिरं वा, तिर-पिषटं वा, ति-पप्पडगं वा- 9 त -चोय ( क चघ,चः छ»्व ) ॥ २-अच्छिय ( च )। दे-पेल्लुगं (क 2; पलुं ( च ) । ४० -पूयलि ( क)च्‌, छव )1 पिडेसणा ( नवमो उदो ) १५१ अन्नतरं वा तदहृप्पगारं आमं असत्थ-परिणयं-°अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे छाभे संते° णो पडिगाहेल्ञा 1 १२०-एयं खलु तस्स भिक्लुस्स वा भिक्लुणीए्‌ वा साममियं, गजं सव्वद्ेहि समिए सष्टिए सयाजए 1 --ति वेमि ।° नवमो उदो पर्छाकस्प्‌-पद्‌ १२१-इह्‌ खलु पारईणं वा, पडोणं वा, दाहिणं वा, उदीणं वा संतेगया सड्ढा भवन्ति- गाहावई वा, *गाहावदणीमो वा, गाहावद्र-पत्ता वा, गाहावड-धूयाओ वा, गाहावद्र-सुण्टाओ वा, धार्ईमो वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीमो वा। तेपि च णं एवं वततपुव्वं भवद-जे इमे भवंति समणा भगवन्तो सीलमंता वयमंता गुणमंता संजया संवुडा बंभचारी उवरया प्रेहुणाओो धंम्माओो, णो खलु एएहि कप्पइई्‌ आहाकम्मिए असणे, वा ४ भोत्तए वा, पायत्तए्‌* वा । सेज्जं पुण इमं अम्हुं अप्पणो अद्धाए णिष्धिय, तं जहा- असणं वा ४ सव्वमेयं समणाणं गिसिरामो, अवियादं व पच्छा वि अप्पणो अद्राए असणं ४ चेदस्सामो । १असण (क ) ] २-पात्तए ( क ) › पायए ( च ) ; पाएत्तए्‌ (घ ) । &सयदाए ( जक, च) | १५६ आयार-चूा १ ; पढमं मज्मथणं एयप्पगारं णिरौसं सच्चा णिसम्म, तहप्पगारं असणं वा ४ अफासुयं अणेसणिज्जं “ति मण्णमाणे° लाभे संते णो पडिगाहेज्ना । पुरापच्छासंथुय-कूल-पदं १२२-से भिक्खू वा भिक्सुणी वा समाणे वा, वसमाणे वा१, गामाणुगामं वा दुदजमाणे, तेउ्जं पुण जाणेजा- गामं वा, “गगरं वा, लेडं वा, कव्वडं वा, मडंबं वा, परणं वा, गरं वा, दोणमृहुं वा, णिगमं वा, आसमं वा, सण्णिवेसं वा, रायहाणि वा । इमंसि खलु गामंसि वा, *णगरंसि वा, खेडंसि वा कव्वडंसिं वा, मडबंसि वा, पटुणंसि वा, आगरंसिं वा, दोणमूहंसि वा, णिगमंसि वा, आसमंसि वा, सण्णिवेसंसि वा,० रायहाणिसि वा--सतेगइयस्स भिक्छुस्स पुरेसंधुया" वा, पच्छासंुया वा परिवसंति, तं जहा- गाहावरई्‌ वा, श्गाहावदणीओ वा, गाहावइ-पृत्ता वा, गाहावद्-धुयाओ वा, गाहावद-सुण्टाओ वा, धार्ईभो वा, दासा वा, दासी वा, कस्मकरा वा, कम्मकरोओ ना । तदहुप्पगाराइं कुखाई्‌ णो पुव्वामेवे भत्ताए वा, पाणाएवा णिक्खमेज् वा, पविसेल वा । १२३-केवटी ब्रूया--आयाण मेयं । पुरा पेहाए तस्स परो अदहए असणं वा ४ उवकरेज्न वा, उवक्खंडेल् वा । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिद्टा “एस ॒पद्ण्णा, एस हेॐ, एस कारणं, एस उवएसो--° १-संमाणे वसमाणे वा (कः, च, व ) $ समाणे (घ, छ )। र्‌-पूव्व ° (ब)। पिडेतणा ( नवमो उदेसो } १५७ जं णो तहप्पगारादं कुखादं पुव्वामेव भत्ताए वा, पाणाए वा पविसेज् वा, णिक्खमेज वा । से त्तमायाए एगंतमवक्कमेला, एगंतमवक्कमेत्ता अणावायम- संलोए चिद्धेजा । से तत्थ कालेणं अणुपविसेजा, रत्ता तत्थियरेयरेहि कुरे सामुदाणियं', एसियं, वेसियं, पिड्वायं, एसित्ता आहारं आहारेज्ना । सियासे परो कालेण अणुपविद्रस्स आहाकम्मियं असणं वा ४ उवकरेज वा, उवक्खडेज्ञ वा । तं चेगइमो तुसिणीओ उवेहेजा, आहडमेव पच्चा- इक्खिस्साप्रि । माइद्ाणं संफासे । णो एवं करेजा । से पुव्वाभेव आलोएज्जा-गाउसो ! त्ति वा, भगिणि] त्ति वा, णो खलु मे कप्पद आहाकम्मियं असणं वा ४ भोत्तए वा, पायए वा 1 मा उवकरेहि, मा उवक्खडेहि । से सेवं वयेतस्स परो आहाकम्मियं असणं वा ४ उवक्खडत्ता आहट्टु दलएज्जा । तहृप्पगारं असणं वा* अफासुयं *अणेसणिज्ज ति मण्णमाणेर लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । नन्तत्थ-गिराणाए-पदं १२४-से भिक्खू वा *भिक्छणी वा गाहावइ-करलं पिडवाय-पडियाए अणुपचि्टे समाणे, सेज्जं पुण जाणेज्ना- १-समुदा ° (कःघःचः छव) १५८ आयार-चृखा १-; पढमं अन्मयणं मंसं वा, मच्छं वा भज्जिज्जमाणं' पेहाए, तेव्लपूयं वा आएसाए उवक्खडिज्जमाणं पेहाए, णो खद्ध-खद्धं उवसंक- मित्तु ओभासेज्जा, णन्नव्य गिकाणाएः । माष्टुण-पदं १२५-से भिक्खू वा °भिक्लुणी वा गाहावद-कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविद्े" समाणे, अण्णतरं भोयण-जायं पडिगाहेत्ता सुन्भि- सुन्मि मोच्या दुन्भि-दुम्भि परिष्वेद । मादृहमणं* संफासे। णो एवं करेज्जा । सन्म वा दुन्भि वा, स्वं भजे न छडए ॥ १२६-से भिक्लू वा °भिक्लुणी वा गाहावद-करलं पिंडवाय-पडियाग अणुपविद्ेः समाणे, अण्णत्तरं वा पाणग-जायं पडिगाहैत्ता पप्फ-पुप्फं आविद्त्ता* कसायं कसायं परि्वेद्‌ । याद््ाणं संफासे 1 णो एवं करेज्जा । पुप्फ-पुप्केति वा, कसायं कसाए त्ति वा-सव्वमेयं भुजेज्जा, ` णो किचि वि परि्वेज्जा । १२७-से भिक्खू वा भिक्छुणी वा बहूुपरिथावण्णं भोयण-जायं पडिगाहेत्ता" साहम्मिया तत्थ वसंति संभोह्या समणुण्णा अपरिहारिया अदूरगया। तेसि अणारोडया^ अणामंतिया” प॒ रिद्वेद । १-भिज्जमाण (अ ) ; मज्जमानमिति (वृ )। र्~गिलाणीएु ( अ, क, च ) ; गिलाणणीसाए (छ) 1 इ-सात्ति ° (ब) #-आनरेइत्ता ( च ) ; आवीऽत्ता (5 ) । ५-पडिगाहेत्ता बहवै (अ, छ, व ) 1 द ° इय ( च, छ) 1 ७-~ ° मेते (घ)। पिडेतणां ( नवमो उदेसो ) १५६ मादृट्मणं संफासे । णो एवं करेज्जा । से त मायाए तत्थ गनच्छेलला, गच्छेत्ता, से पुव्वामेव आलोएना-आउसंतो ! समणा! इमे मे असे" वाध बहुपरियावण्णे, तं भुंजहं णं । से सेवं वयतं परो वणएलज्ा-आउसंतो ! समणा ! आहारमेयं असणं वा ४ जावहयं-जावदयं परिसडइ, तावदयं-तावदयं भोक्वामो वा, पाहयमो वा । सव्वभेयं परिसडद', सव्वमेयं भोक्लामो वा, पाहामो वा 1 वहियानीहुड-पदं १२८-से भिक्खू वा *भिक्खुणी वा गाहावद-कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपनिद्े समाणे, सेज्जं पुण जाणेजा- असणं वा४ परं समुदिस्स बहिया णीहडं, जं* परेहि असमणुन्तायं अणिसि्ट-अफासुयं *अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे कामे संते णो पडिगाहिजा, ज॑‹ प्रेहि समणुन्नायं सम्मं* णिसिद्ट-फासुयं "एसणिज्जं ति मप्णमाणे° लाभे संते पडिगाहेज्ञा 1 १२९-एयं खलु तस्स भिक्छुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सन्वह समिए सिए सयाजए । --ति वेमि 1° १--मसणं (क ) 1 २-वण{अ,वब)। ३ ° सरइ (घ, च, छ ) 1 ४-- ° सरइ (घः, च) । ५६-त्तं (अ, क, घ, च )। ७--सम (अक, घ, ब )। ७ १६० भायार-चूखा १ : पढमं अज्भयणं दसमो उदेसो मादृ्राण-पदं ह १३०-से एगडओ साहारणं वा पिडवायं पडिगाहेत्ता, ते साहम्मिए अणापुच्छित्ता जस्स-जस्स इच्छंद तस्स-तस्स सद्धं दलाति* । माइट्राणं संफासे । णो एवं करेजा । से त्त मायाए तत्य गच्छेज्जा, गच्छेत्ताः वएलना-आउसंतो समणा ! संति मम पुरे-संुया वा, पच्छा-संथुया वा, तं जहा- आयरिए वा, उवज्फाए वा, पवत्ती वा, थेरे वा, गणी वा, गणहरे वा, गणावच्छेदए क । अवियाइं एसि खद्ध-खदधं दाहामिं । ^्े णवं वयंतं'* परो वएल्ना-कामं खलु आउसो] अहापजक्त णिसिराहि" । जावइय-जावद्यं परो व्यड, तावदयं -तावदयं णिसिरेज्जा । सन्वमेयं परो वयइ, सन्वमेयं णिसिरेज्जा ॥ १३१-से एगदओ मणुन्तनं भोयण-जायं पडिगहेत्ता पंतेण भोयणेण' पलिच्छाएति-- ममेयं दायं संतं, दटुष्रणं सयमायषए । आयरिए वा, *उवज्फाएु वा, पक्त्ती वा, थेरेवा, गणी १--दलयति (अ ) 1 २--गच्छेत्ता पुव्वामेव { अ? छ, व ) । ३--आलोएज्जा ( ब ) 1 ४--सेवें ( घ )। प--णिसराहि (अ, छ ) 1 ६~मोयणे जार्ईण (घ ) | पिडेतणा ( दक्षमो उदहेसो ) १६१ वा, गणहुरे वा,° गणाचच्छेइए वा । णो खलु मे कस्स किचि वि दायव्वं सिया । माइद्राणं संफासे । णो एवं करेज्जा । से त्त मायाए तत्थ गच्छेल्ला, गच्छेत्ता पुव्वामेव उत्ताणप हत्थे पडिगगहं कट्टु- मं खलु" इमं खलु स्ति आलोएला, णो किचि वि गिगूहेज्जा 1 १३२- से एगदओ अण्णतरं भोयण-जायं पडिगाहै्ता- भदयं-मदयं भोच्चा, विवन्नं विरस माह । माइद्ाणं संफासे । णो एवं करेजा । वहु-उज्मिय-धम्मिय-पदं १२३३-से भिक्खू वा °भिक्खुणी वा गाहावई-कुकं पिडवाय-पडियाए अणुपचवि्रे समाणे,° सेज्जं पुण जाणेज्जा- अंतरुच्छुयं वा, उच्छु-गंडियं वा, उच्छु-चोयगं वा, उच्छु मेरगं* वा, उनच्छु-साल्गं वा, उच्छु-उगलं* वा, सिबलिः वा, सिबलि-थाल्गं वा । अस्सि खदु पडिग्गादियंसि, अप्पे सिया‹ मोयणजाए, बहुउञ्मियधम्मिए | तहप्पगारं अंतरुच्छुयं वा [जाव] सिबक्ि-थाल्गं वा-- १->(क,घः,छ,म)। २-- ° मेरगे (अ, व ) । ३--आचारङ्गस्य १।१० वृत्तौ--“ड्लग' ति शाखेकदेश. ¦! ७।२ वृत्तौ--डालगः ति आग्रषलक्ष्णा खण्डानि, इति लभ्यते, किन्तु निशीथस्यषोडशोटेशे “उगलः पाठो लभ्यते । तद्‌ भाप्य वचूर्णोडगलस्यार्थोविहितः। माष्ये यथा--उगल' चक्कलिष्ठेदो (५४१९) ; वर्णौ यथा--चक्कलिष्ठेदे छछिष्ण गलं भण्णति (भा० & पृष्ठ ६६) । आचारागे ल्िपि-दोषतः परिवर्तनमिद जातमिति संमाव्यते ! ४--सबलि (अ, क, च, छ ) ; संपलि ( व ) 1 भ~ ° धालिय (अ)! ६--> (क, घः च, छ } ! १६२ आयार-चछां १ : पढमं भन्भयणं अफासुयं *अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे सते णो पडिगाहेजा । १३४-से भिक्खू वा “भिक्खुणी वा गाहावद-कुरं पिडवाय-पडियाए अणुपविह्े समाणे,° सेज्जं पुण जाणेला- बहु-अघ्ियं वा मंसं, मच्छ वा बहु कंटगं । अस्सि खलु पडिगाहियंसि, 8 अप्येसिया भोयण-नाणएसु, बहुरन्मियधम्मिए । तहप्पगारं बहु-अह्ियं वा मंसं, मच्छ वा बहु कंटगं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहैल्रा । १३५- से भिक्लू वा *भिक्खुणी वा गाहावद-कुटं पिंडवाय-पडियाए अणुपविद्ै समाणे, सिया णं परो बहु-अह्धिएण मंसेण' उवणिमंतेजा-- आउसंतो! समणा! अभिकखसि बहु-अद्धियं मंसं पडिगादित्तए? एयप्पगारं गणिग्वोसं सोच्चा णिसम्म, से पुव्वामेव आलोएजा-- आउसो! त्तिवा, भइणि]त्तिवा, णो खलु मे कप्पदसे बहु-अ्धियं मंसं पडिगाहित्तए, अभिकखसि मे दाउ जावद्यं, तावइयं पोगर दल्याहि, मा अद्धियाद्‌ । से सेवं वयंतस्स परो अभिहुट्ट अंतो-पडिग्गहगंसि * बहु- अष्टियं संसं परिभाएत्ताः णिहुट्‌टु दकएल्ना । १-मसेण़ मच्छेण (अ, ब, छ ) । २-- ० पडिगहु्ति (अ ) 1 इ--प्रिभोऽत्ता (अ ) ; परियाभोएत्ता (क, च ) 1 पिडेतणा ( दतमो उदेसो ) १६३ तहप्पमारं पडिग्गहगं* परहत्थंसि वा, परपायंसि वा-- अफासुयं अणेसणिज्जं °ति मण्णमाणे° छाम संते “णो पडिगाहेज्ञा 1 से आहच्च पडिगाहिए सिया, तं णोहि त्ति वएज्जा, णो अणहित्ति* वएल्ना 1 से त्त मायाए एगंतमवक्कमेजा एगंतमवक्कमेत्ता, अहे आरामंसि वा, अहे उवस्सयंसि वा, अप्पंडए *अप्प-पाणे अप्प-बीएु अप्यहरिए अप्पोसे अप्मुदएु अप्ु-्तिग-पणग-दग- मद्विय-मक्कडा-° संताणए मंसगं मच्छ भोज्वा अद्धियाइं कंटए गहाय, ि से त्त मायाए एगंत मवक्कमेजा, २ त्ता अहे फामथंडिरंसि वा, °अद्विरासिसि वा, किटू-रासिसि वा, तुस-रासिसि वा, गोमय-रासिसि वा, अण्णयरंसि वा तहृप्पगारंसि थंडिकसि पडिकेहिय-पडिलेहिय,° पमन्निय-पमज्िय तओ संजया मेव परि्रवेज्ञा । अज।णया लोेण-दाण-पदं १३६-से भिक्खू वा *भिक्खुणी वा गाहावद-कुलं पिडवाय-पड्याए अणुपविटे° समाणे, सिया से परोअभिहटटु अंतो-पडिग्गहुए विं वा रोण, उन्भियं वा लोणं परिभाएत्ता णीहटुटु दरएजा, तहृप्पगारं पडिग्गहगं परहत्थंसि वा, परपायंसि वा-अफासुयं अगेसणिज्जं *ति मण्णमाणे भे संते° णो पड़गिाहेजा । से आच्च पडग्गादिएं सिया, तं च णाडइदुरगए जाणे, १-- ° ग्गहण (अ ) 1 २--अणिहित्ति (@ ) 1 ३ (घ ) 1 १६४ भयोर-चला १ : पढमं अुन्मयुणं से त्त .मायाए तत्य .गच्छेजा, २ त्ता पुत्वमव्र आलोएला- आउसो! त्ति.व्रा, .भदणि! त्तिवा द्रमते किं जाणया दिन्नं ? उदाहु अजाणया' ?" सो य भणेजा-णो खट. मे जाणया दिन्तं, अजाणया । कामं" खदु आसो! इदाणि णिसिरामि ! तं भुजहं च णं, परिभाएह च णं | तं परेहि समणुन्नायं समणुसिषटं, तओ संजयामरेव भजे वा, पीएन वा । जं, च णो संचाएति भोत्तए वा, पायए वा । साहम्मिया तत्थ वसंति संभोदया समणुन्ना अपरिहारिया अदूुरया तेसि अणुपदातव्वं । सिया णो जत्थ साहम्मिया सिया, जहेव बहूुपरियावन्ने कीरति, तहेव कायव्वं सिया । १३७-एयं खलु तस्स भिक्बुस्ष वा भिक्खुणीए वा सामग्िय, गजं सन्वद्ेहि समिए सदए सया जए --तिबेमि।° एगारसमो उहेसो मादृुाण-पदं १३८-भिक्छागा णामेमे एवमाहंसू-समाणे वा, वेसमाणे वा, गामाणुगामं वा दुद्जमाणे' * मणुण्णं भोयण-जायं रमित्ता, से* भिक्खु गिलाद, से हंदहं णं तस्साहरह । १--अजाणया दिन्न {घ ) 1 २--इमं (अ ) १--दूदज्जमाणे वा (अ) ; दुदज्जमाणे ( च, छ, व ) 1 ४-सेय(अ)। पिडेसणा ८ एगारसमो उहसो ) १६१ से य भिक्लू णो भुंजेज्ना । तुमं चेव णं भंजेन्नासि । से एगडगो भोक्वामित्ति कटटु पचलिडंचिय-पकलिडिंचिय आलोएजा, तं जहा-इमे पिंडे, इमे लोए*, इमे तित्तए, इमे कड्यए, इमे कसाए, इमे अंबे, इमे महुरे, णो खलु एत्तो किचि गिराणस्स सयति त्ति । साइट्वाणं संफासे । णो एवं करेज्ञा । तहाव्ं* आलोएजा, जहाष्यं* गिकाणस्स सदति- तं तित्तयं तित्तएत्ति वा, कडयं कडएत्ति वा, कसायं कसाएत्ति वा, अंबिलं अंबिकत्ति वा, महुरं महुरेत्ति वा 1 मणुण्ण-भोयण-जाय-पदं १३९--भिक्खागा णामेगे एवमाहंसु-समाणे वा, वसमणे वा, गामोणुगामं (वा ?)} दृइ्नमाणे मणुनं भोयण-जायं छभित्ता से भिक्खू गिकाइ, से हंदह णं तस्साहरह । सेय भिक्खू णो भुंजेजा । आहरेजासि* णं । णो खल मेः अतराए आहरिस्सामि । इच्चेयाद* भआयतणादरं उवाइकम्म । पिडेषणा-पणेसणा-पद १४०-अहं भिक्लू जाणेजा सत्त पिडेसणाओो, सत्त पाणेसणाओो । १-->( कः, च, छ } | २-युक्खए (छ ) 1 ३-तहेव तं (अ, च, छ ) । ४-जहेव तं (अ, च, छ ) | ५--आहारेज्जासि ( अ, घ, छ, ब ) ; आहारेज्जा से (क च )। ६--उमे (अ,के, च,छ, व )। ७-इच्वेदयाइ ( क, छ, च ) । १६६ आयार-चूला १ ; पढमं भज्य १४१-तत्थ खलु इमा पडमा पिडेसणा-असंसे हस्ये असंसष्टे मत्त । तहुप्पगारेण असंसृद्रेण हत्थेण वा, मत्तेण' वा, असणं वा, पाणं वा, खाद्मं वा, साइमं वा सयं वा णं जाएला, परो वा से देला-फासुयं *एसणिज्जं ति मणमाणे काभे संते पडिगाहेला-पढमा पिडेसणा । 6 १४२-अहावरा दोच्चा पिडेसणा-संसटे हत्थे संसहे मत्ते । *तह्प्पगारेण संसट्रेण हत्थेण वा, मत्तेण वा, असणं वा ४ सयं वा णं जाएज्ना, परो वा से देजा-फायुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे कामे संते पडिगाहेजा--दोच्चा पिडेसणा ।° १४३-अहावरा तच्चा पिडेसणा-दइह्‌ खलु पार्ईणं वा, पडीणं वा, दाहिणं वा, उदीणं वा संतेगइया सड्ढा भवंति-गाहाव्ई्‌ वा, श्ाहावद्णीओ वा, गाहावद्‌-पृत्ता वा, गाहावद्-धुयाओ वा, गाहावद-ुण्हामो वा, धार्ईमो वा, दासा वा, दासी वा, कस्मकयो वा,° कम्मकरीञो वा । तेसि च णं अण्णत्रेसु विरूव-रूवेसु भायण-जाएमु उवणिक्खित्तपुष्वे सिया, तं जहा-- थाकंसि वा, पिढरंसिः वा, सरगंसि वा, परगंसि वा, वरगंसि वा । अह पुणेवं जणेजा-असंसद्े हत्थे संस्र मत्ते, ससहे वा हत्थे असंसटटे" मत्ते । से य पडिग्गहधारी सिया पाणिपडिग्गहए* वा, से पुव्वामेव आलोएल्ा-भाउसो! त्ति वा भगिणि! ति वा एषएणं तुमं १-मत्तएण (अ, छ, ब )। २--पिदरगसि (अ, च ) , पिठरगसिं ( ध ) , पिठरंसि ( ब ) 1 ३- -सदट्‌ढे वा (क, च) 1 ४-- ० पडिगगहिए (ठ, ब 21 पिडेतणा ( एगारसमो उदहेसो ) १६७ भसंसद्रेण हत्थेण संसद्रेण मत्तेण, संसद्रेण वा हत्थेण असंसट्रेण मत्तेण, अर्सि पडग्गहगंसि वा पाणिसि वा णिहटृटु उवित्तु दकर्याहिं । तह्प्पगारं भोयण-जायं सयं वा णं जाएला, परो वा से देला फासुयं एसणिज्जं °ति मण्णमाणेर लाभे संते पडिगाहेना- तच्चा पिडेसणा । १४४-जहावरा चउत्था पिडेसणा-से भिक्लू वा, °भिक्ुणी वा, गाहावद-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविहे समाणे,° सेज्जं पुण जाणेजा-- पिहुयं वा॒°बहुरजं वा, भुंज्ञियं वा, मथु वा, चाउलं वा०; चाउल-पकबं वा 1 अस्सि खलु पडिगगहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे अप्पे पजवजाए, तहुप्पगारं पिहुयं वा [जाव] चाउलछ-पल्बं वा सयं वा णं जाएजा, परो वा से देज्जा *-फासुयं एसणिज्जं॑ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्ञा-चरत्था पिडेसणा 1 १४५-अहावरा पंचमा पिडिसिणा--से भिक्खू वा “भिक्ुणी वा गाहावद-कुं पिडवाय-पडियाएं अणुपविदट्‌ढे° समाणे, उवहितमेव* भोयण-जायं जाणेजा, तं जहा-सरावंसि वा, डिडिमंसि वा, कोसगंसि वा । अहपूण एवं जाणेा-- बहुपरियावन्ने पाणीसु द्गलेवे । तहप्पगारं असणं वा४ सयं वा णं जाएज्ञा परो वासे देजा-फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे ऊाभे संते° पडिगाहेज्ा-पंचमा पिडेसणा । अहावरा चछा पिडेसणा- से भिक्खू वा *भिक्खुणी वा ४---उगगहिय ° (च )। १६८ आयार-नूखा १ : पढमं अर्भयणं गाहावडइ-ककं पिडवाय-पडियाए अंणुपविट्ढे समाणे,० परगहियमेव* भोयण-जायं जाणेजा- जेच सयष्राए परगहियं, जे च परट्रए पगहियं, तं पाय- परियावन्तं, तं पाणि-परियावण्णं--फासुयं *एसभिज्जं ति मण्णमाणे कामे संते° पडिगाहेला-- च्छा पिडेसणा । १४६-अहावरा सत्तमा पिडेसणा-से भिक्खू वा “भिक्खुणी वा गाहावह-कुं पिडवाय-पडियाए अणुपविषटेः समाणे, बहु- उज्फिय-धम्मियं भोयण-जायं जाणेजा- जं चऽन्ने वहुवे दुपय-चरप्पय-समण-माहुण-अतिहि-किवण वणीमया णावकखंति, तहप्पगारं उज्िय-धम्मि्य-मोयण- जायं सयं वा णं जाएज्ञापरो वासे देज्जा “-फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमणे राभ संते° पडिगाहेज्जा- सत्तमा पिंडेसणा 1 इच्चेयाओ सत्त पिडेसणाओ 1 १४७-अहावराओ सत्त पाणेसणाओ । तत्थ खलु इमा पढमा पाणेसणा-असंसद्‌ठे हत्थे असंसट्ठे मत्ते-(१।१४१) । १४८-"अहावरा दोच्चा पाणेसणा- संसै हत्थे संसद मत्ते- (१।१४२) । १४९-अहावरा तच्चा पाणेसणा-इह खल पाईणं वा, पडीणं वा, दाहिणं वा, उदीणं वा संतेगदया सड्ढा भवंत्ि-(१।१४३) । १५०-अहावरा चउत्था पाणेसणा-से भिक्खू वा भिक्खुभी वा गाहावइ-कुरं पिडवाय-पडियाएु अणृपविद्े समाणे, सेज्ज पुण पाणग-जायं जाणेज्जा, तं जहा-तिलोदगं वा, तुसोदगं वा, जवोदगं वा, आयामं वा, सोवीरं वा, सुद्धवियडं का । १--उग्गहिय ° (अ, के, च ) ; उगगहित पगहित ( च ) 1 पिडे्णा ( एगारसमो उदेसो ) १६६ अस्सि खलु पडगगहियंसि अप्ये पच्छाकम्मे, अप्पे पज्जवजाए । तहप्पगारं तिलोदगं वा, तुसोदगं वा, जवोदगं वा, आयामं वा, सोवीरं वा, युद्धवियडं वा सयं वाणं जाएज्जा, परो वा से देज्जा--फामुय एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा । १५१-अहावरा पंचमा पणेसणा- से भिक्छु वा भिक्खुणी वा गाहावद-कुकं पिडवाय-पडियाए अणुपविद्े समाणे, उवहित- मेव पाणग-जायं जाणेज्जा-(१।१४५) । १५२-अहावरा चछा पाणेसणा-से भिक्खु वा भिक्खृणी वा गाहावङ-कुकं पिडवाय-पडियाएु अणुपविद्े समाणे, परगहिय- मेव पाणग-जायं जाणेज्जा-(१।१४९) । १५३-अहानरा सत्तमा पाणेसणा-से भिक्खु वा॒भिक्लुणी वा गाहावद्र-कुकं पिडवाय-पडियाण्‌ अणुपच्द्रे समाणे, वहू उज्िय-धम्मियं पाणग-जाय जाणेज्जा-° (१।१४७) । १५४-इच्चेयासि सत्तण्टं पिडसेणाणं, सत्तण्टुं पाणेसणाणं अण्णतरं पडिमं पडिवज्जमणे णो एवं वएज्जा-मिच्छपडिवण्णा खलु एतै भयंतारो, अहुमेगे सम्म पडिवन्ते । जे एते भयंतारो एयाओ पडिमाओ पडिवज्जित्ताणं विहरंति, जो य अहुमंसि एयं पिम पडिविज्जित्ताणं विहरामि, स्वे वे ते उ जिणाणाए उवट्ठिया अन्नोन्नसमाहीए एवं च णं विहरंति 1 १५५-एयं खलु तस्स भिक्लुस्स वा भिक्ुणीए वा सामगिय, जं सन्चछ्ेहि समिए सर्हिए सया जए ! -ति वेमि । वीयं अज्मयणे सज्जा पटमो उदेसो उवस्सयएसणा-पदं १-से भिक्छ्‌ वा भिक्ुणी वा अर्भिकंखेल्ा उवस्सयं एसित्तए", अणुपविसित्ता गामं वा, °णगरं वा, खेडं वा, कव्वडं वा, मडंबं वा, पटुणं वा, आगरं वा, दोणपृहं वा, णिगमं वा, आसमं वा, सण्णिवेसं वा०, रायहाणि वा, सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेजा-- संडं "सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सदयं सउत्तिग-पणग- दग-मद्टिय-मक्कडा-° संताणयं । तहप्पगारे उवस्सएं णो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीदहियं वा चेतेजा । २-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं धुण उनस्सयं नाणेला- अष्पंडं अप्पपाणं *अप्पनीयं अप्पहुरियं अप्पोसं अप्मुदयं अप्मूत्तिग-पणग-दग-मद्विय-मक्कडा-° संताणगं । तहप्यगारे उवस्सए पडिलेष्ित्ता, पमजित्ता, तओ संजयामेव उाणं वा, सेज्जं वा, निसीदहियं वा चेतेज्ना 1 अस्सिडियाए-उकस्सय-पदं ३--पेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा--- अस्सि पडियाए एगं साहम्मियं समुदिस्स पाणाईं, भयाद, जीवाद, सत्तादं समारू्म समुदिस्स कीयं पामिच्चं अच्छन्नं अणिसद्रं अभिहडं आहट चतेति । सेज्जा ( पढपो उहेसो ) १७१ तहृप्पगारे उवस्सए ॒पुरिसंतरकडे वा॒ अपुरिसंतरकंडे वा, °( बहिया णीहडे वा मणीहडे वा ) अत्तष्धिए वा अणत्तद्धिए वा, परिभृत्ते वा अपरिभूत्ते वा, आसेविते वा° अणासेविते वाणो ठणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चैतेजा । ४-*सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा- अस्मि पडियाए बहवे साहम्मिया समुरिस्स पाणां, भूयाइ, जीवाद, सत्तादं समारभ समुदिस्स कीयं पामिच्वं अच्छेज्जं अणिसट्ढं अभिहडं आहट चेतेति । तहप्पगारे उवस्तए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, ( बहिया भीहडे वा अणीहडे वा ) अत्तघ्चिए वा अणत्तदिए वा, परिभूकत्ते वा अपरिभृत्ते वा, आसेविते वा अणासेविते वाणो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेल्ला 1 ५-सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेजा- अस्सि पडियाए एगं साहम्मिणि समुदिस्स पाणादं, भाई, जीवाईं, सत्तादं समार्म समुदिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटठं अभिहडं आहट्टु चतेति । तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, ( बहिया णीहडे वा अणीहडे वा } अत्तद्धिएु वा अणत्त्चिए्‌ वा, परिभृत्ते वा अपरिभत्ते वा, आसेविते वा अणासेविते वाणो ठगं वा सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा । ६-सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा-- अस्सि पडियाए बहवे साहम्मिणोगओ समुररिस्स पाणाद, भूयादं, जीवाईं, सत्तादं समारन्म समुदिस्स कीयं पामिच्ं अच्छेज्जं अगिसट्ठ अभिहडं आहट्टुं चेतति 1 तहप्यगारे उवस्सए पुरिसतरकडे वा अपुरिसिंत्तरकंडे वा, १७२ अआयार-चूला १ : वीय अन्भेयणं ( बहिया णोहडे वा अणीहडे वा ) अत्तद्विए वा अणत्त्िए वा, परिभृत्ते वा अपरिभूत्ते वा, आसेविते वा अणासेविते वाणो ठाणं वा, सज्जं वा, णिसीर्हियं वा चेतेज्ञा ।° समण-माहेणाइ-समृद्िस्स-उवल्सव-पदं ७-से भिक्ू वा भिक्खुभी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेा-- बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समुहिस्त' पाणादं, भूयाईं, जीवाद, सत्ताद्वं “समारन्म समुरिस् कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसष्टं अभिहडं आहट चएद्‌ 1 तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा, अपृरिसंतरकडे वा ( बहिया णीहृडे वा अणीहडे वा } अत्तच्चिएु वा अणति वा, परिभृत्ते वा अपरिभृत्ते वा, आसेविए वा अणासैविए वाणो ठणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्ञा ! ८-से भिक्लु वा भिक्खुणी वा सेजजं पुण उवस्सयं जाणेघ्ना- बहवे समण-माहण-अतिद्ि-किवण-वणीमए सेगदिस्स पाणां, सूयाद, जीवाईं, स्तादं समारव्म समुदिस्स कीं पामिच्चं गच्छेज्जं अणिस्ं अमिहडं आहट चैएइ । तदृप्मगारे उवस्सए॒ अपुरिसंतरकडे % अवदहिया णोहडे ) अणत्तद्धिए अपरिभूत्ते° अणासेविएु णो ठाणे वा सज्जं वा णिसीहियं वा चेतेज्ञा । ९-अह्‌ पुणेवं जाणेजा--पुरिसंतरकडे, %( वर्हिया णीहडे ) अत्तष्टिएु, परिभृत्ते, आसेविए पञ्छिदित्ता, पमज्जित्त, तथो संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, गिसीष्ियं वा चेतेज्जा । ` (मुद दं जव माथियन्वं (षच) 1 सेऽ्जा ( पमो उहेसो ) १७३ परिकम्मिय-उवस्सय-पदं १०-से भिक्खू वा भिक्सुणो वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेजा- अस्संजए भिक्छु-पडियाए कडिए वा, उक्कंबिए' वा, छने वा, छिन्ते वा, षदे वा, मदे वा, संम वा, संपधूरूमिए वा। तहप्पगारे उवस्सए अपृरिसंतरकडे, % अवहा णीहडे ) अणत्तद्विए, अपरिभूर्ते°, अणासेविएु णो गणं वा, सेज्जं वा, गिसीहियं वा चेतेज्जा । ११-अह्‌ पणेवं जाणेज्जा--पुरिसंतरकडे, *( बहिया णीह॒डे ) अत्तद्धिए, परिभृत्ते°, आसेविए पडिकहित्ता, पमन्जित्ता, तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, गिसीहियं वा चैता । १२-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेन्ना- अस्संजए भिक्ु-पड्याए सुह्ियायो दूवारियाओ महचियाओ कुज्जा, “महल्ल्याओ दुवारियाओ खुह्ियागो कुज्जा, समा सिज्जाभो विसमाभो कुज्जा, विसमाभो सिज्जाभो समाओ कुज्जा, पवायाओ सिज्जाओ णिवायाओ कुज्जा, णिवायाओ सिज्ाभो पवायाओ कुला, अंतो वा बहि वा उवस्सयस्स हरियाणि छिदिय-छिदिय, दाचियि-दाल्यि ° संथारगं संथारेज्ा, बिया वा णिण्णक्सु ।* तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकंडे, °( अबहिया णीहडे ) अणत्तद्धिए, अपरिभत्ते, अणासेविते णौ ठाणं वा, सज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेजा । १-उक्कपिए (क, घः च, व )। २-सथारेज्जा (स, क, घ, च, व) । उ-गिणक्खु ( क, छ ) । ५ आयार-चूला १; वीयं अन्मयणं १३-अह्‌ पुणेवं जाणेजा-पुरिसंतरकडे, °( बहिया णीहड) अत्तद्िए, परिभृत्तेः, आसेविए पडलिहित्ता, पमज्जित्ता, तमो संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेला } वंहिया निस्सारिय-उवस्सय-पदं १४-से भिक्छू वा भिक्ुणी वा सेज्जं पुण जाणेजा- अस्संजए भिक्छु-पदडियाए उदगप्पसूुयाणि कंदाणि वा, मूकाणि वा (ताणि वा ?)*, पत्ताणि वा, पुष्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा ठंणाओ णं साहरति, बिया वा णिण्णक्सु । तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे, ° अवहिया णीहडे ) अणत्तद्विए, अपरिभूत्ते, अणासेविते० णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहिथं वा चेतेजा 1 १५-अह्‌ पुणेवं जणेला-पुरिसंतरकडे, %( बरहिया णीहंड } अत्तद्िए, परिभृत्त, आसेविएे पद्विलेषित्ता, पमजित्ता, तमो संजयामेव छाणं वा, सोज्जं वा, णिसीहियं वा° चेतेजना । १६-से भिक्लू वा भिक्खुणी वा सेण्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा- अस्संजए भिक्खु-पडियाए पीठं वा, फलगं वा, गिस्सेणि वा, उदृहकं वा ठाणाभो ठणं साहरद, बदहिया वा णिण्णक्ु । तहप्पगारे उवस्सए अपुरिखतरकडे, *( अवरहिया णीहडे ) अणत्तह्टिए, अपुरिमुत्ते, अणासेविए° णो ठाणे वा सेज्जं वा, गिसीहियं वा चेते्ञा । १७-अह्‌ पणेवं जाणे्ना--पुरिसंतरकंडे %( बिया णीहडं ) अत्तद्िए, परिभुत्ते, आसेविए पडिलेदित्ता, पमचत्ता, तमो संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा° चैतेजा [1 १-यद्यप्ययमन्न प्रतिषु नोपलम्पते, तथापि ३।३।५५ सूत्रमनुमृत्यासावऽन युज्यते । सेज्जा ( पढमो उदेसो } १७५ भंतलिक्छ-जाय-उवस्सय-पदं १८-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेजा- तंजहा--खंधंसि वा, मंचंसि वा, माङंसि वा, पासायंसि वा, हुम्मियतलंसि वा, अन्नतरंसि वा तहृप्पगारंसि वा अतलिक्वजायंसि, णण्णत्य आगाढाणागाढेहि* कारणेहि ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेला 1 से य आहच्च चेतिते सिया, णो तत्थ सीभओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा हत्थाणि वा, पादाणि वा, अच्छीणि वा, दंताणि वा, मुहु वा उच्छोले्न वा, पहोएज वा । णो तत्थ ऊसढं पगरेजा, तंजहा--उच्वारं वा, पासवणं वा, खरं वा, सिघाणं वा, वतं वा, पित्तं वा, पूति वा, सोणियं वा, अन्तयरं वा सरीरावयवं । १९ केवली दूया-जायाण मेयं । से तत्थ उसटं पगरेमाणे प्यलेज वा पवडेज वा, से तत्थ पयर्माणे" वा पवडमाणे* वा हत्थं वा, “पायं वा, बाहं वा, ऊरं वा, उदरं वा,° सीसं वा, अनतरं वा कायंसि इदिय-जातं लसेज वा । पाणाणि वा, शूयाणि वा, जीवाणि वा, सत्ताणि अमिहणेल वा, श्वत्ते्न वा, केसे वा, संघसेल वा, संघटटज वा, परियावेज्ञ वा, किलामेज्ञ वा ठाणाओो ठणं संकामेज्ञ वा, जोविआभ० ववरोवेज् वा । अह्‌ भिक्णं पूव्वोवदिद्ा एस पदन्न, “एस ॒हैऊ, एस कारणं, एस उवएसो,° गाद्या ° (क, च, ब } ; मागाढावगाै हि ( घ ) : आगाढारदी (८ ) । २-पयने ° (क, च, छ ) । ३-पवडे ° (क, च,छ )। ६ १७६ मायार-चृा १ $ वीयं अज्मयणं जं तहप्पगारे उवस्सएं अंतकिक्छजाए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीदहियं वा चेतेल्ना 1 सागारिय-उवस्सय-पदं २०-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेला- सदत्थियं, सखुड्डं, सपसुभत्तपाणं, तहप्पगारे सागारिए* उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, गिसीदियं वा चेतैजा । २१-आयाण मेयं भिक्लुस्स॒गाहावड-कुकेण सदधि संवसमाणस्स अरुसगे वा, विसया वा, छदी वा उन्वाहेलला,* अन्नतरे वा से दुक्त रोगातके* समुप्पज्जेजा, ११ अस्संजए कलुण-पडियाए तं भिक्ुस्स गातं तेल्लेण वा, घएण वा, णवणीएण वा, वसाए वा, अन्भगेज् वा, मक्खेज्ज वा, सिंणाणेण वा, कक्केण वा, लोद्धेणः वा, वेष्णेण वा, चुन्तेण वा, पडमेण वा, माघंसेज्ज वा, पधंसेज्ज वा, उन्वलेज्ज वा, उवद्धेल वा, सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा “उच्छोलेज वा"५, पृहोएज वा, सिणावेज् वा, सिचेज वा, दारुणा वा दारूपरिणामं, कटूटु अगणिकायं उज्जालेज्न वा, श-साकरारिए (छ, ब ) । र्~उप्पा ° (क, च,व)। इ-रोगे आयक (घ ) ! ४-लोदेण (म, व )। ५-उच्छोलेज्ज पच्छोयेज्ज वा ( व } 1 इ-दारुणं परि ° (अ, च ) ; दारुण ° (क )। शेज्जा ( पढमो उदेसो ) १७७ पञ्जाछेज वा, उलालेत्ता-पजालेत्ता कायं आयावेजन वा, पयावेज वा 1 अह्‌ भिक्लृणं पुव्वोवदिट् एस पडन्ना, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, ज तहप्पगारे सागारिए उव्स्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, गिसीहियं वा चेतेजा । आयाण मेयं भिक्खुस्स सागारिएे उवस्सए संवस्माणस्स', इहं खट गाहावई वा, *गाहावइणीमो वा, गाहावड-पृत्ता वा, गाहावद-धुयाओ वा, गाहावद-सुण्ाभो वा, धार्ईभो वा, दासा वा, दासीभो वा, कस्मकरा वा०, कम्मकरीगो वा अन्नमन्तं अक्कोसंति वा, वर्धति" वा, रंभंति वा, उहवेतिः वा । अह भिक्लूणं उच्चावयं मणं गियच्छेना-एते खलु अन्नमन्तं अक्कोसंतु वा मा चा अक्कोसंतु, बरधतु, वामा वा बंध॑तु, रुभ॑तुवामावा रुमतु, उदवेतु वा मावा उद्वेतु । अह भिक्लूणं पुव्वोवद्द्र एस ॒पडन्ना, “एस हेड, एस कारणं, एस उवएसो०, जं तहप्पगारे सागारिए उवस्सए्‌ णो ठाणं वा, सेन्जं वा, णिसीहियं वा चेतेजा । २३-आयाण मेयं भिक्खुस्स गाहावर्ईहि सद्वि संवसमाणस्स, इह्‌ सुं गाहावई अप्पणो सअद्वाए अगणिकरायं उजाकेल्ल वा, पजाजेज् वा, विज्फावेज् वा । १-चसमाणस्त (च ) 1 २-पहति (कं ); ८ (चः व); वहंति (अ) । ३-उदहृति वा उद्वेति ( घ ) ; उदरवंति वा उद्वेति (छ) । ४-वस० (अ,घःच,छःव)। ४६. १४८ आयार-चल १ : वीयं अञ्प्यणं अहं भिक्छू.उच्चावयं मणं णियच्छेजा--एते खल्‌ अगणिकायं उजाक्तु वा मावा उजाकत्‌, पन्नारेत॒ वामा वा पलक विज्फवेतु वा मा वा विन्छावेत्‌ 1 अह भिक्खृणं पुव्बोवदिद्ठा “एस पदन्ना, एस हेड, एस कारण, एस उवएसो° जं तहप्पगारे (्ागारिए ?) उवस्सए णो जणं वा, सज्जं वा गिसीहियं वा चेतेज्जा 1 ध २े४-जायाण मेयं भिक्लुस्स गाहावर्ईहिं सदधि संवसमाणस्स, इह खलु गाहावदस्स कुंडले वा, गुणे वा, मणी वा, मोत्तिए वा, हिरण्णे वा", “सुवण्णे वा", कडगाणि वा, तुडियाणि वा, तिसरगाणिः वा, पालंबाणि वा, हारे वा, अद्धहारे वा, एगावली वा, मृत्तावलो वा, कणगावली वा, रयणावी वा, तरुणियं वा कुमारि भलंकिय-विभ्रुसियं पेहाषए, अह भिक्खू उच्वावयं मणं गियच्छेज्जा--एरिसिया वासा णो वा एरिसिया--इति वाणं ब्रुथा. इतिवा णं मणं साएज्जा । अह भिक्चुणं पृन्वोवदिद्र “एस ॒पडन्ना, एस हेड, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे (सागारिए ?) उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा } २५-आयाण मेयं भिक्खुस्स गाहावर्ईहिं सदधि संवसमाणस्स, इह खलु गाहावदणीयो वा, याहावद-धरयाजो वा, गाहावड- १ (अ)! मर {छ 31 दे--तिक्तराणि { च) 1 सेज्जां ( पढमो उदेसौ ) १७६ सुण्ाओ वा, गाहावद्-धार्ईमो वा, गाहावद-दासीमो वा, गाहावड्-केम्मकरीभो वा । तासि च णं एनं वृत्तयुव्वं भवद्‌, जे इमे भवंति समणा भगवतो ^सीलमंता वयम्ता गुणम॑ता संजया सवुडा वंभचारी° उवरया मेहुणाभो धम्माओो, णो खलु एतेसि कप्पद्‌ मेहु¶ धम्मं परियारणाए्‌ आदत्त । जा य खलु एएहि सद्धि मेहुणं धम्मं परियारणाए आदद्रेज्जा, पत्तं खलु सा कभेज्जा--ओयस्सि तेयस्सि वच्चस्सि जसस्सि संपराद्यं * आलोयण-दः सणिज्ज । एयप्पगारं णिग्धोसं सोध्चा णिसम्म तासि च णं अण्णयरी सड्ढी* त तवस्मसि भिवखुं मेहुणं धम्मं परियारणाएु आ्टरा- वेज्जा । अहं भिक्लृणं पुव्बोवदिग्र एस पड्न्ना, एस है, एस कारणं, एस उवएसो०, जं तहप्पगारे सागारिए उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, गिसीहियं वा चेतेज्जा । २६-एयं खल तस्स भिक्खुरस वा भिक्खुणीए वा सामगगिय, “जं सव्वद्ेहि समिए सहिए सया जए । --ति वेमि ।° १-सपहारिवं (अ ) 1 २-सहियं (अ) ; सहित ( छ )। ९८५ भायार-चृत्ा १ ` बीयं भज्मयणं बीओ उदेसो २७-गाहावई णामेगे सुड-समायारा भवंति, भिव्खु य असिणाणए* मोयसमायारे, सि तरे दुरगपे पडिकूरे पडिलोभे यावि भवद्‌ । जं पुव्वकम्मं तं पच्छाकम्मं, जं पच्छाकम्मं तं पुन्वकम्मं । तं भिक्खु-पडियाए वहुमाणे करेज्जा वा, नो षा करेज्जा 1" अहं भिक्लृणं पु्वोवदिद्धा “एस पडइल्ना, एस हेड, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे उवस्सए णो ठणं वा, *सेज्जं वा, णिसोहियं वा चेतेज्जा । २८-आयाण मेयं भिक्वुस्स गाहावर्ईहि सदधि संवसमाणस्स, इह खलु माहावदस्स अप्पणो सद्राए विशूव-रूवे भोयण- जाए उवक्डडिषए सिया, अह पच्छा भिक्खु-पडियाए असणं वा, पाणं वा, खादमं वा, साइमं वा उवक्खडेज्ज वा, उवकरेज्ज वा, तं च भिक्लु अभिकलेज्जा भोत्तए वा, पायएु वा, वियद्वित्तए वा ! अह भिक्लृणं पुव्बोवदिषटा “एस पडइन्ना, एस है, एस कारणं, एस उवएसो०, ज तहुप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा, *सेज्जं वा, णिसीहियं वा० चेतेज्जा १-अ्िणाणाए (अ )। म्-सेसे गंधे (अःब,कःष, च,छ,चू)। उ-करेज्जा (अ) ; करेज्जा वा (छ, ब ) 1 सेज्जा ( बीभो उहेसो } १८१ २९-आयाण मेयं भिक्छुस्स गाहावइणा सदधि संवसमाणस्स, इह खलु गाहावदस्स अप्पणो सयष्वाए विरूव-र्वादं दास्याईं सिन्न-पुव्वादं भवेति, अह पच्छा भिक्खु-पडियाए विरूव-स्वादं दास्याद्‌ भिदेज्ज वा, किणेज् वा, पामिच्चेज्ज वा, दारुणा वां दारूपरिणामं' कटूटु अगणिकायं उज्जाकेज वा, पज्जालेज्ज वा । तत्थ भिक्ल्‌ अभिकवेज्जा आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा, वियद्वित्तएु वा । अह भिक्खृणं पुव्वोवदिद्रा “एस पडन्ता, एस हेॐ, एस कारणं, एस उवएसो०, जं तहप्पगारे उवस्सए णो ठलण वा, ^सेज्जं वा, णिसीहियं वाः चेतेज्जा । ३०-से भिक्छू वा भिक्खुणी वा उच्चार-पास्तवणेणं उव्वाहिल्माणे राओ वा विभाले वा गाहावद-कुलस्स दुवारवाहं अवंगरणेजा, तेणे य तस्संधिचारी अणुपविसेज्जा । तस्स भिक्छुस्स णो कप्पद्र एवं वदित्तए-- अयं तेणे पविसडइ्‌ वा णो वा पविसड, उवच्लियद्‌य वा णो वा उवटि्कियदई, अदपतति° वा णो वा अद्पतति, वदति वाणो वा वदति, तेण हडं अण्णेण हड, तस्स हडं अण्णस्स हड, १-दारुण ° (ष, च) । >-उव््रलियति ( च ) ; उवलियत्ति { छ) 1 दआवयति (ध, च )। शत भायार“चूला १; वीयं अर्भ अयं तेणे अयं उवचरए, अयं हुता अयं एत्थसकासी, तं तवस्सि भिक्छुं' अतेणं तेणं ति संकत्ि, अह भिक्ृणं पुव्वोवदिद्रा “एस ॒पडन्ना, एस हऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे उवस्सए ¦ णो ठाणं वा, सेज्जं, णिसीहियं वा चेतेजा । तण-पलला-च्छीदय-उवस्तय-पदं ३१-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पण उवस्सयं जणेजा- तण-पुजेसु वा, पकाल-पुजेसु वा, सओंडे,* °सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सरक्तिग-पणग-दग-मट्िय मक्कडा- संताणए, तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेपैज्जा । ३२-से भिक्लू वा भिक्ुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा- तण-पजेसु वा, पलालपुजेसु वा, अप्पंडंः “अप्पपाणे अप्पबीए अप्पहरिए अप्योसे अप्पुदए अप्मुत्तिग-पणग-दग- मद्धिय-सक्कडा-संताणए, तहृप्पगारे उवस्सए पडिलेहित्ता, पमज्जित्ता, तभो संजयाभेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीदहियं वा° चेतेजा । जेजयव्व-उवस्सय-पदं ३३-से आगंतारेसु वा, आरामागारेषु वा, गाहावह-कुुषु वा, परियावसदहमु वा अभिक्वणं-अभिक्संणं साहम्मिएहिं ओवय- माणे णोवएला । १--भिक्छुय (म, छ ) । २्~-ूर्णावतर बहुवचनं लम्यते--'सडहि' ! २--दूर्णादन बहुवचनं लम्यते-- प्य"! +--गोयवएज्जा ( अ ) ; णो उवएज्जा (कः ध, च } । सेज्जा ( नीमो उहेसो ) १८३ ३४-से आगतारेषु वा, “आरामागारेसु वा, गाहावह-कुलेु वा, परियावसहैसु वा, जे भयंतारो उड्बद्धियं वा वासावासियं वा कप्पं उवातिणावित्ता' तत्थेव भजो संवसंत्ि, अयमाउसो [ काादक्कत-करिरिया वि भव । उवहाण-क्रिरिया-पदं ३५-से आगंतारेषु वा, *आरामागारेषु वा, गाहावड-कुलेसु वा०, परियावसहेसु वा, जे भयतारो उडबद्धियं वा वासावासियं वा कप्पं उवातिणावित्ता तं दुगुणा तिगुणेणः अपरिहरित्त। तत्येवं भुज्जो संवसंति, अ्यमाउसो {* उवद्यण-करिरिया वि" मवड । अभिकत-किरिया-पदं ३६-दह खनु पारणं वा, पड़ीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगद्या, सड्ढा भवंति, तंजहा--गाहावई वा, शगाहावहभीभौ वा, गाहावद्वगत्ता वा, माहावड-धूयामो वा, गाहावह-सुण्ठाभौ वा, धार्ईओ वा, दासा वा, दासी वा, केस्सकरा चा०, कम्मकरीभो वा । तेसिं च णं आयार-गोयरे णो सुणिसंते भवद्‌ तं सदृहमाणे्हि, तं पत्तियमाणेर्हि, तं रोयमाभेिं बहवे समण-माहण-अतिहि-करंदण-वणीमए समुदिस्स॒तत्थ-तत्य अगारी अगारादं चेत्ितादं भवंति, तंजहा--आएसणाणि वा, आयतणाणि बा, देवकुकाणि वा, ४ ध क ब ) । स्वीकृत पा वृत्यनुसारो वर्ते! ४--अयमाउसो ! इतरा ( अ, च, ब ) । ५--या वि(अ,ःब)। १० १८४ आयार-चूला १ ¦ वीयं अन्यं सहाो' वा, पदाओः वा, पणिय-गिहाणि वा, पणिय- सालाजो वा, जाण-गिहाणि वा, जाण-सालामो वा, भुहा- कम्मताणि वा, ठन्म-कम्मंताणि वा, बद्ध-कम्मेताणि वा, वक्क -कम्मंताणि वा, वण-कम्मंताणि वा, इगाल-कम्मताणि वा, कटृ-केस्म॑ताणि वा, सुसाण-कम्प॑ताणि वा, 'संति-कम्म- ताणि वा" गिरि-कम्मंताणि वा, कंदर^-कम्म॑तामि वा, सिरोवद्राण-कम्मंताणि वा", भवणगिहाणि वा, जे भयंतारो तहप्मगारादं आएसणाणि वा (जाव) भवण- गिहाणि वा तेहि ओवयमाणेहि मोवयंति, अयमाउसो ! अभिक्केत-किरिया वि“ भवद्‌ । अणभिककरत-किरिया-पदं ३७-इह खद पार्ईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगडया सड्ढा भवंति, तंजहा--गाहावई वा (जाव २।३६) कम्मकरीओ वा । तेसि च णं आयार-गोयरे णो सुणिसंते भव, तं सदृहमाणेहि, तं पत्तियमाणेर्हि, तं रोयमाणेर्हि कहुवे समण-माहण-अतिदहि-किविण-वणीमए समुद्िस्स ॒तत्थ-तत्य अगारीहिं अगारादईं चेतिभाईं भवंति, १--सहाणि (कः ध, छ, द ) 1 २्-पवाणि (अक, घ, छ, ब )। ३--वत्थ ° (छ) 1 ४-वल्कज ° (वु )। ५--संतिकम्मंताणि वा युष्णागारकम्मंतागि दा ( म) 1 कंदरा ० (अ) ७-सेलोवहाण-कमस्मंताणि वा स्रग-गिहाणि वा (छ ) । पनयावि(अ,कःचःच,ब)। सेज्जा ( वीओ उदेसो ) १५५ तंजहा-भएसणाणि वा (जाव २।३६) भवणगिहाणि वा जे भयंतारो तहप्पगारादं आएसणाणि वा (जाव २।३६) भवणगिहाणि वा तेहि अणोवयमाणेहिं ओवयंति, अयमाउसो ! अणभिक्कत-किरिया वि भवति । वज्ज-किरिया-पदं ३८-इह्‌ खलु पार्देणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, सतेगदया सड्ढा भवंति, तजहा गाहावई वा (जाव २।३६) कम्मकरीओो चा । तेसि च णं एवं पृत्तुव्वं भवद-- जे इमे भवंति समणा भगवंतो सीलमंता *वयमंता गुणमंता संजया संवृडा बंभवारी° उवरया मेहुणाओधम्माभो । णो खदु एएसि भयंताराणं कप्पइ आहाकम्मिए उवस्सए वत्थए । सेज्ाणिमाणि* अम्हुं अप्पणो सअष्वाए* चेतितादरं भवंति, तंजहा--आएसणाणि वा (जाव २।३६) भवणगिहाणि वा । सव्वाणि ताभि समणाणं णिसिरामो, अवियादं वयं पच्छा अप्पणो सअघ्ाए चेतिस्सामो, तजहा-आएसषणाणि वा (जाव २।३६) भवणगिहाणि वा । एयप्पगारं £ णिरघोस सोच्वा गिसम्म जे भयतारो तहप्पगारादं आएसणाणि वा (जाव २।३४५) भवणगिहाणि वा । उवागच्छन्ति, -उवागच्छित्ता इतरेतरेहिः पाहुडेहि वहंति । १-- ° इमाणि (च) । २-अहाए (अ, छ, न )। इइतरातिरेहि ( क, ध ); इयरातरेहि (अ, च )। १८६ मायार-चूला १ : नौये अग्भयणं अयमाउसो ! वज्ज-किरिया वि भवद्‌ । महावज्ज-किरिया-पद ३९-इह खलु पार्ईणं वा, पडीणं वा, - दाहीणं वा, उदीणं वा संतेगदया सड्ढा भवंति, तंजहा-- गाहावरई वा (जाव २।३६) कम्मकरीओ वा, तेसि च णं आयारगोयरे णो सुणिसंते भवद्‌, तं सदृहमाणेहि, तं पत्तियमाणेर्हि, तं रोधमाणेहि बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समृदिस्स तत्थ-तत्थ अगारीहिं अगारादं चेतितादं भवंति, तंजहा--आएसणाणि वा (जाव २३६) भवेणगिहामि वा। जे भयंतारो तहप्पगारादं आएसणाणि वा (जाव २।३६) भवण्िहाणि वा उवगच्छंति, उवागच्छित्ता इतरेतरेर्हि" पाड टत, अयमाउसो ! महावज्-किंरिया वि भवद्‌ । सावेज्ज-किरिया-पदं ४०-इह्‌ खलु पार्ईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगइया सड्ढा भवंति, तंजहा-गाहावडदं वा (जाव २३६) कम्मकरीओ वा । तेसि च ण आयार-गोयरे णो सुणिसंते भवइ, तं सदृहुमाणेहि, तं पत्तियमाणेहि, तं रोयमाणेहिं बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए समहिस्स तत्थ-तत्थ अगारीदहि अमारा६ चेतिभाईं भवंति, तंजहा--आएसणाणि वा (जाव २।३६) भवणगिहाणि ग । १--इतरातरेहि ( म ) ; इयरादयरेहि ( घ )1 सेज्जा ( बीभ उदेसो } १६७ जे भयंतारो तहप्पगारादं आएसणाणि वा (जाव २।३६) भवणगिहाणि वा उवागच्छंति, उवागच्छित्ता इतरेतरेहि पाहुडे्हि बदटरंति, अयमाउसो ! सावज-करंरिया वि भवद्‌ । महासावज्ज-किरिया-पदं ४१-इह्‌ खलु पार्ईूणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगदया सड्ढा भवंति, तंजहा-गाहावरई वा (जाव २।३६) कम्मकरीभो वा 1 तेसि च णं आयारगोयरे णो सुणिसंते भवद्‌, तं सदृहमाणेर्हि, तं पत्तियमाणेर्हि, तं रोयमोहि एगं समण- जायं समुदिस्स तत्थ-तत्थ भगारीहि अगारादं चेतितादं भवंति, तंजहा-आएसणाणि वा (जाव २।३६) भवणगिहाणि वा । महया पुढविकाय-समारभेणं, °महया आउकाय-समारभेणं, महया तेउकाय-समारभेणं, महया वाउकाय-समारमेणं, महया वणस्सदकाय-समारभेणं०, महया तसकाय-समारमेणं, मह्या संरभेणं, महया आरंभेणं, महया विरूव-रूवेहि पावकम्म-किच्चेहि, तंजहा-छायणमो ऊेवण संथार- दुवार-पिहुणओ 1 सीतोदए वा परिटविययपुष्वे भवद्‌, अगणिकाए वा उजाङ्यपुव्वे मवई, जे भयंतारो तहप्पगारादईं आएसणाणि वां (जाव २।३६) भवणगिहाणि वा उवागच्छति, २ त्ता इयरादयरेहिं पाहि दुपक्ं ते कम्मं सेवति, अयमाउसो ! महासावज्ञ-किरिया वि भवडइ्‌ 1 १५८८ । आयार-चूछा,१ ; वीयं अ्भयणं अप्पसावज्ज-किरिया-पदं ४२--इह्‌ खलु पार्ईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा संतेगदया सड्ढा भवंति तंजहा--गाहावई वा (जाव २।३६) कम्मकरीओ वा.। तेसि च णं आायार-गोयरे णो सुणिसंते भवद्‌, । तं सहहमाणेहि तं पत्तियमाणेहि, तं रोयमाणेहि अप्पणो सअद्राए तत्थ-तत्थ अगारीहि अगारादं चेतिताईं भवंति, तंजहा--आएसणाणि वा (जाव २।३६) भवणगिहाणि वा । महया पुढविकाय-समारंभेणं (जाव २।४१) अगणिकाए वा उल्ञाकियपुव्वे भवद्‌ । जे भय॑तारो तहप्पगारादं आएसणाणि वा (जाव २।३६) भवणगिहाणि वा उवागच्छंति, २ त्ता इयरादयरेहि पाहुडेहिं एगपक्खं ते कम्मं सेवति, अयमाउसो ! अप्पासरावज्-किरिया वि भवद्‌ । ४३-एयं खलु तस्स भिक्छुस्स वा भिक्खुणीए वा साममिगयं, “जं सन्वद्ेहि समिए सहिए सया जए । -ति वेमि ।० तद्भो उदैसो उतस्सय-छलण-पदं ४४-सिय' णो सुलभे फासुए उंछै अहेसणिज्जे, णो य खट सुद्ध , इमेहि पाहुडर्हि, तंजहा--छायणओ, केवणभो, संथार- दूवार-पिहयाणजो ` ' पिडवाएसणायो 1 १-सेय (क, चःछःव)। २-- ° पिहुणामो (ब ) ; ° पिहृणमो ( घ ) 1 सेज्जा ( तइभो उहेसो ) १८६ से" भिक्छू चरिया-रए, ठाण-रए, निसीहिया-रए, सेजा- संथार-पिडवाएसणारए । संति भिक्खुणो एव मक्लाइणो उज्जुया* णियाग-पडिवन्ना अमायं कुन्वमाणा वियाहिया । संतेगदया पाहुडिया उक्खित्तुव्वा भवद्‌, एवं गिक्छित्तपुव्वा भवद्‌, परिभाइयपुव्वा भवई, परिभूत्तपुव्वा भवद्‌, परिटर- वियपुव्वा भवद्‌, एवं वियागरेमणे समियाए वियागरेति ? हुता भवद्‌ । उवस्सय-जयण-पदं ४५-से भिक्व्‌ वा भिक्ुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेजा- खुडडियाओो, सखुडडधदुवारियामोः, निहयाभो" (नीयाभो ?) संनिरुद्धाओः भवंति । तहप्पगारे उवस्सए राओ वा, विआके वा णिक्खममाणे वा, पविसमाणे वा पुरा हत्थेण पच्छा पाएण, तञ संजयामेव णिक्खमेज् वा, पविसेजल वा । ४६-केवली ब्रया--आयाण मेयं-जे तत्थ समणाण वा, माहणाण वा, छत्तए वा, मत्तए वा, दंडए वा, छद्धिया वा, भिसिया वा, नालिया वा, चैलं वा", चिलिमिली वा, चम्मए वा, चम्मकोसए वा, चम्म-छेदणए वा--दुव्वद्धे दुण्णिक्ित्ते १-सेय(अ)। २-उज्युगेडा (अ, छ } ३-समिय (घ ) ; समिया (छ )। ४-- ° दुवाराओ (घ) । ५-नेरद्याय ( अ ) ; निययाओ ( घ ) । ६--उनिरुद्धिभो (अ ) । छनालिया वा च्लेवा (अ); चैल वा नालिया वा (घ, ज); नाचिया वा (छ) १६० भायार-चृखा १ ¦ बीयं अन्भयणं अणिक्पे-चलाचले-भिक्छ्‌ य राओो वा, निय वा णिक्छममाणे वा, पविसमाणे वा, पयलेज वा. पवड्ञ वा, से तत्थ पयलमाणे वा, पवडमाणे वा हत्थं वा, पायं ता, "बाहुं वा, ऊरुं का, उदरं वा, सीसंवा अन्नयरवा कायंसि° इंदिय-जायं लसे् वा, पाणाणि वा, भूयाणि वा, जीवाणि वा, सत्ताणि वा अभिहणेज्ज वा, *वत्तेज वा, लेसे वा, संघंसेज वा, संषटेज् वा, परियावेज वा, किलामेज वा, ठाणाओ ठाणं संकामेज वा, जीविभाओः ववरोवेज्ञ वा । अह्‌ भिक्वुणं पुव्बोवदिद्भा एस पडन्ना, एस हैऊ, एस कारणं ` एस उवएसो जं तहप्पगारे उवस्सए पुरा हत्थेणं पच्छा पाएणं, तभो संजयामेव णिक्खेमेज वा, पविसेज वा । उवस्सय-जायणा-पदं ४७-से आगंतारेमु वा, आरामागारेसु वा, गाहावद-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा अणुवीई उवस्सयं जाएलना । जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिष्टाए", ते उवस्सयं अणुण्णवेला-- कामे सलु आउसो! अहारुंदं अहापरिण्णातं वसिस्सामो जावे आसतो, जाव आउसंतस्स उवस्सए, जाव साहम्मिया "एत्ता, ताव'* उवस्सयं गिष्डिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो । १-समाहिदाए ( अ, क, घ, छ ) ; समाहिद्रए ( ब ) 1 २-एवावता (अ ) ; इता त्ता (क ); इत्ता वा ( च } ; इ ताव { छ )। सज्जा ( तदमो उदेसो } १६९१ न सेज्जायर-णाम-गोय-पदं ४८-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जस्सुवस्सए संवसेजा, तस्स पुग्बमेव णाम-गोयं जाणेला । तओ पच्छा तस्स गिहे णिम॑ते- माणस्स अणिमंतेमाणस्स वा असणं वा, पाणं वा, खाइमं ना, सादमं बा--अफासुयं *अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे कामे सते° णो पडिगाहैजा । उवस्सय-विसुद्धि-पदं ४९-से भिक्ख्‌ वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेजा- ससागारियं सागणियं स-उदयं, णो पण्णस्स निक्वमणपवेसाए, णो पण्णस्स वायण-शपुच्छण-परियटुणाणुपेह-धम्माणुओग०- चिताए, तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा, सज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्ना । ५०-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पूण उवस्सयं जणेजा- गाहावद-कलस्स मज्जमञ्क्ेणं गंतुं पंथं पडिबद्ध वा^, णो पण्णस्स °णिक्छमणपवेसाए, णो पण्णस्स॒वायण-पुच्छण- परियटणाणुपेह-धम्माणुओग°-चिताए, तहप्पमारे उवस्सए णो ठाणं वा, सेञ्जं वा, भिसीहियं वा चेतेजा । ५१-से भिक्खू वा भिक्घुणो वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेजा- इह खलु गाहावई वा, “गाहावद्रणीओ वा, गाहावद्-पृत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावद-सुण्डाओ वा, धार्ईओ वा, दासा वा, दासी वा, कम्मकरा वा०, कस्मकरीओ १-६ (अ ) 1 ११ १६२ भयार-चूला १ : वीयं अज्फथणं वा अण्णमण्ण मक्कोसंतिवा, श्वधंति वा, रंमंति वार, उद्वेति वा, णो पण्णस्स (जाव २४९) चिताए, सेवं णच्चा तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणे वा %हेज्जं वा, ` णिसीहियं वा> चेतेजा 1 ५२-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेला- इह खलु गाहाव्ई वा, (जाव २।५१), कम्मकरीमो वा अण्णमण्णस्स गायं तेल्टेण वा, घएण वा, णवणीएण वा, वसाए वा, भब्भगेगे)तिवा, मक्वे(खे?) तिवा, णो पण्णस्स (जाव २।४९) चितापएु, तहुप्पगारे उवस्सए णौ ठाणं वा, %ेज्जं वा, णिसीहियं वा° चेते्ना । ५३-से भिक्स वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेजा- इह खलु गाहावई वा, (जाव २।५१), केस्मकरीमो वा, अण्णमण्णस्स गायं सिणाणेण वा, कक्केण वा, लोद्धेण' वा, वण्णेण वा, चुण्णेण वा, पउमेण वा, भासति वा, परघसंति वा, उव्वठेति वा, उन्वदटरति वा, णो पण्णस्स धिक्लमण (जाव २।४९) चिताए, तहप्पगारे उवस्सए णो छण वा, शेज्जं वा, गिसीहियं वा०, चेतेज्ा । ५४-से भिक्लु वा भिक्खुणी वा सेज्जं पूण उवस्सयं जाणेला- इह खलु गाहावर्ई वा, (जाव २५१), कम्मकरीओौ वा अण्णमण्णस्स गायं सीभोदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोठेति वा, पधोर्वेति वा, सिचंति वा, सिणार्वेति वा, णो पण्णस्स (जाव २।४९) चिताए, १-चोदधेण (अ )। सेज्जा ( तभो उदसो ) १६३ तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा, %सेज्जं वा, णिसीहियं वा० चेतेजा । ५५-से भिक्लु वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सय जाणेजा-- इह खलु गाहावई वा, (जाव २।५१), कम्मकरीओ वा णिगिणा ठञि, णिगिणा उवटरीणा मेहुणधरमं विण्णवेति, रहस्सियं वा संतं मतेति, णो पण्णस्स (जाव २।४९) चिताए, तहप्पगारे उवस्सए णो ठणं वा, *सेज्जं वा, णिसीहियं वा° चेतेज्ञा । ५६-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पण उवस्सयं जाणेजा- आइण्णसलेक्खं ', णो पण्णस्स (जाव २।४९) चिताए, तहुप्पगारे उवस्सए णो ठणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेजा । संयारग-पदं ५७-से भिक्लू वा भिक्खुणी वा अभिकंलेजा संथारगं एसित्तए 1 सेज्ज पण संथारगं जाणेला-- सअंडं “सपाणं सबीअं सहरियं सउस सउदयं सउत्तिग-पणग- दग-मद्विय-मक्केडा-सताणगं-- तहप्पगारं संथारगं--*अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे° काभ संते णो पडिगाहेज्ना । ५८-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पण संथारगं जाणेजा- अप्पंडं “अप्पाणं अप्पवीमं अप्पहुरियं अप्मोसं अप्युदयं अप्पुत्तिग-पणग-दग-मह्यि-मक्कडा०-संताणगं, मर्यं, १- ° सलिखे (घ ), ° सलेखे ( छ } 1 १६४ आयार-चृूखा १ ; वीयं अन्फ्रयणं तहप्पगारं संथारगं--°अफासूयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे” कामे संते णो पडिगाहेल्ञा । ५९-से भिक्ख वा भिक्छुणी वा सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा- प्पंडं (जाव २।५८) संताणगं, लहुयं अप्पडिहारियं, तहप्पगारं संथारगं '-*अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे° कामे संते णो पडिगाहेल्ना । ६०-से भिक्खू वा भिक्लुभी वा सेज्जं पुण संथारगं जाणेजा- अप्पंडं (जाव २।५८) संताणमं, लहूयं पाड्हारसियं णो अहावद्धं, तहप्पगारं संथारगं-*अफासुयं अणेसभिज्जं ति मण्णमाणे° लाभे संते णो पडिगाहेला । ६१-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सज्जं पूण संथारगं जाणेजा- अप्पंडं (जाव २।५८) संताणगं, खहूयं पाडिहारियं बहाबद्ध, तहप्पगारं संथारयं-*फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे° लाभे संते पटिगाहेज्ना । संथारग-पडिमा-पदं ६२-इच्चेयाद्रं आयतणाद्रं उवाइक्कम्म अह॒ भिक्छु जाणेजा, माहि चउदहि पडिमाहि संथारगं एसित्तए । ६३-तत्थ खलु इमा यढमा पडिमा- से भिक्व्‌ वा भिक्खुणी वा उदिसिय-उदिसिय संथारगं जाएन्ना, तंजहा-इक्कडं वा, कठिण" वा, जंतुयं वा, परं १-क्वतित्‌ सज्जा संथारणगं' इति पाठोऽस्ति । तत्र भिज्जा' तिपिदोपेण प्रकचि्ठ. इति संभाव्यते 1 र्‌-कटिणगं (ध) । सेज्जा ( तद्रभो उदेसो ) १६१५ वा, मोरगं वा, तणं? वा, कुसं वा, कुचगं वा, पिप्पल्गं वा, पलाल्गं वा 1 से पुव्वामेव आलोएज्ा--आउसो त्ति वा भगिणि] त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णयरं संथारगं ? तहप्पगारं सयं वा णं जाएजा परो वासे देजा-फासुयं एसणिज्जं *ति मण्णमराणे° काभे संते पडिगाहेजा-पटमा पडिमा । ६४-अहावरा दोच्चा पडिमा- से भिक्ख्‌ वा भिक्चुणी वा पेहाए संथारगं जाएजा, तंजहा-गाहावदं वा, गाहावई्‌-भारियं वा, गाहावद्‌-भगिणि वा, गाहावद्व-पृत्तं वा, गाहावडइ-धुयं वा, सुण्हं वा, धाद वा, दासं वा, दासि वा, कम्मकरं वा, कम्मकरि* वा, से पुव्वामेव आलोएेल्ा-आउसो ! त्ति वा भगिणि! त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णयरं संथारगं ? तहप्पगारं सखंथारगं सयं वा णं जाएज्ा परो वा से देजा- फासुयं एसणिज्जं °ति मण्णमाणे लाभे संते° पडिगाहेजा- दोच्वा पडिमा । ६५-अहावरा तच्चा पडिमा- से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जस्सुवस्सए संवसेज्ा, ते तत्थ अहासमण्णागए, तंजहा--इक्कडे वा, "कद्णिे वा, जंतुए वा, परगे वा, मोरे वा, तणे वा, करसे वा, कुच्चगे वा, १-पोरग (घ ) 1 २्-तणगं ( क, च, छ. व ) 1 इ-कुच्वग वा वच्चग वा ( चू ) 1 &-कम्मकरो (अ, घ, व ) › कम्भकरोय (च, छ }1 १६६ आयार-चूखा ९ : वीयं अन्मयमं "पिप्पले वा०, पाले वा। तस्स ठाभे संवसेजा, तस्स अलाभे उवकरुडुए वा, गरेसज्निएु वा विहरेजा-तच्चा पडिमा । ६६-अहावरा चउत्था पडिमा- से भिक्लू वा भिक्छुणी वा अहासंथड मेव खथारगं जाए, तंजहा-पुढविसिलं वा, कट्सिकं वा अहासंथड मेव । तस्स ङाभे संवसेज्ना, तस्स अलाभे उक्छरडुए वा, णेसजिए वा विह्रेजा--चउत्था पडिमा 1 ६७-ङन्चेयाणं चण्हं पडिमाणं अण्णयरं पडिमं पडिवज्ञमाणे गणो एवं वएजा मिच्छा पडिवण्णा खलु एते भयंतारो, अहुमेगे सम्मं पडिवन्ने, जे एते भयंतारो एयाभो पडिमाओ पडिवचित्ताणं विहरंति, जो य अहम॑सि एयं पडिमं पडिवजित्ताणं विहरामि, सव्व वे ते उ जिणाणाए उवद्धिया° अन्नोन्नसमाहीए एवं च ण विहरंति । सथारग-पफच्चप्पण-पद ६८-से भिक्खू वा भिक्छुणी वा अभिक्खेना संथारगं पच्चपििणित्तए । सेज्जं पुण संथारगं जाणेजा-सथंडं (जाय २।५७) संताणगं, तहृप्पगारं संथारगं णो पच्चप्पिणेजा 1 ६९-~से - भिक्खू वा भिक्छुणी वा अभिकंखेना संथारगं पच्चपििणित्तए । सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्ना-अप्पंडं (जाव २।५०८) संताणगं, तहप्पगारं संथारगं पडिलिहिय-पडिलेहिय, पमज्िय-पमन्िय्‌, आयाविय-अआयाविय, विणिद्धुणिय^-विणिद्धुणिय, तओ संजयामेव पच्चप्पिणेजा । १--विहुणिय २ (के, च ) ; विद्धणिय २ (घब) । सज्जा ( तदो उहेसो ) १६७ उच्वारपासवण-भूमि-परं ७०-से भिक्लू वा भिक्खुणी वा समणेवा, वसमाणेवा गासाणुगामं दूइल्मणे वा ॒पुन्वामेव णं" पण्णस्स उच्चार प्सवणभूमि पडलेला । ७१-केवली बरूया-भायाण मेयं अपडिलेहियाए्‌ उच्चार-पासवण भूमिए, भिक्खू" वा भिक्ुणी वा राओ वा विअलेवा उच्चार-पासवणं परि्रवेमाणे पयलेज् वा पवडज्ज वा, से तत्थ पयल्माणे का पवडमाणे वा हत्थं वा पायं वा ग्बाहु वा, ऊर वा, उदरं वा, सीसं वा, अन्तयरंवा कायंसि इदिय-जायं° लसेज्ञ वा पाणाणि वा, श्भूयाणि वा, जोवागि वा, सत्ताणि वा अभिहणेज वा वत्तेज् वा, ठेसेज वा, संधसेज वा, संघटेज्ज वा, परियाचेऽज वा, किलामेज्ज वा, ठणाओ ठाणं सकामेज्ज वा, जीविजआभोः ववरोवेज्ज दा। अह्‌ भिक्ृणं पुव्वोवदि्रा एस पडन्ता, एस हॐ, एस कारणं, एस उवएसो, जं पुव्वामेव पण्णस्स उच्चार-पासवणभूमि पडिलेषटेज्जा । सयण-विहि-पदं ७२-से भिक्चु वा भिक्खुणी का अभिकेखेज्ना सेज्जा-संथारग-भूमि पडिछेहित्तए, णण्णत्थ आयरिएण वा उवज्फाएण वा, °पवत्तीए्‌ वा, थेरेण वा, गणिणा वा, गणह्रेण वा०, गणाव्च्छेदएणः वा, बाङेण वा, बुड्ढेण वा, सेहेण वा, गिकणेण वा, आएसेण वा, >< ( क) 1 न्त ) 1 ३--गणावच्छेएण ( च ) 1 १६८ आयार-चूा १ * वीयं अज्मयणं अतेण वा, मच्छयोण वा, समेण वा, विसमेण वा, पवाएण वा, णिवाएण वा, तओ संजयामेव"" पडिलेहिय-पडिकलेहिय, पमज्िय-पमन्ियः बहु-फासुयं सेज्ना-संथारगं संथरेजा । ७३-से भिक्खू वा भिक्खुणौ वा बहु-फासुयं सेज्जा-संथारगं संथरेत्ता अभिकंखेज्जा बहु-फासुए सेज्जा-संथारए दुरुहित्तए, से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहु-फासुए सेज्जा संथारणए दुरुहमाणे, से पुव्वामेव ससीसोवरियं कायं पाए य पमन्िय- पमज्िय, तओ संजयामेव, बहु-फासुएं सेज्जा-संथारगे दृर्हेज्जा, २ तता तथो संजयामेव बहूु-फासुए सेज्जा-संथारए सएज्जा । ७४-से भिक्त वा भिक्चुणी वा बहु-फासुए सेज्जा-संथारए सयमाणे, णो अण्णमण्णस्स हत्थेण हत्थं, पाएण पायं, काएण कायं आसाएज्जा । से अणासायमाणे, तथो संजयामेव बहु-फासुए सेज्जा-संथारए सएज्जा । ७५-से भिक्स वा भिक्खुणी वा उस्सासमाणे वा, णीसासमाणे वा, कासमाणे वा, दछीयमाणे वा, जंभायमाणे वा, उड्डुएे" वा, वायणिसमगे वा करेमाणे, पु्वाभमेव आसयं वा, पोसयं वा, पाणिणा परिपिहित्ता, तओ संजयामेव ऊससेज्ज" वा, णीससेज्ज वा, कासेज्ज वा, छीएज्जं वा, जंभाएन्ज वा, उडड्यं वा, वायणिसम्गं वा करेजा । १--५(क,घःच,ब)। २--पमज्जिय तओ संजयमेवर (क, घ, च, छ, ब ) 1 ३--उ्ोए ( घ, च, छ ) 1 ४--ऊसासेज्ज ( कः घः च, छ ) 1 सेज्जा ( दमो उदेसो ) १६६ ७द६-से भिक्सू वा भिक्खुणी वा-- समा वेगया सेज्जा भवेजा, विसमा वेगया सेज्जा भवेला, पवोता वेगया सज्जा भवेज्ा, णिवाता वेगया सेजा भवेन्ना, ससरक्खा वेगया सेज्ा भवेजा, अप्प-ससरक्ला वेगया सेजा मवेज्जा, सदंस-मसगा वेगया सेज्जा भवेज्जा, अप्प-दंस- ससमा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सपरिसाडा वेगया सेज्जा भवेज्जा, अपरिसाडा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सउवसग्गा वेगया सेज्जा भवेज्जा, णिरुवसग्गा वेगया सेज्जा भवेज्जा, तहप्पगाराहि सेज्जाहि संविज्जमाणाहि पर्गहिततरागं विहारं विहुरेज्जा, णो किचिवि गिलाएज्जा । ७७-एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए्‌ बा सामगियं, जं सब्बद्ेहि समिए सहिए सया जणएज्जासि 1 -ति बेमि। १२ तदयं अन्भयणं इरिया पमो उदेसो वासावाप्त-पदं १-अब्भुवगए खलु वासावासे अभिपवुद्रे बहवे पाणा अभिसंभूया, बहवे नीया अहूणुन्मि्ना', अंतरा से मण्णा बहुपाणा बहुबीया °बहुहरिया बहु-गोसा बहु-उद्या बहु-उत्तिग-पणय- दग-मद्िय-मक्कडा-°संताणगा, अणभिक्केता पंथा, णो विण्णाया मगा, सेवं णच्चा णो गामाणुगामं दुदज्जेज्जा, तञो संजयामेव वासावासं उवल्किएज्जा । २-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा-- गामं वा, शणगरं वा, खेडं वा, कव्वड वा, मडबं वा, पटूण वा, आगरं वा, दोणमृहं वा, णिगमं वा, भसम वाः सण्णिवेसं वा०, रायहाणि वा इम॑सि खल्‌ गामंसि वा, *णगरंसि वा, वेडंसि वा, कव्वडंसिं वा, मडंबंसि वा, पद्रणंसि वा, आगरंसि वा, दोणमृहंसि वा, गिगमंसि वा, आसमंसि वा, सण्णिवेसंसि वा रायहाणिसि वा- णो महती वरिहारभूभी, भो महती वियारभरमी, णो सुलभे पीट-फल्ग-सेजा-संथारए, णो सुलभे फासुए उंछे अहेसणिज्जे बहवे जत्थ समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा उवागया उवागमिस्संति य, अच्चादरण्णा वित्ती-- ` ` दजहुुन्मिा (अ ) ; महुमोष्मिनना ( अहुणोन्मिनना (घ ) ; महुणामिन्ना (च, व) इरिया ( पृढमो उदेसो } २०१ णो पण्णस्स निक्वमण-पवेसाए, *णो पण्णस्स वायण-पुच्छण- परियटुणाणुपेह°-धम्माणुभग-चित्ताए, सेवं णच्चा तहप्पगारं गामं वा, णगरं वा, (जाव) रायहाणि वा णो वासावासं उवल्लिएजा । ३-से भिक्लू वा भिक्छुणी वा सेज्जं पुण जाणेजा-- गामं वा (जाव ३।२) रायहाणि वा, इमंसि खलु गामंसि वा (जाव ३।२) रायहाणिसि वा-- महती विहारभूमी, महती वियारभूभी, सुलभे जत्थ पीढ- फल्ग-सेजा-संथारए, सुलभे फायुए उछ अहैसणिनज्जे, णो जत्थ वहुवे समण-*माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा० उवागया उवागमिस्संति य, अप्पादण्णा वित्ती- "पण्णस्स निक्लमण-पवेसाए, पण्णस्स॒ वायण-पुच्छण- परियटूणाणुपेह-धम्माणुओग-चिताए, सेवं णच्चा तहप्पगारं गामं वा (जाव ३।२}° रायहाणि वा, तओ सजयामेव वासावासं उवल्क्एज्जा । “ˆ ,. ` गमाणगाम-विहार-पद ४-अह्‌ पुणिवं जाणेज्जा--- ह: चत्तारि मासा वासाण वीदक्कता, हैम॑ताण यं पच-दस- रायकप्ये परिवुसिए, अंतरा से मम्गा बहुपाणा °वहुबीया बहृहरिया बहु-गोसा बहु-उदया बहु-उत्तिग-पणग-दग- मद्विय०-मक्कडा-संत्ाणगा, णो जत्थ बहवे समण-भमाहण- अतिदहि-किवण-वणीमगा० उवागया उवागमिस्संति य, सेवं णच्चा णो गामाणुगामं दूदज्जेन्ना । २०२ आधार-चूला १ ; तदयं अज्छयणं ५-अह्‌ पुणेवं जभेन्न- चत्तारि मासा वासाणं वीद्क्केता, हेम॑ताण य पंच-दस- रायकप्पे परिवुचिए, अंतरा से मगा अप्पंडा *अप्पपाणा अप्पबीओआ अप्पहूरिया अप्पोसा अप्पुदया अप्पृत्तिग-पणग-दग-मद्िय-मक्कडा°- संताणगा, बहवे जत्थ समण-माहुण-अतिहि-किवण-वणीमगा उवागया उवागमिस्संति य, सेवं णच्ना तओ संजया मेव गामाणुगामं दुड्ज्जेजा । ६--से भिक्खू वा भिक्खुणो वा गामणुगामे दुदन्जमाणे पुरयो जुगमायं पेहमाणे, दट्टृण तसे पाणे उद्धट्‌टु पायं रीएला, साहटुटु पायं रीएज्जा, उक्खिप्प पायं रीएजा, तिरिच्छ' वा कटटु पायं रीएज्जा। सति परवकमे संजता मेव परक्कमेज्जा, णो उज्जुयं गच्छेञ्जा । तथो संजया मेवे गामागुगामं दुदज्जेज्जा । ७-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दुदज्माणे-जतरा से पाणाणि वा, वीयाणि वा, हरियाणि वा, उदए वा, मद्या वा अविद्धत्था । ;सत्ति परक्केमे *संजता मेव परक्कमेज्जाऽ, गो उज्जुयं गच्छेला । तभो संजया मेव गामाणुगामं दूइज्जेजरा । ठ-से भिक्लु वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दडन्माणे-ंतरा से विरूव-रू्वाणि पच्चंतिकाणि दस्युगायतणाणि मिलक्ुणि अणारियाणि दुस्सन्नप्पाभि दुप्पण्णवणिज्जाणि अकालपडि- बोहीणि अकाल्परिमोर्ईणि, सति छदे विहाराए, १--वितिरिच्छ (अ, घ, च, व )। दरिया ( पदमो उसो ) २० सथरमाणेहि जणवणए्हि, णो विहार-वत्तियाए पवन्जेज्जा गमणाए ९-केवली वूया- आयाण मेयं ते णं बाला अयं तेणे' अयं उवचरए' "अयं तथो आगए" त्ति कटु तं भिक्छु अव्कोसेज वा, वधे वा, रुभे वा०, उद्वेज्ञ' वा, बल्यं पडिग्गहं कंबलं पायपुच्णं अच्छि वा", अवह्रेज्न वा, परिभवेजः वा । अह्‌ भिक्लुणं पुव्वोवदिद्ा “एस पदृन्ना, एस हेड, एस कारणं, एस उवएसो०) जं णो तहप्पगाराणि विरूब-ल्वाणि पच्चंतियाणि दस्सुगायतणाणि मिलक्खूणि अणारियाणि दृस्सन्तप्पाणि ुप्पण्णवणिज्ञाणि अकाल्पडिबोहीणि अकाल्परिभोर्दणि, सति काटे विहाराए, संथरमाणेहि जणवए्हि०. विहार वक्तियाए पवज्जेल्ना गमणाए, तओ संजया मेव गासाणुगामं दुद्ज्जेज्ञा । १०-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूदन्माणे--ंतरा से अरायाणि वा, गणरायाणि वा) जुवरायाणि वा दौरज़ाणि वा, वेरल्नाणि वा, विरुद्धर्नाणि वा, सति ऊकढे विहाराए, संथरमाणेहि जणवएहि, णो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्ज गमणाए । ११-केवरी बूया--आयाण मेय ते णं बाङा “अयं तेणे' ““अय उवचरए' “अयं तओ आगए' त्ति कटटु तं भिक्खं अक्कोसेज्ञ वा, बंधे वा, रुमेज्ज वा, उदह्वेज्ज वा, १-उवह्वेज्ज (अ, क, च, व ) । २--र्जच्छिदेज्ज वा भिदेज्ज वा ( चः छ, ब ) , अश््छिदेज्ज वा अरमिदेज्जं वा (अ ) 1 ३--परिदुवेज्ज (घ, च, ब ) । २०४ आयार-चृला १ ; त्यं अज्फयणं वत्थं पडिगगहं कंबु पायपुचधणं अच्छिदेज्ज वा, अवह्रेज्ज वा, परिभवेज्ज वा। अह्‌ भिक्लृणं पु्वोवदिट्र-एस पदन्न, एस हे, एस कारणं, एस उवएसो, जं णो तहूप्पगाराणि अरायाणि वा, गणरायामि वा, जुवरायाणि वा, दोरज्जाणि वा, वेरज्जाणि वा, विरुढरज्जाणि वा, सति ढे विहाराए, संथरमाणेहि जणवए्हि, णो विहार-वत्तियाए पवनज्जेज० गमणाए । तमो संजया मेव गामाणुगामं दशज्जेजा । १२-से भिक्लु वा भिक्खुणी वा मामाणुगामं दुदजमाणे--अंतरा से विहं सिया । सज्जं पुण विहं जणेला--एगाहेण वा, दूयाहैण वा, तियाहेण वा, चउयाहेण वा, पंचाहेण वा पाउणेज वा, नो पाडणेज वा, तहप्पगारं विहं अणेगाह-गमणिज्जं । सति लाढे °विहाराए, संथरमाणे्हि जणवएहि०, णो विहार-वत्तियाए पवज्जेजा गमणाए्‌। १ ३-केवी बूया--आयाण मेयं । अंतरा से वासे सिया, पाणेसु वा, पणएसु वा, बीणसु वा, हरिषु वा, उदम वा, मदह्वियासु* वा अविद्धत्थाए । अह भिक्लृणं पृव्वोवदिद् एस पडन्ना, एस हेड, एस कारणं, एस उवएसो०, जं तदहृप्पगारं विहं अणेगाह-गमणिज्ज सति ढे विहाराए, संथरमाभेहिं जणवए्हि, णो विक्षर वक्तिथाए पवज्जेज्ञा° णो गमणाए, तभो संजया मेव गामाणु- गामं दुद्जजेजा । त १-मद्रिएु (क, च ) ; महवियाएसु (च, छ) 1 दरिया ( पढमो उदसौ ) रण नावा-विहार.पदं १४-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दुदज्माणे ' -अंतरा से णावासंतारिमे उदए सिया । सेज्जं पुण णावं जाणेला-- अस्संजए भिक्खु-पडियाएु किणे वा, पामिच्चेजञ वा, णावाए वा णाव*-परिणामं कटूटु थलाओ वा णावं जसि ओगाहेज्ञा, जलाओ वा णावं थकंसि उक्कसेजा, पृण्णं वा णावं उस्सिचेजा, सण्णं वा णवं उप्पीलावेजा, तहप्पगारं णावं उडटृगापिणि वा, अहेगामिणि वा, तिरिय- गामि्णि वा, परं जोयणमेराए अद्नोयणमेराए वा अप्पत्तरो वा भुज्जतरो वा णो दुरुहेल गमणाए । १५-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पुव्वामेव तिरिच्छ्‌-संपातिमं णावं जाणेजा, २ त्ता, से त्त मायाए एगंतमवक्कमेजा, २ त्ता, भंडगं पडिलेहेजाः २ त्ता, एगाभोयं* भंडगं करे्ा, २ त्ता, ससीसोवरियं कायं पाए य पमज्जेज्ा, २ ता, सागारं भत्तं पच्चक्खाएला, २ त्ता, एगं पायं जके किच्चा, एगं पायं थले किन्चा, तओ संजया मेव णावं दुरुहेज्ा । १६-से भिक्खू वा भिक्खणी वा णावं दृरूहमाणे णो णावाए पुरओ दुरुहेल्ञा, णो णावाएु मग्गओ दुरुहज्ञा, णो णावाए मज्फतो दुरुहेल्ना, णो वाहाओ पगिज्छिय-पगिच्फिय, अंगुलिए" उवदंसिय-उवदंसिय, ओणमिय-गोणमिय, उण्णमिय-उण्णमिय णिज्खाएल्ना । १-दूदज्जेज्जा { कः ष, च, छ, व )] र-णाव (कष, च, छ,व)) इ३-पडिगाहेज्जा (८, छ, वे )1 -- ° भाय (अ); ° मोयण (छ), ५--अगुलियाए (च, छ, ब ) 1 २०६ आयार-चूला १ ` तयं अन्मयणं १७-से णं परो णावा-गतो णावा-गयं वएजा-- आउसंतो ! समणा ! एवं ता* तुमं णावं उक्कसाहि वा, वोक्कसाहिं वा, सिवाहि वा, रज्लुयाए* वा गहाय आकसाहि । णो से तं परिन्नं परिजाणेला, तुिणीभओ उवहेज्जा । १८-से णं परो णावा-गभौ णावा-गयं वएला-- अआउसंतो! समणा! णो संचाएेसि तुमं णावं उक्कसित्तए वा, वोक्कसित्तए वा, सिवित्तए वा, रज्जुयाए वा गहाय अ्केसित्तए । आहर एतं णावाए रज्छूयं, सयं चैव णं वयं णावं उक्कसिस्सामो वा, वोक्कसिस्सामो वा, सिविस्सामौ वा, रज्जुयाए* वा गहाय आकसिस्सामो । णो से तं परिण्णं परिजाणेज्जा, तुसिणीभो उवेहेज्जा । १९-से णं परो णावा-गभो णावा-गयं वएन्जा- आउसंतो ! समणा¡ एयं ता" तुमं णावं अलत्तेण वा, पिहुएणः वा, वंसेण का, वेलकएण वा, अवद्कएण- वा वाहेहि । णो से तं परिण्णं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा । १-->< (अछ )1 २-रण्जुर्‌ (अ, क, घ, व ) । ३--जाणेज्जा (घ, ब) । ४-रज्जुए्‌ (च)। ५--> (8) 1 ६-आलित्तेण (अ, कः घ च, छ, ब )। ७--पदेण (म.कःवःचःऊव) 1 ज्र पाठो निशोथस्प तथा अग्रुक्ताचाराङ्गादर्शरयानुसारिण स्वीकृत । स--अवल्तेण ( च ) 1 हरिया ( पढमो उदेसो ) २०७ २०-से णं परो णावा-गओ णावा-गयं वदेज्जा-आउसंतो ! समणा] एयं ता तुमं णावाए उदयं हत्थेण वा, पाएण वा, मत्तेण वा, पडिगगहेण वा, णावा-उस्सिचणेण वा उस्सिचाहि । णो से तं परिण्णं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा । २१-से णं परो णावा-गओ णावा-गयं वएज्जा- आउसंतो ! समणा } एतं ता तुमं णावाए उत्तिगं हत्थेण वा, पाएण वा, बाहुणा वा, ऊरुणा! का, उदरेण वा, सीसेण वा, काएण वा, णावा-उस्सिचणेण वा, चेकेण वा, भदह्वियाए वा, कुसपत्तएण वा'२, कूविदेण वा पिहेहि णो से तं परिण्णं परिजाणेज्जा, तुसीणिथो उवेहेज्जा 1 २२-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा णावाए उत्तिगेणं उदयं आसवमाणं पेहाए, उवसूवरि* णावं कनलवेमाणं पेहाए णो परं उवसंकमित्त॒ एवं बरूया-आउसंतो ! गाहावद ! एयं ते णावाए उदयं उत्तिगेणं आसवति, उवरुवरि वा णावा कजकावेति । एतप्पगारं मणं वा वायं वा णो पुरो कटूटु विहरेजा, अप्पुस्सुए अबहिलेस्से, एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्न" समाहौए, तओ संजयामेव णावा-संतारिमे उदए अहारियं रीएजा । १-उरुणा (घ, च, छ, व )। र्-निशीय-चूणि, माग ४, पृष्ठ २०६ : मद्टियाए वा कुसपत्तेण वा' इत्यस्य स्थाने (कुमुमद्टियाए वा" इति पाठोऽस्ति । 3-कुरुविदेण (अ.क,घ,च,छ.ब)- अय पाठो निशीथस्य तथा यप्रयुक्ताचाराङ्गादशंस्या- नुसारेण स्वीकृत । ४--उवर्वरि ( घ )। ५ विउसनज्ज ( क ) । १३ २०८ आयारःचूला १: तदयं अन्भयणं २३-एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीएु वा साममयं, जं सव्वं समिए सहिए सदा जरएनासि । -ति भेमि। वीओ उसो २४-से णं परो णावा-गभो णावा-गयं वदेजा-ाउसंतो ! समणा! एयं ता तुमं छतगं वा, भमत्तगं वा, दंडगं वा, लष्चियं वा, भिसियं वा, नालियं वा, चेटं वा, चिलिमिकलि वा, चम्मगं वा, चम्म-कोसमं वा०, चसम्म-दछेयणगं वा गेण्हाहि, एयामि तुमं विरूव-रूवाणि सत्थ-जायाणि धारेहि, एयं ता तुमं दारगं वा दारिगं वा" पञ्जि, णौ से तं परिष्णं परिजाणेजा, तुसिणीभो उवेहेना । २५-से णं परो मावा-गए णावा-गयं वदेजा-भाउसंतो ! एस भं समणे णावाए मंडभारिए भवइं । से णं बाहाए गहाय णावाभो उदगंसि पक्खिवह्‌ः 1 एतप्पगारं गिग्घोसं सोचा णिसम्म से य चीवरधारी सिया, चिप्पामेव चीवराभि उव्वेदढिज् वा, णित्बेदिढन वा, उप्फेसं वा करेज्जा । २६-अह्‌ पुणेवं जणेज्जा-अभिक्कत-कूरकम्भा खलु बला बाहाहि गहाय नावाभो उदगंसिं पक्खिवेज्जा 1 से पुव्वामेव वएन्जा-आउसंतो ! गाहावद् ! मा मत्तो बाहाए गहाय णावा उदगंसि पक्छिवह्‌, सयं चेव णं अहं भावातौ उदगंसि ओगाहिस्सामि । १->< (क, ध, च }। २-प्किखवेज्जा ( क, घ, च, छ, व ) । इरिया ( बीम उरसो ) २०६ से णेवं वयतं परो सहसा बलसा बाहाहिं गहाय णावाओ उदगंसि पक्खिवेज्जा, तं णो सुमणे सिया, णो दुम्मणे" सिया, णो उच्वावयं मणं णियच्छेज्जा, णो तेसि बाङाणं घाताएं बहाए समूद्ेज्जा 1 अप्पुस्सुए “अनहिकेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज० समाहीए, तओ संजयामेव उदगंसि पवेज्जा । २७-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदगंसि पवर्माणे णो हत्थेण हत्थं, पाएण पायं, काएण कायं, अआसाएन्जा । से अणासायमाणे'*, तओ संजयामेव उदगंसि पवेज्जा । २८-से भिक्लु वा भिक्चुणी वा उदगंसि पवमाणे णो उम्मगग णिमशगियं* करेज्जा, मामयं उदगं कण्णेसु वा, अच्छीसु वा, णक्कंसि वा, मुहंसि वा परियावज्जेज्जा, तओ संजयामेव उदगंसि पवेज्जा 1 २९-से भिक्लू वा भिक्खुणी वा उदगंसि पवमाणे दोन्बलियं पाउणेज्जा, चिप्पामेव उवहि विगिचेज्ज वा विसौहेज्ज वा, णौ चेव णं सातिज्जेज्जा ।" ३०-अह्‌ पुणेवं जाणेज्जा-पारए सिया उदगाओ तीरं पाउणित्तएु, तओ संजयामेव उदरल्छेण वा, ससिणिद्धेण वा काएण उदगतीरे चिद्ेज्जा १--दुमणे (घः छ, व ) 1 २ से अणासादए अगा ° (अ)। ३-उम्मुग (घ, च, ब ) 1 ४-- ° णिस्मुग्गिय (घ, च ) 1 ५-सातिज्जेज्ज वा ( छ ) 1 २१० भायार-चूला १ ; तदयं अज्मयणं ,३१-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदञल्लं वा ससिणिद्धं वा कायं णो आमज्जेल वा, पमज्जेजञ वा, संरिेल् वा, गिल्लन वा, उव्वछे्न वा, उन्वद्रेल् वा, आयावेल् वा, पयावे वा । ३२--अह्‌ पुण एवं जाणेज्ा विगभोदए मे काए, वोच्छिन- सिणेहे" मे काए, तहप्पगारं कायं आमज्जेज वा (जाव ३।३१) पयावेल वा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूदज्जेा । ` ३३-से भिक्ख्‌ वा भिक्खुणी वा गामाणुगाम ददनमाणे णो परेहि सदधि परिजविय-परिजविय गामाणुगामं दूदृज्जेजा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दृदज्जेजा । जघासंतारिम-उदग-पदं २४-से भिक्ू वा भिक्लुणी वा गामाणुगाम दुदल्नमाणे-अंतरा से जंघा-संतारिमे उदए सिया, से पृव्वामेव ससीसोवरियं कायं पादे य पमज्जेज्जा, २ ता *सागारं भत्तं पच्चक्ाएज्जा, २ त्ता° एगं पायं जले किच, एमं पायं थले किंच्चा, तमो संजयामेव जंघा-संतारिमे उदएः अहारियं रीएज्जा 1 ३५-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जंघा-संतारिमे उदगे अहारियं रीयमाणे, णो हत्थेण हत्थं पाएण पायं, काएण कायं, ञआासाएज्जा । क्षे अणासायसमाणे'*, तभो संजयामेव जंवा- संतारिम उदए अहारियं रीएज्जा । १-छिन्त ° (क, घ, च, न )। २्-उदगगंसि (क, घः च )। ३--हत्येण वा हृत्य ( अ ) ( सर्वत } 1 छसे अणासादए अणा ° (अम ) ! दरिया ( वौमो उदहेसो ) २११ ३६ से भिक्खू वा भिक्वुणी वा जंघा-संतारिमे उदए अहारियं रीयमाणे णो साय-वडियाए", णो परदाहू-वडियाए, महद्‌ महालयंसि उदगंसि काय विउसेज्जा, तओ संजयमेव जंघा- संतारिमे उदए अहारिय रीएज्जा 1 ३७-अह्‌ पुणेवं जाणेज्जा-पारए सिया उदगाओ तीरं पाउणित्तए, तओ सजयामेव उदरत्केण वा ससणिद्धेण" वा काएण दगतीरए* चिद्ेज्जा 1 ३८-से भिक्खृ वा भिक्खूणी वा उदउल्छं वा कायं, ससणिद्धं वा कायं णो आमनज्जेज्जं वा पमज्जेज्ज वा । ३९-अह्‌ पुणेवं जाणेज्जा-विगतोदए मे काए, चिषण्णसिेहे मे कए, तहप्पगारं कायं आमज्जेज्ज वा "पमज्जेज्ज वा संलिहेज्ज वा गिष्छिदहेज्ज वा उव्वलेज्ज वा जन्वद्रेज्ज वा आयावेज्ज वा° पयावेज्ज वा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दुदञ्जेज्जा । ४०-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दृडज्जमाणे णो मद्ियामएदहि पाएहिं हरियाणि छिदिय-छिदिय, विकुज्जिय- विकूञ्जिय, विफालिय-विफालिय, उम्मग्गेणं हूरिय-वहाए गच्छेज्जा 1 ““जहेयं* पाएहि मद्टियं चिप्पामेव हरियाणि अवह्रतु" । माइडाणं संफासे, णो एवं करेज्जा । से पुव्वामेव अप्पहरियं मग्गं पडिलेहेज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं द्ड्रजेज्जा । १-साया ° (अ )। र-ससिणिद्धेण (च) 1 द~उदगतीरए (घ ) । ४~जमेतं ( छ ) २१२ भयार-चूखी १ : तदयं अज्पयणं विसमद्भाण-परक्षम-प्दं ४१-से भिक्लु वा भिक्सुणी वा गामाणुगामं दुडर्जमाणे--अंतरा से चैप्पाणि वा, फचहिणि वा, पागाराणि वा, तोरणाि वा, अगलाणि वा, अग्गल-पासगाणि वा, गड्डाओ वा, दरीओ वा) सद परक्कमे संजयामेव परव्कमेऽजा, णो उञ्जुयं गच्छेसजा । ४-केवरी बूया--जायाण मेयं 1 से तत्थ परक्कममाणे पयकेग्न वा, पवडेऽज वा । से तत्थ पयलमाणे वा, पव्डमाणे वा सक्खाणि वा, गुच्छाणि वा, गुम्माणि वा, ख्याओ वा, वल्टीभो वा, तणाणि वा, गहणाणि वा, हरियाणि वा, अवलंबिय- अवलंबिय उत्तरेस्जा^, जे तत्थ पाड्पिहिया उवागच्छंति, ते पाणी जाएज्जा, तथौ संजयामेव अवरं बिय-अवकंबिय उत्तरेऽजा-, तभो गामाणुगामसं द्द्ज्जेःजा । ४२-से भिक्खू वा सिक्खुणी वा गामाणुगामं ददज्जमाणे-अतरा से जवसाणि वा, सगडाणि वा, रहाणि वा, सचक्काणि वा, प्रचक्काणि वा, सेणं वा विरूव-रूवं सण्णिविद्रं पेहाए, सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमेऽजा णो उञ्जुयं गच्छस्जा 1 अभिणिचारिय-पदं ४४-से णं परो सेणागओ वरएज्जा-जाउसंतो! एस णं समभे = सेणाए अभिणिचारियं" करेद । से णं बाहाएु गहाय १~उत्तारेज्जा (अ ) । २-पाडिविषेया (क ) ; पडिवाहेया ( घ ) ; पाड्पडिया ( छ } 1 इ~उत्तारेज्जा ( ख ) 1 ४-सणिरदध (ब)! ५-अभिणिवारिवं (अ, के, च, च, ब ) 1 इरिया ( वीय उहेसो } २१३ आगसह । से णं परो बाहारहिं गहाय अगसेज्जा ! तं णो सुमणे सिया, शणो दुम्मणे सिया, णो उच्चावयं णियच्छेज्जा, णो तेसि बाराणं घाताए वहाए समूद्रेज्जा । अप्पुस्युए अबद्िलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्जः समाहीए्‌) तओ संजयामेव गामाणुगामं दृडज्जेज्जा पाड्पिहिय-पदं ४५-से भिक्छ्‌ वा भिक्खुणो वा--अंतरा से पाडपिहिया उवागच्छेज्जा । तेणं पाडिपहिया एवं वदरेज्जा-आउसंतो ! समणा! केवदए एस गामे वा, “गगरे वा, खेडे वा, कृव्वडे वा, मडंबे वा, पटुणे वा, आगरे वा, दोणमृह वा, णिगमे वा, आसमे वा, सण्णिवेसे वा०, रायहाणी वा ? केवया एत्थ आसा हत्थी गामपिडोल्गा मणुस्सा परिवसंति ? से बहुभत्ते बहुउदएं बहुजणे बहुजवसे ? से अप्पभत्ते अप्पुदए अप्पजणे अप्पजवसे ? 'एयप्पगाराणि पसिणाणि पद्ध नो आद्क्वेज्जा, एयप्पगाराणि परिणामि नो पृच्छेज्जा'" । ४६--एयं खलु तस्स भिक्छुस्स वा भिक्ुणीए वा सामगियं, शजं सब्बह्ेहि समिए सहिए सया जएन्जासि । --ति बेमि०। १->९ { व ) ; एयप्पगाराणि पत्तिणाणि नो पृच्छेज्जा एयप्पमाराणि पिणाणि पुटो वा अपृ वाणो वागरेज्जा ( क, च, छ ) ; एयप्पगाराणि पसिणाणि नो पृच्छेज्जा एय पदो वा अपुरो वा णो वागरेज्जा (ध } 1 ११४ आयारःचूला १ : तदयं अन्भयणं तओ उश्सो अंगचेदुपुव्वं निज्ाण-पदं ४७-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दृइज्जमाणे-अंतरा से वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, पागायणि वा, श्तोरणाणि वा, अग्गलाणि वा, अगल पास्गाणि वा, गड्डाओ वा,० दरी वा, कृडागाराणि वा, पासादाणि वा, णम-गिहाणि वा, सक्व-गिहाणि वा, पव्वय-गिहाणि वा, सखे वा चेदय- कडं, थूमं वा चेदय-कड, आएसणाणि वा, *मायतमणाणि वा, देवकुलाणि वा, सहामो वा, पाओ वा, पणिय-गिहाणि वा, पणिय-सालाओ वा, जाण-गिहाणि वा, जाण-साकाओ वा, , सृहा-कम्म॑ताणि वा, दन्भ-कम्मंताणि वा, वद्ध-कम्मंताणि वा, वक्ष-कम्मंताणि वा, वण-कम्मंतताणि वा, इंगाक-कम्संताणि वा, कट-कम्मंताणि वा, भुसाण-कम्मंताणि वा, संति-कम्मंताणि वा, गिरि-कम्मताणि वा, कंदरकस्मंताणि वा, सेलोवद्मण- कस्मंताणि वा०, मवणगिहाणि वा णो बाहाओ पगिन्भिय- पमिज्फ्यि, अंगुखियाए उदिसिय-उदिसिय, ओणमिय- ओणमिय, उण्णमिय-उण्णमिय, णिज्छाएज्जा, तयो संजयामेव गामाणुगामं दृडज्जेज्जा । ४८-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दृहज्जमाणे-॑तरा कंच्छाणि वा, दवियाणि वा, णूमाणि वा, वल्याणिवा, गहणाणि वा, गहण-विद्गगाणि वा, वणाणि वा, क्ण विदुग्फाणि वा, पव्वयाणि वा, पव्वय-विदुमगाणि वा, अगडाणि , वा, तलागाणि वा, दहाणि वा, णदीमो वा, वावीञ वा, पोक्वरिणीभओ वा; दीहियाओ वा, गुजांलियाओी वा, सेज्जा ( तदभो उदेसो ) २१्‌ सराणि वा, सर-पतियाणि वा, सर-सर-पंतियाणिवा णो बाहाओ पगिञ्िय-पगिज्फिय (जाव ३।४७) गिजञ्छाएज्जा ४९--केवरी नुया 'आयाण मेयं' जे तत्थ मिगा वा, पयुया* वा, पक्लो वा, सरीसिवा वा, सीहा वा, जलचरा वा, थल्चरा वा, खहुचरा वा सत्ता 1 ते उत्तसेज्ज वा, वित्तसेज्ज वा, वाड वा सरणं वा कखेज्जा, चारे त्ति मे अयं समणे। अह भिक्वृणं पुव्वोवदिष्ा “एस पडइन्ना, एस हॐ, एस कारणं, एस उवएसो०, जं णो बाहाओ पगिज्फिय-पगिन्िय (जाव ३४७) णिञ्फाएज्जा, तओ संजयामेव आयरिय-उवज्छाएहि सदधि गामाणुगामं दुदज्जेज्जा । आयरिय-उवर्पाय-सद्धि-विहार-पदं ५०-से भिक्ू वा भिक्ुणी वा आयरिय-उवज्फाएहिं सदधि गामाणुगामं ददज्जमाणे, णो आयरिय-उवज्फायस्स हत्थेण हत्थं, °पाएण पायं, काएण कायं आसाएजा 1 से° अणासायमाणे, तओ संजयामेव आयरिय-उवज्छाएहिं सदधि गामाणुगामं दुदज्जे्ना । ५१-से भिक्खु वा भिक्छुणी वा आयरिय-उवज्फाएहिं सद्धि दूहज्माणे, अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेन्ा, ते णं पाडिपहिया एवं वएलजा- आउसंतो! समणा! के तुन्भे? कञो वा एह कहि वा गच्छिहिह ? शपू (अ ) । २्-सिरीसिवा (अ, घ, च ) 1 १४ २१६ आयार.-चूका ९ ` तदयं अज्पयणं जे तत्थ आायरिए वा उवज्छाए वा से भासेज्ञ वा, वियागरेन वा । आयरिय-उवज्फायस्स भासमाणस्स वा, वियागरेमाणस्स वा णो अंतराभासं करेऽ्जा । तभो संजयामेव आहारातिणिए" दुद्ज्जेजा । आहारातिणिय-सद्धि-विहार-पदं ५२-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा आहारातिणियं गामाणुगामं दुदज्माणे, णो रात्तिणियस्स हत्थेण हतं, %पाएण पय, काएण कायं आसाएजा । से° अणासायमाणे, तओ संजयामेव आहारातिणियं गामाणु- गाम दुदन्जेल्ना । ५३-पसे भिक्ख्‌ वा भिक्खृणी वा आहारातिणियं ददज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेना । ते णं पापया एवं वदेजा- आउसंतो ! समणा! कै तुन्भे? कथो वा एह? कर्हि वा गच्छिदिह? जे तत्थ सव्वरातिणिए* से भासेज्ञ वा, वियागरेज वा । रात्तिणियस्स भासमाणस्स वा, वियागरेमाणस्स वा णो अंतराभासं भासेजा । तओ संजयामेव गामाणुगामं द्दज्जेज्ञा । पाडिपदहिय-पदं ४-से भिक्ख वा भिक्खणी वा गामाणुगामं ददलमाणे, अतरा से पाडिपहिया उवागच्छेल्ञा°। ते णं पाडियहिया एवं वदेज्जा- १-~ ° राइणियाए (अ, ब ) ; भहा ° (ध, च )। स-रातिणिए (ध) । १-आगच्छेन्जा ( अ, च, छ ) । इरिया ( तदम उदेसो ) २१७ आउसंतो ! समणा ! अवियादं एत्तो पडिपहे पासह्‌, तंजहा- मणुस्नं वा, गोणं वा, महिसं वा, पसु वा, परक्खि वा, सरीसिवं" वा, जल्यरं वा ? से आङ्क्वह्‌, दंसेह । तं णो आडक्वेजा, णो दसेजा, णो तेसि" तं परिण्णं परिजाणेजा, तुसिणीओ उवेहेज्जा, जाणं वा गो जाणंति वएज्ा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइन्जेज्जा । ५५-से भिक्लु वा भिक्खुणी वा भामाणुगाम दृदरज्माणे, अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेन्ञार । ते णं पाडिपहिया एवं वएला- अआउसंतो ! समणा} अवियादं एत्तो पड़पहे पासह- उदगपसूयाणि कंदाणि वा, मूलाणि वा, तयाणि वा, पत्ताणि वा, पृम्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा उदगं वा संणिहियं, अगणि वा संणिक्वित्तं ? से आडइक्वह्‌, "दंसेह्‌ । त णो आइक्वेज्ा, णो दंसेजा, णो तेसि तं पररिण्णं परिजाणेजा, तुसिणीमो उवेहेजा, जाणं वा णो जाणंत्ति वएल्ा, तओ संजयामेव गामाणुगामं° दूदज्जेज्जा 1 ६-से भिक्ल्‌ वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूदजमाणे, अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा । ते णं पाडिपहिया एवं वएजा- आउसंतो! समणा! अवियाईइ एत्तो पडिपहे पासह- जवसाणि वा, "सगडाणि वा, रहाणि वा, सचककाणि वा, १--सिरीसिव ( अ, छ, ब ) ; सिरीसव ( च ) 1 ए्-त्स्स (क, च, छ)1 २-ागच्छेज्जा ( अ, छ ) 1 ४- ठया पत्ता पप्फा फला बीया हरिया (ऊ, कः घ, च, छः व ) 1 ११८ भयार-चूला १ ¦ तदयं अम्मयणं परचक्काणि वा०, सेणं वा विरूव-रूवं संणिविष्ट? से आदइक्सहं, सेह । तं णो आद्क्लेजा, णो दंसेजा णो तेपि तं परिण्णं परिजाणेज्ना, तुिणीभो उवेहेजा, जाणं वा णो जाणत वएजा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दृदज्जेजा । ५७-से भिक्लू वा भिक्लुणी वा गामाणुगामं दूहज्जमाणे, अंतरा से पाड़्पिहिया °उवागच्छेन्जा ! तेणं पाड्पिहिया एवं वदेजा>- जउसंतो ! समणा} केवडइए एत्तो गामे वा, *णगरे वा, सेड वा, कण्वडे वा, मडंबे वा, पटूणे वा, आगरे वा, दोणमृह वा, णिगमे वा, आसमे वा, सण्णिवेसे वा०, रायहाणी वा ? से आद्क्खह्‌, दसेह । तं णो आदक्सेज्जा, णो दसेज्जा, णो तेपि तं परिण्ण परिजाणेज्जा, तुसिणीभओ उवेहेज्जा, जाणं वा णो जाणंति वएज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं द्इज्जेज्जा । ‰<-से भिक्लू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दुदज्जमाणे, अंतर से पाडिपहिया उवागच्छेन्जा । ते णं पाडिपहिया एवं वदेज्जा- आसं ! समणा! केवदइए ॒एत्तौ गामस्स वा, णगरस्स वा, “लेडस्स वा, केव्वडस्स॒वा, मडंबस्स वा, पटरुणस्स वा, आगरस्स वा, दोणमृहस्स वा, णिगमस्स वा, आसमस्स वा, सण्णिवेसस्स वा०, रायहाणीए वा मणे ? से आदक्खह्‌, दसेह्‌ । तं णो आड्व्ेज्जा, णो दंसेज्जा, णो तेसं तं परिष्ण परिजाणेज्जा, तुसिणीभो उवेहेज्जा, जाणं वा णो जाणंति वएज्जा, तभो संजयामेव गामाणुमामं दृदज्जेज्जा । इरिया ( तदो उसो ) २१६ विथालप्दं ` ५९-से भिक्ल्‌ वा भिक्खुणो वा मामाणुगामं ददज्जमाणे, अंतरा से गोणं वियाङं पडिपहे पेहाए, “महिसं वियालं पडपिहे पेहाए, एवं-मणुस्सं, आसं, हत्थि, सीह, वरं, विग, दीवियं, अच्छं, तरच्छ, परिसरं, सियाल, विरार, सुणयं, कोल-सुणयं, कोकतियं,° चित्ताचिल्ल्डं- वियारु पडिपहे पेहाए, णो तेसि भीओ उम्मगोणं गच्छेलला, णो मम्गाओ मर्गं संकमेज्ञा, णो गहणं वा, वणं वा, दुगं वा अणुपविसेज्ना, णो सक्खं सि दष्टा, णो महदमहाल्यंसि उदयंसि कायं विउसेजा. णो वाड वा, सरणं वा, सेणं चा, सत्थं वा कखेजा, अप्पूस्युए *अबहिलेस्से एगंतगणएणं अप्पाणं विथोसेज्ज समाहीए, तओ संजयामेव गामाणुगामं दृदइज्जेज्जा । आमोसग-पद ६०-से भिक्ख्‌ वा भिक्खुणी वा॒गामाणुगामं दुदज्जमाणे, अंतरा से विहं सिया ! सेज्जं पण विहं जाणेला--इमंसि खलु विहंसि बहवे आमोसगा उवगरण-पडियाए संपिडिया गच्छेज्जा, णो तेसिं भीभो उम्मगेणं गच्छेज्जा, णो मग्गामो मग्गं संकमेजा, णो गहणं वा, वणं वा, दुग्गं वा अणुपविसेजा, णो स्खंसि दुरुहेव्ना, णो महदमहालयंसि उदयंसि कायं विउसेज्जा, णो वाड वा, सरणं वा, सेणं वा, सत्थं वा कंखेजा, अप्पुस्युए अबरहिलेस्से एगंतगणएणं अप्पाणं वियोसेज समाहीए, तो संजयामेव गामाणुगामं दूडइज्जेज्ञा । २० आयार्‌-चूखा १ : त्डयं अन्कयणे ६१-से भिक्लू वा भिक्छुणी वा गामाणुगामं दुहज्जमाणे, अंतरा से अआमोसगा संपिडिया गच्छेला। ते णं आमोसगा एवं वदेज्जा- आसतो ! समणा ! (आहर एय” वस्थं वा, पायं वा, कवं वा, पायपुंछणं वा-देहि, भिक्विवाहि । तं णो देना, भो गिक्छिवेजा, णो वेदिय-वंदिय जाएलजा, णो अंज कट जाएला, णो कलुण-पडियाए जाएज्ा, धस्मियाए जायणाए जाएज्जा, तुसिणीय-भावेण वा उवेहेज्जा 1 ते णं आमोसगा “सयं करणिज्जं'* त्ति कटू अक्कोसंति वा, वर्धति वा, सभंति वा०, उद्वेति वा । वस्थं वा, पायं वा, कवरं वा, पायपुचणं वा अच्छिदेल्ञ वा, अवहरेज्ज वरा, परिभवेज्ज* वा । तं णो गामसंसारियं कुजा, णो रायसंसारियं कुज्जा, णो परं उवसंकमिततु ब्रुया-आउसंतो ! गाहावद्‌। एए खलु आमोसगा उवगरण-पडियाए सयं करणिज्जं त्ति कंटूटु अक्कोसंति वा (जाव) परिभवति वा । एयप्पगारं मणं वा वड" वा णो पुरगकट्‌टु विहरेज्जा, अप्पुस्युए *अवहिरेस्पे एगंतमएणं अप्पाणं वियोसैज्° समाहीए, तमो संजयामिव गामायुगामं दृह्ज्जेज्ा । ६२-एयं खलु तस्स ॒भिक्चुस्स वा भिक्खुणीए्‌ वा साममियं, जं सन्वद्ढेहि समिते सहिए सया जण्लासि । --ति वेमि। १--आहारं एवं ( छ ) ; आहर एत्थ (ज, क, व ) 1 २--सयं करणिज्जा करणिज्जं ( च ) । डर ° (अ, कः, च, छ, व ) 1 ४--परिदि° (अ, कष, च,छ, व )1 ५-वाव (च); ववं [ छ, ब ) चेउत्यं अन्भयणं भाक्ा पटमो उदेसो वदु-अणायार-पदं १-से भिक्लू वा भिक्खुणी वा इमादं वइ-आयाराईं सोच्वा णिसम्म इमाई-अणायाराईं अणायरियपुव्वादईं जाणेजा- जे कोहा वा वायं विजंति, जे माणा वा वायं विरजं, जे मायाए वा वायं विउजंति, जे खोभा वा वायं विउंजंति, जाणय वा फरुसं वयंति, अजाणञओ वा फरुसं वयति, सव्वमेयं * सावज्जं वज्जेज्ञा विवेग मायाए । २-धुवं चेयं जाणेजा, अधुवं चेयं जाणेजा--असणं वा (४) लभिय णो कभिय, भुंजिय णो भुजिय, अदुवा आगए उदुबा णो आगए; दुवा एइ अदुवा णो एड, अदुवा एहिति अदुबा णो एदिति, एत्यवि आगए एत्यवि णो आगए, एत्यवि एड एत्थवि णो एइ, एत्थवि एहिति पएेत्थवि णौ एहिति 1 सौडस-वयण-पदं ३-अणुवीद्‌* णिद्छामासी, समियाए संजएु भासं भासेज्जा, तंजहा-एगवयणं, दुबयणं, वहुवयण, इत्थीवयणं °, पुरिसवयणं, णपुंसगवयणं, अज्फत्थवयणं, उवणीयवयणं, अवणीयवयणं, उवणीय-अजवणीयवयणं, अवणीय-उवणीयवयणं, १-सव्वे वेव (क, च, व ) ; सत्वे चेयं (घ )। २-अणुवीय (छ ) । दे--उत्थि ° (अ )1 ५. । आयार-चृला १ : चरत्थं अज्मयणं तीयवयणं, पदडुप्पन्नवयणं, अणागयवयणं, पच्चक्लवयणं, परोक्खवयणं 1 &-से एगवयणं वदिस्सामीति एगवयणं वएज्जा, शदुवयणं वदिस्सामीति दुव्थणं वएज्जा, बहुवयणं व दिस्सामीति बहुवयणं वएज्जा, इत्थीवयणं वदिस्सामीति इत्थीवयणं वएज्जा, पुरिसवयणं बदिस्सामीति पुरिसवयणं वएन्जा, णपुंसगवयणं वदिस्सामीति णपुसगवयणं वएन्जा, अर्त्थवयणं वदिस्सामीति अञ्क्लत्थवयणं वएज्जा, उवणीयवयणं वदिस्सामीति उवणीयवयणं वएज्जा, अवणोयवयणं वदिस्सामीत्ि अवणीयवयणं वएञ्जा, उवणीय-अवणीयवयणं वदिस्सामीति उवेणीय-अवणोयवयणं वएज्जा, अवणीय-उवणीयवयणं वदिस्सामीति अवणीय-उवणीयवयणं वएज्जा, तीयवयणं वदिश्सामीति तीयवयण वएन्जा, पड्प्यन्नवयणं वदिस्सामीति पद्प्पन्नवयण वएज्जा, अणागयवयणं वदिस्सामीति अणागयवयणं वएज्जा, पच्चक्ववयणं वदिस्सामीति पच्चक्छवयणं वएज्जा”, परोक्खवयणं वदिस्सामीति परोक्छवयणं वएज्जा । अणुवीद-णिङ्ामासि-पदं ५-इत्थी वेस पुरिस वेस, णपुंसग वेस", एवं वा चेय, १--इत्थीवेद पुवेय णपुसगवेय ( धः छ, व ) 1 २--एवं (घ, छ) 1 भासा ( पढमो उदेसो ) २०३ अण्णं" वा चेयं, अणुवीई्‌ णिद्वामासी, समियाए संजए भासं भासेज्जा, इच्चेयादं आयतणादइं उवातिकम्म । भासाजात-पदं ६-अह्‌ भिक्खू जाणेज्जा चत्तारि भासञ्जाया्ं, तंजहा-- सच्च- मेगं" पढमं भासजायं, बीयं मोसं, तदयं सच्चासोसं, जं णेव सच्चं णेवमोसं नेव सच्चामोसं-असनच्चामोसं णाम तं चउत्थं भासजातं । ७-से बेमि-जे' अतीता जे य पडप्पन्ना जे य अणागया अरहा भगवतो सव्वे ते एयाणि चेव चत्तारि भासज्जायादं भासिसु वा, भासंति वा, भासिस्संति वा, पण्णविसु वा, पण्णवेति वा, पण्णविस्संति वा । ८-सव्वादं च णं एयाणि अचित्ताणि वण्णमंताणि गंधम॑ताणि रसमंताणि फासमंताणि चयोवचडइयाईं° विपरिणामधस्माद" भवतीति अक्खायादं^ । ९-से भिक्खू वा भिक्चुणी वा सेऽजं पण जणेज्ना-- पुव्वं भासा अभा्ना, भासिज्जमाणी भासा भासा, भासासमयविद्वक्कताः भासिया भासा अभामा । सावज्ज-अपावज्ज-पदं १०-से भिक्खू वा भिक्ुणी वा सेज्जं पुण जाणेजा- जा य भासा सच्चा, जा य भासा मोसा, जाय भासा सच्चामोसा, जा य भासा असच्चामोसा, १--अण्णहा (अ, च. छ, व } । २--°मेव(अ,घ.छ), °मेत(क)। ३--चओवचएु (अ ) , चथोधचया८ ( छ ) ; चयोवचयमनाणि ( व ) 1 ४--विविहूपरिणाम ° (च, छ )1 ५--स्मक्ायाइ (अ) । ६-- ° विदककतं च ण (क, घ, च, छ } । १५ २२४ आयार-चूला १ : चरत्थं अज्भयणं तहप्पगारं भासं सावज्जं सकिरियं कक्कसं कड्यं निट्टुरं फरुसं अण्ह्यकरि दछैयणकररं भेयणकरि परितावणकरि उद्वणकरि भूतोवघादइयं अभिकख "णो भासेज्जा° । ११-से भिक्लु वा भिक्ुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा- जा य भासा सच्चा सुहुमा, जा य मासा असच्चामोसा, तहप्पगारं भासं असावज्जं अकिरियं “अकक्कसं अकडुयं अनिटृषुरं अफरुसं अणण्ह्यकरि अदैयणकरिं अभेयणकरि अपरितावणकरि अणुहवणकररि° अभूतोवघाइयं अभिकः भासेज्जा । आमंतणीभासा-पदं १२-से भिक्स वा भिक्खुणी वा पुमं आमंतेमाणे आमंतिते वा अपडिसूणेमाणे णो एवं वणएज्जा- ष्ोके तिवा, गोरे ति वा, वसुरे ति वा, कुपक्वे ति वा घड्दासेतिवा, साणे त्िवा, तेणेतिवा, चारिएति वा, माई ति वा, मुसावाई ति वा इच्चया तुमं एयाई'" ते जणगा वा- एतप्पगार* भासं सावज्जं सकिरियं (जाव ४।१०) अभिक नो भासेज्जा । १३-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पुमं आमंतेमाणे भमंतिए वा अपडिसुणेमाणे एवं वएज्जा- १--गो भास भासेज्जा (अ, ब ) ; माप्त णो मासेज्जा ( घ) । २--अभिकख मासं (अ, घ, छ ) । इ-होले इ वा गोले इ वा ( ध); होलि ति वा गोलित्तिवा (छ)। ४--इतियाईं तुम इतियाई ( अ ) ; एयादं तुम ° ( क, च) ; एततिया तुम ° ( ब ) 1 ५--तहप्पगार (छ ) 1 भासा ( पढमो उदसो ) २२५ अमूगेति वा, आउसो ति वा, जाउसंतो" ति वा, सावगे ति वा, उपासगे तिवा, धम्मिएति वा, वम्मपियि ति वा- एयप्पगारं भासं असावज्जं (जाव ४।११) अभूतोवधादइयं अभिकंख भासेजा । १४-से भिक्खू का भिक्खुणी वा इत्थि आमंतेमाणे आमंततिए य १५ अपडिधुणेमाणी नो एवं वएज्जा- होकेतिवा, गोलेति वा, °वसुकलेति वा, कुपक्वे ति वा, घडदासी तिवा, साणे ति वा, तेणेतिवा, चारिएति वा, माई ति वा, मूसावाई ति वा, इच्चेयादं तुम एयाइं ते जणगा वा- एतप्पगारं भास सावज्जं (जाव ४।१०) अभिक्ख णो भासेज्जा० 1 से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इत्थियं जमंतेमाणे अमंत्तिए य अपडिसुणेमाणी एवं वएज्जा- आउसोति वा, भगिणी ति वा, भगवद्‌ ति वा, साविगे ति वा, उवासिएति वा, धम्मिए ति वा, धम्मपिये*ति वा- एतप्पगारं भासं असावनज्जं (जाव ४११) अभिकख भासेल्ना । 1 विधि-निसिद्ध मासा-प्द १६-से भिक्खू वा भिक्ुणी वा णो एवं वएजा- णभोदेवे" ति वा, गज्जदेवे" ति वा, विज्जुदेवे ति वा, १--आरउसतारो (=, घ, छ )। २्-मगिणितिवाभोरईतिवा (क,घ, च)। ३ धम्मिणिए्‌ ( क ) 1 ४--णमभ देने (ध )। प--गज्ज देवे (व }। २२६ मायार-चूला १ : चरत्थं अज्मयणं पवुद्देवे" ति वा, निवृष्देवे ति वा, पड्ड वा वासंमावा पडड, णिप्फज्जउ वा सस्सं" मा वा णिप्फज्जउ, विभार वार्यणीमावा विभाउ, उदेउवा सूरिएमावा उदेठ, सोवा राया जय मा वा जयउ-णो एतप्पगारं भासं भासेज्ा पण्णवं | १७-से भिक्लू वा भिक्खुणी वा अंतलिक्से ति वा, गुञ्फाणुचरिए ति वा, संमूच्छिएु ति वा, णिवद्वएः तिवा पयोए्‌, वज्ज“ बरा बुषषराहगे ति वा । १८-एयं खु तस्स भिक्छुस्स वा भिक्खुणीए्‌ वा सामगियं, जं सब्वट्ठेहिं समिए सहिए सया जएल्नासि 1 --तिवेमि। ब्रोयो उदेमो कृर्ककतस-भसा-पटठ १९-से भिक्खू वा भिक्ुणी वा जहा वेगदयाई रवादं पसेज्जा तहावि ताईं णो एवं वएज्जा, तजहा- गंडी गंडीतिवा, कुद्टी कद्र ति वा, °रायंसी रायंसी ति वा, अवमारियं अवमारिए ति वा, काणियं काणिएं ति वा, किमियं भिमिएति वा, कुणियं कुणिएु ति वा, लुज्जियं खुभ्निए ति वा, उदरी उदरी ति वा, भूयं ए ति १-पबुदो ° (अ )। २--वासं (अ, व) उ-णिवडिए ( च ) 1 ४- तमे) एवं वदैज्जा (@) 1 भास्ता ( वीओ उदेसो ) २९७ वा, सूणियं सूणिए ति वा, गिलासिणी गिकासिणी ति वा, वेव वेवरई ति वा, पीढसप्पी पीढसप्पी ति वा, सिकिवयं सिलिवए ति वा०, महुमेहणी महुमेहणी! ति वा, हत्यछ्छिनतं हत्थचिन्ते ति वा, ““पादचिन्तं पादच्छिन्ने ति वा, नक्कच्छिन्नं नक्क्चि्ते ति वा, कण्णच्छिन्नं कण्णछिन्ने ति वा, ओडटृच्धिन्नं ओष्चित्ने ति वा'* जे यावण्णे तहृष्पगारे तहृप्पगाराहिः भासाहि बुद्या-बुदया* कुप्प॑ति माणवा, तेर्यावि तहप्पगाराहिं भासाहि अभिकख णो भासेज्जा । अकररकेस-भासा-पदं २०-से भिक्ल्‌ वा भिक्खुणी वा जहा वेगद्रयादं रूवादं पासेज्जा तहावि ताद एवं वएज्जा* तजहा- ओयंसी ओयंसी ति वा, तेयंसी तेयसी ति वा, वच्चसी वच्चंसी ति वा, जससी जसंसी ति वा, अभिरूवं अभिरूवे ति वा, पडिरूवं पडिरूवे ति वा, पासाद्यं पासाद्रए ति वा, दरिसणिज्जं दरिसणीए ति वा, जे यावण्णे तहूप्पगारा तहप्पगारार्हिः भासाहि वृदया-वुद्या णो कुप्यति माणवा, ते यावि तदहप्पगारा एयप्पगाराहि* भासाहि अभिकख भासेज्जाः । १-महुमेही (छ ) 1 २-एव पाद नक्क कण्ण ओ ° (अ); एवे पाद कण्ण नक्क ° (छ, व) ३--एयप्प ° ( क, छ } ४--> (अ })1 ५--भासेज्जा (छ) 1 ६-एयप्प ° (अ, घ, च )। ७~-पूर्व सूत्रे तहप्पगाराहि' विद्यते निन्तु अन प्रिु नया नान्ति 1 म-मासेज्जा 1 तहप्पगार भार अयावञ्ज जेव मानेज्जा (भ्‌,तर); ९९८ भायार-चूा १ ` चरत्थं अल्मयपं सावज्ज-असावज्ज-मासा-पव २१-से भिक्लू वा भिक्घुणी वा जहा वेगयाहं रूवादं पासेऽजा, तजहा- वप्पाणि वा, °फङिहिणि वा, पागाराणि वा, तोरणाणि वा, अग्गाणि वा, अगगरूपासगाणि वा, गड्डाओ वा, दरीभो वा, कूडागाराणि वा, पासादाणि वा, णूम-गिहाणि वा, सक्ख-गिहाणि वा, पव्वय-गिहाणि वा, स्क्ं वा चैय- कड, धूमं वा चेदय-कंडं, आएसणाणि वा, आयतणाणि वा, देवकुलाणि वा, सहाभो वा, पवाओ वा, पणिय-गिहाणि वा, पणिय-साराओ वा, जाण-गिहाणि वा, जाण-सालाभो वा, सुहा-कम्मंताणि वा, दन्भ-कम्मंताणि वा, बद्ध-कम्म॑ताणि वा, वक्क-कम्मताणि वा, वण-कम्मंताणि वा, दगाल- कम्मंतामि वा, कटृ-कम्मंताणि वा, सुसाण-कम्मंताणि वा, संति-कम्मंत्ाणि वा, गिरि-कम्मंताणि वा, कदर-कस्मंताणि वा, सेरोवद्ाण-कम्मंताणि वा,° भय॑ण-गिहाणि वा-तहावि ताद णो एवं वएन्जा, तजहा- सुकडे ति वा, सुदूटकडे ति वा, 'साहुकडे ति वा, कव्लाणे ति वा, करणिज्जे ति वा- एयप्पगारं भासं सावज्जं “सकिरियं कक्कसं कडयं निटृटुरं फरसं अण्ह्यकरिं छेयणकरं भेयणकरि परितावणकरि उद्वणकरि भरतोवघाद्वयं अभिकंख० णो भासेज्जा । २२-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगदयादं रूवादं पासेज्जा, तंजहा- १--साहुकल्लाण ति वा (अ, छ ) । भासा ( वीथो उदेसो } २२९ वप्पाणि वा (जाव ४२१) भवणगिहाणि वा-तहावि तां एव वएज्जा, तंजहा- आरंभकडे ति वा, सावञ्जकडे ति वा, पयत्तकडे ति वा, पासादियं पासादिएति वा, दरिसणीयं दरिसणीए ति वा, अभिरूवं अभिख्वे ति वा, पडिरूवं पडिरूवे ति वा- एयप्पगारं भासं असावज्जं %अकररियं अकक्कसं अकडयं अनिटटुरं अफरूसं अणण्डयकरि अछेयणकरि अभेयणकरि अपरितावणकरि अणु्हेवणकरि अभूतोवघाइयं अभिकंख० भासेज्जा 1 २३-से भिक्छू वा भिक्खुणी वा असणं वा ४ उवक्खडियं पेहाए तहावि" तं णो एवं वएज्जा, तंजहा- सुक्डे ति वा, सुट्टुकडे ति वा, साहुकडे ति वा, कत्लाणे ति वा, करणिन्जे ति वा- एयप्पगारं भासं सावज्जं (जाव ४।२१) णो भासेज्जा । र४-से भिक््‌ वा भिक्खुणी वा असणं वा ४ उवक्लडियं पेहाए एवं वएन्जा, तजहा- आरंभकडे ति वा, सावज्जकडे ति वा, पयत्तकडे ति वा, महयं भए ति वा, ऊढं ऊसढे ति वा, रसियं रसिए ति वा, मणुण्ण मणुण्णे ति वा- एयप्पगारं' भासं असावज्जं (जाव ४।२२) भासेज्जा । २५-ते भिक्लू वा भिक्खुणौ वा मणुस्सं* वा, गोणं वा, महिसं वा, मिगं वा, पसु वा, पक्वि वा, सरीसिवं वा, जल्यरं वा, १--तहाविह्‌ ( घ, ब )। २--तहप्प ° (अ, च) । इ३-माणुर्स (घ, छ ) 1 २३० आयार-चूला १ ; चऽत्थं अज्पयणं से ततं' परिवृढकायं पेहाए णो एवं वएन्जा-धूढे तिः वा, पमेहले ति वा, वटरेतिवा, वजे तिवा, पाडमे ति वा- एयप्पगारं भासं सावज्जं (जाव ४।२१) णो भासेजा । २६-से भिक्खू वा भिक्लुणौ वा मणुस्सं (जाव ५।२५) जलयरं वा, से तं परिवृढकायं पेहाए एवं वएल्ा, तंजहा- परिवृढकाए ति वा, उवचियकाए ति वा, भिरसंघयणे ति वा, चियम॑ससोणिए ति वा, बहुपद्ण्णहदिए ति वा- एयप्पगारं भासं असावज्जं (जाव ५।२२} भासेजा । २७-से भिक्खू वा मिक्खुणी वा विरूवल्वाओ गाओ पेहाए णो एवं वएजा, तंजहा- गाभो दोज्फाओःति वा, दस्मे. ति वा, गोरह" ति वा, 'वाहिमा ति वा, रहजोग्गाति वा'*- एयप्पगारं भासं सावज्जं (जाव ४५२१) णो भासा । २८-से भिक्खू वा भिक्ुभी वा विरूवरूवाओ गांओ पेहाए एवं वएजा, तंजहा- जुवंगवे तिवा, षेण्‌ ति वा, रसवतीति वा, हस्से ति वा, महर्लए ति वा, महन्वए ति वा, संवहणे ति वा- एयप्पगारं भासं असावज्जं (जाव ४।२२) अभिकं भासेजा। १ त (छ) २- शुल्ले (अ, क, च, छ) । ३--दोज्फा (अ, क, च, छ, व ) 1 ४~दम्मा (अ, च,व)। ५--गोरहा (अ, च, ब )। इ--वाहनयोग्यो रथयोग्य. ( वृ ) 1 ७--हरसे (घ, छ 4 ; रस्ते (ब ) 1 न-महल्ले (छ, ब ) । भाषा ( वीओ उसो } २३१ २९-से भिक्वु वा भिक्खुणी वा तहेवं गंतु्न्नाणादं पव्या वणाणि य स्क्खा महल्ला पेहाए णो एवं बएला, तंजहा- पासायजोग्गा ति वा, "गिहुजोग्गा ति वा, तोरणजोगगा'* ति वा, फचठिहुजोगगा ति वा, अग्गक'-नावा-उदगदोणि-पीढ- चंगवेर"- णंगल-कुलिय-जंतलद्रौ - णामि - गंडी-आसण- सयण- जाण-उनेस्सय-जोस्गा ति वा- । एयप्पगारं भासं सावज्जं (जाव ४।२१) णो भासेजञा । ३०-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा तदेवं ग॑तु्ुन्नाणादं प्न्याणि वणाणि य स्क्खा महल्छा पेहाए एवं वएजा, तंजहा- जातिमंताति वा, दीहवहाति वा, महाल्याति वा, पयायसाला ति वा, विडिमसाला तिं वा, पासाइया ति वा, दरिसणीयाति वा, अमिख्वा ति वा, पडिरूवा ति वा- एयप्पगारं भासं असावज्जं (जाव ४।२२) अभिकंख भासेजा। ३१-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा वहुसंभुया वणफला पेहाएु तहावि ते णो एवं वएजा, तंजहा- पका ति वा, पायखजा ति वा, वेलोचिया"तिवा, टाखा ति वा, वेहिया ति वा- एयप्पगारं भासं सावज्ज (जाव ४।२१) णो भासेज्ना । ३२-से भिक्खु वा भिक्खुणी वा बहुसंभूया 'वणफला अवा" पेहाए एवं वएज्जा, तंजहा- श्वा(च,ब)। २-तोरणजोग्गा ति वा गिहजोग्गा { अ. न } 1 उ-अग्गलजोग्गा ति वा फएलिह्‌ ( च ) । ४-सिगवेर (अ, व )। प्-वेलोविगा ( अ ) ; वेलोतिया ( क, घ, च ) , वेलोविया ( ब ) 1 ६-बणफणा (क, च, ब ) ›, फल्ज॑ना ( वृ ) । १६ रद्र जायार-चूखा १ ‡ चरत्थं अन्मथणं असंथडा इ वा, बहुणिवद्टिमफला ति वा, बहुसंभूया इ वा, भुयल्वा ति वा- एयप्पगारं भासं असवज्जं (जाव ४।२२) भासेज्जा । ३३-से भिक्लू वा भिक्ञुणी वा बहुसंभूयाओ ओसहीभो पेहाए तहावि ताभो णो एवं वएज्जा, तंजहा-- पक्का ति वा, नीचया ति वा, वीया" ति वा, छाइमा ति वा, भज्जिमा ति वा, बहुखज्जा ति वा- एयप्पगारं मासं सावज्जं (जाव ४।२१) णो भासेज्जा 1 ३४-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहुसंभूयाभो ओसदहीमो पेहाए एवं वएज्जा, तजहा-- ख्ढाति वा, बहुसंभया ति वा, थिरा तिवा, उसढाति वा, गन्भिया ति वा, पसुया ति वा, ससारा” ति वा- एयप्पगारं भासं असावेज्जं (जाव ४।२२) भासेज्जा । ३५-से भिक्लू वा भिक्खुणी वा जहा वेगदयाद्रं सदारं सुणेज्जा, तहावि ताईं णो एवं वएज्जा, तजहा-- सुसद ति वा, (दुसट ति वा'‡-- एयप्पगारं भासं सावज्जं (जाव ४।२१) णो भासेज्जा । ३६-से भिक्ख्‌ वा भिक्खुणी वा जहा वेगदयादं सहाद सुणेज्ना, तादं एवं वषएज्जा, तजहा-- श-छ्वी (ग ) 1 ए-ससारा (अ, छ }) । ३-८ ( च, छ )। ६ { अग्कःचःछणन ) 1 भास्ता ( वीओ उदेसो ) २३३ सुसद सुसद ति वा, दुसट दुसदे ति वा'”- एयप्पगारं भासं असावज्जं (जाव ४।२२) मासेज्जा । ३७-एवं" - 'रूवादंः" "ˆ" "कण्डे ति वा, णीले ति वा, लोरहिए ति वा, हाकि त्ति वा, मुकि्लितिवां गंधादः" `` ` -सुन्भिगंधे ति वा, दुन्मिगंवेतिवा रसा" ˆ "` " तित्ताणि वा, कंड़याणि वा, कसायाणि वा अंविकाणि वा, महुराणि वा, फासाई' ` ` ` ` `कक्खडाणि वा, मउ्यामि वा, गृर्याणि वा, लहुयाणि वा, सीयाणि वा, उसिणाणि वा, णिद्धाणि वा, सक्वाणि वा । अणुवोइ-धिंरा-माति-पदं ३८-से भिक्ठू वा भिक्छुणी वा वता कोहं च माणं च मायंच लोभं च", अणुवीद्र णिष्राभासी णिसम्म-भासी अतुरिय- भासी विवेग-भासी समियाए संजए भासं भासेज्जा 1 ३९-एयं खलु तस्स ॒भिक्खुस्स वा भिक्लुणीए वा सामग्गियं, जं सब्चह्ेहि समिए सहिए सया जएज्नासि । -- त्ति वेमि! कक; ~< (च, छ )1 # उ~क्तेहवयणं माग वा ४ (क, घ, च, पंचमं अज्भयणं वस्थेसणा पटमो उषसो वत्थजाश्-पदं १-से भिक्स वा भिक्लुणी वा अभिकेचेज्जा वत्थं एसित्तए, सेज्जं पण वत्थं जाणेज्जा, तंजहा- जंगियं वा, भंगियं वा, साणयं वा, पौत्तगं वा, खोमियं वा, तुरुकडं वा-तहुप्पगारं वत्थं- २-जे णिग्गथे तरुणे जुगवं * बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे, से एग वत्थं धारेज्जा, णो बितियं । २-जा णिग्गंथी, सा चत्तारि संघादीओ धारेज्जा-एगं दुहत्थ- चित्थारं, दो त्िहव्थवित्थायभो, एगं चउहत्थवित्थारं । तहप्पगारेहि" वत्थेहि असंविज्जमाणेहि * अह्‌ पच्छा एगमेगं संसीवेज्जा । अद्धजोयण-मेरा-पदं ४-से भिक्खू वा भिक्छुणी वा परं अद्धनोयणमेराए वत्य पडियाए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए । अस्सिपड्यिाए-पद ५-से भिक्लू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेजा- अस्सिपडियाए एगं साहम्मियं समुरिस्स पाणादं, ^भूयाद, १-जुवप (घ )। २-एरएहि (म, च, ब )। ३--अविज्ज ° (ज, ब )। वत्थ्षणा ( पमो उसो } २३५ जीवाद, सत्ता, समारल्भ समुदिस्स कोयं पामिच्चं अच्छेन्जं अभिसं अभिहडं आहट्‌ट्‌ चेएति 1 तं तहप्यगार्‌ वस्य पुरिसंनरकडं वा अपृरिसंतरकडं वा वहिया णीहुडं वा अगणीहुड वा, अत्त्चियं वा अणत्त्चियं वा परिभृत्तं वा अपरिभृत्तं वा, आसेवियं वा अणास्षेवियं वा-- अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लभे संते णो पड़गाेज्ना° । ६-°्से भिवल्‌ वा भिक्चुणो वा सेञज पुण वत्थं जाणेज्जा- अस्सिपटियाए वहुवे साहम्मिया समुदिस्स पाणाइ, भूयां जीवा, सत्तां समार्भ समुदिस्स कीय पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसद्रं अभिहृड आहुट्‌ट चेएति । त॒ तहप्पगार वत्थं परिसंतरकडं वा अपुरिसतरकड वा, वहिया णीहृड वा अणीहडं वा, अत्तद्ियं वा अणत्तष्ियं वा, परिभृत्त वा अपरिभत्त वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा- अफामुय अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे छाभे सते णो पडिगाहेला। ७-से भिक्खू वा भिक्छुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेजा- अस्सिपडिवाए एगं साहम्मिणि समुदिस्स पाणाई, भयाद, जीवा, सत्ताईं समारम्भ समुदिस्स कीयं पामिच्चं अच्छैज्ज अणिसषटं अभिहड आहट्‌टु चेएति 1 त तहप्पगारं वेत्थं परिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकड वा, वहिया णीहृड वा अणीहृडं वा, अत्तद्धियं वा अणत्तश्चियं वा, परिभृत्तं वा अपरिभृत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा- अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे करभे संते णो पडिगाहेज्जा । २३६ आयांर-चृा १ : पचम अज्पयणं =-से भिक्लु वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्यं जाणेजा- अस्सिपडियाए बहवे साहस्मिणीओो समुदिस्स पाणा, भूया, जीवाइं, सत्तादं समारम्भ समुहिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अगिसदटरं अभिहडं आहट्‌टु चेएति । तं तहप्पगारं वत्थं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकंडं वा, बहिया गीहडं वा अणीहडं वा, अत्तद्धियं वा अणत्तष्चियं वा, परिभत्तं वा अपरिभृत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा- अफासुयं अणेसणिज्जं ति सण्णमाणे छभे स्ते णो पडिगाहेज्जा । समण-माहणाई-समुदिस्स-वत्थ-पद ९-से भिक्त वा भिक्ुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जणेजा- बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समुरिस्स पाणां, भूयां, जीवाद, सत्तादं, समारभ समुदिस्स कीयं पामिच्चं अच्छैन्जं अणिसट्ं अभिहृडं आहट चेएद ! तं तहृप्पगारं वत्थं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बर्हिया णीहडं वा अणीहडे वा, अत्तद्धियं वा अणत्तद्धियं वा, परिभृतत वा अपरिभृत्तं वा, आसेचियं वा अणासेवियं वा-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे काभे संते णो पडिगाहेजा । १०-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेऽ्जा- बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए समुदिस्स पाणा भयाई, जीवाद, सत्तादं समारम समुदिस्स कीयं पामिच्व अच्छेज्जं अणिसदटं अभिहडं आहट्टुं चेएइ । वत्थेसणा ( पटमो उदसौ ) २३७ तं तहप्पगारं वत्थं अपुरिसंतरकडं, अबहिया णीहड, अणत्तद्िय, अपरिभृत्तं, अणासेवित--अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे ऊाभे संते णो पडिगाहेल्ञा । ११-अह्‌ पूण एवं जाणेजा- पुरिसंतरकडं, बहिया णीहडं, अत्तद्धियं, परिभूत्तं, आसेविथं- फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहज्ा ।° भिकलु-पडियाए-कीयमाइ-पदं १२-से भिक्लु वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्य जाणेजा- असंजए भिक्खु-पडियाए कीयं वा, धोयं वा, रत्तं वा, घटं वा, मह्रं वा, समह वा, संपधूमियं* वा-तदहप्पगारं वत्थं अपुरिसंतरकडं, *अबहिया गणीहडं, अणत्तद्वियं, अपरिभुत्त, अणासेवितं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे छाभे सते” णो पडिगाहेनज्ञा । १२३-अह्‌ पुणेवं जाणेजा- पूरिसंतरकडं, °बहिया णीहडं, अत्तद्धिये, परिभृत्तं, आसेवियं- फासुयं एसगिन्जं ति मण्णमाणे राभे संते° पडिगाहेल्ा । तेत्य-पद्‌ १४-से भिक्लू वा भिक्छुणी वा सेजाईं पुण वत्थादं जाणेजा विरूवरूवाद्‌ महद्धणमोःलाईं तजहा-- आजिणमाभिः वा, सहिणाणिः वा, सहिण-कल्छाणाणि वा, आयकाणि" वा, कायकाणि° वा, सोमयाणि वा, दुगुल्छाणि १--ससदट्‌ठ ( क ) २-- ° धूवितं ( अ, छ )1 उ--आत्तिणाणि (अ ) ; अजिणमाणि (क, च ) । ४-सहणाणि (छ ) 1 प-आयाणाणि (मः क, घ, च ) ; भायाण (वं ) 1 ६-कायाणाणि (घ, व ) । देय जायार-चूखा १ ; पंचमं अन्यग वा, मल्याणि वा, पत्तुष्णणि वा अंयुयाणि वा, चीणं- सुथाणि वा, देसरागाभि' वा, अमिलाणि वा, गज्जलाणि वा, फालियागिः वा, कोयहा(वा?}णि* वो, कंबल्गाणि वा, पावाराणि वा--अण्णयराणि वा तहप्पगारादं वत्थादं महद्धणमोत्लाई्‌-°अफासुयादं अणेसणिज्जादं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेला । १५-से भिक्ल्‌ दा भिवखुणी वा सेज्जं पुण आरईणपाउरणाणि वत्थाणि* जाणेजा, तंजहा- उदराणि" वा, पेसाणिः वा, पेसलेसाणि वा, किण्टुमिगा- ईणगाणि वा, णीलमिगारईणगाणि वा, गोरमिगार्ईणगाणि वा, कणगाणि वा, कणगकताणि* वा, कणगपहाणि वा, कणगखडयाणि वा, कणगफुसियाणि वा, काणि वा, विकग्वाणि वा, आभरणाणि वा, आभरणविचित्ताणि वा- अण्णयराणि वा तहृप्पगारादं आर्ईदणपाउरणाणि वत्थाणि- °अफासुयादइं अणे्षणिजाद्‌ ति मण्णमाणेः लाभे संतेणो पडिगाहेजा । वत्यपडिमा-पद १६-इच्चेयादई आयतणाद उवाइकम्म, अह्‌ भिक्लू जाणेज्जा चउहि पडिमाहि वत्थं एसित्ता्‌ । श्-वैसरागाणि (ज) , देसर गि ( छ) ; वैसराणि (च ) 1 २--फलियाणि (क, च, छ, व ) ३-कायहाणि (ज ) › कोहयाणि (ध } ; निशीथस्य १७ उदेणकस्य वर्णौ कोतवाणि' इति पाठे लम्यते । ४--वा वत्थाणि कवा {कः,छ)। ५--उदहाणि (अ, क,चःव, वृ): उहवाणि (घ) - अडाणि (छ)। द्-येभणाणि (छ ) 1 ७--केणगकताणि (अ, कः घ, च, छ, व ) , कनककान्तीनि (वृ ) 1 वत्ये्णां ( पमो उदेसो ) २३६ १७-तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा- से भिक्लू वा भिक्छुणो वा उदिसिय-उटहिसिय वत्थं जाएजा, तजहा- जंगियं वा, मंगियं वा, साणयं वा, पोत्तयं वा, खोमियं वा, तुलकडं वा-तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देल्ा-फासूयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे कभे संते पडिगाहेज्ञा । पडठमा पडिमा । १०-अहावरा दोच्चा पडिमा- से भिक्ल्‌ वा भिक्खुणी वा पेहाए-पेहाए वस्थं जाएज्जा, तजहा- गाहावद्ं वा, °गाहावह-भारियं वा, गाहावद-भगिणि वा, गाहावद-पुत्तं वा, गाहावद्-धूयं वा, ु्हुं वा, धाद्रं वा, दासं वा, दासि वा, कम्मरकरं वा०, कम्मकरि वा, से पुव्वामेव आरोएज्ना, आउसो! त्ति वा, भगिमि! त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णतरं वत्थं ? तहृप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएल्ना, परो वा से देजा-फासूयं *एसणिज्जं ति मण्णमाणे° कामे संते पडिगाहेजा । दोच्चा पडिमा । १९-अहावरा तच्चा पडिमा- से भिक्ु वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेल्ला, तंजहा- अंतरिज्जगं वा उत्तरिज्जगं वा-तहुप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाणएज्ा, "परो वा से देजा-फासुयं एसभिज्जं ति सण्णमाणे लाभे संते° पडिगाहेल्ा । तच्चा पडिमा । २०-अहावरा चउत्या पडिमा- से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उज्क्यि-धम्मियं वल्थं जाएल्ना, १७ आयारःचूका १ : पचम अज्म जं चऽण्णे बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा णावकंखंति, तहप्पगारं उन्भ्यि-धम्मियं वत्थं सयं वाणं जाएजा, परो वा से" देजा-फासुयं *एसणिज्जं' ति मण्णमाणे छि संते° पडिगाहेला । चउत्था पडिमा । २१-इन्चेयाणं चण्डं पडिमाणं “अण्णयरं पडिमं पड्विल्नमाणे णो एवं वएला-मिच्छा पडिवण्णा खलु एते भयंतारो, अहमेगे सम्मं पडिवण्णे । जे एते भयंतासो एयाओो पडिमाओो पडिवजित्ताणं विहरंति, जो य अहमंसि एयं पडिमं पडिवनित्ताणं विहरामि, सवै वे ते उ जिणाणाए उवद्धिया, अन्नोन्नसमाहीए, एवं च णं विहरति ।° संगार-वयण-पदं २२-सियाणं एयाएे एसणाए एसमाणं परो वएल्ा-आउसंतो। समणा! एलाहिं तुमं मसिण वा, दसराएण वा, पचराएण वा, सए वा, सुयतरे* वा, तो ते वयं आसौ ! अण्णयर वत्थं दाहामोः । एयप्पगारं" णिग्धोसं सोच्वा णिसम्म से पुव्वामेव आलो एजा-अाउसो! त्ति वा, भणि! त्ति वाणो खलु मे कष्य एयप्यगारेः संगार-वयणे पडिसुणित्तए, अभिकेससि मे दाउ इयाणिमेन दलयाहि । १--ण (ऊ बं )। २-०य(अ)। ह-- ° तराए (घ, च, छ, ब )। ४--दासामो (अ, च, ब ) । ध-तहप् ° (अ) । ६-°्गार८(४)। वत्थेप्षणा ( पढमो उहेसो ) २४१ से सेवं ` वय॑तं परोवएल्ना आउसंतो ! समणा ! अणुगच्छाहि, तो ते वयं अण्णतरं वत्थं दाहामो । से पुव्वामेव आलोएजा-आाउसो ) त्ति वा, भदणि] ति वा णो खलु मे कप्पद एयप्पगारे सगार-वयणे पडिसुणेत्तए, अभिकखसि मे दाउ ? इयाणिमेव दल्याहि । से सेवं वय॑तं परो णेत्ता बदेजा-आउसो ! त्ति वा, भडइणि | त्ति वा आहुरेयं वत्थं समणस्स॒दाहामो । अवियाइं वयं पच्छावि अप्पणो सयष्राए पाणाईं, भूथरडईं, जोवादं, सत्तां समारव्भ समृदिस्स (वत्थं") चेइस्सामो । एयप्पगारं णिग्घोसं सोच्चवा णिसम्म तहप्पगारं वत्थं- अफामुयं °अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे रामे संते णो पडिगाहेजा । वत्थ-आघसम्‌-पद २३-सिया णं परो णेत्ता वएजा--“आउसो ! त्ति वा, भद्णि। त्ति वा आह्रेयं वत्थं--सिणाणेण वा, °कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णेण वा, चुण्णेण वा, पडमेण वा° आघंसित्ता वा, पघंसित्ता वा समणस्स णं दासामो 1" एयप्पगार गिग्धोसं सोच्चा णिसम्म से पुव्वामेव आलो- एन्जा--"आउसो ] ति वा, भइणि} त्तिवामा एय तुमं वत्थं सिणाणेण वा (जाव) पघंसाहि वा । अभिकखसि मे दाउ? एमेव दल्याहि 1" से सेवं वयंतस्स परो सिणाणेण वा (जाव) पघंसित्ता वा १-णेव (क, घ, च, छ), एव ( ब }। २-जाव (अ, क,घ, चः छ, व ) | २४२ आयार-चूला १ ` पंचमं अज्मथणं दलएज्ञा । तहप्पगारं वेत्थं-अफासुयं *अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे कामे संते° णो पडिगाहेजा । वत्थ-उच्छोलण-पद्‌ रे४-से णं परो गत्ता वणएज्जा-जआउसो) त्ति वा, भदणि! त्त वा गाहरेयं वत्थं--सीभोदग-बियडेण वा, उसिणोदग- वियडेण वा उच्छोठेत्ता वा९ पधोवेत्ताः वा समणस्स ं दासांमो 1" एयप्पगारं गिग्धोसं सोच्चा गिसम्म से पुव्वामेव आलो- एना-"आउसो ! त्ति वा, मइणि! त्ति वा मा एयं तुमं वल्य सिमओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-बियडेण वा उच्छोलेहि वा, पधोवेहिं वा। अभिर्केखसि शे दाङ? एमेव दलयाहि । से सेवं वयंतस्स परो सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग- वियडेण वा उच्छोरेत्ता वा, पधोवेत्ता वा दकरएजा । तहप्पगारं वत्थं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमणि लाभे संते° णो पडिगहेज्ा । वत्थ-विसोहण-पदं २४-से णं परो गेत्ता वणएज्जा-"भआउसो! त्ति वा, भणि! त्ति वा आहेयं वत्थं-कंदाणि वा, मूलाणि वा, (याणि वा), पत्ता्णि वा, पृष्फाणि वा, फलामि वा, बीयाणि वा, हृरियाणि वा विसोहित्ता समणस्स णं दासामो एयप्पगारं णिग्धोसं सोच्वा णिसम्म से पूव्वामे् आटोएजा-"“अउसो ] त्ति वा, भदणि! त्ति वा मा एयाणि १- (छ) 1 २-प्च्छोलेत्ता (छ ) 1 वत्थेषणा ( पढमो उदेसो ! २४३ तुमं कंदाणि वा (जाव) हरियाणि वा विसोहैहिं । णो खलु मे कप्पड्‌ एयप्पगारे वत्थे पडिगाहित्तए !"" से सेवं वयंतस्स परो कदाणि वा (जाव) हरियाणिवा विसोहितता दलए्ा। तदृप्पगारं वत्थं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे छाभे संते णो पडिगाहेनना । वत्थ-पडिकलेहण-पद २६-सिया से परो णेत्ता वत्थं णिसिरेज्जा। से पुन्वामेव आलोएनज्जा-आउसो ! त्ति वा, भदणि! त्ति वा तुमं चेव णं संतियं वत्थं अंतोंतेणं पडलिदहिस्सामि । २७-केवली त्रूया-आयाण मेयं 'वत्थंतेण उ'* बद्धे सिया कृंडले वा, गणे वा, मणी वा, °मोत्तिए वा, हिरण्णे वा, सुवण्णे वा, कंडगाणि वा, तुडयाणि वा, तिसरगाणि वा, पाल्बाणि वा, हारे वा, अद्धहारे दा, एगावली वा, मत्तावली वा, कणगावली वा०, रयणावली वा, पणे वा, बीए वा, ह्रिए वा। अह भिक्खृणं पुन्बोवदिष्टा "एस पडइन्ना, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो०, जं पुन्वामेव वत्थं अंतोअंतेण पडिलेहिजा । सअडाद-वत्थ-पदं र८-से भिक्खु वा भिक्ुणी वा सेज्जं पूण वलत्थं जणेजा- सअंडं *सपाणं सनीयं सहरियं सउसं सउदयं सरत्तिग-पणग- दग-मद्विय-मक्कडा°संताणगं- तहप्पगारं वत्थं-अफासुयं *अणेसणिञ्जं ति मण्णमाणे काभे संते° णो पडिगाहेन्ना । १--वस्थे तेउ (च); बत्थेण उ (ध, व)। ९४४ आधार-चूला १ : पंचमं अज्भायणं अप्पंडाद्‌-वत्थ-पदं २९-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण वत्थ जाणेज्जा- अप्पंडं °अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अष्पौसं अप्पृदयं अप्मुत्तिगि-पणग-दग-मदट्विय-मक्कडा°-संताणगं अणलं अथिरं अधुवं अधारणिष्जं रोदज्ज॑तं ण रुज्चई--. तहप्पगारं वल्थं-अफासुयं *अणेसणिञ्जं ति मण्णमाणे कामे संते° णो पडिगहिज्ा । ३०-से भिक्ख्‌ वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेना-- अप्पंडं (जाव ५।२९) संताणगं अलं भिरं धुवं धारणिन्जं रोइज्जतं रुच्चद- तदृप्पगारं वत्थं-फासुयं ^एसणिर्जं ति मण्णमाणे कामे संते° पडिगाहेज्जा । वत्थ-परिकम्म-पद ३१-से भिक्छू वा भिव्ुणी वा "णो णवएु मे वत्थे" त्ति कटु णो बहुदेसिएण * सिणाणेण वा, *कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णेण वा, चुण्णेण वा, परउमेण वा आघंसेज्ज वार, पघंसेज्ज वा । ३२-से भिक्खू वा भिक्खुभी वा “णो णवएु मे वत्थे" त्ति कटु णो बहुदेसिएण सीओदग-वियडेण वा, “उसिणोदग-विथडेण चा उच्छोखेज वा०, पधोएल वा 1 ३३-से भिक्खू वा भिक्लुणी वा “धुन्भिगंधे मे वत्थे” ति कटु णो बहुदेसिएण सिणाणेण वा, कक्केण वा, रोद्धेण वा, वण्णेण वा, चुण्णेण वा, पडमेण वा आधंसेज् वा, पघंसेज्न वा। १--निशीये { १८1१५) बहुदेवसिएणः' पाटो लस्यते। आचारागस्य वूर्णावपि (पृ २६४) 'वहुदेवक्षिएण' पाठोस्ति, किन्तु तस्य वृत्तौ (पृ० २६४) बहुदेसिएण' पाठो व्याध्या- तोस्ति। प्रतिषु चापि एष एव लस्यते तेनात्र जयमेव पाठः स्वीकृत । वत्थेपणा ( पठमो उहेसो ) [44 २३४-से भिक्खू वा भिक्छुणो वा “दुव्भिगंधे मे वत्थे" त्ति कटु णो वहुदेसिएण सीभोदग-वियडेण वा, उस्िणोदग-वियडेण वा उच्छोेज्ज वा, पधोएज्ज वा ।° वत्थ-आयविण-पद ३५-से भिक्खु वा भिक्खुणो वा अभिकखेजा वत्थं आयावेत्तए वा, पयवेत्तए वा । तहप्पगारं वत्थं णो अगंतरदहियाए पुढवीए, णो ससणिद्धाए" पुढवीए, “णो ससरक्लाए पुढवीए, णो चित्तम॑त्ताए सिकाए, णो चित्तम॑त्ताए लेलृए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपडइद्धिए संडे सपाणे सवीए सहरिए सउसे संउदए सउत्तिग पणग-दग-मद्िय-मक्कडा°-संतांणाए आयावेज वा, पयावेज्न वा 1 ३६-से भिक्लू वा भिक्खुणभी वा अभिकखेज्जा वत्थं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा 1 तहप्पगारं वत्थं धूणंसि वा, गिहेलुगंसि वा, उसुयारंसि* वा, कामजकंसि वा अण्णयरे वा तहृप्पगारे अंतलिक्लजाए दुव्बद्धे दुन्निक्खित्ते अणिकपे चलाचछे णो आयावेज्ञ वा, णो पयावेज् वा । ३७-से भिक्ु वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा वत्थं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा । तहप्पगार वत्थं कुलियंसि वा, भित्तिसि वा, सिरसि वा, श्ेलुसि वा" अण्णतरे वा॒तहप्पगारे अंतलिक्वजाए "दुन्बद्धे दुन्तिक्खित्ते अणिक्पे चलाचले णो आयावेज्ज वा०, णो पयावेज् वा । १-ससिणि ° (कः च ) 1 २--अमु ° (अ )। ३ (जाव) (म } ; ८ ( छ ) 1 २४६ आयार्‌-चूला १ : पंचमं अन्यग ३य-से भिक्स वा भिक्छुणो वा अभिकंखेज्जा वत्थं आयाचेत्तए वा, पयावेत्तए वा । तहूप्पगारे वत्थे--खंधसि वा, मंचंसि वा, माठंसि वा, पासायंसि वा, हम्मियतठंसि वा अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतच्क्लिजाए "दुव्बद्धे इन्िक्ितते अभिकपे चङाचङे णो आयावेल्न वा०, णो पयावेनन वा | ३९-से त्तमादाए एगंतमवेकमेज्जा, २ त्ता अहे फामथंडिचंसि वा, *अद्धिरासिसि वा, किटुरासिसि वा, तुसरा्तिसि वा, गोमथरासिसि वा° अण्णयरंसि वा तहृप्पगारंसि थंडिकतिं पडिङेहिय-पडिलेहिय, पमन्जिय-पमज्जिय, तओ संजयामेव वत्थं आयावेज वा, पयावेज्ज वा । ४०-एयं खलु तस्स भिक्चुस्स वा भिक्छुणीए वा साममियं, “नं सब्वह्टेहि समिए सहिए सया जएज्जासि 1 --त्ति वेमि०। बीओ उदैसो णो धोएन्जा-रएज्जा-पटं ४१-से भिक्ू वा भिक्खुणी वा अहेसणिज्जाइ वत्थाद्रं जाएजा । अहापरिगगहियादई वत्थादईं धारेज्जा, णो धोएज्जा णो रणएज्जा, णो धोयरतादं वत्थाई' धारेजा, अपकलिरचमणे गासंतरेखु, ओमचेलिए । एयं खलु वत्थधारिस्स सामगियं । सन्वचीवरमायाए-पदं ४२-से भिक्लु वा भिक्खुणी वा गाहावद्र-कुलं पिड्वाय-पव्ाए पविसिउकमे सव्वं चीवरमायाएु गाहावद्भ-ककं पिडवाय- पडियाए गिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा । व॑त्थेपणा ( वी उदेसो ) २४७ ४३-श्से भिक्ल्‌ वा भिक्खुणी वा बहिथा वियार-भूमि वा, विहारः-भूमि वा णिक्वममाणे वा, पविसमाणे वा सव्वं चीवरमायाए बहिया वियार-भूमि वा विहार-भूमि वा णिक्वमेज्ज वा, पविसेज्ज वा 1 ४-से भिक्खू वा भिक्लुणी वा गामाणुगामं दुडज्जमाणे सव्वं चीवरमायाए गामाणुगामं दुदज्जेज्जा । ४५-अह पुणेवं जाणेज्जा-तिव्वदेसियं वा वासं गसमाणं पेहाए, तिन्वदेसियं वा महियं सण्णिवियमाि पेहाए, महावाएण वा रयं समृद्धयं पेहाए, तिरिच्छ संपाहमा वा तसा-पाणा संथडा सन्तिवयमाणा पेहाए 1 से एवं णच्चा णो सव्वं चीवरमायाए गाहावद-कुकं पिडवाय- पडियाए णिक्खमेज् वा, पविसेज्ज वा, बदहिया वियार-भूमि वा, विहार-भूमि वा णिक्छमेगजन वा, पविसेज्ज वा, गामाणुगामं वा दुदन्नेज्जा ।° पाडिहारिय-वत्थ-पद ४६-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पएगदओ मृहुत्तगं-मुहु्तगं" पाडिहायियं वत्थं जाए्ना--एगाहेणः वा, दुयाहेण वा, तियाहेण वा, चउयाहेण वा, पचाहेण वा॒विप्यवसिय- विप्पवसिय उवागच्छेज्जा, तहप्पगारं वल्थं णो अप्पणा ग््हेज्जा, णो अण्णमण्णस्स देज्जा, णो पामिच्चं कुज्जा, णो वत्थेण वत्थ-परिणामं करेजा, णो परं उवसंकमित्तुः एव वदेनज्जा-आउसंतो ! समणा। १-मुहुत्तग (घ, च, छ, ब ) २-जाव एगाहेण ( ज, क, घ, च, छ, व ) , एकाह्‌ याबत्‌ पचाहम्‌ ( वृ ) 1 ३-- ° मित्ता (घ, च, छ, व ) | १४ गेष्ट्द आयार-चूखा १ ¦ प्चमं अञ्भयणं अभिकंखसि वत्थं धारेत्तए वा, परिहरित्तए वा? भिरं वा णं संतं णो पलिच्छिदिय-पलिच्छिदिय परिष्रवेज्ञा । तहप्पगारं चत्थं ससंधियं'" तस्स चेव णिसिरेन्जा, "णो णं" साइज्जेज्जा । ४७-से एमदइओ एयप्पगारं* णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म- जे भयंतारो तहप्पगाराणि वत्याणि ससंधियाणि 'ृहुत्तगे- यृहृत्तगं'* जाटत्ता" एगाहेणः वा, दूयाहेण वा, तियाहेण वा, चउयाहेण वा, प्रचहेण वा विप्पवसिय-विप्पवसिय उवागच्छति, तहप्पगाराणि वत्थाणि णो अप्पणा गिण्ठुति, णो अण्णमण्णस्स अणुवयंति, “णो* पामिच्चं करेति, णो वत्थेण वत्थ-परिणामं करेति, णो परं उवसंकमित्त एवं वदेति--'अउसंतो | समणा! अभिकंखसि वत्थं धारेत्तए वा, परिहुरेततए वा ?" थिरं वा णं संतं णो पटिच्छिदिय-पलिच्छिदिय परिद्रवेति, तदप्पगाराणि वत्थाणि ससंधियाणि तस्स चेव भिसिरेति°, णो णं सातिज्जंति, से हंता अहमवि सुहुतं ˆ पाडिहारिय वत्थं जाइत्ता १--मसधिय वत्य (अ ) ; वल्य स्तधिय वत्थ (च, छ) } २-णो अत्ताण (अ, कः छ ) , न उत्ताण (व ) | उ--तह ° (ब)। ४--मृहुत्तम (छ ) । ५--जाएज्जा (छ ) । ६--जाव एगाहेण (अ, क, घ. च, छ, न ) । ७--त चेव जावं णो सादइज्जति बहुवयणेण भासियव्वं ( क, च, छ ) त चेवं जाव णो साज्जति वहुमाणोए भासियन्व (अ ) । त चेव जाव णो सादज्जति बहुदयणेण भाणियन्व ( घ ) 1 त चेव जाव णो साइज्जति बहुमाणेण मासियच्वे ( न ) । --युहूत्त (म, छ, ब ) 1 वत्येणा ( बीभ उदेसो ) - २४६ एगाहेण* वा, दुयाहेण वा, तियहेण वा, च्उयाहेण वा, ` पंचाहेण वा विप्पवसिय-विप्पवसिय उवागच्छिस्सामि। अवियाह एयं मसमेव सिया । माढद्राणं संफासे! णौ एवं करेज्जा 1 वत्थ-विक्किया-पद ४८-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा णो वण्णमंताइ वत्थाद्ं विवण्णादं करेज्जा, विवण्णाईं णो वण्णमंताइं करज्जा, “अन्तं वा वत्थं कभिस्सामि'" त्ति कटुटु णो अण्णमष्णस्स देज्जा, णो पामिच्वं कुज्जा, णो वस्थेण वल्थ-परिणामं करेज्जा", णो परं उवसकमित्त एवं वदेज्जा-“आउसंतो ! समणा | अभिकखसि मे वत्थं धारेत्तए वा, परिहुरेत्तए वा?” थिर वा णं संत णो पलिच्छिदिय-पलिच्छिदिय परिवेव्ना | जहा चेय` वत्थं पावगं परो मन्न ! परं च णं अद्तहारि पडिपह पेहाए तस्स ॒वत्थस्स णिदाणाए णो तेसि भीय उम्मग्गेणं गच्छैज्जा, “णो सम्माय सम्ग संकमेज्ा, णो गहणं वा, वणं वा, दुग्गं वा अणुपविसेज्जा, णो सक्खंसि दुरुहज्ना, णो महदमहाल्यंसि उदयंसि कायं विउसेला, णो वाड वा, सरण वा, सेण वा, स॒त्थं वा कखेज्जा०, अप्पुस्सुए °अवहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज समाहीए०, तमो संजयामेव गामाणुगामं दुदज्जेज्जा । आमोप्रग-पद ४९-से भिक्ख्‌ वा भिक्खृणो वा गामाणुगामं दूदज्जमाणे-अतरा १--जाव एगाहेण (अ, कः घ, च, छ, ब ) 1 २-कूज्जा (च )1 वैय ( ॐ च ) 3 मेवं ( क; धः वे ) ॥ २४० आयांर-चूछा १ : पंचमं अज्भयणं से विहं सिया । सेज्जं पुण विहं जाणेला-दइमंनि खनु विहंसि बहवे जआमोसगा वत्थ-पडियाए संपिडिथा" गच्छेना, गो तेसि भीभो उम्मग्गेणं गच्छेज्जा, णो मग्गाो ममां सकमेज्जा, णो गहणं वा, वणं वा, दुगं वा अणुपविसेज्जा, णो सक्खंसि दुरुहेज्जा, णो महदमहाल्यंसि उदयंसि कायं विउसेज्जा, णो वाडं वा, सरणं वा, सेणं वा, सत्थं वा कचेज्जा, अप्पस्युएं अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेला समाहीए, तभो संजयाभमेव° गामाणुगामं ददज्जेज्जा । ५०-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दुदरज्जमणे-अंतरा से आमोसगा संपिडियाः गच्छेज्जा । तेणं आमोसगा एवं वदेज्जा-- आउसंतो } समणा! आहरेयं वत्थं, देहि, निक्खिवाहि । ^तं णो देज्जा, णो णिक्खिवेज्जा, णो वंदिय-वंदियं जाएज्जा, णो अंजलि कट्‌ट्‌ जाएज्जा, णो कलुण-पठियाए जाएन्जा, धम्मियाए जायणाए जाएज्जा, तुसिणीय-भावेण वा उवहज्जा 1 ते णं आमोसतगा सयं करणिज्जं ति कृटृटु, अक्कोसंति वा, बेधंति वा, रुंभंति वा, उद्वति वा, वत्थं अच्छिदेज्ज वा, अवहुरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा । तं णो गामसंसारियं कुज्जा, णो रायसंसारियं कुज्जा, णो परं उवसंकमित्तु ब्रुया--आउसंतो] गाहावई} एए खु आमोसगा वत्थ-पडियाए सयं करणिज्जं त्ति कट्ट अक्कोसंति वा, बंधंति वा, रभंति वा, उहृवंति वा, वतयं १--संपडिया (क, च, ब ) 1 २-पडिया ( अ ) ; पपडिया ( क, घ, च ) » सपडिया ( छ ) 1 वत्थेसणा ८ बी उदेसो ) २५१ अच्छिदेति वा, अवह्रेति वा, परिभवति वा । एयप्पगारं मणं वा, वदरं वा णो पुरओो कटृटुं विहरेज्जा 1 अप्पुस्सुए अबहिकेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज समाहीए, तओ संजयामेव गामाणुगाम दुदज्जेज्जा ।° ५१-एयं खलु तस्स भिक्छुस्स वा भिक्चुणीए वा साममयं, "जं सब्वद्ेहि समिए सहिए सया जएल्ञासि । -- त्ति वेमि ।° चछटूटं अज्मयणं पाणञणा । पमो उदेसो पायजायथ्-पद्‌ १-से भिक्ख॒ वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा पायं एसित्तए, सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा, तंजहा-- अकाउपायं* वा, दास्पायं वा, सद्धिया पायं वा--तहप्पगारं पायं एगपाय-पदं २-जे निग्गंथे तरुणे जुगवं बल्वं अप्पायंके धिरसघयणे, से एगं पायं धारेऽजा, णो बीयं” । अद्धजोयण मेरा-पद ३-से भिक्खु वा भिक्खुणी वा परं अद्धजोयण-मेराए पाय- पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । अ स्सपव्यिाए-पद ४-से भिक्लु वा भिक्खुणी वा सेर्जं पुण पायं जणेज्जा-- अस्सिपडियाए एगं साहम्मिय समुद्िस्स पाणाई, "भूया जीवाई, सत्तादं समारब्म समुदिस्स कीयं पामिच्व अच्छेन्जं अभिसं अभिहृडं आहट्ट्‌ चेएति । तं तहप्पगारं पायं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकड वा बहिया णीहृडं वा, जणीहडं वा, अत्तद्धियं वा अणत्त्य ९-लाउयपाय ( क, च, छ ) ; अलाउयपाय (ध ) 1 पाएसणा ( पढमौ उहेसो ) २५३ वा, परिभूत्तं वा भपरिभूत्तं वा, अपिवियं वा अणोसेवियं वा-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमणे कमे सते णो पड़गाहेज्जा । ५-से भिक्खू वा भिकखुणी वा सेज्जं पूण पायं जाणेज्जा- अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समृिस्स पाणादं, भूया, जीवाईं, सत्तादइं समार्म समृदिस्स कीय पामिच्चं अच्छैन्जं .अणिसदटं अभिहड आहट चेएति । तं तहप्पगारं पायं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीह्‌डं वा अणीहडं वा, अत्तद्धियं वा अणत्तघ्धियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभृत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा- अफासूयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे कमे संते णो पडिगाहेज्जा । ६-से भिक्लु वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जगणेजा- अस्सिपडियाए एगं साहस्मिणि समुिस्स पाणादं, भूयाद्‌, जीवाद, सत्तादं समारभ समृद्िस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसष्रं अभिहृड आहटूटुं चैएति । तं तहप्पगारं पाय पुरिसंतरकड वा अपुरिसतरकडं वा, वहिया णीहडं वा अणीहृडं वा, अत्तष्टियं वा अणत्त्धियं वा, परिभूत्तं वा अपरिभृत्तं वा, आसेविवं वा अणासेवियं वा- अफायुयं अणेसणिज्जं ति सण्णमाणे कामे सते णो पडिगाहेज्जा । ७-से भिक्खु वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेजा- अस्सिपडियाए वह्वे साहम्मिणीओ समृषिस्स पाणाई, भूयाईं, जीवाद, सत्ताद्‌ समारभ समृरिस्स कीरं पामिच्चं अच्छेन्जं अणिसद्रं अभिहडं आहटटु चेएति 1 २५४ भायार-चूला १ : चटुः अज्मयणं तं तहप्पगारं पायं पुरिसंतरकंडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तह्ियं वा अणत्तघ्धिं वा, परिभृत्तं वा अपरिभूत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा- अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पड़गाहैज्जा । समण-माहणाइ-समुद्स्स-पाय-पदं ८-से भिक्खू वा भिक्ुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेजा- बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समृद्िस्स पाणां, भयाद, जीवाद, सत्तादं समारम्भ समुदिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणित्टं जभिहडं आहट चेएड । तं तहप्मगारं पायं परिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहृडं वा, अत्तद्धियं वा अणत्तद्धियं वा, परिभूत्तं वा अपरिभृत्तं वा, असेवियं वा अणासेवियं वा- अफासुयं अणेसणिन्जं ति मण्णमाणे भे संते णो पडिगाहेज्जा । से" भिक्लु वा भिक्छुणी वा सेज्जं पूण पायं जाणेजा- बहवे समण-माहण-अतिहि-करिवण-वणीमए वणीमए समुदिस्स पाणां, भयाद, जीवाद, सनत्तादं समारन्म समुदिस्स कीं पामिष्चं अच्छेज्जं अणिसहं अभिहडं आहद्टु चेएति । 1 १-यद्यमि प्ा्मरतिषु. “बहवे तमण-माहण"' इति सूत्रात्‌ पूवं “अस्सजए मिनयु-पडिया९ एतत्‌ सूत्र लभ्यते, किन्तु वस्ीपणाया- (१०-१३) कमेण पूर्वं “बहवे समण-माहण ° “ सूत्र तत्वश्वात्‌ "अस्क्ंजद्‌ भिकशु-पडियाए्‌”” एतत्‌ सूत्र युज्यते, अत एप णव क्रमोऽत्र स्वीकृत 1 . सूत्रस्य विपर्ययो लिपिदोषेण जात इति प्रतीयते । चरणौ वृत्तौ च न व्याख्य.त द्मे सत्रे । भा्तविपर्यं परिलक्षयेव जयाचार्येण सूत्रस्य विचा गतिरिति सकेतितम्‌ । पाएसणा ( पढमो उहेसो ) २५५ तं तहृप्पगोरं पायं अपुरिसंतरकडं, अबहिया गणीहड, अणत्तच्िये, अपरिमृत्त, अणासेवियं-अफासुयं अणेसणिन्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । (0 १०-अह्‌ पुणेवं जणेज्जा-पुरिसंतरकडं, वहिया णीहुडं, अत्तच्धिय, परिभत्तं, आसेवियं-फायुयं एसणिज्जं ति मण्णसाणे लभे संते पडिगाहेज्जा । मिक्छु-पडिथाए कीयमादपदं ११-से भिक्ख॒ वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा- अस्संजए भिक्खु-पडियाए कीयं वा, धयं वा, रत्तं वा, षट वा, मह्रं वा, संम वा, संपधरुमियं वा-तहुप्पगारं पायं अपुरिसंतरकंडं, अवहिया गीहडं, अणत्तद्धियं, अपरिभूत्त, अणासेवियं-अफासुयं अणेसणिउजं ति सण्णमाणे लाभे सते णो पडिगाहेल्ना । † १२-अह्‌ पुण एव जाणेज्जा-पुरिसतरकडं, बहिया ` णीहड, त्तद्धियं, परिभृत्तं, आसेवियं-फासुय एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहजा ।° पाय-पद्‌ १३-से भिक्छु वा भिक्ुणो वा सेज्जाईं पुण पादाद्ं जाणेज्जा विरूव -रूवाईं मह॒द्धणमुल्छाई, तंजहा- अय-पायाणि वा, तउ -पायाणि वा, तवब-पायाणि वा, सीसम-पायाणि वा, हिरण्ण-पायाणि वा, युवण्ण-पायाणि वा, रीरियि-पायाणि वा, हारपुड-पायाणि वा, मणि-काय- कस-पायाणि वा, संख-सिग-पायाणि वा, दत-चेल-सेल- पायाणि वा, चेम्म-पायाणि वा-अण्णयराइं वा तहृप्पगाराडं १-तउय (ध ) । १६ २५६ आयार-चूखा १ ¦ चठ अज्मयणं विरूव-रूवादईं महद्भणमूल्छादं पायाईं-अफासुथादं "अणेसणिलजादं ति मण्णमाणे काभे संते° णो पडिगाहेजा । पाय-वेधण्‌-प्दं १४-से भिक्खू वा भिष्खुणी वा सेज्जादं पुण पायाईं जाणिजा विरूव-रूवादं महद्वणबधणाईं तंजहा- अयबधणाणि वा, "तउबंधणाणि वा, तंबबंधणाभि वा, सीसगबंधणाणि वा, हिरण्णबंधणाणि वा, सुवण्णबंधणाणि ना, रीरियब॑धणाणि वा, हारपुडबेधणामि वा, मणि-काय- कस-बंधणाणि वा, संख-सिंग-ब॑धणाणि वा, दंत-चेल-सेल- बंधणाणि वा०, चम्भबधणाणि वा-अण्णयरादं वा तहप्पगारादं महदणबंधणादं-अफासुयाईं “अणेसणिलादं ति सण्णमाणे काभे संते णो पडिगाहेज्जा । पाय-पडिमा-पद १५-इच्चेयाईं भायतणादं" उवातिकम्म अह भिक्लू जाभेन्जा चउहि पडिमाहि पायं एसित्तए । १६-तत्थ खलु इमा पठमा पडिमा-- से भिक्लू वा भिक्चुणी वा उदिसिय-उदिसिय पायं जाएला, तंनहा-- छाउय-पायं वा, दारू-पायं वा, मद्िया-पायं वा-तहुप्पमारं पायं सयं वा णं जाएज्जा, श्परो वासे देज्जा-फायुं एसणिज्जं ति मण्णमाणे कामे संते पडिगाहेज्जा-पढमा पडिमा । १७--अहावर दोच्चा पडिमा- से भिक्खू वा भिक्छुणी वा पेहाए पायं जाएन्जा, तजहा- १--आया ° (घ । पाएतणा { पढमो उदेसो } २५७ गाहावदं वा, *गाहावद-भारियं वा, गाहावद-भगिणि वा, गाहावद्द-पत्तं वा, गाहावद-धूयं वा, सुष्हं वा, धाइ वा, दास वा, दासि वा, कस्मकरं वा०, कम्मकरि वा, से पुव्वामेव आलोएज़ा--गाउसो । त्ति वा, भणि [ त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णयरं पायं ? तंजहा-ऊाउय-पायं वा, दारु-पायं वा॒मद्विया-पायं वा-तहृप्मगार पायं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा-फासुय एसणिज्जं ति मण्णमाणे रभि संते° पडिगाहेज्जा-दोच्चा पडिमा । १८-अहावरा तच्चा पडिमा- से भिक्खू वा भिक्छुणी वा सेज्जं पुण पयं जाणेजा-संगतियं वा, वेजयं तियं ' वा-तहप्पगारं पायं सयं वा “णं जाएला, परो वा से देला-फासुयं एसणिज्जं ति सण्णमाणे लभे संते पडिगाहेला-तच्चा पडिमा । १९-अहावरा चरउत्था पडिमा- से भिक्ल्‌ वा भिक्खुणी वा उज्किय-घम्मियं पायं जाएजा, जं चऽण्णे बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा ` णावकखंति, तहप्पगारं पायं सयं वा णं "जाएजा, परो वा से देजा--फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे रभे संते पडिगहिजा-चरत्था पडिमा । २०-इच्चेयाणं चउण्ट्‌ं पडिमाणं अण्णयरं पडिमं शपडिवज्माणे णो एवं वएजा-मिच्छापडिवन्ना खलु एते भयंतारो, अह्मेगे सम्म पडिवन्ते, जे एते भयंतारो एयाभो पडिमाओ पडिवजित्ताणं विहरंति, जो य अहमंसि एयं पडिमं पडिवज्ित्ताणं विहरामि, सब्बे वे १--नेजयति (अ, व्‌, क, घ, च, छ ) 1 + भयार-चूला १ : छट्टं भग्भयणं . ते उ जिणाणाए उवद्िया अन्नोननसमाहीए्‌, एवे "च भं विहरंति ।° संगार-वयग-पदं २१-पसे णं एताए एसमाए एसमाणं परो पासित्ता वएला-- आरसंतो} समणा ! एजासि तुमं मापतेण वा, दसराएण वा, पंचराएण वा, सए वा, सुयतरे वातौते वयं आसो! अण्णयरं पायं दाहामो । एयप्पयारं भिग्धोसं सोन्चा णिसम्म से पुव्वामेव आंजोएजा--आाउसो ! त्ति वा, मदणि! त्ति वाणो खलु मे कप्यद्‌ एयप्पगारे संगार-वथणे पडिसुणित्तए, अभिकंलसि मे दां ? इयाणिमेव दल्याहि । से सेवं वयंतं परो वएज्ा आउसंतो ! समणा ! अणुगच्छाहि तो ते वथं अण्णतरं पायं दाहामो । । से पुव्वाभेव आलोएजा-जाउसो ! त्ति वा, भणि! त्तिवा णो खलु मे कप्पद्‌ एयप्पगारे संगार-वयणे पडियुणेत्तए अभिकखसि मे दा? इयाणिमेव दल्याहि । से सेवं वय॑ततं परो णेत्ता वदेजा-जाउसो ! त्ति वा, भदणि। त्ति वा आदहरेयं पायं समणस्स दाहामो । अवियादइं वय पच्छावि अप्पणो सयद्राए पाणादं, भूयाईं, जीवा, पत्ताहं समारभ समुरस्य पायं" चेदस्सामो । एयप्पमारं भिग्धोसं सच्चा णिसम्म तहप्पगारं पायं -अफामसुयं अणेसणिज्नं ति मण्णमाणे छाभे संते णो पडिगाहेज्ञा ।° पार्य-अढमगण-पद ^ २२८-से'णं परो णेत्ता वएला-भाउसो)' त्ति वा, भदणि! त्ति वा १--जाव (अ, क, घः च, छ, न ) 1 पाएसणा ( पढम उदेसो ) २५९ आहेयं पायं तेव्छेण वा, घएण वा, णवणीएण वा, वसाए वा'* अन्भगेत्ता वा, *मक्वेत्ता वा समणस्स णं दासामो | एयप्यगार णिग्वोसं सोच्वा णिसम्म से पुव्वामेव आलोएला-जाउसो ! त्ति वा, भदणि! त्ति वा मा एयं तुमं पायं तेच्छेण वा (जाव) अन्भगाहि वा मक्खाहि वा अभिकखसि मे दां ? एमेव दल्याहि 1 से सेवं वयंतस्स परो तेव्छेण वा (जाव) मक्चेत्ता वा दरएजा-तहप्पगारं पाय-अफासुयं अणेसणिज्जं ति सण्णमाणें , छाम सते णो पड़गाहेजा । ` पाय-प्राघसम-पद २३-से णं परो णेत्ता वएजा-आउसो ! त्ति वा, भदणि! त्ति वा आहरेय पाय सिणाणेण वा, कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णेण वा, चुण्णेण वा, पउमेण वा आधंसित्ता वा, पधंसित्ता वा समणस्स णं दासासो । एयप्पगारं गिग्धौसं सोच्चवा णिसम्म से पूव्वामेव आलोएजा--भाउसो ! त्ति वा, भदणि। त्ति वामाएयं तुमं पायं सिणाणेण वा (जाव) आघंसाहि वा पघंसाहि वा, अभिकंखसि मे दाडं ? एमेव दलयाहि । से सेवं वयंतस्स परो सिणाणेण वा (जाव) पघेंसित्ता वा दलएल्ना-तहप्पगारं पायं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति सण्णमाणे राभे संते णो पडिगाहेला । पाय-उच्छोरुण-पदं , २४-से णं परो णेत्ता वएज्ा-आञ्सो तिवा, भमि] त्तिवा " {-> (क, चः ब ) । २६० आयार-चृखा १ ` छदं अन्मथणं आह्रेयं पायं सीभोदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोरे्ता वा, पधोवेत्ता वा समणस्स णं दासामो । एयप्पगारं णिग्वोसं सोच्चा णिसम्म से पुव्वामेव् आचोएजा-आाउसो] त्ति वा, मडइणि! त्तिवा मा एयं तुमं पायं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेहि वा, पधोवरेहि वा, अभिकखसि मे दाडं ? एमेव दल्याहि । से सेवं वयंतस्स परो सीभोदग-वियडेण वा, उसिणोदग- वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा, पधोवेत्ता वा दकरएजा- तहप्पगारं पायं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे कामे संते णो पडिगाहेजा । पाय-विसोहण-पदं २५-से णं परो णेत्ता वएजा---आउसो ] त्ति वा, भणि! त्ति वा आहरेयं पाय कदाणि वा, मूलाणि वा (तयाणि वा), पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हुरियाणि वा विसौहित्ता समणस्स णं दासामो । एयप्पगारं गिग्घोसं सोचा णिसम्म से पुव्वामेव आलोएला- आउसो! त्ति वा, मदणि! त्तिवामाएयाणि तुमं कंदामि वा (जाव) हरियाणि वा विसोहेहि, णो खलु मे कष्पद एयप्पगःरे पाये पड़िगाहित्तए । से सेवं वयंतस्स परो कंदाणि वा (जाव) हरियाणि वा विसोहित्ता दरुएल्ना-तहप्यगारं पायं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेला ।° सपण मोयण-पडिग्गह-पदं । , २६-से णं परो णेत्ता वएल्ा-माउसंतो ! समणा ! मुहूत्तगं-मृहृत्तग अच्छाहिं जाव ताव अम्हे असणं वा४ उवकरेमु वाः पाएसणा ( पढमो उदटेसो ) २६१ उवक्छडमु वा, तो ते वयं आउसो! सपाणं सभोयणं पदिग्गहगं दासामो, तुच्छएं पडिग्गहए दिण्णे समणस्स णो सुट्‌ साहु भवद्‌ । से पृव्बामेव आलोएला-आउसो! त्ति वा, भडणि! त्ति वा णौ खलु मे कप्पद्‌ आहाकम्मिए असणे वा, पाणे वा, खादमे वा, सादमे वा भोत्तए कवा, पायए वा, मा उवकरेहि, मा उवक्खडेहि, अभिकंखसि मे दाउ? एमेव दल्याहि । से सेवं वयंतस्स परो असणं वा ४ उवकरेत्ता उवक्छड्तता सपाणगं सभोयणं पडिग्गहग दलएजा-तहप्पगारं पडिग्गहगं - अफासुयं “अणेसणिन्जं ति मण्णमाणे रभे संते णो पड़गहिन्ना 1 पडिगहु-पडिलेहण-पद २७-सिया से परो णेत्ता पड़गगहं णिसिरेज्ञा, से पुव्वामेव आलोएजा-आउसो ! त्ति वा, भइणि! त्ति वा तुमंचेवणं संतिय पडिग्गहगं अंतोअतेणं पडिकेहिस्सामि । २८-केवली ब्ूया--आयाणमेयं अतो पडिगगहंसि पाणाणि वा, नीयाणि वा, हरियाणि वा! अहं भिक्ृणं पुव्वोवदिद्वा एस पदरण्णा, “एस हैऊ, एस कारणं, एस उवएसो०, जं पुव्वामेव पडिग्गहगं अतोअंतेणं पडिलेहिल्ना। सञडाड-पाय-पदं २९-से भिक्लू वा भिक्लुणो वा सेज्जं पण पायं जाणेजा- सअंडं *सपाणं सनीयं सहरियं ससं सउदयं सउत्तिग-पणग- दग-मद्य-मक्कडा-संताणगं-- तहप्पगारं पायं--अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे काभे संते णो पडिगाहेज्ा । १--उवणेत्ता (घ, च, ब )। २१२ आयार-चूला १ : टं अन्कयणं अप्पडाद-पाय-पदं ३०-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेऽजं पूण पायं जाणेना- अप्पेडं अप्पाणं अप्पवीयं अष्पहुरियं अप्पोसं अप्णुदयं अप्पुत्तिग-पणग-दग-मद्धिय-मक्कडा-संताणगं अणल अधिरं ` अधुवं अधारणिभ्जं रोहज्जतं ण रुच्चदइ-तहप्पगारं पायं- अफासूुयं अणेसणिञ्जं ति -मण्णमाणे लाभे संते णो पड़िगाहेजा 1 ३१-से भिक्खू वा भिक्लुणी वा सेञ्जं पूण पायं जागेजा-- अप्पंडं (जाव ६।३०) संताणगं अलं थिरं धुवं धारणिज्जं रोदज्जेतं रुच्वद-तहप्पमार पायं-फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे कामे संते पडिगाहेज्ञा । पाय-परिकरम्मं ३२-से भिक्छ वा भिक्ुणी वा “णो णवषए मे पये त्ति कटु णो बहुदेसिएण तेव्लेण वा, घएण वा, णवणीएण वा, वसाए वा अन्भगेज्ज वा, मक्खेज वा 1 | ३३-से भिक्खू वा भिक्चूणी वा “णो णवए मे पाये" त्ति कट णो बहुदेसिएण सिणणेण वा, कक्केण वा लोद्धेण वा वण्णेण वा, चृण्णेण वा, पउमेण वा आधंसेल वा, पघसेज वा। ३४-से भिक्ख वा भिक्खणी वा “णो णवए मे पाये" त्ति कष्ट णो बहुदेसिएण सीतोदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडण वा उच्छोलेल् वा, पधोएल वा । ३५-से भिक्खु वा भिक्वुणी वा ॒"“दुन्भिगंधे मे पाये" त्ति कटु णो बहुदेसिएण तेत्लेण वा, घएण वा णवणीएण वा, वसां वा अन्भंगेज वा, मक्खेल् वा । ४ पाएसणा ( पढमो उदेसो } २६३ ३९-से भिक्ल्‌ वा भिक्ुणी वा “दुन्भिगंघे मे पाये त्ति कटटु णो बहूदेसिएण सिणाणेण वा, कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णेण वा, चुण्णेण वा, पउमेण वा आसे वा, पघंसेज् वा । ३७-से भिक्खू वा भिक्ुणी वा “'दुन्भिरगंधे मे पाये" त्ति कटुटु णो बहुदेसिएण सीओदगवियडेण वा, उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेल वा, पधोएज़ वा ! पाय-भायार्वेण-पदं ३८-से भिक्ख्‌ वा भिक्लुणी वा अभिकंवेज्न पायं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा--तहप्पगारं पायं णो अणंतरहियाए पुढवीए, णो ससिणिद्धाएु पुद्वीए, णो सस्र्लाए पृढवीए, णो चित्तमंताए सिकाए, णो चित्तमंताए लेलुए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपदच्ठिए संडे सपाणे सवीए सहरिए ससे सउदए सउत्तिग-पणग-दग-मद्िय-मक्कडा-संताणाए आयावेज्न वा, पयावेज्ञ वा । ३९-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेजा पायं आयवेत्तए ना, पयाचेत्तए वा-तहप्पगारं पायं धूणंसि वा, गिहेलु्गसि वा, उसुयालंसि वा, कामजरसि वा-अण्णयरे वा तहुप्पगारे अंतलिक्खजाए दुब्वद्धे दुन्निक्लित्ते अणिकपे चलाचके णो आयवे वा, णो पयोवेज वा 1 ४०-से भिक्खू वा भिक्ुणी वा अभिकखेज्जा पायं आयावेत्तए वा, पयावैत्तए वा-तहृप्पगारं पायं कूलियंसि वा, भित्तिसि वा, सिरसि वा, लेलुंसि वा-अण्णतरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुव्वद्धे दुन्निक्खित्ते अणिक्पे चलाचले णो आयावेज्जं चा, णो पयावेल वा । २०५ २६४ आयार-चूखा १ ` छट्टं अज्जयणं ४१-से भिक्छू वा भिक्खूणी वा अभिकंखेज्जा पायं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा-तहप्पगारे पाये खंधसि वा, मंचंसि वा, माकंसि वा, पासायंसि वा, हम्मियतठंसि वा~-अण्णयरे वा तहप्पगारे ऊंतल्िविवजाए दुव्बद्धे दुन्तिक्ित्ते अणिकंपे चलाचले णो आयाचेज् वा, णो पयावेज वा । ४२-से त्तमादाए एगंतमवक्कमेजा, २ त्ता अहै फामथंडिकंसिं वा, अदहटिरासिसि वा, किटरुरासिसि वा, तुसरासिसि वा, गोमयरासिसि वा०--अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिरंसि पडिकेहियि-पडिलेहिय, पमज्जिय-पमज्जिय तओ संजयामेव पायं आयावेज् वा, पयावेज्ज वा । ४३-एयं खलु तस्स भिक्लुस्स वा भिक्छुणीए वा सामग्गियं, जं सब्वह्ेहि समिए सहिए सया जएल्ासि । -- त्ति वेमि। बी उदेसो पडिग्गहु-पेहा-पदं ४४-से भिक्खू वा भिक्ुणी वा गाहावद-कुलं पिडवाय-पडियाए, पतिसमाणे' पुव्वामेव पेहाए पडिग्गहगं, अवहटदु पणे, पमज्जिय रयं, ततो संजयामेव गाहावई-कुलं पिडवाय- पडियाए गिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा । ४५- केवली ब्रुया--आयाण मेयं अंतो पडिगहगंसि पाणे वा, लीए वा, रए वा परियावज्जेला । अह्‌ भिक्ृणं पुव्बोदिढ्वा एस पदन्ना, “एस हेड, एष कारण" एस उवएसो०, जं पुव्वामेव पेहाए पडिग्गहु, अवहटुटु फण १--पविट्‌डे ° (कःच, चु) पाएसणा ( नीय उसो ) २६५ पमज्जिय रयं, तभो संजयामेव गाहावइ-कुरं पिडवाय- पडियाए पविसेज्ज वा, णिक्खमेज्ज वा । सोओदग-पदं ४६-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावडइ-कुलं पिडवाय-पड़ियाए अणुपविद्े समाणे सिया से परो आहट्ट॒' अतो पडिगगहगंसि सीओदगं परिभाएत्ता गणीहट्टु दकएज्जा-- तहप्पगारं पडिग्गहुगं परहत्थंसि वा, परपायंसि बवा-अफासुयं *अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे सते° णो पडिगाहेज्जा । उदउतल्छ-पदं ४७-से य॒ आहस्च पडिग्गदिए सिया चखिप्पामेव उदगंसि साहरेाः, सपडिगगहमायाए पाणं* परिष्वेज्जा, ससणिद्धाए वण-*भूमीए णियमेज्जा । ४८-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदउब्छं वा, ससणिद्धं वा पडग्गहुं णो आमज्जेज् वा, “पमज्जेज्ज वा, संलिहेज्ज वा, गिल्लिहेज्ज वा, उन्वलेज्ज वा, उवद्रेज्ज वा, आयावेज्ज वा० पयावेज्ज वा ! ४९-अह पुण एवं जाणेज्जा-- विगतोदए मे पडग्गहए, चिष्ण- सिणेहे मे पडिगगहृए--तहप्पगारं पडिग्गहं तओ संजयामेव आमज्जेज्ज वा (जाव ६।४८)} पयावेज्ज वा । सपडिग्गह पायाए-पदं ५०-से भिक्खू वा भिक्छुणी वा गाहावद-कुलं पिडवाय-पडियाए १--अमिहद्ट (अ, क, च, छ, व ) । सिया से(ज)1 3--आहरेज्जा (च ) । ४-वण (अ), एवं{&)। ध्-चण (धःच);चणं(छ)। (4 ददै अयार-चूला १ ¦ चट्टं अर्भयण पविसिउकामे सपड्गगहमायाए गाहावद्-कुलं पिंडवाय- पडियाए प चिसेज्ज वा, गिक्लसेज्ज वा । ५१-ण्से भिक्खू वा भिक्सुणी वा बहिया वियार-भूमि वा विहार- भूमिं वा णिक्छममाणे वा पविसमाणे वा सपडिगहमायापए बिया वियार-भुमि वा विहार-भूमिं वा भिक्छमेनज्ज वा पविसेज्ज वा 1 ५२-से भिक्लू वा भिक्खुणी वा मामाणुगामं द्हन्नमागे सपडग्गहमायाए मामाणुगामं दूह्ज्जेज्जा । ५२३-अह पुणेवं जाणेज्जा-तिव्वदेसियं वासं वासमाणं पेहाए, तिन्वदेसियं वा महियं सण्णिवयमा्ि पेह्‌ाए, महावाएण वा रयं समुदयं पेहाए, तिरिच्छं संपादमा वा तसा-पाणा संथडा सन्निवयमाणा पेहाए, से एवं णच्चा णो सपङ्गगहमायाए गाहावद-कुरं पिडवाय- पडियाए णिक्खमेज् वा, पविसेज्ज वा 1 बरिया वियार- भूमि वा, विहार-भूमि वा णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा, गामाणुगामं वा दूदनज्जेज्जा । पडिहारिय-पडिग्गह-पदं ५४-से भिक्ख्‌ वा भिक्खुणी वा एग्यो महृत्तगं-मूहु्तयं पाडिहारियं पडिगहं जाएज्जा, एगाहेण वा, दु्याहैण वा, तियाहेण वा, चउयाहेण वा, पंचाहेम वा विप्पवसिय- विप्पवसिय उवागच्छेज्जा, तहप्पगारं पडिग्गहं णो अप्पणा गिष्ठेजा, णो अण्णमण्णस्स देज्जा, णो पाभिच्चं कुज्जा, णो पडगगहेण पडिमरह्‌ परिणामं करेज्जा, णो प्रं उवसंकमित्तु एवं वदेऽना-- "आउसंतो! समणा ! अभिकंखसि पडग्गहुं धारेत्तए वाः ७ (व प्राएप्तणा ( वभो उदेसो ) ९1 परिहरेतए वा? भिरं वा णं संत णो परिच्छिदिय- पलिच्छिदिय परि्वज्ना । तहप्पगारं पडिग्गहं ससंधियं तस्स चेव गिसिरेज्जा, णो णं सादज्जेज्जा 1 ५५-से एगदओ एयप्पगारं भिग्बोसं सोच्चा णिस्म्म-जे भयंतारो तहप्पगाराणि पडग्गहाणि ससंधियाणि मृहृत्तगं-मुहुत्तग जाइत्ता एगाहेण वा, दुयाहेण वा, तियाहेण वा, चउयाहैेण वा, पंचाहेण वा विप्पवसिय-विप्पवसिय उवागच्छति, तहप्पगाराणि पडिम्गहाणि णो अप्पणा गिष्हंति, णो अण्ण- मण्णस्स अणुवयंति, णो पामिच्चं करेति, णो पडिग्गहेण पडग्गह-परिणामं करेति, णो परं उवसंकमित्तु एवं वदति- "“आउसंतो ! समणा ! अभिकंखसि पडिग्गहुं धारेत्तएु वा, परिह्रेत्तए वा?” भिरंवा णं संतं णो पलिच्छिदिय- पठिच्छिदिय परिष्वेति । तदहृप्पगाराणि पडिग्गहाणि ससंधियाणि तस्स चेव भिसिरति, णो णं सातिज्जंति, से हंता अहमवि मृहृत्तगं पाडिहारियं पडिग्गहं जादा एगाहेण वा, दुयाहेण वा, तियाहेण वा, चउयाहिण वा, पंचाहैेण वा विप्पवसिय-विप्पवसिय उवागच्छिस्सामि । आवियादं एयं ममेव सिया । माद्ट्राणं संफासे । णो एवं करेज्जा । पायविक्षिया-पदं ६-से भिक्लू वा भिक्छुणी वा णो वण्णमताईं पडिग्गहादं विवण्णाईं करेज्जा, विवण्णादं णो वण्णमंताइं करेला, “अन्नं वा पडिग्गहगं रभिस्सामि"" त्ति कटु णो अण्गमण्णस्स २६०८ भायार-चूला १ ; चटु अन्पयणं देज्ञा, णो पामिच्चं कुज्जा, णो पडिग्गहेण पडिग्गहु-परिणामं करेज्जा, णो परं उवसंकमित्तु एवं वदेना--“आरसंतो! समणा ! अभिकखसि मे पडिगहं धारेत्तए वा, परिहरेत्तए वा? धिरंवा णं संतं णो प१लिच्छिदिय-पलिच्छिदिय प रि्वेज्जा । जहा चेयं पडिमहं पावगं परो मन्नइ। परं च णं अदत्तहारि प डिपहे पेहाए तस्स पडिग्गहस्स णिदाणाए णो तें भीभो उस्मग्गेणं गच्छेज्जा, णो मगाओ मगगं संकमेज्जा, णो गहणं वा, वणं वा, दुगं वा अणुपविसेज्जा, णो श्क्वंसि दुरुहेना, णो महदमहार्यंसि उदयंसि कायं विउसेज्जा, णो वाड वा, सरणं वा, सेणं वा, सत्थं वा केखेन्जा, अप्पुस्युए अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज समाहीए, तभो संजयामेवे गामाणुगामं दुहज्जेज्जा । आमोसगः-पदं ५७-से भिक्ू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूदज्जमणि--अंतरा से विहं सिया । सेज्जं पृण विहं जाणेज्जा--इमंसि खलु विहंसि बहवे आमोसगा प डिग्गहु-पड्याए संपिंडिषा गच्छैन्जा, णो तेसि भीओ उस्मग्गेणं गच्छेज्जा, णो भग्गाओ मग्गं संकमेज्जा, णो गहणं वा, वणं वा, दुगं वा अणुपविसेज्जा, णो सक्खंसि दुरुहेज्जा, णो महदमहालर्यसि उद्य॑सि कायं विउसेज्जा, णो वाडं वा, सरणं वा, सेणं वा, सत्थं वा कंचेजा, अप्पस्सुए अबदिरेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्जा समाहीए्‌, तथो संजयामेव मामाणुगामं दुदज्जेज्जा । पयसे भिक्खु वा भिक्चुणी वा गामाणुगामं दुदज्जमणे-गंतरा पाएसणा < वी दसो ) २६९ से आमोसगा संपिंडिया गच्छेज्जा । ते णं आमोसगा एवं वदेज्जा-'आउसंतो! समणा। आहरेयं पडिगगहं देष, निक्खिवाहि । तं णो देज्जा, णो णिक्खिवेज्जा, णो वंदिय- वंदिय जाएज्जा, णो अंजलि कट्टु जाएञ्जा, णो कलुण- पडियाए जाएज्जा, धस्मियाए जायणाए जाएज्जा, तुसिणीय- भावेण वा उवेहेज्जा 1 ते णं आमोसगा सयं करणिज्जं त्ति कटूटु अक्कोसंति वा, वंधंति वा, रुमंति वा, उद्वति वा, पडगगहुं अच्छिदेज वा, अवह्रेज्ज वा, परिभवेज्ज वा । तं णो गामसंसारियं कुञ्जा, णो रायसंसारियं कुज्जा, णो परं उवसंकमित्तु बुया-आउसंतो। गाहावई! एए खलु आमोसगा पडिग्गह-पडियाए सयं करणिज्जं त्ति कटटु अक्कोसंति वा, वंधति वा, रुभंति वा, उद्वति वा, पडिगगहं अच्छिदेत्ति वा, अवहरति वा, परिभवति वा । एयप्पगारं मणंवा, वड वा णो पुरो कटू विह्रेज्जा । अप्पूस्सुए अवहिेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज समाहीए, तञ संजयामेव गामाणुगामं ददज्जेज्जा ° ५९-एयं खलु तस्स ॒भिक्लुस्स वा भिक्खुणीए वा सामगिियं, जं सब्बद्ेहि समिए सहिए सया जएज्जासि । -त्ति नेमि । सत्तमं अज्छयणं ओग्गह-पडिमा पटमो उरसो अदिन्नादाण-पदं १-समणे भविस्सामि अणगारे अर्किचेणे अपृक्ते अपसू परत्तभोई पावं कम्मं णो करिस्सामि त्ति समुदा सव्वं भते। अदिण्णादाणं पच्चक्वामि । २-से अणुपविसित्तां गामं वा, *णगरं वा, खेडं वा, कव्वडं वा, मडबे वा, पद्ुणे वा, आगरं वा, दोणमुहुं वा, णिगमं वा, आसमं वा, सण्णिवेसं वा, रायहाणि वा०-णेव सयं अदिन्तं गिष्हेज्जा, गेवण्णेणं ' अदिण्णं गिष्ावेना, णेवण्णं अदिष्णं गिष्हुतं पि ससणुजाणेजा । ओग्गह्‌-पद ३-जेहिं वि सदधि संपव्वेदए, तेसि पि यादं भिक्लृ छतयं वा, मत्तयं वा, दंडगं वा, श्छच्धियं वा, भिसियं वा, नायं वा, चेलं वा, चिरुमिरि वा, चस्मयं वा, चस्मकोसयं वा, चभ्मचेदणगं वा-तेसि पूव्वामेव ओग्गहं अणणुष्णाविय अपडिकेहिय अपमज्जिय णो गिष्ठेज्ज वा, पिष्टेन" वा। तेसि पुव्वामेव ओग्गहं अणुण्णविय पडिलेहिय पमनिय, तथ संजयामेव ओगिष्ैज्जः वा, पिण्डे वा । १--णेवण्णेहि (घ, छ ) । २--छत्त (ध, च ) 1 ३--परिगिण्टेज्ज (अ ) । ४--उ०° (घ); उव° (छ)। ओग्गह-पडिमा ( पढमो उदटेसो ) २७१ ४-से आगंतारेसु वा, आरामागारेयु वा, गाहावड-कूलेसु वा, परियावसहेसु वा अणवीई ओग्गहं जाएञ्जा, जे तत्थ ईसरे, जे तत्य समहिङ्राए, ते ओग्गहं अणुण्णवेज्जा । कामं खलु आउसो! अहाकंदं अहापरिण्णातं वसामो, जाव आसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहे, जाव स्नाहम्मिया "एत्ता, ताव” जग्गु गओोगिष्हिस्सामो, तेण परं विह्रिस्सामो 1 ५-से किं पृण तत्थोग्गहंसि एवोग्गहियंसि ? जे तत्थ साहम्मिया संभोहया समणुण्णा उवागच्छेज्जा, जे तेण सयमेसियाएर असणं वा तेण ते साहम्मिया संभोडया समणुण्णा उवणिमतेसजा, णो चेव णं पर-पडियाए उगिञ्फिय-उगिरिफिय उवणिमंतेज्जा 1 ६-से अगगतारेसु वा, *आरामागारेयु वा, गाहावड-कुकेु वा परियावसहेनु वा अणुवोद ओग्गहं जाए्जा, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिष्नाए, ते ओग्गहं अणुष्णवेज्जा 1 कामं खलु आउसो ] अहानंदं अहापरिण्णातं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहै, जाव साहुम्मिया एता, ताव ओगगहुं ओगिण्हिसामो, तेण परं विहरिस्सामो 1 ७-से कि पुण तत्थोगहंसि एवोगगहियंसि ? जे तत्थ साहम्मिया अण्णसंभोइया समणुन्ना उवागच्छेज्जा, जे तेणं सयमेसियाएः पढे वा, फठए वा, सेज्जा संथारए वा, तेण ते साहम्मिए अण्णसंभोदए समणुन्ने उवणिमतेज्जा, णो चेव णं पर- वडियाए उगिज्िय-उ गिज्फिय उवणिमंतेज्जा । =-से आगंतारेसु वा, *अआरामागारेषु वा, गाहावद-कुलेघु वा, १--एतावता (अ, क, घ, च, छ, व ) 1 २,३ ° सित्तए्‌ (अ, क, घ, च, छ ५ । २९१ ॥। २७४ अयार-चूला १ ¦ सत्तमं अज्पयणं पण्णस्स (जाव ५७।१४) चिताटु। सेवं णच्चा तहूप्पगारे उवस्सए णो ओग ओोगिष्हेल वा, परिष्ठेन वा ! १६-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सज्जं पुण ओग्गहं जाणेजा-- इहं खदु. गाहावई वा, शगाहावइणीभो वा, गाहावदर-पुत्ता वा, गाहावद्-भुयाओ वा, गाहावह-मुष्हाभो वा, धा्ईभो वा, दासा वा, दासीभो वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीभो वा अण्णमण्णं अक्कोसंति वा, श्वधंति वा, रंभ॑ति वा, उद्वेति वा, णो प्ण्णस्स (जाव ७।१४) चिताए । सेवं णच्चा तहृप्पगारे उवस्सए णो ओग्गहं ओगिण्टेज्न वा, पगिष्हेल वा । १७-से भिक्खू वा भिक्खुभी वा सेज्जं पुण ओोग्गहं जाणेजा-- इह खदु . गाहावई वा (जाव ७।१६) कम्मकरीो वा ` अण्णमण्णस्स गायं तेतल्छेण वा, घएण वा, णवणीएण वा, वसाए वा, अन्भंगेति वा, मक्ेति वा, णो पण्णस्स , ˆ ` (जाव ७।१४) चिताए । सेवं णच्वा तहृप्पगारे उवस्सए णो ओग्गहं ओगिण्डेल् वा, पगिष्हेज वा । १८-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सज्जं पुण ओग्गहुं जाणेना- ` इहं खदु गाहावई वा (जाव ७।१६) कम्मकरीभो वा अण्णमण्णस्स गायं सिणाणेण वा, कक्केण वा, लोद्धेण वा, : वष्णेण वा, चुण्णेण वा, परमेण वा आधंसंति वा पधंसंति ' वा, उव्वरेति वा, उव्व्ंति वा, णो प्ण्णस्स (जाव ७।१४) ` -चिताए 1 सेवं णन्वा तहप्पगारे उवस्सए गो ओम्गहं ओगिष्टेज्ज वा, पिष्टेन वा । १९-से भिक्लू वा भिक्खुणी वा सेरजं पण ओग्गहं जाणेना-- इह खल गाहावई वा (जाव ७।१६) कम्मकरीमो वा ओग्गहु-पडिमा ( वीथो उदैसो ) २५८५ अण्णमण्णस्स गायं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोकेति वा, पधोवेति वा, सिचंति वा, सिणावेति वा, णो पष्णस्स (जाव ७।१४) चिताए । सेवं णच्चा तहृप्पगारे उवस्सए णो ओग्गहं ओगिष्डेज्न वा, पगिष्ठेज्ज *्ा॥ २०-से भिक्लू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पण ओग्गहं जाणेला- इह खल गाहावई वा (जाव ७।१६) कम्भकरीभो वा णिगिणा ठि णिगिणा उवस्छीणा मेहुणधम्मं विण्णवेंति, रहस्सियं वा मतं मतेति, णो पण्णस्त (जाव ७।१४} चिताए । सेवं णच्चा तहप्पगारे उवस्सए णो गगर ओगिष्हैज वा, पगिष्टेज्ज वा ० २१-से भिक्लू वा भिक्छुणी वा सेज्जं पुण ओोग्गहं जाणेज्जा- आद्रण्णसलेक्छं, णो पण्णस्स (जाव ७।१४) चिताए (सेवं णच्चा ?) तहप्पगारे उवस्सए णो ओग्गहं ओगिष्ठेल् वा, परिण्ठेज्ज वा 1 २२-एयं खु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्छुणीए वा सामग्गियं शं सब्वहेहि समिए सदिए सया जएज्नासि । -- ति वेमि०। बीभ उदेसो २३-से आगंतारेमु वा, आरामागारेषु वा, गाहाद्रकुल्ु वा, परियावसहेसु वा, अणुवीड ओगहं जाएजा-ने तत्य ईसरे, जे तत्य समरहट्ाए, ते गोग्गह्‌ं अणुष्णग्रि्ाः ¡ कान न १-> (अ ) । २ 9 चित्ता ( अ,केञचः व्‌ ) 1 २७६ । भयौर-चूखा १ .सत्तमं अन्पयणे खक आसो! अहारुंदं अहापरिग्णायं वसामो, जोव आसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव साह्म्मिया “एता, तावः* ओगगहं ओग्गिष्डिसामो, तेण परं विहरिस्सामो । २४-से किं परण तत्थ ओग्हुंसि एवोग्गहियसि ? जे ' तत्थ समणाण अव -पदं चा माहणाण वा छत्तए वा, °मत्तए वा, दंडए वा, र्या वा, भिसिया वा, नाकल्या वा, चैकं वा, चिलिमिरी वा, चम्मए्‌ वा, चम्मकोसए वा०, चम्मचछेदणएु वा, तं णो अंतोहितो बाहिं णीणेज्जा, बहियाभो वा णो अतो पवेसेजा सुत्तं वा णं पडिबोहेला, णो तेसि किंचि अप्पत्तियं पडिणीयं करेज्जा । २५ से भिक्ख वा भिक्खणी वा अभिकेखेज्जा अंबवेणं उवागच्च्तिए, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिद्राए, ते ओोग्गह्‌ अणजाणवेज्जा । कामं खलु *“आउसो ] अहाठ्दं अहा- परिण्णायं वसामो, जाव आडउसौ, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओोग्गहं ओग्गिष्दिस्तामो, तेण परं° विहूरिस्सामो । २६-से किं पुण तत्थ ओगहसि एवोग्गहियंसि ? अह भिक्लु* इच्छेना अवं भोत्तए वा, (पायए्‌ वा ?) । सेरज्ज पुण अंबे जाणेज्जा- संडं सपाण सनीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिग-पणग- १--एताव (अ, च, च, ब ) › एतावता ( क, छ ) 1 २--णो सुत्तं वाणं (अ, ब) ३-किचिवि (क,ष,च, न) ४--मिक्खुण (छ )। ओगगह-पडिमा ( वीओ उदहेसो } २७८ दग-मह्य-मक्कडा-°संताणगं । तदहप्पगारं अवं--अफासुयं *अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे कामे संते णो पडिगाहे्ना 1 ,२७-से भिक्खू वा भिक्ुणी वा सेज्जं पूण अवं जणेजा- अप्पंड °अप्पपाणं अप्पवौयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिग-पणग-दग-मद्िय-मक्कडा-०संताणगं अतिरिच्छचिन्नं अवोच्छिनं-अफायुयं *अणेसणिञ्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेजजा 1 २८-से भिक्खू वा भिक्चुणी वा सेज्जं पुण अवं जाणेना-- - अप्पंडं (जाव ७।२७) संताणगं तिररिच्छच्छिनं वोच्छिनं-- फासुयं *एसणिज्जं ति मण्णमाणे कामे संते पडगाेलना । २९-से भिक्लू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा अंवमित्तगं वा, अंबपेसियं वा, अंदचोयगं वा, अंवसाटमं वा, अंवडगल^ वा भोत्तए वा, पायएु वा । सज्जं पण जाणेज्जा- अंवभित्तगं वा (जाव) अंवङ्गलं वा सअंडं (जाव ७1२६) संताणगं-अफासूयं °अणेसणिस्जं ति मण्णमाणे लभे संते° णो पडिगाहेला । ३०-से भिक्लू वा भिक्लुणी वा सेच्जं पुण जाणेजा-- अवभित्तगं वा (जाव ७।२९) अवडगरं वा अप्यंडं (जाव ७।२७) संताणगं अतिरिच्छच्छिन्ं अवोच्छिन्ं-अफामूयं "अणेसणिज्जं ति मण्णमांणे कामे संते° णो पडिगाहेल्ा । ३१-से.भिक्लू वा भिक्लुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्ा- , जंवभित्तगं" वा. (जाव ७।२९}) अंवडगरं वा अर्पंडं (जाव ७।२७) - संताणगं तिरिच्छच्छिन्तं वोच्छि्नं-फासुयं गएसणिल्जं ति मण्णमाणे लाभे संते° पड़गाहेल्ा 1 १-- ° डालग (अ,क,घ,चःछःव)। २-अंव वा अवचित्तगं ( च, च, छ )। २७८ आयार-चूला १ ¦ सत्तमं अन्भयणं उच्चु-पदं रेर्-से भिक्खू वा भिक्लूणी वा अभिकंसेल्ला उच्छुवणं उवागच्छिंत्तए, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिष्टाए, ते ओग्गहं अणुजाणावेल्ञा । कामं खलु आसो! अहार्दं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसौ, जाव आऽसंतस्स ओग्गहो, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग ओग्गिष्डिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो । ` ३३-से कि पुण तत्थ ओग्गहंसि° एवोगगहियंसि ? अह भिक्खू इच्छा उच्छुभोत्तए वा, पायए वा । सेज्जं (पुण?) उच्छं जाणेजा- संडं (जाव ७।२६) °संताणगं 1 तहप्पगार उच्छं -अफायुयं अणेसणिज्जं ति सण्णमाणे काभे संते° णो पडिगाहैजा । ३४-से भिक्ख्‌ वा भिक्खुणी वा सें पुण उच्छं जाणेना-- अप्पंडं (जाव ७।२७) संताणगं अतिरिच्छच्छिन्नं “अवौ- च्छिन्नं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे कामे संते णो पडिमाहेला । ३५-से भिक्खु वा भिक्छुणी वा सेज्जं पुण उच्छं जाणेजा- अप्पंडं (जाव ७।२७) संताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्ं-- फासूयं एसणिज्जं ति सण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्ञा ।° ३९-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकेज्ा* अंतरुच्छुयं वा, उच्छगंडियं वा, उच्छुचोयगं वा, उच्छुसाक्गं वा, उच्छुडगलं वा भोच्तए वा, पायए वा । सेज्जं पुण जाणेा- अंतरुच्छुयं वा (जाव) डगर वा सअंडं (जाव ५।२६) १-ेज्जं पुण भभिकेज्जा (अ ¢ 1 ओगह-पडिमा ( वीओ उटेसो ) २७६ “संताणगं-अफासुयं अणेसमिज्जं ति मण्णमाणे छाभे संते" णो पडिगाहेल्ना । ३७-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेजा- अंतरुच्छयं वा (जाव ७।३६) डगर वा अप्पंडं (जाव ७।२७} “संताणगं अत्तिरिच्छच्छ्नं अवोच्छिन्ं-अफानुय अणेसणिन्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहैजा । ३८-से भिक्लू वा भिक्लुणी वा सेज्जं पुण जणेला- अंतरुच्छुयं वा (जाव ७।३६) उगलं वा अप्पंडं (जाव ७।२७) संताणगं तिरिच्छच्छिन्तं वोच्छिल-फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पड़गाहेजा ।° रमुण-पद ३९-शसे भिक्छु वा भिक्खुणी वा अभिकृंखेज्ञा व्हसुणवणं उवागच्छित्तए, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिष्वाए, ते भोगं अणुजाणावेज्जा । कामं खल्‌ आउसो ! अहाकूदं अहापरिण्णायं वसामौ, जाव आसो, जाव आउसंतस्स ओम्गहो, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग भोग्गिष्िस्सामो, तेण परं विह्रिस्सामो 1 ४०-से किं पुण तत्थ ओम्गहंसि एवोग्गद्धियंसिए अह्‌ भिक्ख इच्छेज्ना व्हसुणं भोत्तए वा. (पायए वा ?) सज्जं पुण व्हसुणं जाणेजा-- सअंडं (जाव ७।२६) संताणगं तहप्पगारं ल्हुमुणं-अफायुणं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेव्वा । ४१-से भिक्स वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ल्सुणं जाणेज्जा- अप्पंडं (जाव ७1२७) संताणगं अतिरिच्छच्छिनं जबोच्छिनं- २२ २८० भायार-चूखा १ : सत्तम अञ्मयणं अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । ४२-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण त्हसुणं जाणेज्जा- अप्पंडं (जाव ७।२७) संताणगं तिरिच्छच्छिन्नं बोच्छिनं- फासूयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे कामे संते पडिगाहेज्जा ° ४३-से भिक्खू वा भिक्ुणी वा अभिकंखेज्जा व्हुसुर्ण' वा, ल्दसुण-कदं वा, ल्हुसुण-चोयगं वा, वहसुण-णाक्गं वा भोत्तए वा, पायएु वा । सेच्जं पुण जाणेन्ना-- ` व्हसुणं वा (जाव) व्हसुण-णालगं * वा सथंडं (जाव ७1२६) °संताणगं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पड़गाहेज्जा 1 ४४-से भिक्स वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा-- ` ल्हसुणं वा (जाव ७।४२) ठ्हसुण-णालगं वा अप्पंडं (जाव ७।२७) संताणगं अतिरिच्छच्छिन्नं अवोच्छिनं--अफायुयं अणेसणिरजं ति मण्णमाणे कामे संते णो पडिगाहेज्जा । ४५-से भिक्खू वा भिक्ुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा-- ल्हसुणं वा (जाव ७।४३) ल्हसुण-णालगं वा अप्पंडं (जाव ७।२७) संताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिननं-फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे छाभे संते° पड़िगाहज्जा । ओगगह-पदं -से भिक्ु वा भिक्खुणी वा आगंतारेसु वा, “आरामागारेषु वा, गाहावह-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा अणुवीई भोगं जाणेऽजा-- जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिहृएए, ते ओगाहं १-लहसुण ( च ) ; लसण (व ) 1 २-- ° डालग (अ, घ )। इ~~ -वीयं (क्वचित्‌) ! ओगह-पडिमा ( वीगो उदेसो } २८१ अणुष्णविञ्जा । कामं खल आसो! अहारुदं अहापरिष्णायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओगहो, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहुं ओगिष्टिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो 1 ४७-से कि पुण तत्थ गोग्गहुंसि° एवोगहियंसि ? जे तत्थ गाहावर्ईण वा, गाहावई पुत्ताण वा इच्चेयाद्‌ जयततणाद! उवाद्कस्म । ओग्गहु-पडिमा-पद ४८-अह भिक्खू जाणेज्जा इमाहिं सत्तहि पडिमाहि ओग्गहं ओगिष्ित्तए ४९-तत्थ खख इमा पढमा पडिमा-से आगंतारेयु वा, आरामा- गारेसु वा, गाहावड-कुलेसु वा, परियावसहेयु वा अणुवीद्‌ ओम्गहं जाएज्जा--जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिश्नए, ओग्गहं अणुष्णविसजा । कामं खलु आउसो { अहाल्दं अहापरिणायं वसामो, जाव आसौ, जाव आउसतस्स ओग्गहो, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओम्गष्ि स्सामो, तेण परं° विहरिस्सामो--पढमा पडिमा । ५०-अहावरा दोच्वा पडिमा--जस्सणं भिक्छुस्स॒एवं भवद्‌ "अहं च खलु अष्णेसि भिक्लृणं अद्ाए ओग्गहं ओगिष्डिस्सामि, अण्णेसि भिक्खृणं ओग्गहे ओग्गहिए" उवष्लिस्सामि"--दोच्वा पडिमा । ५१-अहावरा तचा पडिमा-जस्सणं भिक्सुस्स एवं भवद्‌ "अहं च खलु अण्णेसि भिक्लणं अद्नाए भगहं ओगिष्डिस्सामि १-भायाणार ( क, च ) ; आययाणाई ( घ ) › आयणाइ ( छ ) › आययणा (्)। २-ओग्गहिएु मोस्गहे ( म ) 1 २ आयार-चूला १ ¦ सत्तम.अज्भयं अण्णेसि भिक्लुणं च ओहै ओगहिए णो उवदिस्सयामि" तचा पडिमा । ५२-अहावरा चरत्था .पडिमा-जस्सणं भिक्घुस्स एवं भवह “अह्‌ च खलु अण्णेसि भिक्छृणं अघ्नाए गोमु णो मोगिष्स्सामि अण्णेसि च ओगमहे ओमग्गहिए उवल्लिस्सामि"--चरत्था पडिमा । ५३-अहावरा पंचमा पडिमा-जस्सणं भिक्ख॒स्स एवं भवद्‌, “अहं च खलु अणो अष्टाए ओग्गहुं गगिष्हिस्सामि, णो दोष्ट णो तिष्ट, णो चरण्टु, णो पंचण्टु- पंचमा पडिमा । ५४-अहावरा चछा पडिमा-से भिक्लू वा भिक्चुणी वा जस्सेव ओगगह उवचल्लिएल्ना, जे तत्थ अहा समण्णागए्‌, तंजहा- इवक्कडे वा, “कणि वा, जंतुए वा, परे वा, मोरे वा, तणे वा, कृते वा, कुच्चगे वा, पिप्पले वा०, पलल वा | तस्स काभ संवसेजा, तस्स अकामे उक्कुडुए' वा, णेसजिए वा विहुरेना-- चा पडिमा । ५५-अहावरा सत्तमा पडिमा--से भिक्खू. वा भिक्बुणी वा अहासंथडमेव ओगगहं जाएज्जा, तंजहा-पुढविसिलं वा, कट्सि्ं वा । अहासंथडमेव तस्स काभ संवसेज्जा, तस्स अलभे उक्छरडुभो वा, णेसज्जिओ वा विहुरेज्जा-- सत्तमा पडिमा । ५६-इच्चेतासि सत्तण्टुं पडिमाणं अण्णयरं "पडिसं पडिवज्जमाणे णो एवं वएन्जा-मिच्छ पडिविण्णा खलु एते भयंतारो, अहुमेगे सस्मं पडिवन्ने }- जे एते भयंतारो एयाभो पडिमामो पडिविज्जित्ताणं १--उक्कडए (ज, ब ) 1 ओग्गह-पडिमा { वीओ उदेसो ) २८३ विहरंति, जो य अहमसि एः पडिमं पडिवज्जित्ताणं विहरामि, सव्वे.वे ते उ जिणाणाए उवष्ठिया अन्नोन्न- समाहीए, एव च ण विहरति ।° पंचविह्‌-ओग्गहु-पद ५७-सुयं मे आउस। ते णं भगवया एवमक्वायं- इह खलु थेरे भगवंतेहि पंचविहे ओ महे पण्णत्ते, तजहा- दर्विदोगगहे, रायोग्गहे, गाहावद-अौरगहे, सागारिय-गोगहे, साहम्मिय-ओरगहे । ५८-एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा साममिय, “जं सव्वटेहिं समिए सहिए सया जएज्जाति । -त्ति वेमि° । अदरुमं अन्ययणं ` ठाण-सत्तिक्कयं उण-एसमणा-पदं १-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंवेज्जा* ठाणं ठाइत्तए, से अणुपविसेज्जा "गामं वा, णगरं वा, वेड वा, कव्वडं वा, मडबं वा, पटुणं वा, आगरं वा, दोणमृहं वा, णिगमं वा, आसमं वा, सण्णिवेसं वा०, रायहाणि वा", से अणुपविसित्ता गामं वा (जाव) रायहाणि वा, सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा- ` । ' सअंडं° °सपाणं सबीयं सहरियं ससं सउदयं सउक्तिग- पणग-दग-मद्िय°-मक्कडा-संताणयं, तं तहप्पगारं उणं-अफापुयं अणेसणिज्जं °ति मण्णमाणे° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । २-*से भिक्ख्‌ वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उाणं जाणेजा- अप्पंडं अप्पपाणं अप्पनीयं अप्पहुरियं अष्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिग-पणग-दग-मद्िय-मक्कडा-संताणगं । तहप्पगारे ठाणे पडिलिदित्ता, पमनज्जिर्ता, तभो संजयाभेव ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा । अस्ति पियाए-खाण-पदं ३-सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा- अस्सि पडियाए एगं सामम्मियं समुद्िस्स पाणा, भयाद, १- ° कंेडई (अ, घ) ; ° कखे (च, ब ) । २--गाम वा जाव सण्णवेसं वा (म, क, घ, च, छ, व ) 1 इ--नयड { अर्च ) 1 ठाण-सत्तिक्षयं एतथ जीवाईं, सत्तादं समारन्भ समुदिस्स कीयं पामिच्चं अच्छिन्जं अणिसटं अभिहृडं आहट चतेति । तहप्पगारे ठाणे पूरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, (बहिया णीहडे वा अणीहडे वा), अत्तद्धिए वा अणत्तष्िए वा, परिभुक्त वा अयपरिभूत्ते वा, आसेविते वा अणसेविते वा णो ठाणं वा, सेज्ज वा, भिसीहियं वा चेतेल्ञा । ४-सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा- अरस पडियाए बहवे साहम्मिया समृद्िस्स पाणाई, भूया, जीवाद, सत्तादं समारम्भ समृद्िस्स कीयं पामिच्चं अच्छेन्जं अगणिसट्ं अभिहड आहट चेतेति । तहप्पगारे ठाणे पुरिसंतरकंडे वा अपुरिसंतरकडे वा, (बहिया णीहुडे वा अणीहडे वा), .अत्तद्धिए वा अणत्तद्धिए वा, परिभूते वा अपरिभत्ते वा, आसेवित वा अणासेवित्ते वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चैतेऽजा । ५-सेऽजं पुण ठाणं जाणेज्जा- अस्मि पडियाएु एगं साहस्मिणि समूर्दिस्त पाणाईं, भूया, जीवाई, सत्ताद्रं समारन्भ समुदहिस्स कोयं पामिच्चं अच्छेऽजं अणि अभिहडं आहट चेतेति 1 तहप्पगारे ठाणे पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा (बहिया णीहडे वा अणीहडे वा), अत्तद्टिए वा अणत्तद्विए वा, परिभुत्ते वा अपरिभत्ते वा, आसेविते वा अणासेविते वा णौ ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेला । ६-सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा- अस्स पडियाए बहवे साहम्मिणीगो समृदिस्स पाणा, आयार-चूका १ टमं अजथ भयाद, जीवाद, सत्तां समारल्भ समृदिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसद्ं अभिहडं आहट चेतेति। ` तहप्पगारे ठणे पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा (बहिया णीहडे वा अगणीहृडे वा), अत्तष्टिए वा- अणत्तचधि वा, परियृत्ते वा अपरिभृत्ते वा, आसेविते वा अणासेविते वाणो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेा 1 समण-माहणाई समरहिस्स-ठाण-पद -से भिक्ख॒ वा भिक्छणी वां सेज्जं पृण ठणं जाणेला- बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समुदिस्स पाणा, भया, जीवा, सत्ताई समार्म समुदिस्स कीयं पामिच्चं. अच्छेज्जं अणिसदट्रं अभिहडंः आहट्टु चेएड । ˆ तहप्पगारे ठणे पुरिसंतरकंडे वा अपुरिसंतरकडे वा, (बहिया णीहडे वा अगीहडे वा), अत्तषिएु वा अणत्तद्विए वा, परिभूत्ते वा अपरिभत्ते वा, आसेविए वा अणासेविए वाणो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा. चेतेज्ा 1 ८-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उाणं जाणेजा- बहवे समण-माहण-अतिहि-किवरण-वणीमए समुदिस्स पाणा, भूयां, जीवाद, सत्तां - समारभ समुद्िस्सं कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अभिसं अभिहडं आहट चेएइ 1 तहप्पगारे ठाणे अपुरिसंतुरकडे, (अबहिया णीहडे) अणत्तद्धिए, अपरिभृत्ते, अणासेविए णो ठाणे वा, सज्जं वा गिसीहियं वा चेतेजा । -अह पुणेवं जाणेजा--पुरिसंतरकंडे, (हिया णीहडं) अत्तष्टिए्‌, परिभूते, आसेविए पडिकेहित्ता, पन्ना तमो संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं ` वा चेतेा 1 ५५ लण-सत्तिक्षयं ` श २०८७ परिकिम्मिय-टाण-पदं । ` “त १०-से भिक्लु वा भिक्खुणी वा. सेज्जं पण ठणं जाणेज्ा- ` अस्संजए भिक्सु-पडियाए कडिए वा, उक्कबिए वा, छने , वा, छिन्ते वा, बहे वा, महे वा, समह वा, संपधुमिए वा। तहप्पगारे ठणे अपुरिसंतरकडे, (भबहिया णीहडे) अणत्तद्टिएु, अपरिभत्ते, अणासेविए णो ठाणं वा, सेज्जं वा णिसीहियं वा चेतेजा 1 ११-अह्‌ पुणेवं जागेला-परिसंतरकड, (बहिया ीहड), उन्तच्चिए, परिभृत्ते, आसेविए पडिलेहित्ता, पमजित्ता, तओ ". संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्लो । ` १२-से भिक्लू वा भिक्ुणी वा सेज्जं पुण ठाणं जाणेला- अस्संजए भिक्खु-पडियाए खुहियाभो दुवारियाभो -मृहल्छियाओ कुज्जा, - महव्छियांओ दुवारियाो खुड़ियामो कुज्जा समा सिज्जाओो विसमाओ कुज्जा विसमाओ सिज्जाओ समाओ कुज्जा,. पवायाओ सिज्जाओ णिवायाओो कुज्जा णिवायाओ सिज्जाओ पवायाओ कुज्जा अतो वा, बहि वा, ठाणस्स हरियाणि छिदिय-छिदिय दायिय-दाल्िय संथारग संथरेजा, बहिया णिण्णक्खु । तहप्पगारे ठणे अपुरिसंतरकंडे, (अबहिया णीहडे) अणत्तद्धि, अपरिभत्ते, अणसेविते णो ठाणं वो. सेज्जं वा णिसीहियं.बा चेतेज्जा । १३-अहु पणेवं जणिज्जा---प्रिसंत्तरकडे, (बहिया णीहडे) अन्तदि, परिभृत्ते, आसेविए पडिकहित्ता, पमज्जत्ता, तभो 1 संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेजा । २३ र्ण आयार-चूला १: अमं भग्यं वहियानिस्सारिय-शण-पदं + ~ १४-से. भिक्खू वा भिक्छुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा- - अस्संजए भिक्खु-पडिवाए, उदगप्पसूयाणि. कंदाणि वा ; , मूलाणि वा, . (तयाणि वा?), पत्ताणि वा, पुप्फाणिवा ~ फङाणि.वा, वीयाणि. वा, हस्माणि वा-ढणाभो ठणं ~ साहरति, बहिया वा णिष्णक्सु । तहप्पगारे ठाणे अपुरिसंतरकडे, ~ (अनहिया - णीहृडे) ,-~- , अणत्तघ्चिए्‌, अपुरिभृत्ते, अणासेविते णो ठाग्रं वा, सज्जं वा, गिसीहियं वा चेतेभ्जा । १५-अह्‌ पुणेवं जाणेजा-पुरिसंतरकडे, (बहिया णीहडे), अत्तद्विए परिभत्ते, आसेविए, पडिलेहित्ता, पमज्जित्ता, तभो संजयामेव < छणं वा, सेज्जं वा णिसीहियं वा चेतेज्जा ।° ठण-पडिमा-पं १६-इच्चेयादं आयतणादं* उवातिकम्म, अह भिक्ु इच्छेन्ना चरर्हि पडमार्हि ठाणं ठाइत्तए । १७-तस्थिमा पटमा पञ्मि--अचित्तं खलु उवसज्जेज्जा, अवलेल्ा, काएण _ विपरिकम्मादी, सवियारं ठणं ठाईस्सामि त्ति पढमां पडिमा । १८-बहावरा दोच्चा पड़िमा-मचित्तं खलु उवसनज्जेज्जा अवख्वेजा, काएण विपरिकम्मादी, णो सवियारं ठाणं ~ ठइस्सामि त्ति दोच्वा पडिमा । १९-बहावरा तच्चा पडिमा-अचित्तं खलु उवसष्जेज्जा, णो अवखेबेज्जा, णो काएण विपरकिम्मादी, णो सवियार ठर " ठाइस्सामि त्ति तच्चा पडिमा । १--आयाणाड { कः ध, च ) 1 म-जवसञ्जिस्सामि ( चू )। छण-पत्तिक्यं ९८६ २०-अहानरा चेउत्था पडिमा-अचित्तं खलु" उवसज्जेज्जा, णो अवलबेल्ना, णो काएण विपरिकिम्मादी णोः सविथारं ठाण ठञ्स्सामि, वोसट्काटे वोसद्रकेसं-मंसु-लोम-णहे सण्णिरुदधं वा ठाणं ठइस्सामि त्ति चठत्था पडिमा । २१-इच्चेयासि चरण्टं पडिमाणं *अण्णयरं पडिमं पडिवज्जमाणे ` णो एवं वएजा मिच्छा पडिवण्णा खलु एते भय॑तारो, अहुमेगे सस्मं पडिवन्ते । "जे एते भयंतारो एयाओ पडिमाभौ पडिवज्जित्तागं विहुरंत्ि, जो य अहमंसि एयं पडिमं पडिवज्जित्ताणं विहरामि, सव्वे वे ते उ जिणाणाए उवद्िया अन्नोन्नसमाहीए एवं च णं विहरति । संथारग-पच्चप्पण-पद २२-से भिक्लू वा भिक्छूणो वा अभिकंखेज्ा संथारगं ` पच्चप्पिणित्तएु । सेज्जं पुण संथारगं जाणेजा-सञंडं सपाणं सनीयं सहरियं संउसं सउदयं सउत्तिग-पणग-दग-मट्िय- मक्कडा-संताणगं, तहप्पगारं संथारगं णो पच्चप्पिणेजा 1 '२३-से भिक्लू वा भिक्लुणी वा अभिकलेज्जा संधारणं ` प्रच्चप्पिणित्तए ! सेज्जं पुण संथारगं जणेऽ्जा--अप्यंडं ` अस्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्युदयं अप्युत्तिग- पणग-दग-मद्धिय-मक्कडा-संताणगं, ` तहप्ारं संथारगं पडिलेहिय-पडिकलेहिय, पमज्जिय-पमज्जिय, अयाविय- . आयाविय, विणिद्धुणि्य-बिभिदुणिय, तओ ` संजयामेव पच्चप्पिणेञ्ना 1 ` ` ` "4 १-खलु णो (क, ब} । २६० आयार-चूखा १ : टमं अन्पं उच्त्रार-पास्वणमूमिनृदं ;, .-~ -, : छ २४-से भिक्खू, वा .भिक्खणी-. वा, समाणे', वा चसमाणे वा . गामाणुगामं ददज्जमाणे वा पुव्वामेव णं प्रण्णस्स उच्चार- पासवणभूमि पडिलेहिञ्जा 1 । भ-केवटी ब्रुया-- आयाण मेयं अपडिलेहियाए्‌ उच्चार-पासवणं- :- ,, भूमिए, भिक्खू वा भिक्खुणी वा,--राओ वा विधारे वा उच्चार-पासवणं परिटवेमाणे पये वा पवडेज वा, , . से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा, हत्थं वा, पायं वा, बाहं वा, .ऊर वु, उदरं वा, सीस वा,, अन्तयरं वा, , कायंसि इंदिय-जायं लृसेञज वा,. पाणाणि वा, भूयाणि वा, जीवाणि वा, सत्ताणि वा अभिहणेज्जं वा, वत्तेञज वा, ठेसेज्ज वा संघसेज्ज वा, संघटन वा, परियवेज्ज वा, किलामेल्ञ वा ठाणाञो ठाणं संकामेज वा, जी विआमो ववरोवेज्ज वा'। “ ` ~ , अह भिक्खृणं पृव्वोवदिा एस पदन्ना, एस है, एसःकारणं ` * , एस उवएसो, जं , पुव्वामेव -पण्णस्स उच्चार-पासवणक्ुमि -पडिलेहेज्जा ! प ण-विहि-पदं ~ˆ ), ' २६-से भिक्ल्‌ वा भिक्खुणी वा अभिकचेला सेज्जा-संथारग-मूरमि , , पड्ेहित्तए, , णण्णत्थ आयरिएण वा उवज्फाएण वा पवृत्तीए वा, येरेण वा, गणिणा वा, गणहुरेणु वा गणावच्छेदएण वा, बकतेण वा,. बुडटेण, वा, सेदहेण वा, ५ गिकणिण वा, आएसेणवा, ; 4 ;."\, अंतिण वा, मज्छेण वा,.समनेण-वा, विसमेण वा, पतरम वा णिवाएण वा तओ संजयामेव पड़लिहियपृडिकेिए, पमज्िय-पमलिय बहु-फासुयं सेजा-संथारगं संथरेलना । , ह | ८ उणसत्तिक्रयं- `+) २६१. परेछ~से भिक्खू.वा, भिक्छुणी ; वाःगबहु-फायु्“ सेज्जा-संथारगं संथरेत्ता अभिकंदेजा,.बहु-फासुए सेजा-संधारए"दुरुहित्तए, 1 सेः भिक्लू-.वाः' शरिक्ुणी वा ` बहु-कासुएुः सेज्जा-संथारए २४. दुरुहुमाणे, से पुव्वौमेव.ससीसोवरियं;क्रायं, पाए. य .पमजिय- पमज्जिय, {तओ “ संजयेमेव -बहु-फासुए ,.सेज्जा-संथारगे <“ प्दुरुहेना, र चा, तञ; संजयामेव्‌ ,बहु-फायुएःसेन्नाःसंथारए चदरेज्जा । ; ५ + 0 ^ ८ ` ।रत-से-.भिक्लू वा भिक्छुभी वा बहु-फासुए सेजा-संथारए चिहमाणे, णो अण्णमण्णस्स हृत्येण हत्थं, पाएण पायं, काएण कायं, आसाएज्जा । से अणासायमाणे, तभो संजयामेव बहु-फासुए सेजा-संथारए चिद्रेज्जा । २९-से भिक्ल्‌ वा भिक्खुणी वा उस्सासमाणे वा, णीसासमाणे वा, कासमणे वा, छीयमाणे वा, जंभायमाणे वा, उडड्ुए वा, वायणिसरगे वा करेमाणे, पृव्वामेव आसय वा, पौसयं वा, पाणिणा परिपिदहित्ता, तभो संजयामेव ऊससेज वा, णीससेज्ज वा, कासेज्ज वा, छीएज वा, जंभाएज वा, उडङ्डयं वा, वायणिसग्गं वा, करेज्जा । ३०-से भिक्खू वा भिक्ुणी वा-- समा वेगया सेज्जा भवेज्जा, विसमा वेगया सेजा भवेज्जा, पवाता वेगया सेज्ा भवेजा, णिवाता वेगया सेज्ा भवेज्जा, ससरक्खा वेगया सेज्जा भवेजा, अप्प-ससरक्खा वेगया सेजा भवेज्जा सदंस-मसगा वेमया सेज्ना भवेज्जा, अप्प -दंस-मसगा वेगया २६२ ओर्यार-चूखा १ : अमं अन्मयणें सेज्जा ` भवेज्जा, सपरिसाडा वेगया सेज्जा भवेज्जा ˆ जपरिसाडा वेगया सेज्जा भवेज्जा : ^ सडवसम्गा वेगया सेज्जा भवेज्जा, गिस्वसग्गा वेगयो सेजा -: , भवेज्जा, तहप्पगाराहि सेज्जाहि संविज्जमागाहिः पमगहिय- ; ` तरागं विहरेज्जा, णेव किचिवि वएजजा' । ` ३१-एये खलु तस्स भिक्वुस्स वा भिक्ुणीएं वा सामगियं, "जं सव्वं समिए सहिए सया० जएजासि । - -- त्ति नेमि ~ ---------------~ # -१--चरेज्ना { अ) नवमं अज्भयणं णिसीहिया-सत्तिककियं ` - णिसीहिया-एसणा-पदं -से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेला गिसीहियं गमणाए, सेज्जं ` पुण गिसीहियं जाणेज्जा- संअंडं “सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सदयं सरक्तिग-पणग- दग-सट्िय-° मक्कडा-संताणयं तहप्पगारं णिसीदहियं-अफासुयं अणेसणिज्जं °ति मण्णमाणे काभे संते णो चेतिस्सामि' (चेएजा ?) । न -से भिव वा भिक्खुणी वा अभिकखेला णिसीदहियं गमणाए, सेज्जं पुण णिसीहियं जाणेज्जा- अप्पंडं *अप्पपाणं अप्पनीयं अप्पहरियं अप्पोसं -अप्पुदयं अप्मुत्तिग-पणग-दग-मद्विय-० मक्कडा-संताणयं, तदहप्पगारं णिसीदहियं-फासुयं एसणिज्जं °ति मण्णमणे° - काभे संते चेतिस्सामिः (चेएल्ना ?) । अस्सि पडिियाए-णिसीदहिया-पदं - ३-*सेज्जं पुण णिसीदहियं जाणेजा- अस्सि पडियाए एगं साहम्मियं समृिस्स पाणाई, भूयाई, जीवार, सत्तादं समार्म समुदिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसदहं अभिहडं आहट चेतेति । १-से(ज,केघःच,व)। २-यत्तौ "परिगृह्णीयात्‌ इति संखृत-र्यं विते तिस्सामि' इति पाठं सम्मवतो लिपिदोषेण जातः । प्रकरणानुसारेणात्र कोप्ठकान्तर्गत पाठो युज्यते ३-यृत्तौ शृष्ठीयात्‌ इति सस्छृत-रूपं विद्यते धेतिस्सामि' इति पाठः सम्मवतो लिपिदोपेण जातः प्रकरणानुसारेणात कोष्ठकान्त्मत पाठो युज्यते 1 २६४ आयार-चूखा १ नवमं अन्य तहृप्पगाराए गिसीहयाएु परिसंतरकडाए वा अपुरिसंतर- कंडाए वा, (बहिया णीहडाए वा भणीहडाए वा), अत्तद्वियाए वा अण्च रा परि वा अपरिभूत्ताए वा आसेवियाए वा अणासेवियाए वा णो गणं वा, सेज्जं वा णिसीदियं वा चतेज्जा । 4 711. फणि तरणि 11 प ना ४ अस्ति पाए बहवे पाहर्मिया मुरस्य पाणा, ूयाई, ग श्वोई, सततां समालम समूदिसत कीयं पामि अच्छे अणितं मिहं आहट्ट॒ चेदेति'। , ' , >" ^ : शरा सीहा पस्सितसैए च अपरिसर कंडाए -वा (बहिग्रा गीहडए वु अण भणहूडाएः वा, ५ अतदिव" अणतेद्निाए त्रा पत वां ब्रपरिगृाए वा, असेियाए वा अणारैवियाए व्‌ णो. ठण्‌ वौ, सन्नं शश्च पिस ध चतेजयां 1; ४४ रा निरि पा १, भसे पू सीदं जोगिन; ' 1 अस्तिं च्वि एगं भाहम्मिणि सरिस रगु भूया, जीवाईं, सत्तादं समार समुदिस्स कीयं धामिन अच्छेजं अणिषदरं अमिहडं गहट्टु तरेतेति 1, ~ + ~ -तहूपग्रए,;परिसीहियाए,परिसंतरकडाए वा अपरिसर ,-कडाएव्रा ्हियाःगीहहाएता-अीहडाएुत्रा)9 अत्द्रियाए वा अण्त्ष्ठियाए ब, परित्ाए : बा अपृदत्तए वा आसेवियाए वा अणासेवियाए वा णो ठणं वा, सेष्जं वा णिसीदियंत्रा-चेतेला 1 -- 3" ˆ !` 7 ' =“ रज्जुं णिसीहियं जाणेन्नी ~ ^ । ' रि पि महे साहम्मिणीगो- समृदिससपोणाई, णिसौहिया-पत्तिक्कयं २६५ भुयाईं, जीवाईं, सत्तादं समारन्भ समुदिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसदटं अभिहडं आहट्टुं चतेति । तहप्पगाराए गिसीदहियाए पुरिसंतरकडाए वा अपुरिसंतर- कडाए वा, (बहिया णीहुडाएं वा अणीहडाए वा), अत्तद्वियाए वा अमत्तद्वियाए वा, परिभृत्ताए वा अपरिभृत्ताए वा, आसेवियाए वा अणासेवियाए वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेल्ना । समण-माहणादइ-समुरिस्स-णिसीहिया-पदं ७-से भिक्लू वा भिक्लुणी वा सेऽजं पूण णिसी हियं जाणेना- बहवे समण-माहूण-अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समूदिस्स ॒पाणाईं, भूयां, जीवाद, सततां समारन्भ समुदिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेन्जं अणिसटं अमिहडं आहट चेएइ्‌ 1 तहप्पगाराए णिसीहियाए पुरिसंतरकडाए वा अपुरिसंतर- कंडाए वा, (बहिया णीहडाए वा अणीहडाए वा), अत्तष्वियाए वा अणत्तद्धियाए वा, परिभूत्ताएवा अपरिभृत्ताए वा, आसेवियाए वा अणासेवियाए वा णो ठणं वा, सेज्जं वा, णिसीर्हियं वा चेतेजा । ८-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण गिसीहियं जाणेजा-- , बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए समृदिस्स पाणाई, भूयाईं, जीवां, सत्तां समारन्म समुदिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्रं अभिहडं आहट्टु चेएइ । तहप्पगाराए गिसीदहियाए अपृरिसंतरकंडाए, (अवहिया णीहडाए), अणत्त्धियाए्‌, अपरिभत्ताए, अणसेवियाए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्ना । २४ २६६ 9 भायार-चूला. १ ;' नवम्‌ अज्मयणं ९-अह्‌ पुणेवं जाणेला--पुरिसंतरकडा (विया णीहडा), अत्तद्विया, परिभृत्ता, आसेविया, पडकिहित्ता, पमजित्ता, तभो संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेत्ना । परिकम्मिय-णिसीहिया-पदं | १०-से भिक्खू वा भिक्लुणी वा सेज्जं पुण गिसीहियं जाणेज्ना- अस्संजए भिक्खु-पडिमाए कडिए वा, उक्कबिए वा, छने वा, लित्तेवा, घद्े वा, मदे वा, संहे वा, संपधूमिए.वा । तह्प्पगाराए णिसीहियाए अमुरिसंतरकडाए (अवहिपरा. णीहडाए), अणत्तच्वियाए, अपरिभुत्ताए, अणासेवियाए णो ठाणं वा,. सेज्जं वा; णिसीहियं वा चेतेज्जा. । , ११-अह्‌ पुणेवंजाणेज्जा--पुरिसतरकडा (बिया णीहडा), अत्ता, परिभुत्ता, असिविया पडिकेरहिता, प्ज्जित्ता, तओ संजयामेव ठणं वा, सज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा । १२- से भिवलु वा भिक्ुणी वा सेन्जं पुण णिसीहियं नाणेन्ना- अस्संजए भिक्डु-पडियाए सखुह्ियाओ दुवारियाओो महल्ठियाभो कुर्जा, ` महस्छियाओो दूवारियाभो सुदिडुयामो कुज्ना, , समाभो सिञ्जाओो विसमाभो कुज्जा, विसमाभो सिज्जाओ समाभो कुज्जा, पवायाओ सिञ्जाओ णिवायाओ कुज्ज, गिवायाओ सिज्जाभो पवाथाओ कुज्जा, अंतोवाबहिवा भिसीहियाए हरियाणि विदिय-िदिय, † ` दाछिय-दाछिय संथारगं संथरेज्जा, बहिया वा णिण्णक्चु । । तह्यगाराए भिसीहियाए अपुरिसंतरकडाए, (अबहिया णिसीहिया-सत्तिक्कंय ९९७ णीहडाए), अणत्तद्वियाए, अपरिभृत्ताए, अणासेवियाए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीष्ियं वा चेतेजा । १२-अह्‌ पुणेवं जाणेजा--पुरिसंतरकडा, (वहिया णीहुडा), अत्तद्धिया, परिमुत्ता, आसेविया पडिकेरित्ता, पमजित्ता, । तओ संजयामेव ठाणं वा, सेऽजं वा, णिसीहिय वा चेतेजा । बदहियानिस्सारिय-णिसीदिया-पं १४-से भिक्छू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण जणेन्जा-- अस्संजए भिक्सु-पडियाए उदगप्पसूयाणि कंदाणि वा, मूाणि वा, (तयाणि वा?), पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणिवा ठणाभो ठणं साहरत्ति, बहिया वा गिण्णक्खु । तहप्गाराए णिसीहियाए अपुरिसत्तरकडाए, (अवहिया णीहडाए), अणत्तघ्धियाए, अपरिभृत्ताए, अणासेवियाए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेजञा । १५-अह्‌ पुणेवं जाणेजा--पुरिसंतरकडा, (वहिया णीहडा), अत्तद्धिया, परिभूत्ता, आसेविया पड्लिहित्ता, पमजित्ता, तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, गिसीदहियं वा चेतेजा 1° १६-जे तत्य दुवग्गा वा त्िवम्गा वा चउवग्णा वा प॑चवगगा वा अभिसंधारेति णिसीहिय गमणाए, ते णो अण्णमण्णस्स कायं आलिगेज्ज वा, विलिगेज्ज वा, चुंमेज्ज वा, दति णहेहि वा अच्छिदेज्ज वा, विच्छिदेऽज' वा । १७-एयं खलु तस्स भिक्लुस्स वा भिक्छुणीए्‌ वा सामग्गियं, जं सव्वहहि समिए सदहिए सया जएज्जा सेयमिण मणेज्जासि । त्ति वेमि 1 १~बोञ्छि० (च) )] दसमं अज्यणं उच्चारपासवण-सक्तिक्कयं पायनपुंछण्दं ` १-से भिक्स वा भिक्खुणी वा उच्चारपासवण-किरियाए उन्वाहिन्नमाणे* सयस्स पायःपुदधणस्स असर्दए तथो पच्छा साह्म्मियं जाएल्ना 1 थंडिल-पदं २-से भिक्खु वा भिक्लुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेजा- सथंडं सपाणं “सनीय सहरियं सउसं सउदयं सउकत्तिग-पणग- दग-मद्विय-° मक्कडा-संताणयं, तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपास्वणं वोसिरेना 1 ३-से भिक्ख्‌ वा भिक्सुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेजा-- अप्पमाणं अप्पबीअं “अप्पहुरियं अम्पोसं अण्युदयं अप्पुत्तिग- पणग-दग-मद्विय-° मक्केडा-संताणय, तहप्पगार॑सि थंडिकंसि उद्वारपासवणे वोसिरेजा । ४-से भिक्ू वा भिक्छुणी वा सेज्जं पुण थंडिरं जाणेजा- अस्सि पडियाए एगं साहम्मियं समुद्िस्स “पाणादं, भयाद जीवाद, सत्तादं समारभ समुदिस्छ कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसृद्रं अभिहडं आहट उदेसियं चेएद, तहप्पगारं थंडिलं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, (बहिया णीहडं वा अणीहडं वा}, अत्तघ्ियं वा अणत्त्धियं वा, परिभुक्तं बा अपरिमुत्तं वा, अभेवियं वा अणासेवियं -्-ज्नन्(क)। ° (क), उत्रारपासवण-सत्तिक्कयं २६६ वा। अण्णयरंसि वा तहुप्पगारंसि थंडिरंसि णो उच्रार- पासवणं वोसिरेज्ना । ५-से भिक्स वा भिक्छुणो वा सेज्जं पुण थंडिकं जणेला- अस्सि पडियाए बहवे साहम्मिया समृदिस्स पाणां (जाव १०।४) उदेसियं चेएइ । तहप्पगारं थंडिर पुरिसंतरकडं वा (जाव १०।४) अणासेवियं वा) अण्णयरंसि वा तहषपगारंसि थंडिरंसि णो उन्वार- पासवणं वोसिरेजा । ६-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिरं जाणेजा- अस्सि पडियाए एगं साहम्सिणि समुदिस् पाणादं (जाव १०।४) उदसियं चेएद्‌ तहप्पगारं थंडिं पुरिसंतरकडं वा (जाव १०।४) अणासेवियं वा। अण्णयरंसि वा तहृप्पगारंसि थंडिरंसि णो उचार- पासवणं बोसिरेजा । ७-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सज्जं पुण थंडिरं जाणेजा- अस्सि पडियाए बहवे साहम्मिणीओ समुरिस्स पाणां (जाव १०।४) उद्ैसियं चेएद 1 तहप्पगार थंडिक पुरिसतरकडं वा (जाव १०।४}) अणसेवियं . वा! अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिकसि णो उच्वार- , पासवणं वो सिरेजा । ८-से भिक्खु वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिकरु जाणेजा-- अस्सि पड़याए बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय, समूदिस्स पाणां (जाव १०।४) उदेसियं चेएइ । ९५० ध्यार-धूला १ : दतमं अन्मयणं तहप्पगारं थंडिकं पुरिसंतरकडं वा (जाव १०।४) अणासेवियं वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिरृंसि णो उक्वार- पासवेणं वौसिरेज्ञा 1 &-से मिक्त वा भिक्खुणी वा सेरजं पुण थंडिङं जगेला- बहवे समण-माहण-किवण-वणीमग-अतिही' समुदिस्स पाणाई (जाव १०।४} उदेसियं चेएड्‌ । तहुप्पगारं थंडिरं अपुरिसंतरकडं, [(बहिया अणीहड), *अणत्त्टियं, अपरिभृत्तं, अणासेविययं 1° अण्णयरसि वा तहप्पगारसि थंडिरंसि णो उच्चवार-पासवणं वोसिरेज्ना 1 १०-अह्‌; पुणेवं जाणेजा--पुरिसंतरकडं, (बहिया णीहड), *उत्तद्धिये, परिभत्त, आसेवियं०। अण्णयरंसि वा तहृप्पगारंसि थंडिकंसि उच्चार-पासवणं विरजा । ११-से भिक्खू वा भिक्डुभी वा सेजं पुण थंडिलं जाणेज्जा-- मरस्सि पडियाए कयं वा, कारियं वा, पामिच्चयं* वा, छ्णं वा, घटं वा, महू वा, छित्तं वा, संमहं वा, संपधुमियं वा | . . अण्णयरसि वा तहप्पगारंसि थंडिकंसि ण उच्चारपासव्णं वोसिरेज्ञा । १२-से भिक्ख्‌ भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिर जाणेजा-- इह खलु गाहावई वा, गाहावदपुत्ता वा कंदाणि वा, मूलाणि वा, *(तयाणि वा ?)}, पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वाण हरियाणि वा अंतातो वा बार्ह णीहरंति, बहिथोओोः वा अतो साहरंति) अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि ५. थडिकंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्ना 1 `` पुटे (4।२७. २८.५१०) जस्य सब्द-निन्यासो भिन्नोस्ति। २--पमाच्चियं (अ, क, घ, च ) । होतो ( ॐ क ) 1 उञ्रारपाक्षवण-सत्तिक्कयं ३०१ १३-से भिकखु वा भिवलुणौभ्वा-सेज्जं पुण थेडिलं जाणेन्ना- संधंसि वा, पीठंसिः वा, मंचंसि वा, मासि वा, अदटुंसिः वा, पासायंसि वा 1 अष्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा | १४-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा-- अणंतरहियाए पृढवीए, ससिणिद्धाए पुढवीए, ससरक्खाए पढवीए, मद्वियाकडाए२, चित्तम॑ताए सिलाए, चित्तम॑ताए लेलुयाए, कोखावासंसि वा* दास्यसि जीवपद्द्धियंसि °सअंडसि सपाणंसि सवीअंसि सहरियंसि सउसंसि' सउदयंसि सउत्तिग-पणग-दग-मद्विय-° मक्कडा संताणयंसि। अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिकसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेजञा। १५-से भिक्लु वा भिक्ञुणी वा सेज्जं पुण थंडिकलं जाणें -- इह खलु गाहावरई वा, गाहावद्-पुत्ता वा कंदाणि वा, मूलाणि वा, (तथाणि वा?), पत्ताणि वा, पुप्फांणि वा, फलाणि वा०, बीयाणि वा परिसाडसु वा, परिसाडिति वा, परिखाडिस्संति वा 1 अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिकंसि णो उच्चारपासवणं वौसिरे्ना । १६-से भिक्ू वा भिक्खुणी वा सज्ज पुण थंडिक जाणेजा-- इह खलु गाहाव्ई वा, गाहावद्-पुत्ता वा सालीणि वा, वीहीणि वा, मूग्गाणि वा, मासाभणिवा, तिलाणि वा, कुरुत्थाणि वा, जवाणि वा, जवजवाणि वा, पतिरिसु वा, १--दम्मियतलंसि (ध )। २--एष पाठो निशीथस्य ( १४।२३ ) सूत्रानुसारेण स्वीकृतः । सर्वासु आचाराङ्खप्रतिषु मह्या मक्कडाए' इति पारोस्ति । असौ न जुद्ध प्रतिभानि । ३-अस्मिन्‌ सूत्रे प्रतिपु "वा" शब्दस्य प्रयोगा अधिका द्यन्ते, यथा वा दार्वनि वा जीवपडद्धियसि वा" किन्तु १।५१ सूत्रानुमारेण "वा" शब्दं सङृदेव युज्यते.। - ३०२ भायार-चूखा १: दमं अर्फयणं पतिरिति वा“ पतिरिस्संति वा। अण्णयरंसिं वा तहप्पगारंसि थंडिकंसि णो उच्वारपासवणं बोसिरेला । १७-से भिक्खू वा भिक्छुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जणेज्ा-- आमोयाणि वा षसाणिं वा, भिलुयाणि वा, विज्जलाणि वा, खाणुयाणि वा, कडवाणिः वा, पगत्ताणि वा, दरीगि वा, पदु्गाणि वा, समाणि वा, विसमाणि वा। अण्णयरंसि वा तहप्पगारसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेजा । १८-से भिक्खु ता भिक्ुणी वा सेज्जं पुण थंडिकूं जाणेज्जा- माणुस-रेधणाणि वा, महिस"करणाणि वा, वसभ-करणाणि वा, अस्स-करणाणि वा, कुक्कुड-करणाणि वा, कलावेय- करणाणि वा, वटरय-करणाणि वा, तित्तिर-करणाणि वा, कवोय-करणाणि वा, कपिजंल-करणाणि वा । अण्णयरेसि वा तहप्यगारंसि थंडिरंसि णो उक्चारपासवणं वोसिरेज्जा । १९-से भिक्ख वा भिक्खुणी वा सेज्जं पण थंडिकं जाणेज्ना-- वेहाणस-दरणेषु वा, गिद्धपिद्-हाणेसु वा, तरूपडण-दाणभु वा, भेर्पडण-ईणेचु'* वा, विसमक्ठण-हाणेयु वा, अगणिफंडग-इणेसु* वा । अण्णयरंसि वा तहप्पयारंसि (थंडिङंसि १) णौ उच्चारपास्षवसणं वोसिरेज्जा । २०-से भिक्ल्‌ वा भिक्गो वा सेज्जं पुण थंडिरं जाणेजा- आरामाणि वा, उन्जाणाणि वा, वणाणि वा, वणसंडाणि वा, देवकुाणि वा, समाणि वा, पवाणि वा । अण्णरंवि वा तहप्पगारंसि थंडिकंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेजा । न १-खद्रसु वा परति वा (घ, च,८)1 २ूाण (अ, ब)) य अ, च, छ) 1 ४--> (छ ) । ५- ° फड्य-० (क,ख, घः च ) ; ° पण (ध) 1 उचारपासवण-सत्तिक्षयं ३०३ २१-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिकं जाणेला- अट्ारयाणि वा, चरियाणि वा, दाराणि वा, गोपुराणि वा । अण्णयरस्ि वा तहृप्पगारंसि थडिकसि णो उन्चार- पासवणं वोसिरेज्ञा । २२-से भिक्लू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेजा-- तियाणि वा, चउक्काणि वा, च्च्चराणि कवा, चउमृहाणि वा । अण्णयरंसि वा ॒तहप्पगारंसि थंडिकंसि णो उच्चार पासवणं वोसिरेज्ञा । २३-से भिक्लु वा भिक्ुणी वा सेज्जं पुण थंडिरं जाणेजा-- इगाल्डाहेसु वा, खारडहिसु वा, मडयडाहेसु वा, मडय- धूभियासु वा, मडयचेदएयु वा। अण्णयरंसि वा तहुप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेजा । २४-से भिक्खू वा भिक्लुणी वा सेज्जं पुण थंडिरुं जाणेला-- णदीआययणेसु वा, पकाययणेसु वा, ओधाययणेसु वा, सेयणपहंसि^ वा। अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्ना । २५-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिकुं जाणेजा- णवियायु वा मद्भियखाणियासु, णवियासु वा गोप्यलेहियासु, गवायणीसु" वा, खाणीसु वा । अण्णयरंसि वा तदृप्पगारंसि थंडिकंसि णो उच्वारपासवणं वोसिरेजना । २६-से भिक्खू वा भिक्चुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जणेजा- उागवच्चंसि वा, सागवच्चंसि वा, मुलगवच्चंसि वा, १~ ° वहि { ); ° पय (छ)। २्-गवा म्‌(ञ,घ)। र ३०४ आयार-चूखा १ ¦ दसमं अज्भय॑ण हृत्थकरकन्चंसि वा । अण्णयरंसि वा तहृप्पगारंसि धंडिलंसि ` णौ उच्चारपासवणं वो सिरे्ा । ` २७-से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्जं पुण थंडिलं जणिजा- असणवणंसि वा, सणवणंसिं वा, धायइवणंसि वा, केयद्‌- वणंसि वा, अंबवणंसि वा, असोगवणंसि वा, णागवणंसि , त्रा, पुष्णागवणंसि वा" 1 अण्णयरेसु वा तहप्पगारेषु पत्तोवएसु वा; पुष्फोवएसु वा, फलोवएसु वा, बीभोवएसु वा, हरिओवएसु वा णो उच्वारपासवणं वोसिरे्ला ।° २८-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सपाययं वा परपाययं वा गहाय - से तमायाए एगंतमवक्कमेला अणावायंसि -असंलोयंसिः अप्यपाणंसि °अप्पबींसि अप्पहरियंसि अप्पोसंसि अप्पुदयंसि अप्पुत्तिग-पणग-दग-मष्टिय-०मक्कडा-संताणयं सि अहारामंसि वा उवस्सयंसि, तमो संजयामेव उच्वारपासवणं वोसिरेज्जा* । । . से तमायाए एगंतमवक्कमे अणावायंसि (जाव) मक्कडा- संताणयंसि अहारामंसि वा, फामथंडिकंसि* वा! अण्णयरंति वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि अचित्तंसि, तओ संजयामेव उच्चारपासवणं परिष्वेज्जा । - २९-एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामगिगयं, “जं सन्वछ्ेहिं समिए सहिए सया० जएज्जासि । --त्ति बेमि। १-पुण्णागवणसि वा पुप्मगवणंसि वा (ज ) 1 - २-अस्मन्‌ सूते चृ्णौ 'ुत्तागारादय ' अनेके शब्दा व्याख्याता सन्ति ते वृत्तौ रतिषु । च नोपलम्यन्ते ! इ-- ° लोदवंसि (अ )। ४--बोसिरेज्जा उच्चारपासवण वोसिरित्ता ( क्वचित्‌ ) 1 ५ ॥ म्‌ ११३1 एमारसमं अन्यणं सह-खत्तिक्कियं वितत-तद-कप्णसोय-पञया-पद १-से भिकव्ख॒ वा भिवखुणी वा (अहावेगदयादईं साई सुणेद, तजहा ?) मृहंगमसदाणि वा, नंदीमुदंगसहाणि वा, मत्छरीसदाणि वा-अण्णयराभि वा तहुप्पणाराणि चिरूव- र्वाणि वितताईं सादं कण्णसोय-पडियाए णो अभिसंधारेना गमणाए । तत-सह-कण्णसोय-पडिा-पद २-से भिक्खू वा भिक्खूणी वा अहवेगइयाइ सदां सूणेद, तंजहा--वीणासहाणि वा, विपंची-सदाणि वा, बद्धीसग- सहाणि वा, तुणय-सदहाणि वा, पणव~सहाणि वा, तुंबवीणिय-सदाणि वा, टंकुणः-सद्‌ाणि वा-अण्णयरादईं वा तहप्पगाराद्ं विरूव-ल्वाद सदादं ततादं कण्णसोय-पड़ियाए , णो अभिसंधारेजा गमणाए 1 ..~ ताल-सद्‌-कण्णसोय-पडिया-पदं ३-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगदयाईं सहाई सुणेति, ` तंजहा--ताल-सदहाणि वा, कसताल-सदाणि वा, कत्तिय- सदहाणि वा, गोहिय-सदाणि वा, किरिकिरिय-सदाणि वा- > (कं, च)। । स्-अन्पी ° (घ, च ) , पप्पी ° (@ ) › वन्वी ° { क्वचित्‌ )। क उ--पणय (स, छ, व ) 1 ठ--द्कुण (अ) } ३०६ आयार-चूला १ ; एगारसमं अन्भयणं अण्णयराणि वा तहप्पगारादं विूव-ल्वादं तालसदहाईं कण्णसोय-पडियाएं णौ अभिसंधारेज्ना गमणाए । भुःसिर-सदूकण्णसोय-भडिया-पदं ४-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगदयादं सहाद धुणेति, तजहा-संख-सदाणि वा, वेणु-सदाणि वा, वंस-सदाणि वा, खरमुहि-षहाणि वा, पिरिपिरिय'-सहाणि वा-अण्णयराईं वा तहप्पगाराहं॒विरूव-ल्वादं सद्‌ादं घुसिरादं* कण्णसोय- पडियाए णो अभिसंधारेजा गमणाए । विर्विह-सह-कण्णसोय-पडिया-पदं ५-से भिक्खू वा भिक्सुणी वा अहावेगदयादं सदां सुणेति, तंजहा-क्प्पाणि वा, फलिहाणि वा, °उप्पखाणि वा, पट्ललाणि वा, उज्फराणि वा, णिज्फयणि वा, वावीमि वा, पोक्ठराणि वा, दीहियाणि वा, गुंजाल्ियाणि वा>, सराणि वा, सागराणि वा, सरपंतियाणि वा, सरसर- ` पंत्तियाणि वा-अण्णयराद्ं वा तहप्पगारादईं विरूव-खूवाद सहाई कण्णसोय-पडियाए णो अभिसंधारेला गमणाए । ६-से भिक्लू वा भिक्खुणी वा अहावेगहयाइं सदारं सुपेति, तंजहा-कच्छाणि वा, णूमाणि वा, गहणाणि वा, क्णाणि वा, वणदुगगाणि वा, पव्वयाभि वा, पन्वयदुम्गाणि वा-- अष्णयरादं वा तहप्पणारादं विरूव-खूवादं सदाद्रं कण्णसौय- पडियाए णो अभिसंधारेला गमणाए । १--परि ° (अ, वृ), परिपरिय (क,च,छ,बे)। ४ २-प्रथम-तृतोय-सूवयो 'वितताई सदार, तालसदाद' इति पाटठोस्ति तथा ती सूतरयो. 'सदा६ तताई, सदा सुतिराइ' इति पारोस्ति 1 एवं निेष्य-विरे य्वत्ययोसिति । सहू-सत्तिक्कयं ३०७ ७-से भिक्ल्‌ वा भिक्छुणी वा अहवेगश्याईं सदाईं, सुणेति, तंजहा--गामाणि वा, णगराणि का, णिगमाणि वा, रायहाणीणि वा, आसम-पटरण-सन्िवेसाणि वा-अण्णयराद्रं वा ॒तदहप्पगाराइ्‌ °विरूव-ह्वादई° सहाद *कण्णसोय- पडियाए० णो अभिसंधारेत्ना गमणाए 1 ८-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगदयादं सद्‌ाइं सुणेति, तंजहा-आरामाणि वा, उज्जाणाणि वा, वणाणि वा, वणसंडाणि वा, देवकुलाणि वा, समाणि वा, पवाणि वा- अण्णयारादं वा तहप्पगारादं °विरूव-खूवाई° सहाई श्कृण्णसोय-पडियाए° णो अभिसंधारे्ा गमणाए्‌ } ९-से भिक्खु वा भिक्खुणी वा अहावेगदयाईं सदां सुणेति, तजहा-अटणि वा, अद्ाल्याणि वा, चरियाणि वा, दाराणि वा, गोपुराणि वा--अण्णयराद्रं वा ॒तहप्यगारादं °विरूव-रूवादं° सहाई *कण्णसोय-पड़याए° णो अभिसंधारेजा गमणाए । १०-से भिक्खु वा भिक्खुणी वा अहावेगदयाईइ सदादं सुणेति, तंजहा-तियाणि वा, चउक्काणि वा, चच्वरागि वा; चउम्मुहाणि वा-अण्णयराइ वा तदहप्पगाराद्‌ “विरूव- रूवाई'° सदादं “कण्णसोय-पडियाए० णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । ११-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगदयाईं सद्‌ सुगेति, तंजहा-महिसद्ाण-करणाणि वा, वसभङ्कण-करणाणि वा, अस्सह्वाण-करणाणि वा, हत्थिद्नण-करणाणि वा, शकुक्तुडघ्ण- करणाणि वा, मक्कड्डाण-करणाणि वा, ऊावयट्राण- करणाणि वा, वहूुयह्वाण-करणाणि वा, तित्तिरट्वाण- आयार-चूला १ : एगारसमं अञ्मयणे करणणि .वा, , कवोयज्मण-करणाणि वा०, कविजलद्मण- , केरणाणि वा-अण्णयराईं वा ॒तहृप्पगारादं “विरूव-ल्वाई° , सहां *कण्णसोमर-पडियाए° णो अभिसंधारेजा गमणाए । - १.२-से भिक्लू वा भिक्छुणी वा अहावेगद्यादं सद्द सुणेति, । तंजहा-महिस-जुद्धाणि वा, वसभ-जुद्धाणि वा, अस्स-जुद्धाणि वा, हस्थि-जुद्धाणि वा, शकुक्कुड-जुद्धाणि वा, मत्रकड- ; जुद्धाणि वा, लावय-जुद्धाणि का, वटूव-जुद्धागि वा, तित्तिर जुद्धाणि वा, कवोय-नुद्धाणि वा०, कविजक-जनुद्धाणि वा-- अण्णयरादं वा तहुप्पगराहं °विरूव-ल्वादईं सादं कृण्णसौय- पडियाएर णो अभिसंधारेजा गमणाए । १३-से भिक्लु वा भिक्लुणी वा अहावेगदयाईं सद्द सुणेति तंजहा-शजृहिय-द्मणाणि'? वा, हयजुहिय-दराणाणि वा , गयजहिय-द्णाणि वा-अण्णयरादं वा तहप्पगाराई °विरूव- ख्वादं साई कण्णसोय-पडियाएण णो . अभिसंधारेजा गमणाए । १४-से भिक्लू वा भिक्लृणी दा °अहावेगदयादं सदां" सुणेति , तंजहा--अक्वाइय-दाणाणि वा माणुममाणिय-द्ममणि वा महया ऽहय-णदु-गीय-वादय-तंति-तल-ताल-तुडयि पदप वाद्य-द्ाणाणि वा-अण्णयरादं वा तहप्पगारां °विरूव- रूवादं सदाह कण्णसोय-पड्याए° णो अभिसंधरिज्जा गमणाए्‌ 1. १५-से भिक्स वा भिक्खुणी वा °अहावेगडयाई सहाद. सुणेति तंजहा-करुहाणि वा, डिविाणि वा, उमराणि वा दोर्नाणि वा वैरन्जाणि वा, विरुढरज्जाणि वा--अण्णयरादइ गा __----------------------- ˆ ए-निशीये १२ उदेशके २६ सूप 'उज्जुहिया सणाणि' इति पाटो विचते 1 सह्‌-सत्तिक्कयं ` ३०६ तदहप्पगाराइं “विरूव-रूवाई ° सदाइ °कण्णसोय-पडियाए णो अभिसंधारे्ना गमणाए । १६-से भिक्खू वा भिक्ुणी वा °अहावेगइयाई° सहाद सुणेति, तजहा-खुद्धियं दारियं परिवृत्तं मंडियारकयं' निशुञ्फमाणि पेहाए, एगं पुरिसं वा वहाए णीणिज्जमाणं पेहाए--अण्णयराइ वा तहुप्पगारादई “विरूव-रूवादइ्‌ सदा कण्णसोय-पडियाए° णो अभिसंधारेजा गमणाए्‌ 1 १७-ते भिक वा भिक्छुणी वा अण्णयराइ विरूब-रूवाइ' महासवाईं एवं जाणेजा, तंजहा--बहुसगडाणि वः, बहुरहामि ना, बहुमिखकेलूणि वा, बहुपच्चंताणि वा--अण्णयरादं वा ` तहप्पगारादई' विरूव-रूवाई महासवाईइ कण्णसोय-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । १८-से भिक्ू वा भिक्बुणी वा अण्णयराईइ विरूव-ल्वाई महुस्सवादइ' एवं जाणेज्ना, तंजहा-इत्थोणि वा, पुरिसाणि वा, थेराणि वा, उहराणि वा, सज्फिमाणि- वा, आभरण- विभूसियाणि वा, गायंताणि वा, वायंताणि वा, णच्च॑ताणि वा, हसंताणि वा, रमंताणि वा, मोहताणि वा, विउलं असणं पाणं खादइमं सादमं परिमृजंताणि वा, परिभाइंतागि वा, विच्छह्ियमाणाणि वा, विगोवयमाणाणि वा-अण्णयरादं वा तहृप्पगाराइ विरूव-रूवाइ सहुस्सवाईइ' कण्णसोय- पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए 1 सहासत्ति-पदं १९-से भिक्खू वा भिक्ुणी वा णो इहलोदएहि सेह, णो परिम (ननित्‌) ; मण्डितालकृता वहुपरिवृता ( वु ) । र२्-मञ्यि ° (ध,छ) इ मज्फ° (छ, ब )। ३१० आयार-चूला १ ; एगारसमं अन्भेयणं परलोदएहिं सदेह, णो सुएटहिं सदेहि, णो अमुर्हि सदेहि, णो दिद्ेहि सदर्हि, णो अद्द्रिहि सहेहि, णो डहि सहि, णो कति सहेहि सज्जेज्जा, णो रज्जेजा, णो भिन्ना, णो मूज्छ्ेला, णो अज्फोववज्जेजा । २०-एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए्‌ वा सामग्गियं, %जं सव्वहेहि समिए सहिए सया° जएज्जासि । त्ति नेमि। वारसमं अज्मयणं रूव-खत्तिक्कयं विविह-रूव-चक्सुदंसण-पडिया-पद १-से भिक्खू बा भिक्ुणी वा अहावेगदयाईं रवादं पास, तंजहा-गंथिमाणि वा, वेहिमाणि वा, पूरिसाणि वा, संघादमाणि वा, कट्रकम्माणि' वा, पोत्यकस्माणि वा, चित्तकम्माणि वा, मणिकम्माणि वा, 'दतकस्माणि वा”, पत्तच्छेज्जकम्माणि वा, शचिहाणि वा, वेहिमाणि वा'- अण्णयरादं वा तहप्पगारादं॑विरूव-रूवादं (रूबाई ?) चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेजा गमणाए । २-श्से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयादरं स्वादं पास, तंजहा--क्प्पाणि वा, फलिदहाणि वा, उप्पलाणि वा, पल्छाणि वा, उञ्छराणि वा, णिज्छराणि वा, वावीणि वा, पोक्छरसणि वा, दीहियाणि वा, गुजाल्ियाणि वा, सराणि वा, सागराणि वा, सरपत्ियाणि वा, सरसर- पंतियाणि बा---अण्णयराडं वा तहृप्पगारादं विरूव-रूवाद्‌ं रूवाईं चक्लुदसण-पडियाए णौ अभिसंधारेज्जा गमणाए । ३-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगद्याईं सूवाईं पास्‌, १-कटूमणि (क, घः च } । २--दंतकम्माणि वा मालकम्मागि वा (अ, कःघःचःछव); वृत्तौ वूर्प्याचन व्याद्यात्तम्‌ अतो न गृहीतम्‌ ¦ द विविहाणि वा वेदिमाडि (भ,क, घ, छ, व )। निशोयस्य १२ उदटेणकस्य १७ सूत्रानुसारेण अय पाठ स्वरत 1 ञआचाराङ्ख प्रतिप, लिपिदोपाद्‌ वणं-विपर्ययो जात इति प्रतीयते 1 रद २३१२ भायार-चूला १ : वारसमं अन्भयणे तंजहा--कच्छाणि वा, णूमाणि वा, गहणाणि वा, वणाणि वा, वणदुगगाणि वा, पव्वयाणि वा, पव्वयदुगाणि वा-- अण्णयराहं वा तहप्मगारादं विशूव-ल्वादरं र्वा चक्खुदंसण- पञियाए णो अभिसंधारेलञा गमणाए । ५-से भिक्स वा भिक्ुणी वा अहावेगदयाई' सवाद पास, ˆ तंजहा-गामाणि वा, णगराणि वा, भिगमाणि वा, रायहाणागि वा, आसम-पटूण-सन्निवेसाणि वा-अण्णयराईं वा तर्हप्पगाराइ विरूव-रूवादं रवादं चक्वुदंसण-पड्याए णो अभिसंधारेज्ञा गमणाए | ५-से भिक्स वा भिक्बुणी वा अहावेगदयाइ' श्वाइ' पासद्‌, तजहा--आरामाणि वा, उल्ञाणाणि वा, वणाणि वा, वणसंडाणि वा, देवकुलणि वा, समाणि वा, पवाणिवा-- अण्णयराईं वा तहप्पगा रां विरूव-रूवाईं रूवादं चक्खुदंसण- पडियाए णौ अभिसंधारेजा गमणाएु । से भिक्स वा भिक्छुणी वा अहावेगइयाद स्वादं पास्‌ तजहा--अटाणि वा, अदाख्याणि वा; चरियाणि वा, दाराणि वा, गोपुराणि बा-अण्णयराद््‌ वा तहप्पमाराद्‌ विरूव-ख्वाई खूवाद्रं चक्छुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेला गमणाए्‌ । ७-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगदयादं रूवादईं पास, तंजहा--तियाणि वा,- चउकाणि वा, च्चराणि वा, चउस्मुहाणि वा-अण्णयरादं वा तदहप्पगारादं विरूव-रूवादरं रूवादं चक्छुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेजा गमणाए । ८-से भिक्खू वा भिक्छुणी वा अहावेगइयादइ रूवाइं पास, तंजहा-महिसङ्मण-करणाणि वा, वसभद्मण-करणाणि वा, 9 1 र्व-सत्तिक्कयं २३१३ अस्सद्वण-करणाणि वा, हस्थिहाण-करणाणि वा, कुककुडद्ाण- करणाणि वा, सक्डद्राण-करणाणि वा, कावयट्ण-करणाणि वा, वदटुयद्वाण-करणाणि वा, तित्तिरह्माण-करणाणि वा, कवोयट्रण-करणाणि वा, कविजद्राण-करणाणि वा- अण्णयराइ वा तहप्पगाराइ विरूव-रूवादं रूवाइईं चक्ुदंसण- पडियाए णो अभिसंधारे्ञा गमणाप्‌ । ९-से भिक्लु वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाड ख्वाद्‌ पासइ्‌, तंजहा-महिस-जुद्धाणि वा, वसभ-जुद्धाणि वा, अस्स जुद्धाणि वा, हत्थि-जुद्धाणि वा, कुक्कड-जुद्धाणि वा, मक्ड-जुद्धाणि वा, छावय-जुद्धाणि वा, वदटय-जुद्धाणि वा, तित्तिरःजुद्धाणि वा, कवोय-जुद्धाणि वा, कविजर-जुद्धाणि वा--अण्णयराद्‌ वा तहप्पगारादइ विरूव-रूवाड' रवाद्‌ चक्चुदंसण-पडियाए णो अभिसधारेजा गमणाए । १०-से भिक्लू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइ सखूवाई' पासड, तजह्‌।-जूहिय-दाणाणि वा, हयजूहिय-काणाणि वा, गयजूहिय-इाणाणि वा-अण्णयराद्‌ वा तहप्पगाराइ्‌ विरूव- रूवाइ लूवाइ चक्खुदंसण-पच्ियाए णो अभिसंधारेजा गमणाए 1 ११-से भिक्खू वा भिक्सुणी वा अहावेगद्ययाईं खूवाद' पास्‌, तंजहा-अक्खाद्यद्यणाणि वा, माणुम्माणिय-ह्मणाणि वा, महयाऽ'हय-णट्गीय-वादय-तति-तल-ताल-तुडिय-पड्प्पवाइय- द्राणाणि वा-जण्णयरादं वा॒तहप्पगाराइ विरूव-र्वाई' र्वा चक्खुदंसण-पडियाए गो अभिसंधारेजा गमणाए्‌ ।; १२-से भिक्ख्‌ वा भिक्लुणी वा अहावेगद्यादइ रूवादं पास्‌, तंजहा-कलहाणि वा, ड्वाणि वा, उमराणि वा, दोरनाणि ३१४ भायार-चूला १ : वारसमं अज्फयणं वा, वेरज्जाणि वा, वचिरुदधरज्जाणि वा-अण्णयरादं वा तहप्पगाराई विरूव-रूवादरं स्वादं चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेला गमणाए ! १३-से भिक्स वा भिक्छुणी वा अहावेगइयाद्रं रवादं पास्‌, तंनहा-खुह्ियं दारियं परिवृतं मंडियारकियं निबुज्फमाि पेहाए, एवं परिसं वा बहाए णीणिज्जमाणं पेहाए-अण्णयराइं वा तहृप्पगारादं विरूव-रूवाईं रूवादईं चक्सुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गसणाए । १४-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अण्णयरादं विरूव-रू्वाइं महासवा६ एवं जाणेज्जा, तंजहा-बहुसगडाणि वा, बहुरहाणि वा, बहुमिलक्खूणि वा, क्हुपच्चंताणि वा-अण्णयराद्र वा तहप्पगाराहं विरूव-ख्वादं महासवादं चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेजा गमणाए । १५-से भिक्लू वा भिक्खुणी वा अण्णयराई विरूव-रूवाई महुस्सवादं एवं जाणेज्जा, तंजहा--इत्थीणि वा, पुरिसाणि वा, थेराणिवा, उह्राणिवा, मनज्फिमाणि वा, आभरण- विभूसियाणि वा, गायंताणि वा, वायंताणि वा, णच्चंताणि वा, हृसंताणि वा, स्म॑त्ताणि वा, मोहताणि, वा विउल असणं पाणं खाद्मं सादमं परिभुजंताणि वा, परिभादतागि वा, विच्छंडिडयमाणाणि वा, विगोक्यमाणाणि वा-- अण्णयरादं वा तहप्पगाराद्रं विरूब-खूवाइ' महुस्वाईं चक्छुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेजा गमणाए । रूवासत्ति-पदं ६-से भिक्ल्‌ वा भिक्खुणी वा णौ इहरोदएहि सूवे्हि, णो परलोदएहि स्वे, णो सुएहि स्वेहिः णो असुरं स्वै स्व-पत्तिक्कयं ९६४ णो दष्टहिं स्वेहि, णो अदिटहि सवेह, णो इहि सवेर्हिः णो कतेहि सूवेहिं सज्जेज्जा, णो रज्जेज्जा, णो गिज्जञेज्जा, णो मृज्जञेज्जा, णो अचज्छोववज्जेज्जा । १७-एयं लल तस्स भिक्खुस्स वा भिक्छुणीए वा॒सामगियं जं सव्वद्रेहि समिए सहिए सया जएज्जासि ।° --त्तिवेमि। तैरसमं तह चउहृसमं अन्मयणं परकिरिथा-खत्तिककयं अन्नुन्नकिरिया-सत्तिक्कयं किरिया-पदं १-(परकिरियं) (अण्णमण्णकिरियं)* अज्फत्थियं संसेसियं-णो तं सादइए, णो तं णियमे । पाद-परिकम्म-पदं २-(्षे से'* परो) (से अण्णमण्णं) पादादं आमज्जेज्ज वा, 'पमञ्जेज्ज वा""-णो तं साइषए, णो तं णियमे । ३-(से से परो) (से अण्णमण्णं) पादां संवाहेज्न वा, पलिमहेल वा-णो तं साइए, णो तं णियमे । ४-(से से परो) (से अण्णमण्णं) पादाईं फूमेज् वा, रएल्न वा- णो तं साईइए, णो तं णियमे । ५-(से से परो) (से अण्णमण्णं) पादाद्‌ तेल्टेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्वेज्ज वा, भिलिगेज्ज" वा-णो तं सद्रए, णो तं णियमे } १--दितीय कोप्टकं मुक्त्वा पस्यते, तदा त्रयोदणमध्ययन भवति । प्रथम कोष्ठके मुक्त्वा पठ्यते, तदा चतुर्दशमध्ययन भवति । २--अण्णोण्ण ° (नु) । चयोदशाध्ययने शे भिक्लु वा २' इति पराठो नास्ति । चतु्दभा- ध्ययने प्रतिपु विद्ते । किन्तु वृत्तो उभयत्रापि नास्ति व्याख्यात । उ--सायए (ध )। ४--सिया से (क, घ, च ) सर्वच । ५.--> (अ, क, च. छ, ब ) 1 ६-निरीपे सर्वत्रापि दिस्लेण वा, घएण वा, वसाएु वा, णवणीएण वा" इति पराम विद्यते । ७--भिल ° (छ ) | परिक्रिरिया, अनुन्नकिरिया-सत्तिक्कयं ३१७ ६-(से से परो) (से अण्णसण्णं) पादाद्‌ लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुन्नेण वा, वन्तेण वा उव्छोलेज्ज वा, उब्वलेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे । ७-(से से परो) (से अण्णमण्णं) पादाईं सीगोदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा-णौ तं सादृए, णो तं णियमे 1 =-्े से परो) (से अण्णमण्णं) पादाडईं अण्णयरेण विलेवण्‌- जाएण आल्पिज् वा, विच्पिज्ज वा-णौ तं सादए, णो तं णियमे । ९-(से से परो) (से अण्णमण्णं) पादाद्रं अण्णयरेण धुवण-नाएण धूवेज्ज वा, पधूवेज् वा--णो तं सादृए, णो तं णियमे । १०-(से से परो) (से अण्णमण्ण) पादाओ खाणु' वा, कटय वा णीह्रेज्ज वा, विसोहज्ज वा-णो तं सादइए, णो तं णियमे । ११-(से से परो) (सचे अण्णमण्मं) पादाओ पूयं वा, सोणियं वा, णीहरेज वा, विसोहेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे । काथ-परिकम्म-पद १२--(से से परो) (से अण्णमण्ण) कायं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज वा-गो त सादए, णो तं णियमे । १३-(से से परो) (से अण्णमण्णं) कायं संवाह वा, पलिमदेज्ज वा-णोतं साइए, णो त णियमे 1 १४-(से से परो) (से अण्णमण्ण) कायं तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, अब्मगेज' वा-णो तं साइषए्‌, णो तं गियमे | १-खाणुयं ( क, ध, च, व }। २-मिल्लगेज्ज ( च ) । ३१८ भायारचूला १ : तेरसमं, चउदसमं अ्मय' १५-(से से परो) (से अण्णमण्णं) कायं रोद्धेण' वा, कक्केण वा, चुण्णेभ वा, वण्णेण वा॒उल्लोलेज वा, उन्वेज्ज वा- णो तं साईइए, णो तं णियमे । १६-(से से परो) (से अण्णमण्णं) कायं सीभदग-वियडेण वा, उिणोदग-वियडेण वा उच्छोरेज्न वा, पहोएज वा-णो तं सादइए, णो तं णियमे । १७-(से से परो) (से अण्णमण्णं) कायं जण्णयरेणं विलेवण-जाएणं आचल्पिज्ज वा, विर्पिज्ज वा-णोतं सादए, णोतं णियमे । १८-(से से परो) (से अण्णमण्णं) कायं अण्णयरेणं धरृवण-नाएणं धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे | वण-परिकम्म-पदं १९-(से से परो) (से अण्णमण्णं) कायंसि वणं आमनज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे । २०-(से से परो) (से अण्णमण्णं) कायंसि वणं संवाहेज्ज वा, पलिमहेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे । २१-(से से परो) (से अण्णमण्णं) का्थंसि वणं तेल्लेण वा, धएण वा, वस्राए वा मक्चेज्ज वा, भिरिगिज्ज वा--णो तं साद्ए, णो तं णियमे । २२-(से से परो) (से अण्णमण्णं) कायंसि वणं लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुण्णेण वा, वण्णेण वा उल्छोकेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा णो तं सादए, णो तं गियमे । २३-(से से परो) (से अण्णमण्णं) कायंसि वणं सीभोदग-वियडेण श-लोदेण (ज, कं ) 1 परिङ्किरिया-अनुन्नक्रिरिया-सत्तिक्कयं ३१९ वा, उसिणोदका-वियडेण वा उच्छोेउज वा, पधोएज्ज वा- णो तं साइए, णो तं णियमे । २४-'(सेसे परो) (से अण्णमण्णं) कायंसि वणं -अन्तयरेणं विलेवण-जाएणं आरिपिज्ज वा, विर्पिज् वा-णो तं साइए, णो तं णियमे । २५-(से से पये) (से अण्णमण्णं) कायंसि वणं अन्नयरेणं धुवण- जाएणं धूवेज वा, पधूवेज्ज वा-णो तं सादए, णो तं णियमे ।*' २६-(से से परो) (से अण्णमण्णं) कायंसि वणं अन्नयरेणं सत्थ- जाएण अच्छद्िज्ज वा--विच्छिदेज्ज वा-णो तं सादषु, णौ तं णियमे | २७-(से से परो) (से अण्णमण्णं) कायंसि वणं अन्नयरेणं सत्थ- जाएणं अच्छिदित्ता वा, विच्छिदित्ता वा, पयं वा, सोणियं वा, नीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज बा-णो त साद्ए, णोतं णियमे । गड-प्रिकम्म-पदं २८-(से से परो) (से अण्णमण्ण) कायंसि गंड वा, अर्यं वा, पिडयं* वा, भगंदकं वा आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा-- णो तं सादृए, णौ तं णियमे । २९-(से से परो) (से अण्णमण्णं) कायंसि गंडं वा, अरदयं वा, १-२४-२५ सूत्रे कोप्ठकोर्लिखित-प्रतिषु न विद्ये ते (अ, क, घ, च, छ) 1 म-पूलय (अ, च ) ; पल्य ( क, छ, व ) , पुल ( घ ) । एवं भर्वासु परतिपु "पिडय' परि नोपलस्यते, किन्तु उपनन्ध-पाटाना नार्थोऽवगम्यते । निशीथे तुतीयोेशके चतु््रिशत्तम-सूम्रे "पिडथ” पाठ । अस्मिन्‌ प्रकरणे स सम्यग्‌, इति स पाठ स्वीकृत । उक्तम्रतिपाठा लिपिदोपेण विता इति प्रतीयते २७ -३२० आयार-चूखाः १: तैरसमं, चदसं अम्मय ` पिंडयं वा, भगंदलं वा संवाहेज्ज वा, पलिमहेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे । ` ३०-(से से परो) (से अण्णमण्णं) कायंसि गंडं वा, %अरदयं वा, पियं वा०, भगंदलं वा तल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिङ्िगिज्न वा-णो तं सादए, णो तं णियमे । ३१-(से से परो) (से अण्णमण्णं) कायंसि गंडं वा, *अरदयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा लोद्धेणवा, कक्केण वा, चुन्नेण वा, वण्णेण वा उल्लोकेज्ज वा, उव्वलेन्ज वा-णोतं सादए, णो तं णियमे । : २-(से से परो) (से अण्णमण्णं) कायंसि गंडं वा, “अरद्यं वा, पिडयं वा०, भगंदलं वा सीओदग्म-वियडेण वा, उसिगोद्ग- - वियेडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोवेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे । | (से से परो) (से अण्णमण्णं) कायंसि गंडं वा, अरदयं वा पिडयं वा, भगंदलं वा अन्नयरेणं विलेवण-जाएणं आरिपिन वा, विल्पिज्ज वा-णो तं सादइषए, णो तं णियमे । (से से परो) (से अण्णमण्णं) कायंसि गंडं वा, अरद्यं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अन्नयरेणं ध्रूवण-जाएणं धुवेज्ज वा पधवेज्ज वा--णो तं साईइए, णो तं णियमे ।|' ३३-(से से परो) (से. अण्णमण्णं) कायसि गंडं वा, "अरय वा पिडयं वा. भगंदलं वा अन्नयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदेज्ज वा, ` विच्छिदेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे । ३४-(से से परो) (से अण्णमण्णं) कायंसि गंडं वा, अरय वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं खत्थ-नाएणं अच्छिदित्ता 1 {--२४-२५ सूवाद्धानुसारेण जनामि कोष्ठकान्त्ति सत्रे जयते, परनठु रि नोपलभ्येते । परिक्रिरिया-अनन्नकिरिया-सत्िककयं ३२१ वा, विच्छिदित्तावा पूय वा, सोणियं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा-णोत साइषए्‌, णो तं णियमे | मल-णीहुरण-पद ३४५-(से से परो) (से अण्णमण्णं) कायाओो सेयं वा, जत्लंवा णीह्रेज्ज वा, विसोहेज्ज वा-णोत सादइए, णोतं णियमे । ३६-(से से परो) (से अण्णमण्णं) अच्छिमलं वा, कण्णमङं वा, दंतमल वा, णहुमरं वा भगीरहरेल वा, विसोहेन्ज वा-णो तं सादृ, णो तं णियमे । वाल-रोम-प्द ३७-{(से से पते) (से अण्णमण्ण) दीहाइ्‌ वाला, दीहादं रोमां, दीदाइ ममुहाईं, दीहाद कक्वरोमाईइ, दीहाई बत्थिरोमादं कप्पेज्जं वा, संव्वेज्ज' वा-णो तं साइए, णो तं णियमे । चिक्छ-जूया-पदं ३८-(से से परो) (से अण्णमण्णे) सीसाओ चलिक्ख वा, जूयंवा णीह्रेज्ज वा, विसोहेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे । पाद-परिकम्म-पदं ३९-(से से परो) (से अण्णमण्ण) अकसि वा, पलियंकसि वा तुयद्रावित्ता पादाइं आमञ्जेसज वा, पमज्जेज्ज वा-णोतं साइए, णो तं णियमे । ४०-ण्सेसेपरो) (से अण्णमण्णं) ॐकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयटावेत्ता पादाईं संवाहेल्ल वा, पलिमहेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे । १--संवद्धेज्ज ( च ) > सवज्जेज्ज ( छ ) 1 ३२४ भायार-चूां १ ३ तेरसमं, चउदसमं अज्य ५५-(से.से परो) (से अण्णमण्णं) अंकृसि वा, पलियंकंसि वा तुयटटरावेत्ता कायं अण्णयरेणं धूवण-जाएणं धवेल्ल वा, पधुवेज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे । वण-परिकम्म-पदं ५६-(से से परो) (से अण्णमण्णं) अकंसि वा, पठियिंकंसि वा तुयहुवित्ता कायंसि वणं आमज्जेज्ज वा, पमृज्जेज्ज वा-पो तं सादए, णोतं णियमे। ` ५७-{(से से परो) (से अण्णमण्णे) अकंसि वा, पलियंकंसि वा तुथहवेत्ता कायंसि वणं संवाहैज्ज वा, पलिमरेज्न बा-णो तं साइए, णो तं णियमे । १८-(से से परो) (से अण्णमण्णं) कसिं वा, पलियेकंसि वा ` तुयरहचेत्ता कायंसि वणं तेल्छेमवा, धएण वा, वसाए वा मक्चेज्ज वा, भिलिगेज् वा-णो तं सादए, णो तं णियमे ! ५९-(से.से परो) (से अण्णमण्णं) अंकसि वा, पलियक्रसि वा तुयटरावेत्ता कासि वणं लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुण्णेण वा, , वण्णेण वा उब्छोलेज वा, उव्वछेन्ज वा-णो तं साइषए, णो तं णिथमे । ६०-(से से परो) (से अण्णमण्णं) अकंसि वा, पलियंकसि वा ` तुयटूवेत्ता कायंसि चणं सीओद्रग-वियडेण वा, उसिणोदग- वियडेण वा उच्छोचेज्ज वा, पधोएज वा-णौ तं साइए, ~ णो तं णियमे) ६१-(से से परो) (से अ्ण्णमण्णं) ` जंकंसि वा, पलियंकिः वा . तुयावेत्ता कायंसि वणं भग्णयरेणं विरेवण-जाएणं आच्िन् वा, विचपिन्न व्रा-णो तं साद्ए, णो तं णियमे । प्रिकिरिया-अनुन्नकिरिया-सत्तिक्कयं ३२५ ६२-(से से परो) (से अण्णमण्णं) अकंसि .वा, पलियंकसिवा तुयदुवेत्ता कायंसि वणं अण्णयरेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज वा, पधरवेज्ज वा-भो तं साइए, णो तं णियमे । ६३-(से से परो) (से अण्णमण्णं) अंकंसि वा, पलियंकसि वा तुयट वेत्ता कायंसि वणं अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदेज वा, विच्छिदेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे । ६४-(से से परो) (से अण्णमण्णं) अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयद्रावेत्ता कायंसि वणं अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदित्ता वा, विच्छिदित्ता वा, पूयं वा, सोणियं वा नीह्रेज्ज वा, विसोहेज वा-णो तं सादइए, णो तं णियमे । -गंड-परिकम्भ-पदं ६५-(से से परो) (से अण्णमण्णं) अकंसि वा, पलियंकसि वा तुयटूावत्ता कायंसि गंडं वा, अरदयं वा, पिड्यं वा, भगंदलं वा आमज्जेज् वा, पमज्जेज्ज वा-णो तं सादए, णो तं णियमे । ६६-(से से परो) (से अण्णमण्णं) अकंसि वा, पलियंकसि वा तुयटरावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरदयं वा, -पिडयं वा, भगंदलं वा संवाहेज्ज वा, पलिमहेज्न वा-णोतं साइए, णो तं णियमे । ६७- पसे से परो) (से अण्णमण्णं) अकसि वा, पलियंकसि वा तुथ्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरद्यं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा तेल्ठेण वा, घएण वा, वसाएं वा मक्खेज्ज वा, भिकिगेज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे 1 ६८-(से से परो) (से अण्णमण्णं) अकसि वा, पलियकंसि वा तुयट्रावेत्ता कायंसि गंडं वा, अर्यं वा, पिडयं वा, भगंदलं ३२९ आयार-चूला १ : तेरसमं, चउदसमं अन्मयण वा, लोद्धेण वा, क्क्केणं वा, चुन्नेण 'वा, क्ण्णेण वा उव्लोकेज वा, उव्वलेज्ज वा-णो तं सादए, णो तं णियमे | ६९-(से से परो) (से अण्णमण्णं) अंकंसि -वा, पलियंकंसि वा तुयट्ावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरदयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा सीभओोदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेल ' वा, पधोवेज्ञ वा--णो तं सादइए, णो तं णियमे । ' { (सेपरे) (पे अण्णमण्णं) अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयहूवेत्ता कोयंसि गंडं वा, अरदयं वा, पिडयं वा, भगंवलं वा अण्णयरेणं विङ्ेवण-जाएणं आलिपेज् वा, विर्िज्ज वा-णो तं साद्रए, णो तं णियमे । । से से परो) (से अण्णमण्णं) अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयटरवित्ता कायंसि गंडं वा, अरदयं वा, पिडयं वा, भगंदल ˆ वा अण्णयरेणं ध्रुवण-जाएणं धूवेज्ज वा, पधरुवेल वा--णो तं ` साइए, णो तं नियमे ।| ७०-(से से परो) (से अण्णमण्णं) अंकसि वा, पलिय॑कसि वा तुयटचित्ता कायंसि गंडं वा, अरदयं, वा, पिडयं वा, भगदल वा अण्णयरेणं सत्थ-नाएणं अच्छिदेज्ज वा, विच्छिन्न वा-णो तं साद्रए, णोतं णियमे। ` ७१-(से से परो) (षे अण्णमण्णं) अकि वा पयियंकसि वा तुयटरावित्ता कायंसि गंडं वा, अर्यं वा, पिड्ं वा, भगवद वा अण्णयरेणं सत्थःजाएणं अच्छिदित्ता वा, विच्छिदितता ना, पूयं वा,. सोणियं वा प्रहरे वा, विसोहेज वा-णोत साद्रए, णौ तं गियमे । मर-णीहरण-पदं १ ७२- (से से परो) (से अण्णसण्णं) चा, यंकसि वा परिकिरिया-अरनुननकरिरिया-सत्तिक्कयं ३२७ तुयट्रावेत्ता कायाओ सेयं वा, जल्छं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेन्ज वा--णो तं सादइए, णो तं णियमे । ७३-(सि से परो) (से अण्णमण्णं) अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्रवेत्ता अच्छिमरं वा, कण्णमलं वा, दंतमलं वा, णहुमलं वा णीह्रेज् वा, विसोहेज्ज वा-णो तं साइए.णोतं णियमे । वाल-रोम-पदं ७४-(से से परो) (से अण्णमण्णं) अंकंसि वा, पचिययंकसि वा तुयटु वेत्ता दीहादं वाखाइं, दीहादं रोमाईं, दीहादं भमृहादं, दीहादं कक्रोमाईं, दीहाइं वत्थिरोमाईं कप्पेज्ज वा, संठे वा-णो तं साद्रए, णो तं णियमे । लिक्व-जुया-पदं ७५-(से से परो) (से अण्णमण्णं) अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयटरवेत्ता सीसाभो चिक्खं वा, जयं वा णीहरेज्जवा विसोहेज्ज वा-णो तं सदए, णो तं णियमे ।° अआभेरण-माविघण्‌-पद ७६-(से से परो) (से अणमण्णं) अंकंसि वा, पलियंकसि वा तुयटावित्ता हारं वा, अद्धहारं वा, उरत्थं वा, गेवेयं* वा, मउडं वा, पाक्बं वा, सुवण्णसूत्तं वा आबिधेज्जः वा, \पिणिघेज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे । १-वण्णगेवेव (व) २--मावचेज्ज (घ, च ) । र्ठ \ ३२८ आयार चूला १ ¦ तेरसमं, चउदसमं अन्मयण पाद-परिकम्म-पदं ७७-(सि से परो) (से अण्णमण्णे) आरामंसि वा, उनज्जाणंसि वा णीहरेता वा, पविसेत्ता वा पायां आमन्जेज्ञ वा, पमज्जेज .वा-णो तं सादए, णो तं णियमे 1 (एवं णेयव्वा अण्णमण्णकरिरियावि ।} ७य-(से से परो) (से अण्णमण्णं) युद्धेणं वा वद-बलेणं तेइच्छं आद्रे, से से परो) (से अण्णमण्णं) असुद्धेणं वा वद््‌-बक्ेणं तेदच्छं आख्, | - (से से परो) (से अण्णमण्णं) गिराणस्स सचित्ताणि कंदाणि ~ वा, मूलाणिवा, तयाणिवा, हरियाणिवा खणित्तुवा, कड्ढेततु वा, कड्ढावेत्तु वा तेदृच्छं जाद्ट्ेज्जा-णो तं सदए, णो तं णियमे । तिगिच्छा-पदं “ ७९-कडुवेयणा? कटुदुवेयणा पाण-भथ-जीव-सत्ता वेदणं वेदेति । ८०-एयं खल तस्स भिक्चुस्स बा भिक्खुणीए वा सामगगियं, जं सव्वटेहि समिते सषिते सदा जए, सेयमिणं मण्णेज्जासिं । -- त्ति बेमि। - १,२- स्मात्‌ सूत्रात्‌ पुरतोऽपि 'पादाई सवाहेज्न वा" (सु० ३) अत प्रभृति तीसाभो । लिक्छ वा" (सु० ३८) पर्यन्तं सुणि युज्यन्ते परन्तु नात्र करितचत्‌ पूरणीय, संकेत ` प्रतिषु प्राप्यते । ““एवं गेयन्वा अण्णमण्ण किरियावि"' इति ४4 भाति, किन्तु वृत्ताविति व्याख्यातम्‌ 1 सम्भाव्यते प्रस्तुत-सूग्रस्य पूरणीयः लिपिदोषेण अन्यथा जातः । इत्यपि सम्भाव्यते “एव णेयन्वा अण्णम्‌प्ण किरियावि इतिं सूं वाचनान्तरयतमस्ति 1 एकस्यां वाचनाया उक्तसत्रेणेव त्रयोदभ्‌।ध्ययनस्य पार प्रवेदितः, अपरस्या च त्रयोदशाध्ययनस्य सक्षप्तपाठः स प्रतिपादित । वर्तमाने समुपलब्ध पाठो योरपि वाचनयोमिशणं पतीयतते । तेनाऽस्मामिस्कूय कोष्ठक एव स्वीकृतम्‌ । ३-कम्मकय ० ( च ) 1 पनरसमं अञ्मयणं भमाविणा भगवो चवणादि-णक्छत्त-पदं १-तेणं कलेणं तेणं समएणं समणे भगव महावीरे पंचहत्थुत्तरे यावि होत्था-- (१) हत्ुत्तराहि चृए चदत्ता गन्भं वक्कते, (२) हत्युत्तराहि गन्भागो गन्भं साहरिए, ) (३) हत्थत्तराहि जाए, (४) हत्युत्तराहि स्वो सव्बत्ताए मंडे भवित्ता अगाराभ अणगारियं पन्वडए, (५) हत्थुत्तराहि कसिणे पडपुण्णे अव्वाधाएु निरावरणे अणंते अणुत्तरे केवरुवरनाणदंसणे समृप्पण्णे ! २-सादणा भगवं परिनिष्वुए । गन्भ-पदं ३-समणे भगवं महावीरे इमाए ओसप्पिणीए-सुसमसुसमाए समाए वीडइक्कताए, सुसमाए समाए वीतिक्कताए, सूसम- दुसमाए समाए वीतिक्कताए, दुसमसूसमाए समाए बहु वीतिक्कताए-पण्णहत्तरीए' वासेहि, मासेहि य अद्धणवमेर्हिः सेसेर्हि, जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे, अद्म पक्चे-आसाढ- सुद्धे, तस्सणं आसाढसुद्स्स चरीपक्खेणं हत्थुत्तराहि नक्लत्तेणं जोगमुवागएणं *, महाविजय-सिद्धत्थ-पुप्फुत्तर-पवर- १--पण्ण॑त्तरीए (अ, क, घ, च ) 1 २- ° णवमसेरसोि ( क, घ, च )1 इ३-जोगोव गएण (अ, च ) ! ३३० भंयारचूा १ : पनरसमं अज्भयणं पुडरीय-दिसासोवत्थिय-वद्धमाणाओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवमादं आयं” पाक्इत्ता आञउक्वएणं मवक्खएणं टिद्क्छएणं चृए॒चदत्ता इह खलु जंबरीवे' दीवे, भार वासे, दाहिणड्ढभरहे दाहिणमाहणकृंडपुर-सन्निवेसंसिः उसभदत्तस्स माहणस्स कोडाल-सगोत्तस्स ॒देवाणंदाए माहणीए जारुधरायण-सगोत्ताए सीहोन्भवभरएणं अप्पाणेणं कूच्छिसि गम्भं वक्कंते । चेवेण-पदं ४-समणे भगवं महावीरे तिन्नाणोवगए यावि होत्था- चदस्सामित्ति जाणड, चुएमित्ति जाणद, चयमाणे न जाणेद- सुहुमे णं से काले पन्तत्ते । गृन्भसाहरण-पदं ५-तओ णं समणे भगवं महावीरे अणुकपए* णं देवे णं ““जीयमेयं" ति कटुटु जे से वासाणं तच्चे मासे, पंचमे पक्खे-आसोयबहुले, तस्स णं आसोयबहुलस्स तेरसीपक्खेणं हत्थु्त राहि नक्लततेहिं जोगमुवागएणं बासीति्हिं रादंदिएहि चीहक्कतेहि तेसीइमस्स॒रादंदियस्स॒परियाए ॒वटुमाणे दा्हिणमाहण-कुंउपुर-सन्तिवेसाओो उत्तरखत्तिय-कुडपुर- सन्निवेसंसि णायाणं सखत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवगोत्तस्स तिसखाए खत्तियाणीए वासिहृ-सगोत्ताए असुभाणं पुम्गलाणं अवहारं करेत्ता, सुमाणं पुग्गलाणं पक्सेवं , ` करेत्ता, कुच्छिसि गन्भं साहरई । १--महाउयं (क, घ, च ) । २-- ° दीषेण (क, घ, चः छ, ब ) 1 3-- ° वेसमि (छ)! &~हियअणु ° (छ ) । भावणी ३३१ ६-जेवि य से तिसलाए खत्तियाणीए कच्छिसि मन्भे, तपि य दाहिणमाहण-कुंपुर-सत्षिवेसंसि उसभदत्तस्स माहणस्स कोडाल-सगोत्तस्त देवाणंदाए माहणीए जाव ययण-सगौत्ताए कुच्छिसि साहरद । ७-समणे भगवं महावीरे तिण्णाणोवगए यावि होत्या- साहरिज्निस्सामि त्ति जाणद्‌, साहरिएमि त्ति नाण, साहरिज्जमाणे वि" जाणइ, समणारसौ ! जम्म-पदं <-तेणं काठेणं तेणं समएणं तिसला खत्तियाणी अह्‌ अण्णया कयाईइ णवण्टुं मासाणं बहू पडपृण्णाणं, अद्धहमाणं राइदियाणं वीतिक्कताणं, जे से गिम्हाणं पढमे मासे, दोच्चे पक्खे-- चेत्तुद्ध, तस्सणं चेततसुद्धस्स तेरसीपक्खेणं, हत्युत्त राहि नक्छत्तेणं जोगोवगएणं समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूया । ९-जण्णं रादइं॑तिसला खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोया* अरोयं पसूया, तण्णं राद्रं भवेणवड्‌-वाणमंतर- जोइसिय-विमाणवासिदेवेहि य देवीहि य॒ ओवर्यंतेहिं य, उप्पयंतेहि यः एगे महं दिव्वे देवृज्जोए देव-सण्णिवाते* देव- कर्टुक्कहे उप्िजिल्गभूए यावि होत्था । । १०-जण्णं* रयणि तिसा खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसुया, तण्णं * रयि बहवे देवाय देवीमो य १-विन (च); न (छ) । अ्ुध प्रतिभाति । २--आरोया ° (क, घ, च ) । दे--य सपयतेहि य (क, घ, च } । ४-- ° वाते णं (अ, क, च, छ } प-ज (चः छ) ६-त ( च, छ )। ३३२ अयार-चूला १ : पनरसमं अरमण एगं महं अभयवासं च, गंधवासं च, शचण्णवासं च्‌", हिरण्णवासं च, रयणवासं च वारसि । ११-जण्णं रयणि तिसा खत्तियाणी समणं भगवं ` महावीरं अरोया अरोयं पूया, तण्णं रयणि ` भवणवद्‌-वाणमंतर- जोदसिय-विमाणवासिणो देवा थ देवीओो य॒ समणस्स भगवो महावीरस्स कोउगभूदकम्माद" तित्ययरामिसेयं च करियु । नामकरण-पदं १२-जओ णं पिद भगवं महावीरे तिसङाए खत्तियाणीए कुच्छिसि गन्भं आहुए* तओ णं पिदर तं कुलं विपुरेणं हिरण्णेणं सुवण्णेणं धणेणं धण्णेणं माणिक्केणं मोत्तिएणं संख-सिल-प्पवारेणं अर्ईव-अर्ईव परिवडढद* । १३-तञो णं समणस्स भगव महावीरस्स अम्भापियरो एयमद जाणेत्ता णिव्वत्त-दसाहंसि वोक्कतंसि सुचिभूयंसि विपुलं असण-पाण-खादम-सादमं उवक्वड्वेति, विपुलं अस्षण-पाण- खादम-साद्रमं उवक्वडावेत्ता मित्त-णाति-सयण-संबंधिवगगं उवभिमंतेति, मित्त-णाति-सयण-संबधिरवं उवणिमतेत्ता बहवै समण-माहण-किवण-वणिमग-मिच्छंडग-पंडरगातीण विच्छंडडेति, विगोवेति", विस्सार्णेति, दातारेसु णं दायं पञ्जभाएंति, विच्छडिडत्ता, विगोवित्ता, विस्साणित्ता, 2 ग * 1 १-चुण्णवास च पुष्फवासं च (क, ध, ब ) 1 २- ° सुद ° {छ)। ३--आहए ( क्वचित्‌ ) । ४-पवि° (अ)) ५--वि्ो ° (अक, घ्‌, च } । ६--दाणं ( च्‌, छ )) सातणा ¢ ३३३ दायारेसु णं दायं पज्जभाएत्ता मित्त-णाइ-सयण-संबंधिवग्गं भुजावेति, मित्त-णाइ-सयण-संबंधिवरगं भुंजावेतता मित्त- णाइ-सयण-संबंधिवमोणं इमेयारूवं णासघेज्जं करेति"- जओ णं पिद इमे कुमारे तिसकाए खत्तियाणीए कूच्छिसि गन्भे आहूएः, तमो णं पभिड्‌ इमं कुलं विउलेणं हिरण्णेणं सुवण्णेणं धणेणं धण्णेणं माणिक्केणं मोत्तिएणं संख-सिल- प्पवाकेणं अर्ईव-अरई्व परिवड्ढइ, तो होउ णं कुमारे “वद्धमाणे'। वाल-पदं १४-तभो णं समणे भगवं महावीरे पचधातिपरिवृडे, तंजहा-- खीरधार्ईए, मज्जणधार्दृए, मंडावणधा्ईए, खेव्कावणधार्दए, अंकधारईए-अंकाओ अकं साहरिज्जमाणे रम्मे मणिकोट्िमतले गिरिकदरमल्लीणे* व चंपयपायवे अहाणुपुव्वीए संबड्ढ । विवाहु-पदं १५-तओ णं समणे भगवं महावीरे विण्णायपरिणयेः विणियत्तबाल-मवि* अप्पुस्सुयाई‹ उराखादइं माणुस्सगादं पंचल्क्खणादं कामभोगाड सद्‌-फरिस-रस-रूव-गंधादं परियारेमाणे, एवं च णं विहुरइ । नामपदं १६-समणे भगवं महावीरे कासवगोत्ते । तस्स णं इमे तिण्णि १-कारवेति ( क, च } ; करावेति { घ ) । २-आहते ( च ) 1 दे--समल्लीणे { अ, घ ) 1 ४--° परिणय (घ, च, छ, व } । प-विणिवित्त ° (च )] ६मणुस्मुयादं (अ, व ) 1 ददे आयार-चूला १ : पनरसमं अज्फणं मामघेज्जा एवमाहिन्जंति, तनहा- अम्मापिउसंतिए “वद्धमाणे", सह-सम्मृदए ““समणे", “भीमं भयभेरवं उरारुं अचेल्यं परिसहं सह” त्ति कटु देवेहि से णामं केयं “समणे भगवं महावीरे” । परिवार-पदं । १७-समणस्स णं भगवओ महानीरस्स पिञआ.कासवगोत्तेणं । तस्स णं तिण्णि णामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तजहा-- सिद्धत्थे ति वा, सेज्ज॑से ति वा, जसंसे ति वा. १८-समणस्स णं भगवो महावीरस्स अम्मा वासिट-सगोत्ता । तीसेणं तिण्णि णामघेज्जा एवमाहिज्जंति, तंजहा- तिसा ति वा, विदेहदिण्णा ति वा, पियकारिणी ति वा। १९-समणस्स णं भगव महावीरस्स पित्तियए युपे कास्वगोत्तेणं 1 २०-समणस्स णं भगवो महावीरस्स जेट भाया "णंदिवद्धणे' कासवगोत्तेणं । । २१-समणस्स णं भगवो महावीरस्स जे" मदइणी ्ुदंसणा' कासवगोत्ते्ण* । १-क्णिट्ा ( घ, च ) २्-करासवी ° (च ) 1 भावणा २२१ २२-समणस्स णं भगवओ महावीरस्सं भज्जञा जसोया कोडिण्णागोत्तेणं 1 २३-समणस्स णं भगवओ महावीरस्सं धूया कासवगोत्तेणं ! तीसेणं दो णामधेज्जा एवमादहिज्जंति, तंजहा- अणोजा ति वा, पियदसणा ति वा । २४-समणस्स णं भगव महावीरस्स णत्तुई कोसियगोत्तेणं ' 1 तीसेणं दो णामघेज्जा एवमाहिज्जंति, तजहा- सेसवती ति वा, जसवती ति वा । माउ-पिउ-काल-पदं २५-समणस्स णं भरुवभो महावीरस्सं अम्मापिययो पासावच्चिज्जा समणोवासगा यावि होत्था। तेणं बहदं वासाईं समणोवासग-परियागं पालङत्ता, छण्टं जीवनिकायाणं संख्खणनिमित्तं आलोइत्ता निदित्ता गरद्ित्ता पडिकमित्ता, अहारि उत्तरगुणं पायच्छत्तं पडिवज्ञित्ता, कुससंथारं दुरुहित्ता भत्तं पच्चक्लाईंति, भक्तं पच्चक्खाइत्ता अपच्छिमाए मारणंतियाए सरीर-संलेहणाए सोसियसरीरा* काल्मासे कां कच्चा तं सरीरं विप्पजहित्ता अच्चुए ॒कप्पे देवत्ताए उववेण्णा । तञौ णं आउक्वएणं भवक्छएणं टिदक्खएणं चुए चइत्ता महाविदेहवासे चरिमेणं उस्सासेणं सिज्मिर्संति, १-कोसिया ० (घ )। २-सारक्खण ° (घ,च)1 ३-सुसिय ° (अ, घ ) > शु्षिय ° (च } › फोसिय ° (च )1 २६ ३२३६ आयार-चूखा १ : प्नरसमं अञ्भयणं , बुज्फिस्संति, मुच्िस्संति, परिणिव्वादस्संति, सब्वदुक्वाणमेतं करिस्संति । अभिणिक्भणार्भिप्पाय-पदं २६-तेणं ककण तेणं ससएणं समणे भगवं महावीरे णाते णायपुत्ते णायकुल विभिव्वत्ते विदेहे विदेहदिण्णे विदेहुजच्चे विदेहसुमारे तीसं वासां विदेहत्ति कटु अगारमञ्ज्े वसित्ता अम्मापिऊहि कार्गएहि देवरोगमणुपततेहि समत्तपदण्णे चिच्चा हिरणं, चिच्चा सुवण्णं, चिच्चा बलं, चिच्वा वाहणं, चिच्चा धण-धण्ण-कणय-रयण-संत-सार-सावदेज्जं, विच्छड्डेत्ता, विगोचित्ता, विस्साणित्ता, दायारेषु णं दायं पज्जमाएत्ता'', संवच्छरं दलइत्ता, जे से दिमंताणं पठमे मासे पढमे पक्खे-मग्गसिरबहुले, तस्सणं मग्गसिरबहुरस्स दसमीपक्खेणं हत्थत्तरा्हि णक्छत्तेणं जोगोवगएणं अभिणिक्मणाभिप्पाए यावि होत्था-- [ संकच्छरेण होहिति, अभिणिक्मणं तु जिणवरिदस्स तो अस्थ - संपदाणं, पव्वत्तई पुव्वसुराभो ॥१॥ एगा हिरण्णकोडी, उदेव अणृणया सयसहस्सा 1 सूरोदयमार्हय, दिज्जई्‌ जा पायरासो त्तिः ॥२॥ तिण्णेव य कोडिसया, अद्टासीति च होति कोडीभो । असितिभ्च सयसहस्सा, एयं संवच्छरे दिण्णं ॥२॥ वेसमणक्डल्धरा, देवा लखोगंतिया महिड्ढीया । बोर्हिति य तित्थयरं, पण्णरससु कम्म-भूमिसु ॥४॥ १-दाइत्ता परिभाहनत्ता ( छ ) 1 ज्वलन्त) = २-- ° दाम (अ) ३ (घ) । दं-जसिय {अः धः छ, ब ) | भावणा ३२७ बेभंमि य कप्पंमि य, बोद्धव्वा कण्हुरादइणो मज्ज 1 लोगंतिया विमाणा, अष्टयुवत्था भसंखेजा ॥५॥ एए देवणिकाया, भगवं वोहिति जिणवरं वीरं 1 सनव्वजगजीव हियं, अग्रं ति्थं पव्वत्तेहि ॥६॥] देवागमृण-पद २७-तओ णं समणस्स भगवओं महावीरस्य अभिणिक्खमणा- भिप्पायं जाणेत्ता भवणवद्‌-वाणमतर-जोडसिय-विमाण- वासिणो देवा य देवीभो य सएहि-सए्ि स्वेहि, सए्हि- सएहि णेवत्येहि, सणएहि-सए्हिं विधेहि, सच्विड्ढीए, सव्वजुतीए, सन्वबरसमुदएणं, सयादसयादं जाण विमाणाईइं दुरुहुंति, सयादं-सयाद जाणविमाणाईं दुरुहित्ता, अहावादरादं पगला परिसाडति, अहावादरादं पोलाद परिसाङेत्ता, अहासुहुमाईं पोगगलादं परियाईति, अहानुहमाईं पोग्गकाहं परियाइत्ता, उडढं उप्पयंति, उडढं उप्पत्ता, ताए उक्किट्राए सिग्घाए्‌ चवखाएु तुरियाए दिव्वाएु देवगर्ईएु अहेणं ओवयमाणा-गओवयमाणा तिरिएणं असंखेऽजां दीवसमुदादं वीतिक्कममाणा-वीतिक्कममाणा जेणेव जंवुटीवे दीवे तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता, जेणेव उत्तरखत्तिय-कुच्पुर सण्णिवेसे तेणेव उवागच्छति, तेणेव उवागच्छत्ता, जेणेव उत्तरखत्तिय-कूडपुर सन्िवेसस्स उत्तग्युरत्थिमे दिसीभापए तेणेव फत्तिवेगेण उवद्िया 1 अल्करण-सिवियाकरण-पद २८-तओ णं सके देविदे देवराया सणियं-सणियं जाणविमाणं ठ्वेति, सणियं-सणियं जाणविमाणं स्वेत्ता, सणिवं-तणिय जाणविमाणामो पच्चोत्तरति, सणियं-सणियं जाणविमाणाओ ३३८ आयार.चूखा १ : पनरसमं अज्मयणं .पच्चोत्तस्तिा, एगंतमवक्कमेति, एगंमवक्कमेत्ता, महया वेउव्विएणं समूग्धाएणं समोहणति, महया वेउव्विएणं समुग्घाएणं समोहणित्ता, एगं महं णाणामणिकरणयरयण- भत्तिचित्तं सुभं चारुकतर्वं देवच्छंदयं विरव्वति । तस्सणं देवच्छदयस्स॒ बहूुमज्फ देसभाए एगं महं सपायपीटं णाणामणिकणयरयणभत्तिचित्तं सुभं चास्कतस्वं सिंहासणं विउव्वद्‌, विरउव्वित्ता, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता समणं भगवं ' महावीरं तिक्ुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेद, समणं भगवं महावीरं तिक्लु्तो मायाहिणं पयाहिणं कर्ता, समणं भगवं महावीरं वदति, णमंसति, वंदित्ता, णमंसित्ता, समणं भगवं महावीरं गहाय जेणेव देवच्छंदए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छता, सणियं-सणियं पुरत्थाभिमूहे सीहासणे णिसीयावेद, सणिय- सणियं परत्थाभिसमृहे सीहासणे णिसीयावेत्ता सयपाग-सहस्स- पागेहिं तेल्लेहिं अन्मगेति, अन्भगेत्ता, गंधकसाए्हि' उव्लोकेति, उव्लोलित्ता, सुद्धोदएणं मज्जावेद्‌, मज्जावित्ता, जस्स जंतपरं सथसहस्सेणंति पडोठतित्तएणं साहिएणं सीतएणं* गोसीसरत्तचंदणेणं अणुर्पति, अणुलिपित्ता ईसिणिस्सासवातवोज्ं वरणगरपटरणुमयं कूसरुणरपसंसितं अस्सरार्पेलवं* देयायरियकणगखचियंतकम्मं “ हुंसलक्खण पद्रजुयं णियंसावेद, णियंसावेत्ता, हारं अद्धहारं रत्य १-~ ° कासायि्एहि ( चः छ ) । एण मल्ल (ऊकधः,च,व))1 ३ --सरसीएण (कष, चं )1 ॐ-~ ° ललियेसिथ ( घ ) ; ° लालयेलव ( छ ) ; ° लालप्पेसलवं { ब ) 1 ५--मसूरियकणयकणयत ° ( च ) 1 मवण ३६३६ एगावरिं पाठंबसृत्त-पटर-भउड-रयणमालाइ आविधावेति, आविधावेत्ता गंधिम-वेढिम-पूरिम-संघातिमेणं मल्लेणं कप्परक्खमिव समाङ्केति, समालकेत्ता दोच्चंपि महया वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहणद्‌, समोहणित्ता एगं महं चंदप्पभं सिवियं सहस्सवाहिणि विऽव्वइ, तंजहा- ईहामिय-उतसभ-तुरण-णर-मकर-विहग-वाणर-कृजर-रुरसरभ- चमर-सदूलसीह-वणलय- विचित्तविज्जाहरमिहुण - जुयल-जंत- जोगनुत्तं, अच्चीसहस्समालिणीयं, सुणिरूवित-मिसिमिर्सित- रूवगसहस्सकचियं, ईसिभिसमाणं, भिन्मिसमाणं, चक्खुल्लोयणलेस्सं, मुत्ताहलमुत्तनांतरोवियं, तवणीय-पवर- लंबूस-पलबंतमृत्तदामं, हारद्भहा रभूसणसमोणय, अहियपेच्छ- णिज्जं, पउमरुयमत्तिचित्तं, 'असोगल्यमत्तिचित्तं, कंदख्य- भत्तिचित्त''',* णागालयभत्ति-विरदयं सुभ ॒चारुकंतरूवं णाणामणि-पंचवण्णघंटापडाय-परिमंडियम्गसिहरं पासादीयंः द रिसणीयं सुरूवं । [सीया उवणीया, जिणवरस्स जरमरणविप्पमुक्कस्स । ओसत्तमल्छदामा, जलथलयदियव्वकुसुमेहि ॥७॥ सिवियाए मञ्छयारे, दिव्वं वररयगरूवचेवद्रयं* 1 सीहासण महरि, सपादपीढं जिणवरस्स ॥=॥ आकडयमालमउ्डो, भासुरबोदी वराभरणधारी । खोमयवत्थणियत्थो `, जस्स य मोल्लं सयसहर्सं ॥९॥ १-कद ° (च )। २-->< ( अ ) › अमोगलयभत्तिचित्त ( क )1 उ--घुभं चारुकत रूवं पासादीय (अ, के, घ, च, ब )। ४-- ° चिचडय (घ ) । ५--घोमिम ० ( कछ) ) 1 २४० भयार-चूला १ ` प्नरसमं अयणं ` च्ेण उ भत्तेणं, अज्मवसागेण सोहणेण ' जिणो । ` केसा विसुन््तो, आरुहइ उत्तमं सीयं ॥१०॥ सीक्सणे णिविदटरो, सक्कीसाणा य दोहं पासेहि । वीयंति चामराहि, मगिरयणविचित्तदंडाहि ॥११॥ पुव्वि उक्छित्ता, माणुसेहिं साह्टरोमपुखएर्हिः | पच्छा वहंति देवा, सुरसुरगरुख्णागिदा ॥१२॥ पुर सुरा वहती, असुरा पण दाहिणंमि पासंमि । अवरे वहंति गरखा, णागा पुण उत्तरे पासे ॥१३॥ ' वणसंडं व कुसुमियं, पडमसरो वा जहा सरयककलि । सोहइ कुयुमभरेणं, इय गयणयलं सुरगणेहि ॥१४॥ सिद्धत्थवणं व॒ जहा, कणिधारवणं व॒ चंपगवणं वा । सोहद कुसुमभरेणं, इय भयणयलं सुरगणेहिं ॥१५॥ वरपडहभेरिज्फल्लरि - संखसयसहस्सिएहिं तुरेहि । गयणतले धंरणितके, तूर-णिणाओ परमरम्मौ ॥१६॥ ततविततं धणञ्ुसिरं, आउज्जं चउविहं बहुविहीयं । वायति तत्थ देवा, बहंहि अआण्डुगसएहिं ॥१७॥ | अभमिपिक्छमण-पदं २९-तेणं किणं तेणं समएणं जे से हैम॑ताणं पढे मासे पठमे प्क्खे-मम्गसिरबहुले, तस्सणं मग्गसिरबहुलस्स दसमीपवखेणं, सुब्वएणं दिवसेणं, विजएणं मुहु्तेणं, 'हल्युत्तराहिं णक्लततेणं' जोगोवगएणं, पारईइणगामिणीए दछायाए, वियत्ताए' पोरिसीए, च्धेणं भक्तेगं अपाणएणं, एगसाडगमायाणए, १-सुदरेण (क-घ, च, व )1 २--साहय्ट ° (अ, क, च, ब )। इ--हल्युत्तर ° (मः धः छ 21 --नीयाप्‌ (छ ) 1 भवणा छोय-पदं २३४१ चंदप्पहाए सिवियाए सहस्सवाहिणीए', सदेवमणुयासुराए परिसाए समण्णिज्जमाणे-समणिज्जमाणे उत्तरखत्तिय- कूंडपुर संणिवेसस्स मनज्चंमञ्ज्ेणं णिगच्छद्र, गिगच्छि्ता जेणेव णायसंडे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइं, उवागच्छित्ता ईसिरयभिप्पमागं अच्छप्वेणं भूमिभागेणं सणियं सणियं चेंदप्पभं िवियं सहस्सवाहिणि ठवेद, ठवेत्ता सणि्य-सणियं चंदप्पभाओं सिवियाओ सहस्छवाहिणीगओ पच्चोयरद्‌, पच्चोयरित्ता सणिय-सणियं पुरत्थाभिमृहे सीहासणे गिसीयदइ, अभरणाक्कारं ओमुयद्र । तओ णं वेसमणे देवे जननु-व्वाय-पडिए समणस्स भगवञ महावीररस हंसलवखणेणं पडेणं * आभरणालकारं पडिच्छइ । ३०-तओ णं समे भगवं महावीरे दाहिगिणं दाहिणं वामेणं वामे पचमृद्धियं लोयं करे । ३१-तओ णं सवके देविदे देवराया समणरत भगवञ महावीरस्स जन्नु-व्वाय-पड्एि वथरामएणं थलेणं केसादं पडिच्छड, पडिच्छ्तिा “अणुजणेसि भते" त्ति कट्टु खीरोयसायरं साहरड 1 समादय-गहम-पद ३२-तओ णं समणे भगवं महावीरे दादिणेणं दाहिणं वामेणं वामं पंचमुियं लोयं करेत्ता सिद्धाणं णमोक्कारं करे, करेता, ““सव्वं मे अकरणिञ्ज पावकम्मं ` ति कटूटु समाडये चरित्त पडिवज्जद्र, सामाइयं चरित्तं पडिवज्जेत्ता देवपरिसं मणुयपरिस च आलिक्-चित्तभूयमिव छेद । १-- ° वाहिणीयाए (क घ.) २-पडिमादषएण (€ }1 दे४२ आयार-चूला १ : पनेरसमं अन्म गहदिव्वो 'मणुस्सधोसो, तुरियाणिणाभो य सक्कवयणेण। चिष्पामेव, णिलू्वको, जाहे , 'पविज्जद चरितं ॥१५॥ -पंडिवज्जितु चरितं, बहोणिस्षि सब्वपाणभूतहितं । सह! ` छोमपूख्या, पयया देवा निसामिति ॥१९॥ प्रणपऽ्नवनाण-रद्वि-पदं ॥ उदेत णं समणस्सय भगवभो महावीरस्स सामां खाओवसमियं चरितं पडिवन्नस्स मणपज्ञवणाणे णामं णाणे . + -समप्पन्ते--अडढादज्जेहि दीवि दोहि य समृदैहि सप्णीषं - वचेदियाणं पलत्ताणं वियत्तमणसाणं* मणोगयाद्ं भावाद जाणेद्‌ । अमिर्गहपदं - ` ३४-तओ णं समणे भगवं महावीरे प्वहते समाणे मित्त-णाति- यण-संबंधिवमगं , पडिविसज्जेति, पडिविसज्जेत्ता दमं एयारूवं .अभिगगहुं अभिगिष्द--बारसवासाद वोसछ्काए ¦ -चत्तदेहे४ जे के उवा :उप्पन्ज॑ति तंजहा--दिव्वा वा माणसा वा, तेरिच्छिधाः वा, ते सव्ये उवेसे सम्‌प्पण्णे समाणे "स अणाइले अब्दहिते अदीणमाणसे तिविह मणवयण- कायगृत्ते” सम्म सहिस्सामि, खमिस्सामि अंहियास इस्सामि। , (पाहद (अ, क, ब) 1 „२--'° मणुस्साण (छ) । ,“-तमोग दभ छ ) 1 &--वचियत्त { चव ) 1 ५--समुप्पज्जति ( घ, छ, ब ) । ६-तेरिच्छा ( भ्व ब )} ॥ ७८ (म,क,ध, च, ब)। भाषणा ३४२ विंहार^पदं ३५-तओ णं समणे भगवं महावीरे इमेयारूवं अभिग्गहुं अभिगिष्हेत्ता "वोस्काए चत्तदेहे" दिवसे मूहुत्तसेसे कस्मारः गामं समणुपत्ते } ३६-तओ णं समणे भगवं महावीरे वोसघ्नवत्तदेहे अणृत्तरेणं आकएणं, अणुत्तरेणं विहारेण, अणुत्तरेणं संजमेणं, अणुत्तरेणं परगहेणं, अणुत्तरेणं संवरणं, अणुत्तरेणं तवेणं, अणुत्तरेणं नंभचेरवासेणं, अणुत्तराए॒खंतीए, अणृत्तराए मोत्तिए, अण॒त्तराए तुद्रीए, अणुत्तराए समितीए, अणुत्तराए पृत्तीए, अणुत्तरेण ठणेणं, अणुत्तरेणं कम्मं, अणुत्तरेणं सुचरिय- फरणिव्वाणमत्तिमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । ३७-एवं विह्रमाणस्स जे केड्‌ उवसम्गा समुपज्जिसु"-दिव्वा वा माण॒सा^ वा तेरिच्छिया वा, ते सब्बे उवसमगे समुप्यन्ने समाणे अणादरे अब्वहिए अदीण-माणसेः तिविहुमणव्यण- कायगुत्ते सममं सहइ खमईइ तितिक्वइ अहियासेइ । केवलनाण-लदधि-पद ३८-तओ ण ॒समणस्स भगवो महावौरस्स एएणं विहारेणं विहरमाणस्स बारसवासा विइक्कता, तेरसमस्स य वासस्स परियाएु वटुमाणस्स जे से गिम्हाणं दोच्चे मासे चउत्ये पक्खे--वद्रसाहसुद्ध, तस्सणं वइसाहसुद्धस्स दसमीपक्वे्ण, १--बोसटुचत्तदेहे ( क, ध ) , वोद्ुचियत्तदेह ( छ ) । २्--क्रुमार (के, घ, च, छ, व }। इ३--कम्मेण ( क, घ, च, छ ) । ४-- ° पज्जति (क, व. त्र) 1 ५--माणुस्सा (च ) 1 ६--अदीण-° (म,घ, च) ३9 द भायार-चूखा १ : पनरसमं भर्भयणं सुव्वएणं दिवसेणं, विजएणं मुहृत्तेणं, हद्युत्त राहि णक्वत्तेणं जोगोवगतेणं, पारईणगामिणीए छायाए, चियत्ताए पोरिसीए, जंभियगामस्स णगरस्स॒बहिया णर्ईए उजुवालियाए" उत्तरे कूले, सामागस्स॒ गाहावदस्स कष्टकरणंसि, वेयावत्तस्स चेइयस्स उत्तरपुरत्थिमे दिसीमाए, सारुखक्खस्स अहूरसामंते, उककुडयस्स, गोदोहियाए अआयावणाए आयावेमाणस्स, च्रेणं मत्तेणं अपाण्एणं, उड्ढंजाणुयहोसिरस्स, धम्म- ज्फाणोवगयस्सं, फाणकोष्टोकगयस्स, सुक्कञ्फाणंतरियाए वटरुमाणस्स, निव्वाणे, कसिणे, पडपुण्णे, अव्वाहृए, णिरावरणे, अणते, अणुत्तरे, केवरुवरणाणदंसणे समूप्पग्णे । ३९-से भगवं अरिहः जिणे जाए, केवली सव्वणू सव्वमावदरिसी, सदेव मणुयासुरस्स लोयस्स पज्जाए जाणई, तंजहा-आगति गति टठित्ति चयणं उववायं भुक्तं पीयं कंडं पडिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्मं कुवियं कहियं मणोमाणसियं सव्वेलोए सव्वजीवाणं सव्वभावाईइ्‌" जाणमाणे पासमागे, एवं च णं विहर । देवागमण-पदं ४०-जण्णं दिवसं समणस्स भगवओ महावीरस्स भिन्वाणे कसिणे गपदपुण्णे अव्वाहए भिरावरणे अण॑ते अणुत्तरे केवलवरणाण- दंसणे° समुप्पण्णे, तण्णं दिवसं भवणवद-वाणमंतर-जोद्रसिय- विमाणवासिदेवेष्ि य देवीहि य ओवयंतेहि* य, *उप्ययतेहि १--उचज्जु ° (घ, ब) २्--अरहा (अ, छ, ब ) › गर्हं (क, घ ) + ३-जाणए (घ, च )। ४-- ° भावेण (अ )। ध-जोवयंतेहि २ (अ, ब )। भावणी ३४५ यं एो महं दिव्वे देवज्जोए देव-सण्णिवाते देव-कह्क्कहे° उप्पिजिक्गभूए यावि होत्था । धम्मोवदेस-पदं ४१-तयो णं समणे भगवं महावीरे उप्पण्णणाणदंसणधरे अप्पाणं च लोगं च अभिसमेक्ख पुव्वं देवाणं धम्ममाइक्ति, तभ पच्छा मणुस्साणं 1 ४२-तमो णं समणे भगवं महावीरे उप्पण्णणाणदंसणधरे गोयमारईणं समणाणं गिरगंथाणं पंच महन्वयादं सभावणादं चज्जीवनिकायाईं आदक्वडइ भासदइ' परूवेइ, तंजहा- पुडविकाए “आउकाए, तेउकाए, वाउकाएे, वणस्सदकाए०, तसकाए 1 सभावण-महन्वय-पदं ४२-पढमं भते! महव्वयं-- पच्चक्खामि सव्वं पाणाद्ववायं-से सुहुमं वा वायरं वा, तसं वा थावरं वा-णेवसयं पाणाइवायं करेज्जा, गेवण्णेरहि पाणादइवाये कारवेज्जा, णेवण्णं पाणाइवायं करंतं समणुजाणेज्ना, जावज्जीवाए तिविहुं तिविहेणं-मणसाः वयसा कायसा, तस्स भते! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। ४४-तस्सिमाओो पंच भावणाओ भवंति । तस्थिमा पढमा भावणा- इरियासमिए से गिग्गंथे, णो इरिया-असमिए र त्ति! केवली वूया-इरिया-जसमिए से भिम्गथे, पाणादं भूयादं जीवां १--भासइ पण्णवइ ( व }1 २अडरियासमिए्‌ (अ ) , अणदरियासमिते (छ ) 1 ३४६ भयार-चूखा १ : पनरसमं अज्मयणं सत्ताई अभिहणेज्जं वा, 'वत्तेज्ज वा, परियावेज्ज वा, लेसेजन वा, उदुवेज वा । इरियासमिए से गिगगंथे, णो इरिया- असमिए त्ति पठमा भावणा । ४१-अहावरा दोच्चा मावणा- मणं परिजाणादइ से णिग्गंथे, जे य मणे पावए सावज्जे सकिरिए अण्ट्यकरे देयकरे भेदकरे अधिकरणिए" पाजोसिए, पारिताविए पाणादवाइए भरभोवधादए- तहप्पगारं मणं णो पधारेजा । मणं परिजाणाति से णिगग॑थे, "जे य मणे अपावए' त्ति दोच्चा भावणा ४६-अहावरा तच्चा भावणा-- वद्‌ परिजाणई्‌ से णिग्गथे, जाय वर्‌ पाविया सावज्जा सरकिरिया *अण्ुयकरा देयकरा भेदकरा अधिकरणिया पराओसिया पारिताविया पाणादइवाद्रया° भ्रुभोवघाइया- तहप्पगार वद णो उच्चारिज्जा । जे वदं परिजाणद््‌ भे गिमगंथे, जा य वई अपावियत्ति तच्चा भावणा । ४७ -अहावरा चरउत्था भावणा-- . आयाणभंडमत्तणिक्लेवणासमिए से णिग्यथे, णो आयाणभंडमत्तणिक्खेणाअसमिए ! केवली बरूया-- आयाणभंडमत्तणिक्लेवणाअसमिए से भिम्गंधे पाणां, भ्रयाई, जीवाद्रं, सत्तादं अभिहणेज्ज का, *वत्तेज्ज वा; परियावेज वा, केसे वा०, उद्वेजन वा, तम्हा आयाणभंडमत्त- णिक्ष्ेवणासमिए से भिग्गंथे,. णो आयाणभंडमत्तणिक्वेवणा- असमिए त्ति. चउत्था भावेणा । १--अहिगरणकरे कलहूकरे ( ध, व ) 1 २-णो जे अमणे पावएु ( च )। भावमा ३४७ ४८-अहावरा पचमा भावणा-- आलोदयपाणभोयणमोई से भिस्गंथे, णो अणालोहयपाण- भोयणभोई ! केवटी बूया-अणालोडयपाणभोयणभोई से णिग्गंथे पाणाईं भरूयादं जीवादं सत्तां अभिहणेज वा, °वेत्तेज्ज परियावेज्ज वा, केसे वा०, उद्वे वा, तम्हा आलोडइयपाणभोयणभोई से गि्गंथे, णो अणालोदयपाण- भोयणभोई त्ति पंचमा भावणा | ४९-एतावताव महव्वए सम्म काएण फासिए पालिए तीरिए किट्टिए अवद्िए आणाएुं आरादहिए यावि भव्‌ | पठमे भन्ते ! महृव्वए पाणादवायाओ वेरमणं । ५०-अहावरं दोच्चं भन्ते! महव्वयं-- पच्चक्खामि सव्वं मुसावायं वडदोसं-ते कोहा वा, लोहा वा, भया वा, हासा वा, णेव सयं मसं भासेजा, णेवन्नेणं मुसं भासवेज्ा, जण्णं पि मूस भासंतं ण समणुजाणेज्जा, तिविह्‌ तिविहेणं-मण्सा वयसा कायसा, तस्स भन्ते] पडिक्कमामि “नदामि गरिहिमि अप्पाणं° वोसिरामि । तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति। तस्थिमा पठमा भावणा-- अणुवीदमासी से णिखथे, णो अणणुवीदरभासी । केवली बूया-अणणुवीद्भासी से गिमांथे समावदेज्जा* मोसं वयणाएु । अणुवीदभासी से गिग्गथे, णो अणणुवीहभासि त्ति पडमा भावणा । ५२-अहावरा दोच्चा भावणा-- कोहं परिजाणद्र से णिग्यंथे, णो कोहणे सिया 1 केवली १- ० वज्जेज्जा (क, घ, च, छ, व ) 1 ५१ ३४८ आयारःचूला १ : पनेरसमं अञ्यणं बुया-कोहपत्ते कहौ समावदेज्ञा मों वयणाए । कोहं परिजाणईइ, से गिगगथे, णय कोहुणे सिय त्ति दोच्वा भावणा 1 ५२-अहावरा तच्चा भावणा- लोभं परिजाणड से णिग्गथे, णो य लोभणए सिया । केवली बूया--लोभपत्ते लोभी समावदेला मोस वयणाए । लोभं परिजाणई से गणिणथे,णोय लोभणए सिय त्ति तच्चा भावणा । ५४-अहावरा चरत्था भावणा- भयं परिजाणद से णिग्गथे, णो भयभीरुए सिया । केवली नृया-भयप्पत्ते भीरू समावदेज्जा मों वेयणाए । भयं परिजाणदसे गिम्गंथे, णो य भयभीरुए सिय त्ति चउत्था भावणा । ५५-अहावरा पंचमा भावणा- हासं परिजाणद से णिग्ग॑थे, णो य हासणए सिया । केवली नूया--हासपत्ते हासी समावदेला मसं वयणाए । हसं परिजाणद्टसे णिर्गंथे, णो य हासणए सिय त्ति पंचमा भावणा । ५६-एतावताव महव्वए सम्म काएण फासिए पाक्षि तीर किट्िए्‌ अवद्विए° आणाए आरादहिए या वि भवति । ' दोच्चे. भते ! महव्वए °मुसावायाओो वेरमणं । ५७-अहावरं तच्चं भते ! महव्वयं- पन्चक्लामि सव्वं अदिष्णादाणं--से गामे वा, णगरे वा, .ˆ अरण्णे वा, अप्पंवा, बहुं वा, चणंवा थनं वा. चित्तमंतं ए--कोवं ( च, न ) ५: २४२ स्व, अमेन सौ नच सय श्रदिन यग्म, पवष्मेहि ० श्नि अद्रिं मन्तन न दः भवर, नद स्यद् पत्तन न न्मनि, सनन्छोन्यर भनिकिं तिविदिम--मणसा समम ण्म, ग्ने प) तद्नन्मामि निश्लमि गर्दिमि 9 तकनक क १ [$ ज्र. ग 111 १ क 1 4) #= + श 4न-००क = । = क्य 18 भन्विभा पृट्मा (17. १९4 १११०० ६ २ त्त्7न | ¢ १1 १५ नः ति धक व "दपा र दिग, भो सदरम मिग. ॥ र व ¢, > ० वि म दता "शमि नमन; गं > { पनः स्ता दमाम्‌ न [गय न 11 पृष्न ४ -वयाम मि तनम नि वता भावप म {प्य {7 न्मु भ्न | ॥ 1 ५१ दयम येना शन्ला-~ ॥} ॐ क अ रि नदा्म(नदिदपम्तसथनोः म निगम, पी अणणल्यचियपाभ- ( दो दवा--षमप्ययिव्पातभोवणभोरहु स विम्मय -नण्नि भलसय", समदा अणयतवियपाणमोणमोर = ` ८ + -ध्रध्यतयं ् - भृ (प्स, प्प दप्नरुधनावद्पाफरमोव्रणन। त्ति दोच्चा ॥ | १८५ ० पानस्‌ नरना भावणा -- प्रिम्मटे णं वीमि भोग्यदियत्ति पतावनाव भोग्गहण- नीना निया | स्यटी बरुा~-गिम्पये ण ओग्गट्ंसि अणोग्गहियनि एत्तावत्ताय अणोगाहणसीखो अदिण्णं योगिष्टेना । गिगगंधणं ओगगहंसि बोग्हियंसि एतावताव भमहुणनीच्ण सिय त्ति तच्चा भावणा । ५५4 = ^~ = च म १--पिष्म्या (ष) ३५७ आयार-चूरा १ ` पनरसमं अज्भयणं ६१-अहावरा चरत्था भावणा- णिग्गंथेणं ' ओग्गहंसि ओम्गहिथंसि अभिक्वणे-अभिक्खणं ओग्गहणसीलए सिया । केवली बूया-णिगगंयेणं ओगगहंसि , ओग्गहियंसि अभिक्वणं-अभिक्छणं अणोग्गहुणसीले अदिष्णं गिण्ठेजा । गिगगथे ओग्गहंसिं ओग्गहियंसि अभिक्छणं- ; ~ अभिक्वणं ओग्बहणसीकए सिय त्ति चेउत्था भावणा । २-अहावरा पंचमा भावणा- अणुवीदमितोगगहजाई से णिग्यंथे साहम्मिएसु, णो अणणुवीदमिओोग्गहजाई ! केवली नूया-अणणुवीइमिओोगह्‌- जाई से णिग्गंथे साहम्मिएसु अरिण्णं ोगिष्हेज्ना । अणुवीदमिओम्गहनाई से गणिगगंथे, साहम्मिएसु, णो अणणवीदमिमोग्हजारई--दइद पंचसा भावणा । ६३-एतावताव महृव्वए सम्मं शकाएण फासिए पारिए तीरिए किट्टिए अवह्िए० भणाए आआरादिए यावि भवेद्‌ । तच्चै भन्ते महृव्वए °अदिण्णादाणाभो वेरम्णं° । ६४-अहावरं चउत्थं भन्ते ! महन्वयं- चक्लामि सव्वं मेहुणं-से दिव्वं वा, माणुसवा तिसिकिलिजोणियं वा, णेव सयं मेहणं गच्छेज्जा, “गेवण्णेि मेहुणं गच्छावे्ञा, अण्णंपि मेहुणं गच्छतं न समणुल्नाणेज्जा जावज्जीवाए तिर्विहं तिविहेणं-मणसरा वयसा कायसा, तस्स भन्ते! पडिक्कमामि नदामि गरिहामि अषप्पाणः * वोसिरामि। '६५-तस्सिमायो पंच भावणाभो भवंति तत्थिमा पढमा भावणा-- णो णिगंये अभिक्लणं-अभिक्छणं इत्थीणं कहं कहदत्तए सिया। केवली बूया-णिगंयेणं अभिक्वणं-अभिरक्लणं इत्थीणं सावणा २५१ कहं कहमाणे, संतिभेदा संतिविभगा संतिकवलीपण्णत्ताओं धम्माओ भ॑सेज्जञा 1! णो णिर्गंथे अभिक्छणं-अभिक्ख्णं इत्थीणं कहं कहित्तए सिय त्ति पठमा भावणा । ६६-अहावरा दोच्वा भावणा- णो णिरगंथे इत्थीणं मणोहरादं* इदियाईं आलोएत्तए गिज्फाद्तएं सिया । केवली वृया-णिरगंथे णं इत्थीणं मणोहरादं इंदियाइं आलोएमाणे णिज्फाएमाणे, संतिभेया संतिविभंगा “संतिकेवलीपण्णत्तायो० धम्माय भंसेज्जा ! णो गणिग्गंथे इत्थीणं मणोहराईं इंदियाइं आलोपएत्तए गिज्फाइत्तए सिय त्ति दोच्वा भावणा । ६७-अहावरा तच्चा भावणा-- णो णिग्गंथे इत्थीणं पुव्वरयादं पुव्वकीलियाईं सरित्तए सिया। केवली वृया-णिगंधे णं इत्थीणं पुव्वस्या पून्वकीचियाद्रं सरमाणे, संतिभेया “संतिविभगा संतिकेवलीपण्णत्ताओ धम्मायो° भसेज्जा \ णो गिर्गये इत्थीणं पुव्वरयादं पुव्वकीलियाइं सस्ततिए सिय त्ति तच्चा भावणा । ६८~-अहावरा चउत्था भावणा- णाद्रमत्तपाणभोयणभोई से गिस्गंथे, णो पणीयरसभोयणभोरई। केवली वृया--अहइमत्तपाणभोयणभोई से णिग्गये पणीयरसभोयणभोरई त्ति, संतिभेदा °संतिविभंगा संतिकेवली- पण्णत्ताओ धम्माओ० मंसेला । णो अतिमत्तपाणभोयणभोरई से णिम्गंथे णो पणीयरसभोयणभोदं त्ति चउत्या मावणा 1 १-मणोहराड २ ( क, घ ) , मगोहरा सूवाड्‌ मणोहराईं ( छ ) । ए२--घुमरित्तए (अ, कः घ्‌, छ व ) ! 1 ३१ २५२ भायार-चूला १ : पनरसमं अज्मयणं ६९-अहावरा पंचमा भावणा- णो णिरगगंथे इत्थीपसुपंडगसंसत्तादं सयणासणाद्ं सेवित्तए सिया । केवली बूया-णिग्गथे णं इत्थीपसूपंडगसंसत्तादं सयणासणाहं सेवेमाणे, संतिभेया ंतिविभंगा संतिकेवरी- पण्णत्ताजो धम्माओ° मंसेज्जा 1 णो गिष्यंये इत्थीपसुपंडग- संसत्ताई सयणासणादं सेवित्तए सिय त्ति पंचमा भावणा । ७०-एतावताव महन्वए सम्म काएण फासिए श्पालिए तीरिए किट्विए अवद्धिए आणाए° आराहिए या वि भवई 1 चउत्थे भते ! महव्वएु भमेहुणामो वेरम्णं° 1 ७१- १६ पंचमं भते ! महव्वयं- सत्वे करिगहं पच्चक्लामि"-से अप्पं वा, बहुं वा, अणुं वा, धृ दा # वा, अचित्तमंतं वा णेव सयं परिगगहं गिषठेन्जा कै. "हि परिगहं गिण्हावेज्जा, अण्णंपि परिगहं गितं ण त ज्जा, “जावन्जीवाए तिविहं तिविहेणं- मणसा ` . 1, तस्स भते! पिक्कमामि निंदामि गरि ° वोसिरामि । सि मप भवगायो वंति । ततयमापहमा ७२-तस्सिमाौ शर्व भावणामो भवंति । तस्थिमा भवेणा-- सोः वे मणुण्णामणुण्णाईं सहाई ुणेई। यञो रेह ५ क ् { सदेहं णो सज्जेज्जा, णो रज्जेज्ना, णौ भणुण्णामृणुण्णे ˆ `: < गिन््ेज्ना सुञ््ेज्ना, णो अज्फोववज्जेज्जा, णौ “ “ -न्जेज्जा । > व . गेगगेथे णं मणुण्णामणुण्णेहिं सदिं सजमाणे त घ, च) 1 पन्वाडव्खामि (अ, के, ० 21 9, $ ॐ भविणा २५३ ७३ रज्जमाणे गिज्फमाणे मुज्छमाणे अज्फोववनज्जमाणे विणिग्घायमावज्जमाणे, संतिभेया संतिविभंगा संतिकेवलि- पण्णत्तामो धम्माओ भंसेज्ा । ण सक्काण सोडं सहा, सोयविस्षयमागता। रोगदोसा उ जे तत्थ, ते" भिक्खु परिवज्रए ॥ सोयओ जीवो मणुण्णामणुण्णाइं सदाइं सुणेड त्ति पटढमा भावणा । अहावरा दोच्चा भावणा- चक्लृओ जीवो मणुण्णामणुण्णादं रूवाद्रं पासइ 1 मणुण्णामणुण्णेहि स्वेहि णो सन्जेज्जा, णो रज्जेज्जा, *णो गिज्जेज्जा, णो मुञ्ज्ेज्जा, णो अज्फोववज्जेज्जा०, णो विणिगघायमावज्जेज्जा ! केवली वृया-मणुण्णामणुण्णेहि सूवेहि सज्जमाणे र्नमाणे ° गिज्छमाणे मूज्छमाणे अन्फोववज्जमाणे° विणिगाय- मावज्जमाणे, संतिभेया संतिविभंगा °संतिकेवलि-पष्णत्ताओ धम्माभो० भ॑सेज्जा । णो सक्का रूवमदट्‌टु, चक्छुविसयमागयं । “रासदोसा उ जे तत्थ, ते" भिक्खू परिवज्जए ॥ चक्खूओो जीवो मणुण्णामणुण्णादइं सूवादं पासद त्ति दोच्चा भावणा । ७४-अहावर तच्चा भावणा- घाणञो जीवो मणुण्णामणुण्णाद्‌ गंधाइं अगायद्‌ 1 मणुण्णामणुण्णेहि गंघेहि णो सज्जेज्जा, णो रज्जेज्जा, *णो १--तं(भ,क, घः वं)। २-रागोदोसो उ जो तत्थ, तं (अ, क ) । ३५४ भायार-चूखा १ : पनरसमं भन्भयणं गिञ्जेज्जा, णो भृज्तेज्जा, णो अञ्फोवयल्जेज्जाण णो विणिग्धायमावन्जेला । केवली बूया-मणुण्णामणुण्णेहि गंधेहि सन्जमाणे रज्जमाणे °गिज्क्षमाणे मुञ्छमाणे अज्क्ञोववज्जमाणे विणिधाय- मावज्जमाणे, संतिभेदा संतिविभंगा °संतिकेवलि-पण्णत्ताओ धम्माओ० मेसेज्जा । णो सक्का' णः गंधमग्धारं, णासाविस्यमागयं । रागदोसा उ जें तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ॥ घाणसो जीवो सणुण्णामणुण्णाईं गंधादं अग्वायति त्ति तच्चा भावणा । ७५-अहावरा चउत्था भावणा- जिन्भाओ जीवो सणुण्णामणुण्णादं रसां अस्सादेद्‌ । मणुण्णामणुष्णेहि रसेहि णो सन्जेज्जा, “गो रज्जैस्जा, णो गिज्ञेज्जा, णो सुज्ेज्जा, णो अज्फोववन्जेऽजा°, णो विणिग्घायमावज्जेज्जा । कवी वुया-गिग्गंये णं मणुण्णामणुण्णेहिं रसेहि सजमाणे *रज्जमाणे गिज्फमाणे मुज्छमाणे अज्फोववज्जमाणे° विणिग्घायमावञ्जमाणे, संतिभेदा °संतिविर्भेगा संतिकेवलि- पण्णत्ताओ धम्माओ° भसेजा । णो सक्का रसमणासाउ, जीहा विस्रयमागयं । रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्छू परिवज्जए ॥ जीहामो जीवो मणुण्णामणुण्णाद्रं रसां अस्सादेद त्ति चउस्था भावणा । १- सक्को (छ )। २-->८(ञ, क, चः ब) 1 भावणा ३५५ ७६-अहावरा पंचमा भावणा- फासओ जीवो मणुण्णामणुण्णादं फासादं॑पडिसंवेदेद । मणुण्णामणुण्णेहि फासेहि णो सज्जेज्जा, णो रज्जेज्जा, णो गिज्चेज्जा, णो मृज्घेज्जा, णो अञ्क्षोवबज्जेज्जा, णो विणिग्धायमावज्जेज्जा । केवली बूया-णिगथे णं मणुण्णामणुण्णहि फासेहि मज्माणे °रञ्जमाणे गिञ्क्चमाणे मुरज्ञमाणे अज्ज्ञोववज्माणे° विणिग्ायमावनज्जमाणे, संतिभेदा संतिविभगा संतिकेवलि- पण्णत्ताओ धम्माओ भसेज्जा । णो सक्का ण संवदे, फासविस्षयमागयं । रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिक्ज्जए्‌ ॥ फासओ जीवो मणुण्णामणुण्णादं फासां पडिसवेदेति त्ति पंचमा भादणा । ७७-पतावताव महव्वए सम्म काएण फासिए पाए तीरिए किष्टिएु अवद्धिए्‌' आणाए आराद्िए यावि भवडइ । पंचमे भते! महुव्वए “्परिमहाओ वेरमणं० । ७८-इच्चेतेहि महव्वए्हि, पणुवीसाहि' य भावणाहि संपण्णे अणगारे अहासुयं अहाकप्पं अहामग्ग सम्म काएण फासित्ता, पाकित्ता, तीरित्ता, किद्वित्ता, आणाए आरादहिए यावि भवद्‌ । ---त्ति बेमि। १-हिद्विए (ज, व, क, घ, च, छ ) › प्रथममहात्रतसूत्रे ( ४६) "किष्टिए अवद्विए' इति पाठोऽस्ति, अग्र॒ किष्टिए उद्धिः इति पाठो लभ्यते, किन्तु उक्त सूत्रस्य वततेश्चानुसारेणात्रापि अवद्ध" इति पाठो युज्यते, तेन स स्वीकृत । सपण ° (छ, ब ) | ५, सोटसमं अञ्भयणं विसुत्ती अणिच्च-पद १-अगिच्वमावासमुतेति' जंतुणो, पलोयए सोच्चमिदं अणुत्तरं | विऊसिरे' चिन्नु अगाखंधणं, अभीर आरंभपरिगहं चए ॥ पव््रय-दिट्त-पद २-तहागअं भिक्लुमणंतसंजयं, अणेच्सिं चिन्नु चरंतमेसणं । तुदति वायार्हिं अभिदवं णरा, सरेहिं संगामगयं व॒ कुंजरं ॥ ३-तदप्पगारेहिं जणेहिं दीकिए्‌, ससहफासा फरुसा उदीरिया । तितिक्छए णाणि अदुहचेयसा, गिरिव्व वाएण ण संपवेवएु ॥ रुप्प-दिट्ठंत-पद ४-उवेहमाणे कुसरहि संवस, अकतदुक्ली तसथावरा दुही । असूसए सव्वसहे महामुणी; तहा हि से सुस्समणे समादिए ॥ कि १-विड ° (क,च, ब ) ; वियो ० (घ); ° विमो (छ) । वेमृत्ती ५-विदर णते धम्मपयं अणुत्तर, विणीयतण्स्स मुणिस्स फायओ । समाहियस्सऽग्गिसिहा व तेयसा, तवो यपण्णाय जसौ य वड्ढद ॥ ६-दिसोदिसंऽणंतजिणेण तादइणा, महव्वया खेमपदा पवेदिता । महागुरू णिस्सयरा उदीरिया, तमं व॒नेजोतिदिसं पगासया ॥ ७-सितेहि भिक्लु असिते परिव्वए, असउजमित्थीसु चएज्ज पूणं । अणिस्सिभो कोगमिणं तहा परं, णमिरजति कामगुणेहि पंडिए ॥ ८-तहा विमुक्कस्स परिण्णचारिणो, धिर्ईमओ दूव्लखमस्स भिक्खुणो । विसुञ्छंई जंसि मरु पुरेकड, समीरियं रप्पमक व॒जोदणा' ॥ भुजेगततय-दिट्ठंत-पद ९-से हु प्परिण्णा समयमि वदद, णिराससे उवरय-मेहुणेः चरे 1 भुजंगमे चजुण्णतयं जहा जहे, विमुच्चद्र॒से दृहसेज्ज माहणे ॥ श-जोइणो (अ, घ, ब ) । २्‌~ ° मेहुणा (क, बु )। इ-चए (घ) । २३५७ ३९५० क [ पमुहे-दिद्‌रत-पदं १० जमाह ओह सचि अपारं ५५ धयाहि त्तरं! अहेय" णं परिनाणाहि पि न 6 भुमी मतके त्ति कुच्चेइ ॥ १ १--जहा हि बद्ध इह भाणवेहि य॒*२ जह्य तहा वेध ञे धिक ह मणी अंतकड न, दुच्चह्‌ ॥ १२-इमंमि लोए परए य॒ नि वेधण जस्स चिति | 8 भिराल्बणे मण कलकटी भावप म त्ति बेमि। परिरिष्ट-१ आयारो संशिक्षपाठ, पूतं-स्थल ओर आधार-स्थर निर्देश संक्षिष्-पाठ ूते-स्यल पतिं भाधार.स्थल जागममाणे (जाव) सम्मत्तमेव ८।६५-६६,१२३-१२४ ला७त८-८० एवं दक्ल्िणामो वा पच्चत्थिममिो वा उत्तयाओ वा उड्ढामो वा ( जाव } अन्नयरीभो १।३ १1१ एवं परिवेतव्वं ति, उदवेयव्वंति ५।१०१ १०१ एवं हिययाए पित्ताए वसाए पिच्छाए पच्छाएं वालाए रसिगाए विसाणाए दंताए दाढाए नहाए ष्ारुणीए बद्रीए अहिभिजाए अद्राए बणट्राए १।१४० ११४० गाम वा (जाव) रायहाणि ०८।१२६ ८।१०६ घारेज्जा (जाव) गिम्हे ८।८८-६२्‌ ८।४६-५० परकमेऽन वा (जाव) हरत्था ८।२३ ८।२१ पुरत्थिमाजो वा दिसामो भागो महम (जाव) बन्नयरीभो ११३ १।१ वत्यां जाएज्जा (जाव) एयं ८।६४-६७ ना४-८त समारभ (जाव) चेएट् ८।२४ ८२३ परिरिष्ट-२ आयार-चूा संशिप्र-पाट, पूरत-स्थल ओौर आधार-स्थर निदेश संषि्त-षाठ अंतल्िक्ख जाए (जाव) णो भकिरियं (लाव) अभूतोवधाईयं भक्कोसंतिं वा (जाव) उद्वति अ्रोसंति वा तेवं तेल्लादि सिणाणादिं सीभोदग वियडादि णिगिणाइ य जहा सिज्जाए आलावेगा णवरं ओगहुवत्तव्वया भक्रोसेऽज षा (जाव) उह्वैज्ज अणंत्तरहियाए पुढवीए (जाव) संताणए अणेगाह गमणिनज्जं (नाव) णो शमणाए अणेस्णिञ्जं (जाव) णो अणेसणिज्जं (जाव) कामे अगेसणिज्जं. णो अणेसणिज्जं --लाभे अणेसणिज्जं "खमे सते "जाव णो अण्णमण्णमक्रोसंति वा (जाव) उद्वेति अण्णयरं जहा पिडेसणाए अतिरिच्छच्छिनं तहेव तिरिच्छच्छिनं तदेव ₹, # अत्र जायवः शब्दस्य व्यत्ययोपि वतते 1 पते-स्यल ५।३७,३८ ४१९१ ३।६१ ७।१६-२० ३।६ १।१०२ ३।१३ १।१७१६३११०९११३६ १।१०८.१२१ १।२१ १।८५,६७; ८।१, €।१ १।१३५ २।५१ ७५६ ७ा२३४,२५ पत्तिं आधार-स्वल ५।३६ ४।१० २।२९२ २।५१-५५ २।२२ १।५१ ३।१२ १।४ १।४ १४ १।४ १।४ २।२२ १।१५५ ७।२७,२५८ परिशिष्ट-२ अपुरिमततरकडं (जाव) अणसिवितं अवुरिनिनरकठ (जाव) णो जवुनिमिनरफद (ताव) विया सीदद ग॒ अन्नयरनि अपुरिनिरकड (जाव) अणमिविएु (ते) अमुरिसततरङट (जाव) णो अयुनिमेनरकड वा (जाव) अणाकषिविते अप्पंडषु (जाव) सतताणाए्‌ अणंडं (जाव) पाडिगाहेजजा सतिरिच्छज्छनं पिरिच्छच्छिन ततैव अप्पंडं (जाव) म्रा संद (जाव) सताणगं (यं) अष्मडा (जाव) नंताणगा भेट (जाव) चेतेज्जा अपापाणं (जाव) संताणगं जैप्वपाणमि (जाव) मक्कडा भप्पयं (जाव) मक्कडा अप्पादण्णाव्रित्ति (जाव) रायहाणि मप्पुम्मुए (जाव) समाहीए अफामुयं (जाव) णो जअफायुयं (नाव) लाभे अफासुयं लाभे अफासुयाईं (जाव) णो कढभगेत्ता वा तहैव सिणाणाह्‌ तहैव सीभोदगादि कंदादि तहैव अभिकंलसि सस्र तदेव (जाव) णो १२१५११९ १।२४ १०।६ २।१०,१२ २।१४,१६ २।३ १।१३५ ७३५२८ ६।२ २।५८१५।२६,७।२७ १।४३,३।५ ०।३२ २।२ १०।२य १०।३ ३1३ २३।२९१५६,६१ ` १।१२,६४,८२१८३१८७,९२,६६, १०७,११०,१११११२८.१३३, २।८४८,१५।२२,२३०२५,२८,२६. ६।२६.४६,७।२६,२७,२६,३० ९।१०६ १।८४,१०२; ६।१३०१४ ०४१२३ ६।२२-२५ २४ ३ १११७ १।१७,१।४ १।१७ १।१७ राप १।१२ १।२ ७।३०,२१ १।२ १।४३५३।२ २।२२ १।४ १।४ १।४ १।४ ५।२३-२५ ५।२३ 1 जभिहणेज्ज वा (जाव) उद्वैज्ज अभिहणेऽ्ज वा (भाव) ववरोवेज्ज अयं तेणे तं चेव (जाव) गमणाए अयवंवणाणि वा (जाव) चम्मवधणाणि अस्णंवा लाभे असणं वा ४ अफामूयं अस्षणं वा (जाव) कमि असत्थ परिणयं (जाव) णौ असवेज्जं (जावे) भासेज्जा अस्वं पडियाए एणं साहम्मियं संमुदिस्सं अस्सि पडियाए बहवे साहम्मिया समृदिस्छ अस्सिपदियाए एमं साहम्मिणि समुर्हिस अस्सिपडियाए ववे साहम्मिणीमो समृदिस्स अरसिपडियाए बहवे समण माहण पगणिय-पगणिय समृदिस्स पाणाईं ४ (जाव) उदेक्ियं चतेति, तहप्पगारं यदलं पुरिसंततरकड वा अपुरिसंतरकडं वा (जाव) बहिया णीहडं बा अणीहङं वा आदह (जाव) दृद्नेज्जा आणएसणाणि वा (जाव) भवगगिहाभि आंतारेषु वा (जाव) परियावसहैसु आगंतारेषु वा जावोगगद्धियंसि आमन्जेज्ज व (जाव) पयाविज्ज आयरिए वा (जाव) गणावच्छेदए इक्कडे वा {जाव) परुषे ईसरे (जाद) एवोगदियंसि उवज्फाएण वा (जाव) गणावच्छेद्एण १५।४७.४८ २१६४६ ३११ ६।१४ १।३६,४१,८८,६ १ १६२ १।६० १।११३,११५-११६ ४।२२ १०1४-८ ३।५५ २३।४७ २।३४,३५ ७।४३६१४७ ३1३६१६४८ १।१३१ २।६५,७।५४ ७।३२,३३ २।७२ आयार-चूला १५।४४ १।८५ ३।६,१० ६।१३ १।४ १६० १।४ १।६२;१।४ ४।११ १।१२-१६ ३।५४ २।३६ २।३३ ७।२३,२४ १।५१ १।१३० २६३ ७२५२६ १।१३० परिचिष्ट-२ ^ एग वयणं वणुज्जा (जाव) परोकषवरथणं ५४५८ ५३ एव॒ अतिरिन्छच्छिन्ने विं तिरिच्छच्छिने (जाव) पटिगहिजजा = ५।४८८,४५ ७।३०,३१ एवे णायव्वे जहा स-पद्रियाए्‌ म्या वाइत्तवज्ना न्तर पशियाए्‌ विं १२।२-१७ ११।५-२० एवं तमकाए विं १।६८ १।६२ एवं षाद णप्रकष्ण द्ून्दिनेनिवा ४५१६ ४।१६ एवं वटवे मादम्मिया एमं माहम्मिपि बहवे माहम्मिणीनो २1८,५.६ २।६ एवं व्व गाहम्मिया एग साहम्मिणि बहवे माहम्मिणीभो वहे समममादणस्म॒नहेवः पुरिसेनर हा िडभणा ५1६-११ १।१३१४ एवं वहे मारम्मिया एय नाहुम्मिणि वहवे मटिम्मिणीनी ' ** ममुष्य चत्तारि भालावगा भापियन्वा १।१३-१५ ५ 1 १) > 3 श्वं विया वितरारभूमि वा विहारभूमि वा गामाणुगाम दूडण्नेऽ्ना अहूपुगेग जागरज्जा तिव्बदेमियं वा वास चाममावं पहाए जहापिंडमणाए्‌ णवरं स्वे चोवर्‌ माधाए ५।४३-४५ १।३८-४० एवं वद्धा व्ारमूर्मिं वा विहारमूमि वा गामाणुमामं दुडज्जेज्जा । तिव्वदेसियादि जहा विदयाए वत्येषणाए णवरं एत्य पडिग्बहे ६।५१-५८ ५।४२,५० एवं सेज्जां गमेणं ेथव्वं (जाव) उदग पसूयादई ति ८।२-१५ २।२-१५ ६ एवं सेञ्जा गमेणं णेयववं (जाव्‌) उदग प्स्यति एवं हिष्टिमो ममो पायादि भाणियव्वौ एसणिभ्ज (जाव) पडिगाहैज्जा एसणिभ्जं (जाव) छाभे एसणिज्जं "काभ एस पन्ना" *“जं बोव्यतेहि य (जाव) उपिजल्गभृए केदाणि वा (जाव) बीयाभि कंदाणि वा (जाव) हरियाभि कसिणे (नाव) समृष्प्णे कृटरीति वा (जाव) महुमेहणी कूलियंसि वा (जाव) णो खंघंसि वा" अण्णयरे वा तहष्पगारे (जाब) णो खलु (जाव) विह्रिस्सामो गंडं वा (जाव) भगदलं वा गच्छेजजा (जावे) अष्पस्युए "` "तमो संजयमिव गच्छेज्जा (जाव) गामाणुगासं गच्छैञ्जा तं चेव बदिष्मादाणं वत्तव्वया भाणियन्वा (जाव) वोसिरामि गामे वा (जावि) - मामं वा (जाव) रायहाणि यामंसि वा (जाव) राय्हाणिसि शामि वा (जाव) रायहाणी गाहावदं का (जाव) कम्मकरि गाहावक्-कुलं (जाव) पविटठे याहावड -कुलं (जाव) पविषितुकामे ६।२३-१५ १३।४०-७५ १।१८.२३,२।६४ १1७५१४३ २।६२३,६।२ ६।२८४१्‌ १५।४० १०।१५ ५।२५्‌ १५1४० ४।१६ ७।१२ ७1१३ ७।२५ १३।३०-३१ ४४८ ५।४६ १५६४ ७।२ १।३४,१२२,२।१;३।२.२।१ १।३४१,१२२,३।२ २।४५.५७ १६३;५।१८६११७ १।१६,१७ १८१४४ भयारचूलां २।३-१५ १३।३३-३८ १।५ १।५ १।५ १।५६ १५।६ २।१४ २।१४ ११५३ आयारौ ६।८ ५।३७ ५।२८ ७।२३ १२।२म ३५६ ३।६० १५।५७ १।२८ रम १1२० १।२म १।२५ १।१ १।१ परिन्निष्ट-२ ७ गाहावद-कुलं' ` "पविसितुकमि १।३७ १।१ गाहावं वा (जाव) कम्मकरीभो १।१२१,१२२,१४३ > २०१३६,५१.७।१६ ११४६ गोक्तित्ति वां इत्यौ गमेण णेत्तव्वं ४११४ ४१२ छत्तएु वा (जाव) चम्मदेदणणए ७०४ २।४६ दछत्तगं वा (जाव) चम्मछेदणगं ३।२४ २।४६ जवनाणि वा (जाव) नेणं ३।५६ ३।४३ जाएञ्जा (जाव) पञिगाहेज्ना १।१४५.५।१ €,६। १६.१७ १११४९ जाएञ्जा (जाव) विहरिन्सामो ७।४६ ९।२३ जविज्जीवाए (जाव) वोमिरामि १५।५७ १५।४३ जीव पटिव्यमि (जाव) मह्टा १०।१४ १।५१ आमथंडिलनि वा (जाव) भन्नयरसि १।५१.५।३६ १।३ भामथडिलस्ि वा (जाच) पमञ्निय १।१३५ १।३ ठाणे `"चेतेज्जा २।२८, २६ २।१ छाणे वा (जाव) चेतेज्जा २।२७,५१-५५ २।१ णगरं ग (जाव) रावहाणि ८।१ १।२८ णगरस्स वा (जाव) रायहाणीए ३।५८ १।२य णिक्छमण (जाव) चिताए २।५० १४२ णिक्खमणपवेसाए (जाव) वम्माणुनोग ७११४ १।४२ णो अण्णमण्णस्स गणुवयंति त चेव (जाव) णो सातिज्जंति बहुबयणेणं भाणियन्वं ५।४७ ५।४६ णो रज्जेज्जा (जाव) णौ विणिग्वाय १५।७३,७४ १५।७२ णो सज्जेज्जा (जाव) णो विणिग्वाय १५।७५ १५।७२ तं चेव भाणियच्वं णवर चउत्याए णाणत्तं से भिक्लू वा (जाव) समाणे, सेज्ज पुण पाणग-जायं जाणेजना तंजहा "` "तिखोदगं वां तुसोदगं वा, जवोदगं वा, आयाम्‌ वा, सोवीर वा, मुद्ध वियडं वां अरससि खलु पडिगहि्ि अष्ये पच्छाकम्मे तहैव पडिगाहेन्जा १।१४६-१५४ १।१४२-१४७ 1 तहभयारं (नावे) णो १।११४ तहप्गारादं णो ११।१२-१४१६ तहष्पगा रा" "सहाद ' "णो ११,७-११,१५ धू्णंसि वा ४ ७।११ देडगं वा (जाव) चम्मदेदणगं ७।३ दस्युगायतमाणि जाव विहारवत्तियाए ३।६ दव्वदधे (जाव) णो ४ ७।११ दैज्जा (जाव) पडिगाहेग्ना १।१४४ देज्जा (जाव *) फाभुयं `ˆ "पडिगहिज्जा १।१२७ देज्जा (जाव) फासुयं" "लभे ५।१८ दोदहिं (जाव) सण्णिहिसरग्णिचयानो १।२४ निक्लमणपवेसाए (जाव) षम्माणुभोगर्विताए ३।२ निक्खिवाहि जहा इरिथाए पाणत्तं वलत्थपदियाए ५।५० पडल्ना (जाव) जं २।१६,२२.६।२८,४५ पलिक्कमामि' (जाव) वोसिरामि १५।५० पडिमं जहा पिडेसणाष ६।२० पडिमाणं जहा पिडेसणाए ५।२१ पडिवज्जमाणे तं चेव (जाव) अन्नोन्नसमाहीए २।६७ पमज्जेत्ता (जाव) एग ३।३४ परक्मे (जाव) णो ३1७ पागाराणि वा (जाव) दरीबो 31४७ पाडिपहिथा (नाव) भारतो ३।५७ पाणां जहा पिडघणाए ५।१५ पाणां जहा विडेसणाएु चत्तारि आल्ावगा । पंचमे बहवे समणमाहणा पगणिय-पगणिय तहैव से भिक्स वा २ अस्पंजए भिक्लु पडियाए वहे समण माहणा वत्ये्षणारावमो ६।४-१२ ` जन जाकः शब्दस्य व्यत्ययोपि वर्तते। = ` घायार-चूला १।४,६२ ११।५ ११।५ ५।३६ २।४६ ३।य८ ५।३६ १।१४१ १।१४१ १।१४१ १२१ १।४२ ३1६१ १।५६ १११४३ १।१५५ १।१५५ १।१५५ ३।१५ ३।६ २३।४१ ३।५४ १।१२ १।१२-१८३५।५-११ परिनिष्ट-२ पाणाभि वा (नाव) ववरोवेज्ज २।७१ पायं वा (जाव) इंदिय नायं २।४६ पायं वा (जाव) लूसेज्ज २।७१ पिहुयं वा (जाव) चाउल्यलवं १।७,१४४ पुढविकाए (जाव) तसकाए १५।४२ पुढविकाय समारभेणं एवं भाउतेउवाउ- वणस्सई महया तसकाय २४१ पुरिसंतरकडं (जाव) भसेवियं १।२२ पुरिसंतरकडं (जाव) पडिगाहेज्जा ५।१३ पुरिसत्तरकडं (जाव) वहिया णीहडं ˆ“ अष्णयरंसि १०।१० पुरिसंतरकड (जाव) आसेविए २।६,११.१३ परिसंतरकडे (जाव) चेतेउना २।१५,१७ पव्वोवदिद्रा ४ जं १११२३ पत्वोवदि्रा (जान) चेतेऽजा = श्छ, २।३० पव्बोवदिदरा (जाव) जं ` १६१ पव्बोवदिहरा (जाव) जं २।२३,२४,२५१२७,२८०२६; ३।६.,१३,४६.५।२७ पव्वोवदिदा (नाव) णो १।६५ पेहाए्‌ (जाव) चित्ताचिद्टडं ३।५६ फलिहाणि वा (नाव) सराणि ११।५ फासिए (जाव) भआणाए १५।५६ फापतिए (नाव्‌) आराहिए १५।७० फाुयं (नाव) पडिगादैज्जा १।२२०२५० १०१००१४६ ५।२०,३०,७.२८०३१ फासुयं '"पडिगाहे्जा १।१४१ फासुयं""काभे सते (नाव) पडिगहिज्जा १।१०१,१२० बहुकं" "लाभे संते (जाव१) णो ११३४ बहु पाणा (नाव) संताणगा ३।४ बहुबीया (नाव) संताणगा ३।१ 9 अ ° रत्न जाद शब्दस्य उयत्ययोऽपि वतेते । 3 ११८ ३. (4. १।६ २1४१ २।४१ १।१८ १५।११ १।१८ १।१८ २।६ ११५६ २।२७ १1७१ ११५६ १।७१ १।५२ १८७११४१ निंक्षीव ११५।४६९. १५।४६ १५ १।४ श १।४ १।२ ११२ १७ वहुरयं वा (जाव) चाउकपवं मगवंतो (जाव) उवरा भिक्खुणी वा (जाव) पविट्ठे भिक्खू वा (जाव) पृविट्छे भिक्खू वा (जाव) सदां भिक्खू वा (जाव) समणि भिक्खू वा (जाव) सुणेति भिक्त वाः सेज्जं मणी बा (जाव) रयणाव्डी सत्ते तषैव दोच्रा पिडेसणा महद्वणमोाईं'"" भे महद्धियामो क्ुज्जा जहा पिडे्णाए (जवि) संधारगं महव्वए मासेण वा जहाच्च्ये्णाए माभि वा (जाव) हरियाणि रज्जमाणे (जाव) विणिखाय छाडे (जाव) णो विहाखत्तियाए वत्याणि भे ' ° वव्पाणि वा (जाव) सवणगिहाणि नायण (जाव) चिताष स अङं (जाव) णो स भंडं (जाव) णो स .अंडं (भाव) सक्कडा स अंडं (नाव) संताणयं (गं) आयार-चूला १।८२ १।६ २।२१ १।१२१ १।५,६.७.१ १०१२, ४२५६२६२ ६,६९.१० १३१०४,१०५.१०५७, १०८,१०६.१११ ११ १।२३,४६.५०,५२ १1१ ११।१६ ११।२ १ 1 4 ३ | ५ 4 9 4 ८ [॥ द १ | ए ३ । प 1 ७; ठ ६, ६०,६७,१०२.१०६.११०,११२ ११६.१२४.१२५.१२६०१३५१ १३९१४८५. १४७.१५१ १।१ ११।१५८,१५ ११२ १।८२.१२०८०१३३०१२४१४४ १।१ ५१२४ २।४ १।१४२ १।१५४१ ५।१४ १।४ २।१२ १।२६ १५।१५६०६२०८४०६१ १५।४६ ६।२१ ५।२२ १०।१२ २१४ १५१७३१७४ १५।७२ २।१२ दम ५१५ १।४ ४२१ ३।४७ २४६ १४९ ७।३३ ७२४ ७।३६.,४३ ७१९६ ८।१,६।१ १८९ २।१,५७;५।२८;७।२६ ` १।२ परि्िष्ट-२ स अंडादिं स्वे आकावगा जहा वत्वेणाए णाणत्तं तेत्ेण वा धएण वा णवणीएण वा ॒वसाएं वा सिणाणादि (जाय) भण्णय- रसिना सर अंडे (जाव) संताणए संति भया (जाव) भेसेज्जा संति विभंगा (जाव) धम्माओ सति विभेगा (जाव) भनेज्जा संयारगं “"काभे सेथाग्यं (जाव) कामे सक्रिया (जाव) भूभोवधाइया सज्जमाणे (जाव) विणिग्घाय नत्ताड (जाव) चेएई तहगारे, उवस्वए अपुरिसंतरकडे (जाव) जणासेनिए सपाण (जाव) मक्डा सपाणे (जाव) संताणए समण (जाव) उवागया सम माहणा (जाव) उवागमिस्संति समणुजाणिज्जा (जाव) वोसिरामि सम्म (जाव) माणाए सयं वा (जाव) पड़गाहे्जा सयं वा णं (नाव) पडिगाहैज्जा स्िणिदधाए (नाव) सताणएु = ससतिणिद्धाए पुडवीएु (जाव) संताणए सपिणिद्धगेतं तं चेव एव . सरके मष्टा उसे, हरिथाले हिगृए, मणोसिखा अंजणे रोणे गेरुय बण्णि॒सेडिय, सोरद्टिय पि कक्षम उक ससदट्ठेण ६।५२६९-४२ २।३१ १५।६७,६८१६६,७१५ १५।६९६ १५।७ (| ५ ७४ २।५७,५८,५६,६० २।६१ १५।४६ ११।७५,७६ २।७,८ १०।२्‌ १।५१ ३।३,४ १।४३ १५।७१ १५।६३ ६।१८ ६।१६ भदन ७।१० १।६५-८० ५।२८-३६ १।२ १५।६५ १५।६५ १५।६५ १।४ , १५ ११५।४५ १५।७२ १।१६.१७ १।२९ १।२ २३।२ ११४२ ११५।४३ १५।४६ १।१४१ १।१४१ ११५१ १।५१ १२ भायार-चूणा सामगियं... १।४०,६०,८६,१०३,१२०.१२९.१३७; २।२६,४३ १।२० सामगियं २।४६;१५।४०,५१,७।२२,५८ २।७७ साममिये (जाव) जएज्जासि ८।३१;१०।२९;११।२० २1७७ सावज्ञं (जाव) णो भिन्ना ४।२१ ४।१५ पिणाणेण वा (नाव) आषंसित्ता ५।२३ २।९० सिणाप्रेण वा (जाव) पषसेज्न ५।२१ २।२१ सिणाणेण वा तहैव सीभोदग- वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा भाखावभो ५।३३,३४ ५।३१,३२ सिकाए (भाव) मक्कडा संताणए १।८२ १५१ सिलाए (जाव) संताणए १।८३ १।५१ सीमोदग-वियडेण वा (जाव) पघोएन्न ५।३२ २।९१ सीलमंता (नाव) उवरया २।३५ ११२१ सुमणे सिया (जाव) समाहीए ३४४ २।२६ से भगंतारेसु वा (जाव) जाद ७।४ से भिक्ल्‌ वा भिवखुणी वा अभि- कलेज्जा त्हुसुण वण उवागच्छित्तए्‌) तक्ैव तिश्निविं आकवेगा णवर ल्हघुणं ७।३९-४२ ७।२५२८ से भिक्ू वा भिक्वुणी वा से्जं पुण जाणेज्जा"-असणं वा ४ आउकाय पद्षटियं तह चेव । एवं भगणिकाय पदद्टियं छाम संते णो पडिगहेज्जा १६३९४ ११९२ सेमं ते चेव १४।३-७६९ ` १३।३-४६ इत्यं (जाव) अणासायमणि ३।५१०-५२ २।७४ हत्थं वा (नाव) सीसं २1१९ शच्ण हत्य जुद्धाणि वा (जवि) कविजल १११२ १० (0 १० हृ्थिद्राण करणाणि वा (जाव) कविजर ११।११ # परिरिष्ट-३ वाचनान्तर तथा आरोच्य-पार चाचिनान्तुर्‌ स्यानाद्धसूत्रे महापद्करणे (६।६१) वृत्तिकारप्रदरिते वाचनान्तरे “कंसपारईव मक्कतोए जहा भावणाए जाव सुहूयहुयासणेतिव तेयस्रा जलंते'” इतिपाठे भाचारचूलाया भावनाघ्पयनस्य समर्पणं सूचितमस्ति 1 दृत्तिशना श्रीमदभयदेवसूरिणाऽपि एतत्‌ संवादि समृद्धिषिततम्‌- “यया मावनायामाचाराङ्खद्ितीयश्रुतस्क्थ -पञ्चदशाघ्ययने तया जयं वणको वाच्य इति भाव , ज्रियदृदुरं यावद्िव्याहू-जाव सुहुयेत्यादि'” (उत्ति, पत्र ४४०) । भोपपातिकपुतरे ( भूत्राङ्क २७, दृत्ति पृष्ठ ६६ ) “वक्षयमाणपदानां च भावनाघ्ययना- दुक्त इमे संग्रहगाये-- कंसे संखे जीवे, गवणे बाए य सारए सक्िलि 1 पुलरपत्ते परुम्मे, विहगे खगे य॒ भारंडे ॥ कुंजर वसहै सीहे, नगराया चेव सागरमलोहे । चदे सरे कणगे, वतुंघरा चेव सुहुषहुएु ॥ इति वृत्तिकृता भावनाष्ययनगतसंग्रहुगाथयो सूचनं कृनमस्ति । एतयोर्हो. सभर्प॑ण-सूचनयो सन्दर्भे भावनाध्पयनं दृष्टं तदा क्वापि समर्पित पाठो नोपच्वय । भावनाग्य्रथनप्य श्ृतिरत्यन्तं संक्षि्ताऽप्ति, तत्र त्य पाठ्य नास्तिकोपि सकेन आदेषु चापि तस्यनुग्छन्पिरेष्र। वर्गो उक्तषाठ्य ग्प्राद्पा समुपलन्वा तेनेति निर्णय कतुः शक्यते--त्रूणिव्याख्यातात्‌ पाठात्‌ आादर्शगतः पाठो भिन्नोस्ति) भयं वाचनाभेद चूणिक्ारस्य समक्षमासौन्तवेति नानुमानं कतुः किचित्‌ साधनं ऊम्यते 1 स्यानाङ्गल्य वाचनान्तर-पाठे मावनाष्यथनश्य समर्गणमस्ति तस्य सम्वन्व . चृष्यनूसारि- पाठ्नैव विद्यते, तथेव भौपपातिशडतते सूचनस्यापि सम्बन्धस्तनव । स्थानाङ्के महापद्प्रकरणे एव स्वीकृतपाठेपि "जहा भावणाते इति समर्पणमस्ति 1 तस्यापि सम्बन्धक्चृष्ंनुस। रिपाठेन विद्यते 1 भारोच्यमानपाठ किचिद्‌ मेदेनानेकेषु आागमेपु चभ्परते 1 तस्य तुलनात्मकमध्ययनमव स्तयते । भचाराङ्धनूर्णो पूणं पाठेः विदरेतो नास्ति । स स्थानाद्खश्य, कल्यसूत्स्य, नम्वदरप्रजञततेः, जा बाराद्धवूर्णेश्व॒सम्वन्व-समीश्चा-वुरवकं संयोनित-। स च इत्वं सम्भाव्यते- ^ १४ आयार-चूला संयोजित पाठः तए णं से भगवं अणगारे जाए इरियासमिए भासासमिएु जाव गृत्तवंभयारी नमम मर्जिचणे च्छिननसोते निदपलेवे कंसपाईव मुक्षमोए संखो इव निरगणे जीवो विव अषपडिहय गई जच्ङृणगे पिव जायल्वे भादरिषफम्मे इव पागडमावे कुम्भो इव गृत्तिदिए पुकंछरत्त व निरपलेतरे गगणमिव निरारुक्णे अणिशो इव निरारए चंदो इव्‌ सोभरे सूरो इव दित्ततेए सामरो इव गभीरे विहग इव सव्वओ विप्यसुक्के मंदरो इव भध्पकये सास- सलिल व सुदरदियर खमाविसाणं व एणजाए भारंडपकबी व॒भप्यमत्ते कृजो इव सोडीरे वसमे इव जायत्यामे सीहो इव दुद्धरिके वसुघरा इव सव्वफासविसहे सुहृयहुयासणे इव तेयस्रा जते । [ क्ते संखे जीवे, गगमे बाति य सारषएु सलिल 1 पुक्लरपत्ते करुम्मे, विहगे खमे य मारडे ॥१॥ कंजर वसह सीह, नगराया चेव सागरमसोहे । चदे सुरे फणगे, वसुंधरा चेव सुहयहृएु ॥२॥ ] नत्थि णं त्ष मगवंतश्म कल्यद पडिरिमे भवद्‌ । सेय पडव्रंये चडउव्वहे पष्णत्ते, तं नहा--अडए वा पोयएड वा उगहेश वा पहिएद वा, जं णजंणं दिसं दच्वहत णतं ण दिदं अगडिवद्े बुचिभूद्‌ लमू अग्गे संजमेगं भध्वाणं भविषणि विह्रई । तस्स णं भगवेतस्व अणुतरेणं नाणेगं बणुत्तरेण द्णेणं भणुतरेण' चरित्तभं एवं आल्एणं विहारेणं अज्जतरेणं सद्वेणं ठकक्रेणं खपीए मृत्तीए सच्व-संजम-तव- मुण-युचरिय-सोधचिय-फ ठ-परिनिव्ाणममोण अप्पाणं भवेभाणस् फाणतरियाए वट माणश अगते अगुतरे निवपावरादु निरात्ररणे किणे पडुण्णे केवलवरनाणेमणि समुप्पन्ते 1 तएणंसे सपव अर्हे जिणे जाए केवी समन्त्‌ सवदरिषौ सनेरहयतिरिथनरामरस्स छोगस्य पञ्जेव जाणइ पास, तजहा--आगतिं गतिं ठितिं चयणं उववाय तक्र मणोमाणठियं मुत्तं कडं परिसेवियं आवीकरम्मं रहोक्रम्भं अरहा मरहस्स भागौ, तं त कालं मणद्वयक्राइएहि जोगे वट्रमाणाणं सब्रलोए सव्वेजीवाण सन्मभावे भजीवाण य जाणमाणे पासमाणे विहर 1 तए णं से भगवं तेणं बणुत्तरेणं कैवरवरनाणदंसणेणं सदेवमणुयासुर लोगं भनिशतमिन्वा समणाणं निमंथाणं पंचमदहृन्वयादं समावणादइ छजीवनिक्राए धम्मं भक्खाई (देसमादे विह्रद), तंजहा--पुढविकाए आउकाए तेउकाए वाठकाएु वणस्सदकाए तसकाए 1 परिशचिष्ट-३ : वाचनान्तर तथा भलोच्य-पाड १५ स्याचान्न (६।६१) : तस्व णं भगवतस्स° साइरेगादं दूवालसवासाईं निच्चं वोसद्भुकाए चियत्तदेहे जे केड उवसग्या उप्मज्जिर्हितितं दश्वा वा माणृपरावा तिकिक्डिनोणिया वा, ते से सम्मं सहिस् $, खमिस्द तितिविखस्सदइ भहियासिस्तद । तए णं से मगव भणगारे मविस्खई इरियासमिए, मासासमिए, एसणासमिए्‌, आयाण- भडमत्तनिक्वेवण।समिए्‌, उच्वारपाखवणदेलजत्लनिघाणयारिट्रावणियासमिषए, मणनृतत, वयगुतते, कायगुतते, मुक्ते, गृक्तिदिए मुत्तवं भयारी अममे अरिचणे छिनगथे [ इृ० पा० किन्नगथे } निरूपलेवे कंसपारईव मुक्कतोए जदा भावणाए जाव सुहूुयहुयास्षणे तिव तेयसा जरते । कसे संखे जीवे, सरणे बाते य सारए सरच्कि 1 पत्रलसपत्ते कुम्भे, विहगे कमे य सारडे ॥१॥ कंजर वसे सीहे, नगराया चेव सागरमतोहे । च्दै सुरे कणो, वसुंधरा चेत्र ॒सृहुयहुए्‌ ॥२॥ नत्थि णं तस्स॒भगवेतस्स कत्यई पच्विपरे भविस्सइ, सेय पडिविवे चउन्विहे पन्तत्त, तंजहा-- अंडएद्‌ वा पोयएइ वा उगहेह वा पगदिएद वा, जं णं जं णं दिसं इच्छत णं तं णं दिसं अपडिवद्धे सुचिभूए ज्हुभूए अणुं संजमेणं नपाणं मावेमाणे विहरिस्सड, तस्स णं भगवतस्पर बणुत्तरेण नाणेगं अणुत्तरेणं द्णेणं अणुत्तरेणं चरित्तेणं एव आलएणं बिहारेणं अञ्जवेण मह्वेण राघवेणं खंतिए मृत्तीए गृत्तीए्‌ सच्च-सजम-तव-गृण-मुचरिय-सोय-विय- (चिय ?)-फ-परिनिन्ाणममोण अप्पाणं भवेमाणस्म कणंतरियाए क्टमाणस्स अणते शणुतरे निब्बाधाए्‌ निरावरणे कसिगे पडिदुणो केवक्वरणाणद्तगे सनूपयज्जिहिति । तए णं से भगव श्ररहे जरिणे भविस्सत्ि, केवलो सव्वन्नू सच्वदरिसी सदेवमणुभामुरस्स रोगश्स परियाग जाणइ पाद सन््रलोए सव्व जीवे।ण आयं मतिं व्यिं चरण उववायं तक्रं मणोमाणसिय मुत्त कडं परिसेत्ियं बावीकम्म रोक्म्मं अरहा अर्घ माग तं तं काक मणसतवयस्षकाइए जोगे वटूमाणाणं सब्रलोएं सच्नीवाणं सब्दमादे जाणपाणे पासमाभे विहरिस्सई 1 तए ण ते मगव तेणं भयुत्तरेणं केवल्वरनाणदंमणेणं सदेवमयुभानुरं छो अभिसमिच्चा समगाणं निगथाणं सगेरइए जाव पंचमहव्वयाड समातणहं दमीवनिक्ाया धनम देपेमाणे विहरिस्सति 1 १-मस्य स्थाने षि णं भगवे' युज्यते , ५ । भयार-बूला कस्पसुन्र : तए णं समणे भगवं महावीरे मणगारे जाए इरियासमिए, भासासमिषए, एस्षणासमिए्‌, आयाणभेडमत्तमिक्लेवरण।समिए, उच्वारपासवणलेरर्दिधाणजत्लपारिट्ढावणियासमिषए्‌, मग- समिए, वडसमिए, कायसमिए, मणगुतते, वययृद्े, कायगुते, गृतते, गुर्तिदिषए, गृत्तवं भारी, शकोहे, भमाणे, अमाए, भलोभे, संते, पसंने, उवसंते परिनिव्वूडे, भणासवे, अममे, अरकिचणे, चित्नगये, निर्वलेवे, कंसपाई इवं मुककतोये १, संखो इव निरंजणे २, जीवो इव अप्पडिहयगरई ३, गगणं पिव निरावरणे ४, वायुरिव भअप्पडिवद्धे ५, सारयसटिलं व सुदहियए ६, पुक्छरपत्त' व निर्वलेवे ७, कुम्मो इव गुत्तिदिए ८, खगिविसाणं ब एगजाए्‌ € विहग इव विष्पमुक्के १०, भारुंडपक्ली इव॒ अप्ममत्ते ११, कुजरो इव सोडीरे १२, वस्रमो इव जायथामे १३, सीहो इव दुद्धरिसे १४, मंदरो इव अप्पकपे १५, सागरो इव गं मीरे १६ चंदो इव सोमकेते १७, सूरो इवं दित्ततेएु १८, जच्वकेणगं व जायल्वे १९, वघुधरा इव सब्वफासविसदे २०, सुहूयहुयासणो इव तेयसा जल्ते २१ । एतेसि पाणं इमातो दुन्नि संघयणगाहागो-- कसे संवे जीवे, गगणे वायरु य सरयसलिकले य} पुक्रपत्ते कूष्म, विहगे खणे य मारंडे ॥१॥ कुंजर वसमे सीहे, णगराया चेव सागरमखोभे ) चदे पुरे फणे, वसुंधरा चेव हयवहे ॥२॥ निय णे तस्॒भगवंतस्स कत्थई पडिवधो भवति ! से य पडिवंधे चरव्विहे पप्ण्ते, तं जहा- दन्बभो खेत्तमो कालो भाव । दब्बभो णं सचित्ताचित्तमी सिएुसु दवेम । वेत्त णं धामे वा नगररेवाभरण्णेवा छित्तेवा ख्लेवाघरेवा अंगणेवा णहैवा! कार्म णं समए वा भावल्याए्‌ वा बाणापाणुएवा थोवेवा खणेवा खेदा मुहचेवा होरे वा पक्छे वा मापे वा उछ वा घयणे वा संवच्छरे वा भन्नयरे वा दीहकालषजोगे वा। भाव णं कोहैवा मानेवामायाएवा छोभेवा भये वाहाप्रेवा पेज्जेवा दोसे वा कलहे वा अन्मव॑ल्लाणे वा पेसुन्ने वा परपरिवाए वा अरतिरती वा मायामोते वा मिच्छार्द्णसल्टे वा । तस्र णं भगवंतस्स नो एवं भवद । से णं भगवं वासावासकज्जं शरद भिम्ददैमंतिए मासे गमे एगराईए नगरे पंचरार्दए वासीचंदणसमाणकमे समतिणमणिलेटूटुकंचणे समदुक्लसुदे इहटोगपरलोगजपहिवरं जीविप्रमरणे निरवकंले संसारारगामी कस्मसंगनिषायण्टाए अन्म्िए एवं च णं विहरई । पररिणिष्ट-३ : वाचनान्तर तथा आोच्य-पाठ १७ तस्स णं भगवतस्स अणुत्तरेणं नाणेणं भणुत्तरेणं दंसणेणं भण॒त्तरेण च्तिणं अणुत्तरेणं भारएणं अणुत्तरेणं विहारेणं मणुत्तरेणं वीरिएणं अणुत्तरेणं अज्जवेणं अणुत्तरेणं मद्वेणं ; अणुत्तरेणं जाधवेणं अणुत्तराए खंतीए बणत्तराए मूत्तीए अण॒त्तराए गृत्तीए अणृत्तराए ृष्रीए अणुत्तरेणं सन्वसंजमतवसुचरियसोवचदयफल्परिनिन्वाणमनोणं मप्पाणं भावे- भाणस्स दुवा संवच्छरादं विदक्कतादं । तेरसमस्स संवच्छरस्छ श्र॑तरा वटरमाणम्स जे से गिम्हाणं दोच्वे मासे चरत्ये पक्ले वदसाहनुद्धे तरख णं वडखाहनुद्धम्स दस्मीए पक्ेणं पार्णगामिणीए्‌ ायाए पोरिसीए अभिनिवदटराए पमाण्पत्ताए सुव्वए्णं दिवतेणं विजएणं मूहुत्तेणं जंभियगामस्घ नगरस्य विया उनुवालिवाए नए तीरे विवावत्तस्स वेद्यस्य अदुरसामति सामागस्प्र गाहावइस्स कटुकरणं सि सारूपायवस्स अहे गोदोदियाए उनक्कूडूयनि- सिञ्जाए आयावणाए भायावेमाणस्स छट्ठेणं सत्तेणं अपाणएणं हत्यत्तराटिं नक्चत्तेणं जोगमुवागएणं ्ाणंतरियाए वदट्रमाणस्स भणते अणुत्तरे निनव्वाघाएं निरावरणे कमिणे पदिमून्ने केवरवरनाणदंसणि समृप्यत्े । तए णं से भगवं अरहा जाए निणे केवली सव्वनतू सव्वदरिसी सदेवमणुयासुरम्स रोगस्स परियायं जाणड पास, मन्वलोए सब्वजौवाण नागदं गं ठि चवणं उववायं त्कः मणो माणसियं मुत्त कड पृहिसेविय भाविकम्म रहोक्रम्मं अरहा अरहन्समागौ तं तं कां मणवयणकायजोगे चटमाणाणे सबव्वलोए सव्बजीवाणं सव्वमावे जाणमाणरे पानमाणे विहूरद्‌ । ४-नम्बुदरीप प्र्ञपि, वक्ष २ (पत्र १४६) तए णं से भगतं समणे जाए ईरिगाप्तमिए्‌ जाव परिद्रावणिथासमिए मपरमि चयसमिएु कायषमिए्‌ भणगृत्ते जाव रगृत्तवभयारो अकोहे जाव गक्लोहे संते पसंते उवते प्रिणिन्तुडे चिष्णसोए निसुवठेवे संखमिव निरजणे जच्चक्णग व जावस्वे मादरिसपहिमागे श्वे पागडभावे कुम्मो इव गृत्तिदिए पुक्वरपत्तमिव निर्वलेवे गगणमिव निराखवि नणि इव णिरालए चंदो दवं सोमदंसणे सूरो इव तेअंसी विहग एव अपडिवद्धगामी सागरो दव गंभीरे मंदरो इव भके पूवी विव सव्वफासविसहे जीवो विव अप्यडिटेयगडत्ति । णस्य णे तस्स भगवेतस्स कत्यइ पडिववे, से पड्ववे चठन्िहे भवि, तंजहा-- दव्वमो चित्तो कालमो भावभो, दन्वओ इह खलु माया मे पिया मे नाया मे सर्निणो मेँ जाव सरंगंवर्सवुभा मे दिरण्णं मे सुवण्ण मे जावे उवगरणं मे, अहवा समास्तमो चचित्ते दा अचित्ते वा मीसएु वा उन्वजाए सेव तस्स ण भवई, वित्तजो गामे वा णगरे बा श्रममेषा चेतेषा खले वां गेहेवा गगणे वा एव वस्म ण मवड्‌, काल्मो पोवेवाख्वेवामृहटु्तेवा अहोरत्ते वा पक्वे वा मापे वा उङए वा बयधे बा रंवच्छरे वा मननयरे वा दीटकारपटि- ववे एवं तस्स ण भवई, भादमो कोद षदा जादनोहैवान्एवादहनेिदाषएवंतन्वप भवई, से णं भगव वासावारवज्ये हेमंतमिम्हानु गमि एगराईए प्गरे पचरादएु वदगयहां १८ आयार-चखा ससोगभ्ररहभयपरित्तासे णिम्ममे णिरहंकारे ल्हुभूए अगंथे वासीतच्छणे अदुरढे बंदणाणु- छेवणे अरतते लेटटुंमि कंचभंमि असमे इह लोए भपडिनद्धे जीवियमरणे निर्वकंसे संसारपारणामौ कम्मपंगणिग्धायणद्राए अब्भुद्रिए विद्र 1 तस्स णं भगवंतस्स एतैणं विहारेणं विदररमाणम्स णे वासमहम्से विदक्कंते समाणे परिभतालस्ष नगरस्स बहिभा सगडमहंसि उज्जाणंसि णिशगोहवरपायवस्य अद फाणंतरिआएु वटमाणस्स फमुणवहुलसय इक्करारमिए पृम्बण्ड कालसमग्रंसि अष्टुमेणे भत्तेणं अपाणएणं उत्तरासाढाणक्छततेणं जोगमूवागए्णं अ्रणुनरेणं नाणेणं जाव चरिेण अणुनरेण तवेणं बलेणं वीरिएणं भाल्एणं विहारेण 'मावणाए तीए गृत्तीए मृन्तीए पुद्रीए अज्जवेणं महुवेणं छाघवेणं सुचरियसोवचि- अफचनिन्वराणमग्ेणं अप्पाणं भावेमाणम्स अर्ण॑ते अणुत्तरे णिव्वाघाए णिरावरणे कतिणे पडिपृण्णे केवल-वरनाणदंसणे समुप्पणणे जिणे जाए केवली सवन्नु सब्वदरिसी सणिरदइम- तिरियनरामरम्ख छोगास्प पज्जवे जाणडई पासद, तंजहा--भागदं गं ठि उववायं भृतं कड पडिसेविभं भवीकम्भं॑रहोकम्मं तं तं कालं मणवयकायनोगे एवमादौ जीवाणवि सव्वभावे अजीवाणवि सञ्व्रमावे मोक्लमगस्स विसुदधतराए भावे जाणमाणे पासमाणि एष खलु मोक्लमगे मम॒ अण्णेसि च जीवाणं हियसुहणिध्सेसरे सव्वदवंखविमोक्छणे प्रम युदसमाणणे भविस्प€ । तते णं से भगवं समणाणं निमांथाणं य णीमांथीण य पुं महव्ययाहं सभाविणगादईं छच्च जोवणिकाए धम्मं देसमाणे विहरति, तंजहा-- पुडतिकाइए भावणागमेणं पंच महव्वयादं सभावणगाईं भाणिञन्वाईंति । -सुत्रकृतांगे (२।२) प्रषनव्याकरणे (संवरद्वार ४) रायपसेणदयसुत्रे (सुत्राक ८१०. ८१२ ) ओौपपातिक सूत्रे (सूत्र : २७-२९.५५२,१५३,१६४) चालोच्यमानपषठिनांधिकौ क्वचिच्च तदधिकापिं तुलना जायते । किन्तु एतेषां सूत्राणां पाठाः अनगार-वणन-तवदा सन्ति, ततः पूर्णातुलना प्रस्तुतपाठेन न नाम जायते । आरोच्य-पाठ (१) हण पणे-(भायारो ६।५।६१, १० ७४) । छव प्रतौ !हयमणे' इति पाठान्तरं लभ्यते । श्रस्थाधारेणं !हइणमाणे' इति प्रार्य कलयता णायते ! मर्थसमीक्षयाऽपि हणमाणे' इति पाठ समीचीनः श्रतिषाति । श्वायमा्े भवर कारितस्य शइणभोयावि समणुजाणमाणे" अत्ानुमोदनस्यारयोप्ति अस्मिन्‌ संदर्भ यदि श्णमाणेः पाठ स्यात्‌ तदा कतकारितानुमोदनस्य संगतिर्जायते ! वूर्णावपि (१ २३०) अस्य पाठस्य संवादिविवरणं भ्यतते--ुढपिकादयादि जीवे हणसि हयरावेषतं ह॑तो योगक्रिककरणचिगेण । (२) एस खलु गवया सेज्जाए अक्लाए--(आयार-चूखा १।२।२९, ¶० १२ ९1 ,, भआचारधलायाः पाठ-संशोधने षड़्‌ आदशः प्रयुक्ताः, चूर्ण ततस्च । तत्र प्रिशिष्ट-३ ` वाचनान्तर तथा आलोच्य-पाठ १६ छक्तपाठस्य ये पाठ-भेदास्ते तत्रैव पादटिप्यणे प्रदर्शिताः सन्ति! इृत्तौ ( पत्र ३०० ) एस ॒विुगयामो सेज्जाए" इति पाठो व्यास्यातोस्ति--गृहस्थ्चानेनाभिसन्धानेन सं्र्याद्‌--यथेष सापु शय्याया. मंस्कारे विधातव्ये विलृगयामोः त्ति निर्व धिश्च श्यत स गृहस्य कारणे सगतो वा स्वयमेव संसकारयेदिति ।" बस्मामिः व॑ प्रतयनुसारी पाठ स्वीक्रत । चुर्णावपि (१० ३३२) "एस खुं भगवया' इति पाठो रस्थते । शिज्नाए भक्खाए' अत्र दोऽशव्द॒अध्याहततग्यः । वस्तुतः उक्तपाठ व्याद्धागत- प्रतीयते । संयरेज्जा" इति प्ररस्यानन्तरं “तमहा से संजए' इत्यादि पाठ स्यात्तदानीमपि स खण्डितो न प्रतिभाति । इ्तहृता उक्तपाठस्य या व्यास्या कृतना, तथापि प्वानुमानस्य पुष्टि- जयते । इत्तिकारस्य सम्मुखे "विलुंगयामो' पाठ मासीत्‌ स केपुचिदेव भादरशेपु उपरभ्यते, नतु स्वेषु 1 ११६ ११३ ११५ १३०५ १५९ ५. र्‌ ४५ ४६ १४ भरत ५६ ८६ ११ १३ २६ ५२ दुद्धि-पत्म्‌ १-आयारो मूल-पाठ भद्युद्ध च्द्ध श्टविखणाओ' ` "अहस" श्दक्खिणाओ' ` "अहमंति ° सत्यं- सत्यं समृद्राए समुद्राए पास पासा ०तता °्ता णेवणे गेवण्णे अभिकत अभिकं य दव आरामो अरामो देहं तराणि देहंतराणि ० जासि ° जासि ° च्चाद्‌ ° उचाई णिक्रम्म- णिक्कम्म- उवायं उववायं पच्चा णच्चा लहु % चहु © अन्न मत्न- अन्नमन्न- उज्भद्‌ उज्मह तीतं कि ? तीतं १ कि सगडिन्मि सगडन्मि वीर्‌ वीरे विन्नाणं- विन्ताण- दुक्मिणं त्ति टक्मिगं ति दनीए देवि जहा- अटा- षष्ट १५ ६० ६३ ६२ ६४ ६७ ६६ ६६ ७४ ७०५ ७१ ७२ ७३ ७२ ७३ ७३ ७२ ७५४ ७६ ७६ ७६ ७६ ८6 20 यर्‌ ८२ य ~, यत्र १७ ६४ १०१ १०६ १२० ३३ 1.1 11 ६... ७४ ७६ ७६ ७६ ७६ ८२ ६४ ६६ १०२ १५५ १०८ ११३ १० २१ २४ २४ २९. ४१ ४१ भद्द ए मुज्फति परिषेतव्वं ° "* "यच्चैव ० वेषणे अगति र्हण अपरि-"-माणाए अत्थित्ति वृत्ता अणाए फसति -पोय विड ° अग्मो माद्याय सत्थारमेख ° माद्वत पडि ° संति दीवे त्ति © व्यष्टि व्ो- समारभे ० रायाणंधि अच्छेन्न ° समारभ संमणु ° संचाएमि कष्पत्ति- आयारो तह भायार-चूा शद्ध ह मुन्भति परिषेतव्व॑'"मच्ेव ° ० वैसणे आगति गति म्हि अपसिमाणाए अत्थित्ति वृत्ता आणाए पति -पोए दिडम्भ ° अग्भो माधाय सत्थारमेव माइक्खंति पडि -विन्भ॑ते संति दीवे ति ° वद्र वओो- समारभे ° रायातणं॑सि अच्छेन्जं समारन्भ* समणु रि बह संचाएमि कप्पति लुद्धि-प्रत्म्‌ : भयार-चूखा मूर-पाठ पृष्ठ छत एत ६३ ६३ १५० १०२ पष्ठ १२० १२२ १२७ १३४ १४७ १५१ १६२ १६७ १६७ १६८ १६६ १६६ १६६ १७७ १८० १८५७ २०१ २०३ २०५ सत्र ७६ ७७ १९३ १२९६ १५।१ ६।३ सुते २६ २२ ३ १०१ ११० १२८ १४४ द्यद्भ्‌ अथं आहडं च तवे से अभिसपण्णागए ° णपरं दा““णिगमं वा एवमन्नेसि -दुन्ि- पद्युद्ध ० भैराए सम्मिस्सि ° अप्पमाणा परिमायण-पं पड्ग्गाहेण णो © -जाएु भुञ्जियं अहावरा १४६-१४७-१४८- १४६-१५० १५.१-१५२-१५३- १५४-१५५- पिडसेणाणं एते वंघ॑तु, पडिलोभे महया संरंमेणं, चित्ताए भिक्छं ° गापिणि, द्द्‌ अयं आहडं च णो श्तवे से अभिसमण्णागए श्णार्वा ""णियणंवा? एवं मन्तेसि -दुन्मि- २-आयार-चृखा (मूट-पाट) दद्ध ० मेराए सम्मिस्सि ° अप्पपाणा परिभायण-पद पडिग्गहेण © णौ -जाए भुज्जियं १४६-अहावरा १४७-१४०८-१४६९. १५०-१५१- १५२-१५२-१५४ १५५-१५६ पिडसणाण एते वंतु पडिलोमे महया संरभेण.महया समारमभेणं चिताए भिक्ु ° गामिणि, छ्रष्ठ २०५ २०७ २११ २१४ २१४ २२० २२१ १८ २३९ २५० २५६ २६४ २९५ २९८ २९९ २७१ २७२ २७६ २८३ २९ ३५० ३०८ २१७ ३९१ ३३६ ३३६ २३४० २३५९ ३४२९ २३४४ ३४७ दे सत्र १६ २१ ३९ ४७ ४ ६१ १५ १७ ० शर्‌ ४५ ४७ ५६ ५८ ॥ ९ 11 ५६ ३ #] १४ १० ३७ २६ पं० १ रेणो° १११ ` १८।२९ ३४ ३६ ४८ र्ो० १०।१ भद्द वाहाथो तुसौणिभो 9 म अंतरा करणिज्जं त्ति भाषा उदराणि मंगियं ०ज्जंत्ति अन्मगाहि पव्वोदिट्रा वण- माभ ०ज्जंत्ति अणुबोद्‌ णज्जति सुतं एं अप्पाणं उक्चार- माणुममाणिय-दाणि लाणु ममुहादं हिरणं "भर पिच्छ तुरिया ° स अणाइले डित्ति कतेज्ज ओह आयारो तह आयार-तृहा चद्‌ बाहामो क्तिणीमो उवेट्टेज्जे धूमं अंतरा करणिज्जं ति भासन्नातं उहाणि भगियं ०ज्जंति अन्भगाहि न्वोवदि्ा वाणं फगामो °ज्जति उच्चार- मगुभ्माणिय-ाणाणि खाणुं भमुहादं हिरण्णं "प~ णिवो तुरिय ° अणाहृले ठति क्तेज्ज वा भह द्धि-पत्रम्‌ आयारो पाठन्तर घुष्ट > @ ॐ @ छ ~ ~< ~< ~< १० १६ २७ २७ २७ २७ २७ २७ रलं रद २८ २६ ३९ ३-आयारो पाठान्तर पाठान्तर £ ~ ^< ०८ @ .५ +< सू० ५०-५२ पा० पान सू० ६५ पा० १ 9 ४० सू० ४२ सू० ४६ 3 पा०६ १० सू० ५२ पा० ६ सू° ५.६ पा०६ भद्युद्ध दद्ध चते चुते अण अण॒° 9 ९-->< ° वेस्पं (च), ° वेस्सुं (च); ० स॒वेयदं ० सवेदयडं ° हुडसि ° हसि (च) (च्‌) से तरेपि-- धि "उद्वए ५-से वेमि~ * "उदवए"" 9 व ५-८(क,ख.ग.घ.च.छबृ) 1 (वपा) (वपा) सेर पसे नेमि 1 ०्तों ० त्ति यभ्राभोय य राओ य -समायाणं ^ । -समायाणं । सपेहाए सपेहाए° कजनति१° कउजति*१० & दंडः“ &सपेहाए ( क,ख, घम्च.चछ) । दंड-समायाण- १०-दडं समारभति (च्‌); दंड-समायाणं' ˆ “कज्ज (चूषा) 1 मू" भरणि "सातं एयं एवं दुक्सुव्वये दुसुव्वेय 'तोवहते. + -अणुपरि- हतोवहते 3 १ अणएपरियटु- यटमाणे" मागे (वपा) (चपा) ण्रष्ठ ३३ २३५ २३६ ४६ ४ त ५२ ५४ ५४ ५५ ष्ठ &७ ६६ ७३ ७३ ७३ ७४ ७५ ५ ७ ७८ पाठान्व्र सू० १०४ भायार तह आयाररूा भद्चद्ध न्द्ध सत्थेहिं"लोगस्स॒ श्स्थेहिं लोगस्स कम्म. कम्म-समारंभा समारभ" अटुमेततंः न भटुमेत्तं तु ०५ विङपित्ता विलुंपित्ता (चपा) (चूपा) च) रौ मणुस्सवभत्याणं मण्स्समवत्थाणं (चन) (चङ अधंस्स अंधस्स (चच) (चच) (चपा) (चमा) परिच्चमाणे परिपच्चमाणे ०मए 6मए केहि" आयत्ताए क्रि आयत्ताएः (च्‌) तेहि" महावीररोह तेहि महावीरो" फाशसियं .समादियंति "फारुसियं समादियंति'* (च) (च्‌) हणऽपाणे ण पाणे जणवयेतरेसु९ वा, जणवयंतरेषु वा ^, आधवितएः आचधवित्तएं सज्जा सिज्जा विवत्तण (शू) च्वित्तृण (शू) । (चिन्तनीय ) 1 ॥ जीवेहि्कम्म- अवेहि कम्म-तमारभं समारमेणं णं" च) च्‌) २-चूणि-^“ २-परिण्णं (क.ख.य,धभ्व, छ); तूर्णि" प्रतीषु . ्रततिपु शुद्धि-पत्रम्‌ : आयार-चूला पाठान्तर पृष्ठ ८ ९६६ १०२९ १०४ १०५ १०६ पृष्ठ ११२ ११२९ ११६ \१७ १२१ १२९१ १२६ १२८ १४९ १४२ १५३ १६० ६७ १७० १८३ १६६ २१२ २३० २३९१ पाठान्तर भद्चुद्ध ३ एगाणियं ° १२ (च) द्रो ६ आसि सु? भगवं उदट्रए पा० ७ -वृत्तिचण्यं .. त (*..च्‌) १ दिगिच्छतता च्द्ध एगाणिय ° त्‌) 'आसिसु मगवं उदाए'? ( 2 च) दि्गिच्छित्ता ४-आयार-चलखा पाठान्तर पाठान्तर शच्रुद्ध पा०३ थंडिल्लं पा० ६ (अ० दवयति वृत्तौन्मि) सू° १७ अवहिया१ णीहड सू० १६ णितिए* पिडे दिञ्जइ, णिति १ १८] त विल्गयामो र (अष्च.करचन) ष्ट उक्खडि° १ उक्किटा १ दुहेज्जा ६ वेत्तग सू° १३० पे णवं वयतं'* : पा० १ १ ° तिणिता \ चिदूघणिय २ शरद थंडिल्लंसि > अवहिया णीहडं" णितिए पिडे दिज्जद, णिति९१ शना विल्गयामो काछ.व) ; च (अ) उवक्खडि० उनि दु वेत्तग शे गेव" ° वयंतं १ १-एसित्तए से (अ,व) । ° तिणित्ता विदूलुणिय २ २ पाडिवघेया (क) ; पडि ° पाडिविचेया (क) ; पाडि ° शुल्छेर ति सू० २५ थुलेतिः पा०३ फलि फलिह ° पृष्ठ २३९ ५. २० २६५ २७६ २७६ २८९ २५१ २०१ २३०२ ३११ २३१७ २२१ प्रष्ठ ८0 ^< पाटील्तर सू० ३६ पा० १ _ पा०१५ (६५ ८७ ० २४ पा०२्‌ पा०१ <+ €) © ^© भू ३७ पंक्ति २१ १४ भशरुद्ध [॥ भिक्छु' च “सुणेग्ना, जुबव उ्दाणि (अ.कन्ववनृ) वेण-५ सतं णौ सत्त" ५५४ -लंहपुण ° णार ( ) गवास्‌ त्ण- मिल्छे © संठ्वेन्जः ५-प्रिरिष्ट-२ भच्युद्ध ११६० वासमावं १३।३३-२०८ २४ आयारो तह भायार-चूल शरद श्ये भिक्छुः ] "सुगेन्ना"* जुवं (4 ध्वाणं सुत्तं 14 ठहमुण ° णाद (अ) गवाणौभु वण मिष्टं [1 संत्ेज्ज" दद्ध १।६७ वासमाण॑ १२।२-२३८ २२४ आयारो शब्द-सूची [ प्रथम संख्या अध्ययन भौर पहली खडी पाई के वाद कौ संख्या सूचर-कमाह् का मूच करती दै 1 जैसे--अदइगच्च ६।३८ अर्थात्‌ अध्ययन ६ सूव्र-कमाङ्क ३८ । जहाँ पहली खडी पाई के अनन्तर संख्या हो गौर दूसरी खडी पाईके वादभी संस्या हो, वहाँ सर्वप्रयम संख्या को श्रष्ययन, दूसरी संख्या को उदटेणक तया तीसरी संश्या को श्लोक-क्रमाङ्क समभना चाहिए । जेसे--अध्वत्तई ९।१।८ अर्थात्‌ अध्ययन ६ उदेशकं १ शलोक ८ 1 ] अ अहुमच्च ६।३८ अंतर २।११,६।२१२ अकरणया ६।१।१७ अद्रित्त २४६ अंतरदढा पाना अक्रणिज्ज ११७५; अद्वत्त अतराइय ६1३४ ५।५५ -अ्त्ई कषध अंतसौ ८।०।१६; अका € ५१५ ६।९। अश्वाय ९।१।१७ १५ अकस्मात्‌ ८७ अतिय १।३,२५ शाय श अइवाय ४७.७८१ ०७, अक्रा २।३,४५ -अइवाएच्ज २१०० द अरहूय ।१ ` ` अक्रुक्कुय ६।४।१४ ५।११३ ९1७७, अंगुि १।२८ ८।३ अकुतोभय १1३७ , ३1८१ मजु ३।५,१५ ; अव १२७१५०,८१, । पार , ११०.१३७, अकुव ६1११८ १।१०२,९1१1७ १६१ , ६1& अकल्वमाण माद४ अंड „9 92. . ` उचत २५४ अक्कंदकारि ६।२६ अ १५०९५९९ अविर ५।१२९ अक्क ६।४१ १११८ अक्ड २।१५,१४२ अक्ता 0 सोदश अकम्म २३७ -अक्वाइ ९।२ जता २।१२९,१३०; 2।१८; ५।११६९ अक्वाय ११, भ ; ८५ अकरण सा२२,५७ ६1८: ६।१।१६ (, ४ अखेयत्न २७२ अगंथ ८।३४ अगणि १।७२,७५, ८०१८४१८८, ८६ अगणिकाय २।४१,४२ अगरिह ८।८।१४ अगार १।९२ , २६८८४ ५।५८ अगारत्थ ६।१।६ अगिलाण ८।७६ अगृत्त १।६७ ञग्ग ३।३४ अग्गहु ३।६१ अग्धाय ६।७६ अचल ६।१०६ ; ०८।८।१४ ; ९।३।१२ अचि ४।१८ अचित्त ८।८।२१ अचित्तमंत ५।३१ अचिर ८।८।२० अचेयण ८।५।१५ अचेल ६।४०,६०, ६१०६२; ८।५२,७१, ६२३,११९१,११२ अचेल्य ६।१।४ अच्च -अश्वेद्‌ २।१२, १६९ ; ५।१२१ अच्चा ११४०५; ४।२८८ १० ५, १२५ ; ६।१।११ अच्छं -अच्छड €1४४ अच्छायण २।२ अच्छि १२८; ६।१।२० अच्छेन्न ८।२१-२४ अजाण ५।६१ अजिण १।१४० अज्ज २।२६.५० अनज्जविय ६।१०२ अन्जवियन्व ५।१,२०, २२,२३ , ५।१०१ अन्छत्थ १।१४७., ५।२३६;) ठाणाप्र अन्भत्थिय ५।३६ अज्भप्प ५।८७ अन्फोववण्ण १।१७द; ६।७६ अन्मोववन्न ६।२६ अभम ५।४४ अभोसयंत ६।७६ आयारो १।१३; २१३८, ४।१२, ५।१८; ६।१८,६१५ १।१४०; २।२९,६९.८५, ३।४४,६० ; ५।१,८।२१.२२, २४ ; ८।०।१५,२५ अद्र (अष्टन्‌) ६।४।५ अटुम ६।४/७ अद्रालोभी २।३,४० अद्रि ११४० अद्रिभिजा ११४० अणद्वत्तिय ६१०२ अणगार १।१७,२४ २३४,४०,४७.५४, ७१,७८,९२,१०० १०७.१२७.१३४ १५१.,१५०, २३९, १०६,११२,१४५७, ५।२७, ६।२६ , ६।१।४५२२, ६।२।१३.९।३।७ १।१४०.५।१ ११९४ ३।४५ अद्र (भतं) अदु (अर्थ) अणु मगणुगच्छमाण अण्ण ` शब्दसूची अणण्णदसि २१७२ अणण्णपरम ३।५६ अणण्णाराम २१७३ अणतिवाएमाण ६।७३ , ०८।३३ अणत्तपन्न दा अणभिक्कत २।२३ , ४।६५ अणभिभूत ५।११० अणममाण ६1६७ अगवकलमाण ६।७२, ८३३ अणवयमाण ५२६ अणहियासेमाण ६।३२ अणाइय तपर अणाउदष्टि ६।१।१६ अणागम ४।१६ अणागमण ६1४७ अणाढयमाण ०२ अणादियमाण २१७१ अणाणा १।६७, २।२६.३२,१६६ ; ५।१०६; ६६१ अणातीतं ८]१०७,१२७ अणारंभजीवि ५।१६ अणारद्ध २।१८३ अणारिय ४।२१ अणासव ४।१२ अणास्ाएमाण ८।१०१ अणासादमाण ६१०५ अणासाय -अणाक्षादए ६।१०५ अणासेवणया ५१२ अणासेवणा ४८६; स्२४,४२्‌ अणाहार्‌ ८।८।८,१३ अणिच्चय १११३ अणितिय ५।२९ अणिदाण ४।३८ अण्यिटरमामि ४४२ अणियाण ८।१६ अणिरय तू अगिसटु मोर१-२४ अशिह्‌ ४।३२,३३, भ)४४, ६।१०६ अणु ५।३१ अणुक्कत €।१।२३ , ६1२१६ ; ६।३।१४; ९1४१७ अणुगच्छ -अणुगच्छेति ५1६४ अणगच्डमाण भराय र अणुगिद्ध ६1१२० अणुग्घायण २१८१ अणुचिष्ण ८१०७१२७ अणुचिन्न ५।७१ अगुजाण -अणएजाणड़ ३।४६ -अएजाणित्था &। ८८ अष्ट्रा २११० ; ८1३६ ६।७४ ४।३, ६१०२ १ | श अकि ६।१।१२ अणुदटूाण अग्रिय अणुदिसा अणुवम्मिव अणुपरियटू -अणपरियद्ुद २।७४' १८६ -अणुपरियट्ंति ५।१८ अणुपरियटूमाण २५९०१२४ अणुप्रविसित्ता ८} १०६११२५ २३, ३।३०,६० अणुपस्सि अणुपाक -अगुपाए ८।५।५५१६ -अगुपालिया १२५ ४ अणुपुन्व ६।२५२२,७५, ७६ ; ८।२७, १०५.१२५, ८८१ अणुुन्वसो ६।८ अगुपुन्ती ०।८।२ अणुवद्िय ४।३ अण्वयमाण ६००,६१; ८2 अगुवरय ५।२, ५।१० अणवसु ६२० अणुवास -अण्वासिच्नासि ५।३० अणुबीद्‌ १।५५, ०५२७, ६।१०३,१०४ अणुवेहमाण ५।६७ अणुसचर -अणुसतचरद १।४८ अणुसंवेयगर ५।१०३ अणुसोय -अणुसोयति २।७९ अणुस्सिय ५।४३ अणेग १।५३ अगेगचित्त ३१४२ अणेगरूवं १।८,१८, २६५४१.४६ ७२८०४८२, अणेणरूब १०१,१०९, १२८१२३६, १५२.१६० , २।५५ , ६७; ६।२।७.६ अणेकिसि ६२, ०८२६; ८।८।१,१७ ; ६।१।१६ अणोमदंपि ३।४८ अगोवद्िय ४।२ अणोहंतर २७१ अण्ण १।३,१८,२१,२६, ३२,४२,४४.४६, ६३,७२,७५,८०, य८,१०१,१०४, १०६.,११६.१२८, १३१,१३६,.१४३, १५२,१६०.१६८; २४६ , २1४२; ६।१०४ , ८१८, २०.२४ अण्णत्थ ५१४१ अग्णयर २१५० अण्णयरी १।१३ अण्णहा २११८, ५।५० अण्णाण ५।१७ अतह द४२८६ आयार अतिभच्च ६।१०;६।१।६ अतारि ६1२७ अतिदुक्छ ६।२१४ अतिव्टर -अतिवट्टेना ५।११४ अतिवधं -अतिवाएव्न ६।२९३ अतिवाय ६।१।१६ अतिविज्ज ३।२८,२२, ४।३६ अतिवेल एठा अतिहि २४१) ६।४।११ अतीत २।५६९.६० अतीरगम २५१ अत्त १२५४६९५ , २३।६४; ६।१०४ भत्ततत १ अत्तसमाहिय = ५२९ अत्थ (अर्थ) १।२५,४०, ७६,१०८) १२५११५८ , २२ अत्थ (अत्र) ४।२०, २९.२१ अदत्तहार २।६०.५४ जन्द-मुवौ ६1९७ सो १।५७ २। १ ¢ ६; २३।२३,५८ ६।३।१० १।५७.५य८ , २।४५ , ४११३ ; ६।८,४२; ०८।५१-५३; ७०,७१,६३ ; ६1 २ा= , ६।३1१० अदिज्जमाण ५।५८ अद्ध (अध्वन्‌) ६।१।२२ अद्ध अवं) &५।५ अनुव ५।२६, पाभ अन्न (अन्य) १।४४,६३, १५५०१६८४ १७७ , ४।८} ५११३, ८।७१, ११६.११७., ११६.६।१।१५, १६, ६।४।८,१० अन्न (अत्न) ८।११६. ११७११६९ अन्नगिलाय ६।४।६ अन्नतर =।११९१,८।८२५ अन्तमल्न ३।५४ अदविय अदिन्न अदिन्नादाण अदिस्समाण अढ्‌ अदुवा अन्नयर ६।४४,६२ ; ८।११२्‌ अन्नहा ५।१३ अन्नेसं -अन्नेि १1१४८; १७६ , ५।५६ अन्नेसि २।१८१,५।२१ अपञ्जवतित ८५ अपदिण्ण ६११२० , ६।२१५,१६ अपङष्णित्त ८।७६ अपडिन्न २।११० ; २८।३६., ६।२।६.११ ; ६।२३।६,१२, १४,६।४।६, ७,१४.१७ अपड्भाणि ६१२१ अपय ५1१३५ अपरिगह्‌ २।३१ अपरिग्गहमाण ८1३३ भपरिग्णहावंती ५।३६ अपरिजाणय ५1६ अपरिणिन्वाण १९२२, ४।२६ अपरिणतात १।३०,३१, ११४ ; ५1६ 4 अपरिण्णाय १।६१,८दै, १४९११६६ अपरिण्णायकस्म शत अपरिन्नाय २१३६ अपरिमाग ६।२३ अपरिस्सव ४।१२ अपरिहीण २२५.२६ अपल्डिचमाण ०।४७, ६६५८६ अपरोयमाण ६।३६ अगारगम २।७१ अपस ५।६५ अपि १।२७ अपिवित्ता ६।४।६ अगृह ६।४।१ अमृदरा (अपृष्ट्वा) ०२४ अप्प (आत्मन्‌) २१०४ १३१५, २।३२; ८।८।६,१८,६।२।१ अप्प (अल्प) २।४ ६१५,८१ ; ५।२९१ ; ८1१०६१२६ ; ८।८1७ , ६।१२०; 4/1 अप्पगं ८२९१ अप्यडिन्न ६1१२३ ६ अप्पतिदुण .५।१२५ अप्पत्त ६।३।९ अप्पत्तिय ६।५१२ अप्पपुण्म ६17 अप्पमत्त १।६७ , ३।१९,१६.७५ ; ४1११ ; ५२७; ६।२।४ अप्पमाद २।६४ अमाय ५।७४ अप्पाण १११७५; २११७१३३ , २३।५५ , ४।३२,३३; १।५५,७१, ६२३११०३ , ८११७६९७ अप्पाहार ८1८३ अपिय २६३ अश्र ६१७ , ०८।७५ अबहिमाण ५।१११ अबहिलेष्स ९६।१०६ अनुवाद = ६€।२।१० › - ९।४५३ अबुज्ममाण २।५६ अनोहिं १।२२,४५,७६ १०५,१३२.१५६ अन्धां -अन्भादकेखई १।३८, ९५ -अन्भाइक्खेज्जा १।३८, ६५ अन्मगण ६।४१२ अभय ११६१ अभिकं ८।७६, १९०१२९१ अभिकं -अभिकखेज्जा ८।८।४ अभिरक्त रभ अमिक्कम -अभिक्कमे ८।०।१४ अभिक्कममाण ५।७० अभिगाह -अिगाहद २।३६ अभभिजाण -अभिजाणडइ २।६३, ३।६,१०; ५।१७ अभिजुजियाणं २।६५ अभिणिक्छत ६२५ अभिगिगिज्छं ३।६४ अभिगिव्ह ६।२५ अभिणिन्वुड ६।५१६ अभिताव ६।४४ अभिनिक्छत ६।२५ आयार अमिनिवद्ट -अभिनिवट्टेन्ना ३1८४ ८।१०१५, १२५ ६।४४, ९।१।१३ अ्भिनिभ्वड अभित्नाय अभिपत्य -अभिपत्यए ५१०३ अभिभास -अभिभासिसु ६१७ -अभिभापे ९१० अभिभूय १६७ ५।११०., ६।२।१० अभिरुज्भ ६।१।२ अभिवायमाण ६।१।० अभिसजात ६।९५ अभिसंनुद्ध ६।९५ अभिभूत ६।२५ अभिसंवृड्ढ ६।२५ अभिसमण्णायय ६।६४, ८1७३; ७६,६५, ११४११२३ अभिशषमन्नागय ३।४५ ८।५५,६६.१०३ भल्द-मुचो अभमिसमागम्म ६।५।१६ अभिसमेच्चा ११२३७, २३८१ , ४१२ ; ६।६५,६८; ८।१६,७६८०) ६६,१००११०४, १९५.१२४ ६।३।७ अभिसेय ६।२५ अभिहड ८।२९१- २४.७१ अभोच्चा ६।१।११ अममायमाण २।११०; ८३६ अमराय -अमरायइ्‌ २।१३७ अमाइल्ल ६।४।१६ अमाया शद४ अमुच्छय २८।८।२५ , ६९1५११५ अमुणि ३।१ अम्ह १।१ अरह >२७, ३७.६१; ६।२।१०५ अरत २४७ अरति २1१६०; ६1७० असय ५।५४ अरहुत ४1१ अरिहि ` -अरिहए ३।४२ अरिह १।४६ अरूवि ५।१२७ अलं २।८,१७.२९, ७७,६५,६७, ६८; ३।३२ ६1 २०,२१ , ८।१७.७५ अक्द्ध ६1२1८ अलुद्धय १३ अलाम २११५ अलोम २1३६ अलोय ३।७० अल्लीणगृत्त ५११६ अवकख -अवकखति २।द८ › ५।१२० -अवकखन्ति १।१४९ ; २।६१ , ३।७८ अवक्कम -अवककमेज्जा ८।१०६,१२६ अवक्करमेत्ता ८१०६१२६ ७ अवक्र -अवकिरिसु ९121१ अवचडथ १।११२) ४1२६ अवनुज्छ -अवलुञ्भति २।८६ अवमारिय ६।८ अवयद्ट €।११३ ; ८।१०५,१२५ अवर ३।५९ ; ५।४४ , ठातो १२ अवलंव -अवलवप ˆ ८८१८ अवल्दिया €।१।२२ अवस्ककं -अवसक्केज्जा २११७ अवसोयमाण ६।५ अवहर -अवहरति २।६८,८४ मवि १।६ अविकपमाण ४३४ अविजाण (अविजानत्‌) ४।४५ ; ५,११.२२ अविजाणय(अविनायकः ११२ अविज्जा 11 - ठ अवितिण्ण ६।३४ अविमण २।१६०, ४।४१ अवियत्त ५।६२ अवियाण (अपरिजानत्‌) ११२० अविरत ६।६७ अविसीयमाण ६।१५ अविहम्ममाण ६।११३ अविहिस ६।९३ अविहिसमाण ५।२६ अन्वाहिय ६।२।११ अन्वोछिन्न = ५।४५ अस -अत्थि १।२,३, २।६२.७३, १५७, १७६, १८१ ; ३।७५, ८=२,८७ ; ४।८,१६,२०, २२,२३,५५, ४६,५२ ; १।३०,१३८ ; ६।२८;८।५०६७ ११,३ ; ६।द८; ८।५७, ७५,६७; ६९1१२ -अिं -अी ६।८७ -अहेसि ६।३।६ -आसी १।२; ६।२।४,५.७; ६।४।३,१६; ६।३।१२,१६ -मो १।१७,४०,६८, ९६४,११०,१३६ -संति १,१५.५३, ८४,११८, १२५,१६४; ६।९,१२ ; ६।१।१३ -सिया १।१५,१२५; २।८८,१५०; २।५४ , ४ा८,४६ ; ५।४३ , ८१४२; ८।८।१६ असं , २।४६ , ६।१० असजय २१८ असंजोग ४।३ असंदीण ६।७२,१०५ असंभवंत ६।७६ असण ८ १,२.२९, २२२२२४१ आथारो २८.२९.७५, १०१,११६- १२१; ६।१।२० ५।२८ १।६६; २३।१७.०८२ असमंजस ६।८ असमणुन्न ८।१,२०,२९ असमण्णागय ६।९७ असमारभेमाण १।३१ ६२,८७,११५, १४२,१६७ असमिय (अमित) २।७५ १८६ असमिय (अपम्यक्‌) ५।६६ ११७६ अप्तण अपतत अमत्थ अप्य अघ्रण (अश्चरण) ५।१६ असरण (अस्मरण) ९।१।१०,१९ असाय ४1२५६ असास्य १।११३, ५।२९ असाहु ८ असिद्धि ना असिय ५।६४ अमीलं & शब्द-सुची अस्साय १।१२२ अह्‌ (अधस्‌ ) १।६४,६१, २१७६ ; ४।२०,२२ , ०८।१७ अह्‌ (अथ) ६।८,३००३५, ९४ ; दाण्‌ , ६।३।२ अहम्मटिठि ६।६१ अहादरित्त ८।१२०,१२१ अहाकड ९।१।१८ अहाकिटिय ८८१ अहतहा ४।५२ ; ६।३० अहापरिगहिय ८1४५, ६४,८७,१२०,१२१ अहापरिजन्नं २८।५०, €९,६२ अहायत ८८१६ अहासच्च ४।१५ अहाघुय ६।१।१ अहिसमाण ६४१२ अहिगाह्‌ -अहिगाहंति २।३१ अहिन्नाय &€1१।११ अहिय १।२२,४५.७६, १०५,१२२ अर्हिय १४६.१५६; २१२ अहियास -अहियास्षए ५।२८ , ६।९६ , ठार, ८।८।१०,१३; १८.२२, ६।२१०,१५. ६।३।१,७ -अहियासेज्जासि ६।५द८ -अहिषासेति ६६२ , ८११२ अहियासमाण २।१६१ अहियासित्तए ८४१,५७,१९११ अहियासिय ६१६६ अहिरिमण दध्‌ अहुणा ६।१।१ अहे १।१,३, ५।११७., ९&1८७, ६।२।१५ , ६1४१४ अहेचर ८।८।६ अहेंसणिज्ज ८ो४४,६३, ८६,१२०,१२१ अहौ (अहन्‌) २।३,४०, ४।१९ ६ अहो (अघत्‌) २१२५ अहोववादय ४। १७ अहोविहार २१० जा भाई -आदभावए २।१०५७ -आच्एं २ ॥ १ ०७ | नरतः -आद्यन्ति ८।४ आह (आदि) २।४६; ५।४८ आइइत्तु ४।५ आइक्ख -आडक्स ६।२1१ -आदइक्वद ४।२२ -आक्खति ४।१; ६।८२ -आइक्छमो २।२३ -आदरक्खे ६१०१; २८।२६ -आडक्खेज्ना ६।१०३ अद्क्खमाग € १०४ आचय ८५८ आड राथ, ८।८।९,११.२५ १५ आरउकाय ६।१।१२ आष्ट -आउद्टे २२७ आ्दु ८1५७ आट ५।७२ आउर १।१४,१२४; ३।११; ६।१६ आउ १९१; ८२२ आउसंत =८।२१,.२२, ४१,७५ आएस २।१०४ आकेवल्यि ६।३४ आगम १।१,३ आगति ३।४५८ ; ५।१२० आगन्तार ९1२३ आगम २।६२ ; ४।१६; ५।११६, ६।६०८ आगममाण ६६३, ८।५४.७२, ७८,६४,६ ८, १०२,११३,१२२ आगमित्ता ५।१२ आगमिस्स ३।५६१६० आगमेत्ता = भो८६; ८।२४.४२ अगमेस्त ५।१,३५ आगम्म ९।१।३ आगयपन्नाण ४।११; ६।६७ आगर ५।१०६,१२६ आगासगामि ६।१२ आधा -आघाइ ४५१३ ; ६।१ आधाय ६।७६ ; ६।१।६ आचिद -अच्छे १२७२, १५०,५१,८१, ८२,११०.१११, १३७१३८११६१, १६२९ आढ -आढामि ठर आढा्यमाण ८।१, २८.२६ आणेद २।६१ आणक्ख -आणक्छेस्सामि ८७७ आणव -आणविज्जा ५।१२ ` आयार -आणवेज्जा ५।८६; ८।२४.४२ अणा १।३७; २।६६.८०,०१; ४५।१२.४५ ; ५।१०६; " ६।४०८,७८ आणाकखि ४३२ ५।४४ आणुगामिय ८।६१०८४, ११०,१३० आणुपुव्वं ०1१०४ १२५ आतत ४।५२ आति ५।७ आतीतदु ०५।१०७,१२७ आतुर १।१४ ; ६।२० आदाण २१०१ आदाय २।६७; .६।३५ आभिद अन्मे १२७२०८५० ५१,८१,८२.११०. १११,१३७.१२८, १६१,१६२ सामगभ २१०८ शब्द-सुची आय {२४४१ ; २1२९६ ३४२ , ५।१०४ ६।४।६ आयक ५।२८ ; प आयंकदंसि ११४६, ३।३३ आयंगय ८।२३ आयगृत्त २।१६,५६ ; ८।२७ आयतचक्खु २।१२५ आयतजोग ६।४।१६ आयतजोणया €] ५६ आयत्त २।६९१ आयततर ०।८।१६ आयत्त ६।८ आयरिय ६।७२ आयं २।४ आयवज्ज =८1१२ भायाए ६।३० , ८।१०६,१२६ आयाण (आदान) २।७३१८६ , ४४५ ; ६।३५१५६ , ६।१।१६ आयाण -आयाण ६।२४ -आयाणहु ८।१४,२६ आयाणिज्न २७२, ८४४, ६४१ भआयाणीय १।२३,४६, ७७.१०६; १३३,१५७., शशय आयाय २।७२ आयार १११९१, ६।८२ आयारगोयर ८।३,२६ याव -आयावई €।४५।४ -भआयावेज्ज ८।४२ -आयवेत्तए २८।४१ आयावाह १५ आयावादि ५।१०४ आरभ १।३०।३१,६१, ६२,८६,०७,१ १२ ११५.१४९१,१४२ ६६११५८७.१७४; ८।४७, ५1६०, ६१९१२; =पार्‌ भारभज ३११३, ४।२६ आरभजीवौ २३९, ५११५ ११ आरंभद्टिं ६६१; ०३ वारमभमाण १।९१७२ आारत्त सभरत आरभ -आरभे २1१८२,५।५३ आरभ २।१८३ जारम्‌ ५।७७,११६ आगरामागार &।२।३ आग्यि २।४७,१०६, ११६. ४।२२, २४, ५।२२,८०; ८।१५,३२्‌ आरियदसि २।१०६ वआारियपष्ण २।१०६ आरसिय ६1१३ भलीणगृत्त ३।६१ आदु २१२३०४० आनुप -आदुप्‌ ८1२५ अ्धोय -आद्धोएज्जा ८।३५ अवितो ८२०, ५११,१५.१६, २१,३६ अच्छ ६।१।२., ६।४१९६ १२ आवेज्ज -आवज्जंति १।८४,८५, १६४,१६५ अवटु १९३, २1७४, १८६, २।६; ५।१८,११८ आवेडिय ५।७२्‌ आवस -भआवसे १।९य आवसतत धाभ आवसह॒ २।२१,२२, २३.२४ आवय -आवातए २।१३३ आवील -आवीकृएु = ४१४० आवेसण ६।२।२ आस -आसिमु ६।२।६ आसंसा २४५ आसन्जं ३।३२ , ९।१५ आसण ६1२४; ६।२।१, ६।३।१२ आसणग ६।३।२९ आसणत्य €४ आसम ०।१०६.१२६ आकषवे ४1१२, [०1१० आसवसक्किं ५१७ आसा २८६ अप्ताएमाण ८।१०१ आसायं -आसाएज्जा ६।१०४ आसीण ८।८।१७ आसुपण्ण ८।६ असेवित्ता २।४४ आच्च १।८४,१६४ ८१५ आट्‌ २८७; ८।२१,२९,२३ २४.७५.७९ ११६.११७.११८, ११९; ६।२१२ आहड ०।७७,११६. ११७.११०.११६ आहर -आहरे ५।६६ ; ८८१४ आहार २।११३; ५।८३; ८१ २९,१०५,१२५; ८ ८।३ आहार १।११३ आहरिमाण २।१०१ आयार च्छं ड्‌ -एड २।१४ -एंति ३।३१ -एति १८; ५।७,७१ इभो १।२ ङ्दिथ ८।८।१४,१७ इच्छं -इच्छसि ३।६२ इच्छा ०१६, ०।०।२९३ इत्तरिय ८1१०६ इति ११२ इत्य ४।२०,२९,२३ इत्थिया 41 इत्थी ५।७०७,८४११३४, ९।१।६,१७; धारा टम शय हयर्‌ ६।५३ दयाणि १।६९ ; ६३३ इरित ५।५ इरिया ८।१२६ इह १।१ इहं १।५४ इज्य &।२९ इहखोग ५५७१ गब्द-सुची दै ईसि ६।२।५ ठ उक्क -उक्कसिस्सामिं ६।६० -उक्क्से ८।८।१८ उकवुदय ध।४ा४ उग्गह्‌ २।११२ उच्चागोय २४६ उच्चारटग्र २।६३ ; ६।३१२ उच्चावय ६।१० उच्छन्न ५।१७ उन्जकेत्तए ८।४१ उज्जाकत्ता ८।४२ उज्युकड शरे उद्राए ६।२।५,६ द्राय २८।१०५,१२५. ६।१।१ उष्टं ४।३, ५।२३.६६ ; €) १०२,१०६ उषटिवाय ५।१७ उट्टभ २3 -उदटुभति ६।३।११ उड १।१,२,६४,६५ ; २1१२५१७६ , ४।२०,२२ , ५।८१,११७. ८1१७, ६।४।१४ उड (चर) ८०८1६ उष्ट्‌ ५।१३० उत्तम ८।>ा२०, ६।२।१२ उत्तर १।१,३ उत्तरवाद ६।४६ उन्तातद्त्त २।१४ उत्ति ०१०६,१२६ उदय १।४१,४८,५६, १०,५१,६३,६४ , ६।१२ ; ८1१०६१२६ उदयचर्‌ ६1१२ उदरि दाय उदासीण &।<त उदाह -उदाह २।६४) भ।२८ उदाहर -उदाहरंति २१७१; १४३० उदाहिय 1१५ उदाहु ४।२५ › ५।२८ १३ उदीण ५।५२, ६।१०१ उदीरिय ६1६१ उहव -उदट्वए १।२९,५२, २८३१११२, १२६.१६३ उद्ुवहत्त २।१४२ उद्वित्त २१४ उदहुवेयन्व ४।१,२०, २२.१३ , ५1१०१ उदा -उदायंति १८५,१६५) १।७१ उदेस २।७३,१८१्‌ उल्तयमाण ५।६४ उपेह -उपेहाए €श२१ उप्पदय ९६1६४ उव्यादहिज्जमाण ५।८ उम्भम्‌ -उन्भमे ८८१६ उन्मि १११८ उमय २1३० उम्ममग ३1५५ ; ६1५९ ४ उम्बृच -उस्पुंच २३।२९ उयर १।२८ उर १।२८ उराल ९।१।१० उवक्कम ८८1६ उवणरणं २।२ उवचदय १।१०४ उवचय ८।३६ उवचर -उवचरंति ६।२।७.८ -उवचरे तठ] उवद्िय ३।३६; ४।३ उवणीत ६।११४ उवणीय १।१७३ , २।१० ; ६।२६,११३ उवदस -उवदधेज्जा ५।१०० ५1१२६ २११६ १।६२; २३।३, ८,४१,७२,८१५ ; ४।२,४०७.५२; ५।२०,६० ; ६।५० उवलन्भ दाऽ उवमा उवरतं उवरय उर्वारुप -उवङिपिज्जासि २।४८, १२० उववाइय १।२,४,११८ उववाध २।४५ ; ६।८; ८३५ उवघक्मतं 821६ उवसंकमित्तु ०।२१, २२.४१ उवसत ३।३८ ; ५।७५,८६ , ६।८० उवसंति २१५५ उवत््णं ८।१०७,१२७; ८।८।२२; € २।७०; ६।३।२ उवषम ४४० ; ६।३०,७७,१०२ उवहत २५६ उवहाणसुय € उवाद्कस्म ८१२ उवाइवकेतं ८५०, ६६.९२ उवाय २१८ उवादीयमाण १।१७० उवाधि ४५३ उवाहि ३।१९.८७ भायारौं उवे -उवेद २।६०,६९ =; ५।६ -उवेत्ति २।१५१ -उवेह ४।२७ -उवेहद ६।९१ उवेह -उवेहाहि ५।९७ उवेहमाण २।१५; ४।५२, १।५०,१५२,६७ उवेहा ५।९६ उवेहाए २१५५ › १।२३२,११८ उन्नाह । -उन्वाहुंति ४१ उसिण २७ उपिय ६।७० सअ ऊक १।९८ षु एग १।१ एादय ६।९६ एगत ८।१०६ एगचर ६।२।११ एकचरिया ५१५; ॥ ६।५२ शब्द-सुवी एगतर ९४४ ; ८९११ एगतिय ५७१ ; ६।२।१,८ एगरत्तमय ६।१।११ एगदा ९।२२.३, ११.९१. ६।४।३ एगम्पमुह्‌ ५।५४ एयर २।१५० ; ६।६२; ८।११२ एया २६.७.१६, १६.२०,६७.६८, ७५१७६.०३,८४ , ५।७१,६६; ६२1६; ९।३।८,११; ६।४।५,६,७ एगसाड ८।५२,७० एगामि ८}&७ एगायत्तण ५1३० एन १।१४८५ एताव ५।१३६ एत्थ १।३०,३१, ६०,६१,६२.८६, ८७,६२,११४, ११५.१८१.१४२, एत्य -१६६,१६७; ४।२०,२२,२३, ६।३९.६।२१२ एय १।२४ एयावन्तं १।६,११ एलिक् र एव १।१० एवं ११ एस -एषए ८1०।५,१७ -एसति ६।२१३ -एसित्था ६।४१२ -एसे ९1४1६ एस्णा ४1७ ६१५३, ६1४१० एसिया ६।४।६ एहा ६।२।१४ ओ ओबुज्फमाण ६।१ भओमचेलिय सा्दटः ९६७,६० ओमाण ६।९।१६ ओमोदरिय ६१ ४।१ ओमोयरिय ५।८० ओमोयरिया ६1४० १५ भोय ५।१२५ , ६।१००; ०।३५, २८,१ ०७,१२७ ओयण €।४ा४ ओप २।१०९.१२९ ओह २७१ , ५६१, ६।२७ ओहुतर २१६५ च्क क १।२ कओं ६८४६ कख -केज्ज ६११३ क्खा ५६२ कचण २।१०० ; ५१५३ , ६।२३ कद -कदति २।१३६ -कदिमु ६।१।५; ६।३।१० कटय -कड्यये ६।१।२० केष ६।१।२२ कवन २।११२; ६।६१. ८।१,२,२१.२२्‌ २३,२४,२८.२६ १६ केक्लड ५११२० कज्जं २।४२,४६ कट्टर ५।११६।६८ कटु १।८४; ४।३३ कड २।१३४ ; ६।४।६ कडासरण २।११२ केडि १२८ कडिवंधण ८1१११ केडय ५१२९६ कण्णं १।२८ कत्थ "कत्थ २१७४ केप्प्‌ -केष्पह्‌ १।५८ ; ८।७१५ -कप्यति २।१५० , ८।४१,१११ -कृप्पे ६।५।२ पप्पिय ९।१।१४ "न्वेड ५।१०६.१२६ म्म १।७.११,१२,१८, २६,३२०४१,४६, ७२,८०,८९, १०१, १०९.१२०.१३६, १५२,१६०.१७५; भाथारो भ्म २६९०५१०४ = -करित्तानि १९० 1 १४९,१५५,१६३, २१५१४२३; १७२ २।१६.१९, † करेद २।१२५.१४४; २०,२१,३९.४१, ३।५४ 1 २२१ 1. २।२०३३ 0 त २।१४९ १५९,५१; -कारवेषु १६ १९१५३४३ -कारित्था शध ० वि २।१५६ केम्मकर २१०४ -कुज्जा २१४६ ; केम्मकरी २।१०४ ५।८०, ८१२ केम्मावह ६।१।१७ २८.२९.७६ केम्मावाई्‌ १।५ ॥ १०६,१२० केय (क्रथ) २१०६ करण ०।७६.१२० कय (कृत) ५७३ करय १।६ कयकिरिय ५।८७ ५।८६ केयवर १।८४ कटुण ६।७ केयाह २।५६ कल्छाण 4 कर्‌ कवा ६।३।१० 6 | ८।१०६,१२६ -अकासी ९९९; केस ६।४।८ -कसेहि ४।२२९ -कज्जइ २।१८.१०५ कसादय ६।२।१२ -केष्नति २।४३,१०४ कसाय ५।१२६ ; ~करए ९।६२ ८।१०५,१२५ ; -करिस्सति ५।७६ ४ शब्दसूची कसाय -कसाइत्था ६।२।११ कहूं १।६४ कहा ६।१।१० कर्टिचि या२९.२३ काउ ` ५।१३१ का्णत्त २।५४ काणिय ६।८ काम २।३१.३६७४ १२१,१८६; २१६ ३१; ५।३; ६।१६ २३,३४.७६,१०६.; 4. कामकामि २।१२३ काय ५।७१; ६1११३; ८।१८,१९.४१, १०७,१२९.१२७; ८८१५,२१; ९।१।३, ६।२३।७.११ कायर ६।९५ कारण ३।५४; ४ कार २३,४०,६२,११०; ४८१९० ५।६२,११३; ८ो३९,१३०; ८८1११२१ कालकखि ३।३८ कारण्ण्‌ २११५; =३& ३ कालपरियाय ०५६, ८९२११०८ कासंकस २।१३४ काहियं १।८७ कत्रा ०१०५१२५; दवारे किट -विंटति ५।७४; ६1 किदे ६।१०१ किंड्डा २।६ किणि -किंणावएु २१०६ -किणे २।१०६ विणत २१०६ किष्टु ५।१२७ करिरिया ६११६ िरियावाद्‌ १५ किलेस -किलेसंति ६।१३,५७ क्रिवण २।४१ किस ६६७ कौीय ०।२१.२२,२३२४ कीरत ६।४८ कीरमाण २८१७६१२१ कूटत्त रोय कूडलं २४८ कुत ६।३।१० १७ कुभारायतण २।२१,२३ कुवकुर रर,४; ६।४।११ कुचर €।२।७ "+ -कुरभे २।५१ कुणिय दान -ष्पंति ५।६२ -कुप्िज्जा २।१०२ कम्म ६।६ कुस्मास ६1५४,१२ कुल ६।७,०,२५,५२ कन्व -वुर्वह्‌ दे\४० -कुच्वित्था ५१५ कूत्वमाण 1. कुर्ग ५।१्‌ कुसल २।४०,६५१९२० १२१.१८२; ४।२०, १।४७,६७,१०८ कसीर ६३३० कूर रदिश; ४१८; ५६ केआवंती ४।२० ; ५।१,१५१९,३१.२६ केय॑ण ३।४२ श कोडि ६।८ कोकावां ०।०१७ कोनिय ५।१८ कोह ` ३।४६.७१,०४ ; ४।२४, ५।१७ ; ण ६।१११ कोहुदपि ३८३ च्ल खघ १।२८ सेण २।२४२८, ५।२१ सण - -खणहु - ८२५ संणण्ण्‌ ८।३९. संणयन्न २११० खम ˆ ८।६१,य८४, ११०.१२८ खल ` -खलमु ६।३१२ खलु ` १।८ खवग ३।६० खाइम ८।१,२,२१.२२, २२,२४,२८,२६, ` ७५,१०१,११६,११५७, १९०८.११६.१२०.१२१ किस ` । -लित्षए २।१०२ क्िप्य ८।८।६ सज्जत्त २।५४ खुज्निय ६८ सुड्ब्य २।५७ सेड ०।१०६,१२९ चैत्त २1१७ सेयन्न॒ १।६६; २।११०, १८१; ३।१६,१७, ४।२; ५।१२५ ; ८।२५.३६ सेम ८२६ ग गद्यं ६।९६ गंड १।२८ गंडि दात गंय १२५४७७८, १०७.१३४५१५८, ३।५०, ६।१०६ ; ८।२५ ; ८।८।११ गृध ३।४,५।१३६; ६।२९।६ गच्छं गच्छ ६।१।१० "गच्छंति ६।१७ गच्छति ६।१।७.१६ च्छन्ना २।५७; ४1६; ५।६६ भयाः गृहिय १।२५,४०,७६ १०५८,१२५.१५९. २।९,६९,२२,१२६ ४।४५६।१०६ ; ९।११० गति ३५०; ५।९९.१२० गन्भ २।१५२१.०४; १।७४८ गन्मदति ३।८३ गर्मम ८।७१५ गमित्तए २७१ गयं १।१४६ गर्‌ ५।१३० गल १।२८ गहाय ६।३।५ गही ।१६ गाम ६।९९; ०।१४,१०९ १२६ ति ८1५1५; ६।२।२, दद्रा; ६।५।६ गामत्र ६।६९; ८।४७,६६.५६ गा्मतिय ९।३।६ गापकेटय ६।३।७ गामघम्म ५।७८, ८४१; | मामपिडोल्ग ६।५११ शब्दत गामरक्ल ६।२८ गामाणुगाम ५६२,८२ गागियि धरत गाय ८।४१, ८।८।१६ , ६।१।२० , ६।४।२९ गराहावद ८।२४,४१ गाहावत्ति ०।२१,२२, २२.७५ गाहिय ५।१२४ गि्फ्‌ -गिरभे २।५० गिद्ध ३।३१, ५।१३, ६।७६ गिम्ह २८।५०,६९.,६२, ६।५।४ पिरिगुहा ।२१.२३ गिखा -गिलादइ २।१६७ -गिलाएव्ना ०।८}३ -गिलामि ८१०५,१२५ गिक्लाण ८।७६ गरिछायत ८८१४ गिलाप्िणी ६।८ गिह ६।६९ गिहूतर ६६६ , ०।७५ गीत ९१६ गोवा श्न गुण १।६३,२।१, ५।७१ गुणि श्र, २९ गुणासाय श्ण, ५।५न गुत्त ४५६० गुत्ति ८।१० गुप्फ १।२य गुरु ५।२ गहि ६३७ ; ६।४।१५ गोमय ५, गोयर ६।८२; ८।२७ गोयावादि २५० च्च घाण २।४,२५ घायपाण ६।६१, ९ घाप ६।४।६,१०.१२ घोर ४।४६.,९१ न्त्र च्‌ १।६ चइ्त्ता ६।२० चे ९।१।३ चंउत्य 1 चडप्पय राद चरस ५।१२६ चंकमिया &1२।६ चक्खु २।४, ६।१५ १९ चय॒ १।११३ ;४।२९ (- चय `, " -अचाद्‌ ` ६० -चए- ˆ` भ ˆ -चयत्ति ५1२७ ; ६७ -चयाहि ६।२९६ चयण ६८ चर -अचारी ६।३२ -चर २।४५ -चरे २।६१, ३।६१ , ४७, ६।२१ ; ९।१२१ -चरेज्ज ३।५० चरिया ६।२।१ चल ६।१०६ चवण २।४५, ८३१ चाद ३।७ , ६। १४ चाय -चेद्रए 8२१५ -चाएति ६।४।१ -चाएमि ०११११ चिच्वा ६।४६ चद -नदड २।६९,७२ -चिट्ति ६।४।१० -चिटरुति २।८२,५।०६ २५ -चिद्ठे ०८।८।१६,२० -चिटुज्ज ठ (\ १ [\ २ ३ चिहु द) ४५१८; ०८२० चित्त २।३४० ; ६।६ चित्तणिवाति ५।६९ चित्तम॑त ५।३१; ६।१।१३ चित्तमंतय १।११३ चिरराईं ६।६६ चिररात ६।७० चुभ १।२;५।४८ चेच्चाण ८।१०७.१२७ चेत -वेए् ८।२३,२४ -चएसि ८1२२ -चेतेमि ०८।२१ चोर २।४१ च छ २।१५० खउमत्थ ६।४।१५ छंद १।१७३; २।८६ ; ५।२५ ; ६।२६ छज्जीवणिकाय १।१७७, १७८ च ६।४।७ छण २१८०,१८४ $ ३।२१; ५।४९ खण -छणावेए ३।४६ देणे २३४६; ८।५।९ छणत ३।४६ छाया ६।४।३ चिद -अच्छे १।२७.२८,१०, ५१,८१.०८२,११०, १११.१२३७.१३८, १६१,१६२ -चिदह ८।२१्‌ -चिदेज्न. २३।४९ -चिज्जड २।५८ छिन्न १।११३ छिन्नकहु केह ८।१०७, १२७ छिन्नपुव्व ६।३।११ चुदुक्तार -छुद्ुक।रंति €।३।४ छेत्त २।१४,१४२्‌; ८।४० चत्ता २।१११ ५।१० ज जं १।३ जग ८८१८ आयांरौ जंधा १।१२ जतु ६।१५ जग्ग -जग्ाव्ती ६।२॥५ जण -जणयंति २६ जण २।२५,६१,०९; ५।७६, ६।९२,६५,९६, ९।२।१९, €।२३।४१५ जणग ६।२६,२७ जणवय ३।४२ ; ६।९६ जणवयान्तर ६।९६ जत्त १५६७ जम्भ ३।०४ जम्मदसि २।८२ जय २।२८; ४।४१,५२्‌ ५।९९,७५ यमाण ४।११; ५।४४; ६।२९; €।१।२१; ६।२।४ जर -जरेहि ४५२२ जरा २।१० जराउय १।११८ जहा १।२४ ५५२३ जहा जहाति २।१५६ ॥ ट ॥ 4 जुद्ध ५।४६ जुन्न ४।२२ जूर -जूरति २१२४ जोग ०।१२६, ६।१।१६ जोणि १७; २।५५ ; ६।१।१४ जोन्वण २२ म्न का ३1६६ भा -भाड ६१५ -फाति ६।१६,७; ६।२४,१२ ; ६।४।१४,१५ -फायह ६।४५।१४ भाड्‌ ६।४।२ भाण ६।४।१४ भिमिय द्वप भोसं -फोतेति ३।४१ भोसमाण ५।२०, ६।५० भोसित १।६८ भोसिय ५।४१ भोसेमाण ८२ ठ ठा -ठद्ज्जा -ठवए ठाण ५।८१ ८।८।२१ २।७२, ५८१ ; ८।८।१०,१६.१९.२० ५।९९. €।४।११ ६।१०६ व्यि व्यि खड ङज्म -उञ्मद २।६८,८४ ; २३।५८ डस -उसतु १।३७, ६।३।४ डाह्‌ रातय ण ण १।१३७ णंदिं २।१६२,३।२३२,४७ णगर ८।१०६.१२६ ; ६।२।२ 1४७ २।१३२,२०,३३; धर्‌, ४।९२६; ५।२४, ६।८११६, ८1२३५ ; ८।८1१,२५; ६।१।१२.१५.१६ णगिण णच्चा ,अआयारौ णच्चाणं ६।४८ णह ९।१९ णममाण ६।८३,६७ णय २१७७ णयर्‌ ६1४1६ णर ३।१० , ५६४; ६।१,१०९ णरग २१९२ णरय १।२४.४७, ७८,१२३४ णस्स -णस्सति २।६०,२४ णह रण णाइ २।४१; ४।७, ६।९३ णाण ४।५२; ६।२,२९.८२ णाणि ३।४५४।१३,१६; ९।१।१६ णातत १२.४२४ णाति २।१०४ णामि शर णाम ६।२०,९१ णाय ज्ञात) १।४७,७०), १०७०१३४०१५८ णाय (न्याय) २१५० णाय (नागर) ६।३/८ णायपुत्त ८।८।१२; ६।१।१० शब्दसूची णायधुय ६१११० णालिया ६।३।५ णाम १।२८ पिय ४२ णिकरण १।६०; २।१५३ गिक्कमदंसि ३।३४, ४।५० णिक्लंत १।२५; ६।८५; ६।१११ णिक्खम्म ५११९, ६।७६, ६।२६,१५ णिक्खित्त ४।२७, ६।३ णिनिखिव -गिक्छिवे ४।५ गिगम ०।१०६,१२६ णिचय ३३१, ४।१६ णिन्जरपेहि ठना५ णिज्जा -णिज्जाइ ४।५१ गिन्फाङ््ता १।१२१ णिन्फोसडतता ३।६० , ६1५६ गष ६।६८ णिष्टिद्रि ५।११६ णिडाल शरण णि ६।२।५ णि ५१९४ णिद्ध ५1१३० णिन्वलासय ५।७६ णित -णिमंतेज्ज ८।२्‌ -णिपतेन्जा ८।१,२६; ८।६।२४ णियग २।७,१६.२०,७६ णिषट्‌ -णियट्टति २।२६ ; १५।१२२; € णिय्टमाण धामः णियम २५९ णियय २७६ णियाग १।२ णियाणञ ६1७ णियाय पर१४४ णिरय १२४.४०,७५ १ ०७, १५८; ३।४६; (1, । णिरामगच २।१०८ णिरुढ्ाउय देय णिरोच ८1०८1१६ णिवज्जं -णिवज्जेज्जा ८।८।१३ णिवतित ५।५; €1४१० णिवय -णिर्वतितु €1>1३ णिवाय &1 २1१३ २३ णिवार -णिवारेह €।३।४ णिविज्ज -णिविज्जति २।१०१ -गिन्विज्जे ५।६४ णिविहु ४।१६ णिव्वाण ६।१०२ णिच्विढ २।१६२; २।४७ णिव्वुड रेत णिन्वूय ८।१६ णि्वेय ४।६ णिसन्न उत णिसम्म ६७६ णिसापरिया ५।४० गिसिद्ध ३।८६ णित्तीय -णिकीएनज्ज ८।२१,२२ -णितिएज्जा ८८।१६ णिस्सार ३।४५ गिस्तिय ८४ णिस्सेयत्त ०1६१४८४, ११०,१२० णिह २७४,१८द णिहुण -णिरेन्जं १४१ -गिर्टणिमु &€1>।१२ २४ णिहा -णिहे २११६; ५५५ णिहाय यार णीयागोय २४४६ णीख ५।१२७ णीसंक ५।६५ णे्त॒ २।२५; ४।४५ णो ९।२,५७; २।११; ८८४ ष्हारुणी १।१४० त ११ तद्य ८१६२ तमो २।६१६,५७.७५; ५।२ तंजहा १।१,३,११८ ; २४५४११०४ ५।१२६ ५।१२३ ८।२६ ४।४ १८४ , ६।६१; ८।१०६,१११,११२ १२६; ८।८।७, ६।३।१ ततो २८ तख तक्क तक्किय तच्च तण तत्थ १।६,१४,१६.४२; ७३,१०२,१२६, १५२ ; २४८; &॑ रद तद्द्वि ५६०,१०६ तन्निवेपण ५।६८,१०६ तप्पुरक्कार ५।६०,१०९ तम ८।४५, ६1६ तम्मुत्तिय ५।१०६ तम्मोत्तिय ५।६८ तर -त्रए ६।२७ -तरति ३।६६ -तरे ५।६१ तरित्तए २।७१ तव॒ २।५६; ६।२१.६५४; ८।२१,५५,७३,७६, ९५,६९.१०३,११४, १२३ तवस्सि (4 तस १।११० तस -तसंति १1१२३ तसकाय १।१२०,१३१, १२३६१४२,१४५४ ६1।१।१२ तयजीवं ६।१।१४ भयारो तसत्तं ६।१।१४ तप्सन्नी ५।६५,१०६ तहा ४।४ तहागय ३।६० तप्र २।०,१७.२१.७७ तारिप्य ५।४९ तालु एण ति ०।१५,४३; ६।४५५ तिद -तिर्रति =म॑र प्िष्ण ५।६१; ०८।१०७.१२५७ तितिक् -तितिक्छए ५।३७; ८] तितिक्छमाण ६।४४ तितिक्छा १।०।९४ तित्त ५।१२६ तिन्न २१६५; ६६९ तिप्प -तिष्यति २।१९४ तिप्पमाण ८८१० तिरिक्ल (6 तिरिज्छ २१९१ तिरिय १६५,९५; २1१२५.१७६; २।८४; ४।२०,९२; गन्द-भरचो तिरं ५।११७; ०1१७. ६।९।५.२१ , ६।४।१४ तिरिय-दंसि ३।८२ तिविह २।६५.८१ तिहा ८८१२ तीत २५६ तीर २।७१ तुच्छं २१७४ तुच्छ्य २।१६७ तुद्‌ ६।११२ तुय -तुयट्टेजज =ा२१,२३ -तुयट्टेन्जा पातात तूला १1१४८ तु्िणिय ६€।२।१२ तच्छं २१४१ तेहच्छा ६।४।१ ते ६।९१; १११, ११२; ६।२।१ तेउकाय ६।११२ थ थडिल ८।८।७,१३ चण १।२८ थण -धणति ६।७ 1 थावर ६।१}१४ थाचरत्त ६1११४ थी २1६० धूर ५।२१ थोव्‌ २१०२ द्द दद्य ६1७३ दंड १।६८; २।४२,४द ४।३,२७ ; ५८१; ६1३, ८।१८,१६, २०,३४ , ६।१त , ६।३।७.१० दंडजुद्ध ६।१।९ दंडभी ८।२० दंत (दन्त) १।२८,१४०; शथार्‌ ३।५० , ६।६३ ठ्स ६६१, ८१११, ११२, ६।३।१ दसण २३।७२,८५ , १५१६७११०, ९।१।११ दसणलूसि धर्‌ दक्ख -अदक्खु २।१०९, ५।१७,२०,११० दत (दान्त) २१्‌ -अदक्घू ६।१।१०,१७, १८ दक्खिण १,३ दग ८।१०६,१२६ दट्टुं ८।५१, ५।७५्‌ दढ २।६१, ६1३६ दम २५६ द्य -दयड ८।३८ दया ६।१०१, ८।३५८ दल्य -दल्डस्सामि ०८११६, ११७.११०.११६ -दरुएज्जा = ०८।७१्‌ दविय ११४६, ३।७०, ४४; ६।६६,६७., ८८११, ६।२।१५, ६।४।१३ दत्तम ६1४1७ दत्माण ९६।३.४ दह -दहह ८।२५ ढा देति २।१०२ दाढा १११४० दायायं २ €= दालम्‌ ४.८६ २६ दसि २1१०४ दासी २।१०४ दाह २।६८ दाहिण १।१ ; ५५२; ६।१०१; ८।१०१ दिगिचछ्ता €1%१० दि १६७; ४।६,६,२० दूपह २।१५७ दिदुभय २।३७ दिष्टम ६।१०७ दिया ६।७१५,७६ दियापोय ६।७४ दिवा ६।२।४ दिव्वं छात्र पसि १।१,२.४८ १२३ ; २।१७६ , ४।२०,२२९; ८।१७ दिस्स -पिस्सति २।५६ दीण ६।६४ दीव ६।७२,१०५ दीह ५।१२६ दीर्हृराय १।३७ दीहखोगसत्थ १।६६ दु ६१।११, ६।४।६ दुक्कड ८५ दक्ख १।१०,२०,४३, ७४,१०३,१२२, १२००१५४; २।९२, ६२,६९.७४७८, ८५,९२,१५१,१७१ १८६; २।२,६.१३, ६४,६९,७७,८४ ; ४।२५.२९२६.३०, २५. ५।६०२४,२५; ६।१५,१८ दुक्सद॑सि ३।८३ दुक्खसह ६।२।१२ दुक्लसह ६।२३।१२ दुक्खि २।७४,१०६ दुगंखणा ११४५ दुणद्छमाण २२६ दुच्चर ६।३।२ दुच्चरग ६।२३५ टुज्जात्‌ ५।६२ दुज्ोसिय ५।४१ दुत्तितिक्ला €।१।९ दुदिटू ४।२२ दुन्निक्खत दान दुपय २।६५ दुप्यञ्किहिय ५२२ दुप्पब्वूहण २१९२ दृष्पर्कत ५।६२्‌ भायारो दुन्भिं ६५५, €।२६ दुम्मयं रर्‌ दुरणचर ४।४२ दुरतिक्कम २।१२१; १।६५ दुरमिगंध ५।१२० दुरहियास -दुरहियासए ६३२ दुल्लह ।४६ दुचार्सम ६।४७ दुविह ८।८।२; ६।१।१६ दुव्वयु २१६६ दुन्विन्नाय ५९२ दुस्संबोह ११३ दस्सुय ४२९ दुहओ २।१११; २३।६०; ८४०, ८।८।४ दुडज्ज -दुदज्जेज्जा १५।८२ दुदज्जमाण ५।६२ द्र ५।२,४ दूराख्द्य ३।६३ देवं २४१ देह ८३६ ; ८।८।१०,२१.२२९ देहंतर २।१२० दो ३।२३,५८, ०८।६१ गव्द-मुची दोणमुह॒ २।१०९,१२६ दो ३८४, ४।२०.२२ २३; ५१७ दोपदसि ३।-३ घ्य घम्म २६३,६६; ३।१०, ६७,८।२,५, ५1१७, २६१४०, ६।३०,३५, ४८५९.७२,६०,६१, १०२,१०४१०७ ८।२,६.८,१४,२६, २२,८१, ८।८।२,१२, २०; ६।२१२ धपय १११२ घम्मव रे घम्मविड ३।५ धम्मविदु ४२८ धम्मि ६।४७ धाति २।१०४ धार -धारेज्जा ८।४५,४६, ६४,६१, ८७८ धारित्तए ०१११ धिति >।४० धर २।११,०६; २।३४, ६।१९८), ८२४, ८।८1१ धुण -धुपादई ४४८ -धुणे २।१६२, ४३२, ५।५६ धथ ९ धव ८।२५्‌ धुवचारि २।६१ धूयवाद ६।२४ धूया २।२,१०४ धोय -धोएञ्जा ८।४६,६५, ठ धोय ८।४६,६५,८८ स्न नगर ६।६६ नगरतर ६।६६ नच्चा १।१४६ नड ५।१७ मर ४।२८, ६।यद्‌ नरग ३१८४ नह १।१४० नाणव द नाणा ४।१९ नाणि २।५९ नामं नामे ३।७द्‌ २७ नाप ५।१०१ निकाय ४।२५ निक्सम्म २1३७ निगथ ३।७ निधाय ६।३।७ निप्पीर -निप्पीलिए्‌ ४।४० निपत्‌ -निमतेज्जा = ८।२८ नियग २1१६ नियच्छ नियच्छति २1६० निया -नियाइड २।११९१, ८१४० निरय ३।८३ निरयदंसि ३८२ निरारुंबणया ५।११० निश्वेटुाण = ५।१०६ निवाय ६।२।१३ निच्विन्नचारि ५।५४ निसामिया ८।३१ निस्सिय १।५३ नूम ठोलार४ नो १९१ प्न पञ २।१८०) ४।१२ रन | पट्ष्णा 2७७ पंडित २।१४१ पंडिय २।२४५,५१,१३१, ४।२२, ५।४०,४४, ६।७३,९८; ८।३१, ८८1६ पत॒ २।१६४; ५।६०, ९।३।२ पय ८२, ६।१।२१ पथणिञ्छाति ५।९९६ पयु ६।३।११ पकेष्प -पकप्पयतति ४।१६ -पकरप्येति ४।१०, ६।८६ पकर -पकरेति १।१७४ पक्व -पकुव्वइ ६।१८ -पकृन्वति २।१५२ प्रकुव्वमाण २।६९,८४ , १।६ पक्खारणं ६।४।२ पक्खि ६।२७ पगथ ६।४२,८६ पगड ३।२६ पप्य ०।७६ पगन्भ -पगढ्भति ५।५१ पगाप ९।२।५ पगार ८७१ पहु ८।८२० पगणहियतरग ०।८।११ पच -पचह्‌ ८।२५्‌ पच्चक्खा -पच्चक्ल्लाएल्ना ८।१२९ पच्च॑त्यिम १।१,३ पच्चास -पर्चासि २१३२ पच्छन्न ६।६ पच्छा २।७,१६.२०,७६, धाद; ५।२९,०८५ पच्छाणिकाड ५।४२ पञ्जवजाय ३।१७ पज्जालेत्तए ८।४१ पन्जाठेता ८।४२ पटुण ०८।१०६,१२६ पञडिकूल २।६३ पडिक्किम -पडिक्कमे ०।०।१५ पडिक्किममाण ५।७० पडग्गह॒ २।११२, ६।३१, ८१,२,२१,२२, २३,२४.२०८,२६ पडग्रचाय १।४३,१३० आयार १।१०,२०, ७४,१०३ , १५४ पडिच्छादण ०।११२ पडिण्मत्त ०।७६ पडिणिक्छमित्त॒ ६।३।९ परिधाय पडपुन्न ५।८६ पडिबुज्म -पडिवुज्फ़ ५०।०।२४ पञबुद्धजीवि ५।१०२ पडिमोय -पडिमोयए २।१२०, १७५८ पडियक्कर ८।१७ पडियाईइक् -पडियाइक्खे ०।२२; ९।१।१५ पडले -पडिलेह २।५२, ३।२७ -पडलेहंति २३२ -पडिलेहाए २।१२३१; ८।२५७ पडल्हाए २।२०,१५३, ३।२०,५४; ५।१२, ८६,१२०; ता्‌ पञ्किहित्ता १।१२१ ८२० जब्द-सुची पडिलेहिय ३।२२, ९1 १०६.१२६ पच्लिहिया २८।८।७ पडले ६।११३ पडिवेण्ण १।३४ पडिवन्न ४५१३,२६, ८।५०,६६.६२; ६।१।२२ पड्वियमाण ६।६४ पडिनूहुणया २।१३६ पडिपख "-पड्पिंलाए ५।१०४ पडिप्ंजल -पडिसञकिज्जामि ४।३९ पडिस॒वेद -प्डिसवेदयति ४।१७ -पडिपवेदेद १।८, २५१ -पडसवेदेति ६।१० पडिसेवे -पञ्िवे ६।५।५ पडिमेवमाग ६।३।१३ पञतिष्ि २।१०२ पडीण ४५५२; ६।१०१ पडोयार ८८११२ पड््चं ५।१०४ पडप्पन्न ५।१ पणग ०८।१०६.१२६., ६।१।१२ पणय १।३६, ६।२७, ६।३।१२ पणियसाला धरार पणीय ४।१६ पणुन्न ५।५ पण्ण ८।०।२२ पण्णवं -पण्णवेति ४।१ पण्णाण २1२५) ६७७ पत्त १८४) ४।१३ पत्तय १।१२९ २।२२, ७८, ४१२५, ५।२४,५२ पत्तेरस ६।२।४ पत्य "पत्यप [1 पदि १।१२३ पदेसिय ६।७२्‌ पन्तव -पन्नवेमो ४।२३ -पन्नवेहं ४।२२ पन्नवेमाण ताद्‌ पन्नाण ११७५, २९६, २।५, ५।५१५, €।७७; ८४५७ २६ पन्नाणमत॒ ४४७ ; ५1९०; ६।३,०६ पप्प २७२ पवुद्ध ५।६० पमेगुर ६१७; ८।३६ पिद ६।३५ पमु ५१११० पभूयदसि ५।७५ परसयपरिन्नाण ५७५ पमज्ज -पमज्जए ८्।२।६ -पमज्जिया ६।१।२० पमज्जिय ८।१०६,१२६ पमत्त १।६८,६८, २२,१३; २।७५, ४।११,१४, ५1२३७,५२८ पमत्य -पमत्यति ५।३३ पमाई ३1१४ पमादं -पमादे्ति ३।६८ पमाय १६6९; २।५५,६५, ५।१७, ६।४।१५ पमाय -पमाए्‌ ३५६ -पमायए २।११, ५।२३ ३० पमुच -पमुच्चड्‌ ३।३६ -पुच्वेति ३।१५ पमुख -पपोक्छसि २।६,६४ पमोक्ख २।१८१; ५।३६ पय ५।१२०८ पयशुय ६६७; ८1१०५ १२५; ८।८]३ पया ३1४७; १५।१८.१५४ पृयाव -पयावेज्ज ८।४२ -पएयावेत्तए ८४१ पर १।३, २।६६.८५; ३।७०,८२, ६1१०४ ८।१,२,२८,९९, ४२,७५. ६।१।१६; ६।२।९ परक्कप्‌ -परन्कमे ६।१।२२, ९1११२ -परक्कमेज्ज ८।२१,२३ -परककमेज्जासि २१५६; ३२५; ४।११, ५११६; ६1६८ ६।२६,६१ ; ८।११२ परव्करमत परक्कममाण ६।१।६; ६।४।१५१ पट्ट ६1५५६ परम ३।२०,२३३, ५१७७, ८।८।२५ परमचक्छु ५।२४ परमदंसि ३।३८ प्रलोश्य €।२६ परवागरण ५११३, ८२४ परकिम्म -परवक्रिमे ०।०८१६ परिक -परिकहिज्जई २।१३६; ४।६ परिकिंल्त ०८१६ परिगिज्छ २५०८,६५ परिपरिलायमाण ०२३७ परिह २।११०,११७; २४३; ६।६३; ०८।३६ परिगगहाव्ती ५।३१ ८२२ परिधिं ८।३३ परिघेतन्व ५।१,२०, २२.२३; ५।१०१ परिचट -परिचिद्रुति ५।१५ आयार -परिचिद्ष ४।५२ परित्चन्न ३६१ परिच्छादण ०१११ परिजाण -परिजाणामि ०।२२ परिजाणं ५।६ परिजाणियव्व १।७,११ परिजुण्ण १।१२, ६।६० प्रिजुन्न ८।९२ परिव -परिदवेज्जा ८1०, ६६,६२ पट्वित्ता = १।५०,६९, ६२ परिणम्‌ -परिणमिन्जा २।१०२ परिणिज्जमाण ५।१३ परिणिव्वाए ९।१२१ परिणिन्तुड ६१०७ परिण्ण ५।१३५ परिण्णघारि २।१७६ प्रिण्णा १।९,१९.४२ ७३,१०२,१२६.,१५२; २।१५४.१७१ परिण्णाए दत; ५२ परिण्णाण २४ शब्द-मुची परिण्णात १।३१.३३ ; ५।९ परिण्णाय (परिजात) १।१२,३१,३३,६२, ६४,६६,८७.८६, १९१५.,११७.१४२, १८४८,१५३.१५४, १६२,१६७.१६६, १७८, २।२४.४५०, १८, ८१८,२०; ६।१।१७ परिण्णाय (परिजाय) १।२३२,६३,०८८.११६, १४२,१६८,१७७ २।४६,१०८,१२२. १५८,१७२११८४; २२९४१०५८ ; ५।४२,५१,१९१६, १२०, ६।२३७५९१ ; ६।१।६ परिण्णातक्रम्म १।३३.६४ परिण्णायकम्म १११२, ८६,११७,१४४, १६९११८८ परितप्प -परितप्पति २।१२४ परित्तप्यमाण २।३,४० परितावं -परितावए ५१६ -परितावेति १।१४, १२ परिताव या परितावेयन्व ५।१, ५।१०१ परिदेवमाण ६।२६ परत्ना ४।३० परिन्तनाय२।९१, ३।५०, ४।२१, ५।७२ परित्नाविवेण ५४७ परिपच्चमाण ५।१६ परिपाग ६।८ परिषडछ ५।१२६ परियटण २५२ परियाव २२ ३४४३ परिवावेयन्व॒ ४२०, २२.२३ परियाण -परियाणड ३।५ परियावन्ज -परियावज्जति १।८५, १७१४ परिवदण १।१०,२०; ८३.७६.१०३ १३०,१५८३ ३।६प्‌ परिवय (परिवह्‌) -परिवएज्जा २।७,७६ -परिवयंति २।७६ परियाय ५।२७.१०५; ६।५१ परिवज्ज -परिवज्जए परिवज्जिया ६।१।१३ परििज्जियाण €।१।१६ परिय (परि+वन्‌) -परिव्वंए २।१०८, २।११.२३०८१६१ , १।३७,११६ ; ६।४४५४,१०६ -परिव्वयंति ५।६२ परिवहित्तए २८।१०५, १२५्‌ ५।८७ परिवित्त -परिवित्तसेन्जा ९।११० -परिवित्तसति ६।९११ परिवुसित ०।४२,६२, ८५.१११ परिवुसिय ६।४०,६० परिवेवमाण पर्सिह ८1४ {| ८१२९.१०७, १२७ परिस्रव ५।१२ ३९ परिहर -परिहरंति २।०२ -परिहरेज्जा २।२०. ११८ परिहत ६।४५११ परिहा -प्रिहिस्सामि ६१६० परिहायमाण २।४ परीसह ९३२; ८।८।२९१, २२; ६।३।११ पसव पश्वेति ८।१ -परूवेभो ४।२३ -पर्वेह ४।२२ पलाख्पंज ६।२।२ पलि ६।६ परिय ४।२७; ४।१७; ६।४२,८६ परिदिदय ५५० पलिष्ठिदियाणं ३।३४ पठिद्धिन्न ४४५ पलिमोक्खं भय पलियंतकर ३।७२,८५ पल्ियटाण ६।२।२ परीव ५९६ पलेभाणम ४।१०; ८।२ पले -पठेहिं ६२1६ पवंच ३1७० पवयमाण १।१७,४०, ७१.१००,१२७.१५१; २१४१; ५।१७ ६।२।२१ ५।११२ पवा पवाय पवाय -पवायते पविस -पवितिष्सामो €।२।१४ पविपे ६।४।६ पवील पवीए पवुच्चं -पवुच्चइ १।६२ ; २1१५४, १७०; ४४ -पदुश्चति १।६८, ११९; २।३६ -पव्वुच्चति ५।४९ पवेडयं १।९,१६,५६,७३, १२६.,१५३., २।४५७, ७०,११३,११६, १७१, ५।२,१२ ; १९५; ८२६०१०४ पवेद -पेदशस्सामि ६।२४ -पवेदए ६११०२ ६।२।१३ ४४० आयारो पवेदित १।४२,१०२; २१७१; ५।२२,२५, ४०.४४८ भोजय ; ६।११,६१५; ८६, १४५२८३२.५६, ७४,८०,६६,१००, ११५,१२४ पदेय -पवेयंति ६।२।१३ पवेचिया ६।१।६ पन्वडय ६।१।१ पत्व्रहिय ११४; २१६०, १५३ पसंसि्र २।१६१,१२०८, १६८१५७८ पत्तार -प्रसारणए ८।८।१४ पसारितु ६।१।२९ पसेमाण ५।७० पस्स -पस्स ६।६४ पहाय ९।१।७ पटु १।१ब्‌ पहेण २१०४ पा -पाए्ज ८२९ -पाएज्ना ।१,२०,२९ सन्द-मूचौ १६४,६५; ४५२, ६।१०१ ८८१७ शल २।३०,८६ पारण पाट पां पाड पारण -पाउणिस्स्ामि ६।६० पाण (प्राण) १।१५,१८, २९,४१,४६.५३.७२, प०,८४) १०९.१०६, ११८.१२२.१२३ १२५,१२८,१३६५ १५२ १६० ११६४१ २।६३ ) १५३ ३।११.५०, ४।१.२०; २२.२३.२६ ५।६०,७१; ६।९.,१२,१३,५७,९१, १०३,१०.४,१०५. ८३.२१ से २४, २३४.१०६.१२६५ ८।७.,९,१०, ९।१।३; ९।२।७ €।३1७ पाण (पन) ८।१,२,२ से २५.२८.२९.७५, १०१,११६ से १२१, १२६. ६।१।२० भ ३।५० ८।२१,२२; २२०२४ पाय (पाद) १।२८.५१, ८२,१११,१३०,१६२ पाय (पत्र) पाद३.द२्‌, ८५, ६९।१।१६ पाणि पामिच्च' पाय ८।७१्‌ एायपुण २।११२, ९६।३१, ८।१,२.२१ से २४,२०८,२६ पायरास्‌ २।१०४ पार २।३४,७१ पारंगम ६१११२ पारग 1. पारापि २।३५ पारय >८।११,२५ ६1१२; ६।३।८ पाव १।१७५. २४८४, १४९ २।१६.२, २३.२९.४१.४८.५४ ८1२८, ५।१९६२८.५५ २७, ८।५,११,१६.३४ पाकव्ग २।११५.१८; (4,1~ पाचय ९१६६ पाचाडइय ४१३९ ३२ पाचादुय ४५२५ पास -पास १।१४,१६६०२९, ५५,७०,६९.१२४ १२६,१५०, २1६५७, ६६ ; ३।१२,५२; ४।११,२७.२३७, १।२७,६०, ६।८, १४,२०,२२,६६ -पासति १।६४, २1३७, १३० ; ५।५.,११६ -पासहु ४।४८, ५।१३ २६.६१. ९५, ६७,१०८; पोर -पासहा ५।५७,११७ पाकिम २७० -प्ासे ३।९६,४६ पातत (पाव) १२८ पाक्त पान) ३।२६ पास (पष्यत्‌) ८।६ पासग २।७३,१८४, २।७२,०५.८७, ८५२ पास्षणिय ५1८७ पास्माण १६४ पाक्य २।११य पामिय २।११.४५. ५६६ ५1 पिडि ६६३ पिड ६।४।१३ ` पिच्छ १।१४० पिट १२८ पिमो ` 6९।१।२१ पि -पिडिति २।१२४ पिता ६।६३ प्ति १११४० ष्यि(पितृ) २२ पिय (प्रिय) २।५७,६४ पियजीवि २।६३ पियाउय २।६३ पिह ' -पिहिस्सामि ९१२ पिहिय ९।१।११, ६२१४ पीढ्णि ' धद पीहु -पीहए २।४९ पृच्छ ९९० पच्छ । -युच्छिमु €।२।११ -पुच्छिस्सामो ५२५ पुट (पृष्ट) १।८४,१६४, २२९; ३।६९; १।२६,२८; शट्‌ (स्प) ६।५०,८४,९ €; ०1२५५७७५; ८।८८, १३; ६।२।६; €।४५१ पुट (पृष्ट) ६।१।७ दा (ष्वा) । ८1२५ पुवि १।१८.२१.२६ २२,३३,८४, ६।१।१२ पुढो १।१५.१५,१६.२६. १६,५९,७०,६६, , . श्रष्से १२६, १५० ; १०४,१३०,१५२; , . ३७९, ५१२,१६, २०,२६; ५।२५; ६।१।१४ पुण १।३; २।७४,१८२, १८६; ३।१४.३१; ४।२३, ६।८५, ८।५०,६९,६२, €।२।९ पुणो १।९०; २२,३, २३,२०,१३४ ४।१०; ५।८.१४ ६०६ पुण्ण २१७४ पत्त. २।२,१०४ पुरतो ९४११ २।५७, आयार पुरत्थिम ` ११६ पुरा. ४।४६ पुराण ६।४।१३ पुरिस ९८; २१२२, १२५,१७७, ३।४२ ६२,६४.६१५; ४।४४ र १५।३४,१२४ ; शठ पृराग ९।४५१३ एव्व = ४४०; ५।४४ ९।३०,६६, ८।७५; ०।८।२०; ६।३।६.त १६९ ३४९ ; ०२५, ५।२९.८५ 1९, १९.२०,७द ¶न्वुदाइ ५।४९ पूति २।१३० पयण १।१०.२०,४९,७४ १०३,१३०,१५४ पच्च पुव्वि ३१६९ प्रइत्तए ३।४२ पेच्च २५१ पेच्चा १।२ पेज्ज दाथ पेज्जकष॑सि ३।८३ पेय ५।२६ पेसल ६।१०९ धव्द-मूचौ १ पहु -पेहाए २१३०; ६।१।२१ पेहमाण ६२११, ६1४७ पहा रार, पर पेहाए २।५,११,४२, १३८, ६।४१० पेहि ६।१।२१ पोयय १११८ पोरिसी ६।१।५ पोस -पोसेति २१६ -पोसेज्जा २।१६ प्क फरिस १।१६४ फर्स ६।७६.८८, ६।१।६, &।३1१३ फरसासि ६।३।५ फरसिया ३1७ फ़ल ९२1१० फरटग ६।११३. ८।१०४,१२५ फारुसिय ६।७७ फास १।८. रा४,२५, ५५,१९११ ३।४; ४५९७,२३६, फास ५।१४.२९.२८, ८५,१३६; ६[८, १०,४३,४६; ५८,६१,६२,६६; ८।२५४१,५७,१११, ११२, ८।८।१८, ६।२१०, €।२।१ फास -फासे ४।३६ फस -फुसति ५।२८ ५ ०,६१,६६; ८।२५,११२ फसिय ५।५ । च्म वेव २१०८१; ४४६, ५।३६ वण ४।४५ वेभचेर ४८।४४; ५।३५, €।३०,७८ वभवं २।४८ वक्फ ६1८१३ वज्भेओे ५ वद्ध २।१२०८,१७८.१०२ वट २४१ यल्प्णं २1११०, ०१२६ वहि ०1८४. ९।२।६ दहिरत्त २.४४ ३५ # वहिया २९४७, ३1४२, ६२; ४११,२७, ५।३७ वहु २।११६, ३।३६.७६; ५।१७.३१,६५. ६।१५, १८,१६, ९।१।३५ ; ६।३।३,१० वहुग २।६५,८१ वहुमाडइ २१२४ वहुसो ९।१।२३, ६।२।१९, ९131४, ६।५।१७ वाल ११४० , २६०, ६६,७८,८५,१४५, १४८६,१८६. २।३२; ४।४५; ५।५,६,१६, ४८, ६।१८,०८६,६१, ६।११४,१५ वाल्भाव #।१०९ वाट्या ५११, ६.८१ बाहा ०1६७ वाहि २१२९ वाहि ४१५० चाहु १।२८, € विम्य 4; त्रिनिय ५।११; धच तरीय ८।१०६,१२६ ९६ वद्य ५।६३; ६।२1१ तु १।११३ वृद्ध ४।४७; ६।११; ठा रत, ८।०।२ ४ भहु ६।३।४ -आहु ५२९ ५।१८ -सूया ४।२६; ५।९७, ०८।२१,४१; ९।१।२३, ६।३।१४ -वेमि १।१२,२७.३३, २४३८१५०, ५३, ६४ ६५,८१,८४ ०९,११०.११३ ११७.११८ १२२९ १२७, १४० १४४, १६४१६९९, १७८, २।२६, ४८, ७४ १०३,१२०.१४०. १४७.१५०.१६१ 1 फ ‡ २।२५.५०, ७०,८७, ४।११,१५.२६ 9 २९.४५.५३ ५।१२,१८ २०.२५३ ४१ ६१.८६८०८,८९ ९२ 9 १ ०९५१ १ ६ १३९, ६।६,२९, ५०,६९,७५.९२, ९८,११ २११३, ०।१,२,१ ००२०२४४, २८५२९ ४९,६१, ०४,११०, १३०, ८।०८।२५, ९।१।२३; ९।२।१६; ६।४५१७ भेइणी २।२ ६।७ भभव ९।१,९,१९.२४ २,४७.७४७, १ ९, १०७ १३० १२४, १५३ १५८ २,११३ ६।६५७३ ८।८१५६ ७४,८०) ९६, १ ००,१० ४ ११५१२५४ ९।१।१,४, १५, १८.२३, ९।२।५,६, १५.१६, ९२।७५.१२.१३.१४ । ९।४।३,५,९,१२, -वेमि १६,१७ भगवंत ४।१ भज्जा ˆ २२ भद्रु ` ६८२ भत्त ` ६।३।३ जयौर १।२८ २४२, ३। ७५ भवेद्‌ १।१४ १२४ १५८, २६५ ६७.८१ ४१७ ६।६०, ९९१०५, ८५, ९७,९९.,१०३ १७.११.१२, ३०,३१, २२.६१, ९९६४८६,२७. ८९, ११४१ १५, {१७.१४६ १४२, १४४,१६६, १९७, १६९११७८, ३।४ » ५।८६, ९।२,६७ -भवंति ७०,१०७; २।८३ ॥ १।९, १७३ २४१, ९२९९०; ६।६४ ०९ २,८.४३ ५५०५७ ६२.७५ ७९.९५.१०५, १११.११४५११६ से ११९१ २२.१२५ -भविस्तामि १।६ भब्द-पूषौ २२१ १।४४ २।१२५ २।२ २।११० -भविस्सामौ -भवे माग भाय भावण्णं भास -भासति ३।५६, ४।१ -मासह ५९२ -मासामो ४१२३ भासिय १।४७ भिक्छायरिया ८।७५ भिक्खु २1११०, ५।६२, ६।६०,७०, १०३.१०४, ८२१ से २५.३६.४१ से ४२,५७.,६२.द६८, ७६,०८५,६१,१०१, १०५.,१११,११६ से ११९.१२५, ८।८।३, ६।२।१२ मिक्खुणी , ८।१०१ भिञ्ज -भिज्जह भित्ति भीम भीय देत पाशप्‌ ६1२।७,६ ६।१।४ भुज -मुजति ~ -मुजहं ८।२९१ -मुंजित्या ६।१।१०.१६ भुजे ६।४।६.७ भूजिय मार्‌ भज्जी ५६५, ६।६१, ८१२२. €।३।५ भूत ३।२७; ४।१ भूय ११२९ २५२, ४२०,२२,२३.२६; ६।१०२ से १०५; ८।२१ पे २४ मेर २६६, ५।२९; ८1१०७.१२७. ८।८।२३ भेत्त २।१४.१४२ भेद ६।३३ मेय ९११३, ८८२२ मेर ९1५६; ०।१०७, १२७ भो १।५४; २६१, धरम्‌ भोगं २७६ भत्तए एष्‌ सोमं ५।०८६ भोयणं २।२,१८.६६५ ८२,१०५ स्य मड ५।१२द मदम १।६१, २।१३२; २।१२,२५, ६।१।९३ मईमंत ८।२।१ सर्म ०१४; ६२१६. ६।३।१४, ६४1१७ मर ५।१३० मता १६१; ३।१२ मथु ६।४।४ मद॒ १।१२०, २।३०, ५।५.११, ६८१; ६।४।१२ मस १।१४०) ४५३; ६।६७, ०।८।६, ६।३११ मक्कड ८।१०६,१२६ मग २।४७,११६;४४२ ५।२२,३०; ६३ मच्चिय २1१२७) ३।२६ ४।५० मच्चु ३।१०- ४१६ मज्ज -मज्जेज्जा २११ मन्म ८।४६ मञ्छगव १८६ पज्मत्थ 4 ३८ मजञ्मिम एा३9 मष्टियि ०।१०६,१२६ मडव ८।१०६.१२६ मण भ्रात मणि राय मण्णुमाण २।१५.४४ १४३; ५।१९,९६; ६।७८,६३ मति २१५६ मतिम २।१५९; ०२६ मत्ता २।६५.८१; ३।६९ महूविय ६१०२ मन्न ~ -मन्नति ३।३२्‌ मन्सि ५।१०१ ममाद्य २।१५६,१५७ ममाय ४५।८५ मपायमाण २।५७५६।२३ पय ४।९.२० मरण १।१०,२०,४३, ७४,१०३.१२३०,१५४ २।५६.६१,६६५ २।१५, २३६; ५।७,१२१३ ६८; ८।८।४,१७ मग ६।६१; ८।१११ । ११२ ६।>1१ मह॒ २।२ ३५७; ५६४ १११,११९; ८1१३, महत ३।४६ महुन्मय १।१२२.२।९६; ४२६, ५।२२; ६।१४,२२ महाजाण ३।७८ महामुणि ६।२५.३७. १०५ महामोह २।६४ महावीहि १।३६ महावीर ६।४,६९,७६; ६।१।१३, ६।२१, ६।३।८,१३, ६।४।८,१४ महासद्ि २१३७ महुमेहणि ६।८ महर ५।१२६९ महेसि २।६०; ५।९० महोवगरण २।६७,८३ ध २।१३२ मा ३११४ माण २।४६.,७१ च) ५।१७, ६।१११ माणण ११०.२०.४३, ७४,१०३,१३०, १५४ ३1६ धायारौ माणदंसि ३।५३ माणव = २।४,५७.८०) १०९५.१७१, २।५०. ५६ ४।१३; ५1१८, २५६२, ६१,१६ ४९ माणावादि २० माणृस्स तणात मात्ता ६।९३ मामय ६।४०; ०८।६ मायण्ण २११०, ८३६ मायदंसि ३।५३ पायत्तन ६।१।२० माया (मातू) २।२ माया (माता) २।११२, २।५६ माया (माया) ३५७१, ८४; ५।१७; ६।१११ ८।८।२४ मार १२४४७७८; ` १०७१३४१५) २६२; २1६९४; ५।२ मारदंसि ३।८३ मारामिसकिं ` ३।१५ मास्यः ६।२।११ मास ६।१।२.४५६९।४।४,६ शब्दमूची माहण >।४५; ४२०; ८1१४,२६; ८।८।२०,२४; ६।१।२३; ६।२।१०.१६४ ६।२।१४ &1४२, १ १,१७ मित्त २।४१; ३६२ मिला -मिलाति १।११३ मिहो ६1१।१० मीसीभाव ६।१७ मुच -पुच्चद्‌ २३।७० मुड ६।३९ मुर्क २।२०,१८२्‌ मुच्छ -मुच्छति ९६५ मुच्छमाण १।६५ मुज -पुज्फति ५।६४ मुद ६1२३११० मुष्टजुद ६।१।९ मुणि १।१२.३३.६४.०८६, १९१७.१८४.१६६.१७८. २।३२,७०,६७.१५७, १६२३१९६५११६६. २।१,५,२७.५४; मुणि भा४४.५०.५६, ६१.७८; ६२२,२७, ५९.११३; ८।दा७,१४; ६।१।६.२०, हारा मुणिभा ८।८१३ मुत्त २।१९५; ५।६१; € ६६ मुत्ति ६३ मुय ४।२८ मुह ४।१६ मुहुतत २1११; ६२३ मुहृत्ताग ६।२।६ मूढ २।६०,६९,८५१६३, १३४,१५१, ३।१०: ५,६.१७ मूढभाव २६ मय २, पुयत्त राभ मूल ३।२१.३४ मृलदुाण २१ मूसियार ६।४११ मेहावि १।३२,६३,६६, ८८,११९,१४३, १६०८११७७, २२७, ४६११५८,१८१, २।२४,४१,६६१८०, ८४ ; ५।४०,१९४, ३६ मेहावि ९६।५४,७३,६०, ६८, ८।१८.१०.,२१; ९९१५ मोक्ख॒ २।४४,१८१, ६७ मोण २।१०३.१६३, ५।२३८.५७.५६.८य मोयण १।१०,२०,४३, ७४,१०३,१३०,१५४ मोह १।२४,४७.७८, १०७,१३४.१५८; २।३०,३३,८९.६२ दाद४, ५।७,८,६४ मोहठंसि ३।८३ च्य यं १।६ च रद्‌ ३७; ६।२।१९ रज्ज -रज्जड्‌ -रज्जत्ति -रउ्जेजजा रण्ण ४१४; ७ रति २६.१९० न्त रभठ, ताद, ९५.८८ ५।४८ २१६० ८ठरद 9 रम -रमति १।१७१ -रमति ५।१६; ६।२८ रय (रत) ४।२; ५।१५७, २०,१२१ स्य (रजस्‌) भ्ा८६ रय (रञ्‌) -रएज्जा ८1४६, ६५८० रसं २।४; २४, ५११३६; ६।१।२०; ६।४।१० रसग ६।१२ रसय १।११८ रसेसि ६1४१० राद ६९।२।४ राभो (अ) २।२,४०, ४।११, ६।७१,७६. ६।२।६,११,१५ राय (गाजन्‌) २।४१, ६८,८४, १०४ राय (रात्र) भण रायसि पन रायहामि ८।१०६.१९६ रायोवराय &।४।६ रिच -रिक्काकि ६।१।४ रीय) ५।७१ रीय -रीडत्था ६।३।१३ -रीयई ६।२।१० -रीयति ६।१।२३; ६।२१६, ९।३।१४; ६।४।१७ -रीयति ६।४।३ -रीयत्था ६११ रोयंत ६।३६,७० रीयसाण ६।६६,८२ सुक्खमूल ०।२१,२३, ६।२।३ र्व -र्वंति ६।२६ श्ह॒ ` ५।१३२ र्वं १।६४,९५ ; २४ १५.५७, ५।१३.२६, ४९१३६. ५॥७; - ९।४।१५ २।१६.७५, दतः १६, ९।४।१ रोग च्छ ल्भ ४।४५ ह ४ -कज्जामो २०।१६ ल्ज्जमाण १।१६.२६, ७०,९६,१२६,१५० अयारौ रट ६।३।५ ल्द २।२१.६६.११३; ५।१२९, ६।५।१३ लद्षु २।१०२,११६; , २।५० लभे -छभति ६।७ -रुभति ५१६३ छभिय ८२ लह "लह ६।६ ल्ह ५।१३० लहुमृथगामि २।४६ लाघव ६।६२ साधविथ ६।१०२,८।५४ ७२,७८,६ ४६८; १०२.११३१२१ लाद ६।३।२,२३,६५८ खभ २।११४ लाल २१२२ लालप्पमाण २।६०.१५१ ल्प्य -दिष्पई २।१८० ५ -ट्चिषु ९।३।११ लुप्त २१५२ ल्पित्त २१४ ल्क् ५।१३० लुप्प -टुप्पती ६।१।१५ ट्स -लूसिसु ६।३।३,६ ल्सग ६।९५.६६ लूसणय ६।३।४ लसि ६।१११ लूसिय ६।४१ लूसियपुव्व ६।१।८ लूह॒ २१९४, ५।६०, ६1१०६, ६।४।४ लूदेतिया = €! ल्लु €र१० लोग २१०४१२५ १५६ , ३1३०२५५ ५१.७7८,८१; ४७ २७,५२ , ५३१, २ ९,४३१५०.७७ ; ६1८७,१०१- ८३३ छोय १।४,११,१२ से १८,२५.३७.२८०४८) ६५.५७६ .६६,१० ८, १३५,१५६९. २।२, ९०११६९६. २1२.१, २८,५८.७०.७७; ४२,१२,२०.२७.२७, & # छोय ध] १ १५; १ ६९,३६, ५३,९०,६1 १४.३०; ८।५, ६।४१४ लछोगविजय २ रोगविपस्सि २।१२५ लोगसन्ता २।१५६, १८४५ ३1२१ लोगस।र धु लोगावाद्‌ १।५ लोभे २।३६.३७,१३४ , २।४९.७१, ६१११; पःणार्‌र्‌ छोभदति २३।८३ रोह दे।८४:१।१७ लोहिय १।१२७ व्व वेड ५१४०; ८।३१ वडगुक्तं ५।८७ वड्गुत्ति ८२७ व्हत्ता ६।६३ वञओगोयर्‌ ८।१० वंक १।६ ८ भाध्रन वंकाणिकरेय ४।१६ दता २१५९. ३।२्‌ ७१.७८ ६१११ वक्सखाय ५१२१ ४१ वच्च ३।५ चज्डं ८"८\१८ वज्जत ९।४५१२ वज्जभूमि ६।३।२.५ वजञ्छमाण ९१०४ वटु ५।१२६ वटुमगग ५।१२१ वडभत्त २।५ वड -वडति ३।३२ -वद्टेति २१३५ वणस्सद्‌ १।१०१,१०४; १०६,११६,११७ वत्तए २1१६७ वत्य २।११२ , ६१२३१, ६० ८।१.२,२१ से २४.२०.२६४ से ४६.५०.६२ से ६१, ६६.८५ से =८८,६२; ६ १।२४-१६.२२ वत्थय ६1१1४ वत्थवारि ४६ वत्थु २1५७ वदं -वदति ५२०, ६२९ ९६.८८ -वदिस्तामि ६।१।१ ४९ वदत ८।४२,७५ वन्न ८०२३ वन्नाएसि ५।५३ वमन ६।४५।२ तेय (वहु) यंति १।१७२ ; २।६१ ; ४१६ -वयासि ४।२२ क्य (वयस्‌) २।५,१२, २२; ८३० वय त्रत) २।१५२ वेय (वचस्‌) ५।६३ चयण ४।२१,२४; ८।२२,४१ वयणिज्ज ६।८६ बन्हार २।१८ क्स ३।१०, ६।६५ वेस -वेसह ८।२१ वपे २।२ वेसा १।१४० वसित्ता ४४४; ६।३०,७८ वसु ६।३० वसुम ११७५, ५।५१५, ८1१५७ सा८१ वधुमत वह्‌ "वहति १११४० क्ट २।६३, २।४२,४६; ४४६; ६१७ वा १।२,२,२४.४७.७, १ ०७, १ २४, १ १८) २१२,५०.१९.६१५, ६,७६.७७. ८१ ; ४२, ५।१, ६।३०, ८२,८४,१०२, ८।१,२,५,१४.२० से २४४१,४२, १०६१२६९; २।०।७, ६।२।१२, ९।४५।९, ११.१३ वादय ६।७५,७६ वाड १।१५२,१५५, १६०,१६०८,१६६ वाउकाय ६।१।१२ वागरण १।३ वात ५।५ वाम ८।१०१ वायस ६।२५१० वाया ८१ वास ६।६६, ९।१११, ६।२।९,२,४ वाग ६।१२ आयारो वियंतिकारथ ८।८३, १०६.,१२६ विभंतिकारिय ८।६० विद्य ८।८५ विज -विउंजति ८।१ विउकम्म ८।२ विउक्कस -विरपकक्े ६८८ नि -विड्टरति १५९ विऽत्ता ८।२ विउक्म -विउन्भमे ८।०।१० विउसिज्ज ८।०।५,१३ विउसिन्जा ६।३१ विओवाय ६।११३ विक्रय २।१०६ विग्य ६।५।१५ विगिच -विगिच शत २।३४ ४५२४,४२ -िगिचई ३।७६, ६।५१ विगिचमाण ३।७६ विगह॒ ५।२९१ विज्ज -विन्जद्‌ २।१८,८७ 1१२३ गव्दमुची -विञ्जए ५।१३६ -चिन्जति ४५३ {िज्जहिन १।३५्‌ विजा -विजदिज्जा जाता*२्‌ विजाण -विजाणानि ५।१७द ८0 1, विडञमपाग्र 1७ विणएत्त ५१४६ भिणवं ११७२ विणयण्ण । २।११०; [3 ८।३६ व्रिणन्त -विणन्तंड २।८४ -विणन्सति २।६द विणा विग्रिपहुमाग विणियिद्र २३८२, ~ #11॥ [1 ४८० €{६ विष्णा ६।य्‌० विन ६।६२ विनं २।०, ८२1१७ वित्तिः ६।६।६ पिन श्रर्‌ विनिनिच्ला राष्ट, विदित्ता १।६१,२१२९, १५६९, ३।२५ हिदित्ताण सारा विद्रिपप्यन्न्न ५।५४ विद्यमाण ६५७ विदसण ५।२९ विवार -विवारण ६।९० विधूणिया मारारेय विधृत्वप्य ३।६०, ५।५९ चिन्नाण ४।१३ चिन्नाय (विननान) ४।६, ४।१०८ विन्नाय (विनाय) =।८।७ विन्त ८२७ चिपरवतम -विपरनकरेमा ५।२४ विपरिणाम १११३. ५।२९ निनि <~ ~ चिप नन + 16५ + ८८ # क) [न विष्यन्द ६,२८ दविप्यटिटन्त तिषा धिठन्न {६ {9 दै. [1 ६५५ -{1.<. ~ -दिप्पदयेदरनि ५1२१ (9 +~ 1 न्धि ग न * त्यर्‌ ५२६ ८६ विप्पमाय २।१५२ विप्ममुन्क ५।३० विप्मरक्क्म -विष्यग्क्मपि ६४ विप्यरामन -वियरामुनः २।१५० -विष्मगामृननि ५।९,२ -विप्वगमुमह =र५, विप्रिषाम -र्प्पिरिमामनि धस्य विप्यरिवान २६९,६६, =५,१५१; ५६ विप्यसराय -चिप्यनायृएु २५५ चिप्पिय ९, १०६ विरच्य ४1२८ {िञ्म्नं ६.९६ दिम सप्‌ विम -विमनय ९१५१ -चिनर्पनि २.६८,८८ किन्न ५४८२६ यिनुव्न २१२५ विनतं 3 शकम सल्१.८५ विग्ना ०६१८६, # +; वियक्छाय ५।११७ विगड ६९1१1१८; ६।२।१५ वियाण ८।८।११ वियाहित २।१६५ ; ५।१०१; ६1४६, ६२,११२; ८१३ विधायि १।३५,५४, €, ४>,४४; ५।२७.५१,१९७; ६।९,६६,११३; ८1१६३२४ विरत २।१६५) ३।४६९, ५।३७,६१; ६1३९, ९० ०।२२,८१ ६।१०२ २।५८ विरति विसं विरम -विरमेज्ज विरय भर११८ ५1३०, ६।६९, ७०; ६।४।३ विराग ३।५७ विषू्रूव १।८,१८.२६. ४१,४६.७२,८०, १०१,१०६.१२८; १२९,१५२.१६०; २।२६.४२,५१, १०४६ ६।६१; विरूवख्व ८।१०७, १११.११२.१२५७, &{२।९५; ६।३।१ विन -विलुपति २।६८,८४ -विरपह ८२५ विलपित २।१४,१४२ विवादं ४२० विवित्त रार ८1८1 १०,११ विवित्तजीवि इदे विविह ६।५।११ विवेश ४।७३,७४ ८।१३ विसभणया ८।१०७.१२७ विसण्ण ६।६२,१०६ विक्षाण ११४० विसोग ६।१।१० विसोत्तिया १३१५६४६ विस्पेणि दद विह तध विहण -विधतिए ३।५३ -विघायए ५।१०२ विहर -विर्हरिसु ६।१।३ हाडा विहरित्था € १११३ आयारौ -विहूरे विहरेत विहरमाण विहारि विहि ८।८।२० ६।३।६ ८।२१,२३ १६९ ९६।१।२३; ६।२।१६; ६।३।१४ विहिसि -विहिषद १।२९ -विहिसति १।१०८,४१, ४९,७२,८०,१०२, १०९.१२८,१३९ १५२१६०५ -विहिषंति २८।०८।१० चीर १।२३६,६७, २।६४, १०१,१२०८.१६०, १६४१६८१७, १८० ; २३।८,१६ ४९,१५०,५६०७८ ८।११०.४१.४२.४४, ५२ , ५।२८,६०, ११६; ६।६२८,६६ वीरायमाण ६।९३ वीरि ५।४१ वुदय ६।१।९१ बुहधि ३1९६ वुत्तं ६।४५७ येज्ज ५१७९ येद -वेदेनि २१७ नेमं ५।७२ वरेयं २४ वेयरवि ८५१: ५1७८, ११८, ९१०१ म्‌ ६ ।, ४५ ६ # १ २ 9 # ॥ २ 1 चेर्‌ २।१३५, २।८,२२ ववद += ~ -वोक्रकनिष्यामि ६।६२ वोमर्ज ६५१४८२२ ९।२७ वोयदुकाव €1२,१९ वोनिर -दौधिरे =।=२१ वोच -वोच््छ्दिञ्जा ५।८३ स्त स (तत्‌) ५।१०१. ६।२४ स (त्ष) ६।२।१२ सह ६।१०, € ८१५ सकरप्प ५११७ संकमण्‌ २।६१) ८1७५ सकुच -सकुचष्‌ ८।८।१५ सकुतेपाण ५।७० स्वि ६।१।१९ नमा सानर्‌ भवाण €}, ८०, ६1‰1१.१३ मग्वाय २५०, ६।१०४, २।८।२२ मृग १।१५७८, २1१८५, ३।६.३२, ५।३६. ११.१३२, ६।२य १०८ मथ ' २।२ मग्र ५।८६ सेगाम ६।११२, २।२।८,१२ सघटदस्षि शाभर्‌ मंवाडी ६।२।१४ मघाय १।८४८,८५/ १६८१६९५ सचर्‌ -सचरेञ्जा ८।१०१ सचाय -सचाएमि ०८।४१,१११ सचिक्छ -संचिक्डति ६४० सनत १।६७ संजम -प्रजपति ५1५१ ४५ मृजोग ३}92; ४,३.४०, ६1२३० नजेगद्ट २।३,४० सजोय २।१६६, भा मेन उ>१; ६।१।११ नत्तसत्तर्‌ २८।५१ सत्ताणय ८।१०६,१२६ मति ११४९. २६९, ६।१०२्‌ मथर -मंथरे ८।०८।७ -मवरेजा २१०६१२९ सयनेत्ता = ८।१०९६,१२६ सयवं ४।१७ सुव २२ सघा -सघाति २।५५ -मविस्सामि ९६।६० संवे १।८ सवि २।१०६,१२७. ३।५१ , ५२०) २०,४१,६० सवेषाण ६१७१ सपेडिच्दाएं सारे पमार -सपमारए १।२६.५२, ८2 | १ १ भ 1 १ दध ६, १ ६२ ४६ संपय -सपयति १।८४,१६४ सपलिमिज्जमाण ५।७० संपव्वयमाण ५।८६ संपसारय १।८७ संपाहम ११६४ संपातिम १।०८४ संपुण्ण २।६० सपेहा९ २।६६. ४५३२, २४; ५।४४; दात संफास ५।७१, ६।२।१४ संबाहण ६।४।२ साहा ५।६५ सतुज्ममाण १।२३.४६., ७७,१०६,१३३, १५७) २।१४८, ४।१२,१३ ; ०८।१५; ३०, ६।२।६ संभवेत ६।८७ संभूय २६७८३ संमुच्छिम १।११८ संुनमाण &€।३।६ संवच्छर ६।१।४ सकट -संवट्टेज्जा ८।१०५, १२५ सवस -संवसति २।७,१५६, २०,७६ सविद्धपह्‌ ५।५० सविहूणिय ८।१०७. १२७ संबुड ५।८७; ८।०।२२, ९।२३।१३ संसप्पग॒ ०८।८।९, ९।२।७ ससय ५६ संसार ९।११९; ४।१३, ५।६ ससिचियाण २६१५ ससिच्चमाण ३।२१ ससेयय १।११८ संसोहण ६।४।२ सक्कं भ्रा्ण सक्ख -सक्लामो €।२।१४ सगडन्भि ३।७२,८६ सच्चं २।४०,६५,६६; ४।५२, ५।६५, ५८।१०७.१२७ सत्रवादि २१०७.,१२७ सज्ज -सज्जेज्ना = ठाना४ सङि ३।८०; ५।६६ आयारौ सद ५।१७ सण्ण ५।१२५ सण्णिवेस ८।१०६,१२६ सतत २।६३ सत्त (सत्व) १।१२२, ४।२०,२२,२३२६, २७, ६1१०३,१०४ १०५, पर्स २४; ६।१।१४ ६।४५१० सत्त (सक्त) १।१७४; ६।७,१६ सत्ता ५।१२७ सत्तिहत्थ ६।२।८ सत्थ १।१८,२१,२६,२०, र १, २ २,४१,४४; ४९,५५,५६,५९; ६१ से ६४,७२,७५, ८०,८६ से ८, १०१,१०४,१०९, ११४ ११७.१२०, १३१,१२६.१४१ से ठ १ ५२, १ ५५) १६०,१६६े १६९ १७७.१७८, २२ ४०.१०४, ३१३११५७, ७२,८२,८५; ८।२६ लन्द-मुचो सत्थार ६।७९ सदा ४।५२, ५।८७, ११६ सह्‌ १।९४,६५; २।१६१,३।४,१५, ५।१३९.,६।४२, ६।२।६,६।४।१५ सह्‌ -सहहे ८८२४ सद्धा ११२१ संद्धि २।७,१६२०,७६ सन्त ४1१४ सत्न ९।१., २३२ सन्तियय २।१८,१०५ सन्तिवेस ६1७ सन्नहाण ८।३६ सन्निहि २।१८.१०५ सपज्जवसित सा सपेहिया ०।८२३ सल ४५१ सवर्त २५ सभां ६।२।२ सप १।८६ स्मप्र २।४९; ४५२२; ६।६६, ८।२१। २२,४१; ६।१।१; ६।२।४ ६।३।४ ५; ६।५।११ समणस समणजाण -समण्जाणड १।२१, ४८,७५,१०४,१३१, १५५; २।१०७,१०६ -समणुजाणेञ्जा १।३२, ९२,८८, ११६११४३, १९८०१७७; २४६, ८।१२ ६।४१; ८३ १1६, २।७४, १८६.५।६६, २।७६, ८।१,२०,२९ समण्पस्स -समणुपस्सति २।६७ -समणएपासह ५।६६ समणुवास -समणुवासिज्जासि २।२६, भतत, ६।२६ -समणुवासेन्नासि २१०३ १११७५, ५।५५१ ६।९७, ८५७ ८।२२्‌ समण्जाणमाण समणुनन समत्नागव समभिजाण -समभिजाणाहि >।६५ -समभिजाणिजा ८१६७ -नमभिजाणिया ६६१ ४७ समभिजाणिया ५।११५; ८।५६,७४,८०, ६६,१००,१०४ ११५.१२४ समय ३।३, ४।२५; ५।६६; ८।१०५, १०६,१२५, ६।१।१० , ६।४५१० सपयण्ण २।११०; ८।३६ समया २।५५; समहिजाणमाण २८।८१ समादहमाण ६।२।१४ समादा -समादियति ६५७ ससादाय २।१६३ समाधि ५।९३ समायाए ५।५६ समायाण २1४२ समायाय २२२ समायार १1६२० , ५।५८ समारमन्‌ १७.११.१२, १८,२६,३२.८१,४६, €८,७२,८०,८६,१०१, १०६,११७.१२८.१२५, १४८८,१५२,१५०,१६६, १८७ २1१०४. ८।१८६ 1 समारंभ -तमारंभई १,२१.७५, १०४ -सपारभंति ५८।१९ -समारंमति १४४ १३१.१५५ -समारंभावेद १।२१, ७५,१०४.१२१ -समारभावेन्जा १।३२, ६३,८८,११६, १४२,१६८.१७५; २।४६, ८1१८ -समारंभावेत्ि १।४४, १५५ -समारमे्नासि २८।२० समारभत १।२१,३२, ४४,६२,११६.१४२ १५५,१६०८,१७७; २।४६; ८।१८ समारंभमाम १।२६ २०,४१.४६.,६१. ७२,७५५त८ ००२६ ८८,१०१,१०४ १०९.११४.१२८ १२३१,१३६.१५१. १५२,१६०.१६६ समारभेमाण १।१८.१०६ समारव्य तार१सेर४ समारभ -समारमेज्जासि ३।५० सपावल्न ५।९१ समासज्ज २८1 १,१७.२१ सपराधि ५।९३ समाहि ६।७६; ०।०।५; ९।२।११; ६।४५७.१४ समाद्य ६२; ५१०५; यत ६।२४ पमिल्व ४।२, ९।१।१६ समित २५३; ३।३८ ४५ समिय ५।४१; ५।७५; ६।२।१०, €।३।१, ६1४१६ समिय (सम्यक्‌) ५।६६ समिय (शमित) ५७१, ८।८।१४ समियट्सण ६।४६,१०० समिया (शमिता) ५।२७ समिया (समतता) ५।४०, ८।३२, ६।२।१५ समिया (सम्यक्‌) ४।२६, ५।९६,६५७,१०५ समीर -सभीरए ०८।८।१७ आयार) समुदा २३,४० समुद्राए १,२३.४६,७७, ९०,१०६,१२३, १५७; २३१, १४८ ; ६।६९३ समुदित ८।३० समृद्धि २।१०,१०६; ३।४४; ९।२,७१ ; ८१५ सपदि ०।२१से २४ समुप्पज्ज -समुप्पन्जंति २।१६,७५ -समुप्यज्जे ०1०1१ समुप्पाय २।१९.५५ समप्पैहमाण = ५।३० सपुस्सय 1८४ समुस्सिण -समुस्सिणाति ०।२२, २४ ०८।२९ ८।९१ -पमुस्सिणासि -समुस्सिणोषि समे -समेति समेमाण सम्म ६१ ६।१०, तौर २२६; ४।४०' ५।२३८,५५.६१, ११५. ५।२७ शब्द-मुची सम्मत्त ४, ६।६५ ; ८।१६१७४८०, ६६,१० ०,१ ०४, ११५११२४ सम्मत्तदंसि २1१६४; २२८; ४।२६, १।६० सम्परय ८।१९१ सय २१५११५२ सय सए ८।८।१३ सय १।२१.२२.२३८,४४, ६२०६५,७१५.८८} १०४,१०६,१२१, ` १४२३.१५५.१६८, १७७; २।४६ ; , ८1१८, ६।१।६,१७, ` ६।५८,१६ सयण (स्वजन) २।२ सयण (यन) ६।१।६ , ६।२।१,४.७ सययं ३।१० , ५।१७ सया १।६७; ३।१,.२८, १५९; ४।११.४१ , १४४,७१ ; &र२९, ५९.९८, ६।२।१०; ६।३।१ सर -सरति ७ २३५६ . सवंत सर्‌ ५।१२२ सरणं २ा८,१७,२१,७७; - ' ४1१६, २८.१०५ सरीर ४।३२, ६।१७, ११३ सरीरग २।१९३; ५।५६; ८।१०५,१२्‌ सल्छ २८७ २१३० सवयस ८।२२ सन्व १।४,८,११३,१७५; २।६३,६४,१७६ ; ८1५७ सन्वओ ६।२,३९. सन्वतो २।१७५; २७५, ४।२०, ५।९०,११५; ६।२०८,६५,१११ , ८१ ७,५६,७४,८०}, € ९,१००,१०४, ११५.१२४ सनव्वत्त ६।६१५,१११; ८ो५६,७४६ ८०१६ ६,१००; १०४११५१२ सव्वत्य ८११ सन्वया ५१११ ४६ सनव्वसो २।१७२,१८४; ४।२१, ५।५१; ८८२१, ६।१।१२, १५,१६.१८ सन्वावतो १।७.११; ८।१७.३२ सन्विदिय ८।२७ सह॒ १।८; २।५५.५८; ३।७ सह सहते २1१६० सहस्क्कार २।३,४० सहसम्मदयाए १३; ५।११३, ८२४ सहसाकार -सहसाकारेह. ०।२५ सहि २।२ सहित ३।३८,६७,६६, ४।४१.५२; ५।७५ सहिय ६।१।५ साड ६।२।५ साइम ०।१,.२,२१े२४, २८०२६१७५.१०१, ११९६ से १२१ साडय (1/8 सागारिय ५।१०; ६1१1६ सात २1५२, ३१२७ ५५: साति' -सातिऽजति ६।५।१ -सातिज्जिस्सामि ०८।७६.७७.११६ से ११६.१२१ सामगगिय ८।४६,६८, ६१ सामत्त २।५४ सामास २५१०४ साय २।२२,६३.७८; , ५२५. ५२.५९ सारक्खपाण . शात सारय , ४४१ सासय र्‌; पादार्थ साह .-सादिस्सामो ५५५२ साहुम्मिय ०।७६,१२०, १२१ साहर -साहरे ८।८।१४ साहारण ८।०।९५ साहिय (स्वाहित) ` । ८।८।१२ साहिय (साधिक) ६।१।३,४,११ , ६1५६ ८४ १।१४० साहू सिंग सिक्ख -पिक्खेज्ज्‌ ८।८।६ सिदटिल भ्र सिणाण ९।४।२ सिद्धि ८1५ सिय (श्रित) . १।११६ सिय (सित) ११५; ५।९४ सिक्विय ६।८ सिलोय ६।६६ सििर .. €।१।२२; ६।२।१३; ६।४।३ सिस्स ६।७१५,७६ सीभोसणिज्ज ३ सीतोद ६।१।१९१ सीय दज ५१३०, । ६६१, ०।४१,५७ १११.११२; ६।३।१ सीयपिड ६।४।१३ सीख १४४ सीलमंत दार० वं -सीवीस्सामि ६।६० सीस १२८; ६।११३, ६।३।०८,१३ सुअक्खाय ६।४५६; तल ' ष कड ‹ `आयारो' सुक्क ' ६।४५१३. सुनिकष्ठ ५।१२७ सुगर ६।१८ सुण _ -सुणेति १।६५ -सुणेह ६८ सुणमाण १।६४ सुणय, ९।३।४,६ सुणिया ५।४४ सुणिसंत ८३ सुण्हा २।२११०४ सुत्त (सु) २।१ सुत्त (सूत्र) ६।६० सुद्ध ४।२; ६।५३; ८।०८।५ सुण्णगार ६।२।३ सुन्नागार ८।२१,२३ सुपडिवद्ध - भर, युपडिटिहिय ४।२०, ५।११५; ६।२ सुपणिहिय ६।२५ सुवन्नत्त ठप सुपरिण्नाय, ६।१११ सुन्म(भ्ह) भूमि ९३ सुन्मि ˆ ६।५५५६९।२६ सुन्भिगध ५।१२८ सुय १।१, ४।६,२०, ५२६ भन्द-ुची एविसुद्ध &४।९ सुन्वय ६।९३ सूखमाहितटेस ८।८१ सुसाण ˆ ८।२१,२३, ८4 ६।२३ सुस्सूस ˆ -ुस्सूसं ६२४ सुस्धूसमाण ६१०२ सुह २।६३; ८।६१.८४, | ११०.१३० सुहट्टि २।१५१ सुहुम ८।८।२३ सुद ६।६० सूदय ९।४।१३ सूणिय ॥ सर ६।२।१३ सूवणीय्‌ ५।३४ सेज्जा ९।२।१, ६।३।२ सेय २।१७६; ३।६७, सचय सेव -सेवड ६।२।५ -सेवएु ३।४४, ५।१० -तेवति २।१९४, ५।६० -सेनती ६।१।१९ -सेविसु श्र -सेचित्या ६।२।१, ६।४।६ -सेवे -सेवेज्जा से सोच्चा ६।१।६,१२ ८।८।२३ २।१८ १।३,२४४७, ७८,१०७,१३४) १५८; ५।४०,११३, , ९1७६ ;, ८।२४,३१ सोणिय १1१४०; ४४३; ६।६७. ८।८& सोतं ५।११७ सोय (्रोत्र) २४,२५ सोय -सोवए २११५ -सोयति २१२४ सोय (स्रोतस्‌) २1६ ५०; चा४५,५०) ५८९, ११६; ६।१।१६ सोय (शोक) ३।४९ सोयविय ६।१०२ सोल्स ६८ सोवद्राण ५।१०६ सोवहिय ४।३, ६।१।१५ सोवाग ६।४११ सोहि ६।४।१६ च्छ हं ४।२५्‌ ५१ २।१४.१४२; २५३; ५।१०२, रोर हतन्व ४।१,२०,२२,२३, ५।१०१,१०३ ३।३२, ९१५, हृत टता ६1२१० ह्ण -हण €!६ १, ८।३ -हणह्‌ ` ८२५ -ह्णिया ३।४६ -ठणे २१७५ णय ६1६१, ८।३ हणुय १।२८, ८१०१ हतं २५६ त्य १२८ हम्म -हम्मड ञान हय ६।४१ दयपुव्वे €।१।८,६।३।१० हर्य ४५।८६., ६।६ हरिय ०।१०६,१२६; <} १३; ६१1१२ -तग्वि षे हरि २।५१ ञ्चं (4. न्तः 11 द # | ४ ५२ हस्स २९; ५।१२६ हालि ५।१२७ हस २।२२,६१ हिसि -हिितु ११४०; ९।१।३; ९।३।३ -हिसंति ११४० ; ५।५१ -हिसिस्संति १।१४० हिच्वा ४।४०; ६३०. ७७,६३ हितं ८८1२१ हिमग ६।२१४ हिमवाय ६।२१३ हियं ८।६१.८४११०, १३० हियय १।२८०१४० हिरण्ण २।४० हिरि ८।१११ हिरी ` ६।४५ हीण २४६ हि ११२, १५४ रग यारी हरत्था द) ५१२; हेड £ हेमंत हो -दोद | -ठोड -होति टोट ८।२१,२३ १०,२०,४३ ट १०३,१३०.१५४ ०।५०,६९.९२; ९।१९।१२ ५ ९६ ५।६६.१०७ ६।५२ १।२प आयार-चूखा : शब्द-सूची ज अद्दूरणय ११३६ अद्रूपत्‌ -अदपतति अद्रमत्त १५।६० र्व १५।१२,१३ अक १३।३६ से ७६; १४।३६ से ७६; १५।१४ १।११३ १५।१४ १1११६ १६२, २।१९६५४७ अजण १,७२.७२ अंजलि ३।६१, ५।५०. । ` ६५८ अड १।२,४३१५१,८२; ८३,१०२,१३५; . २१,२.३१२२, ५७े ६१,६०,६९, ३५, भर८से ३०, ३४ रपे इणः २।२० अक्रधाई अगारिय अंगुलिया ७१०,२९ ते ३१,३३,३०,४० से ६५ ; ०८।१,२२९१ २३, ६।१,२., १०।२,१४ अत (अत्त) २।७२ ; ८१२९ , ६।१२; १५।२५ अंत (अन्तस्‌) १५।२८ अतक्ड १६।१०,११ अता १।४२,४३०१०, ५३,१३६, ३१४; ५,७८,१०,१२ से ~ १४.२३४.४१.४२; ५,४७,४०८,५.१) ५३ते ६१; ५।४६, ५०, ६५७५० अतरिज्जग ५।१६ अंतरिथा १५।२८ अेतण्चलुय ११३३ ; ७२६ से ३८ अड अतलिक्छ ४। १७ अतलिकंखजाय १७ २।१०८,१९; ५।३९ से ३८४ ६।३९ से ४१; ७११ पे १३ अतो १।२६.४१०१३५ १३६; २१२; ६।४५, ७२४, ८।१२; १०।१२९ अंताहितो ७२४ अंतोभंत ५।२६०२७, ६।२७,२८ थव ७२६ से २८ अंद्चोयग ` ७२९ से ३१ अंबडगल ` ७।२९े २१ अवपरव ११०८ अव्पाणग ११०४ अवपेतिय ७२६ से ३१ अबभित्तम ७२९ से ३१ अवेवणं अर्‌५; १०२७ भवसरइय १।११० अनसाख्ग ७।२९ से ३१ अवा देर 81 अंबाडापल्व १।१०८ अंवाडणपाणग १।१०४ अंबाडगसरडइय १1११० अविल १।१००;१३८; | ४।२३७ असूय ५।१४ अकत १६।४ अकन्कस ४।११,१३,१५, २२,२४,२६,२८, ३०,२३२,३४.२३६ सकडुय ४।११,१३,१५, २२,२५२९.२८, ३०,३२,३४१३६ अकरणिन्ज १३२; १५।३२ सकण १५ अकाल्पडिवोहि ३।८,९ अकाङ्परिभोड ३।०८,६ अर्किचण ` ५१ अकिरिय ४५।११,१२; ९५.२२.२४, २९२०९३०, , ३२,२५.३६. । {३५ अक्त अव्कोस . ५१; ३६१; अक्को्षति ५।५०; ६।५०८; ७१६ -अक्कोसंतु २।२९, -अककोयेज्ज ३।६,११ अव्खाद्‌ २४४" अक्खादयटुाण ११।१४ १२।११ अक्लाय १।२६, ४८; ७५७ अगड 2३।४८ अगडपह १।२४ अगदिय १।५७ अगणि १८४८५,६५; २।४६, ३५५ अगणिकाय १६।४,९५; २।२१,२२.२९, ४१,४२्‌ अगणिफंडणदाण' १०।१६ ` अगणिय २।४६ अगरदिय १।२३ अगार २।३६,३७.३६ से ४२ १५।१, २६; १६१ अगारि २।३९०२७); ३६ से ४२ अगिद्ध १।५७ अगगं । १५।२८ अजाय १११५. अयार-चूखा अग्गपिड १।१९.,४९,६१ अग्गवीय १।११५ " अग्गलपासग १।५०; २।४१ *४७, ४।२१,२९ अग्गका १।५०; २४१, ४७; ५२१,२२,२९ अग्मि १६५ अग्धा ॥ "अग्ाईइ (ति) १५।७ अग्धाडं , १४१७४ अग्धाय १।१०५ अचित्त ०१७ २०, , १०२९८ अचित्तपंत ४।८; , = १५५५७.७१ अनचेल्या १५१६ अच्चादृण्ण ३।९ अचि १५।२०८ अच्चुय १५।२५ अच्चुतिण ९।९६ अच्छ १।५२; ३।५९ अच्छं -. -अच्छाहि. . ६।९ अच्छि २१८; २३।२८ अच्छिदं. -अच्चिदेनन्‌ २१९११. ` द ५५०; ६५; शव्द-सूचो -अच्छदेज्न ३।६;११, ६१, ५।५०, ६।५८ ६।१६; १३।२६,२३, ,*६३,७०, १८।२६ ३३,६३,७० -अच्छिदेति ५।५०; ६४८ १३।२७, ३४,६४,७१, १४।२७.२४; ६४,७१ अच्दधिमल १३।३६९.७३; १४।३६.७ अच्छुप्य १५।२९ अच्छेज्ज १।१२ से १७, २६; २।३ से 5, ५।१ से १०, ६।४ से €, ~ तरसे ६1३ से ७, १०४ ये ६ अच्छेयगकरी ५।११, १३.१५.२२,२४, २६,२८,३०.३२, २४.३६ अजाण (अजानत्‌) ११३६, ४।१ अज्मत्थवयग धार उन्फत्थिय १३।१६१४१ अच्छदित्ता अन्फवसाण १५।२८.१० अच्छोववनज्ज -अन्फोववज्जेज्जा ११।१९; १२१६, १५।७२ से ७६ अञ्फोववज्जमाणं १५।७२-७६ अन्कोववन्न १।१०५ अद १०१३, ११६; १२।६ उद्ाख्यं १०।२१; ११1६, १२।६ अदु (अर्थे) १।२०,३०, ४१,४८.५६०६०; ८६,१०२०१२०, १२९.१२३.१२६. -१२३७,१४६, १५३. २।२३,२६,२०८,२६, ३८,४३,७७) ३।२३, ४९,६२,४।१८,३६., ५।२२,४०,५१ ; ६।२१,४३.५६; ७६.२२.५० से ५२, ५३,१८, ८३९; ६।१७, १०।२६; ११।२०ऽ १२१७; १३।८०, १४८०; १५।१२ ९4 अदु (अष्टन्‌) १५२६, गा०२.५ अद्म १५।३ अद्ुमी ` १२१ वहसीति १५।२९.गा०३ अदि १३५ अदि १।१०४,१३४ १३५ अद्विरासि १।३,५९१, १३५, ५।३६, ६४२ अङाइज्ज १५।३३ अर्णत॒ १५।१,३०८.४०; १६।२,६ अणतरहिय १।५१,१०२, १२१, हरेत, ७।१०; १०११४ अणंबिल १६६ अगार ७१, १५।७८ अणगारिया १५।१ अगज्फोववण्ण १५७ अणणुन्त(ण्ण)विय १।५४, ७३; १५.५६९ अणगुवीड १५।५०.६२्‌ अणगुवीडभासि १५।५१ ५६ अणण्ठयकरो ४।११.१३, १५,२२,२४.२६२८, २०,२२,२४,३६ मत्तद्विय ११२ से १७ २९.२४ २३से, त १०,१२,१४.१६; ५।५ मे १०,१२; ६४ से ६,११: इसे ७,८,१०, १२९१४६१ ८, १००१२.१४; | १०४६ अगभिक्कंत १।४ ३।१ अणभिक्कंतकिरिया २1३७ ५।२६. ६।३० १।१३१५ १५।३४,२७ ४७ अण अंगहि अणादइल अणागय अणाययवयणं = दरेन्य अ्णागाढ एषम अणाढायपाण १।२७ अणापुच्छित्ता ११३० अगामंतिय १।१२७ अणायरसिय ४1१ अणायार ४१ अणारिय ` =€ ११२७; ११४८ अणावाय शणश्द्तेश्रण, - २१२३; १०१२८ अभासाडं ११७५ जणासायमाग २७६; - २।२७.३५,५०.५२; तारत अणासेविय(त) १११२ १९११७.२९१,२४; २३ से ०,१०,१२४ १४.१६; ५।५ से १०, १२; दार्से ६.११; ८।२; ६३: १०४से९ २४६. ५।३६ से ३८; ६1३६ से ४१; ७११ से १३ ६११ १४१; २४८ अणिसटु ११२ मे १७; २३ सेणः४४से १०; दथ्से श नरेसेयः ६।३ से७; १०1४ सेई १२९.१२८ अणालेइय अणिकप अणिच्च अणिपंतेपाण अणिसिद भआयार-चूला अणिस्सिय अणीहड ११२ से १९६ २१३ से ७,.५।५ से &: दासे ८; १०।४,६ १ ५५७७१ ~ श्शध्र शृदाऽ अणु - अणुकेपय अगुगच्छं -अणुगच्छाहि ५२२ ६।२१ अएूजाण -अणुजाणवेज्जा ७२५ -अणुजाणावेज्जा ७३२,३९ -अगुजणेसि १५।३१ अगुण्ण -अणुग्णविन्जा ७२३ -अगुण्णवेज्या राः ७४,६४४६ अणुण्ण(न्नोविय ११५४ ५१५६; ७३ अणत्तर १५।१,३९७२८. ४०; १६।१.५ अणुद्वणक्री ४।१ १,९३ १५.२२०२४.२६२०' २०,३२.२४.३६ अणुपत्त १५२६ अन्द-भुची अणपदा -अणुपदेजज ॐ ७1६ -अणुपदेज्जा १५१ अणुपदातन्वे ११३६ अगुपविदु १।९१.४े त, ११ से १७.२१.२३, २४,२६०४२०४३, ४९,५०.५२,५३, ५५,५८,६१.६२, ८२से पर्ट८७,८९, ६०,६२ से ६४,६६ से ९६६,१०१,१०२, १०४ ते ११९.१२३ ` से १२६,१२०.१३३ से १३९०१४४ से १८७,११५१ से १५४; ६1४६ भशपविस -अणुपविसिस्सामि १।४६ -अणुपविपिज्ना १।१२३, २३०; ३।५६.६०. भोढ०,४६ ; ६५६, ७, ८1१ अणपविसित्ता १३२, ४७,२।१; ७२.०१ अणुपविसेत्ता ९१२३ अणुपविस्समाण ९१३५ (-) अगुपेहा =. १४२४३; २।४६ से ५६; ३।२, ३, ७१४ से २९१ अणुप्पभुय १।११२ अणुक -अणुलिपति १५।२८ अणएलिपित्ता = शभररन अणुगय -अणुवयति ५।४७,६।५५ अणुवीड २।४७, ८।३,५ २८, ७।४,६५८} २३.४६.४९; ४८६२ अणुवीदमासि १५।५१ अगुणा १५।२६गा०२ अगेभाह ३।१२.१३ अगेक्सि १६२ अेसणिज्ज ११.४.६४ १२ से ७,२१.२४ ३५,२६.४१,९६ से ८०८२ से ८५.८७, ८८,६० से ६६, १०२,१०४,१०६से ११६.१२१,१२२, १२८,१३३ से १३६, रो८,७ से ६०; १५७५ अणेसणिन्न ५।५से १० १२,१४.१५.२२ से २४ २८.२६; द४से ८, ११,१३,९४.२१ से २९, २६९,३०,४द; ७२६, २७,२६.३०,३३, २३४,३६,२७४०. ८१,४३,४४; ८१, €।१ अणोगहणस्ीलं १५।६०, ६१ अणोज्जा १५।२३ अणोवयमाण २।३७ अण्ण(न्न) १।२३५.१५५; २1३० ; ४1५१९; १५।२०.४८; ६१६. १६; ७अ२,५० से ४२; ११५।४३.१० अण्णतरे(थर) १।३.२४, २३९,५१,८८,६६, १०४,१०६ से १११.११२ से ११६. १२५,१२९६,१३२ १४२.१५५; २६३०६४,६७ ; ५१४. ११,१८.२१, २२.३६.३६; ६१२ १४,१७.२०.२९.४९; पत अण्णतर(थर) ` ७५६; १०१४ ८; ११।१ से १८; १२१ से १९ , १३८.९१७.१८, ` २४ से २७२३२,३४ धण्णत्य ` २।१७.७३ ; 1 ८1२६ अण्णमण्ण १३२; २।५१ प से ५४.७४; ५।४६, ४७४८; ६।५४से ५६; ७।९,१६ से १६; ८।२८, ६।१६ अण्णमण्णक्रिरिया १४।१ से ७८ २२५ शात ७1७ अण्णयरी अण्णया अण्णसं भोय अण्ट्यकर १५।४५,४६ अण्टुयकेरी ४।१०,१२, १८,२१,२२३,२४, २७,२९,३१,३३, 9 १ ३५, अतिरिच्छचिन्न श - ; ७२७,२०,२४.३७, ४१.४४ अतिथि १।८२,४३ अतिहि १।१६.१७.२९, २४,४९.५१,५८, १४७.१५४ ; २।७, ८,३६,२३७१३६,४०; २।२ सै ५; ५।६, १०,२० ; ६।०,६, १६; ८७.ठ; ६1७, ८, १०}८,६ अतीत ४19 अतुरियमासि भदन उतेण , २।३० अत्तद्वियं १।१२ से १६१०, २२; २।३,५.६,११, १३,१५,१७ ; ५।५ ` से ९,११.१३; ६।४ से ०,१०.१२; ०३ ७,९,११,१२,१५; ६।३ पे ७,६.११,१३, १५; १०४ से ८,१० अत्य १५।र२६गा० १ अत्थिय १।११८ अथिर ५।२६ ; ६।३० अदद्‌ १५।७३ अदत्तहारि ५।४०,६।५६ अदि ११।१९. १२१६ अदिण्णादाण अ, १५१४७ ६ आयार-चूश अदिन्न्ण) ५२; १५५७ से ६२ अदीणमाणस्च १५१२७ अदुगुंखिय १।९३ अदु ,१६।३ अदु ५५९ अदूरगय १।१२७.१३६ अदूरसामंत = शरदेण अहीणमाणस १५।३४ अद्धजोयण ६।२६२।१४ ५।४; ६।३ अदद १५।८ अद्धणवम १५। उद्धमासिय १२१ अद्धहार २।२४; ‰।२५; १२।७६; १४।७६ १५।य्८ अधारणिज्ज ५।९९ ६३० अविकरणीय १५।४५४६ अधुव ४२. १।२९.६।३० अनिदटूदुर ४।११,१२१ १५.२२,२४.२९ २८,३०,३२,३४,९९ भननउत्थिय १८ से ११ अन्नत्थ १।१९४ धत्नमन्न २२५ न्द-सूचो अन्नयर १।२५.,३३,६३; ८७,१०१ ११०८} १०६.११३,११५; ११६. २।१८,१६, २१.४६.७१ अन्नुन्नकिरिया- सत्तिक्कय अन्नोन्त १।१५४.२।६७; ५।२१ , ६1२०, ७५६. ०।२१ अपच्छिम १५२५ अपिलिहिय ६।५४, २७१ , ७३, ८।२१्‌ १८ अपडिसुणमाण ४।१२से १५ अपमज्जिय १५४, ७३ अपरिणय १।६६.११२ अपरितावणकरी ४।११, १३,१५,२२,२४ २६०२८.२०,२२; ३४,३६ अपरिभुत्त.११२ से १७, २१.२४.२३ से ठ, १०,१२.१४.१६ ५।५ से १०,१२;. अपरिमूत्त ६।४ से ९११; ८।३ से ८, १७, १२.१४, ६।३ ते ८,१०,१२१४, १०।४से& अपरिसाड २।६६, ८।३० अपरिहर्ति २।२४ अपरिहारसिय श "से १९, १२७,१२३६ अपलिर्चमाण ५।४१ अपमु ७१ अवाणय १५२९०२८ अपारग १६।१० अपाय १५।४५ अपाविय १५।४६ अगुत्त ७१ अपुरिसंतर १।१२से१७, २१.२४ २देसेन, १०,१२.१४१६, ५।५ से १०,१२; ६1४ से,६.११ ,- सदेसे ८,१०.१२ १४, ६।द से ८,१०, १२,१४, १०४ ६ अन्प(अल्प) १।२,४३, १५१,१२१,१३३, १२४,१४४१५१३ १६ अप्प(अल्प) २।२,२२,५१ से ६१.६९.७६; ३।५.४०.४४ ४५; ५।२,२९.३०, ६।२, २०.३१, ७२७२८, २०,२४,३५.३७.३८, ४०,४१,४२,४२४.८५, ठ८ा२,२३,३०; ६1२; १०।३.२८; ११।१७,७१ अप्प (आत्मन्‌) १।५७, १२९१, २।२३.२८} २६.३२८,२२२.४८) ५६ से ६१, ५।२२ ४६,४६; €।२९१, ५४ से ५८; ७६, ५२० १५।२,२६,४१ ४२,५०.५७,६४,७१ अप्पद्टिय १६१२ अप्पजूहिय १।४४ अप्पद्हारिय २५९ अप्यतर ३।१४ अप्पत्तिय अरे अप्यसाबन्जकिरिया २।४२्‌ अप्पाद्ष्ण ३।३ ६० अप्पाण १।३३,२३९; २३।२२,२६, ४४,५९.६१ भपुस्मुय ३।२२,२६.४४, १६,६०१६१;५४८; ४६; ६।५६ से ५८, १५।१५ अकर्म ५।११,१२,१५, अबेहिया १।१७.२१.२४ २।८,१०,१२,१४, १६ ५।१०,१२; ६।१०,१२; ८ देसे छा १ 9 | १ २, १ 1 ५ ८ रसे ८,१०,१२, १४, १०।४ये ८,१० अवहि (५ हि कस्स २।२२,२६, २२,२४,२६,२८, ४४,५९ से ६१; २०,३२.२३४,३६ १।४८.४६; अफामुय १।१,४.६,१२ ६।५६से धन से १७,२१,२५,३६, षष््देसेम्ण्पर -अन्भगाहि ६२२ से ८५८५८०६० = -अन्मीन्न २२१; से ९६९.,१०२,१०४, ६।३२,२५; १०६से ११९.१२१, १३।१४,५१; १२२,१२०,१३३ से १४५९५५१ १२६; रा४८,५७से । भ -अन्भगेति(इ) २।५२; १८१५.२२े २५ ७१७, १५२८ २८.२७ ध्षेत अन्भगेता ६1२२; ११,१३.१५.२९ से ५९९ , २६२६९.३०.४६ अन्भुवगय ३।१ ७1२६.२७,२९.३०, अभन्जिय १।४ भ, ३ २,२४.३ ६,३७, अभासा ४।६ ४०४१.४२.४४ अभिकं ४।१० से १५ ८।१; ६१. २० से ३६ भाथार-नूर अभिक - : -अभिकखसि १।६३, ६६.१३५; ५1२२ से २४ ४६ से ४८; ६।२१ से २४, २६,५४ पे ५६ -अभिकंखेऽज ६३८ -अभिकंसेज्जा २।१, ` २८,२९,५७६०, , ६६,५२,७३ ; ५१, ३५ से ३८, ६।१ ३९ से ४१; ७।२५, २६.,२२,३६.२९, ४३; ०।१,२२,२३, २६.२७.९।१२ अभिक्कत १।५, २।३६ अभिक्करतकिरिया २।३६ अभिक्खण २३३; १५।६१.६५ अभिगिष्ह -अभिगिण्हुदं १५।३४ अभिगिण्ठेत्ता १५३५ अभिग्गह॒ १५।३४३५ अभिणिक्खमण १५।२६, गा० १, १५२५ अभिणिचारिय ३४४ भब्द-मुजी अभिद्वे १६।२ अभिपवुदटु ३।१ अभिप्पाय १५।२६.२७ अभिमुह १५।२०.२६ अभिरूव ४।२०,२२,३० अभिसंघार -अभिसघारेज्ज १३५, ४२,४३ -अभिसंधारेज्जा १।२६, २८,२६,३२,३४; ५४; ६।२; ११।१ से १८, १२।१स१६ -अभिसवारेति ६।१६ अभिसघारेमाण १।२६ जभिसंभूय ३।१ जभिसमेव्छ १५।४१ अभिसेय १५।११ अभिहट्टु ११३५१३६ अभिहड १।१२ से १७, २६, २।३सेत, ५।५ से १०, ६।४ से ६, ८।३ से ६।३से७; १०४से ९ भमिहण -अभिहणेज्ज शृन्ठ ; २।१६.४६.७१ ; ८1२५; शायः 111 अभिंहय १।३५ अभीर १६१ अभूतोवघाइया ४।११ १२,१५.२२.२४ २६,२८,३०,३२; २४.२६ अभेयणकरी ५।११.१३, १५.२२.२४२ ६ २८,२३०,२३२,३४, २६ अमणुण्ण १५।७२ से ७६ अमयवास १५।१० अमाया रा अपिख ५।१४ अमुग ४।१३ अमुच्छिय १।५७ अम्प्ा १५।१८ अम्मापिड १५।२६ अम्मापिउसतिय १५।१६. अम्पापियर्‌ १५।१३.२५्‌ म्ह ११२१ अयपाय ६1१३ अयवघण ६।१४ अरइय १३।२८ से ३४, ६५ से ७१; शटार्प से ३४,६५ ते ७१ अरण्म १५५७ ६ अरह १५।२६गा०६ अर्हत ४।७ अराय ३।१०,११ अरिहि १५।३६ अरोय १५।८ से ११ अकं ५।२०, ६1३१ अलंकार १५२६ अकिय २।२४, ११।१६; १२११३ अर्तग २।९२१ अलाउपाय ६।१ अलाभे २।६५.६६; ७५४५५ अचलित्त २।१९ अलसय १६४ अद्धीण १५।२४ अवउज्जिय १।८६ अगुण -अवंगुणिज्ज १।५४ -अवगुणेज्जा २।३० अवक्करख -अवकखतिं १।१४७, १५४ ५२०; ६१६ अवक्तमेत्ता ५३६ अवक्रम -अवकमेव्ना ५।३६ -अवक्कमे १०२८ ९२ -अवक्कमेज्जा १ २,३, ४४,५१,५६१४८, १२२,१२५; २।१५, ६।४२्‌; १०।२८ -अवक्कमेति १५।२८ धवक्करमेत्ता १।२ रे०४४, ५१५६.५०,१२३, १२३५, ३।१५; ६।४२; १५।२८ अवद्य १५।४९.५६. ६२,७०.७७ अवमा १।१६ अवणीयउवणीयवयण ४।३,४ ४।३,४ १।३५ अवणोयवेयण अवमाण अवमाग्यि ४।१९ अवयव २।१८ अनर १५।२०८, गा० १३ अवल -अवरवेज्डा , ८1१७ से २० वरुविय १।६२; ३।४२ .वल्छ्य २३।१९ हट्ट १०८; ६।४४, ४५ अवहर्‌ -अवहरतु २।४० -अवहरेति ५१५०, ६।५८ -अवहरेग्ज ३।९,११, ६१; ५।५०; ६।५८ अवहार १५।५ अवहाराड १।४६ अवि १।१ अविदलकड १।४ अविद्धत्थ १।९९.११२ २।७.१३ अवियादं १।५७.१२१, १३०, रदेन; २।५४.५७, ५।२२, ४७, ६।५५ अवुक्करत १११२ अवोच्छिन्न ७,२७.३०, २४१२७.४१.४४ भव्वहित(थ) १५।३४. ४ २७ अव्वाघाय १५।१ अन्वाहय १५।३८.४० अन्वोकेत १।६६ अन्वोक्छिन्ति १।४, जायार-चृला अस -संति १ ।२२,४६,१२१, १२२,१२०; २।४४ सिया १ ।२,२८,३४ २३६,५ १,५७.८७, १०२,१२२,१३१, १२३२,१३५,१३ ६, १४२; २।१८,२८, ३।१९ से १४.२५, २६.३०.३४; २७, ४४०६०; ५।२२,२३, २९,२७,४७.४६ ; ६।२५७, ४७,५१५,५७), १५।५२ मे ५५,६०, ६१०६५ से ६७.६६ असं ९७ असर्हय १०।१ अससेज्ज १५।२६.गा० ५, १५।२७ १।२९,१०२, ५।१२ अथड ४५३२ असंलोय १।४४,५६.५७, ५०,१२३; १०।२०८ ५।३ १।८१,१४१, १४३,१४५ असंजय असंबिज्जमाण असंसटु शब्द-सूचौ भसच्चामोप्ता ४।६,१०, ११ अपज्ज १६७ असण १।१,११ से १७, २१.२२ से २५.३६ से ४१,४४.४५.५६, १७,६३ से ८१,८४, ८५,८७ से ६८, १२१,१२३२,.१२७, १२६.१४१.१४२, १६५,१४८,१४६, १५२ , २२८४८, ४।२,२३,२४ ; ६।२६ ; ७५; १११८ , १२१५, १५।१३ अंप्तणवण १०।२७ असत्यपरिणय १।१०६ ते ११०,११३स११९ असमगुन्नाय १।१२ग असमाहड १।३६ अस्मिय १५।४४४७ असावज्ज ५११,१२, १५,२२.२४.२६. `२८,३०,२३२,२४१३६ असापिय १।५ असिणादइ १।४६ असिणाणय २।२७ असिति १६७ असुद्ध॒ १३७८; १८४।७८ अमुम १५५ असुय १९११९. १२।१६ अपुर १५।२०, गा० १२५ १३, १५।२९,३६ असोगल्या १५।२८ असोगवण १०२७ अस्प १५।२८ अस्संजय १।८२,८३,८५४ ८८,८९,६१,६५, ६६,१०४ २1१०; १२,१४,१६.२९१, २३1१४; ६६;०८1१०, १२,१४ ; ६1१०; १२११४ अस्सकरण १०।१८ अस्सजुदध १९१२१२९ अस्सद्राणकरण ११।९१. शरान अस्सादा -अस्सादेद १५।७५ अहु(अथ) १।१८ अह (अहन्‌) १५।१३ अहकिप्प ११४७८ १५।१४ अहाणुषु्नी ६३ अहापञ्जत्त १।१३० अहापरिग्गहिथ ५।४१ अहापरिण्णात २४७, अ४,६,८२२०२५, ३२,३९.४६.४६ अहावद्ध २।६०.६१ अहावादर १५।२७ अहामग १५।७न अहाराम १०।२८ अहारिय ३।२२ ३४ से ३६ अहारिह्‌ १५।२५ अहाल्ंद २४७, अ४,६, ८,२३,२५.२२,३६, ४६०४६ अहावर १।१४२ से १५३; २1६६ से ६९६, ५।१८ से २०, ६१७से १९; ७५० से ५५४; ८।१८ से २०; शाश से भत, ५०,५२ से ५५,५७) ५६ से ६२.६४, ६६ से ६६.७१, ७३ पे ७६ अहासंथड २।६६; ७५५ अहासमण्णागय २।६५ , ।-/ 41 ६४ अहासुय -१५।७८ अहासुहुम १५।२७ अहिय १५।०य अदहियास -अषहियासदस्सामि १५।२४ -अहिथासेद्‌ १५।३७ अहुणा " ३।१ अहुणाधोय ११६६ अहे(अधमस्‌) १।२,३.३२, ५१.१३५; ५।३६; ` १५।२७ : १६१० अहेगामिणी ३1१४ अहेसणिन्न २।४४;२।२, ३; ५।४१ अहो(अधस्‌) १५।२८ अहोग॑धं १।१०१्‌ -अहोणिसी १६।३२, गा १६ आद्र(ति) १५।१३.४२ आद्क्खं -आइक्वई , १५।४२ -आदकलह ३।५४से५८ -आद्व्खेऽजा २।४५१ , भ्रयसेभर आइण्ण २१।३१,४२०४३ आईष्णसंलिल २५६ आङ्ण्णसंलेक्ड ,७२१ आर्ईणपाउरण ५।१५ आर्य ।१५।२६, गा० २ आउ १५।३ आउकायं १1६३; २४१, ४२; १५१४२ १५।३,२५ १५।२८, गा०१७ आखक्खेय आउन्ञे आट -आट्रामो ९३२ -आ्रुवेन्जा २२५; १३७० १८ा७ल -आखट्टे १३७०; ^ , १८७८ --आउट्टेज्जा २।२५ आउद्वित्तए रार आयं ` , १५।३ आउमस १।२५,६३१६६ १०१,१२३,१३०; १३५०१४२. २४ ४२,४७.६३०६४ ; ४।१२.११५ ; ५।१८ २२९ २६ ६।१७ , २१ से २७; अथः ६,८,२२,२५.३२) ` ` ३६.४६.४६.५७ आयार-चूला १।२२,५७, १०१,१२७, १२०,१३१; २४७; ३।१७ से २१.४४, , < ~ ४५.५१.५३५, ५६ से ५०,६१; -५।१२.२२,४६ से ४८.५०, ६।२१, २६.५४२ ५६; ~ , ७४,६.०८.२३.२५, ^ , ३२,३९.४९.४९ आए ११२४ २७२; ३४७; =।२६ आषएसण २।२३६ से ४२; ४।२१.२२्‌ आउसंतं आकस , -आकसाहि „ ३।९७ - -अकसिस्सामो ३।१८ आकरसित्तए ३1१८ आगार ११०४; २३३ से ३५.४७, ७४,६,८,२३.८६ व आगति . ' १५।३६ अगय(त) २।६,११, ८।२; १५।७२ से ७६ आगर १।२०८,३४.१२२. शन्द-सूघी आगर २।१. २।२,३,४५, ५७.१५८, ७१२, ८।१ आगरपह १२४ आगसट -आगसह ३।४८ -आगसेज्जा ३।४४ आगाद २४ आम -रघंसंति २५३; ७१८ -भधंसाहि ५।२३ -आघतेज्ज २।२१; ५।२३१,३३ ६।३२,३६ आधंरित्ता ५।२३ ९1९२ आधा -आघाएज्जा १।१०५ आजिणग आणटूग १५।२८.गा०१४ आणा ११५५. २६७ १५।२१, ६२० ७६) ८।२१; १५।८६.,५६.६३, \७२,७७,७८ आतंक १।३१ २।२१ आदाए्‌ १।१९७., ५1२६; ६४२ ७।६ ५।१४ आदि २।१७ से २० आविष -आविपेज्ज १२।७६; १४१७६ आभरण ५।१५;११।१८; १२१५; १५।२८, गा० €; १५।२६ अभरणविचित्त ५।१५ आम १११५ से ११६ आपंतित ५१२ से १५ आमंतेमाण ४१२से १५ आमगं १।१०६से ११०, ११३.११४ आमज्ज -आमन्जेजज १५१, ३।३१,३२ से ३८, ३६; ६।४८,४९; १३।२,१२,१६, २८,३६,४६.,५६, ६५.७७) १४५।२, १२,१९.२८,३६, ८९,५६,६५.७७ आमनज्जपाण १।८्५्‌ आमडाग १।११२ आपय १।१११ आमलगपाणग १।१०४ आमोय १०।१७ द आमोग २।६०,६१; ५१४९. ५०; ६।५७,५८ आयक ५।२; ६।२ आयक्र ५।१द्‌ आयतण १।१३६; २।३६ से ४२,९२; ३४७, ८,२१.२१ ५1१६; ६।१५; ७४७; ८।१६ आयरिय ११३०,१३१; २।७२; ३।४६ से ५१; ८।२६ आया -आयषए १।१२१ आयाए १।३७,२८,४०, ४४५१ १५९,५५७, १२३.१२०,१३१; २1१५ ८1११ ५४५; दा४७ से ५०,५३ से ५०; १०२० १५।२६ आयाण(अदान) १।९६, २३२,२५.५१.५६, ८५,८८,९१,६५, १२३; २।१६.२१ से २५,४६,७१; ६६ आयाण(बादान) २1६, ११,१३,४२,४९; " १२७; ६२८,८५; ८२५ अआयाणमंडमत्त- णिक्खेवणा १५।४७ आयाम १।१०१,१५१ आयाय १।२ भायार २।३६.३७.३६ से ४२; ४।१ आयव -आयावेज्ज १।५१; , २२१; ३।३१.३६ ५।३५ से ३६; दर८ से ४२,४०५,४९ आयावेण १५।३०८ आघ्राविय २।६९; ०।२३ आयावेत्तए ` २२६; ५।२५्‌ से दष) ६।२३८ से ४१ भायविमाण १५।३८ आयाहिण १५।२८ आरम्‌ २,४९.४२; १६।१ आरभकड ५२२२४ आराम १।२,२२,१३५; १०।२०; ११८; १२५; १३४७० १४७७ आरामागार १।१०५; २३३ से ३५,४७; ७४,६,८,२३२,८द, ४९ आराहिय "" १५।४९,५६, ६२,७०,७७.७८्‌ आरुह्‌ -अष्हद्रः १५।२८ गा १० -भरहेज्जा = १।८८ आलय १५।२८, गा & आच्य १५।३४ आकि -भक्िन्ज आल्पि -आल्मिज्ज १३।८,१७, २४,२२.४५.,५४, ६१,६६; १४५८, १७.,२४.२२.४५, ५४,६१,६६ १५।३२ ` -१५।२५्‌ १५।४८ १५।६६ १५१६६ ६।१६ आलकं आलोदत्ता आलोइयं आरोएत्तए आरोएमराण आरोप -आरोएज्जा १।२५,५७, ` ६३,९९,१०१.. # भायार-चूला १२३,१२७.१२१, १२५,१२९५१२८, १८३; २६३, ६४ ५।१८.२१ से २४ ६।१७.२१ से २७; ` ७६ १।६२ २२५ आलय आणोयणा आवज्ज -भावणज्जेन्ना १२९; १५।७२ से ७६ आवन्जमाण १५।७२ से ७६ १।३५ १६।१ १।१२६ आवदियि आवास आवित्ता आविध -आर्विधावेति १५२८ माविधवित्ता, १५।९८ आवीकम्म १५।३६ अविीलियाणं , ११०४ आस १।५२, २३।४५.५९ आआसण ४।२६; १५1६६ आसम १।२८,३४,१२१; २।१; २।२,३,४५ १७.५८; ७९; ८१; ११७ १२४ शन्द-सुचौ आद्य २।७५; ८।२६ आसव -आसवत्ि आसवमाण आसादमुद्ध ` आसाय आप्ताय -आप्राएञ्जा २1७४, २३।२०,२१,५०.५२; रणं आरपित्ता १।३१ अतिविय(त) १।१२ से १६.१०.२२ , २।३ ` से ७,९,११,१२,१५, १७, ५।५ से ९,११, १२; ६४से०,१०, १२; ८३ से ७,६, २।२२ २।२२ १५२ १।१०५ ११.१३.१५; ६।३से ७,६,११,१३, १५; १०।४से ०, १० आसोच्यपवाछ ११०६ आसोत्थर्मथु १।१११ आसोय १५।५ आह्‌ -आदिऽ्जंति १५।२३, २४ -आहसु ˆ श४६१२२ आह ९६१ आहू १।२,१३५,१३६ २1१८; ६४७ १।१२ से १७, २५,२९,५६.५७, आहट्ट ६२,८९,६१५.१०२, १०४,१२३; सरेसे ८ ५।५ से १० ६।४ से ९.४६; णारेसेठः ६।२३से ७ १०४६ शाहड ११२३ आहय ११।१४ १२।११ आहर -आहर २३।१०.६१; ५।२२ से २५.५०) ६।२१ से २५.५८ -आहररई १।१३२ -आहरहं १।१२०,१३६ आहाकम्मिय १२९,१२३, २३८ ६।२६ आहार ६।२२,४७.१२३, ` १२७ आहार -आहरिस्सामि ११३६९ १।२९. ९७ -अहारेव्ना १,३३.४७, *१२३ -आहारेजासि ११३६ आहारातिणियि ३।५१, ४५२,५२ आहरेत्तए १।३३ आदहिज्जि ४ -आहिज्जंति १५।१६, १७.१८.२३, १६९११ १५।१२ १३ १।४२,४३ आहिय भाहुय आदहेण क्छ इ १।१३९१ एड ४।२ -एषटिति ४२ इगालकम्मत २।३६े ४२, 21४७, ५।२१,२२ इगार्डह ८०२२ इदमह शर इंदिय ४।२६; १५।६६ इदियजाय(त) १।८० २।१६.४९.७१; 144 ६४ इवकरड २।६२,६५;७।५४ इक्सागकुल १२३ इच्छं “इच्छह १।१३० -उच्छेन्ना ७२६,३३, ४०; ८१६ टु १११६, १२१६ इह १५।२७ इतरेतर १।३२३,४७; ३।२८ तै ४० २।४१।८२ ११२५ १४६ इत्थिय २।२० इत्थिविग्गह॒ ९३२ इत्थी २४।५,१४,१५; जशः १११८; १२१५; १५६५२ ६६.६७.६९; १६1७ इस्यीचयण ५।३,४ इदाणि १११३६ इम स्य इयर २।४१ दरिया १५।४४ इहलोद्य ११।१६ ईसर रा; अदत, २३,२५.३२.३९५ ४६०६६ इयराइयर इति इत्थ ईसाण १५।२८गा० ११ इसि १५।२०८,२६ ईहामिय १५।२८ ख्य उउ ११२१ उछ २४४; ३।२,३ उबरमंयु १।१११ उक्केविय २१०; ८१०, ६।१० उक्कस -उक्केसाहि ३1१७ -उक्कसिस्सामो ३।१८ -उक्केपेज्जा २।१४ उक्सित्तए ३1१८ उक्र १५।२७ उकवूञ्जिय १।८९ उवच १८० उक्रुडय २।६१,६६ ७१४५१; १५।३८ उकेख १२१०२ उकलटपिय १६२ उक्तं २४४; १५२८, गा १२ उविखिप्प्‌ ३।६ उक्छिप्पमाण १।४६ उगिज्स्यि ४.७ उग्गक्रुल ११२३ उग्मयं १५।२८ अयार-चूली उग्गह १५४ उनच्वार १।५९; २१५, ३०,७१; १०१ सेए उन्वार -उच्चारिज्ना १५।४६ उच्चारपासवणभूमि २।७०,७१; वा२४२१ उच्चारपासवण- -सं्तिक्केय १० उचस्चावय २।९२ से २४५; २२९४४ उच्छु १।११६ ७ददेसे २३५ १।१३३, ७।३६ से ३८ १।९१३३, जरेदसे दे १।१२३; ७३६ से ३८ १।११३ उच्छुपंडिय उच्छुचोयय उच्छुडगल उच्छुमेरग उन्मेष ११३३ उच्छलण अर्‌ उच्ुसारग ११३३; से देष उच्छोल । -उच्छोठेति २५४, ७१६ शन्द-मूचो -उच्छोखेज्न १।६२, २1१८.२१; ५।३२, २४, ६।२४,३७; १२३।७.१६.२३२१२२; ४४१ ३,६०.६६. -१४।७.१६.२३०२२, ४४,५३,६०,६६ -उच्ोठेहि १६२, ५।२४, दार उच्छोलेता १।६३, ५।२४, ६।२४ उजुवालिया = १५।३८ उज्जाण ४।२६,२०; १०।२०; ११।८, १२४५; १३१७७. १४।७७, १५९६ उनज्जा -उज्जाक्तु २।९३ -उन्जल्िज २।२१,२२; २६ उञ्जाल्या २।४०,४१ उव्जालेत्ता २।२१ उञ्जुय १।५०,५२,५२ ६१, २४४; २३1६, ७,४१,८६द्‌ उज्जोय १५।६९.,४० उनज्छर १९१५; १२२ उज्मियि ११२३३,१३४. १४७,१५४ उज्फ्यिवम्मिय ५२०; ६।१९ उ ५।१५ उ्वद्धिय २३४,३५ उड्डुय २/७; ८।९९ उडु १५।२७.३८५ उ्गामिणी ३।१४ उष्णमिय १।६२१२।१६ ६ ` ५७ ५ उत्तम १५।२८, गा० १०३ उत्तर -उत्तरेष्ना उत्तर ३।४२ १५।२७.२८ गा०१३, १५।र८ उत्तरखत्तियकूह्पुर १५।५,२७.२९ उत्तसुण १५।२५ उत्तरपुरत्थिम १५।२७, ठठ उत्तरिज्जग ५।१९ उत्तस ~उत्ततेज्ज २४६ उत्ताण ११३१, ७।६ उत्ति १।२,४२,४२,५१, ८२,०८३११०२,१३४; 3 २१,२,२१ ३२,५७से ६१.६८, ६६; २।१,४.५.२१, २२, ५।२८,२६१३०४ ३५; ६।२९ से ३१, 2८; ७१०,२६ से ३१,३२ से ३८, ४० सेरः णा, २,२२.२३; ६1१,२; १०।२,३०१ ४८ १६४.६५ १०२ ३।३०,२३१, ३७.२३०, ५1४८ उदग॒ ३।२५ से ३०,२७, ५५; ६।४७ ४।२६ 44 २१४; ८१४; € उदय(्दक) १।२,४२, ४३,५१.०२.८३) १०२,१३५; २९१, २,३१,३२.४६.५७ से ६१,६०.६६ ; २।१ २,१७.१३,१४.२०, २२९३४ पे २९.४५५ १५.५९.६०; उत्ति उदउल्छ उदगदोणि उदगपमूय उदगप्यसूध ७३ उदय(उदक) ५।२८से ३०१३५..४८,४६; ६।२९ से ३१,३८, १६.५७; ७।१०,१४, २६से २३१.२२से रद, ४० से ४५; ८।१,२, २२,२३; &१,२; १०।२,३, १४२८ उदय(उदय) १५।२९गा२्‌ उदर १।८८; २।१९,४६, ७१; ३२१; ८।२५ उदरी ४५१६ उदाह १।१३६ उदि -उदे ४।१६ उदीण १,२७.१२१, १८२,११५०; २।३६ से ४२ उदीरिय १६।३५६ उदूहक १।८८. २१६ उद्व -उहुवंति २।६१; ५।५०; ६।४० , "उद्वेति २२२से ४१; ७१६ “उद्वेन्ज ` ३।६,११; १५४६१४७. ४८ -उदवेतु ररर उह्वणकरी ५।१०,१२, १४,२१,२३,२५५ २७,२९.३१.३३.२५ उदििय १।६२; २६३; २४७१ १७.६१६ उहेसिय १२९ १०।४ से § 2।६ ४।१२ १५२७ उदधटूटु उपासंग उप्परत्ता उप्नज्जं ६ -उप्पजंति १५।३४. उप्पण्ण १५।४१,४२्‌ दप्यणि -उप्पणिति १८२ -उरप्पणघु' १।५२ -उप्यणिस्संति १८२. उष्पय -उप्परयंति १५।२७ उप्मयत १५।९,४० उप्पल १११५ ११।५; १२।९ ११११४ १५।६,४० उप्पलनारं उप्पिजल्ग उष्पील -उप्पीकावेज्जा ३।१४ उष्फेस दार आयारम्चूा १५।३ २।१ उन्भव उल्िन्न उव्मिय १८३,१३६ उल्भिदधाण १।६१ उम्पग २।२८,४०,५९, ९०; ५।४८,४६; ६।५९.५७ उम्मिस्स ११२ उरत्थ १३।७६; १४५७६; १५।२८ १५।१५.१६ १५।९८ उरा उल्छोयग उल्लोल -उल्छोटेज्न १३।६,१५, २२,३२१.४३,५२ ५९.६०; १४५६.१५, २२,३१,४२५१९, ५६दण ४२८ १५२ १।५६.८५१६१ ६५१२३; २।१६९, २१से २५,२७ से ३०, ४६,७१; ३।६,११, १२,४६; ५।९७; ६।२८,४१; पार -उष्टोठेति उष्टोचेत्ता उर्वएष गन्द-सूची उवकर -उवकरेषु ९।२६ -उवकरेज्ज १।१२३ ररत -उवकरेहि १।१२३ ६।२६ उवकरेत्ता ६।२६ उवक्खड -उवक्खडावेति १५।१३ -उवक्खडेमु ६।२,६ -उववडेवन ११२३; २।२८ -उर्वक्खडेहि ११२३ ६।२६ उवक्खडवेत्ता १५।१२ उववेख डिज्जमाण ९१२४ उवक्खडिय १।४५, २।२८, ४५२३,२४ उर्वक्खञत्ता १।१२३; ६।२९६ उवगय(त) १५।४.७.८ २६.२६.३८ उवेगरण ३।६०,६१ उवचरय २।३०.३।६,११ उवचिय ४।२६ उवञ्छाय १।१३०,१३१ २।७२) ३।४६ से ११, ८।२६ उवट -उवट्टेज्ज १५१; ३।३१; ६ ४८,४६; -उन्वट्टेज्ज २।२१ उदटराण २।३५ उवरि १।१५५; २।६७. ५१२९, &२५; ७५६; ८।२१; १५२७ उव णि्विखत्त १।८७,१४३ उवणिम॑त -उवणिपतेति ९४५।१३ -उवणिमतेनज्जा १।१३५, ७५,७ उवणिमतेत्ता १५।१३ उवणीय १५।२०८, गा ०७ उवणीयभवणीयवयण ४।३,४ उवणीयवयण ४३,४ उवदसिय ३।१६ उवद १।५६.२५.६१ ६५,१२३; २1१९. २१ से २५.२७ से - २३०,४६,७१; २।६; १११३.४६. ५२७, दारता णारभ्‌ ८१ उवरय १।१२१; २२५, ३८; १६।६ ३।२२ ११५९१ उवष्वरि उवक्त्ति उवेल्ल्यि -उवदलिएन्जा ३।१ से ३; ७५४ -उवद्धियद २३० -उवल्लिस्सामि ७५० ५२ उवल्छीण २५५; ७२० उववण्ण १५२१ उववायं १५।३६ उत्रसंकम -उवसंकमति १।४९ -उवसंकरमामि १४६ उवसंकमित्तु १।३२,१२४ ३।२२,६१; ५।४६ 9४८५०; ६४४ से ५६ उवसंबडिननमाण १४४ उवसग्ग॒ २१७६, ८।३० १५।३४,२७ उवसजञ्जं -उवसज्जेज्जा ८।१७ सै २० ७९ उवस्सय १।२,२६.३२, १३५; रासे, १०,१२,१४,१६५ १८ये २५,२७े ६२ ३८.४५ से ५६.६५; ४२६; अ११्से२१; १०1२८ उवहि ३।२६ उविरत १।१४५,१५२ उवाई(ति)कम्म १११३९; ८।५; ५।१६ उवादक्कम्म १।५८; २।६२; ६।१५; ७४७; ८।१६ -उवागच्छंति २।द३८ ते ४२; ३।४२्‌; ५।४७, ६।५५; १५२७ "उवरागच्छति(द) १५।२५,२९ -उवागच्छिस्तामि । ५।४७; ९५५ -उवागच्छेञ्जा ३।४५,. ५०;५।४६, ६४४; ७।५.७ -उव्रागमिस्संति १।४२, ४३; २।२ से ५ उवागच्छित्तए ७२५, २३२,३६ उवागच्छत्ता २।८से ४२; १५।२७ सेर६ उवा्गत्त(य) १।४२५४३; ३।२े ४ १५।३५ उवातिणावित्ता २३४, ३५ उवाधिया ४।१५ उविततु ११५३ उवे -उ्वेति १६१ उवेह -उविरेजजा १।५७.१२१; ३।१७ से २१.२४, ५४ से ५८,६१; ` ५।५०; ६।५८ उवेहमाए १९।४ उ्वटू -उव्वट्टेति २१५३; „ ~ ` छश उव्वषट्टेज्ज २।२१ उव्वत्तमाण शत्‌ उव्वल -उन्वरेति २४५२; ७१८ -उव्वलेज्जं १।५१२।२९ ३।२३१.२२.२६; आआयार-चूला -उव्वेलि ६।४८.४६; १३।६.१५.२२.२१, ८२,५२,५९; १४।६,१५.,२९,३१ ४८२,५२,५९ उन्वाय १५।२९.३१ उव्वाह्‌ -उन्वाहैज्जा २।२१ उन्वाहिज्जमाण २३०५; १०।१ उव्वेड -उन्नेद्ि्ज = २।२५ १।५९१.८२,८३, १०२,१२५; २१, २,३१,२३२.५७से ६१,६८.६६, ५।२८ से ३०,३५; ६।२९. ३००३८; ७१०, उप २६ से ३१,३२ से , ३८.४० से ४१; ८।१, २,२२.२३ ९।१,२९ १०।२.३,१४् उसभ , - १५।२८ उसमदत्त १५।२,६ उसिण ४३७ उसिणोदग १।६२; २१० त २१.५४; शब्दमूचौ उसिणोदग ५।२४३२, २४ ६ २९४२३४.२७; ७।१६; १३।७,१६, २३,२२,४४.५३, ६०,६६; ९४५७, १६.२२०२३२,४४, ५२३१,६०,६६ उसुयाल ५।३६, ६।३६, ७1११ १।८८ १५।२५ २।७५; ८}२६ उस्सविय उस्सास उस्सासमाण उस्सिच -उरिपचाहि ३।२० -उस्सिचेज्जा ३।१४ उस्सिचिण ३।२०,२१ उस्सिचमाण १८५ उस्सिचियाण ११०१ उरस्सुय १५।१५्‌ उस्सुयभूय १।३३ उस्पेहम १।६६ र ऊर १।८८, २।१६.४९, ७१; ३।२१, ८।२५ उस १।६८,९६ अपठ १५५, २११६, ४२४.३४ १०५ -एहं २।५१.५३ एग १।१२,१४ १५।२६ गा० २ १।३१.३२,४६, ४७.५७.१२१ से १२२,१३०,१३९१, १३२,१३८,१४९, १५०; २३६ सेर, ४४; ४।१९ से २१, २५.३६; ५।४६, ४७; ६।५८,५५; ११।१ से १६, १२।१ से १३ १।२,२,४४.५१ ६,५८.१२३, १३५; २३1१४; ५।३६; ६।४२; १५२८ एगंतगय ३।२२.२६,४४ ५६ से ६९१; ५।४८, ४९६; ६५६५७, शठः १०२८ एगहय एगंत ८३ एगन्म १।३२ एगतिय १५७ एगया २७६ एगवयण ४२४ एगाभोय ३।१५ एगावली २२४; ५।२७; ११।२य८ एगाह ३।१२; ५।४६; ४७; ६।५४,५१ एज्ज -एञ्जासि ६।२१ -एन्जाहि ५२२ एताव १५।४६ एत्ता २४७, ७४,६,८) २३,२५.३२,३६, ४६,४६ एत्तो १।२५.६२,१०१, १३८; २।६३.६४ ३।५४ से ५९.५८, १८ ; ६१७ एत्व १।६८; २।३०; २।४५; ।२ एय १।२६ एवप्पगार ६।१२१,१३५; २।२५०२६, ३।२२, २५.४५१६१; ५१२ प १६.२० से ३६; ७४ एयप्यगार ५।२२से २५.४७.५०; ६।२१ से २५.५१.५० ५।२५ १५।२४ एयाणि एयारूव एरिसिय २।२४ एवे १।२ एवं ११८ एस १।५९६ एसणा १।६९१; २।४४ *२२,६।२१.१६।२ एसणिज्ज १।५,७.१८, २२,२३.२५.२६ ८१,१००,१०१, १२०,१४१ से १४९, १५१ से १५४ २।६१,६३६४ ५।११,१२,१२३.१७ से २०,३०; ६१०, १२,१६ से १६.३१, ७२८३ १,२५२८; ४२,४५, €।१ एसमाण ५२२. ६२१ एसित्तए २।१,५७६२ ५।१,१६; ६१,१५ एसित्ता १११२३ एतपिय १।३३,४६,१२३, ७।५,७ एसियकुल १।२३ 1 ओगाह -ओगाहिस्सामि ३।२६ -ओगाहेन्जा ३।१४ ओगिण्ह -ओगिष्िस्सामि ७५० से ५३ -ओगिष्िस्सामो ७४, ६,८२३,२५,३२, ३९.४६.४९ -ओगिष्टेन्ज ७३,१० से २१ -ो गिण्डेन्ना १५।६०, ६२ ओगिष्डित्तए ७४८ ओह ७३ से २१.२२ से २६,२२,२३,३६, ४०,४६ से ५५.५७, १५।६०.६१ ओग्गहणस्तीलय १५१६०, ६१ ओग्गहपडिमा ७ ओग्गहिय ७५,७.६.२४, २९०३२,४०,४७, १५।६०.६१ आयार-चला ओधाययण १०।२४ ोदटुधिन्न ५१९ ओणमिय १।६२; ३।१६, ४७ ओद्धव्ट १।१०२ ओभासं -ओभिज्ज १।५८, ५९११२९४ ओमचेलिय ५।४९१ ओमाण १।२१ ओमुग -ओमुयद १५।२६ ओय॑सि ४।२० ओयत्तियाणं ११०१ ओयस्सि रोर५ ओयारेमाण १।८५ ओल्पिमाण १।९१ ओलित्त १।९०.,६१ ओवयं -भोवएन्जा २३३ -ओवयंति २।३६.३७ ओवयंत १५।६,४० ओदयमाण २।३०,३६, ३७, १५।२७ ओवाय १५३ ओविय १५१२० कन्द-मुची ओस १।२,४२,४ २।१,४,५ जओसव्किय १।६५ ओपत्त १५।२८ गा० ७ ओसप्पिणी १५)३ ओसहि १।४५, ४1२२. १।१,३५ १६१० १।८९,६१५ ओतित्त ओह ओहूरिय च्क कओ २।५१,५३ कश्च -कखेज्जा ३।४६५६, ९०; ५।४८,४६) ६।५६.५७ कचि ११९३ कटक्वोदिय ९।५ कंटय(ग) १।५३११२४ १३५. १३।१०,४५, १४।१०,४७ कत १११६; १२१६, १५।२८ २1१४; ३।५५, १।२५; ६१२५. कद कंद ८।१४ ६1१४; १०।१२,१५. १३।७८, १८७८ कदर्‌ १५।१द्‌ कदरक्म्मत २।३६से ४२, ३।४७, ४।२१.२२्‌ कदल्या शार कदलीऊमुय १।११६ कवलं ३।६.११,६१ कंवेरग ५।१४ कस (पाय) ६।१३ कसताखसह्‌ ११।३ कवक २।२१,५२०५।२३; ३१,२३३१ ६।२३, ३३.३६, ७१८; १३।६.१५.२२.३१; ८३,५२.५९१६८; १८।६,६५०२२.२१, ४३,५२,५६९,६२८ क््वेकस ४।१०,१२.१४; २१,२३.२५.२७, २९.३१.३३.३५ केवेकेषड ४२३७ केक्खरोम १३।२७७४ १४।३७,७४ कच्छ 3४८, १९६ १२३ ७५ कृज्जराव -कज्जरावेति ३।२२ कज्जरावेभाभ ३।२२ कटु १।२२,१३१,१३०, २।२१.२६. ३।६,६, ११,१४.२२,६१; ५।३१ से ३४,८८.५०, ६।३२ से ३७.५६, ष्ठ; अट; १५।५, १६.२९१३१.३२ कटु १।५९१ कटुकम १२।१ कटूकम्मंत २।३६से ४२; ३1४3, ४।२१,२२ कटुकरणं १५।३६ कटरतिला ७५५ कड ९।१२ ते १८,२१,२२, २४, २।३ से १७; ५।५ से १३; &।४ ते १२, १५।३६ कंडगं २२४; ५।२७ कड १०।१७ कडिय २।१०, ०1१०; ६1१५ केडय १।१२८; ४।१५३ १२,१५४.२१२३) २४५.२७.२६,२१ ७६ कडय ५।३२,२५.२७ कटुवेयणा १३७९; १४।७६ कडवित्तु शदाऽत; १४।७८ कड्छेतु १३।७८; १४७८ किण २।६३,६५; ७४४ कृण १।११९ कणकूडग १११६ कणग(य) ५।१५; १५।९९,२८ कुणगकतं ५।१५ कणगखडय ५।११५ कणगपट ५।१५ कणगफुसिय ५१५ कणगावलि २२४; ५।२७ कमपुथलिय ! १।११६ कणियारवणग १५।२० गा० १५ कणुय १।१४ कण्ण ' ३1२८ कण्ण्धित्त ४1१६ केण्णपर १३।३६,७२; १४।३६,७ कृण्णसोय १११ से १८ कृण्णसोहुणयं ७६ कण्ट ४।३७ कृण्टुराइ १५।२६ गा०५ कन्न १।९६ कृमिजलकरण १०११८ केप्प -कष्पड्‌ १।१२१,१२३, १२५; २।२५,३०, २८; ५।२२,२५; ६।२१,२५,२६ -कष्पेज्ज १२।२७,७४, १४।२३७.७४ कृप्प २।३४,३५; ३।४.५; १५।२५.२६ गा० ५ कप्परक्छ १५।२८ केम्‌ १५।३६ कम्म २४१,४२; ७£; १५१११.२८ केम्णकेर्‌ १२५८६१६३, १२१,१२२,१४३; २।२२,२५,३६ से ४२.५१ से १५.६४; ५।१८; ६१७; ७।१६से २० कम्मकरी १।२५.,४६,६३.- १२१,१२२,१४द ओयारचूला कम्मकरी २।२२,२५,३६से ४२,५१ से ५५,६४, ११८; ६११७. ७।१६से २० कम्मभूमि १५।२९गा०्४ कम्पार्‌ १५।२५ क्य १०१९१; १५।१६ कया १५।८ कर -अकासी २३० -करिपु १५।११ -करिस्संति १५।२५ -करिस्प्ामिं ७१ करे ३४४; १५।२५, ३०,३२ -करेति ५।४७; ६।५५ १५।१३ -करेजजा १।३३,४द, ४९.५७.६९ १,१२३; १२५ से १२७,१३० से १३२१८ २२७,७५; २३।१५; २५२०८०४०.११ ; ५१४६ से ४ ६।५० से ५६; अरः ८२९ १५।४३ रब्द-सूषौ -कारवेज्जा १५।४३ कीरति १।१३९ -कुन्ना १२९, २।१२, २।६१; ५४६, ४८,५०) ६1५४, ८।१२; ६1१२ करत १५।४२ करणिज्ज २।६१; ४५२१, २३२० ५।९०) ६५, ७६ करीरपणग १।१०४ करेत्ता ३।१५, १५।५, २८,३२्‌ करेमाण २७५, २९ करकलीमाव १६।१२ कख ११।१५, १२१२ कलिय १५। २० कटुण २२१, ३।६९, ५।१५०, ६४८ १।२१,२ कल्छाण ४।२१.२३ केवाल १।३५ कविजलजुद्ध १११२, १२६ केविजच्ाणकरण ११११; १२८ केविहूपाणग १११०४ करोवाइ्‌ कविटूसरट्य १।११० कवोयकरण १1८ कवोयनुद्ध ११।१२ १२६ कवोयटुाणकरण ११।११, १२०८ कंव्वड १।२८,२३४,१२२; २।१; ३।२,३,४५, ५७,१८, ७२, ८।१ कंसाय १।१२६,१३८; ४।२७ कसिण १।४, १५।१,३८ कसेरूग १।११३ कटुइत्तए्‌ १५।६५ कहकह १५।६,४० कटुमाण १५।६५ कहा १५।६५ कर्हि २।५१,५३ किय १५।२९ काणग १।११६ काणिव ४।१६ कमि १।१२०,१३६; २४७, ७४६, २३.२५.२२,३९, ४६,४९ कामगुण १६।७ कमजल ५।३६) ६।३६; ७११ 9.9 कापभोग १५।१५ काय १।३५.५१,८० २।१९.२१,४८६.७१, ७३,७८ ३।१५.२१, २७,३० से ३२,३४ से ३९,५०,५२,५६९, ६०; ४।२५,२६; १।४०,४९, ६।५६, ५७) ८।१७ से २०, २५.२७.२८) &।१६; १३१२ से ३५.४६ से ७२, १४५१२ से २५,४६ से ७२, १५।३४,३५,२३७, ४२,८९.५०,५६, १७,६३१६८,७०) ७१,७७.८७० काय(पाय) ६।१३ कायक १।१४ केय(वंवग) ६।१४ कायन्वे १।१३६ कारण १।५६.०१,९९, ९५ १२३; २।१८, १६.२९१ मे २५.२७ से २६.४६.७१; २३।९,११,१२.४६, ५।२७, ६।२८.४१; ८।२्‌५ ।. काशि १०।११ काठ १।३३,४७,१०६; १५।१,४.८,२१्‌, २६.२८ गा०१४ कालगय १५।२६ कालमास १५।२५ कालादइक्कत २।३४ कासं -कासेन २।७५; ०।२६ कासमाण २।७१; ०८।२९ कासवगोत्त १५।५,१५, १७,१६.२०,२१.२२ कासवणालिय ११११८ किचि ११२६१३१ किच्च २।४१,४२्‌ कच्चा ३।१५,३५४ १५।२१्‌ किरासि १।३,५९, १३५, ५।३६;६।४२ किटि १५।७८ किट्िय १५१४६.५९, ६२,७०,७७ किण -किणेज्म २।२६४३,१४ किष्डुमिगार्दणग ५।१५ किम्‌ २५१ किरिकिरियसद्‌ १९१।३ किरिया २।३५,३५; १०।१ किखाम -किलामेज्ज १1८८; २।१६.४६.७१; ८।२५्‌ १।३२९ १।१६,१७.२१, ४२,४३,१४५७, १५४; २।७,८,२३६ २७,३६,४०; ३।२ से १; १।६.१०,२०४ ६।८,६,१९; ०।३ से ८; ६।२ से ७; १०।८,६; १५।१३ १।२४,४९ १।१२,१७; रर से ण; ५।५से १०, १२४ ६४से €; ८।३ेसेणः€्दसे ७, १०४ से & १।२६ १५।२८, १६।२ २।२४ ५।९७, १५।२६ गा० ३ १११ १।२१,२४ किङीब किविण किविण कीय कोयगड कुजर कुंडल कुभिपक्क कभीपुह आयार-चृलं कुक्वुढ्करण १०।१८ वु्कुडजादय ११६१ ुरवनुखजुद्ध ११११२; १२६ वर्वकुदुाणकरण ११११; १२८ कुक्च १।७९,८० कु्चग २।६३,६५५७।५४ कुच्चमाण २४४४ कच्छं १५।३,५,६,१२, १३ ट ५१९ कूणिय ४।१६ कुपक्खे ४।१२,१४ कुप -कुप्पति ४।१९,२० कुमार १५।१३ कारी रार कराइ १।४१ कु १९।१,४ते ८११ १७,१९,२१.२३ २४,३२, ३६३७. ४० से ४७,४६,५०, ५२से ५५.५८.६१, ६२.८२ से ८४,८७, ८६,९०,६२ से ६४ शब्द-सूषौ कुर १।६६ से ६८,१०१ १०२,६८०४से११९६; १२२ से १२९,१२०, १३२ से १३६,१४४ से १४७.१५१ से १५४ २।२१,३०, ३३ से ३५५४७ मे १०) ५।४२,४१, दा से ४६,५०, १३, ७।४,६५८,१५, २३,४६.४६, १५।१२.१२१२८ कुलत्थ १०।१६ कलिय ४।२६, ५।२७, ६।४०; ७1१२ कुविद ३।२१ कुव्वपाण २४४ वुःस २।६३.६५; ७५४ १५।२५ कुसपत्त ३।२१ कूल १५२८ १६४ कुसुम १५२८ गा०७, १४.१५ कुपुमिय १५।२८ गा० १४ कूडागार 31४७, ४।२१२९ कूरकम्म २1२६ केयइवण १०।२७ कवय २।४५ ५७.५८ वैवलवरनाणदंसण १५।१,३८,४० १।२८,३२,२५४ ११.५६.८१८) ६१,६५,१२३; २।१६.४६.७१; ३।६.११,१३.४२ ४६; ५।२७; ६। २८, ४५; ८।२५७ १५।३६ ४४,४७.४८,५१ ते ५५,५८ से ६२,६५ से ६९.७२ से ७६ केस ८।२०; १५।३१ कोडगभुडई १५।११ कोकंतिय ९५२; ३।५६ कोट -कोषटिति १।८२ -कोष्टिस्सिति शण -कोट्ेषु १।८२ कोट्रागक्ल १।२३ कोटटिमतल १५।१४ कोट्टिपाज १८६ कोडालसगोत्त॒ १५।३,६ कोडि १५।२६ गा०२,२३ केवलि द कोडण्णागोत्त १५२२ कोयहा(वा?) ।१४ कोङज्जाय १।८६ कोल्पाणग १।१०४ कोलपुणय ९५२ २४६ कोठावास १५१,०८२, ८२,१०२; ५।२३५; ६।३८; ७१०; १०।१४ कोण १।१८५,१५२ कोषियगृत्त १५।२४ करोह ४।१,२३८१ १५।५०, ५२ करोहण १५।५२ कोहि ११५४२ # 1 खति १५।३९६ खेदमहं १२४ खय श<७, राणः जद; दष; ७१३; १०।१३ खंधजाय १।११५ खघवरीय १।११५ खचियंत १५।२८ खञ्बुसाणग १।१०४ ख्जूरिमस्यय १११५ ८0 सणिततु १३।७०८;१४।७८ खत्तिय १४१; १५।५ खत्तियकुल १२३ खत्तियाणी १५।५,६, पसे.१३ खद १।४६,५७.१२४, १३० खम -खमद्‌ १५३७ -खमिस्सामि १५।३४ ख्य १५२ खरमुहिसद्‌ ११४ खलु १।१६ खहचंर ३।४६ खाइम ११,११ से १७, २१.२३ से २५.२६. १,४४०५.५६; ५७.६३ से ८१.८४, ८५.८७ ६८,१२१, १२३.१ २७.१२६, १४१,१४२.,१४५, १४८, १४६९.१५२; २1९२८,४८; ४२ २३,२४; ६।२४; ७५; १९११; १२।१९; १५।१२ खायोदसमिय १५।३३ १०।२५्‌ १५३; १३।१०, ४७; १४५१०४७ खाणुय -१०।१७ खारडाहं १०।२३ ्िप्पामेव ३।२५१२९.४०; १५।२२ गा० शव खिव- खाणी खाणु -खिवाहि ३1१७ -खिविस्सामो ३।१८ खिवित्तए ३।१८ सीर १४६ खौरधाई १५१४ खीरिज्जमाणी १४४ खीरिणी १४०४१ खीरिया १४५ खीगोयक्षायर १४।३१ खुज्जिय ४।१६ खड २।२०; ७१४ खंडाय॑ शदे बुह्िया = १।२९, २।१२, ४५; ०८।१२; ६१२; १११६५ १२।१३ २।४५्‌ १।२८.३४,१२२, २।१; २२.३.४५ ५७.१८, अर; १ खड = खेड भायार-चूला खेमपद १६।६ चेल १५१; र्न सेल्छावणधाई १५।१४ खोमय ५1१४; ११।२८ गा० € खोमिय ५।१,१७ खोल ११११२ रा गंड १३।२०,३४,६५ से ७१; १४५२८२४ ६५ से ७१ गंडागकूल १।२३ गंतु २1५०; ४।२६.३०; ७।१५ गंथिम १२१; १५।२८ गंधे १।१०५; ५३७; १५।१५.७४ गधकसाय १५।२ग ग॑धमंत 11 गृरधवादघ १५।१० गच्छ -गच्छवेज्जा १५।६४ गच्छिदहिहं २४ १,५३ गच्छे १।२७ गन्दमुची -गच्छेज्जा ११०,५२, ५२,५७,६१,१२५७, १२०, ९१३१.१३६; २।६,७.४०,४१.,४२, ५९ से ६१, ५।४८ से ५०; ६।५६ से ५८ ७6६; १५६४ गच्छेत १1४१, १५।६४ गच्छेत्ता १।५७.१२७, १३०,१३१,१२३६, ज गञ्जदेष ४१६ गज्जलः ५।१४ गडा २।४१,४७, ४।२१,२२ गदिय १।१०१५ गण १७२८ गा० १४,१५ गणरायं २।१०,११ गहर १।१३०,१३१, २।७२; ८२६ गणावदेहय १।१३०, १३१; २1७२; सारद गणि १।१३०,१३१ २१७२; ८२६ गति १५।२३६ गन्म॒ १५।१.२,५.६ १२.१३ १२ 9 गधय ४३४ गमम १।२६०२८.२६, २२,२३४३५.४२, ४३; २।८ से १४, ५४) €।२; ६।९, २,१६; १११ से १८; १२१ से १६ गमणिज्ज ३।१२,१३ गय १५३३, १६।२ गयजुहिषदराण १११३; १२।१० गयण १५।२८ गा० १५ १५.१६ गरहित्ता १५।२५ गन्दि -गरिहामि १५।४३, १०,५७.६४,७१ गस्य २।५८ गर्ल १५।२८ गाः १२,१२ ग्त्रायणी १०।२५ गृहण >1४र,८८१६, ०, ५।८८.४६,, ६।५९.५७, १६९; १२२ गहपविदुन्ग स्ट १.५। ८९ गहाय ११३५; ३1१७, १८ २४८ २६.४८, १०।२८ १५।२८ गा ४२७२८ गात(य) २।२१.५२५४ पाम शरन ३४,४६, १२२; २1१; ३।२, ३,८५,५७.५८; ७।२., ८१, ११।७, १२।४; १५।२५,५७ गामंतर ५।४१ गामयम्म्‌ १।३२ गापपिडोलग १।५५.५८, ञ्‌ गामग्व्खकृल १।२३ गामसत्तारिय २६१; ५।५०; ६।५८ गामाणुगाम १।१०,२६, ९० गाय ७१७ भे १६ गायत ११।१८; १२।१५ मारत्थिय शत से ११ गावी १।४४४५्‌ गाहावहई ११.४से ०,११ से १७,१६.२१, २३ से २५,२३२,३६, ३७.४०.४२ से ४९, ४९,५०,५२ से ५५, ५८,६१ से ६३,८२ से ०४,८७,८६,९०, ६२ से ६४९६ से ६६,१०१,१०२ १०४ से ११९.१२१, १२२,१२४से १२६, १२८,१३३ से १३६, १४३ से १४७,१५१ से १५४; २।२१, २५.२७ से ३०,३३ से ४२,४७.५०,५५, ६४,२।२२,२६,६१; १।१८,४२.४५०१५०; ६।४४ से ४६,५०; ५३, अ४,६,८,६; १५ २०५२३४६, ५७.४६; १०।१२, १५१६१३८ गाहावदओग्गह ७५७ गाहावदणी १।३२,४६, १२१.१२२,१४३; २।२२.२५.३६ से ४२,५० से ५५, ७१६ से २० गिज्म -गिज्मेज्जा ११।१९, १२।१६; १५।७२ से ७६ गिज्भमाण १५।७२्से५६ गिण्ट -गिण्ंति ५।४७,६।५५ -गिण्ठावेज्जा अर; १५।७१ -गिण्हाहि १।१०१ -गिष्डिस्सामो २४७ -गिण्ठेञ्ज ७३ -गिण्टेज्जा १।१०१; १४६, ६1५४; जर ७२; १५।७१ ११०१५ १०।१६ १५।३.८ शा {४ १६२ गिणत मिद गिद्धपिटुदराण गिम्ह गिरि आयारचला गिरिकिम्प॑ंत २।३६से ४२; २।४७; ४।२१,२२ गिरिमह्‌ १।२४ गिल -गिलाइ १।१३०,१३६ -गिलाएना २।५६ गिलाण १।१२४.१२०; २७२, ०।२६ १२३।७८; १४।७८ गिकासिणी ५।१६ गिह २४८; ५२९ गिहेलुग ५।३६; ६३९; ७1१० गीयद्ाण) २११४; १२।११ गुजालिया ३।४०;११।५; १२२९ गुण्छं २।४२९ गुज्फाणुचरिय ५१७ गण २।२४ ५९७ गुणमंत १।१२१ २।२५, ३८ गृत्त १५।९५.२७ गुत्ति १५३६ गम्म २४९ न ४।२७१. गख गुरु १।४द गेण -गेष्टावेज्जा १५।५५७, ७१ -गेण्टादि ६41 -गोण्हिज्जा = १५।५७ -गेष्ेग्ना १५।५०.६१, ७१ गेण्ट्त १५।५७ गेय १७४,७५्‌ गेतेय १३।७६, १४।७६ गोण १५२, ३१५५६, ४।२५,२६ गोदोहिया १५।३८ गोपुर १०।२१; ११६. १२६ गोप्पलेहिया १०२५ गोमयरापि ९।३,५१, १३५, ५३६, ९।४२ गोयम १५।४२ गोयर्‌ २।३९.२७.२६ से ४२ गोरपिगारईणग ५।१५ गोरह ४।२७ गोर २६।१२.१४ गोसीस १५।२०८ गोहियसद्‌ ११।३ च्य घंटा १५।२८ घडदास ४।१२,१४ घट्‌ २।१०, ५१२) €]६, =।१०. ६।१०, १०११ घण १५।२८ गा० १७ घय १।४६; २२१,५२. ६।२२.२२,३५, ७१७, १३।५.१४ २१,२०.४२,५१ ५८,६७, १४।५,१४; २१,३०.४८२,५१, ५८,६७ घक्ठी १।५३ घाण्‌ १५७४ घात्‌ ३।रद४य घा १।६१ चरो १५।३२ गा० १८ च्च् चच १।४९ चर्त १५।१.२.२५ च १।२१.२४ २६२, ९७ चक्क १०१२१; ११।१०. १२५७ ६१ चदत्थ ११४८८१५१, २।६६,४६; ५।२०. ६।१६, ७५२, ८1२०, १५।३.३८' ४७५ ८,६८.७०, ७५ चरप्यय ११४५.१५४ चउमुहं १५।२२; ११।२० चउम्नह १२।७ चउयाह ३।१२, ५।४९ ८७, ६।४८.५१५ चउवग्ग ६।१९ चंगवेर्‌ ४८२६ चेदण १५।२८ चदणिञ्ययं १६२ चंदप्मभा १५।२८.२६ चदप्यहा १५।९९ चपगवण पभ या०१५ त्यय १५१ चतक २।८२५्‌द चच १५।२८१५२ चक्वुटस्ण ९२११६ चन्रं 4 १२२ चत्त १५।२४ च ३६ चमर्‌ +. ९९ चचस्म २४६ वभ्मकोस ४६ चम्मकोसग(थ) ३।२४, ७।३,२४ वम्मग रेष चम्भद्ेदण २।४६ दम्पछेदणग ३।२४ ७।३,२४ चम्पपाय ६।१२ चम्मवधग ६।१४ चम्मय ७।२,२४ चय -चस्सापि १५।४ -चए १६१ -चंएज्ज १६।७ त्ेयण १५।३६ चेयपाण १५।४ चयोवचइय ४।८ न्वर्‌ -चरे १६।९ चरत १६।२ चरित्त १५।३२,३३ गे०१८; १६३३ चरिम १५।२५ वचरिया (चर्या) २।४४ चरिया (चारिका) १०।९१, ११६, १२।६ चलाचट २।४६; ५।३६ से ३८; ६।३९ से ४१; ७।११ से १३ चव १५२७ चाउमापिय १।२१ चाउल १।६,७.८२, ११६,१४४ चा उपिट्टठ १।११९ चाउलोदग ११६६ चामर १५।२८ गा ११ चार २।४६ चारियि ४।१२,१४ चार १५।२८ चाकिय १६२ चिचापाणग १११०४ विध १५।२७ चच्चा १५।२६ चि -चिट्टेज्जा १।४४,५५, ५६,५८,६२१२३; ३।३० से २७; ८।२७.२८ चिटुमाण २।५७, परत चित्त १५।२८ चित्तकम्म १२।१ चित्तम॑त १।५१.गर०८२े; १०२; ५।३१; आयार-चूला चित्तमंत॒ ६।२८; ७१०; १०।१४ १५।५५७.७१ चित्तचिल्ल्ड २३।५६ चित्तचिल्ल्डय १।५२ किय ४।२६ चिराधोय १।१०० चिकिमिली २।४६; ३२।२४, ७।३,२४ चीणमुय ११४ चीवर ३।२५ ५।४२ से ४५ चीवेरधारि २।२५ चुन -चुबेन्न चृण्ण(न्न) ६।१६ २।२१.५३, १।२२३.२१,३३; ६।२३,२३१२६ ७१८; १३।६,१५, २२,३१४३.५२ ५९, द; १४।६, १५.२२, २१,४२.५२५९.६८ चुण्णवास १५।१० चुय -चुएमि चुय १५।१०२५ चेदय ३।४७, १५।२८ चेहयकड ३।४७; ४।२९, २२ १५।४ न १ ६४ जण १५७; २४५; १६३ जण ४।१२,१४ जणवय रपस १३ जत्य ९।२८,४६. १३६ ३।२े५ अन्न १५।२९.३१ जय "जए १।२०,३०,४९१, ४८,६०,८६,१०३, १२०,१२९.,१३७, १५६; २।२६.४३ ७७; १३८०; १४।८० -अएज्जा ६।१७ -जएज्जासि ३।२३, ४६.६२; २।१८,३६; ५।४०,५१; ६।४३, १६; ७२२,५८ ८२९ ९१७; १०।२९ ११।९०; १२।१७ जय -जयउ ४।१६ उरा १५२८ गा० ७ जल २।१४,१५.२४ १५।९८ गा० ७ जकच्‌(थ)र ३।४६,५४; ४।२५२६ जल्ल १२३।२५,७२; १५.३५.७२ जव १०।१६ जवजद १०।१६ जवस २।४३,४५.५६६ जवोदग १।१०१,१५१ जप १६५ जसस १५।१७ जसंसि ४।२० जसस्सि २।२५ जसवती श्भारय जसोया १५।२२ जहाष्ि १।१२ जहेव ११३६ जाद्‌ १५।५०.६२ जा$त्ता १।५१; ५।४७, ६।५५; ७६ जाण -जाण्द्‌ १५।४.७.४६ -जाणिन्जा ७।१०,११ -जाणेद १५।४,३१३ -जाणेज्जा १।१,४से ८, १२ १६.२१ से २५, ३४.३६.४० से ४५; ४६ पे ५२,५५,५८, ५६,६१,६४ये ८४, ८७,८६,९०,६२ से, भयार-चू -जाणेजा १६९६ रे १०२, १५४,१०६ से ११६५१२२, १२४ से १२६, १२०,१२२.१२४. १३६.१४०.१४३ से १४७.१५१ से १५४ २।१ से १८,२०, ३१,२२,४५,४८ से ६२,६०,६६, ३।२ से ५,१२,१४.१५.२६ २०,३९,२७,३९, ६०; ४।१,२,६,६ से ११५१५ १६.१९.२८ से ३०, ४५,४६; ६1१४ १३,१५.१०८२९से २१,४९,५३,५७, ७१२ से २१.२६ से ३१.३३ से ३८, ४० से ४२,४४,४५, ४८; ८।२ से ५, २३, ६।१ से १४, १०।२ से २७, ११।१७,१८ १२।१४.१५ जाण(जानत्‌) १।१३६ ३।५४ से ५०, ४।१ शब्द-सूची ४।२६) १५।२७.२८ जाणगिह २।३९ से ४२ ३४०, ४२१,२२ जाणमाण १५।३६ जाणसाखा २।३६से ४२ २।४७, ४।२१,२२ जणु १५।दत जणेत्ता ३।१५१५।१३ २७ ४।३० जाणं (यान) जातिमेत जाय -जाइन्जा ९।५९१ -जाएज्जा ११२९५६२, १४१ से १४५.१४७ से १५२,१५४; २।४७.,६२,६४,६६, ३।४२,६१; ५१७ सै २० ,८९,४९.१५ 3 ६।१६.१७.१६.५४ भप; ७४,६,८,२२, ४६०४६.५५; १०।१ जाय १।११२.१५।१,३९ जायणा ३।६१; ५।५०, ६।५८ जाटघरायण १५।३,६ जवि ११३३०१४ २।२३७ पे ४२.४७, ५९१से ५६५६ से ६१, २।२,३.३२, ४८,४९,६१; ४१९ से १५.२२ से ३६, ५।२३,२५.३० ६।२२,२३.२५.२६ २१.४६; अदत १४ २१.२२.२१ २८ से ४६, ८।१; १०।५ से £ जार्वेदय ११२७,१३०; १३५ जावज्जीवं ९५।४३.५०, १७.६४.७१ ११९५५; २।६७, ५।२१, &२०; ७५६, ८।२१, १५।३६; १६६ जिणवर १५।२६ गा०६ जिण १५।२८ गा० ७ जिणवरिदं १५।९६ गा १ जिन्भा १५।७५ जोय शृथाभ र जीव ११२ से १७५१; ८२८३८१८८) १०२; २३ से ७ १६.८६.७९; ५।५ से१०,२२,३५; ६४ से ६,२१.३८, ७१०; सामे ८,२५) ६।३ से ७, १०८ से 8, १४ १२७६; १८७६; १५।२५. रद्गा०६,१५।३६, ८२,४४,८७.४८ ७२ से ७६ जीवि २।१६.४९६.७१; त्र जीहा १५।७५ जुगमाया ३4 जुगव ५।२, ६२ जुण्ण १६।६ जुनि १५१९५ रुत्त ११५२ जुयन १५२८ जुवगव 11. जुवराय २।१०,११ जूय १२।२८.७५; १८।२८.८५ जृहियट्‌ञाग्र १११२ १२।१० ६६ ज १५।२०.२१ जोट १६।०८ जोदसिय १५।६,११, २७४० जोग १५।३,१५,८.२६, २८.२६८ जोग ४।२७,२६।,२० जोयण ३।१४ क भति १५।२७ मल्लरी १५२८ गा०१६ भत्लरीसद्‌ १११ माणकोट्‌ १५।२८ मामथंडिल ९३.५१, १२५५ ५२३६; ६४२, १०।२८ भाय १६५ भिन्मिरिपर्व १।१०८ भिपिय २।१६ भूसिर ११४; १५।२८ ग° १७ (=) टार ४३१ ट स्व स्वेत्ता अ; १५।२०.२६ ठ -ठारस्सामि ०१७ से २५ उादत्तए ८।१,१६ ठाण ९।८; २१ से २५, २७ ३२.४८.४६, ४६ से ५९.७१; ८।१ मे २० शरसे १५, १५।३६ छणसत्तिक्कय ५ द्िडक्छय १५।३,२५ ठति १५।२९ ठ्यि २।५५, ७२९ ख उमर ११।१५; १२।१२९ उहुर ११।१८; १२११५ उागवच्च १०।२६ डाय १५४७ डिम १।१५५.१५२ डिब १११५; १२१२ खड ठंकुणसह्‌ ११।२ । ण णर्ईमह १।९४ णं शर्‌ आयार-चूला णग ४।२६ णंव्विद्धण १५५२० णर्चक देर णर्वत्त १५।२६.२६.३८ णगर १।२८,२४,१२२ २।१, २।२३,४५ ५७.५८; ७1२; ८1१; ११।५७, १२४ १५।२८,२८,५७ णगगोहूपवाल १।१०६ णग्गोहमथु ११११ णच्वंतं १११८; १२।१५ णच्वा १।२६४०,४२) ५२,४४,४१,७५/ २।५१; ३।१ से ४; ६।५२३, ७११ २१ णदू(ाण) १११४ १२११ णत १६५ णतु १५।२४ णठी (ई) ३४०, १५।३८ णदीभाययण १०।२४ णपुसक ४१ णपुसकवयण ४।२,४ णभदेव 21१६ णम ` -मभिज्जति १६५७ शब्दसूची णस -णमंषंति १५।२८ णपम्रसित्ता १५।२८ णमोक्कार १५।३२ णर १५२८; १६२ णवं ५।३१,३२; १४५1८ णवणीय १४६; २।२१, १२, ६ २२,३२,३५; ७१७ णवय ६३१ से २४ णवर शरे४ णवरिय १०२५ णह ८।२०; ९।१६ णहच्छेयणय ७६ णटमछे १२।२६७३; १५४।३९.७३ णाग १५।२८ गा० १३ णागमह्‌ं शर णीरण १०।२७ णागिद १५२० गा०१२ णाणं १५।२३,४१,४२्‌ णाणा १२८ णाभि १६३ णात १५।२९६ णत्ति १५।१३.१८ णामि २६ णाम १४६०१२३०,१३२६; २।२८; १५।१६३ णामगोय 4 णामधेज्ज १५।१३.१९६ से १८२३१२४ णाय १५।५ णायतरुल १५२६ णायपृत्त १५।२६ गायन्त १२।२ णायंड १५।२६ णालिए्रपाणग १1१०४ णालिएरिमत्यय १११५ णावा ३।१४ते २२ २५२६ णावागत ३।१७ से २९, २४,२५ णास ५1 णिकाय १५।२६ गा०६ णिक्डम -पिक्लमिस्सामि १।४९६ -णिनखपेज्जं १।८,९४ १६,३७.२८१४०) ४४,४५.१२,१२२ १२२, २।४५.४६, ५।८२,४३.४५, ६।४४,४५.१०, ११.५३ ६७ णिक्खपप १।४२,४द; २।४०,५३; ७१४ से २१ णिक्खमधाण १६.२०; २४५.४६. ५।०२, ६।५१ 10.41 २४४ १।४६ णिक्खित्त गिरिखप्पमाणं णिक्खिव -गि(नि)क्छिवाहि ३।६१, ५।५०; ६।५८ -णिकछखिबेज्जा ३।६१; ११५०, ६१८ णिगच्छ -गिगच्छड १५।२६ णिगच्छित्ता १५१२६ णिगम १।२०,२४,१२२; २१ | ३ 1२३ १८५, ५७.५०; ७।२ ८१, ११४५. (६.11 णिगिण णिगृहु -णिनृदेज्जा २।२५: ७२० १११२१ ६४ गिगंथ ९३१५; ५।१; १५।४२.४४ से ४त, ५१ से ५५,५८से ६२,६५ से ६६,७२ मे ७६ णिगगथी ५।६ गिग्घोपत १।१२१,१२३५; २२५.३८; २1२४; ५।२२ से २५.४७, ६।२१ से २५.५५ गिर्छर १९१५; १२।२ णिज्ाद्रत्तए १५।६६ गिन्फाएमाण १५६६ णिज्छाय -णिञ्छाएज्जा १।६२ २।१६,४७ से ४९ णिद्वाभासि ५।२,५५२८ णिद्धिय ११२१ णिणाय १५।२८ गा० १६,१५।३२ गा०१त णिण्णक्छु -णिण्णक्खु ¬१२,१४, १६; ८।१२;१४ ६।१२,१य गितिय १।१६ भितिखपमाण ११६ णिदाण ५।४०८; ६५६ णिद्ध १।५७, ५३७ णिष्फेज्ज -णिप्फञ्जड ५५१६ णिर्पतेमाण १४१; २४८ णिपग्गिय दरव णियंटु १,२९.३२ भियंतिय १।३२ णियंस्षाव -णियंस्ाकेड १५।२८ णियंसावेत्ता १५।२८ णियच्छ -णियच्छैन्ना २।२३, २४, २।२६,४४ णियत्तिय १।५४६ णियत्थ १५।२८ गा०६ णियमं -णिययेज्जा ६।४७ णियम १३।१ से ऽपः १४।१ से ७८ णियाग २।४४ णिराक्बण १६।१२ णिरावरण १५]३८से४० णिराषस १६।६ णिरूवसग्ग २।७६) ८।३० णिच्छिह -गिल्छिहुज्ज ३।३१, २२.३९; ६४८४६ भायारचूटा णिद्व्क १५।३२्‌ गा० १८ णिवदय ४।१७ णिवाय(त) १२६; २।१२,७२,७६; २८।१२.२६.३०; €।१२ णिविटु १५।२८ गा०११ णिव्वत्त १५।१३ णिन्वाण १५३६०४० णिव्वेहु -णिन्वेहन्न 1२५ णितस्सम्म १।२३,१९१, १३५, २।२५.२० २।२५; ८५१, ५।२२ से २५४७, ६२१ मे २५.५५ णिजम्पभासि ४ णिसिषट ११२ णििर -णिचिरामि ११२६ -णितिरामौ ११२४; गदरेण -णिसिराहि ११२० -गििरेति ५।४५) ६।५५ तब्द-सूचो -णिसिरेज्जा ११३०, १।२६,४६ ६।२७,५४ णिपीय -णिसीयह १५।२६ णिसीयाव -णिसीयावेड १५।२८ णिपीयावेत्ता १५।२८ णिपीहिय २३ ते २५, २७ से ३२.५० पे १६, ८।२ से १५, ६।१से १५ पिपीहियालत्तिक्करय ६ णिस्सक्कििं १६५ णिप्सयर १६।६ णिष्साघ्च १५।२न प्स्तिणि १।८८, २।१६ णिहृट्ट्‌ १।१३५.१४२ णीण -पीणेन्ना ७२४ णीणिज्जमाण ११।१६ १२।१३ णौपुरपवाट ११०६ णो ४३७ णीरुमिगारईणम्‌ ५।१५ णीसस -भीस्ेज्ज २।७५, दार२६ २।७५; चा२६ णीहद्टु १।१३६५ ६।४६ णीहड ११२ पे १८,२१, २२,२४,१२य) २।३ ते १७, ५।५ से १३ ६४ १२ एारेसे ७,६,११,१३, १५, ६1३ से ७,६. ११,१३,११; १०४ से ८,१० णीसासमाण णीहर -णीहरति १०।१२ -णी(नी)हरेन १३।१०, ११.३४ से २६, ८,४८७,९४.७१ मे ७२३,७५ , १४।१०, ११,३४से ३६.३८, ४७.६४,७१ से ७२, 6 णीदहरे्ता १३।७६, १४७ ३४८) ११।९ १२३ णुम णूपमिह्‌ २४७, ४।२१ एर्‌ ६९ णेत्त॒ ५।२२से २६ €२२ से २७ णेवत्थ १५।२७ णेसज्जिय २।६५.६९, ७५४५१ णो ११ स्त त १।१ त्य ५६ तउपाय ६।१३ तउव्धण ९६।१४ सभो १२ तंजहा १।२३,२८०४१, ४६,६१.६३,९६; १०६,१११,१२१ १५५५१५५ १२२,१३०१३८) १८४३,१ ८५.१५१) २१८,१६०२९०४२ ४८.६३ पे ६६, २३।५४, ४।३१६,१६ से ३६) ५११४ १५.१७ से १६५ ७।५४१५५,१५७, ११।१ से १ १५।१६ ११।१४; १२।११ तति (राण) १०५० तंवपाय ६।१२ तंववंषण ६।१४ तक्केलिमत्थय १११५ तक्ककिसीप १।११५ तग्गंध २।२७ १।१४३,१५०; २६५; ५१६; ६।१८ ७५९१; ८1१९; १५५४६ ५३.५७.६००६३, ६७.७४ तञ्जिय १।६२ तडागमह्‌ १।२४ तण १।५१; २६३६५; ३।४२्‌, ७।५४ तणपुज २।३१,२२ तत॒ ११।२; १५२०८ ग्‌{५ १७ तत्थ १।२५.२२,४२,४९, १५१,१७.६३,८८, १०५,१२३२.१२७, १२०,१३१,१३६, १४०८ २।१८१२४पे ३६२६ से ४१,४६, ' ४७,६२०६५१७१; २।४२,४९.५१,५३; तच्च तत्थ ५१७; ७्से ९, २३ से २६.३२.३३, २९.४६.४७.४६, १४.१५; १५१७२ से ७६ तम १६६ तम्हा १।२२ तया २।५५; १1२४ ६।२५; १३७८; १४८७८; १६६ तरच्छु १।५२; ३।५६ तरुण ५।२; ६२ तरुणिय १४,५; २२४ तस्पडणद्राण १०१६ तक १५1२८ गा० १४ से १६ तल (द्राण) ११।१४; १२।११ ताग २।४८ तव १५१३६; १६।५ तवणीय १५।२८ तवस्सि २।२५.३० तस॒ १।४०; २।९ ५।४५; ९।५३; १५४२; १६४ तसकाय १।६१.६०; २।४१.४९्‌ अयिार-चृला तस्संधिवारि २३० तह १,९१ तहप्पगार १।१,२,१२ से १५.२१.२३ पे २५.२९.२२,२५, २६.४२.४३,४६, ५१,६३से ८१,८२, ८४,८१,८७ से ६६, १०१,१०२,१०४ १०९से १११,११३ से ११९.१२१ से १२३.१४१ से १५४, २।१ से ५,१०,१२, १४,१६,१८से २५, २७ से २२.३६.२० से ४०,४५,४६,४६, ५९, ६१.६२.६४ ६८,७६; ३।२,३५९ १९१से १४५३२,३६; ५१६; ५।१२५ पे १०,१२,१४.१५. १७ से १९.२२.२४ २८ से ३०,३५ से २३९,४६ से ४; ९।१,४ से ८,१ १,१३ १४,१६ से १९२२ २६.२९ पे ३१,२८ से ४८२,४६,५४.११ ४। दाब्द-सूबौ तहुप्पगार ७१० से २९, २६; ८३ से ७, € से७; १०२ से २८ ११।१ स १८, १२१ से १६ १५४६; १६।३ तहा ४।१९ तहागय १६।२ तहाण्यि १1१३८ तहैव ११३६ ता ३।१७ ताद्‌ १६।६ तालु्भाण) १११४, १२११ तालसद्‌ ११३ ताक्पच्व १।१० तारमत्थय १।११५ ताल्ियिट १९६ ताव २४७; ६२६ भ४,६,८०२३.,२५, २३२,३९.४६,४६ तावद्य १।१२७,१३०, १३२५ ति १।२१ तिद १।११० तिकसुत्तो १।७, १५।२८ वि २।२५ तित्िक्ख -तित्तिक्द्‌ १५।३७ -तितिक्वए १६३ तित्त ४।३७ तित्तेय १।१३८; १५।२८ तित्तिरकरण १०।१८ तित्तिरजुदध १११२, १२।६ तित्तिट्राणक्ररण ११११; शयाम तित्य १५।२६ गा० ६ तित्ययर १५।११.२६ गा०४ तिन्नाण १५।४ तिमासिय १।२१ तिय १०।२२, ११।१०, १२।७ तियाह ३।१२, ५।४६, ४७, ६।१४.५१ तिरिक्खजोणिय १५।५४ तिरिच्छं १४०; ३६, १४, ५।४५, ६५३ तिरिच्छचिन्न १५ ७।२८,२१.३५.३८ ४२,४५ तियिय १५।२७ तिरियगामिणि ३।१४ तिक १२१६, १०।१६ १०१ तिलपप्पड १११६९ तिरुपिटु १११६ तिलोदग ११०१,१५१ तिवग्ग ६।१६ तिविह १५।३४,४३, ५०,५७,६२४,७१ तिन्वदेसिय १।४०, १।४१५, ६।५३ तिस्रग॒ २२४; ५।२७ तिसा १५।१५,६,८,६, १० से १३,१५ तीयवयण ४,३,४ तीर ३।२०,३७ तीरित्ता १५७० तीरिय १५।४६.५६,६३, ७३,५७ तुबवीणियसद्‌ ११।२ तुच्छ्य ६।२६ तुच्छ १५।३६ तुडय ५।२७ तुढ्यि रर४ तुड्यद्धण) १११४ १२११ तुणयसद्‌ ११ तुद १०६ तुयटावित्ता १३७६; १४।७६. तुयट वेत्ता १३।३९ से ७५, १४।३९ से ७५ तुरग १५२८ तुर्य १५।२७३२ गा०१८ तुसरासि १।३,५१,१२१५; ५।३९; ६1४२ तुिणीय १।५७,१२३; २।१७से २१,२५५४ से ५८,६१, ५।५०; 1. तुसोदग॒ १।१०१,१५१ तुर्‌ १५२८ गा० १६ तूलकड ५।१,१७ तेश्च्छं १३।७८, १४।७० तेउ १।६१ तेउकाय २।४१,४२, १५४८२ तेज १६।६ तेण (अ) २।३०,४७; २३।६,१९, ५१२१४ तेय १६।५ तेयंसि ४।२० तेयस्मि २।२५ तेरसम १५।२८ तेरसी १५।५.८ तेरिच्छिय १५।३ ४,२३७ तेल्ल १।४६; २।२१,५२; ६।२२.२२,३५, ७१७; १३।५,१४ २१,३०,४२,५१, ८,६७; १४।५, १४,२१,२०,५२, ५१,५०८,६७, १५।२८ तेल्लपूय १।१२२ तेसीहम १५।५ तोरण ९।५०; २४९१, ४७; ८।२१,२२,२६ थ थंडिछि १।५१,१३५; १५।२३६, ६।४२ १०।२ सेर थेभ १।८७ थल २।१४, १५.२४ थकचर ३।४६ थल्य १५२८ गा०७ थाल ११४८३; १५३९१ थाल्णं १।१३२ थावर १५६३; १६४ यिग्गलं १६२ आयार धिर ५।२६,२४,५।२, ३०,४द्‌ से ४८) ६।२,३१,५४ पे ५६ शृण १।२३६; ६।२३६, ७१९१ धभ २३।४७, ५।२१,२२ धूभमह्‌ १।२९४ थूल ४।२५; १५।५७.७१ धेर १।१२०.१३१; २७२; ७५७; ८1२६; १९११० १२।१५ द्द दंड १।२३५; २।४६; १५।९२८ गा० ११ देडग(य) ३।२४ ७३,२४ दत २1१८; €।१६ दत(पाय) ६।१३ दतक्रम्म १२।१ देतवेधण ६।१४ दतमल १३।३६,७३; १४।३६,७६ देस २७६) ८।३० दस -दपेना ३।५४ से ५८ -दसेह ३।५४ ति ५०८ शब्द-सूच दंसण १५।४१.४२ दम ३।३७ ददु गमत्तय १६२ दगभवण १६२ दगमट्िय १।२,४२.८३, ५१,८२,८२,१०२, १२३५; २१.२.३१, ३२,५७े ६१.६८, ६९; ३।१,४.५, ५।२८ से ३०,२५. ६२६ से ३१,३८ ७।१०.२६ से ३१, ३३ सै ३८,४० से १, ८१.२.२९ २३, ६1१,२, १०।२,३,१४,२य८ दगलेव १।१४५.१५२ दट्षण ३1६ दटुटुण १११३१ दयि शद्‌ देठभक्म्पत २३६९२४२ २।४७, ४२१.२२ दम्भं ४।२७ दरिपहं श्रं दरिसणिन्जं २।२५, ४।२०५ दरिसणीय ८२०२२, २०; १५२८ दरिसि १५।३९ दरी ३।४८१,४७; ८२१ २२, १०।१७ दर -दर्एज्जा १।२५,५६) ५७.६३.६५६ ६, १०२,१०४८,१२३; १३५.,१२३६ ५।२३, २४; ६।२२ ते २६,४८द्‌ -दलयाहि १।६३१९६, १३५.१४३, ५।२२ से २४, ध२९१ये २४,२६ ११३० ११५।२६ -दलाति दर्डत्ता दविय ३।४८ दन्ती १।६३ से ८१ दसं १५।१६ दक्षपी १५।२९.२६.३८ दसराय ५२२ ६२१ दस्सुगायतण ३।८,६ दह्‌ ३।४८ दहमह १२४ दा -ठासामो ५।२३.२५, १ ६५२२ ते २६ 8) १०३ -दाहामि १।१३० -दाहामो ५।२२ ६।२१ -दाहिसि २५.६३, १०१; २।६३,६द ५।१८; ६१७ ११६; १५।२६ गा०२ -देजज ६।६म १६; ५६ -देज्जा १।११,२५,१०१, -दिज्जद १४१ से १४५.१४७, १८८,१५२.१५४ २६३,६४, २।६१, ५१७ से २०,४६, ४८.५०; ६1१६ से १९.५४५६५५०८ -देहि २।६१, ५।५०, ६५८ दाध्य १।१२१ दाड १।६३,६६,१२५, ५।२२,२८, ६। १४, २१ मे २४.२६ दादडिमपाणग ११०४ दाडिमतरडव १।११० दाता(या)र १५।१२,२६ दाय १५।१२.२६ दायन्च १२८५१३१ हार्‌ १,२९१; ११६; १२।६ १९५४ ३।२४ दारः ११।१६ दारिया १२।९१२ दारूपाय £&।१,१६.१७ दारय १५१०२८३ १०२; २२९२८; ५२३५; धरेण; ७१०; १०।१४ दालियि १२९; २।१२; ८।१२३ ६।१२ १।२५,४६,६दे १२१,१२२,१४२, २।२२,३६ से ४२, ५१ से ५५०६४; १1१८; ६1१७; ७१६ से २० १।२५.४६,६३; १२१.१२२,१४३; २।२२.२५.३द से ५२,५१ से ५५०६४ ५1१८; ६१७; ७१६से२ दाह ३।३९६ दाहिण १।२७.१२१, १४२०१५०; २।२६ से ४८२; १५।२८ गा०१३; १५३० दारा दारिग(य) दस दासी दाहीण २३६ से ४२ दाहिणड्मरह १५१३ दाहिणमाहणकुडपुर १५।३.,५,६ दिजपाण २६.३५ दिद १११; १२१६ दिण्ण १२५ ६२६; १५।२६ या०३ दित्न १।५९.१३६ दिवस १५।२९.२५.३८, ४०५ दिन्व १५।२७.२० गा०७८; १५।३२९ गा०१८, १५३४ २७.६४ दिसा १५1३; १६।६ दिक्षीभाय १५।२७३८ दीव १५।३,२७.३३ दीवि १५२; ३५६ दीह २।२३७,७४; १४।३७.७४ दीहबट ४1३९ दीदिया ३४८, ११५; १२।२ दु ४१ टुक्व १।३१, २।२१; १५।२५ भायार-चूला दुक्खठम शात दुक्ि १६।४ दुवखुत्तो १७ दुगुण २३५ दुशृल्ल ४1१४ दुग ३।५६९.६०; भा, ४६; ६।५६.५७ दुम्गध २२७ दृण्णि(न्ति)क्छित्त २४२; ५२६३०; ६।३६.४१, ७११ से १३ दत्तर १६।१० ट्पय १।१४५७.१५४ दुप्पण्णवणिन्न ३।८,६ दन्बद्ध २४६; ५।२६े ३८, ६।३६ ते ४९१; ७।११ से १३ दुन्भि १।१२५ दुन्िगंय ४।२३७ ५।३३, ३४; ६।३५ से २७ दुम्मण ३।२९.४४ दाह २।१२; ५४६ ४७ ६ १४,५५ दुखक्कर १।१११ गन्दसूचौ दृह -दुष्हति १५।२७ "दुरुदेञज ३।१४ -दुरहेन्जा २।७३, ३।१५, १६५९ ६०; भठत, ४६, ६।५६,५७ दृ्टमाण १८०, २।७२, २३।१९; ०।२७ दुरहित्तए २७३; ८२७ दुरहित्ता १५।२५,२७ दुष्टेतता २७३, ८।२७ दुतेग्ग ६।१६ दूवयण ४।३,४ दुवार २।४१,८२,४४ दुवारवाह १।५४, २।३० इवारसाहा १।६२ दूनारिया २९ २१२, ४५, ८।१२, ६।१२ दुद्‌ ४।२३५,३६ द्मसुसभा १५३ दृस्त्तन्नप्प ३।८,६ दुहसेज्ज १६९ दुहि १६।४ टूइज्ज -इडन्मेज्जा ११०, २६,४०; १४ -ट्दज्जेन्ना ३१.४७, ६,११,१३,२२,३३, २९.४०.४२,४४से ४७.४६ से ६१; १।४४,४५.४८ से १०; द५२,५३, भद सेत दृडज्जमाण १।१०,३९ ४६,१२२, १३८, १३६, २७०, ३।६ से ८,१०,१२,१४, २२,२४,४०,४१ । ४२,४७.,४८,५० से ६१; ५।४८४,४६.५०; ६।५२,५७.१८, णार्थ ट्स ११०४ देव १५।५.९ से ११. १६.२६ गा० ४,६; १५।२७,२८ गा०१ १७, १५।२९.२२ गा०१६ ; १५।३६ से ४१ देवकुल २।३६ से ४२, २३1४७, ४२१.२२. १०।२०; ११८, १२५ १०५ देवगड १५।२७ देवच्छेय १५२5 देव्ता १५।२५ देवपरिसा १५।३२ देवराय १५।२०,३१ देवलोग १५।२६ देवाणदा १५।३,६ ठेविद १५२०८,३१ देविटोग्गह्‌ ७1५७ देवौ १५।९ से ११.२७, ५ दभाय १५।२८ देषराग ५१४ देह १५।२४से ३६ दो १।२१ दोच्चव १।१४२,६४६; २६४; ५१८, ६।१७, ७०; ५।१८ १५]८,२८, २८,४५,५०,५२ ५९,५६.६६,७३ दोज्फ ४२७ दोणमुह १।२०८,३४.१२२; ३1१ से ३,४५.५७, ५८; ७२, ०१ दोव्वलिय २।२६ दोपासिय १।२१ १०६ २।१०.,११; ११।१५; १२१२ दोसर १५।५०,७२ से ७६ दोर्ञ्ज ध्य धृण्‌ ५।१४; ६ १३,१४; १५।१२,१३,२६ धण्णं १५।१२,१३,२६ धम्म १।१२१; २।२५, ३; १५।६५ पे ६९, ७२ से ७६ धप्मज्फाण १५।३८ धम्मपय १६।१ धम्मपिय ५।१३,१५ धम्माणुञ्गचिता १४२, ८३, २।४९ से ५६, 2।२,३; ७१४से २१ धम्मिय १,१३२.१३, १४८७.१५४; ३।६१; ८।१३;१५, ५।५०; 1, धर्‌ १५।२६ गा० ४, १५।४१.४२ धरणि १५।२८ गा० १६ धाइ (ति) १।२५,४६, ६२,१२१.१२२, १४३४ धाड(त्ति) ` २।२२,२५, २३६ सै ४२,५१ पे ५५.६८ ५।१८ ६।१७; ७1१६ से २०५; १५१४ धायदवण १०।२७ धार -घारेज्जा ५।२,३,४१; ६।२ -धारेहिं ३।२४ धारणिज्ज ५।३०; ६।३१ धारि १५।२८गा० £ धारेत्तए ५४६ से ४०; ६।५४ से ५६ धिम शद दुव॒ १।३३२, ५२.५२०; ६२३१ धूया १।२५०४६,६२ १२१,१२२१४३; २।२२,२५,२६ से ८२,५१ से ५५.६४; ५।१८; ६।१७, ७१६ से २०; १५९३ धूव -धूवेज्ज १३।६.१०,२५, २२,४६,५५०६२.६६; मायार-चूख -घूवेल १४५।९,१८, २५.२३ २.४६,५५, ६२,६६ धूवणजाय १३।६,१८, २५,२२,४६.५५४ ९६२,६६;१४।९.१५, २५.२२,४६,५५, ६२,६६ ४।२०५ ५।१२,४१; ६।६ वेणु धोय धोयं -धोएज्जा ५।४१ त्त नेदीमुदासद्‌ नक्कदिन्न ४।१६९ नक्खत्त १५।३२.५.८ नादिय २४६; ३२४ ७१२,२४ २४५ १११ निषय निद -निदामि १५।८२,५०, ७,६४.७१ १५।२५ १५।२५,४९ २४६; 21९ १११०२ निदित्ता निकाय निक्छमणं निक्छित्त शेन्द-सुचौ निग्गंय ६।२ निदटुटुर ४।१०,१२.१४, २१.२३.२५१.२७ २६.२१.२२.२५ निमित्त १५।२५ निरवेरण १५।१ निवुज्भमाण ११।१६; १२१३ निवुदरदेव ४।१९ निन्वाण १५।३८ निसाम -निसामिति १५।३२ गा० १६ निषि १५७ निप्रीहिय २।१.२.४४, ४६ निर्स्सिचमाण १८५ नीचिि ८।३२ नौहर -नीहरेज्ज १३२७ पदद्धिय १५१,८२,८३, ९२ से ६५,९७,६८, १०२, ५।२५; ६।रे८ः ७१०; १०१४ पदण्णाल्ना) १।५६ ८५,६१,६५.१२२; पड्ण्णा(न्ना) २।१९.२१ से २५.२७ से ३०, ४६,७१, २।९,११, १३,४६, ५।०७, ६।२८,८.८२१्‌ पम २।२१.५३; ५१२३; >१,२३ ६।२३,३२ ६ अण पडमख्या १५।२८ पडपद्षर १५.२८ गा०१४ पभोय ४१७ पेक्राययण १०।२४ पच ७५२ पेवदम ३।४५ पनम १।१४५.१५२; ७५३; १५५४८ ५५,६२,६६१७६ पचमासिय १।२९ पंचमुष्टिय १५।३०,३२ पचराय ५२२; ६।२१ पर्चकमग ६१६ पंचविह्‌ ष्र७ पाह २।१२ ५४६ ४७, ६।५४,५५ पचेदिय १५।३३ पड १५।६६ पेडरग १५।१३ १०७ पंडिय १६।७.१० पत १1१३१ पंय २।१०;) ३।१, ७११५ पक्क ४।२१,२३ पक २।४१; १५।२,५ ८.२९.२६.३८ पक्लन "प््खटेज्ज ९५१ पर्सलपाण १।५१ पक्खि ३।४६.५४; ४२५२६ पकिव -पविंक्लवह ३।२५, -पव्िछठवेज्जा ३।२द पवखेव १५।१्‌ पगणिय ११६, २1७, ३८, ५।६; &।5; = १०८ पगत्त १०।१७ पग्र -पणरेज्जा २।१८ पगसेमाण २।१६ पगास्य १६६ पमिर्मियं ११६२; ३।१६.४७ से ४६ पगिष्ठ्‌ -प्रिष्ठेज्ज ७३११० से २१ १०८ पग १५।३६ पगहित(य)राग २७६ ८. पमगहिय १।१४६,१५३ पंस -पघसंति २५३; ५१५ ५१२३; ६।२३ २२१; ५।२१.३३; ६]३३,२६ प्रघसित्ता ५।२३; ६।२३, २४ पचत ११1१७. १२१४ पच्चंतिक(य) ३।०८,६ पच्चक्ख -प्च्चवखाईति १५।२५ -पच्चक्खाएञ्जा ३।११,२४ "-पच्चक्लामि ७१; १५।४२,१५०.५७, ६४,७१ पच्चर्वखवयण ४।३२,४ पर्व॑क्वादता १५।२५ प्वखाएत्ता २३।१५३४ -पधंसादहि -पघमेजज पच्चपिण -पर्चप्पिणेऽजा २।६८, ६&; ७1६; ८२२ २३ पच्वपिपित्तए ६९, ८।२२.२३ पच्चाइक्छ -पच्चाइविखस्सामि १।१२द्‌ १।३२ २1६८, पस्चावाय पच्चोत्तर -पच्चोतरति पच्चोतरित्ता पच्चोयर -पच्चोयरडइ १५।२६ पच्चोयरित्ता १५२६ पच्छा १।२६.२३२.,४२; ४३,४६,१२१; २।२८,२६.२८१४५, ४६/८८, ५।३,२२्‌ ६।५९१; १०।१; १५।२८ गा १२ १५४१ पच्छाकस्म १।६१, १४४, १५१, २२७ पच्छासंयुय १।८६.१२२ १२० १।४५ १५।२ग्‌ १४।२८ परिय आयार-चृर पञ्ज -पज्जैहि ३२४ पज्जत्त १५।३३ पजनभाएता १५।१३२६ पजभाय -पञ्जमा्एति १५।१३ पञ्डवजाय ११४४१५१ पञ्जायं १५।३६ पञ्जाछ -पज्जाल्तु २।२३ -प्ज्जाठेज्न २।२१, २३,२६ पम्जाटेत्ता २२१ पटू १५।२८ पटण १।२८,२४१२९ २१; २।२,३,४१, ५७०; ७९ मः ११।७ १२४; १५।२८ पड -पड्ड ४।१द्‌ पडहु १५।९८ गा० १६ पडाया ११२ पचक सोर७ प्डकिकम्‌ -पड्क्करिमामि १५।४३, ५०,५७,६४,५१ दन्द-सुषी पडिवकमित्ता १५९४ पडिगाह्‌ -पदिगरि्जा ९।४े ७१९ स १८,२१ ने २५.३६.४१.६२ से ०२.८५.८७ ने १०२,१०४,१०६ ११६.१२१,१२३. १२०८१३३ े १६६. १४१ से १४६.१५१ से १५४ २।८५; १७ यि ९१.९३.७४, १।५से १५,१७ से २०,२२ से २५२ ते ३०, ६८ से८ १९ १६.२९१ ६,२९ स ३१.४६. ७२९ से ३१ ,३३से ३८.८० से ४५४८ पडिगाहित्ता १।१३५, ५२ ६२५ पटिगाहिय १।३५,१३५ पड्गिहैत्ता १३२४७, ५७.१२५ से श्रत, १३० से १३२ पडिमगहु १।४६,१०१, १३१,१२५, २।९; ११.२६ ९।२७.२८,४० मते ५०,५२ मेभ पटिगाहगशथ) १।१२५, १३६.१४२१ दार, २७.८४ से ४२०८६ १६.५७ १११४३ १।१४४, १५१, &४७ पडिग्गहं पडिगरहधारि पडिम्हिय पड़गगाह -पडिकीहेज्जा ११ पटा २।२,१३२' १३६ पिच्छं -पडिच्च १५।२९०२१ पडिच्छितता १५।३१ पडिणीयं अर पडिपहं १।५२० ३।५४ घे ५६, ५।४८, ६५९ पडिुष्म ५।२९ १५१ एदे८,४० पडिवद्ध २५०; ७१५ पडिवोह -पंडिवेहेज्जा ७९४ पटिमा १।१५५, २६९ से ६७ ५।१६ये २१, ९१५ २०,७४८ ये ५६ ८१९२१ १०६ पड़ १५।२६.३१ पडिया ‰।१,४ से २,११ ते १५,१९.२१.२२, २४२६.२८२९५ ३२.३८ से ३७, ४०,४२्‌ तै ४६ ४६९.५०,५२१५३ १५,५०.६१.६२ ८२ से ५,०७.८६ से ६६.१०१,१०२ १०४ ११९; २ से ७,१०,१२.१४ १६.२१.२७ २९; ३।१४,६०.६१. ५४ स ८,१२.४४५) ८९५०, ४ से ७, ११,४८८०४८२.१०१ १३.१७.५८, ७५ छ रेमे ५,१० १२.१४, ६।३४, ५,१०.१२.१८ १०।४मे ६.११ १९१ १८, १२।१से १६ पडिह्त्र॒ ४।२०,२२.३० पड्लिह -प्च्टिरहि्जा ५५२५ दारण; पार४ ११५ -पच्लिहिस्सामि ५।२६; ६।२७ -एटिलिहेज्जा २।७०, ७१; २।१५,४०, ८२५ १।३२ २।७२; ८।२६ पडिलिहित्ता २।२,६.१९१, १३, १५.१७.२२; ८।२,६.; ६।६,११, १३,१५ पड्लिहिय १।३,५१,५४, १३५; २।६६,७२; ५।३६; ६।४२;७३; ८।२३,२६्‌ ३।१५ २।२७ पट्किहुमाण पडिलिरहित्तए पडिकलिषहेता पडिलो्म पडिवउ्ज -पडिवज्जद्‌ १५।३२, ३२ गा० १८ पडिनञ्जमाण १।१५५ २।६७; ५।२१. ६।२०२७।५६०।२१ पडिवत्जित्ता १५।२५ पड़विन्जित्ताणं ११५५४ २1६७; ५२९१; ६।२०; ७५६०८२१ १५।३२ गा० १६ पडिवज्जेत्ता १५।३२ पडिवण्ण(न्न) १।१५५, २४८,६७; ५।२१ ६२०, ७।५६; ८।९१; १५।३३ पडिविस्ज्ज -पडिविप्चज्जेति १५।३४ पडिविसज्जेत्ता १५।३४ पडिमरवेद ~प डिंवेदेड १५।७६ पडिधुणित्तए ५।२२, ६।२९१ ५।२२ १५।३६ १।५६ १।२७,१२१, १४२, १५०, २३६ से ४२ पदप्पन्न ४।७ प्ट्प्मन्लनवयण = ४।३,४ पडुप्पवाद्यटाण ११1१४ १२११ १५।२८ १।१४१, १४८ २1६३४५६; ५१७; पडिवज्जितत पडिमूणेत्तए पडसिविय पडिसेहिय पडीण पटोल पदम्‌ अयार-चृख ६1१५; अ४६; ८?५७, १५८; २६.२६,४४,४६, ११,५८.६५.७२्‌ पणग (य) १।१,२,४२्‌, ४८२,५१,८२.८३, १०२०१३५; २१, २,३१,२२.५७ से ६१,६८,६९; २।१; ४,५,१३; ५।२८ से २०,३५, ६।९६ से ३१.३० ७१०. २६ से २१.३२ से ३०८,४० से ४५; ८।१,२,२२,२३ ६।१,२, १०।२,३; २४,२८ पणवसद्‌ ११।२ पणियगिह २।३९ पे ४२, २३४७; ४।२१,२२ एणियसाख २।३६्से४९ ३।४७; ४।२१,२२ १५।६८ ११५।७८ १।४२,४२, २४६ से ५६७०,७१; ३।२,३; ७।१४े २१; ८२४२५ पदप पणीय पणुवीस पण्ण न्द-सुची पण्ण(न्न)तत॒ ७५७; १५।४.६५ से ६8, ७२ से ७६ पण्णरसं १५।३६ गा० ४ पण्णव -पण्णविसु -पण्णविस्सति -पण्णवेति पण्णव पण्णहत्तरी पण्णा पिरि -पतिरसिमु १०।१६ पतिरिति १०1१६ -पतिरिस्सति १०।१६ पत्त(पत्) १।५१,६६ २१४; ३।५५; ५।२५; ६।२५, ८1१४६; ६।१४, १०।१२,१५. पत्त(्ाप्त) १५।५२से ५५ पत्तच्छेञ्जकरम्म १२१ पत्तुण्ण १५।१४ परत्तोवय १०।२७ पदम्ग १०।१७ पार्‌ -पचारेज्जा 21७ ४।७ ४७ ४१६ १५।३ १९।५ १५1४५ पूव -पधूवेज्ज १३२।६,१८; २५,२२,४९.५५, ६२ से ६६; १४।६, १८,२५,२२,४६. १५,६२,६६ पौव पयोएज्ज ५।३२,३४, ६।३४,३७, १२।७, २३,२२,४४,६०; ६६; १४।७,२३.३२, ४४,६०,६६ -पयोवेति २।५४,७१९ -पघोवेहि ५।२४ ६२४ ५।२८, ६।२४ १५।१२,९३ पचोवेत्ता पभिड पमज्ज -पमज्जेज्ज १।५९१; २।३१,२२,२८,३६५ €1४८,४६; १२।२, १२,१९.२८.३६, ४६.५६,६५,७७, १४।२,१२.१६.२८, २९८६९.,५६१६९५.५७ -पमनज्जेज्जा १।८५ १११ पमच्जित्ता २।२,६.१९, १३,१५.१५७.३२; ८ा२,६; ६६.११, १३,१५ पमज्जिय १।३,५१.५४, १३५; २।६९.७२, ७२. ५३६; ६।४२,४१: ७३; ८।२३,२६ ३।११५.३४ १५।२६ पमेइल ढारभ्‌ पयत्तकड ४।२२,२४ पयय १५।३२ गा० १६ पयल -पयलेञ्ज १।५१.८८) पमज्जत्ता पमाण २।१९.४६,७१; २।४२; ८२ पयखपाण १।५१.८८, २ १६.४६७; २४२; ८।२५्‌ पयायसाला ४।३० पयावं -पयचेव्न १।५१; २२१; ३।२१.२३२.,३६; ५।३५े ३९; धरेव से ४२.४०.४६ ११२९ पयावेत्तए २।१९; ५।३५ से ३८, ६।रे८ पे ४ पयाहिण १५।२८ प्र॒ १।१,२५.,२६.५६, ५.७,६३,१०१,१२३ १२७,१२८,१३०, १२५.१३६९.१४१ से १५४, २1४७, ६३, ६४, २।१५,१७.१८ २९,२५.,२६.२३, २६,४२,४४.५६; ५।४,१७से २०,२२ से २६,४६ से ४८; ६।३,१६ से १६.२१ से २७.४६ ५४ से ५६; ७५,७; १०२०८, १३।२ से ३६,४१,४२,४४, १६१७ परकिरिया १३।१ से ७ परकिरियासत्तिक्कय १३ परक्रम १।२०,५२,५२५ ६१, २।६,७.४१. ४६ परक्रम -परक्कमेज्ना = १।५०; ५२,५३ १६१ | ३।६ ७,४९१,्‌ परक्कमाण १।५१;१।४२ परण ११४३) २६३२; ६५; ७।५४ परपत्तभोद्‌ ७१ परम १५२८ गा० १६ परखोढय ११।१९ परय १६।१२ परिएसिज्जमाण १।२१ से २४ परिग्गह १५।७१,७७; १६।१ परिघाप्षिय १।३५ परिजाण -परिजाणह १५।४५, ५२ से ५५ -परिजाणादहि १६।१० -परिजणिज्जा ३।१७ से २१.५४से षत परिजीभिय ३।३३ पटट्रिवि -पश्ट्विद १।१२५, १२७ -परिद्रवेति ५।४७, ६।५५ -परिदुवेज्जा १।२,१२६, १३५. भ४६,४८, ६।४७,५ ४१५६ १०।२ग भआयारचूला परिदुविय २।४१,४२,४४ परिदटुवेज्जमाण १।४६ परिटवेमाण २७१; ८।३५ परिणम ~ रिणमेज्जा १।३१ परिणय १।१००,१५।१५ परिणाम २।२१.२९; २।१४, ५।४६ मे ४८; ६1९२४,५५ परिणिन्व -परिणिन्वास्संति १५१२५ परिण्णचारि १६।०५ परिण्णा(न्ना) ३।१५घे २१,२४,५४ से ४ १६।९ परण्णात(य) ७।४,६,८, २३,२२,३६.४५.४६ परितावणक्रारी ४१० १२,१५.२१,२३ २५,२७.२६.,३१. ३३.३५ परिनिन्बुय १५।२ परिपिहित्ता २७५; ८।२६ प्रिपिहिय १।५४ अब्द॑-पूची परिपीलियाणं ११०४ परिभवं -परिभवेज्जन २।६,११; ५।५०; दृव -परिभवेति २।६१; ५1५०; ६।५८ १९१८; १२१५ परिभाङइ्त्नपाण १।४६ परिभाद्य २।४४ परिभाएत्ता ११२५, १३९; ६।४६ परिभाएमाण १५७ परिभाय -परिभाएज्जा १।५७ -परिभाएट ९५७, १३६ ११५७ १९११८, १२१५ परिभुज्माण १४६ परिभेत्त १।१२ से १९, १८२२.३५; २1३ से ९६.११.१३, १५.१७.४४, भाप से ६,११.१३३; ६४ से ८,१०.१२; ०८३ से ७,९,११,१३,१५; १५ परिभाडत -परिभाएहि परिभूजेत प्रमत्त ६।३ से ७,६, ११.१२.१५; १४४४ से ८,१० पसिंडिय ५२ परिय १।२१ परियटण १।४२,४३; २४६ से ५६; ३२ ३; ७१४ २१ परिया -परियादंति १५।२७ परियाइत्ता ५।२७ परियाग(य) १५५.२५ ३८ १।२३२; २५५ १५।१५. परिथारणा परियारेमाण प्रियाय -धरियावे्न १।८८) २।१९.४६.७१; ८।२४; १५।४४, ४७.४८ प्रिया्ज्ज -प्रियावज्जेज्ज १।५२३ -परियावन्जेज्जा ३1२८ ६।४५ परियावण्ण(न्त) १।१२७, १३६,१८५.१४६, १५२,९५३ ११३ परियावसह॒ ११०५; २।३२ से ३५.४७; ७अ,६,८.२३,४६, ४६ परिक्जज -प्रिवज्जए १५।७२ ते ७६ परिव -परिवहुद १५।१२,१३ परिवस -परिवपंति १।४६ १२२, २।४५ परिवाइय १३२ परिवायय १३२ प्रिवासिय ११ परिवुड १५१४ परिवृत्त १११६; १२।१३ परिवुसिय २।४.५ परिवृढ ४,२५.२६ परिव्विय -परिव्विए १६७ परिसिड -प्रिसड् ११११३, १२७ परिसा १५२९ परिसाड २।७६, उ।३० ११४ परिसाड -परिसाईिंति १०।१५ -परिसाडिस्संति १०।१५ -परिप्ाडति १५।२७ -परिसाडेषु १०।१५ परिसाञत्ता १५।२७ परिसर ९५२; ३५६ परिसह्‌ १५१६ परिस्सावियाण १।१०४ परिहरित्तए ५।४६ से ४८; ६५४ से ५६ परिहारिय शत से ११ परूढ -परूवेद १५।४२ परोक्छवयण ।२,४ पठेव १।६९.७.८२र८४ पलत १५।२य पलवजाय ११०८ पला २६५, ७५४ पलाखगं २९३ पलाल्मपुज २।३१,३२ पलिडिचिय १।१२८ पलिच्छाय -पलिच्छाएति ११३१ परिच्छिदिय ५।४६ से ४०८; ६।५४ से ५६ पलिमह्‌ -दिपरेजज १३।२,१३, २०,२६.४०,५०, ५७.६६; १४।३, १३,२०.२६.४०, ०,५७.६६ पिक १३।३९६से ७६ पलोय -परोयए पट्छट पव -पवेन्जा २।२६ से २८ पकड -पवेऽजेऽजा ३।८से १३ पवड -पवडेऽज १।५१,८८ २१६.४६.७१; दाथः पार्‌ १।५९८८८; २।१६.,४६.७१; २।४२; ८1२५ १।१३०,१३६१; २।७२; =) २६ १५२२० २३९ से ४२; २1४७; ४{२१,२२, १०।२०; ११८; १२।५ १६।१ ११।५, १२२ पक्डमाण पत्ति पवर्‌ पवा भयारःचूखा पवाय(त) १२६; र, ७२१७६; ८१२, २६.३०; ६१२ १५।१२.१३ ९११०६ १।५५,५८ पवाल पप्रालजाय पद पति पवि २३० -पवििस्सामि १४६ -परविसेऽज १।२,१६, २७,२८२४०,४४ ४५,५४,१५ ८.१६) १२२,१२३ २४५, दे; ५।४२,४२ ४५; ६।४४,४५, ५०,५१,५३ पविसमाण १६३० २४५, ४६; ५।४३; ९४४,५१ पविसितु(उ)काम १, १६.२७.४४; ५१४२; ६1५० १३।७६; १४७६ ४।१६ १६।६ पविसेत्ता पचुददेव पवेदित दन्द-सूची पवेस १।४२,४३, २।४९, ५०; ३।२द, ७1१४ से २१ पचेसे -पवेतेज्जा पठवद्य प्रन्वत्त -पव्वत्तई ७२४ १५।१,३४८ १५।२६ गा०१ पव्वत्त १५।२६ गा०६ पन्वय ३।४८; ८।२६, ३०, ११।६ पव्धयगिह २३४७, ४।.१,२२ पन्वयदु्ग ११।६५ १२।३ पव्वयविदुग्ग ४८ पसंसित १५।२८ पत्िण ३४५ पमु २९०, रेष २५.२६ जअ १५।६६ पसुयं २।४६ पथरुय ८।३४, १५।८ से ११ पटु १६।१२ पटेण १।८२,४३ पटोऽत्ता १।६९ पटोय -पहोएज्ज १६३, २।१८,२१; १२।१६.५३; १४।१६५३ १।६३ -पटोएहि पा -पीएज्ज १।२,५७,१३६ ४।२५ १।२७,१२९१, १४२१५५०; २१३६ से ४२, १५।२९३८ १।३२्‌ पादम पाईण पाड पाउण -पाठणेञ्ज -पाउणेञजा ३१२ ३।२९ पाउणित्तए २1३०,३७ पाएसणा ६ पाञोसिय १५।८५४६ पागार १५८६ पाडिपहिय ३४२४५ ५१.५३ से ५६, भजसे ६९१ पाडिहारिय २।६०,६१; १।४६,४७, द४४, ५५; ७ ११५ पाणान) ११.११ से १७.१६.२१,२३ से २५,३६.४१.४४, ४२,१६,५७.६ से ८१,८४,८५,८७ से ६०,१०५,१२१, १२२३.१५७.१२६. १४१,१४२,१४५, १४६.१५२ २२०, २८.४८; ४२,२३) २४, ६।२६,४७ ७५ १४; १११८ १२१५, १५।१३, ८८,४६दग पाणदप्राण) ११,२,१२ से १७,४०.८२,४२, ५१,६१,८२,०८३; ८८,१०२,११२ १२५; २११ से ७, १६.३१,३२.४७, १७से ९६१,६०.९९, ७१; ३।१,४,५.७. १२, ५११५ से १०, २२.२७ ते ३०.३५, ४५; ६१४ ६,२९१, ११६ पाण्राण) ७१ ०, २६ से ३१,३३ घे २३८,४० से ४५; ८।१से ०८,२२,२३, २५; ९।१ से ७; १०।२से ९१४२८, १३।७६; १४।७६; १५।२३२ गा० १९, १५।४४ से ४७४० पाणग ६।२६ पाणगजाय १।६९,१०१, १०२,१०४.१२६, १५१ से १५४ पाणादवाइय १५।४५, ४६ पाणाइवाय १५।४३,४६ पाणि १।१४३,१४५, १४८६,१५२,१५३; २।७५; ३।४२, ७&; ८।२६ १।१४०, १४०८ से १५५ पादद्धिन्न ४।१६ पामिच्च ११२ से १७, १९४ प्२सेषः ५।५ से १०४६ से ४०, ६।४से ९,५४से ५६; पणे्षणा पामिच्च ०३ द, ६।३ पे ७; १०।४से € पामिच्व -पामिच्चेऽज २।२९; २।१४ पामिच्चय १०।११ पाय(पाद) १।१ २५, ८८,१४६,१५३; २।१०८, १९.४५.४६, ७१.५३.७८; २।६, १५,२०,२१,२७, २४ ३६,४०,५०, ५२, ८।२५ २७, २८; १३।२से १ १, ३६ से ४८; १४।२ से ११,३६ से धल; १५।२८, गाऽत पायपात्र) १।३५,१३५, १३६, ३।६१, ६।१ से ६,११.१३ से १९, २१ से २५.२६से ४२,४६ पायए १।२,१२२,१२६; २।२८; ६।२६; ७२९,३३,२६,४३ पायश्चज्ज ४।२१ आयार पायच्छित्त १५।२५ पायदए १।१२१ पायपुंखण ३।९,११६१; १०।१ पायय १०।२८ पायरासत १५।२६ गा०२ पायव १५।१४ पारय ३।२०,३७ पारिताविय १५।४५४६ पाठदत्ता १५।३,२५ पारव २।२४; ५।२७ १३७६; १४।७६ पाक्वसुत्त १५।२८ पालिता १५।७८ पाल्य १५।४९.५६, ६३,७०,७७ पाव अ१ पव्कम्म २४१,४२, १५।३२ पाविग(य) ५।४८; ६।५६; १५।४५ पावार ५।१४ पाविय १५।४६ पास -पासइ १२।१ से १३; १५।७३ -पासह ३।५४ से ५०८ -पासेज्जा ४५१९ २२ शब्दसूची पाप १५।२८ प्डवाय श्ष्णसेतः गा० १९१,१३ १९१से १७.१९.२१; पासन ४।२९१ २३.२४,०३०३६५ पासमण १५४।३६ २७,४२,४२ से ४७, पातस्तवण १।५१; २।१८, ४६.५०,५२,५३, ३०,७१; ०८२५; ५५१ ०८,६१.६२; १०।१ से २८ ८२से ८४,०७.८६, पासाद(दि)य ४।२०; ६०,६२ से ६४,६६ २२१२० से ६६,१०१,१०२. पाप्ताद ३1४७, ४।२१ १०४,१०६९से ११६, २२ १२४से १२६.१२८, पासादीय १५२८ {३३.१२४से१३६, पासाय ५।२६.३०; १४४से १४७,१५१ १र]र३८) ६।४१; से १५४, २४, ७१३ १०१३ १।४८२,४५, दाटट, पासावचन्चिज्ज १५।२५ ८६,१५०.५२ पासित्ता ६२१९ पिडेषणा १ ११८० से पाह्‌ १८४७.१५५ -पाहामो १५७, ष्ट १७८७६ ११३,१२७ पिढर ११४३ पाहुड रािटसे४्रे पिणिधा पाहुडिय रा -पिणिवेज्ज १३७६; पिंड ११६.४६१२८ १४।७६ पिडणियर १।२४ पित्त १।५१, राशन पिडिय शरारत से ३४, पित्तिय १५।१६ ६५से ७१; १५२८ पिष रष; अष्ट से २४.६५ से ७१ पिप्पखग(य) २६३७६ ११७ पिप्पल ११५७ पिप्पलिचुण्ण १।१०७ पिचित्ता १।३९१ पियकारिणी १५।१८ पियदंसणा १५।२३ प्य १५।१७ पिरिपिरियपद्‌ ११५४ पिलखुपवाल १।१०६ पिल्खुमथु १११११ पिह -पिहेहि ३।२१ प्हिण २।४१,४२्‌ पिह्य ३।१९ प्हििण राय पहिणि १।६६ पिहुणहत्य शर्‌ पिहिय १।६,७.८२,१४४ पीढ शतन २१६ २।२,२; ८।२६; ७७, १०।१३; १५।१८, गाण्य पीढसपि ४।१६ पीय १५।३६ प्डरीय १५।३ पु्गल १५।५ पृच्छ नुच्छेन्ना ३।४५ ११५ पुच्छण १।८९,५द; २।४६ से ५६; २।२, ३, ७१४ से २१ पट ३।४५ पुढपिकाय १।६२,२४१, ४२; १५५२ ५६६; ७५५ १।५१,१०२; ५।२५; ६।२८; ७१०; १०११४ पुढवीकाय १।९१ पुण १1१ पुण्ण ३।१४ पुण्णागवण १०।२७ पूत १।२५,४६.६२, १२११२२१५ २९२,२५.२६ से ४२,५१ से ५५६४ ५।१८; ६१७ ७।&, १६ से २०,४७; १०।१९, १५.१६ फ ११२९६; राणः ३।५१; १।२५; ६1२५, ०।१४; ६।१४ १०।१०,१५ ततर १५।३ पुढविसिला पुढवी पुष्फीव्ध ` १०।२७ पुम १२.१३ पुरओ ३।६,१९,२२,६१; ५।५०; ६।५८; १५।२८ गा० १३ पुरत्य १५।२०.२९ पुरा १,४४,४५,४९,१५९ १२३; २।४५,४६ पुराणग १११२ पुरि ४५; १११९. १८; १२१२.१५ पुरिसंतर ११२ पे १६, १८.२१; ररैसे ५, ६,१९,१२.१५,१७, ५।५ से ९,११.१२; ६।४ से ०,१०,१२; ८।३ पे ७,६.११, १३,१५; ९।२े ७, ६,११,१३.१५; १०।४ से ८,१० पुरिसवयण ४।३,४ पुरे १।२९,२२४२,४३ पुरेकड श्म पुरेकम्मक्य १।६३,६४ पुसेसथुय १।४०,१२२ १२३० आयार पुख्य १५।२८ गा० १२, १५।३२९ गा० १६ पुन्व १।३५५५,५९.५०; ८५,६१,६९५,१२१, १२३; २१६२१ २५.२७ से २०,३०, ४१,४२,४४८४६, ७१; ३।९,११,१३, ४६; ५१ से £ ५।२७; ६।२०८,४५; ०।२५; १५।२६ गा० १,४१ पुव्वकृम्म २।२७ पुव्वामेव १।२५.४६.५१ ५४,५७,९२,९६, १०१,१२२.१२३, १२७.१२३१.१३५. १४३; २४०६२, ६४७०,७१,७३ से ७५; २।१५.२९६ ३४,४०; ५।१०,२२ से २७; ६।१५.९१ से २०८,४४५४५; ७३,६ १५।६९७ १५।६५ १५।२८ गा० ११ पव्वकीलिय पुव्वरय ुव्वं शद गूनो 11 १६१९ द-पिष्याग १।६४२ पनि (114. वरिश्मन्दरप १११२ पर ८६.४१, १२1११ 2 २९.९५.८१; १८।११.००७.९ ८.७१ परिमि 21; धरर पेच्ना ४१८९ गेन्दगिऽय १५।२८ पेय १४२८ पम ५1१५ विममे ५।१५ नेदपाण २६ पिाणु ५।५५.२१.२४ २५.८०.४८२ ८५, ५२.५८ ५६,५८, €१.६६,१२३, १२८, २।२४,६८, २।२२,४२,५६; ८२३ गै २३४, ५।१८ ने ८५४६८, ६।१७,४४,४५,५१, ५६; १६।१६; १२१३ पोकधसाचियकुल १।२३ पोकवर ११।५., १२।२ पेकर्नी ३४ पोटः १।११४ पोयरविभग १।६१८ पोम्गय १1१३५. १५।०८ पोत्ता(ग) %1१,१७ पोन्भक्म्म १२।१ परोर्‌ताय १।११५ पोग्वीय १।९११५ पोर १५।२६.२८ णोमय २1५५, 2२६ पोनरिय १।२१ प्र फनिम १५।१५ फर्म १६२. ४१,१०, १२,१८,२१.२३, ०५.२७.२६.२१, ३३,२५, १६; १८, ३।५५. ८।२२; ५।२५, ६।२५; ०८।१४ ६।१४८) १०।१२ १५; १५।३६ फ्ग(य) १।८८६२।१६; ३।२,३; ७1७ ५२६; ११५, १२२ फचिह ११९ पल्टोवय १०।२७ फणि १।४६ फार ५।१८ पमत्र ८1३७ ; १५।५६ फ़न ४।८ फानवियय १५।७६ फासिना १५।७८ फामिय १५।४६.५६, ६२.७०.७७ फासुय १।५,७.१०.२२९) २३,२५,८१,१००, १०१,१२८,१४१ से १४६.१५९१ ते १५३, २।४८,६१, ९३,६४.७२ से ७४, २।२,३, ५।११ पे १३११७ से २०,३०; ६।१०,१२,१६ से १९.३१३ ७1२८, ३१,२५.२०८.४२, ४५; €।२ फु माहि -फुमेज्ज -फमेजज १।६६ १।६६ १२।४,४१, १४।४,४१ फुमित्ता १८२ १२० ठे वेध -वंधंति २।२२,५१; ३।६१; ५।५५; ६1४५८; ७१६ -वंधतु २२२ -वेधेन्न ३।६,११ वध १६।११ नेवण ६१४; १६।१,१२ वभ १५।२६गा०५ वैभचारि ११२९१; २२५३८ वभचेरवास १५३६ वद्ध ५।२७; १६.११ बद्धीपगसह १९।२ बरु ३।२६; १५।२६,२७ वल ५; ६।२ बलाहग ४1१७ वहि १।२६.४१; २।१२ वहिया १।६,१२ से १६, 4 ८,२२,२ ए,४२, १२८; २।३ से ६ & से १३.१५.१७, धरो से ६,११.४३, ४१; दाथ्से ०,१० १२.५१.५३; अरे मरेसे ७,६.११ से १५; 81३ से ७,६.११ से १५; १०४ से १०; वहिथा शशोदेण व्ह ११३१५ से १७. २४.४८२.५७,६९१४ १२७. १४५.१४७; २।७२६,३७.३६, ४०,७२ से ७४; ३।१ से ५,४५.६०; ४।२६; ५।६,६.१०, २०,४६; ६।५.७, ८,११,१९.५७ १०११७. ८.६; १५।८,२५.१५७७१ यहुखन्जा ४।२३ वहुणिवद्िम ४३२ वहुदेसिय ५३१ से ३४; ६।३२ से ३७ वहूफा्षुय प८।२६से रन वहुज्म १५२८ वहुरज १।६,७,१४४ वहुरय १८२ बहुल १५।५,२९.२९ वहुवयण ४1३१४ बहुसंमूय १।३१ से ३४ आयार"चूला वायर १५।४३ वारस १५।३४.३८ वालं २७२; ३।६,११, २९१४४; ८।२६; १५।११ वासौति १४ वाहा १।६२; ३।२५.२६ ४४,४७ से ४६ बाहाभो ३।१६,४७ वाहि ७२४ १०।९९ बाहिरगं १४६ वाहु श्छ; २१९.४६ ७१; २।२१; ८२५ वित्तिय ५।२ विल १।८३,१३६ नीय(वीजं) १।१,२,४२. ४२,५१,८२,८२) १०२१३२५; २९१. २,१४२१,२२,५७ से ६१,६८,६६; २1१,४,५१७.१२; ५५; ५।२५.२७से ३०,३५; ६।२५ २६ से ३१,३८.४५, ७१०,२६से ३१ ३३ से ३८.४० से ४५; गन्द-मुची बीय(नीज) ८।१,२,१४ २२.२३; ६।१,२. १४ १०।२,३,१२, १४१५९६८ वौयद्वितीय) ४।६०३६।२ वीयग १।१०४ बौयोवय १०।२७ लृ ४।१६.२० वुन्फ -तुज्िप्सतिं १५।२५ बह २ा७२, २1२६ वू -वूा श२,२२,३५, ५१,५.६४८५४८८, ६१,६५१,१२३; २।१६.२४.४५.७२; २।९,११,१३,२२, ८२,४९.६१.५1२७, ६ २८.४५; ८२५ १५।४४.४७,४८, ५१ से ५५५०८से ६२,९५ से ६६) ७२ से ७६ -वेमि १।२०,३०.४१, ४८,६०,८६,१०३; १२०.१२६९,१३७, १५४१; २२६४३; ७७, ३।२३,४६.६२ ६ वेमि ४।१८.३६; ५।४०, ५१; ६४३५६, ७अ२२,५८; ८।२१; ६।१७; १०२९; ११।२०; १२१७ १३१८०) १४।८० चोदि १५२८ गा० ६ बोदव्वं १५।२६ गा० ५ योहं -वोहिति १५।२६ गा० ४,६ न भग १।६६ भंगिय ५।१,१७ मंडग १।३७े ३६; २।१५. भंडभारिय ३।२५ भते ७१, १५।३१.४३, ४६,५०,५७, ६४.७१ मेस -मेज्जा १५१९५ से ६६.७२ से ७६ अगंदल १३।२८ से ३४, ६५ से ७१; १५२८ से ३४.६५ से ७१ १९१ १२६; ७५७; १५।१ से ४,७से २६; १५२६ गा० ६ १५।२७ से ३६, ३८,४०,४१,४२ भगवई ४।११्‌ भगवंत ११२१; २।२५) ३८; ४७, ७५५ मगि(ोणी ।२५६३, ६६,१०१.१२३, १३५.१३६; २६३, ६४, ४।१५; ५।१८, २२से २६; ६।१७, २१ से २७,१५।२१ १५।२२ भज्जिन्जपाण ११२ भनज्जिम ४।३३ भन्निय १५ ते ७.८२ भण -भणेव्ना १।१३६ भतत १।१६.१२२.१२३ २२०; २।१५,२४, ठ, ७१४ १५।२५,२८ गा० १०, १५।२९.३८ १५।२८ ११२२; दार मरते भज्जा भत्ति भयं १२९ १२।३७.७४; ` १४८५२३७. ७४ भय १५।१६९,५०.५४ भयत १।४६,१५५; २३४ से ४२,६७ ५।२१,४७; ६।२०, ५५; ७४५६; ०।२१ भर -१५।२८ गा? १४, भ ९५ शह - भव -भवद (ति) १।२५, १९. २२५,२७, २४ से ४३; २।२५; ६।२६; ७।५० से ५३; १५।४९ से ५३.५६, ६२०७०,७७७८ -भर्वेति १।२२,१२९, ` ९४३,१५०; २।२५, “ ७,२६.२६ ४९, " ४ त; १५।४४ ५१,५०.९५,७२ -विस्सामि ` ७।१ -वेऽ्ना २।७६४८।३० १५।३ खयं - ` १५।३,२५ भवणगिहि २।३६ प ४२; २।४७, ४।२१,२२ भवणवेह १५।६.१ १, २७.४० भवित्ता १५।१ भाय १।१९; १५।२० भायण १६३ से = भायणजाय १।१५३ भारह १५।२ भारिया १,२५.६३; २६४; ५।१८; ६।१७ भवे ३।६९१; ५।९०; ६।५८; १५।१५, २३,३९; १६।१ भाव्णा १५।४४से ठ ५१ से ५५,५८से ६२.६५ से ६९, ७२ से ७६.७८ भवेमाण १५।३६ भास -भासइ १५।४२ -भासंति ४७ -मासावेज्जा १५।१० -भासिञु ` ४७ -भासिस्कंतति ५७ -भारेज्ज ३।५ १,५३ भयार-चूखा -भासेव्जा १ ।१२;४।२, ५,१० से १६.१६ ते ३६.३८; १५।५० भासत १५।५० भावजाय(त) ४।६ भासञ्जाय ४।७ भासमाण २।५१,५३ भासा ३।५१,५३; र, ५,६ से १ ६,१९ से २६.३०८ भासिष्नभाणी ४/६ भातिय २।९ भासुर १५।२८ गा ९ द -भिद॑ति १।८३ -मिर्दिपु १।५३ -भिदिस्संति १।०३ -भिदेज्ज २।२९ १।४६.१३८, १३६ भिक्छायरिया १।४६ भिखु १।१४ ७१६ सेर १,२३,२४५२६, २७,२९.३०.३२से २४,३६ से ४४ ४६ से ४६,५२ से ५६,५८, शन्द-सुची भिक्छु १।६० से ६२, ८२ मे ६६.१०१ मे १२०,१२२ से १२६, १३२ से १४०, १४४ से १४७,१५१ से १५४,१५६; २।१,२,७,८,१०, १२,१४,१९१८ मे ३२.४३ से ४६.४५ से ६६,६८.७७, ३।२,३,६ ते १६, २२,२३,२७से २६, ३१.३३ से ३६.३५, ४०,४१,४२,४५ ने ६२; ४।१,६,६ से ३६; ५।१.४े १०, १२,१८ से २०,२७ ने ३८.४८० मे ४४, ४६.८८ से ५१ ९।१,२ से ६,६१. १३ने १६२९ ४१८३ से ८६४८, ५० ते ५२५४५६३ से भ<; ७३,१० मे २२२५ ४६.४८, ५० ५५.५८ मिक्रु ८।१,२,७८,१०, १२,१४.१९.२२ मे २१, ६।१,२,७८, १०,१२,१८,१७, १०१ ते ९११ पे २६; ११।१ पे २०; १२।१ ते १७; १५।७२ मे ७६; १६।२.७य भिक्लृणी १।१४बे १७, १६ २१.२३.२४, २६.२७.२०,३६ मै ४८२,४८।,४६,५०, ५२५५, मे ६२,८२ म ८ ८६,८७,८६,९०, ६२ से ४६६ १८,६० भिववु्णी १२४ भिच्छडग १५।१३ भित्ति ५।२३७; ६४०; ७१२; १५।२य८्‌ भिन्नदु्व २९९ भिन्मितभाग १५।२ भिति -भिकिगिज्ज १२३।५,२१, २०,४२,५८,६७; १४।५,२१,२३०२ ५५८,६७ भिद्या (य) १।५३; १०।१७ भिस १११४ भिसमाण १५।२८ भिमुणार १।११४ भिसिभिसित १५।२८ पितिय २।४६; ३२४ ७३.२४ भीम १५1१६ भीय २३।५९.६०; भाषत, ४९५ ६।५६,५७ भीर १५।५४ भीर १५।५४ भुज मुनह. - १५७५१२७. १३६ -सुजावेति १५१३ -भूजे ११२५ भुजेऽज १।२,५७,१३६ -भृजेज्जा १२९,१२६, १२३८,१३९; १५।५६ -मुजेज्जासि १९।२४ भुजमाण १।२५.५७.६३ भुजवेत्ता १५।१३ भुजिय चर्‌ भुजंगम १६६ मुज्जतर २।१४ भुज्जिय १।६,७,१४४ भुज्जो २३२,२४ भूत॒ १३१; १५३६ भुया १६।१९ मु ओोवधाइय १५।४५.४६ भूगो(तो)वघाद्या ४।१००१२.१४.२१ २३,२५,२७.२६, ३१.३२.३५ भुमिमाग १५२९ ममी ६४७; ७€ भृय(त) १।१२ से १७ पण; २३ से ७,१९, ४९.७१; ४२२; ५।५ से १९; आयारचूका ६।४ से ९२१; ८।३ से ८२५ ६२से७ः १०४ से 8; १२३७६; १८०७६; १५३०६, २३२ गा०१९, १५।४०; मूप(त) ८४,४७,४८ भूयमह्‌ १।२४ भूसण १५।२८ मेद(य) १५९५ से ६६, ७२ से ७५ मेदकृर १५।४५,४६ मेयणकरी ५।१०,१२, १४,२१.२३,२५, २७.२२,२१.३२,३५ मेर १५।१६ मेरि १५।२८ गा० १६ भो १३२ मोद १५।४०.५९१६५८ भोगकरुल १२३ भोच्चा १४६१२५१ १३२.१३५ भोत्तएं १।२,१२१,१२३, १३६, २२८ दरद; ७२६२६, ३३,३६,४०.४१ श्द-सुची भोयण ११३९) ९२९६; १५१४८०५६,६८ मोयणजात(य) ९।२५ ९६२,१२५.१२७, १३१ से १३५.१३८, १२६.१४३ ¶्ध्५्से १६६; २।२८ स्व मउड ९३५७६; १४७९ १५।२८, शभारप ग1०६ परय ४1२७ मंच ९८७ २९८; ५1३८; ६४१; ७।१३; १०।१३ १५।९४ म॑डिय १११९४ १२।१३ परत २५५ ७।२० मत -मंतिति २।५५ ७९० मयु ९,६.७.०२,१४४ धु ९।१११ भस १।४६११२८११२४, १३५४२९६ ११४२४ १1१२१. पंसादिय शरसे छ२० १५१२९०८ १।२,४२.४३ १९१,८२.८३१ ०२४ १३५; २।१.२,३१; ३२.५७ से ६११९०, ९€; ३।१,५) ११२८,२९.३५; ६।२६ से ३१.३८ ७अ१०.२६ से ३१ ३३ से ३८४० से ष्‌; ८।१ २.२२ २३; ६१२ १०१२२ १८२८ पमरककडजुढ ११।१२ ९२६ सनकडदूण्किरण ११।९१; १२१८ -परगल(हि ५२२ -मक्खेऽज २।२९; ९ ३२.३५; १३५ १६।२१५३० ४२, ५१.५८.६७; १४५ १४.२१.२० ४२ ५९ ५८.६७ -मवदेति २।५२.७९७ १२५ २।५१ <२२९ ममा ९४२४ २१, ८१.४०४ से ६०; परट८,६६) ६।५६.५७) १५।३६ ३।१६ म्गसिर १५१२६.२६ प्छ १।१२४,१२४ मच्यल शार १।९१३१५ मच्छादिय १६२४३ पञ्ज ११४६०१९२ पञ्जणघाई १५।१४ मठजावं -प्ज्जावेई ९५।२८ पज्जावित्ता १५।२८ मञ्ज २।७२; प२६, १५।२९५ १५१२६ गा०५ परज्खमञ्म २१५०; ७९१; १५१२६ मज्मतो २।१९ मरकयार ९५।२८ म मल्किम १९१८२१२१ मद्धियखाणिया १०} मद्या ११६७.६८.६ ६९; ३।७.१३,२ ४०) ९नार्षदेष १२५ मह्टियाकड १०।१४ मह्ियापाय ६।१,१६,१७ मह २१०, ५।१२, ६९; ८१०; ६।१०; १०1११ मडंव १।२०८,२४,१२२, २९; ३।२,२,४५, ५७.५८; भर्‌; २1१ मडयचेद्य १०।९३ पडयडाहं १०।२३ मडयथूभिय १०।२३ सण २।२३,९४; ३।२९२्‌, २६.६१; ५।५०; ६।५८; १५।३३, २४,३७.४२,४५, १०,५७, ६४,७१ मणपन्नवणाण ९५।६३ मणि २।२४, ५।२७,६२ १५।१४,२०८ १५।२८ ग7० ११ मणि(पाय) ६१३ सणिकम्म १२१ मणिर्व॑वण ६१४ मणुष्ण(नन) १।५७.१३१ १३०,१२३६. हार , , १५।७२्‌ से ७६ मणुय १५।९६ मणुयपरिसां १५।३२.३६ मणुस्स १।५२; २।४५; ५४,५९;४।२५.२६, १५।३२ गा० १८, शा १५।३९ १७.७२ १५।६९ मगोमाणसिय मणोसिरा मणोह्र मण्ण -मण्णेज्जासि ६।१९७; १३८०; १४।८९ मण्ण(न्न)पाण १४से ७,१२ घे १५,२१से २५,३६,४१,६३ से ८५,८७८८,६० से १०२,१०४,१०६से ११६,१२९,१२३. १२८,१३३से १३६. १४१ से १४६.१५१ से १५४; २।४०,५७ से ६१.६४; ५।५ से १०,१२ से १५.१७ से २०.२२ से २५, रल से३०, ध्ये १४,१६ से १९, २१ पे २६२९ से २३९१.४६; मायार^चूला मण्ण(न्नोप्ाण जरसे ३१.२३ से ३८,४० से ४५; ०८।१, €।१,२ १।२२.६२ से ५१, १०२,१४१से १५३, १४८.१४९; २।४६; ३।२० 1४ " ७३.२४ सत्त सत्तग(य) मन्त -मन्न्‌द्‌ ५1४८; ६।५६ मय २४५ मरण श्भार्‌नगा०७ मरु १६।८ मलय ५।१४ मल्लं १५।२० मल्लदाम १५।२८ गा०७ मसग राजद; ५३० मह॒ २।४१,४२, ३।२,३, २९.५९.६० ५।१४ - ४०,४९; ६१३, १४.५६.१५७; ११।१४; १२११; १५।९,१०,२८१४० महरिह १५।२न गा० ° महल्छ , ४।२०८ ते.३० राब्द-मुचो पहट्लिया १।२६;०1१२; ८1१२, ६।१२ महन्वय ४।२८, १५।४२, ४३,८६,५०,५६१ ५७,६३,६४७०; ७१,७०.७८; १६१६ महागुरु १६।६ महामह १२४ महामुणि १६।४ महालय १।४६; २।२३६, ५६१६०; ४।३५; प४८,४६; ६1५६, ५७ महावन्जक्रिरिया २।३६ पहावाय १1४०; ५४५, ६।५३ महाप्जय १५३ महाविदेह १५।२५ पहाविमाण १५।३ महावीर १५।१,३,४.७ से ३६.३८.४० से ४२ महापमुद्‌ १६।१० पटासव १९१७१२१४ महासावन्जकिरिया २१४१ महिङ्िय १५।२६ गा०४ महिय १४०; ५।४१; ६।५३ महिस १५२, उ४४े ५९; ४।२५,२६ महिसकरण १०।१८ महिसजुद्ध ११।१२ १२६ महिसद्राणकरण ११।११, श्राप महु १।४६,११२ महुमेहुणि ४१९ मुर ११३८ ४।३७ महुस्सव १९१८ मा १।५७.६३ माइ ४।१२,१४ माद्टाण १३३४६०४६, ५७,१२३,१२५ से १२७,१३० से१३२, १३८; ३।४०, ५।४७; ६१११ माण ४१.२८ माणवं ४।१९.२०; १६।११ माणिक्क १५।१२,१३ माणुम्माणियदराण ११।१४, १२।९११ माणुत ९५।२८ गा०१२; १४र४,०७,६४ माणुसरवेण १०११८ १२७ माणुस्सग १५१५ मातुक्गिपाणग १।१०४ माया ४।१,३८ मारणंतिय १५२५ मार १।८८; रषयः ५1३८; ६।४१; ७१३; १०।१२, १५।२८ गा० £ १५।२८ १५१२८ १।८७ से ८६ ३।४,५; ५।२२, ६1२९; १५।३.५.८.२६.२६ मास(माप) १०।१६ मासिय १।२१ माहण ११६१७.२१, २४,४२,४२,२४९, १५५८११४७) १५४; २।७,८,३६, ३७३६.४०, ४६४ ३।२ ते ४; ५1६, १०.२०; धा८,६, १६; ७२४ ८।७, ठ; &1७.= १० £: १५।३,६,१द; १६1६ माला पालिणीय भालोहड मास(भास) १२ पराहणी १५।३,६ मिभो{तो)गगह १५।५८, ६९ मिण २४६ ; ४।२५,२६ मिच्छा ११५५; २६६; ५।२१; ६।२०; ७1५६; ०।२१ मित्त १५।१२३,३४ मिरियचुण्ण १।१०७ मिरिया ११०७ मिलक २३।८,६; १११८; १२।१४ मिहुण १५।२८ मीप॒जाय १।२९ मुडंगसद्‌ ११।१ मुंड १५।१ मुगुदमह १।२४ मुग्ग १०।१६ श्‌ -मुच्चिस्संति १५।२५ मुच्छिय १।१०५ मुज्फ "मुरमेन्जा ११।१६; १२।१६; १५।७२ से ७६ मुञ्छमाण १५।७२ सऽ मुष्टि १1३५ मुणि १६५.१०.११ मुत्तजाख १५।२८ मुत्तदाम १५।२८ मुत्तावली २।२४; ५।२७ मृत्ताहल १५।२८ मुत्ति १५।३९ मुद्दियापाणग १।१०४ मल्ल ६।१३ मुसा १५।५० मुसावाद ५ २,१४ मुसावाय १।५०.५६ मुह १।६६; २१८;३।१८ मुहुत्त॒ १५।२९,३५.३८ मुहत्तगा॒ ५।४६,४७, ६।२६,५४५५५ मूय ४।१६ मूल 1. १।२५; ६।२५; ८।१४; ९।१४ १०१२११५; १३।७८; १२८८ मूलजाय १।१९५ मृल्वीय ११९१५ मूल्ग १०।२९६ मूरगक्च्च १०।२६ मेरा १९२६ ३।१४ शरा; ६।३ मेकश्पदण््राण १०।१६ आयार-चूखा मेहुण १।१२१; २।२५, रे; १५।६४७०; १६।६ मेहुणवम्म १।३२;२।५५; ७२० मोत्ति १५।३६ मोत्तिय २२४; ५।२७, १५।१२,१३ मोय २।२७ मोरग २।६३,६५; ७५४ मोष ५१४ १५२० गा०९ मोसा ४।६,१०; १५।५१ से ५१ मोहत॒ ११।१०८; १२१५ ख य १।२ च रज्ज -रज्जेज्जा ११1१९; १२१६; १५।७२ से ७६ रज्जमाण १५।७२से ७६ रज्जुया २।१७,१८ रत्त॒ ५।१२,४९१; ६&।6€; १५।२य८ रमंत॒ ११।१८ १२१५ शब्द-सुचौ रस्म १५।१४,२८ गा०९१६ रय(रञस्‌ ) १।३५५४०, १।४५, ६1४, ४५.५३ रय(रत्त) २।४४ रय -रणएज्ज १३।४,४१; १४।४.४१ रयण १५।२६.२८ १५२व्गा० ८,११ रयणवास १५।१० रयणावली २२४ ५।२७ रयणी ४।१६ १५।१०, १९.२६ गस ४२३७, १५।१५.६८) ७५ रसमत ४८ रसय १।६ रसवती ४२८ रिय १५७, ५२४ रसेसि १।६१ रह २।४२३.५६, ११।१७. १२।९४ रहजोग्ग टोर्‌७ रहस्सिय १।३२ २५५, ७1२०५ १७ रहुकम्म १५।३६ राइ १।४१, १५।६ रादंदिय १५५८ राईण्णक्ुल १।२३ राओ १३२, २।३०,४५, ४६,७१; ८२५ राग १५।७२ से ७६ रातिणिय ३।५२,५३ राय(रात्र) २।४,५ राय (राजन्‌ ) ४।१६ रायसि ४।१९ रायपेसिय १।४१ रायवसट्िय १४१ रायपंसारिय ३।६९१ ५५०; ६।५८ रायहाणी १२८३४ १२२; २।१, ३२, ३,४५.५७८, अर, ठार, ११७, १२।४ रायोग्गह ७५७ रीय -रीएज्जा ३।६,२२, ३८ से ३६ रौयपाण २।२३५.३६ रीरियपाय ६११३ रीरियवघण ६।१४ १२९ रुभ -९भंति २।२२.५९१; ३।६१; ५।५०; ६।५८; ७।१६ -रुभतु २२२ -रभेज्ज ३।६,११ सख २।४२,४७५६,६०; ४।२९,२२,.२६.३०, २३७, ५।४८,४६; ६।५६,५७, १५]३८ स्ख गिह 31४९; ४।२१, २२ स्ेखपह १।२४ रुच -रुचद १।२९.३०; ६।३०,३९१ -रचिति १।८३ -खचिसु ११८३ -रुचिस्संति १।८३ रुहुषह १।२४ रुप्प 413 स्स्‌ ५२८ ङ्द ४३४ र्व ४।१६ से २२,३२, २३७, १२।१ ने १३; १५।१५.२७.२८ १५।२८ गशा०८, १५।७३ १३० ङूवग ११।२८ .. रूतरसत्तिक्कय . -१२ रोदज्ज॑त ५।२६.,३०; ६।३०,३१ रोग २२९९१ रोम १३।२७.७४; १४।३७.७४ १५।२८ गा० १२ रोय १।२३१ रोयमाण २।३६.३७, ३६ से ४२ च्छ लनूस १५।२८ सर्वेण *१५।९५.२८,२६ ठद्िय - २४६; उर; ७२२४ छत्तियसद्‌ ११।३ स्म्‌. १ -लमिस्सामि १४६, ५।४८; ६।५६ -छभेजजा १।३२,२।२५ लभित्ता १।१२०,१२६ कभिय धार्‌ ख्या. २१४२; १५।२८ छवि - १५।३६ लघुणकंद १।११७ लभुणचोयग १११७ रषुणनाल खयुणमत्त लमुणवण ख्य १।११५७ १।११७ १।११७ २५६ ६१ ४।२७ ४२३ ६१६१७ ३८ से १३ १।१,४ से ७,१२ से १८.२१ से २५, ३६,४१,६३ सेर, ८५,८७ से १०२, १०४.१०६ से ११९, १२१,१२३,१२८, १३३ से १३६,१४१ से १४६,१५१ से १५४; २।४०,५७से ६१,६३ से ६६; ५।५ से १५,१७से २०,२२ से २५,२८ से ३०, ६&।४से १४, १६ से १६.२१ से २६.२६ से ३९.४६; ७अर२६से ३१.३३से ३८,४० से ४५,५४, , ५५; ८1१; ६1१.२ का १५२८ लाइम लाउयपाय लाढ लाम बायार-चृरा लवयकरण १०।१० रवयजुद्ध ११।१२ १२।६ ऊवयदराणकरण ११११; १२।८ दिक्खा १३।३०.७५; १४।२८,७५ लिति २।१०; ०१०, ६।१०; १०।११ लुक्ख १५७ ट्त -रूतेज्ज १८८; २।१९., ४९,७१ य ९२१; ४२३७; ७१२ लेय १।५१.८२.८२; ५।२३१; ६1२८०४०; ७१०; १०।१४ लेवेण रा्घ्णररणय लेस -लेसेज्ज ८०; २१६५ ४६,७१, ०२ १५।४४४७१४२८ ठलेषा १५।२८ गा० १० ठेस्सा १।३६; १४२ खग १६।७ छोगंतिय १५।९६ गा०५४ गैन्द-सुची नोण १७३.७४,८३, १३६ लोद्ध २।२१,५३) ५।२२, ३१,३३; ६।२२३, ३३,२६; ७1१८, २।६,१५.२२,२३१, ४८२,५२,५६.६८, १४।२,१५.२२,२१, ४२,१५ २,५६.६२८ कोभ ४।१,२८, ८।२० १५।५३ १५।५२३ १५।५३ ८।८, १५३२ गा० १६ लोक) १।४६, य, १५।३९.४१; १६१२ खोय(न्ेच) ६५।३०,६२ लोभणय रोमि खोप खोय(ग) रेह १५।५० समोहिय ८।३७ ल्हमुग घ ५ न्ह्पुणरद मे ४ ल्हमुगनोय 1 अटःमेषश्‌ न्टमृणमान्दयं ८ ४३य६४ न्हेमुणत्नं १८२३६ €।४५८; १५।४६,५० १३।७, १४८७ चदसं १५।२२ वेज -वदति शशरास्द व दित्ता १५।२८ वदिय १।६२; ३।६१; ५।५०; ६।५२ वेत्त २1१६ वसद ११४८ व्वेकत १५।१,२ ६।२१,२२ येग्ग १५।१६.द८दद कग्ध्‌ ११२; २५६, ५।१५ यच्न १३६ वच्न्नि धरर वच्नस्ति २1२. यञ्य{्रिमि २३६ १३१ वुञफ़ २५ र श न्वरे १६१६ यटरमाण १।२८. ०।२६. १५।५.२६ यटूधरकरण १८११८ वटव १११२, १२६ वद्द्णङरण्‌ {{१4; [कृ ५४१८८ ५५ ~+८। (4१5 भ # सर दरः {६ = १२२ चणसंड १०।२०, ११।०; १२।५; १५।२८ गा० १४ वणस्सदर १।९१ तेणस्तिदकार्य १।६७; २।४१,४२, १५१४२ नणिमग १५।१३ वणीमय(य) १।१६,१७, २१,२४,४२,४३, ४६, १ ४५७, १५४) २।५,८,२६.२७, ३६.४०, २।२से ५, ५।६.१०,२०, ६।८, ६,१६; ८७८, ६1७.४, १०।८,९ वण्ण(स्न) २।२१,५३, ४1१६) ५।२३,२९१, ३३; ६।२३,२२,२६, ७ १८,१२०१५.२२ २१,४२,५२,५६, ६८; १५१५०२२ २१,४३,५२.५६, ६८; १५।२८ ंष्णपंत चठ; ४८, ६।५६ ११७५१७६ १।३२ वण्णिया वतिमिस्स चत्त -वतेज्ज १।८०८; २।१६, ४६,७१; =ा२४; १५।४४.४७ ४८ दा८्से १३ २।३०८; ३१६५१९१, ६१, ५।१ से १०, १२,१४ से २०.२२से ३८,४१,४६से ०; १५।२८ गा० & ५।२७ ५।४१ १३।३७,७४; १४।३७.७४ वत्थेसणां ५ वद -वदति २।३० -वदिस्सामि ४४ -वदेति ५।४७, ६।५५ -वदेउजा १।५७,१०१, ३।२०,२४,२५.४५ १३,५४,१५७,५८, ६१; ५।२२,४६, ४८,१०; &२१ ४,५६.५८ १।२५.५७,१०१ २३० वत्तिय वल्थ वलत्थत वत्थधारि वत्यरोम वदत्‌ वदित्तए आयार-चूला वद्धकम्सेत २।३६े ४२; ३1४७; ४५२१,२२ वद्धमाण १५।३,१३.१६ वृप्पं १।५०; २।४१,४७, ४।२१,२२; ११५; १२२९ वम -वमेज्ज वय -वएज्जा १।५७,६२, १२७,१३०,१३१, १५४, २।६७; ३१७ से १६.२९,२६४४ ११.५५.५९६; ४४ १२से १६,१६ बे ३९; ५२१ से २४ ६।२० से २६; ७५६, ८।२१,३० १।१३९ वंति ४।१ -वथह १।४६ वय(वचस्‌) १५।४२,५०, ५७,६४,७१ वयत १।६३.१२३११२५, १३०,१३५; २९६ १२२ से ९४ ६।२१ से २६ १।३१ -वेयद्‌ गन्द-सूचो वयण १५।३२ गा० १८ १५।२४,२३७११ से भ्‌ वधम्‌ते १।१२१, २।२५, {4 वथरामय १५।२१ वर १५।२८, २८ गा ८,६।,१६ वरग १।१४ वल्य ३।१६,४०८ वल्लो २३४२ ववरोवं -ववरोवेऽजं १।७४; २।१६ से ४६.७१, ठार वेस -वसंति १।१२७,१३६ -व्तामो ७।४,६,०,२३, २५,२२,३९.४६१४६ -वस्सिस्सामो २।४७ चसभकरण १०।१८ चसमजुद्ध ११।१२ १२६ वसमटुाणक्ररण ११।११ १२।८ चसमाण १।४६,१२२, १३८,१३६. ` २।७०, नार्य वसा २।२१,५२, ६२२, २२,२५, ७१७; १३।५,१४,२१,२०. ४२,५१,५८,६७, १४।५.१४,२१,३०; ४२,११,५८,६७ वसित्ता १५।२६ वमु ४।१२,१४ वह ३।२६.४०,४४; ११।१६; १२।१३ वह -वहति १५।२म, गा० १२,१३ न्वा ११.२९ दाहय ११।१५ १२११ वाउ १।६१ वाउकाय २।४१.४२ १५१६२ चाड २।४९।५६१६५, ५[४८,४६, ६।५६.५७ वाणमतर १५।६.११; २७.४० वाणर १५२८ वात १५।२८ वाम १५।३०.२२९ वाय(वाच्‌) २।२२; ४१ १३३ वाय -वायति १५।२८ गशा० १७ वाथ(बात) १६।२ वायत १११८ १२।१५ वायण १।४२,४३; २।४६ से ५६ २।२,३ अश४से २१ वायणिस्रग ९।५५,०८।२६ वायस १।६१ वाया १६।२ वाल १३।३७.७४ १४।३७.७४ वार्ग ११०४ वाची ११५; १२२ वाक्च -वापिपु १५१० वास(वपं) १।४०; ३४, ५,१३, ४१६; ५।४५; ६।५३, १५।३.५.२५,२६ २४,२८ वाघमाण १।४०, ५।४५; ६।५२ वासावास ३।१९से३ वासावासिय २।३४,३५ वासि १५।२७ २२४ वासि १५४५ वासिदुभगोत्त १५।१८ वाह -वहिहि ३।१९ वाहूण १५।२१६ वाहिमि ४।२७ विभा(बल १।३२,५२, २।३०,४५,४६,७१; २५६; ८२१ विदक्कंत ५।९, १५।३८ विट) ५६।५,११ विंडज -विडंजति ४।१ विउल ११।१८, १२१५; १५१३ विन्व -विउन्वति(इ) १५।२८ विञन्विता २८ वरिस -विऽपेज्जा ३। ६,५६, ६०; ५। ४८,४६, ६।५६.५७ विरउत्िर -विअसिरे १६।१ वेकुजिय 31४० वरग _ १५२, ३।५६ नेगजो(तो)दय ३।३२, २९; ६।४९ दिगृुमिथ विगिच -विभिचेज्ज ३।२९ विगिचिष १।२ विगोव -विगोवेत्ि विगोत्रयमाण १।११६ १५।१३ १११८, १२१५ ग्गोवित्ता १५।१३.२६ विचिगिच्छं १३६ विचित्त १५।२८ २८।२८ गा० ११ विच्छ -विच्छड्डति १५।१३ विच्छह्धिता १५१३ विच्छड्धियमाग १११८, १२।१५ विच्छ्ञत्ता १५।२६ विन्विद -विच््छिदेन्ज ९।१६, १३।२९,३३,६३, ७२ १४५२६.३२, ६२,७० १२।२७, २४,६४,७१; १८।२७.२४,६४.७१ १५।२९,३८ विच्छिदित्ता विजय भायार विज्ज ॥ -विज्जड १६१; विग्जाहूर १५२६ विज्युदेव ०1९६ विन्फ़ाव विज्फावेतु २।२३ -विम्फावेन्य २।२३ विडिममाला ४।२० विणिग्घाय १५।७२ ते ७६ विणिदुणिय २६९. ८1२३ विणियत्त १५।१५ विणिव्वतः १५।२६ विगीयतण्हू १६।५ विण्णव विष्णवेति २५५; ७२०९ विण्णाय ३।१, १५१५ वितत १११, १५।२० गा०१७ वित्त -वित्तसेज्ज २।४६ वित्ति १,५२.४२ २।२,३ वित्यार ५।२ विदलङृड १।५ विदेह . १५।२६ शब्द-सुची विदेहजन्व १५।२६ विदेहदिण्णा १५।१८,२६ विदेहमुमाल १५।२६ विदढत्य १११०२ चिन्नु १६।१.२ विपंचीतद्‌ ११२ विपरिक्कप ०।१७े २० विपरिणामघम्भ ४८ विपुर १५।१२,१३ विप्यजहित्ता १५।२५ विप्पसुक्करं १५।२०गा०७ विप्परियासियभुय ३२ विप्पव्तिय ५।४६.४७ ६५४५५ विफालिय ३।४० विभंग {५।६५ से ६६, ७२ ते ७६ विमा -विमाड ४।१६ विभूतिय रारणः १६।१८; १२।१५ विमाण्‌ १५।२६ गा० ५ १५।२७.२८ विमाणवासि १५।६,१९१, २७.४० निमृ -विमुच्चद्‌ १६।६.१२ विमुक्क शद विमोक्ख १६।११ वियदटत्तए २।२८,२९ वियड़ १।६३, २।१०,२१, १४, ५।२४,२२०३४ ३४) ६।२४३४२७, ७१९, १३।७,१६., २३,२२.४४,५३ ६०,६€; १४।७,१६ २३.,३२,४४.५३, ६०,६६ वियत १५।२९,२३.२० वियागेर -वियागरेज्ज २।५१.५३ -वियागर २४४ विधागरेमाण २।४४; २५१.५३ विधारममि शदेन; ४०, ३।२,३. ५।४३, ८५; ९।५१.५३ विथोस विधोपेज्जे ३।२२,२६, ४४५६ से ६९ ५।८८,४६; 57 ६।४७ २४ -चियोेज्जा वियालियिं १३५ विरदय विर विराल १५।२८ १।१३२ १५२; ३५६ विराचिया ११०६ विष्डरज्ज >३।१०,११; १९१।१५; १२११२ विर्व १।२४,१४३; २।२८,२६,४८१.४२; ३।८,९, २४.४२.५५; ४२७.२८; ५।१४ ६,१३.१४. १११ से १८; १२१ से १६ विग -विस्पज्ज विरि -विछपेज्न १३।८,१७, २४,२३२.४५.५४ ६१,६६; शटा १७,२४२२.४८५ ४,६१,६६ विलठेवणजाय १३।८,१७, २४२२०४५५ ४ ६१,६६; १४५-,१७, २४.२२,४५,५६, ६१,६६ १।११० ५११ ६।१४ विल्छसरडय दिकग्ध १३६ वरिवन्न (एण) ११३२; भरट: ६1५३ धिविम ४१ चिवेनभाति ४२८ विश्रमक्लणद्राण १०।१६ १२६५ विुज् -विपन्कः विनु्भतं १५।२८ गा १६। २२१ -चिक्षोहेञ्ज 31२९; २३।१०.११.२४ 2५, २६०२८,४५, ६४.७१ ते ७३.७५; १४।१०.११.२४ ते २६.२३ ८,४७.४ ७१ मे ७३.७१ -विषोदेहि ५।२५; 134 वि्नोषित्ता ५२५२५ विसो १२ विस्साण -चिस्ताणेति १५।१३ रिम्प्राणित्ता १५।१२, द्विम शार विहर्ड १५।१५.३६. ३६ चिह्रेति ११५५; २1६७, ५।२६१, ६।२०; 9४६; विहरिन्ताशन २४; लयते दतर, ७५५४.५५; ८1३० विह्रमाण शशदेछदेय आयार"चल विहार गण्दः इठसे १३; १५३६३२८ विहारमूमि १६.३०, ४०; २।२, ३; ¶।४२, ४५; ६।५१,५३ विहीय १५।२८ गा० १७ विहुवण १।६६ विड(नि)त्कन २।४५; ११।३.५,८ वीणासु ११२ वीतिक्केममाण १५।२७ वीयं -वीवंति १५२८ गा० ११ चीरः १५।२६ गा० ६ वीक्ष १५।३ वीहि १०।१९ वुक्कते १।१०० वु -वुच्वेड {६।१०,११ तट ४१७ वुत्त {1१२१; रारणत वेडच्विय १५२८ वेग १५।२७ वेजयंनिय ६।१८ मेदि १२१; शध्रारन वेणुसद्‌ शश श्दपूषो देत्तग वेद -ठेदेपि १३।७९; १५१७६ ९।११६ वेद(थोणा १३७६; १४७६ नेयावत्त १५।२८ वेर ३।१०.११, ११।१५; १२।१२ वेसण १५।४६.५६ ६३,७०.७७ टय १११८ वेरीवियं ४३१ ववेद ४।१६ वेसपण १५।२६ गा० ३; १५२६ वे्िव १।२३ वेतियकुल १२३ वेहाणसुद्राण १०।१६ वेम १२१ वहि २।३१ वोक्केतं १५।१२ वोक्कस -वोक्कताहि ३।१७ -वोक्कसिस्सामो २।१८ वोक्कसितए ३।१८ वेच्छिष्णि (न्न) शः २।३२; ७।२८,२३१, २५,३८.८२०४५ 4 वोज्म १५।२८ वसह सोर०; १५।३४े ३६ वोतिर "वोतिरामि शार ५०,५७.६४०७१ "वोसिरेज्जा १०।२ से रथं ५५ १६।३ =| सत्‌) १।२०,५१, १०४,१९१ स(घ) २।२०,३१९,४६. ६८; ५।२५,२५१ ६।२६; ७१४ ८।३०; १११२८, २८ गाण्यः १५।२९.३६ स(स्व) 4 सुदं १1६ सके -सुंकति २३० संकम्‌ -संकमेज्जा ३५६,६०; ५।४८,४६; ५९.५७ १२७ सकाम -संकामेज्ज १।८० २।१६.४६.७१; यो२५ संकरलि श४६ संब १५।१२,१३.१८ गा० १६ घद(पाय) ६1१३ पंवेधण ९६1१४ संहि १।२६ते २९ ३१ ते २५.४२.४३ संसद्‌ १९।४ पवां १३२ पंखोभिय १२५ कगपिय ‰।१८ संमाप श्र संगारयर्ण ५।२९; ६९१ संच -संघट्टञ्ज १८८ २।१६.४६,७१) पार १३१ पवपण ४२४ ५९ संवस -संचपेज्ज १८०२ १६, ४९७१; ८।२५ १३४ संघाड(ति)म १२१ १५।२८ संघादी ५।३ संचाय -संचाएड -संचाएऽजा -संचाएति -पंचाएसि संचालिय संचिञ्जमाण संजम संजय १।३२ १।३ १।१३६ ३1१८ १।२३५ १।३२ १५१३६ १।२,३,२६.३२, ३५.४५.५०,५२, ५२३,५६.६१,१२१, १३५११३६; २।२, ६,११ से १७.२५, ३२,३८,४५,४६, ६९,७२ तै ७६; २।१,३,५,६,७, ६,११,१३११५.२२, २६ से २०,९३०,३२ से ३६.३६ घे ४४, ४७,४६,५० ते ६१; ४।२,१५,२८; ५।३६, ४८ से ५०; ६४२, ४,४५.५६ सेधः संजय ७३; ०८।२,६,१३, १५.२६.२९; €।६, ११.१३.१५; १०।२८; १६।२ संणिविखत्त ११४६ संणिव् ३।५६ संणिवेसं १५।२६ संणिर्हिय ३।५५ संठ्वं -पंतवेज्ज १२।३७,७४; १४।२३७,७४ संत १।१,४ से ७,१२से १८,२१ से २५,२६, ४१,६३ से पर ८७,१०२,१०४, १०६ से ११६,१२९, १२३,१२८,१३३४ १३६,१४१ से १४६, १५१ से १५४ २।३६ से ४२.४४; ४८,५७ से ६१,६३, ६४; ३।६ से =; ५।५ से १२,१४, १५.१७ से २०.२२ २५.२८ से ३०, ४६से धट; ६।४से १४,१६ पे १६, भायार-चूला संत ६।२१ से २६.२६ मे ३१,४२३,४६,५४ से ५९; भ२६ से ३१, ३३ से ३८,४० से ४५; ८१ €।१,२; १५।२६ संताण १।२,५१ संताणग(थ) १।४२.८३; २।१,२,३१,३२; ५७ ६१,६०.६६; ३।१,४.५; ५।ए०८से ३०,३५; ६।२९ से ३१,३८; ७२६ मे ३१.३३ से ३५,४० पे ४५; ८।१,२,२२ २३; ९।१.२- १०।२,३,१४२८ ३।१४,२२, ३४ से ३६ संति(ज) १५।६५से ६६, ७२ से ७६ संतिकम्भ॑त २।३६से ४२; 21४७; ४।२१,२२ संतिय ५।२६ ६२७ संथड १।४०,६१; ५।४५; ९६।५३ संतारिम शब्द-सूची संथर -संथरेज्जा १।२६ २।१२.७२; ८1१२, २६; ६१२ सथरमाण रासे १३ संथरेता २।७३; ८।२७ संयार २ा४१,६२, ४४; १५।२५ संथारग(य) १२६; २।१२,५७ से ६४, २।२.३; ७1७, ८।१२,२२.२२,२६ से २८; ६१२ संथारग(मूमि) २।७३; ८।२६ संधि १।६२ संनिष्ड रा४५ संपधूमिय २१०, ५।१२; ६।६; ८१५; ६१०; १०।११ संपदा १५।२६ गा० १ संपण्ण १५।७८ संपरादय २।२५ संपरिहाव -संपरिहावई १।३३ संपवेव -संपवेवए १६।३ सपन्वेदय ७ संपाइ(ति)म १४०; २३।१५; ५४५, ६1५३ सपिडिव २।६०,६१, १।४९.,५०; ६1५७, (९.1 संफास -सफसे १३३२१४६, ४९.५७,१२३,१२५ से १२.१३० से १२२,१२८; ३।४०; १1४७, ६।५५ संवि १५।१३.३४ सभोय १।१२७,१३९६. ७1५,७ सभोएत्ता १।१०२ संभञ्निय १।४६ समद्रु २।१०) ५।१२ ६1६; ०।१०; ६।१०. १०।११ संमिस्स १११६ समुच्छिय ४१७ संमेल १।४२.४३ परभ २।४९.४२ सरक्चण १५।२५्‌ १३६ संरिहि -संलिहेज्ज १।५१; ३।३१.३२,२६; ६1४८,४६ सलिहिय ११४६ सलेहणा १५१२५ संलोय १।५५.५६,६२ संवच्छर १५।२६,२६ गाऽ १,३ सव -संवडह १५।१४ सवर १५।३६ सवस -सवसति २।३४,३५ -संवसे १६।४ -संवसेज्जा २।४०८,६५, ६६) ७५४१५ सवसमाण २।२१ते २५ २८,२६ सरवहृण र सवाह -संवाहेज्ज १३।२,१>, २०,२६,४०.,५०. ४७.६६; १४२, ९१३,२०.२६,४०, ५०,४६६,६६ १४४ संविन्जमाण २७६; ८1३० सवुड ११२१;२।२५.३८ संवेदेडं १५।७६ ससत्त॒ ११; १५।६६ संसार ४३४ संसीव -संसीवेज्जा ५।३ संपेद्म ११६६ संसेषिय १३।१,१०१ सकसाय १।१०२ सक्रिरिय ४।१०,१२.१४, २१२३१२५.२७, २६.३१,२३३,२३१; १५।४१.४६ सक्क(शाक्र) १५।२०८ गा०१९; १५।२१ ३२ गा० १८ सक्क(श्य) १५।७२ से ७६ १।५१ २।४३,५६; १९११७; १२२४ सगोत्त १५।३५.६ सचक्कर २।४३,५६ सचित्त १३।७८१८।७० सश्च ४।६०१०.११ सर्व्करा सणड सच्चापोसा सज्ज -सज्जेज्जा १११६; १२।१६;१५।७२ से ७६ सञ्जमाण १५।७२्‌ से ७६ सहा १।१२१.१४३,१५०; ४।६,१० २।३६ से ४२ सड गर सणेवग १०।२७ सणिय १५।२०८.२६ सण्ण २।१४ सण्णि १५१२२ सण्णिणचय १२१से २४ सण्णिरु्ध ८२० सण्णिवइय १६१ सण्मि(न्ति)वयमाण १।४०; ५।४५; ६।५३ सण्णिवातः १५।६,४० सण्णिचटुं १४१; २।४३ सण्णि(न्नि)वेत्त॒ शरत, ३४,१२२; २1१ ३।२,२,४५.५७ ४८; अर; वारः ११४७; १ रा १५।३०५,६,२७ भयार-चू सण्णिहि १२१२४ सत्त ११२ से १५.५८; २३ पे ७,१९.४६ ७१; ३।४६; ५५से १०,२२; धथ्से ६,२१; ७४०८,५६; ८२ ०,२५; श्रे से; १०४से &; १२१७६; १४।८६; १४४४ ४७.४८ सत्तप॒ १।१४७, ५।५५ सत्थ २।५६,६०; १।४०; ८६; ६&५६,५७ ३।२४; १३।२६२७,३३, २३४,६२३१६४१७०; ७१; १४५।२६.२७, २२,२४,६३.६४, ७०,७१ सत्थजाय सद -सदति १1१३८ सद्‌ ४३५.३९ १११ से १७, १५१५; ७२; १६।३ सहुघत्तिक्कय ११ सदृहमाण २।३६.२७, ३६ पे ४२ शब्दसूची सदुदल १५।२८ सद्धं १।३२९ सद्धिं शठ से १०,४६, ४७, २।२१,२३ से २५.२८.२६, ३।२३, ४६ से ५९१; ७३ सपदिदुवार १।५५.५६, ६२ सपि १११२ समा १०।२०; ११।० १२।५ सम॒ १।२६.५५७, २।१२ ७२,७६, ८1१२ २६.२३० ६।१२; १०।१७ १।१६.१७.२१, २४,२२,४२,४३; ४६९.५५,५७११८, १०१,१२१,१२७, १२३०,१३५,१४७ १५४; २७,८,२५, ३६से ४०; ३।२से ५,१७ से २९.२४, २५.४८४,४८५,४६, ११,५३ से ५८,६१; ५।६,१०,२०.२२से २४.४६ से ४८.५०; समण समण ६।०,६,१९.२१ से २९.१५४ से षदशय, ७१,२४; ८।७.८; ६1७८; १०८६, १५।१,३,४.७ से ११,१३ ते ३६, ३८.४० से ४२ १५१७ २४१ १५२६ समणाउस समणजाय समणिज्जमाण सर्मणुजाणं -समणुजाणिज्जा १५।१७,७१ -समणुजाणेज्जा र; १५।४३.५० -समणुज्जाणेज्जा १५।६४ समणुण्ण(न्न) १११२७, १२६; ७५,७ समगुननाय १।१२०,१३६ समणुपत्त १५।३५ समगुसिटु ११३६ समणोवासग १५।२५ समत्तपइण्ण॒ १५।९६ समय ४९ शाषतः २६.२९; १६६ समवाय १२४ १४१ समहिाय २।४अ ७४, &८,२२,२५.३२; ३९.४६.४६ १५।२ १।१.४ से =, ११से १७.२१.२२, २४,२६.४२.४३.४९४ ४६,५०,५२,५३, ५.५८,६१,६२, ८२ से ४,८७.८६, ६०,६२ से ९४५६६ से ६६,१०१,१०२, १०४ से ११६. १२९२१२४ से १२९१२०८.१३२, १२४,१२३६११३८, १३६,१४४,१४७, १५१ से १४५४ २।७०; दण्द; ८।२४; १५।२४.२७ समायार २।२७ समारभ -समारभेज्जा १।९१ समारंभ २।४१,४२ समार्म ११२से १७; २रेसेतथ।५से १०.२२; समा समाण १४२ समार्म॒ ६४ से, २९१; नेसे ६।३ से ७) १०।४से ६ समारकं -समालकेति १५।२८ समाल्करेता १५।२८ समाचण्ण १२३६ १५।४९ समावद -पपरावदेज्जा १५।५१ से ५५ साहि ११५५; २,६७ २।२२.२६१४४ १६ से ६१; ५।२१, ४८,४९; ६।२०,५६ से १८; ७५६ ८२१ समादहिय (समाख्यात) १६४ समाहिय(समाहित) १६।५ समिति १५।३६ समिय १।२०,३०.४१, ८,६० १८६ १ 9 ३, १ २०; १ २६, १ 2३७ १५६; २।२६,४२, ६२; ५।१०८.३६ समिय ५।४०,५१; ६।४२, ५६; अररश्यः ८३१; €1१७ १०२९; ११२०; १२।१७; १३।८०› 7 थाणः; १५४४, 2७ समियाए र४४; ४३, ५८ १६८ १५२८ समीरिय समुग्धाय समूद -समुद्ठेन्जा ३।२६१४४ समृह्मए ७१ समुदय १५।२७ समु १५२७१३३ समुदिस्स १।१२ से १७, शषः रादेसे ठ, ३६,२७,३६९,४१; १।५ से १०,२२; ६।४ पै ६,२१; देसे ठ; ६।३से ७; १०।४से&६ १।४०; ५।४५; ६।५३ समुद्धूय समुपन्ज -समुपण्जियु १५।२७ आंमार-चूला -समुपन्जेज्जा १३१, ३५.३८ -समुप्पञ्जेजजा २।२१ समुप्प्ण(न्ने) १५१ २३,२४,२७.२८४४० समुवे "समयेति समोणय सपरोहण -समोहणति १५२०८ समोहणित्ता = १५२८ सम्भं १।३१,१२०,१५५६ २1६७; ५।२१; ६।२०, ७५९; ८।२१; १५१३४ ३७,४९.५६.६२, ७०,७७,४७7 सम्मिस्सिमाव १३२ सयं -सयतिं सय -सणएञ्जा सय(स्वकर) १६१ १५।२८ १११३ २।७३,७४ पराररः ६२१; १०।४; १५।२९७ सथ{शत) १५।२६गा० ३; १५।२८ गा०१७ शन्द-पुचौ सयं १२५.,१०१.१३१, १४१,१४७.१५१ से १५४; २।६३.६४. २३।१०.२६१६१; ५।१७ से २०,५०, ६।१६ मे १६.५८; ७२,५,७,६, १५।४३१५०,५७, ६४,७१ ४।२६ १५।६६९ सयण(स्वजन) १५।१३, ३४ तसयपाम १५।२८ सयपाण २७४ सयषहस्स १५।२६ गा० २,३; ११२८ गा० &,१६ सया १।२०,२३०,४१,४८; ६०,८६,१०२३, १२०,१२६.१३७; १५६; २२६,४२, ७७; ३।२३,४९ ६२; ४१८.२९; ५।४०,५१, दा ४३, ५६; ७।२२,५८; ८।३१; ६१७; सयण(श्यन) सया १०२९; ११।२०; १२1१७, १३८६०, १४।८६० सर(सरस्‌) २।४५८; ११।५, १२२९ सर(शर) १६।२ सरं १।५१ सरथं १।१४२ सर्डयजाय १।११० सरण ३।४९,५६,६०; ५।४८,४६, ६।५६,५७ परपेतिय 31४८; १९1८; १२।२ सरभ १४।२८ सरमह १।२४ सरमाण १५।६७ सरय १५।२८ गा०१४ सरसरपंतिय रे।४८; ११1४; १२५२ सराव १।१४५,१५२ ` सरित्तए १५।६७ सरीर २१८; १५।२५ सरीत्तिव ३।४६,५४, ४।२५,२६ सचिल १६१० सल्लहपरंव १।१०८ १४३ - सल्लदपवास १।१०६ सनियार ८।१७ से २०- सव्व ~ १२९ सव्वंओ - १५।१ सव्वण्णु ˆ ` १५।३९ सव्वत्त १५।१ सन्वसह १६।४. सषंधिय ५।४६.४७; ६।५४,५५ . सपरक्व १।५१,६६,६७, १०२; २।७६- ~ ४।३५; दरतः ७1१५; ०८।३०; १०।१४ ससणिद्ध॒ ५।३५, ७।१० ससिणिद्ध १५१,९५, ६९६०१०२; २।३५, > १,२७.३०८; ६।३८, ४७.४०; १०१४ ससीसोवसियि २।७३; २३।१५१२४; ८।२७ `" सस्स ४।१६ सह 6 -तहइ ९५।१६,२३७. -सहिस्सामि १५३४ सहसम्मुख्य १५।१६ सहसा २२६ १४४ सदस्स १५1२० सहस्सपाग १५।२८ सहस्समाटिणीया १५।२८ सहस्सवाष्टेणी १५।२८, २६ रार६्से णर; ३1४७; ४।२१,२२ सहिया ५।१४ सदिणकल्लाण -५।१४ सिय १२०,३०,४९१, ४८,६०,८६,१०३, १२०,१२९.,१३७, १५६; २।२६,४३, ७७; २।२३,४६; ६२; ५१८.२३६; ५।४०,५१; ६1४३, १५९; ५२२५८ ८।२३१; ९।१७; १०२६; ११।२०; १२1१७; १३।८०; १४८९३ साद १५।२ सादम ११.११ से १७, २१.२३ से २५.३६, ४१,४४,४५.५६, ५७,६३ से ८९८४, सहां साइम १।८१,८७से €<, १२१.१२३,१२५७, १२९.१४१,१४२, १४५. १४०, १४६. १५२; रार८४८) ४।२,२३,२४; ६।२६; ७1५; ११।१८; १२।१५; १५।१३ १३1१ से ७८; १४।१ से ७८ ११५; २२ १।२४ साइय सागर सागरमह सरागरोवम १५।३ सागार ३।३४ सागारिय २।२० से २५, ४६; ७१४ सागारियओग्गह ७५७ सागकच्च १०।२६ साडग १५।२६ साण ४।१२,१४ साणय ५।१,१७ साणुचीय ११११ सातिन्ज -सातिज्जंति ५।४७; ६।५५ आयार-चूला -सातिज्जेन्जा १३२ ३९९; ५।४६; ६।५४ सामग्गिय १।२०,३०, ४१,४०,६०,८६, १०३,१२०,१२९, १२७,१५६; २२६, ४२,७७, ३।२३, ४६,६२; ५।१८, २६; ५।४०,५१; ` ६।४३,५६; ७।२२९, ५८;०८।३१; ६।१७, १०२६; १११२०, १२१७; १३।५०; १४।८० सामादय १५।३२.३३ सामग १५।२८ सामुदाणिय १।३३,४५७, १२३ खाय -साएन्ना २।२४ साय ३३६ सार १५।२६ सावदेज्ज १५२६ साख १५।२० सालि १०।१६ साद्य - ११०९६ शन्द^मुची ` सवग ४।१३ सावज्ज ४।१,१०,१२ १४,२१.२२३,२५, २७.२६.३१.२३, २५; १५।४१५,४६ सावज्जकड ५।२२,२४ सावज्जकरिरिया २।४० सावा ४।१५ सासवणालियि ११०६ साक्तिय १।४ साह “ शार साहट्टुः ३।६ साहु १५।२८ गा०१२. " १५।३२ गा १६ साहम्मिणी १९४१५; २५.६) ५७, ६।६ ७) ८1५,६; ९1.४४; १०।६,७ साहम्मिय १।१२,१३, १९७.१३०.,१३६; २।३०४,२३,४७- ` ५।५ से ८, ६।४,५; ` ७ ते ८,२३.२, ` २३२,३६,४६ से ४€; ८३,४, ६।३,४ १०१,४,५.१५।६२ साहम्मियगओरोगगह्‌ ७५७ १६ साहर -साहरदइ(ति) २1१४, १६) ८1१४; ६1१४; १५।५.६.२१ -साहरंति १०१२ -साहरिएपभि १५७ -साहरिज्जिस्सामि १५।७ -साहरेजजा ६४७ साहरिज्जमाण १५।७,१४ साहरिय १५।१ साहा १।६६ साहारण १।१३० साहि १५।२०८ साह ६।२६ साहुकड ४।२१,२३ सिग(पाय) ६।१३ सिगवचग ६1१४ सिगवेर ११०७ ्सिमवेरचुण्ण ११०७ सिघाण १५१२१ श्घिाडगं १।११३ सिच -सिचति २।५४ ७१९ -सिचेञज २।२१ सिवरी १।१३३ सिहास्रम - शभ्ार् १४४५ सिग्व १५।२७ सिञ्जा १।२९; २१२; ८१२, ६1१२ सिज्छ -तिभ्िस्संति १५।२५ पिणाण १।६२ २।२१, ५३; ५।२३,२३१.२३ ६।२२.२३३,३६; ७१८ सिणाव -सिणवेति २।५४ ७१६ -सिणवेज्ज २२१ तिणेह २।३२,२३९; ६।४६ सित १६।७ सिद्ध १५।३२ विद्त्य १५३५११७ सिद्धत्यवण शार गा०१५ सिय रार सिया १५।५२ से ५५, ६०,६१.६१,६७ विवार १।५२, ३।५६ धिर १५।२८ सिटढा १।५१८२,८, १०२, ५।३५.३७ १४६ सिला ६३८,४०; ७1१०, १२.५५; १०।१४; १५।१२.१३ सिलिवय ४।१६ सिविया १५।२८;१५।२८ गा०्य; १५।२६ १५।२८ सिहरिणी १।४६ सिहा १६।५ सिओ(तो)दय(ग) १।१, २३५.६२११०२; २१८,२९.४१,४२, ५४; ५।२४.३२, २३४; ६।२४,३४ २७.४६; ७1१६; १२३।७ से १६,२३, २२,४४,५३,६०, ९६; १५५।७,१६, २३,३२,४४.५३, ६०,६६ १५।२८ ४३७ १५।२८ गा०७,१० १११२१; २1२५२०८ चिह्र सीतय सीय सीया सीखवंत सीस ९।३५.८८; २१६, ४६,७१; ३।२१; ८।२५; १२।७१; १४।७५ सीप्रगपाय ६।१३ सीसगर्ववण ६।१४ सीह १।५२; २।४९,५६; १५।३,२८ सीहासण १५।२८१५।२८ गा०८,११, १५।२६ सुद २९७ सुकड ४२१,२३ सुक्क १।५१ सुक्कज्छाण श्भरेण सुक्किल्ल ४।२७ सुचगियि १५।३६ सुचिमूय १५।१३ सुदट्ट्‌ ६२६ सुट्‌षुकड ४।९६१,२२ सुण -सुणेद ११।१ से १४६; १५।७२ -सुण्डजा = ५।३५.३६ सुणय १।५२; ३।५६ सुणिरुवित = १५२८ सुणिसंत २।३६.३७, ३६ पे ४२ आयारचूला १।२५.४६१६३ १२१,.१२२,१४३; २।२२.२५,२६ ये ४२.५१ से ५५.६४ ५।१८; ६1१७; ७१६ से २० ७।२४ १५।२१ २४४; १३७८; १४७८; १५८२८ सुद्धवियड १।१०१,१५१ चुण्हा सुत्त सु्द्षणा सुद्ध सुदधोदय १५।२०८ सुगस १५।१९ सुन्मि १।१२५ पुन्मिगंध ४।३७ सुभ १५।५.२९० सुमण २।२६,४४ सुय ५1२२; ६।२९; ७५७; ११।१६; १२।१६ सुयतर ५।०२; ६।९१ सुर १५।२८ गा० ११ से ५ रमि ११० सुरभिपङंव ११०४८ सुूव १५।२ सुखम रा ३।२,२ शब्दसूची सुवण्ण २२४ ५।९७, ५।१२,१३.२६ सुवण्णपाय ६1१३ सुवष्णरवेघषण ९१४ सुवण्णसुत्त॒ १३1७६; १४।७६ सुवत्य १५।२६ गा०५ सुव्रय १५।२९.२८ सुम्‌ ४।२५.२६ सुममदरूसमा १५।३ सुसममुसमा १५१३ सुषमा १५।२ सूुाणकेम्प॑ंत २।३६ से ४२; ३४७; ४१२९१, ५.९ मुस्समण १६।४ सुहाक्रम्मत २३६ से ४२ २1४७; ८।२१,२२ सुह्म॒ ५११; १५।४,४३ सुर ७६ सुणिय ४।१६ सूयरजाह्य १६१ सूर १५।२६ गा० १,२ भूरिय ४१६ भूव १।६६ ते १।९३ सेज्य्त १५।१७ १।२६. रसे २५,२७ से २२.४४, ४६ से ५६.७२ ते ७४,७६, २।२,३; ७७, ०८।२ से १५, २६ से २८) ६।३ सज्जा से५ सेज्जा(मूमि) २।७२; ८।२६ सेडिया १।७६.७७ सेगा ३1४४,५६,५९,६०, १४८१४६६, ९।५६, ५७ सेणागय ३१४८ सेय ६1१७, १३।३५,७२, ८०; १४।२५.८२९, ८०५ सेयणयह १०२ सेल(पाय) ६1१३ सेट्वंवम ६।१४ सेोवद्राणकम्मंतं २।३९ सै ४२; २१४९, ४।२१ १२२ सेव सेव २।४१,४२ सेवमान १५।२६ सेवततए १५६६ $ सेस १५।२.२५ सेमवती १५१२४ मेहं २८; ८।९ सोद १41७२ सोडा ११२२ सोच्चं १६1९ ५ ४।१; ५।२९न्‌ २५४, सोय सोग्ह्धिया ११५०,८८ सोवत्यिय १५।६ सोवीर्‌ २।१०१,१४५ सोश्षिय १५।२४ १५२२ ग: १८५४५. सोम १५२८ गा<{९ ष्ट ी | ५ 4 ~, ॥। | | (=| = 1 = ५५ श्वे षी [ि, [1\। ~ १४८६ हंद -हंदह १।१३८,१३६ हंस १५।२८,२९ इड र हेत्थ १।१,३५,६३ से ८१,८८,६९६,१३९, १२३५.१३९.१४१ से १४८३,१४८.१४९; २।१८,१९.४५,४६, ७४; २।२०,२९१, २७.३५ ५०,५२; ५।३; ६४६; ७,६&; ८।२५,२८ हृत्य॑करवच्च १०।२६ हत्यत ४।१९ हत्य १५२; ३।४५.५६ हत्थिजुदढ १९।१२; १२६ हत्थिहूाणकरण ११।११, १२।८ हत्थुतर १५।९१,२१५.८, २६.२६.२८ हुम्मियतल १।८७, २११०; ५।२० ६।४१; ७१३ हयजूहियट्ण १११३ १२१० हरिभवेय १०।२७ हरिय ११२,२६.४२, ` . ४२,५१,१०२,१३५४ आयार-चूला हध्यि २१.२६, हि ` १४,३१.३२,५७ से -हिसेजा १।८५ ६१.६०.६६, ३११, दिष्टम १३।४०. न हित १५३२ गा० १९ 1 ११६ ३०.२३५; ६।२५, हिय १५।२६ गा० ६- २९.३१.३८.४५; दिरण १५।२६ ७१०,०६से ३१, हिरण्ण राग्५; ५२७, ३३ से ३८,४० से १५११२,१३,२६. ४५; ८।१,२,१२, १६गा०२ १४,२२.२३; €।१, दहिरण्णपराथ ६।१३ २,१२.१४; १०।२, हिरण्गदंवण ६1१४ ३,१२,१४,१५,२८; हिरण्णवास १५।१० पर= शणघ्म = हीरमाण १।४२,४३.४९ हरियाल १।६६.८० हील्यि १६३ हरियाबह २४० हरत्य १।३२ हरिवंपकुल १२२ हि १।५६.०५,६१.६५, हसत ११।१०८, १२।१५ १२३; २,१६.२१ ह्स्स ४।२८ से २५,२७ से ३०, हार २।२४, ५।२७; ५८ १३७९ १५७६; ५ १५।२८ ६२८४५; ८1२५ हारपड गय ६।१३ हेमंत ३।४,५;१५।२६.२९ हारपुडवंघग ६।१४ हो हार ४३७ -होउ १५।१२ हास १५।५०,५५ -होति १५२६ मा०३ हासणय १५।५५ ˆ -होत्था १५।१४.७.६१ हासि - १५।५५ २५.२६.४०. हि , ११२१ -होहिति १५।२६. हिगुलय १।७०,७१ गा०१. हिमोक १४२४६ - होल ४१२१४ " एष्ट > 0 ^< ० ० ५ १६ १७ १७ १८ १६ २०५ २१ रण्‌ २६ २६ २६ २६ 39 २१ २१ ३२ दर्‌ शुद्धि ओर आपरक पत्र-१ स्थत अणुघम्मिय अणेजिसि अणेगरूवं अतिभच्च अप्पाण -आडक्ामो आय काम्‌ कुसल गृर चिद -जाणई दुल्ख्ह पडिलेहिय पन्ताणमंत्‌ परिघासेउं -परिवयंति -परिहरंति पवा आयारो रब्द-सूची गद्य च्ुद्ध उद्भिजा अद्भिजा ६११२ ६।१।२ ६२ ६।२ ८२, = ६।९।६ ६।१।६ १०७, २।२३ ४।२३ ६1४६ ६।४।१९ कृरव्वंड ८।१०६,१०६ ० ५१३ ५२ १२१ १७४ हावी ०,२१ ७५ ५२ ५।२९ -अच्छे १।२७ २८,५०,५१.८१.८२. १ १०,११ १,१३७.१२८,१६१,१६२्‌ "र १४७ १।१४७ तिरियं तिगिवि दूक्छसट €।३।१२ भं ८४६ ५।४६ ६। ८] ६।२,०६ ६।३,७६ ८३२३ ८२३ परिवदंण परिवंदण २।७६ २5८६ सर्र =€ ९।२२१ दभर्‌ स्थ पसि पाण प्राण) वहिया भो -विहिसति संपन्वथमाण सत्त (सत्व) समणुन्न सयं स्वतो णच्चद्ध २।१६१ ८1७ पाय (पात्र) २। खृदेसिया १०२ ८६ सतत ४।२० सन्नियय ३।७६ १०६ सययं १७५ सुभ (भह) भूमि आयार दद्र २।१०१ ८६1५ पायं (पात्र) | ९। +जहुतर ०।०।२३ "६1२४ लृहदेसिय १०१ ९६ +पक्ट तता ०।१०५,१२५ संवस ४।१,२० +-सत्यपरिण्णा १ सत्निचय ६।७९ ११६ सयय १७६ सुन्भे (ह) भूमि प्रष्ठ ५७ भए ५. ५६ ६३ ६४ ६४ ६५ ६५ 1 ७० ७१ ७२ ७२ ७२ ७२ ७३ ७३ ण्ट ७५ ७५ ७६ ७६ ५५८ शुद्धि ओर आपूरक पत्र-२ आचार-चूा रब्द्‌-सूची स्थल अण्णतर (यर) अण्णत्य अप्प (आत्मन्‌) अन्तग आउस आउसंत इतरेतर -उ्वेति -उवक्लडेसु -उन्वट्टेन उप्तिणोदग एग एगंत एयप्पगार कट्ठसिन्य कणप 3 -किणेन्ज अद्चुद्ध्‌ ३६.३६ २।१७ अत्तद््यं ४६.४६ ३६ से ४१ २।३४.४२ ५।१२,२२ आगसह आविष ३। ड्द से उद्घट्टः ६।२,६ उवेहमाए १।६२ १४,१५।२६ गा० २ ३।१४ २२५३६ ओद शर कणमूयलिव शशय ३.१४ नुद ३६ से ३६ २१८ अत्तचिय ४६ से ४६ ३६,४१ २३४ ४२ दा१३,५।२र्‌ आगम आवि कणपुपन्विा १।१०८ २११५“ ७६ ६२ ६ &४ ६९४ ६६ ६७ ` ६७ -६&७ ६७ ४५.) स्ट ध ६६ ६६& कीय खंष खीदम गण गाहावद चउत्थ १५।५४ चरित्त -चिट्खेज्जा -जएज्जासि -जाणेजजां णगर णावा णिगम गणिराषरण तंजहा आयार-चूलां णद्द्भ खुद्ध ११२,१७ १।१२ से १७ “, कभीमुट कुमीमुह ७३८ ५।३८ १२।१६ १२१ खंड #<1 पडाय खुहाय सुमा हा -गच्छवेज्जा -गच्छनेज्जा १७ १५। गति गति २।२१,२५.५०,५५ २।२१ मे २५.५० से १५ ६१, १५।२३२;२३ गा० १८६१६१३२ १५।२३२गा० १८,१९;१५।२३३ चिघ विध से # ८।२१ ८।२११ ४ से ५२ ४९,५२ ३।९३ २।२.३ +णाणत्त १।१३४ णांति १४ णाति ३४ +-६।५३ २।२३ २।२,३ से (1 णिजम्मभाति भित्म्ममासि णिसीहियाखत्तिक्रय णिसीहियासत्तिक्षय णीपुरपवाठ णीपूरपवाछ ३९.४२ ३६ से ४२ गुद्धि ओौर आपूरक पत्र-२ पष्ट १५० १०९ १५२ १०१ १०३ १०३ - १०२ १०४ १७४ १०१५ १०९ १०६ १०६ ११० ११० १११ १११ ११२ १९१२ ११३ ११५ ११५ ११८ ११८ १२० १२१ १२२ १२४ स्थल तत्थ तहप्पगार तिरिक्लजोणिय [र -दज्जा दाडं दुण्गि (न्ति)किित्त दोणमुहं -पडिगाहेनज्जा पडगाहिय पडिया -पधूवेज्ज पयावेत्तेए परिएचिज्जमाण परियारणा पससित पाण (पान) ११४५, अद्यु तक्रलिमत्थय २४६९.५६ ५४ दम्भ १४८,१५२ ५।२२,२४ दुग्गघ २९.४१ ३१ से३ २।७४ २1२ ५।४२ से ४५ पडिवन्जमाण पड्प्पवाइयद्राण १३।६२ से ९९ २।१६ १२१ से २४ २५५ १५।३८ गा १,४१ पुन्व १ १५५ भासिज्जभाणी भिनुग (य) भरू शद्ध तक्षलिपत्यय +८1१९;६1५ २।४६ से ५६ ६४ दम्म १४८ से १५२९ भरा२२्‌ सेर दुग्ग॑ध २३९ से ४१ २।१,३।२,२ २६९४ १२ ५८६२१४५ पडिवज्जमाण पडप्पवाद्रयदाण १३।६२,६६ -पपज्जमाण शत २।२६ १२१२४ २२५ १५।२८ ठ) गा० १.१५।४१ पुन्वि ८ १४६ भातिज्जमाणी भिनगा (या) षष्ठ १२४ १२५ १२६ १४० १४० १४२ स्थत ` भूय (त) भोयणजात (य) , मण्ण (न्न)माण २।६ १, मिलक्लु मुसावाय र्प्प २२] वासर (वषं) १५।३४, व्डि (दु) विचित्त वियड विसम सजय संत्ताणग (य) सगड सत्थजाय सथं साहम्मिय आयार-चूखा -* णङुद्ध चद ५।१५ से १० ५।५ से १०,२ १३५ १३४ १४६ १४७ मडंव मडंव ६३, +मह्वीण १५।१४ १११८ ११।१७ १।५० १५५० रहकम्म रहोकम्म रदत र्दा ५।२८ १५।२८ +वाइत्तवज्जा १२।२ +२६, ५६५ १६५ २८२८ गा० ११ १५।२८ गा० ५ विज्जल १।५३ ५।३४.३४ ५।३४ विसमक्खणटराण +विसभक्छणदराण १५।७२ से ७६ द +विस्षय १५।७२ ते ७६ संखोमिय सखोभिय ०८।२६.२९ ८।२६ से २६ +७१० सपन्वह्य संपन्वदय १२२४ १२।९४ १३।२६।२७ १२१९९०२७ १४१.१४७ १४१ से १४७ सछ्छइपवास सहपान ७1४६ से ४६ ७६.४६ ध मरौर आपूर पत्र.र षष्ट स्थल १४५ सिया १४६ १४७ १४७ १४८ 2 हरिय १४८ ष्ठ हेड ता नौर - शल्य -न्दि-पूची म मे पृष्ठ७ ६ के स्यानं पर 2 २३४1 छप्या सवार करं । भद्द ६५,६७ पिमो ७ से १६ सु । सुणि ६1२६.२३१ हिगुल्य हिगोल साद य्६ै (. दपा है भौ पृष्ठ १३४ त्रः स्थानि पर्‌